क्या आपकी प्रार्थनाएँ “सुगन्ध धूप” की तरह हैं?
‘मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप ठहरे!’—भजन १४१:२.
१, २. धूप जलाने का मतलब क्या है?
यहोवा परमेश्वर ने अपने भविष्यवक्ता मूसा को आज्ञा दी थी कि इस्राएल के उपासना के तंबू में इस्तेमाल के लिए पवित्र धूप तैयार करे। परमेश्वर ने इस धूप को बनाने का तरीका भी बताया, कि इसे चार सुगन्धदायक चीज़ों को मिलाकर बनाया जाना चाहिए। (निर्गमन ३०:३४-३८) यह धूप सचमुच सुगन्धदायक था।
२ इस्राएल की जाति को व्यवस्था वाचा दी गयी थी, और इसमें उनसे हर दिन धूप जलाने की माँग की गयी थी। (निर्गमन ३०:७, ८) लेकिन क्या धूप जलाने का कोई खास मतलब था? बिलकुल था, क्योंकि भजनहार ने गीत में कहा: “मेरी प्रार्थना [यहोवा परमेश्वर] तेरे साम्हने सुगन्ध धूप, और मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे!” (भजन १४१:२) इसी तरह प्रकाशितवाक्य की किताब में प्रेरित यूहन्ना बताता है कि परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े होनेवालों के हाथों में धूप से भरे सोने के कटोरे थे। परमेश्वर का यह प्रेरित वचन आगे कहता है: “ये [धूप] तो पवित्र लोगों की प्रार्थनाएं हैं।” (प्रकाशितवाक्य ५:८) इसलिए, सुगन्धदायक धूप का मतलब ऐसी प्रार्थनाएँ हैं जो यहोवा के सेवक दिन रात उससे करते हैं और जिन्हें वह सुनता है।—१ थिस्सलुनीकियों ३:१०; इब्रानियों ५:७.
३. किस बात पर ध्यान देने से हमारी प्रार्थनाएँ ‘परमेश्वर के सामने सुगन्ध धूप ठहरेंगी’?
३ अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुने तो हमें यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करनी चाहिए। (यूहन्ना १६:२३, २४) लेकिन हम अपनी प्रार्थनाओं को और भी अच्छा कैसे बना सकते हैं? बाइबल में दिए गए कुछ उदाहरणों पर ध्यान देने से हम ऐसी प्रार्थनाएँ कर सकेंगे जो यहोवा के सामने सुगन्ध धूप ठहरेंगी।—नीतिवचन १५:८.
विश्वास के साथ प्रार्थना कीजिए
४. परमेश्वर जिन प्रार्थनाओं को सुनता है उनका विश्वास के साथ क्या संबंध है?
४ अगर हम चाहते हैं कि हमारी प्रार्थनाएँ सुगन्धदायक धूप की तरह परमेश्वर के पास पहुँचें तो हमें विश्वास के साथ प्रार्थना करनी चाहिए। (इब्रानियों ११:६) जब आध्यात्मिक रूप से बीमार व्यक्ति, बाइबल पर आधारित मसीही प्राचीनों की सलाह को मानता है तो प्राचीनों की ‘विश्वास की प्रार्थनाएँ उस व्यक्ति को बचा लेती हैं।’ (याकूब ५:१५) विश्वास के साथ की गई प्रार्थनाओं से हमारा स्वर्गीय पिता खुश होता है। और जब हम प्रार्थना की भावना के साथ परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं, तब इससे भी वह खुश होता है। जब भजनहार यह गीत गाता है, तो उसके दिल की सुंदर भावनाएँ नज़र आती हैं: “मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिन में मैं प्रीति रखता हूं, हाथ फैलाऊंगा, और तेरी विधियों पर ध्यान करूंगा। मुझे भली विवेक-शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।” (भजन ११९:४८, ६६) आइए हम भी नम्रता के साथ प्रार्थना में ‘हाथ फैलाएँ’ और परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते हुए विश्वास दिखाएँ।
५. अगर हममें बुद्धि की घटी है तो हमें क्या करना चाहिए?
