बैतलहम और क्रिस्मस् की सच्चाई क्या है?
“बैतलहम . . . अन्तहीन प्रेम का सबूत है, यह विनम्रता में एक सबक़ है।”—मरिया तेरेज़ा पेट्रोट्ज़ी, बैतलहम नामक किताब की लेखिका।
क्या बैतलहम आप के लिए भी ऐसा कुछ मतलब रखता है? शायद रखता हो, क्योंकि दुनिया भर करोड़ों निष्कपट, शान्ति-प्रिय लोग बैतलहम की ओर श्रद्धालु भाव से देखते हैं, ख़ास तौर से क्रिस्मस् के उत्सव के दौरान। वे जानते हैं कि यह छोटा मध्य पूर्वी शहर, “शान्ति के राजकुमार,” यीशु मसीह का जन्मस्थान है। सदियों से तीर्थयात्री ईसाईजगत के एक सब से पवित्र स्थान को देखने के लिए और शायद उसकी पूजा करने के लिए जमा होते आए हैं। यह ग्रॉट्टो ऑफ द नॅटिविटी (जन्म की गुफ़ा) है, जो परंपरा के अनुसार यीशु मसीह का जन्मस्थान है। यह एक बड़ी, ऐतिहासिक कॉम्प्लेक्स में है जिसे चर्च ऑफ द नॅटिविटी कहा जाता है।—यशायाह ९:६; मत्ती २:१.
यीशु के जन्म की परिस्थितियों की सच्चाई क्या है? मिसाल के तौर पर, उसका जन्म कब हुआ? क्या उसका जन्म सचमुच उसी जगह में हुआ जिसे अब ग्रॉट्टो ऑफ द नॅटिविटी कहा जाता है? क्या आपको या किसी और को उसके जन्मस्थान की पूजा करनी चाहिए?
“जब हम बैतलहम के रहस्य के बारे में सोचते हैं, हम अपने मन में सवालों और शकों को आने से रोक नहीं सकते।”—मरिया तेरेज़ा पेट्रोट्ज़ी द्वारा लिखित, बैतलहम.
‘सवाल और शक क्यों?’ आप शायद पूछेंगे। आख़िर क्रिस्मस् से सम्बद्ध विविध विश्वास और इन विश्वासों से जुड़ी हुई जगहों का आधार तथ्य ही तो है। या नहीं?
उसका जन्म कब हुआ?
यीशु की जन्मतिथि के सम्बन्ध में, मरिया तेरेज़ा पेट्रोट्ज़ी पूछती हैं: “उद्धारक का जन्म वास्तव में कब हुआ? हम न सिर्फ़ वर्ष, लेकिन महीना, दिन और समय भी जानना चाहते हैं। गणित जैसी यथार्थता हमें नहीं दी गयी है।” न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया में इस बात का समर्थन किया गया है: “यीशु मसीह की जन्मतिथि का अंदाज़ा केवल तक़रीबन ही लगाया जा सकता है।” इस में उस तिथि के बारे में कहा गया है, जो मसीह की जन्मतिथि मानी जाती है: “दिसम्बर २५ की तारीख़ मसीह के जन्म से नहीं, बल्कि नाटालिस् सॉलिस इंविक्टी के प्रीतिभोज की तारीख़ से मेल खाती है, जो कि मकर-सक्रान्ति के समय रोमियों का सूर्य उत्सव हुआ करता था।”
इसलिए आप शायद पूछेंगे, ‘अगर यीशु का जन्म दिसम्बर २५ को नहीं हुआ, तो उसका जन्म कब हुआ?’ मत्ती अध्याय २६ और २७ से हमें पता चलता है कि यीशु यहूदियों के फसह के समय मर गया था, जो सामान्य युग के वर्ष ३३ में, अप्रैल १ को शुरू हुआ। इसके अलावा, लूका ३:२१-२३ में हमें सूचित किया जाता है कि जब यीशु ने अपनी सेवकाई शुरू की, वह तक़रीबन ३० वर्ष का था। चूकिं उसकी पार्थिव सेवकाई साढ़े तीन वर्ष तक जारी रही, उसकी मृत्यु के समय वे साढ़े तैंतीस वर्ष का रहा होगा। छः महीने बाद यीशु ने ३४ वर्ष पूरे किए होंगे, जो कि इस प्रकार अक्तूबर १ के आस-पास हुआ होगा। जब हम पीछे की ओर गिनते हैं, तब हमें न दिसम्बर २५ और न ही जनवरी ६ की तारीख़ मिलती है, लेकिन सामान्य युग पूर्व के वर्ष २ के तक़रीबन अक्तूबर १ की तारीख़ मिलती है।