अध्याय ४
यीशु मसीह परमेश्वर के ज्ञान की कुंजी
१, २. संसार के धर्मों ने परमेश्वर के ज्ञान की कुंजी के साथ कैसे फेर-बदल की है?
आप दरवाज़े पर खड़े अपनी चाबियाँ टटोल रहे हैं। ठंड और अन्धेरा है, और आप अन्दर घुसने की जल्दी में हैं—लेकिन चाबी नहीं लग रही। चाबी तो सही दिख रही है, लेकिन ताला है कि टस से मस नहीं होता। कितना निराशाजनक! आप फिर से अपनी चाबियों को देखते हैं। क्या आप सही चाबी लगा रहे हैं? क्या किसी ने चाबी ख़राब कर दी है?
२ यह इस बात का उपयुक्त दृष्टान्त है कि इस संसार की धार्मिक गड़बड़ी ने परमेश्वर के ज्ञान के साथ क्या किया है। असल में, अनेक लोगों ने उस चाबी के साथ फेर-बदल की है जो इस ज्ञान के विषय में हमारी समझ को खोलती है—यीशु मसीह। कुछ धर्मों ने उस चाबी को निकाल दिया है, अर्थात् यीशु को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया है। दूसरों ने यीशु की भूमिका को विकृत किया है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में उसकी उपासना की है। बात चाहे कुछ भी हो, इस मुख्य पात्र, यीशु मसीह के बारे में यथार्थ समझ के बिना परमेश्वर का ज्ञान हमारे लिए बन्द है।
३. यीशु को परमेश्वर के ज्ञान की कुंजी क्यों कहा जा सकता है?
३ आपको शायद याद हो कि यीशु ने कहा था: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना १७:३) यह कहते समय यीशु डींग नहीं मार रहा था। शास्त्र बारंबार मसीह के यथार्थ ज्ञान की ज़रूरत पर ज़ोर देता है। (इफिसियों ४:१३; कुलुस्सियों २:२; २ पतरस १:८; २:२०) प्रेरित पतरस ने कहा कि “[यीशु मसीह] की सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते हैं।” (प्रेरितों १०:४३) और प्रेरित पौलुस ने लिखा: “[यीशु] में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं।” (कुलुस्सियों २:३) पौलुस ने यह भी कहा कि यहोवा की सभी प्रतिज्ञाएँ यीशु के कारण सच्ची ठहरती हैं। (२ कुरिन्थियों १:२०) सो यीशु मसीह परमेश्वर के ज्ञान की कुंजी है। यीशु के बारे में हमारा ज्ञान उसके स्वरूप तथा परमेश्वर के प्रबन्ध में उसकी भूमिका के सम्बन्ध में किसी भी विकृति से मुक्त होना चाहिए। लेकिन यीशु के अनुयायी उसे परमेश्वर के उद्देश्यों में प्रमुख क्यों समझते हैं?
प्रतिज्ञात मसीहा
४, ५. कौन-सी आशाएँ मसीहा पर केंद्रित थीं, और यीशु के शिष्यों ने उसे किस दृष्टि से देखा?
४ विश्वासी पुरुष हाबिल के दिनों से, परमेश्वर के सेवकों ने उत्सुकता से उस वंश की प्रत्याशा की थी जिसके बारे में स्वयं यहोवा परमेश्वर ने पूर्वबताया था। (उत्पत्ति ३:१५; ४:१-८; इब्रानियों ११:४) यह प्रकट किया गया था कि वह वंश मसीहा, अर्थात् “अभिषिक्त जन” के रूप में परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करता। वह “पापों का अन्त” करता, और उसके राज्य की महिमा भजनों में पूर्वबतायी गयी थी। (दानिय्येल ९:२४-२६; भजन ७२:१-२०) कौन मसीहा साबित होता?