५ शायद कभी किसी मुश्किल का सामना करने के लिए हममें बुद्धि की घटी हो। हो सकता है कि हम यह यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि बाइबल की एक फलाना-फलाना भविष्यवाणी अभी पूरी हो रही है। तो इसकी वज़ह से विश्वास में कमज़ोर पड़ जाने के बजाय, आइए हम परमेश्वर से बुद्धि के लिए प्रार्थना करें। (गलतियों ५:७, ८; याकूब १:५-८) बेशक हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि इस प्रार्थना का जवाब देने के लिए परमेश्वर कोई चमत्कार करेगा। यह दिखाने के लिए कि हमारी प्रार्थनाएँ दिल से की गई हैं हमें वह सब करना चाहिए जिसकी वह हम सभी से उम्मीद करता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने विश्वास को मज़बूत करने के लिए बाइबल का अध्ययन करने में लगे रहें, और मदद पाने के लिए हमें उन किताबों का इस्तेमाल करना चाहिए जो “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने हमें दी हैं। (मत्ती २४:४५-४७; यहोशू १:७, ८) परमेश्वर के लोगों की सभाओं में लगातार हिस्सा लेकर हमें अपने ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहिए।—इब्रानियों १०:२४, २५.
६. (क) हम सभी को आज के समय और बाइबल भविष्यवाणियों के पूरा होने के बारे में क्या एहसास होना चाहिए? (ख) यहोवा के नाम के पवित्र किए जाने के बारे में प्रार्थना करने के अलावा हमें और क्या करना चाहिए?
६ आज कुछ मसीही अपने ही फायदों पर और अपने पेशे पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं। इससे यह पता चलता है कि उन्हें इस बात का एहसास नहीं रहा कि हम “अन्त समय” के भी आखिरी भाग में जी रहे हैं। (दानिय्येल १२:४) विश्वासी भाई-बहन ऐसे लोगों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं कि उनके विश्वास में फिर से जान आ जाए। वे प्रार्थना कर सकते हैं कि बाइबल के इन सबूतों में उनका विश्वास फिर से मज़बूत हो जाए कि १९१४ में यहोवा, यीशु मसीह को स्वर्गीय राजा बना चुका है, तब से उस की उपस्थिति शुरू हो चुकी है, और तब से वह अपने दुश्मनों के बीच में राज्य कर रहा है। (भजन ११०:१, २; मत्ती २४:३) हम सभी को इस बात का भी एहसास होना चाहिए कि ऐसी घटनाएँ जिनके बारे में भविष्यवाणियाँ की गई थीं, वे सभी एकदम अचानक शुरू हो सकती हैं और एक के बाद एक बहुत ही कम समय में घट सकती हैं—जैसे झूठे धर्म या “महा बाबुल” का नाश, मागोग देश के गोग या शैतान द्वारा यहोवा के लोगों पर हमला, और अरमगिदोन की लड़ाई में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अपने लोगों का बचाव। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६; १८:१-५; यहेजकेल ३८:१८-२३) इसलिए आइए हम परमेश्वर से प्रार्थना करें कि आध्यात्मिक रूप से जागते रहने में वह हमारी मदद करे। आइए हम सभी यहोवा का नाम पवित्र किए जाने, उसके राज्य के आने, और उसकी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसी ही पृथ्वी पर होने के लिए और भी ज़्यादा गंभीर होकर प्रार्थना करें। और आइए हम मज़बूत विश्वास रखें और इस बात का सबूत देते रहें कि हमारी प्रार्थनाएँ सच्ची हैं। (मत्ती ६:९, १०) आइए हम सभी जो यहोवा से प्यार करते हैं, सबसे पहले उसके राज्य और धार्मिकता की खोज करते रहें और अंत आने से पहले सुसमाचार का प्रचार करने में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेते रहें।—मत्ती ६:३३; २४:१४.
यहोवा की स्तुति और धन्यवाद कीजिए
७. पहला इतिहास २९:१०-१३ में लिखी दाऊद की प्रार्थना में से आपको कौन-सी बात पसंद आयी?
७ अपनी ‘प्रार्थनाओं को सुगन्ध धूप’ की तरह बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम दिल से परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद करें। राजा दाऊद ने ऐसा ही किया जब उसने और इस्राएल के लोगों ने यहोवा का मंदिर बनाने के लिए मिलकर दान दिया था। प्रार्थना में उसने कहा: “हे यहोवा! हे हमारे मूल पुरुष इस्राएल के परमेश्वर! अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू धन्य है। हे यहोवा! महिमा, पराक्रम, शोभा, सामर्थ्य और विभव, तेरा ही है; क्योंकि आकाश और पृथ्वी में जो कुछ है, वह तेरा ही है; हे यहोवा! राज्य तेरा है, और तू सभों के ऊपर मुख्य और महान ठहरा है। धन और महिमा तेरी ओर से मिलती हैं, और तू सभों के ऊपर प्रभुता करता है। सामर्थ्य और पराक्रम तेरे ही हाथ में हैं, और सब लोगों को बढ़ाना और बल देना तेरे हाथ में है। इसलिये अब हे हमारे परमेश्वर! हम तेरा धन्यवाद और तेरे महिमायुक्त नाम की स्तुति करते हैं।”—१ इतिहास २९:१०-१३.