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि दिसम्बर महीने के दौरान, बैतलहम और उसके पास-पड़ोस में शीत और ठण्डा मौसम रहता है, हड्डियों को ठण्डा कर देनेवाली बारिश होती है, और कभी-कभी बर्फ़ भी गिरती है। उस समय गड़रिये रात को अपने झुण्डों के साथ बाहर नहीं रहते। ऐसा मौसम हाल की बात नहीं है। धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि यहूदा का राजा यहोयाकीम “शीतकाल के भवन में बैठा हुआ था, क्योंकि नौवाँ महीना था [किस्लेव, जो नवम्बर-दिसम्बर से मेल खाता है] और उसके सामने अंगीठी जल रही थी।” (यिर्मयाह ३६:२२) अपने आप को तापने के लिए उसे गरमी की ज़रूरत थी। इसके अलावा, एज्रा १०:९, १३ में हम स्पष्ट सबूत पाते हैं कि किस्लेव का महीना “झड़ी का समय है, और हम बाहर खड़े नहीं रह सकते।” इन सारी बातों से सूचित होता है कि दिसम्बर महीने में बैतलहम का मौसम ऐसा नहीं जो यीशु मसीह के जन्म से सम्बद्ध घटनाओं के बारे में बाइबल के वर्णन से मेल खाएँ।—लूका २:८-११.
किस जगह में?
उस जगह के बारे में सही दृष्टिकोण क्या है, जो क्राइमीया के युद्ध (१८५३-५६) की प्रेरणा का एक अंश था, और जिस ‘रक्तपातपूर्ण संघर्ष’ के कारण एक लाख से ज़्यादा फ्रांसीसी सैनिकों की जानें गवाँ दी गयीं। क्या वह जगह सचमुच ही यीशु का जन्मस्थान है?
सबसे पहली बात तो यह है कि स्वयं बाइबल में यीशु के जन्म का यथार्थ स्थान नहीं बताया गया है। मत्ती और लूका पुष्टि करते हैं कि यीशु के जन्म से मीका ५:२ की मसीहाई भविष्यद्वाणी पूरी हुई, जिस में पूर्वबतलाया गया था कि “एक पुरुष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा,” बैतलहम से आनेवाला था, “और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन अनादि काल से होता आया है।” (मत्ती २:१, ५; लूका २:४) दोनों सुसमाचार वृत्तान्तों में सिर्फ़ सबसे आवश्यक बातें बता दी गयीं, अर्थात्, कि यीशु का जन्म बैतलहम में हुआ और, लूका के अनुसार, बच्चे को कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा गया था।—लूका २:७.
सुसमाचार वृत्तान्त के लेखों ने और अधिक तफ़सील क्यों नहीं दी? मरिया तेरेज़ा पेट्रोट्ज़ी ग़ौर करती है: “सुसमाचार प्रचारक इस तफ़सील की उपेक्षा इसलिए करते हैं कि वे इन्हें निरर्थक समझते हैं।” दरअसल, यह ज़ाहिर है कि स्वयं यीशु ने अपने जन्म की इस तफ़सील को किसी ख़ास रूप से अर्थपूर्ण नहीं समझा, इसलिए कि एक बार भी उसे अपनी जन्मतिथि या अपने जन्म के यथार्थ स्थान का उल्लेख करते हुए उद्धृत नहीं किया गया है। हालाँकि उसका जन्म बैतलहम में हुआ, यीशु ने उस जगह को अपना घर नहीं माना, लेकिन गलील के इलाके का ज़िक्र “अपने देश” के तौर से किया जाता था।—मरकुस ६:१, ३, ४; मत्ती २:४, ५; १३:५४.