५ अन्द्रियास नाम के एक युवा यहूदी की उत्तेजना की कल्पना कीजिए जब वह यीशु नासरी के वचन सुन रहा था। अन्द्रियास भागकर अपने भाई शमौन पतरस के पास गया और उससे कहा: “हम को . . . मसीह मिल गया।” (यूहन्ना १:४१) यीशु के शिष्य विश्वस्त थे कि वही प्रतिज्ञात मसीहा था। (मत्ती १६:१६) और सच्चे मसीही इस विश्वास के लिए अपनी जान देने को तैयार थे कि यीशु सचमुच पूर्वकथित मसीहा, या मसीह था। उनके पास क्या सबूत था? आइए तीन प्रकार के प्रमाणों पर विचार करें।
प्रमाण कि यीशु ही मसीहा था
६. (क) प्रतिज्ञात वंश को किस वंशावली में उत्पन्न होना था, और हम कैसे जानते हैं कि यीशु उसी वंश से आया? (ख) सामान्य युग ७० के बाद जीवित किसी भी व्यक्ति के लिए मसीहा होने का दावा साबित करना क्यों असंभव होता?
६ यीशु की वंशावली प्रतिज्ञात मसीहा के रूप में उसकी पहचान कराने के लिए पहला आधार स्थापित करती है। यहोवा ने अपने सेवक इब्राहीम से कहा था कि प्रतिज्ञात वंश उसके परिवार से आएगा। इब्राहीम के पुत्र इसहाक, इसहाक के पुत्र याक़ूब, और याक़ूब के पुत्र यहूदा, इन सभी से समान प्रतिज्ञा की गयी। (उत्पत्ति २२:१८; २६:२-५; २८:१२-१५; ४९:१०) शताब्दियों बाद मसीहा के आगमन का वंश और भी स्पष्ट हो गया जब राजा दाऊद को कहा गया कि मसीहा उसके पारिवारिक वंश से आएगा। (भजन १३२:११; यशायाह ११:१, १०) मत्ती और लूका के सुसमाचार वृत्तान्त इस बात की पुष्टि करते हैं कि यीशु उस पारिवारिक वंश से आया। (मत्ती १:१-१६; लूका ३:२३-३८) जबकि यीशु के अनेक कटु शत्रु थे, उनमें से किसी ने भी उसकी जानी-मानी वंशावली पर संदेह प्रकट नहीं किया। (मत्ती २१:९, १५) तो स्पष्टतया, उसकी वंशावली निर्विवाद है। लेकिन, यहूदियों के पारिवारिक अभिलेख तब नष्ट हो गए जब सा.यु. ७० में रोमियों ने यरूशलेम को लूटा। उसके बाद, कोई भी कभी प्रतिज्ञात मसीहा होने के दावे को साबित नहीं कर सका।
७. (क) इस बात का दूसरा प्रमाण क्या है कि यीशु ही मसीहा था? (ख) यीशु के सम्बन्ध में मीका ५:२ कैसे पूरा हुआ?
७ पूरित भविष्यवाणी दूसरा प्रमाण है। इब्रानी शास्त्र की बीसियों भविष्यवाणियाँ मसीहा के जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करती हैं। सामान्य युग पूर्व आठवीं शताब्दी में, भविष्यवक्ता मीका ने पूर्वबताया था कि यह महान शासक महत्त्वहीन नगर बेतलेहेम में जन्म लेता। इस्राएल में दो नगरों का नाम बेतलेहेम था, लेकिन इस भविष्यवाणी ने स्पष्ट किया कि किस में: बेतलेहेम एप्राता, जहाँ राजा दाऊद का जन्म हुआ था। (मीका ५:२) यीशु के माता-पिता, यूसुफ और मरियम नासरत में रहते थे, जो बेतलेहेम के लगभग १५० किलोमीटर उत्तर में था। लेकिन, जब मरियम गर्भवती थी, तब रोमी शासक कैसर औगूस्तुस ने सभी लोगों को आज्ञा दी कि अपने गृह नगरों में पंजीकरण कराएँ।a सो यूसुफ को अपनी गर्भवती पत्नी को बेतलेहेम ले जाना पड़ा, जहाँ यीशु का जन्म हुआ।—लूका २:१-७.