८. (क) भजन १४८ से १५० में दिए गए स्तुति के शब्दों में से कौन-से शब्द आपके दिल को छू लेते हैं? (ख) अगर हमारा दिल भी भजन २७:४ की तरह कहता है तो हम क्या करेंगे?
८ यह स्तुति और धन्यवाद की कितनी सुंदर प्रार्थना है! ज़रूरी नहीं कि हमारी प्रार्थनाओं में इतने ही बड़े-बड़े शब्द हों। मगर हाँ, यह ज़रूर है कि हमारी प्रार्थनाएँ इसी तरह दिल की गहराई से होनी चाहिए। भजन की किताब धन्यवाद और स्तुति की प्रार्थनाओं से भरी हुई है। भजन १४८ से १५० में स्तुति के बहुत अच्छे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। कई भजनों में परमेश्वर का धन्यवाद किया गया है। दाऊद ने गीत में कहा, “एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है। उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।” (भजन २७:४) ऐसी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम करने के लिए आइए हम यहोवा के लोगों की मंडली की सभी बातों में जोश के साथ हिस्सा लें। (भजन २६:१२) ऐसा करने से और परमेश्वर के वचन पर दिन-रात मनन करने से हम कई बातों के लिए दिल से यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करना चाहेंगे।
नम्र होकर यहोवा से मदद माँगना
९. राजा आसा ने किस तरह प्रार्थना की, और इसका क्या नतीजा हुआ?
९ हम सब यहोवा के साक्षी हैं। इसलिए अगर हम पूरे मन से यहोवा की सेवा करते हैं तो हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी फरियादों को ज़रूर सुनेगा। (यशायाह ४३:१०-१२) यहूदा के राजा आसा पर ध्यान दीजिए। उसने ४१ साल तक राज किया था (सा.यु.पू. ९७७-९३७) और उसके राजपाट के पहले १० साल बड़ी शांति से गुज़रे थे। तब जेरह नाम एक कूशी ने दस लाख लोगों की सेना लेकर यहूदा पर धावा बोल दिया। आसा की फौज इस सेना के सामने मुट्ठी भर थी, फिर भी वह अपने सैनिकों को लेकर युद्ध करने निकला। लेकिन युद्ध शुरू होने से पहले आसा ने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की। उसने यहोवा की बचाने की ताकत पर भरोसा दिखाया। और मदद के लिए पुकारते हुए इस राजा ने कहा: “हमारा भरोसा तुझी पर है और तेरे नाम का भरोसा करके हम इस भीड़ के विरुद्ध आए हैं। हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है; मनुष्य तुझ पर प्रबल न होने पाएगा।” नतीजा यह हुआ कि यहोवा ने अपने गौरवशाली नाम की खातिर यहूदा के लोगों को बचा लिया और वे पूरी तरह से जीत हासिल कर सके। (२ इतिहास १४:१-१५) इस तरह चाहे परमेश्वर हमें मुश्किलों से बचाए या उन्हें सहने की ताकत दे, एक बात में कोई शक नहीं कि हम जब भी मदद के लिए पुकारते हैं तब वह हमारी ज़रूर सुनता है।
१०. अगर हम नहीं जानते कि किसी मुसीबत के वक्त क्या करें, तब यहोशापात की प्रार्थना से हमें कैसे मदद मिल सकती है?