यूहन्ना ७:४०-४२ को पढ़ने से पता चलता है कि आम तौर से लोग उसके जन्मस्थान के बारे में अनभिज्ञ थे, और यह सोचते थे कि उसका जन्म गलील में हुआ था: “किसी ने कहा, ‘क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा?’” यूहन्ना ७:४१ में जो लेखबद्ध किया गया है, उसके आधार पर, द चर्च ऑफ द नॅटिविटी, बैतलहम इस निष्कर्ष पर पहुँचती है: “यह बात कि ऐसे विचार-विमर्श उत्पन्न हुए, स्वयं में उस तथ्य को झूठ साबित नहीं करते कि मसीह का जन्म बैतलहम में हुआ; लेकिन कम से कम इस से यह दर्शाया जाता है कि उसके कई साथी इसके बारे में अनभिज्ञ थे।”
यह ज़ाहिर है कि खुद यीशु के पार्थिव जीवन-काल में, उसने अपने जन्म के बारे में तफ़सील का विज्ञापन नहीं किया। उसके जन्मस्थान की किसी भी जगह पर कोई महत्त्व नहीं दिया गया। तो फिर, इस विश्वास के लिए क्या आधार है कि नॅटिविटी ग्रॉट्टो वही जगह है जहाँ यूसुफ मरियम को ले आया ताकि वह जन्म दे सके?
पेट्रोट्ज़ी स्पष्टवादिता से क़बूल करती है: “यह निश्चित रूप से जानना सम्भव नहीं कि यह ग्रॉट्टो बैतलहम के पड़ोस में के अनगिनत प्राकृतिक गुफ़ाओं में से एक था, या एक कन्दरा थी जिसे एक सराय में अस्तबल के तौर से इस्तेमाल किया जाता था। परन्तु, वह परंपरा जिसका उद्गम दूसरी सदी के पहले हिस्से से है, सुस्पष्ट है; यह एक ग्रॉट्टो-अस्तबल है।”—तिरछे टाइप हमारे हैं।
सिर्फ़ परंपरा
मरिया तेरेज़ा पेट्रोट्ज़ी और आर. डब्ल्यू. हॅमिल्टन्, और साथ ही यरूशलेम के इतिहास के विविध अन्य विद्यार्थी, सूचित करते हैं कि सा.यु. की दूसरी सदी का जस्टिन मार्टर, पहला व्यक्ति था जिसने दावा किया कि यीशु का जन्म एक ग्रॉट्टो में हुआ था, यह स्पष्ट किए बिना कि वह कौनसा ग्रॉट्टो था। जस्टिन मार्टर के कथन के सम्बन्ध में हॅमिल्टन् इस निष्कर्ष पर पहुँचता है: “यह एक प्रासंगिक उल्लेख है, और यह मान लेना कि सन्त जस्टिन के मन में एक विशेष गुफ़ा थी, और उस से भी ज़्यादा कि वह मौजूदा केव ऑफ द नॅटिविटी का ज़िक्र कर रहा था, एक अकेले शब्द के प्रमाण पर बहुत अधिक ज़ोर देना होगा।
एक फुटनोट में हॅमिल्टन् लिखता है: “नॅटिविटी (जन्म) के वृत्तान्त में भी, जो अप्रमाणित ग्रंथ सम्बन्धी ‘याकूब की किताब’ या ‘प्रोटीवॅन्जेलियम’ में घटित होता है, एक गुफ़ा को पेश किया जाता है लेकिन इसका वर्णन इस तरह किया गया है कि यह बैतलहम जाने के रास्ते के बीचोबीच है। जहाँ तक इस कहानी के ऐतिहासिक मूल्य का सवाल है, इस से सूचित होता है कि उस समय तक परंपरा किसी एक जगह से जुड़ी नहीं थी, और केव ऑफ द नॅटिविटी से तो बिल्कुल ही नहीं।”
तीसरी सदी के धर्म लेखक ऑरिजेन और यूसेबियस इस परंपरा को, जैसे यह उस समय में जाना जाता था, एक विशेष जगह से जोड़ते हैं। हॅमिल्टन् तर्क करता है: “एक बार यह कहानी किसी एक गुफ़ा से जुड़ गयी, यह किसी और गुफ़ा से न जुड़ती; और यह मान लेना ठीक होगा कि २०० ईस्वी के जल्द ही बाद जो गुफ़ा यात्रियों को दिखायी जाती थी, वही आज की केव ऑफ द नॅटिविटी (जन्म की गुफ़ा) है।”