८. (क) कब और किस घटना के साथ ६९ “सप्ताह” शुरू हुए? (ख) ६९ “सप्ताह” कितने लम्बे थे, और उनकी समाप्ति पर क्या हुआ?
८ सामान्य युग पूर्व छठी शताब्दी में, भविष्यवक्ता दानिय्येल ने पूर्वबताया कि यरूशलेम के पुनर्निर्माण और फिर से बसाए जाने की आज्ञा निकलने के ६९ “सप्ताह” बाद “अभिषिक्त [मसीह, फुटनोट] प्रधान” प्रकट होता। (दानिय्येल ९:२४, २५) इनमें से प्रत्येक “सप्ताह” सात वर्ष का था।b बाइबल और लौकिक इतिहास के अनुसार, यरूशलेम का पुनर्निर्माण करने की आज्ञा सा.यु.पू. ४५५ में दी गयी। (नहेमायाह २:१-८) सो मसीहा को सा.यु.पू. ४५५ के ४८३ (६९ गुणा ७) वर्ष बाद आना था। यह हमें सा.यु. २९ में लाता है, और इसी वर्ष यहोवा ने यीशु को पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया। अतः यीशु “मसीह” (अर्थात् “अभिषिक्त जन”), या मसीहा बना।—लूका ३:१५, १६, २१, २२.
९. (क) भजन २:२ कैसे पूरा हुआ? (ख) कौन-सी कुछ अन्य भविष्यवाणियाँ यीशु में पूरी हुईं? (तालिका देखिए।)
९ निःसंदेह, सभी लोगों ने यीशु को प्रतिज्ञात मसीहा के रूप में स्वीकार नहीं किया, और शास्त्र में यह पूर्वबताया गया था। जैसा भजन २:२ में अभिलिखित है, राजा दाऊद यह पूर्वबताने के लिए ईश्वरीय रूप से उत्प्रेरित हुआ: ‘यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरुद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करते हैं।’ इस भविष्यवाणी ने संकेत किया कि एक से ज़्यादा देशों के नेता यहोवा के अभिषिक्त जन, या मसीहा पर आक्रमण करने के लिए संयुक्त होंगे। और ऐसा ही हुआ। यहूदी धार्मिक नेता, राजा हेरोदेस, और रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस, इन सभी ने यीशु को मार डालने में भूमिका निभायी। हेरोदेस और पीलातुस जो पहले शत्रु थे उस समय से पक्के मित्र बन गए। (मत्ती २७:१, २; लूका २३:१०-१२; प्रेरितों ४:२५-२८) इसके और सबूत के लिए कि यीशु ही मसीहा था, कृपया संलग्न तालिका देखिए, जिसका शीर्षक है “कुछ उल्लेखनीय मसीहाई भविष्यवाणियाँ।”
१०. किन तरीक़ों से यहोवा ने साबित किया कि यीशु उसका प्रतिज्ञात अभिषिक्त जन था?
१० यहोवा परमेश्वर की गवाही यीशु के मसीहापन का समर्थन करनेवाला तीसरा प्रमाण है। लोगों को यह बताने के लिए कि यीशु ही प्रतिज्ञात मसीहा था यहोवा ने स्वर्गदूतों को भेजा। (लूका २:१०-१४) असल में, यीशु के पार्थिव जीवन में, यहोवा ने स्वयं स्वर्ग से बोलकर यीशु पर अपना अनुमोदन व्यक्त किया। (मत्ती ३:१६, १७; १७:१-५) यहोवा परमेश्वर ने यीशु को चमत्कार दिखाने की शक्ति दी। इनमें से हरेक चमत्कार इस बात का अतिरिक्त ईश्वरीय सबूत था कि यीशु ही मसीहा था, क्योंकि परमेश्वर किसी धोखेबाज़ को कभी चमत्कार करने की शक्ति नहीं देता। यहोवा ने सुसमाचार वृत्तान्तों को उत्प्रेरित करने के लिए भी अपनी पवित्र आत्मा को प्रयोग किया, जिससे यीशु के मसीहापन का प्रमाण बाइबल का भाग बन गया, जो इतिहास में सबसे विस्तृत रूप से अनुवादित और वितरित पुस्तक है।—यूहन्ना ४:२५, २६.