१० अगर हम नहीं जानते कि किसी मुसीबत के वक्त क्या करें, तब हम भरोसा रख सकते हैं कि मदद के लिए बिनती करने पर यहोवा हमारी ज़रूर सुनेगा। इसका सबूत यहूदा के राजा यहोशापात के दिनों से मिलता है। उसका राज्य सा.यु.पू. ९३६ में शुरू हुआ और उसने २५ साल तक राज्य किया। जब अम्मोनी और मोआबी और सेईर के पहाड़ी देश के लोग मिलकर यहूदा पर हमला करने आए, तब यहोशापात ने यह बिनती की: “हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके साम्हने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिये? परन्तु हमारी आंखें तेरी ओर लगी हैं।” यहोवा ने इस नम्र बिनती का जवाब दिया। वह यहूदा के लिए खुद लड़ा, और उसने दुश्मनों के बीच गड़बड़ी पैदा कर दी जिसकी वज़ह से उन्होंने एक दूसरे को मार डाला। जो हुआ उसे देखकर यहूदा के आस-पास की जातियाँ डर गईं और उसके बाद यहूदा में शांति बनी रही। (२ इतिहास २०:१-३०) इस तरह, जब हमें समझ नहीं आता कि किसी मुसीबत के वक्त क्या करें, तब हम यहोशापात की तरह प्रार्थना कर सकते हैं: ‘हमें कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिये? परन्तु हे यहोवा हमारी आंखें तेरी ओर लगी हुई हैं।’ ऐसे वक्त हो सकता है कि पवित्र आत्मा की मदद से हमें बाइबल की ऐसी आयतें याद आ जाएँ जिनसे समस्या सुलझायी जा सकती है, या परमेश्वर इस तरह हमारी मदद करे जिसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।—रोमियों ८:२६, २७.
११. नहेमायाह ने यरूशलेम की शहरपनाह के लिए जो कुछ किया उससे हम प्रार्थना के बारे में क्या सबक सीख सकते हैं?
११ परमेश्वर से मदद पाने के लिए हमें प्रार्थना में लगे रहने की ज़रूरत हो सकती है। नहेमायाह ने यरूशलेम की टूटी हुई शहरपनाह के लिए और यहूदा के लोगों की बुरी दशा के लिए विलाप किया। उसने आँसू बहाए, उपवास किया, और कई दिनों तक प्रार्थना में लगा रहा। (नहेमायाह १:१-११) आखिरकार उसकी प्रार्थनाएँ सुगन्धदायक धूप की तरह परमेश्वर के पास पहुँचीं। और एक दिन फारसी राजा अर्तक्षत्र ने नहेमायाह को उदास देखकर पूछा: “तू क्या मांगता है?” नहेमायाह हमें बताता है, ‘तभी मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना की।’ मन में की गई यह छोटी-सी प्रार्थना सुन ली गई, और नहेमायाह को अपनी दिल की इच्छा पूरी करने की आज्ञा मिल गई कि वह यरूशलेम जाकर टूटी हुई शहरपनाह को फिर से बनाए।—नहेमायाह २:१-८.
आइए यीशु से प्रार्थना करना सीखें
१२. अपने शब्दों में यीशु द्वारा सिखाई गई प्रार्थना की खास बातें बताइए।
१२ जितनी भी प्रार्थनाएँ बाइबल में लिखी गयी हैं उन सब में, यीशु मसीह द्वारा सिखाई गई प्रार्थना सबसे ज़्यादा ज्ञान देती है। यह सचमुच सुगन्धित धूप की तरह है। लूका की सुसमाचार की किताब में लिखा है: “[यीशु के] चेलों में से एक ने उस से कहा; हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखलाया वैसे ही हमें भी तू सिखा दे। उस ने उन से कहा; जब तुम प्रार्थना करो, तो कहो; हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए। हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। और हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न ला।” (लूका ११:१-४; मत्ती ६:९-१३) आइए हम इस प्रार्थना पर ध्यान दें। यह रटने के लिए नहीं बल्कि एक नमूने के तौर पर सिखायी गयी थी।
१३. “हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए,” इन शब्दों का मतलब आप कैसे समझाएँगे?
१३ “हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए।” यहोवा को पिता कहकर पुकारना उसके समर्पित सेवकों के लिए एक बड़ा सम्मान है। बच्चे अपने दयालु पिता के पास अपनी हर चिंता को ले जाने से झिझकते नहीं। वैसे ही हमें भी बेझिझक होकर परमेश्वर से आदर और श्रद्धा के साथ लगातार प्रार्थना करने के लिए वक्त निकालना चाहिए। (भजन १०३:१३, १४) हमारी प्रार्थनाओं से यह पता लगना चाहिए कि हमें यहोवा का नाम पवित्र किए जाने की चिंता है, क्योंकि हम उस दिन का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जब यहोवा के नाम पर लगाए गए सारे इलज़ाम मिट जाएँगे। हाँ, हम चाहते हैं कि यहोवा का नाम सबसे ऊँचा हो, और उसे पवित्र या पावन माना जाए।—भजन ५:११; ६३:३, ४; १४८:१२, १३; यहेजकेल ३८:२३.