अपनी किताब वॉक्स अबाउट द सिटि ॲन्ड एन्वायरन्ज़ ऑफ जरूसलेम (१८४२) में, डब्ल्यू. एच. बार्टलेट्ट ने इस ग्रॉट्टो के बारे में यह अनुमान लगाया: “हालाँकि यह परंपरा कि यह हमारे मुक्तिदाता का जन्मस्थान है, काफ़ी पुरानी है, और इसका उल्लेख सन्त जेरोम ने भी किया है, जो पास वाली कोठरी में जीवन बिताकर मर गया, फिर भी, यह जगह सम्भावना के विरुद्ध है, क्योंकि यद्यपि ऐसा कभी-कभी होगा कि पलश्तीन में गुफ़ाओं को अस्तबलों के तौर से इस्तेमाल किया जाता है, यह भूमि के अन्दर उस गहराई से और भी अधिक गहराई पर है, जो ऐसे उद्देश्य के लिए सुविधाजनक न होगा। इसके अलावा, जब हम मठवासियों की उल्लेखनीय धर्मशास्त्रीय घटनाओं के दृश्य को विशेष गुफ़ाओं में नियत करने की प्रवृत्ति पर ग़ौर करते हैं, शायद ऐसी जगहों की प्रभावशालिता के कारण, इस जगह के ख़िलाफ़ परिकल्पना तक़रीबन निर्णायक ही प्रकट होती है।”
हम प्रस्तुत ऐतिहासिक सबूत से और इस से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण, धर्मशास्त्रीय तथ्य से, कि न यीशु ने और न उसके शिष्यों ने उसके जन्मस्थान को कोई महत्त्व दिया, क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? यह ज़ाहिर है कि जब रानी हेलेना ने, जो कौंस्टॅन्टाइन द ग्रेट की माता थी, सा.यु. के वर्ष ३२६ में चर्च ऑफ द नॅटिविटी की जगह निश्चित की, उसने ऐसा हॅमिल्टन् के ज़िक्र के अनुसार, ‘पुरानी परंपराओं के साहचर्य’ के आधार पर किया। यह ऐतिहासिक या बाइबलीय सबूत के आधार पर नहीं था।
यह इस अतिरिक्त निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि मसीह के जन्म की वास्तविक जगह अनजान है। तो फिर, क्या यह तर्कसंगत है कि विश्वासी गण को ग्रॉट्टो ऑफ द नॅटिविटी जैसी जगहों की तीर्थयात्रा करके उनकी पूजा करनी चाहिए? वास्तव में, अगर यह मसीहियों के लिए आवश्यक होता, तो क्या यीशु ने खुद अपने शिष्यों को इस दायित्व के बारे में या फिर उसकी ओर से उस तरह की इच्छा भी के बारे में सूचित न किया होता? क्या यह परमेश्वर के वचन, बाइबल में लेखबद्ध न होता, ताकि सारा जगत इसे पढ़ सकता? चूँकि पवित्र शास्त्र में ऐसा सबूत सुप्रकट रूप से अविद्यमान है, हम इस बात को पता करके भली-भाँति करेंगे कि यीशु ने किस घटना को स्मरण करने योग्य समझा।
हम चाहे जितनी भी खोज करें, वह एकमात्र अवसर जो यीशु के शिष्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी स्मरण करना था, उसकी बलिदान-रूपी मृत्यु थी। अपने शिष्यों के साथ अपना आख़री फसह भोज मनाने के थोड़े ही समय बाद, वह बसन्त ऋतु में मर गया। उस अवसर पर, उसने अपने विश्वासनीय शिष्यों को माट्ज़ोत जैसी अख़मीरी रोटी और लाल दाखरस का प्रयोग करके एक प्रतीकात्मक भोजन आयोजित करने का आदेश दिया। इस सरल समारोह के सम्बन्ध में, जो सर्वप्रथम सा.यु. के वर्ष ३३ में, अप्रैल १ को हुआ, उसने आदेश दिया: “मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।”—लूका २२:१९, २०.