११. कितना प्रमाण है कि यीशु ही मसीहा था?
११ कुल मिलाकर, प्रमाण के इन वर्गों में सैकड़ों तथ्य हैं जो प्रतिज्ञात मसीहा के रूप में यीशु की पहचान कराते हैं। तो स्पष्टतया, सच्चे मसीहियों ने उचित ही उसे वह समझा है ‘जिसकी सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते हैं,’ और उसे परमेश्वर के ज्ञान की कुंजी माना है। (प्रेरितों १०:४३) लेकिन इस तथ्य के अलावा कि यीशु मसीह ही मसीहा था उसके बारे में सीखने को और भी है। उसका आरंभ कहाँ हुआ? वह कैसा था?
यीशु का मानवपूर्व अस्तित्व
१२, १३. (क) हम कैसे जानते हैं कि पृथ्वी पर आने से पहले यीशु स्वर्ग में अस्तित्व में था? (ख) “वचन” कौन है, और मनुष्य बनने से पहले उसने क्या किया?
१२ यीशु के जीवन को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। पहला चरण उसके पृथ्वी पर जन्म लेने से बहुत पहले शुरू हुआ। मीका ५:२ (NW) ने कहा कि मसीहा का आरंभ ‘आरंभिक काल से, वरन् अनिश्चित काल’ से था। और यीशु ने साफ़-साफ़ कहा कि वह “ऊपर,” अर्थात् स्वर्ग से आया था। (यूहन्ना ८:२३; १६:२८) पृथ्वी पर आने से पहले वह स्वर्ग में कितने समय से था?
१३ यीशु को परमेश्वर का “एकलौता पुत्र” कहा गया क्योंकि स्वयं यहोवा ने उसे सृजा। (यूहन्ना ३:१६) “सारी सृष्टि में पहिलौठा” होने के कारण यीशु को परमेश्वर ने तब अन्य सभी वस्तुओं की सृष्टि करने के लिए प्रयोग किया। (कुलुस्सियों १:१५; प्रकाशितवाक्य ३:१४) यूहन्ना १:१ कहता है कि “वचन” (अपने मानवपूर्व अस्तित्व में यीशु) “आदि” में परमेश्वर के साथ था। सो वचन यहोवा के साथ था जब “आकाश और पृथ्वी” की सृष्टि की गयी। परमेश्वर वचन को सम्बोधित कर रहा था जब उसने कहा: “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार . . . बनाएं।” (उत्पत्ति १:१, २६) उसी प्रकार, नीतिवचन ८:२२-३१ (NHT) में साकार की गयी बुद्धि के रूप में वर्णित परमेश्वर का प्रिय “कुशल कारीगर” वचन ही होगा, जिसने सभी वस्तुओं को बनाने में यहोवा के साथ-साथ परिश्रम किया। यहोवा द्वारा अस्तित्व में लाए जाने के बाद, वचन ने पृथ्वी पर मनुष्य बनने से पहले स्वर्ग में परमेश्वर के साथ अनगिनत युग बिताए।
१४. यीशु को “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप” क्यों कहा जाता है?
१४ अतः, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कुलुस्सियों १:१५ यीशु को “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप” कहता है! अनगिनत वर्षों तक निकट संगति रखने के कारण आज्ञाकारी पुत्र बिलकुल अपने पिता, यहोवा के समान हो गया। यह एक और कारण है कि क्यों यीशु परमेश्वर के जीवन-दायक ज्ञान की कुंजी है। यीशु ने पृथ्वी पर रहते समय जो भी कार्य किया वह ठीक वैसा ही था जैसा यहोवा ने किया होता। अतः, यीशु को जानने का अर्थ यहोवा के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाना भी है। (यूहन्ना ८:२८; १४:८-१०) तो स्पष्टतया, यीशु मसीह के बारे में और सीखना अति महत्त्वपूर्ण है।
पृथ्वी पर यीशु का जीवन
१५. यीशु ने एक परिपूर्ण बालक के रूप में कैसे जन्म लिया?