१४. “तेरा राज्य आए,” यह प्रार्थना करने का क्या मतलब है?
१४ “तेरा राज्य आए।” यह राज्य यहोवा की सत्ता है, जिसे वह स्वर्ग की मसीह की सरकार द्वारा चलाता है। इस सरकार में उसका बेटा यीशु और उसके संगी “पवित्र लोग” अधिकारी हैं। (दानिय्येल ७:१३, १४, १८, २७; प्रकाशितवाक्य २०:६) जल्द ही यह राज्य परमेश्वर की सत्ता के सारे विरोधियों को इस धरती से मिटा देने के लिए ‘आएगा।’ (दानिय्येल २:४४) तब यहोवा की इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे ही पृथ्वी पर भी होगी। (मत्ती ६:१०) उस वक्त इस जहान के महाराजा और मालिक के सभी वफादार सेवक क्या ही खुश होगें!
१५. यहोवा से “हमारी दिन भर की रोटी” माँगना क्या दिखाता है?
१५ “हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर।” यहोवा से “दिन भर” की रोटी माँगना यह दिखाता है कि हम अपने भंडार भरे रहने के लिए नहीं माँगते, बल्कि रोज़ का गुज़ारा करने के लिए ही माँगते हैं। हमें परमेश्वर पर पूरा भरोसा है कि वह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा, फिर भी हम अपनी रोज़ी-रोटी के लिए और बाकी ज़रूरी चीज़ें पाने के लिए पूरी मेहनत करते हैं और कोई भी जायज़ काम करने के लिए तैयार रहते हैं। (२ थिस्सलुनीकियों ३:७-१०) और हमें अपने परवरदिगार परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि उसके प्रेम, बुद्धि, और शक्ति से ही हमें ये सब चीज़ें मिली हैं।—प्रेरितों १४:१५-१७.
१६. परमेश्वर से माफी माँगने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
१६ “हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं।” हम असिद्ध और पापी हैं इसलिए हम यहोवा के सिद्ध नियमों की कसौटी पर कभी-भी खरे नहीं उतर सकते। इसलिए हमें यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर परमेश्वर से माफी माँगने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ परमेश्वर उस बलिदान के आधार पर हमारे पापों को माफ करे, तो हमें पश्चाताप करना चाहिए और जो भी ताड़ना हमें मिलती है उसे मानने के लिए तैयार रहना चाहिए। (भजन ६५:२; रोमियों ५:८; ६:२३; इब्रानियों १२:४-११) इसके अलावा हम परमेश्वर से माफी की उम्मीद सिर्फ तब कर सकते हैं जब ‘हम ने अपने अपराधियों को,’ यानी अपने खिलाफ पाप करनेवालों को ‘क्षमा किया हो।’—मत्ती ६:१२, १४, १५.
१७. “हमें परीक्षा में न ला,” इन शब्दों का क्या मतलब है?
१७ “हमें परीक्षा में न ला।” बाइबल में कई जगह कहा गया है कि यहोवा ने फलाना-फलाना काम किया, जबकि असल में इसका मतलब यह है कि उसने इसे सिर्फ होने की इज़ाज़त दी है। (रूत १:२०, २१) परमेश्वर हमसे पाप करवाने के लिए हमें परीक्षा में नहीं डालता। (याकूब १:१३) पाप करने की परीक्षाएँ शैतान, हमारे पापी शरीर, और इस संसार की वज़ह से आती हैं। शैतान ही वह चालबाज़ है जो हमें परीक्षा में फँसाता है ताकि हम परमेश्वर के खिलाफ पाप करें। (मत्ती ४:३; १ थिस्सलुनीकियों ३:५) जब हम यह बिनती करते हैं कि “हमें परीक्षा में न ला,” इसका मतलब होता है कि हम परमेश्वर से मदद माँग रहे हैं कि जब हम पाप करने की किसी परीक्षा में पड़ें तो वह हमें गिरने ना दे। वह हमें राह दिखा सकता है ताकि हम परीक्षा में हार न जाएँ और “उस दुष्ट” शैतान के वश में न आ जाएँ।—मत्ती ६:१३, NHT, फुटनोट; १ कुरिन्थियों १०:१३.
जैसी प्रार्थना वैसा काम
१८. अगर हम एक सुखी वैवाहिक जीवन और खुशहाल परिवार चाहते हैं तो हम अपनी प्रार्थना के मुताबिक कैसे काम कर सकते हैं?
