उन्होंने यहोवा की इच्छा पूरी की
एक सामरी अच्छा पड़ोसी साबित होता है
यीशु के दिनों में, यहूदियों और अन्यजाति के लोगों के बीच का बैर साफ नज़र आता था। कुछ समय बाद, यहूदियों के मिशनाह में इस्राएली स्त्रियों को गैर-यहूदी स्त्रियों की दाई बनने से मना करनेवाला नियम भी शामिल किया गया, क्योंकि इससे अन्यजातियों के एक और मनुष्य को संसार में आने में मदद दी जाती।—अबोदाह ज़ारा २:१.
अन्यजाति के लोगों से ज़्यादा, सामरिया के लोगों का धर्म और जाति के नाते से यहूदियों के साथ करीब का रिश्ता था। लेकिन उन्हें भी नीची जाति का समझा जाता था। प्रेरित यूहन्ना ने लिखा, “यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते।” (यूहन्ना ४:९) जी हाँ, तालमुद सिखाता था कि “सामरी से मिला रोटी का टुकड़ा, सूअर के मांस से ज़्यादा अशुद्ध है।” कुछ यहूदी तो “सामरी” शब्द का इस्तेमाल तिरस्कार करने और धिक्कार देने के लिए करते थे।—यूहन्ना ८:४८.
इन हालात को मद्देनज़र रखते हुए, यहूदी व्यवस्था के एक व्यवस्थापक को कहे यीशु के शब्दों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वह मनुष्य यीशु के पास आया और उससे पूछा: “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूं?” जवाब में यीशु ने उसे मूसा की व्यवस्था याद दिलायी, जिसमें आज्ञा दी है कि “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” इसके बाद उस व्यवस्थापक ने यीशु से पूछा: “मेरा पड़ोसी कौन है?” (लूका १०:२५-२९; लैव्यव्यवस्था १९:१८; व्यवस्थाविवरण ६:५) फरीसियों के अनुसार “पड़ोसी” शब्द केवल उन पर लागू होता है जो यहूदियों की परंपराओं का पालन करते हैं—बेशक अन्यजातियों या सामरियों पर नहीं। अगर यह जिज्ञासु व्यवस्थापक यह सोच रहा था कि यीशु इस नज़रिए की हिमायत करेगा, तो जल्द ही उसे ऐसा जवाब मिलनेवाला था जिसकी उसे आशा न थी।
एक करुणामयी सामरी
यीशु ने उस मनुष्य के सवाल का जवाब एक नीतिकथाa बताकर दिया। उसने कहा: “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था।” यरूशलेम और यरीहो के बीच लगभग २३ किलोमीटर की दूरी थी। इन दो शहरों को मिलानेवाला रास्ता बहुत घुमावदार था और उसकी दोनों तरफ बड़ी-बड़ी नुकीली चट्टानें थीं और इसलिए चोरों के लिए छुपना, हमला करना और फिर भाग जाना आसान था। तो बात यूँ हुई कि यीशु की नीतिकथा में यात्री को “डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मारपीटकर उसे अधमूआ छोड़कर चले गए।”—लूका १०:३०.
यीशु ने आगे कहा, “ऐसा हुआ, कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था: परन्तु उसे देख के कतराकर चला गया। इसी रीति से एक लेवी उस जगह पर आया, वह भी उसे देख के कतराकर चला गया।” (लूका १०:३१, ३२) याजक और लेवी व्यवस्था के सिखानेवाले थे और इसमें पड़ोसी के प्रेम का नियम भी आता है। (लैव्यव्यवस्था १०:८-११; व्यवस्थाविवरण ३३:१, १०) बेशक, सबसे ज़्यादा उनको उस घायल यात्री की मदद करने की बाध्यता महसूस करनी चाहिए थी।
यीशु कहता गया: “एक सामरी यात्री वहां आ निकला।” बेशक सामरी के ज़िक्र ने उस व्यवस्थापक की जिज्ञासा को बढ़ा दिया। क्या यीशु इस जाति के बारे में नकारात्मक नज़रिए की हिमायत करेगा? इसके विपरीत, उस सामरी ने उस बेचारे यात्री को देखकर “तरस खाया।” यीशु ने कहा: “[उसने] उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस ढालकर पट्टियां बान्धी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उस की सेवा टहल की।b दूसरे दिन उस ने दो दीनार निकालकर भटियारे को दिए, और कहा; इस की सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे भर दूंगा।”—लूका १०:३३-३५.