१५ यीशु के जीवन का दूसरा चरण यहाँ पृथ्वी पर था। जब परमेश्वर ने उसका जीवन स्वर्ग से मरियम नाम की एक विश्वासी यहूदी कुँवारी के गर्भ में स्थानान्तरित कर दिया तब उसने स्वेच्छापूर्वक अधीनता दिखायी। यहोवा की सामर्थी पवित्र आत्मा, या सक्रिय शक्ति ने मरियम पर “छाया” की, जिसके कारण वह गर्भवती हुई और अन्ततः एक परिपूर्ण बालक को जन्म दिया। (लूका १:३४, ३५) यीशु ने उत्तराधिकार में कोई अपरिपूर्णता नहीं पायी थी क्योंकि उसका जीवन एक परिपूर्ण स्रोत से आया था। उसका पालन-पोषण एक दीन घर में बढ़ई यूसुफ के दत्तक पुत्र के रूप में हुआ और वह उस कई बच्चों के परिवार में पहलौठा था।—यशायाह ७:१४; मत्ती १:२२, २३; मरकुस ६:३.
१६, १७. (क) यीशु को चमत्कार करने के लिए शक्ति कहाँ से मिली, और उन में से कुछ कौन-से थे? (ख) यीशु ने कौन-से कुछ गुण दिखाए?
१६ यहोवा परमेश्वर के प्रति यीशु की गहरी भक्ति तभी से स्पष्ट हो चुकी थी जब वह १२ वर्ष का था। (लूका २:४१-४९) बड़े होने और ३० वर्ष की उम्र में अपनी सेवकाई शुरू करने के बाद, यीशु ने अपने संगी मनुष्यों के प्रति भी अपने अपार प्रेम को प्रदर्शित किया। जब परमेश्वर की पवित्र आत्मा ने उसे चमत्कार करने की शक्ति दी, तब करुणा के साथ उसने बीमारों, लँगड़ों, गूँगों, अन्धों, बहरों, और कोढ़ियों को चंगा किया। (मत्ती ८:२-४; १५:३०) यीशु ने हज़ारों भूखे लोगों को खिलाया। (मत्ती १५:३५-३८) उसने एक ऐसे तूफ़ान को शान्त किया जिससे उसके मित्रों की सुरक्षा ख़तरे में थी। (मरकुस ४:३७-३९) असल में, उसने मृत जनों का पुनरुत्थान भी किया। (यूहन्ना ११:४३, ४४) ये चमत्कार इतिहास के सुस्थापित तथ्य हैं। यहाँ तक कि यीशु के शत्रुओं ने भी स्वीकार किया कि उसने ‘बहुत चिन्ह दिखाए।’—यूहन्ना ११:४७, ४८.
१७ यीशु ने अपने पूरे स्वदेश की यात्रा की, और लोगों को परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखाया। (मत्ती ४:१७) उसने धीरज और कोमलता का एक अत्युत्तम उदाहरण भी रखा। यहाँ तक कि जब उसके शिष्यों ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया, तब भी उसने सहानुभूति दिखाते हुए कहा: “आत्मा तो तैयार है, पर शरीर दुर्बल है।” (मरकुस १४:३७, ३८) फिर भी, यीशु उनके साथ साहसी और स्पष्टवादी था जिन्होंने सत्य को तुच्छ समझा और असहाय लोगों का दमन किया। (मत्ती २३:२७-३३) सबसे बढ़कर, उसने अपने पिता के प्रेम के उदाहरण की पूर्ण रूप से नक़ल की। यीशु मरने के लिए भी तैयार था ताकि अपरिपूर्ण मानवजाति के पास भविष्य की एक आशा होती। तो, कोई आश्चर्य की बात नहीं कि हम यीशु का उल्लेख परमेश्वर के ज्ञान की कुंजी के रूप में करें! जी हाँ, वह जीवित कुंजी है! लेकिन हम जीवित कुंजी क्यों कहते हैं? यह हमें उसके जीवन के तीसरे चरण में ले आता है।
यीशु आज
१८. आज हमें यीशु मसीह को किस रूप में देखना चाहिए?
