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यीशु ७० चेलों को भेजता हैप्रहरीदुर्ग—1998 | मार्च 1
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यीशु ने अपने चेलों को आगे निर्देश दिया: “न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।” (लूका १०:४) यात्रियों के लिए यह रिवाज़ था कि अपने साथ न केवल झोली और भोजन लें वरन् जूते का एक और जोड़ा भी लें क्योंकि जूते का तला घिस सकता था और फीते टूट सकते थे। लेकिन यीशु के चेलों को ऐसी चीज़ों की चिंता नहीं करनी थी। बल्कि, उन्हें भरोसा रखना था कि साथी इस्राएलियों के ज़रिए जिनमें अतिथि-सत्कार करने का रिवाज़ था, यहोवा उनकी परवाह करता।
लेकिन यीशु ने अपने चेलों को क्यों कहा कि किसी को नमस्कार न करो? क्या उन्हें भावशून्य होना था, यहाँ तक कि रुखाई दिखानी थी? कतई नहीं! यूनानी शब्द आस्पाज़ोमाइ, जिसका अर्थ है नमस्कार कहना, इसमें मात्र शिष्टता से “हलो” या “कैसे हो” कहने से ज़्यादा हो सकता था। इसमें, जब दो परिचित मिलते थे तब रिवाज़ अनुसार चूमना, गले लगाना और आगे लंबी बातचीत भी हो सकती थी। एक टीकाकार ने कहा: “हम पश्चिमवालों की तरह थोड़ा-सा झुकना या हाथ मिलाना, ऐसे अभिवादन पूरब के लोगों में नहीं होते, बल्कि उनमें कई बार गले मिलना और झुकना यहाँ तक कि ज़मीन पर पूरी तरह लेटकर दंडवत करना भी शामिल था। इन सबके लिए काफी समय की ज़रूरत थी।” (२ राजा ४:२९ से तुलना कीजिए।) यीशु ने इसीलिए अपने अनुयायियों को अनावश्यक विकर्षणों को टालने के लिए कहा, हालाँकि वे रिवाज़ थे।
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यीशु ७० चेलों को भेजता हैप्रहरीदुर्ग—1998 | मार्च 1
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परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने और चेले बनाने की नियुक्ति को अब संसार भर में ५०,००,००० से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षियों द्वारा पूरा किया जा रहा है। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) वे जानते हैं कि उनका संदेश बहुत ज़रूरी है। इसलिए वे ऐसे विकर्षणों को टालकर जो उन्हें अपनी महत्त्वपूर्ण कार्य-नियुक्ति में पूरी तरह ध्यान देने से रोक सकता है, अपने समय का सदुपयोग करते हैं।
यहोवा के साक्षी सभों के साथ स्नेही होना चाहते हैं जिनसे भी वे मिलते हैं। फिर भी, वे यूँ ही व्यर्थ की गपशप में नहीं पड़ते, न ही वे सामाजिक मसलों या अन्याय को रोकने के लिए इस संसार के असफल प्रयासों के वाद-विवादों के चक्कर में पड़ते हैं। (यूहन्ना १७:१६) बजाय इसके, वे अपनी चर्चा, मनुष्यों की समस्याओं के एकमात्र दीर्घकालिक हल पर केंद्रित करते हैं अर्थात् परमेश्वर का राज्य।
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