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हमें परमेश्वर से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए?प्रहरीदुर्ग—1996 | जुलाई 15
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जब एक शिष्य ने प्रार्थना के सम्बन्ध में निर्देशन माँगा, तब यीशु ने उसे देने से इनकार नहीं किया। लूका ११:२-४ के अनुसार, उसने उत्तर दिया: “जब तुम प्रार्थना करो, तो कहो; हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए। हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। और हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न ला।” इसे सामान्यतः प्रभु की प्रार्थना के नाम से जाना जाता है। यह बहुत जानकारी देती है।
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हमें परमेश्वर से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए?प्रहरीदुर्ग—1996 | जुलाई 15
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दिलचस्पी की बात है, यीशु ने यह भी दिखाया कि हमारी प्रार्थनाओं में ऐसे व्यक्तिगत विषय भी हो सकते हैं जिनके बारे में हम चिन्ता करते हैं। उसने कहा: “हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। और हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न ला।” (लूका ११:३, ४) यीशु के शब्द सूचित करते हैं कि हम दैनिक गतिविधियों में परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का प्रयास कर सकते हैं, कि हम किसी भी बात के बारे में यहोवा के सम्मुख जा सकते हैं जिसके कारण हम शायद परेशान हैं या जो हमारे मन की शान्ति को भंग करती है। इस प्रकार नियमित रूप से परमेश्वर से निवेदन करना हमें उस पर अपनी निर्भरता को समझने में मदद देता है। अतः हम अपने जीवन में उसके प्रभाव से अधिक अवगत हो जाते हैं। इसी तरह हमारे अपराधों को क्षमा करने के लिए हर दिन परमेश्वर से बिनती करना लाभदायक है। ऐसा करने से हम अपनी कमज़ोरियों से अधिक अवगत हो जाते हैं—और दूसरों की कमियों के प्रति अधिक सहनशील। यीशु का यह प्रबोधन भी उपयुक्त है कि हम हमें परीक्षा से बचाने के बारे में प्रार्थना करें, ख़ासकर इस संसार की गिरती नैतिकता को देखते हुए। इस प्रार्थना के सामंजस्य में, हम ध्यान रखते हैं कि ऐसी परिस्थितियों और स्थितियों से दूर रहें जो हमें ग़लत काम की ओर ले जा सकती हैं।
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