१८ जबकि बाइबल यीशु की मृत्यु के बारे में बताती है, वह अभी जीवित है! असल में, सा.यु. प्रथम शताब्दी में जीवित सैकड़ों लोग इस तथ्य के चश्मदीद गवाह थे कि उसका पुनरुत्थान हुआ था। (१ कुरिन्थियों १५:३-८) जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, वह उसके बाद स्वर्ग में अपने पिता के दहिने हाथ जा बैठा और राजकीय अधिकार प्राप्त करने की प्रतीक्षा की। (भजन ११०:१; इब्रानियों १०:१२, १३) सो आज हमें यीशु को किस रूप में देखना चाहिए? क्या हमें सोचना चाहिए कि वह चरनी में रखा एक असहाय बालक है? या यह कि वह पीड़ा में है और उसे मारा जा रहा है? जी नहीं। वह शक्तिशाली, सत्तारूढ़ राजा है! और अभी बहुत जल्दी वह हमारी संकटग्रस्त पृथ्वी पर अपना शासकत्व दिखाएगा।
१९. निकट भविष्य में यीशु क्या कार्यवाही करेगा?
१९ प्रकाशितवाक्य १९:११-१५ में, राजा यीशु मसीह का सुस्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि वह बड़ी सामर्थ के साथ दुष्टों का नाश करने के लिए आ रहा है। यह प्रेममय स्वर्गीय शासक आज करोड़ों लोगों की पीड़ा का अन्त करने के लिए कितना उत्सुक होगा! और वह उनकी भी मदद करने के लिए उतना ही उत्सुक है जो पृथ्वी पर रहते समय उसके द्वारा रखे गए पूर्ण उदाहरण का अनुकरण करने का यत्न कर रहे हैं। (१ पतरस २:२१) वह उन्हें अकसर अरमगिदोन कहलानेवाली, और शीघ्रता से आ रही “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” से सुरक्षित बचाना चाहता है, ताकि वे परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य की पार्थिव प्रजा के रूप में सर्वदा जीवित रह सकें।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४; १६:१४, १६.
२०. अपने हज़ार वर्षीय शासन में यीशु मानवजाति के लिए क्या करेगा?
२० यीशु के पूर्वकथित शान्ति के हज़ार वर्षीय शासन में, वह सारी मानवजाति के लिए चमत्कार करेगा। (यशायाह ९:६, ७; ११:१-१०; प्रकाशितवाक्य २०:६) यीशु सभी बीमारियों को ठीक करेगा और मृत्यु का अन्त करेगा। वह अरबों लोगों का पुनरुत्थान करेगा ताकि उन्हें भी पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहने का अवसर मिले। (यूहन्ना ५:२८, २९) बाद के एक अध्याय में आप उसके मसीहाई राज्य के बारे में और अधिक सीखने के लिए प्रसन्न होंगे। इसके बारे में आश्वस्त रहिए: हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि राज्य शासन के अधीन हमारा जीवन कितना बढ़िया होगा। यीशु मसीह के साथ ज़्यादा अच्छी तरह से परिचित होना कितना महत्त्वपूर्ण है! जी हाँ, यह अनिवार्य है कि हम यीशु को कभी नज़रों से ओझल न होने दें, जो परमेश्वर के ज्ञान की जीवित कुंजी है जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है।
[फुटनोट]
a इस पंजीकरण ने रोमी साम्राज्य को ज़्यादा अच्छी तरह से कर वसूल करने में समर्थ किया। अतः, औगूस्तुस ने अनजाने में एक ऐसे शासक के बारे में भविष्यवाणी को पूरा होने में मदद दी जो ‘राज्य में अन्धेर करनेवाले को घुमाता।’ उसी भविष्यवाणी ने पूर्वबताया कि “वाचा का प्रधान,” या मसीहा इस शासक के उत्तराधिकारी के दिनों में “तोड़ा” (NW) जाता। औगूस्तुस के उत्तराधिकारी, तिबिरियुस के राज्य में यीशु की हत्या की गयी।—दानिय्येल ११:२०-२२.