स्वयं यीशु की ओर से आए इस धर्मशास्त्रीय आदेश के आज्ञापालन में, दुनिया भर यहोवा के गवाह हर साल मसीह के बलिदान-रूपी मृत्यु का स्मरण समारोह मनाते हैं। वे इस मसीही सभा को किसी विशेष जगह, जैसे यरूशलेम के एक ऊपरी कक्ष में आयोजित नहीं करते, इसलिए कि यीशु ने इसका विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया था। लेकिन पूरी दुनिया में, वे अपने किंग्डम हॉलों और अपने इलाके में अन्य समुचित जगहों में मिलते हैं। अगला समारोह, सूर्यास्त के बाद, अप्रैल १७, १९९२ को होगा। आपके घर के निकटतम किंग्डम हॉल ऑफ जेहोवाज़ विट्नेसिज़ में उपस्थित होने के लिए आपको निमंत्रित किया जाता है।
यीशु की आज्ञानुसार इस महत्त्पूर्ण समारोह में उपस्थित होने के लिए आपको यरूशलेम या बैतलहम जाना नहीं पड़ेगा। न यीशु ने और ना ही उसके शिष्यों ने मसीही उपासना के केंद्रों के तौर से जगहों को महत्त्व दिया। उलटा, यीशु ने एक सामरी औरत से, जिसने अपनी उपासना को यरूशलेम की उत्तरी दिशा में, सामरिया के एक पहाड़, गिरिज्जिम, पर केंद्रित किया, कहा: “हे नारी, मेरी बात की प्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में। परन्तु वह समय आता है, बरन अब भी है जिस में सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही भजन करनेवालों को ढूँढ़ता है।”—यूहन्ना ४:२१, २३.
जो लोग पिता की उपासना आत्मा और सच्चाई से करते हैं, उन्हें अपनी उपासना में, बैतलहम के जैसे, विशेष जगहों पर, या मूर्तियों जैसी वस्तुओं पर, निर्भर रहना नहीं पड़ता। प्रेरित पौलुस ने कहा: “सो हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं। क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।”—२ कुरिन्थियों ५:६, ७.
बहरहाल, आप अब भी सोच रहे होंगे, कि कोई जन परमेश्वर की उपासना उस रीति से किस प्रकार कर सकता है, जो उन्हें स्वीकार्य हो? अगली बार, जब यहोवा का कोई गवाह आपके घर आ जाए, तो कृपया आप उस से पूछ लीजिएगा।
[पेज 22 पर तसवीरें]
सर्दी के मौसम में, बैतलहम के पास बर्फ़ इतना गिर सकता है कि यह पूरी ज़मीन को ढक जाए। क्या गड़रिये अपनी भेड़ों के साथ खुले में सोते?
[पेज 23 पर तसवीरें]
बैतलहम में चर्च ऑफ द नॅटिविटी और उसका भूमिगत ग्रॉट्टो
[पेज 22 पर चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.
[चित्र का श्रेय]
[पेज 23 पर चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.
[चित्र का श्रेय]
Garo Nalbandian