यीशु ने अब सवाल करनेवाले से पूछा: “अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” वह व्यवस्थापक जवाब जानता था, फिर भी वह “सामरी” नहीं कहना चाहता था। इसके बजाय, उसने बस इतना कहा: “वही जिस ने उस पर तरस खाया।” यीशु ने फिर कहा: “जा, तू भी ऐसा ही कर।”—लूका १०:३६, ३७.
हमारे लिए सबक
जिस पुरुष ने यीशु से सवाल किया उसने “अपने को धर्मी ठहराने की” कोशिश करते हुए ऐसा किया। (लूका १०:२९, NHT) शायद उसे लगा कि मूसा की व्यवस्था का कट्टरता से पालन करने के लिए यीशु उसकी सराहना करेगा। लेकिन खुद पर अभिमान करनेवाले इस शख्स को बाइबल के इस नीतिवचन की सच्चाई सीखने की ज़रूरत थी: “मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है।”—नीतिवचन २१:२.
यीशु की नीतिकथा दिखाती है कि सही अर्थ में खरा व्यक्ति वो है जो परमेश्वर के नियमों को मानता तो है ही साथ ही उसके जैसे गुण भी दिखाता है। (इफिसियों ५:१) मिसाल के तौर पर, बाइबल कहती है कि “परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता।” (प्रेरितों १०:३५) क्या इस बात में हम परमेश्वर की तरह व्यवहार करते हैं? दिल को छू लेनेवाली यीशु की नीतिकथा दिखाती है कि पड़ोसियों के लिए हमारी सद्भावना, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और धार्मिक बंधनों से मुक्त होनी चाहिए। असल में, मसीहियों को आदेश दिया गया है कि सिर्फ अपने वर्ग, जाति या राष्ट्र के लोगों के साथ ही नहीं और सिर्फ संगी विश्वासियों के साथ ही नहीं, बल्कि “सब के साथ भलाई करें।” (तिरछे टाइप हमारे।)—गलतियों ६:१०.
यहोवा के साक्षी शास्त्र की इस सलाह को मानने की कोशिश करते हैं। मिसाल के तौर पर, जब प्राकृतिक विपत्तियाँ आती हैं तब वे संगी विश्वासियों और गैर-साक्षियों को भी लोकोपकारी सहायता देते हैं।c इसके अलावा, बाइबल को ज़्यादा अच्छी तरह समझने में लोगों की मदद करने के लिए वे हर साल सब मिलकर एक अरब से ज़्यादा घंटे बिताते हैं। वे हर व्यक्ति तक राज्य का संदेश लेकर पहुँचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि परमेश्वर की इच्छा है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।”—१ तीमुथियुस २:४; प्रेरितों १०:३५.
[फुटनोट]
a नीतिकथा एक छोटी और आम तौर पर काल्पनिक कहानी होती है जिससे किसी नैतिक या आध्यात्मिक सच्चाई का सबक मिलता है।
b ज़ाहिर है कि यीशु के दिनों की कुछ सरायों में केवल रहने की जगह ही नहीं बल्कि खाना और दूसरी सेवाएँ भी मौजूद थीं। शायद इस प्रकार की रहने की जगहें यीशु के मन में थीं, क्योंकि लूका २:७ में “सराय” अनुवादित यूनानी शब्द यीशु द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द से अलग है।
c उदाहरणों के लिए दिसंबर १, १९९६, पृष्ठ ३-८ और जनवरी १५, १९९८, पृष्ठ ३-७ की प्रहरीदुर्ग देखिए।