b प्राचीन यहूदी सामान्य रूप से वर्षों के सप्ताहों के विचार को समझते थे। उदाहरण के लिए, जैसे हर सातवाँ दिन विश्रामदिन था, वैसे ही हर सातवाँ वर्ष विश्राम वर्ष था।—निर्गमन २०:८-११; २३:१०, ११.
अपने ज्ञान को जाँचिए
यीशु की वंशावली ने मसीहा होने के उसके दावे का कैसे समर्थन किया?
यीशु में पूरी हुई कुछ मसीहाई भविष्यवाणियाँ कौन-सी हैं?
परमेश्वर ने प्रत्यक्ष रूप से कैसे दिखाया कि यीशु उसका अभिषिक्त जन था?
यीशु परमेश्वर के ज्ञान की जीवित कुंजी क्यों है?
[पेज 37 पर चार्ट]
कुछ उल्लेखनीय मसीहाई भविष्यवाणियाँ
भविष्यवाणी घटना पूर्ति
उसका आरंभिक जीवन
यशायाह ७:१४ कुँवारी से जन्मा मत्ती १:१८-२३
यिर्मयाह ३१:१५ उसके जन्म के बाद बालकों की हत्या मत्ती २:१६-१८
उसकी सेवकाई
यशायाह ६१:१, २ परमेश्वर की ओर से उसकी कार्य-नियुक्ति लूका ४:१८-२१
यशायाह ९:१, २ सेवकाई से लोगों को मत्ती ४:१३-१६
बड़ी ज्योति दिखी
भजन ६९:९ यहोवा के घर के लिए जोशीला यूहन्ना २:१३-१७
यशायाह ५३:१ विश्वास नहीं किया गया यूहन्ना १२:३७, ३८
जकर्याह ९:९; गदही के बच्चे पर बैठकर मत्ती २१:१-९
भजन ११८:२६ यरूशलेम में प्रवेश; राजा के और
यहोवा के नाम से आनेवाले
के रूप में स्वागत
उसका पकड़वाया जाना और मृत्यु
भजन ४१:९; १०९:८ एक प्रेरित विश्वासघाती; यीशु प्रेरितों १:१५-२०
को पकड़वाता है और बाद में
प्रतिस्थापित किया जाता है
जकर्याह ११:१२ चाँदी के ३० सिक्कों के लिए मत्ती २६:१४, १५
पकड़वाया गया
भजन २७:१२ उसके विरुद्ध झूठे गवाह मत्ती २६:५९-६१
खड़े किए गए
भजन २२:१८ उसके वस्त्रों के लिए चिट्ठियाँ डाली गयीं यूहन्ना १९:२३, २४
यशायाह ५३:१२ पापियों के साथ गिना गया मत्ती २७:३८
भजन २२:७, ८ मरते समय निन्दा की गयी मरकुस १५:२९-३२
भजन ६९:२१ सिरका दिया गया मरकुस १५:२३, ३६
यशायाह ५३:५; बेधा गया यूहन्ना १९:३४, ३७
यशायाह ५३:९ अमीरों के साथ गाड़ा गया मत्ती २७:५७-६०
भजन १६:८-१० सड़ने से पहले जिलाया गया प्रेरितों २:२५-३२;
[पेज 35 पर तसवीर]
परमेश्वर ने यीशु को बीमारों को चंगा करने की शक्ति दी