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“जाओ और . . . लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ”मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
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12 यीशु ने अपने चेलों को यह भी हिदायत दी कि उन्हें गैर-ज़रूरी बातों में अपना ध्यान नहीं लगाना है। उसने कहा: “राह में किसी को नमस्कार करने के लिए उसे गले न लगाना।” (लूका 10:4) क्या यीशु के कहने मतलब था कि उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं रखना चाहिए या लोगों से कटे-कटे रहना चाहिए? नहीं, ऐसी बात नहीं है। बाइबल के ज़माने में किसी को नमस्कार करने का मतलब सिर्फ नमस्ते कहना भर नहीं होता था। उसमें वहाँ की रीत के मुताबिक बहुत से रिवाज़ शामिल थे और बहुत देर तक बातचीत करनी होती थी। बाइबल के एक विद्वान का कहना है: “पूरब के लोगों में पश्चिम के लोगों की तरह थोड़ा-सा झुकना या हाथ मिलाना जैसा अभिवादन नहीं होता था, उनमें कई बार गले मिलना और झुकना यहाँ तक कि ज़मीन पर पूरी तरह लेटकर दंडवत करना भी शामिल था। इन सबमें काफी समय लगता था।” इसलिए जब यीशु ने अपने चेलों से कहा कि रास्ते में किसी को नमस्कार मत करना तो वह एक तरह से कह रहा था: “तुम अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्त खुशखबरी सुनाने में लगाना क्योंकि यह संदेश जल्द-से-जल्द दिया जाना है।”b
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“जाओ और . . . लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ”मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
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b एक बार भविष्यवक्ता एलीशा ने भी अपने सेवक गेहजी को ऐसे ही निर्देशन दिए। जब उसने गेहजी को एक स्त्री के घर भेजा जिसका बेटा मर गया था तो उसने गेहजी से कहा: “यदि मार्ग में कोई मिले तो उसे नमस्कार न करना।” (2 राजा 4:29, NHT) उस स्त्री के घर जल्द-से-जल्द पहुँचना बहुत ज़रूरी था, इसमें ज़रा भी देर नहीं की जानी थी।
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