१८ नमूने के रूप में यीशु द्वारा सिखाई गई इस प्रार्थना में कुछ खास-खास बातें बताई गई थीं लेकिन हम किसी भी चीज़ के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम प्रार्थना कर सकते हैं कि हमारे वैवाहिक जीवन में खुशियाँ रहें। हम प्रार्थना कर सकते हैं कि हम आत्म-संयम रखें ताकि शादी से पहले किसी भी किस्म के लैंगिक दुराचरण से अशुद्ध न हों। लेकिन उसके बाद बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम भी करें, यानी गंदी या अश्लील किताबें न पढ़ें या अश्लील मनोरंजन के कार्यक्रम न देखें। हमारा यह भी पक्का इरादा होना चाहिए कि हम सिर्फ ‘प्रभु में विवाह करेंगे।’ (१ कुरिन्थियों ७:३९; व्यवस्थाविवरण ७:३, ४) और शादी के बाद सुखी रहने के लिए हम परमेश्वर की सलाहों को लागू करेंगे। इस तरह हम अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम भी कर रहे होंगे। और अगर हमारे बच्चे होते हैं, तो सिर्फ यह दुआ माँगना ही काफी नहीं होगा कि बड़े होकर वे परमेश्वर के वफादार सेवक बनें, लेकिन हमें पूरी-पूरी कोशिश भी करनी चाहिए कि हम उनके मन में परमेश्वर की सच्चाई बिठाएँ। इसके लिए हमें उनके साथ बाइबल अध्ययन करना होगा, और उनके साथ लगातार सभाओं में जाना होगा।—व्यवस्थाविवरण ६:५-९; ३१:१२; नीतिवचन २२:६.
१९. अगर हम अपने प्रचार के काम पर आशीष के लिए प्रार्थना करते हैं तो हमें क्या करना चाहिए?
१९ क्या हमने प्रार्थना की है कि हमारे प्रचार के काम पर परमेश्वर की आशीष हो? तो आइए इस प्रार्थना के मुताबिक काम करते हुए हम पूरे मन से राज्य का प्रचार करें। अगर हमने प्रार्थना की है कि हमें लोगों को अनंत जीवन के मार्ग पर लाने का मौका मिले, तो हमें दिलचस्पी लेनेवालों का नाम और पता अच्छी तरह लिखकर रखना चाहिए और उनके साथ बाइबल अध्ययन करने के लिए किसी भी तरह वक्त निकालना चाहिए। अगर हम पायनियर बनकर पूरे समय की सेवकाई करना चाहते हैं, तब क्या? तब आइए हम अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम करने के लिए प्रचार के काम में और भी ज़्यादा समय बिताएँ, और पायनियरों के साथ प्रचार करें। इस तरह हम दिखाएँगे कि जैसी हमारी प्रार्थना है, वैसा ही हमारा काम भी है।
२०. अगले लेख में हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
२० अगर हम वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं तो हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि जब हम उसकी इच्छा के अनुसार माँगते हैं, तब वह ज़रूर देता है। (१ यूहन्ना ५:१४, १५) बाइबल में लिखी कुछ प्रार्थनाओं पर ध्यान देने से हमने सचमुच बहुत-सी लाभदायक बातें सीखी हैं। हमारा अगला लेख चर्चा करेगा कि जो लोग अपनी ‘प्रार्थनाओं को सुगन्ध धूप’ बनाना चाहते हैं उनके लिए बाइबल में और कौन-सी हिदायतें दी गई हैं।
आपका जवाब क्या होगा?
◻ हमें विश्वास के साथ प्रार्थना क्यों करनी चाहिए?
◻ हमारी प्रार्थनाओं में स्तुति और धन्यवाद कितना ज़रूरी है?
◻ हम पूरे यकीन के साथ प्रार्थना में यहोवा की मदद क्यों माँग सकते हैं?
◻ यीशु द्वारा सिखाई गई प्रार्थना की कुछ खास बातें क्या हैं?
◻ हम जैसी प्रार्थना वैसा काम कैसे कर सकते हैं?
[पेज 12 पर तसवीर]
राजा यहोशापात की तरह, शायद कभी-कभी हमें भी यह प्रार्थना करनी पड़े: ‘हमें कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिये? परन्तु हे यहोवा हमारी आंखें तेरी ओर लगी हुई हैं’
[पेज 13 पर तसवीर]
जैसे यीशु ने सिखाया था, क्या आप भी वैसी ही प्रार्थना करते हैं?