बाइबल का दृष्टिकोण
कौन स्वर्ग जाते हैं?
एक आतंकवादी बम एक उड़ते विमान की धज्जियाँ उड़ा देता है, जिससे उसमें यात्रा कर रहे सभी लोग मारे जाते हैं। मृत जनों के रिश्तेदारों और मित्रों को बताया जाता है कि उनके प्रिय जन अब स्वर्ग में हैं, मानो यह उनकी असामयिक और हिंसक मृत्यु का मुआवज़ा देना हो।
एक लोकप्रिय संगीतकार मर जाता है और कहा जाता है कि वह ‘स्वर्गदूतों के साथ स्वर्ग में तुरही बजा रहा है।’
बीमारी, अकाल, या दुर्घटनाएँ बच्चों को पूरे जीवन से वंचित करते हैं, और पादरी कहते हैं कि वे अब स्वर्गीय ख़ुशी का आनन्द, संभवतः स्वर्गदूतों की तरह ले रहे हैं!
अपने पास स्वर्गीय शांति में ऐसे सभी बच्चों और बूढ़ों को ले जाने के द्वारा क्या परमेश्वर उन पर किए गए अन्याय को ठीक कर रहा है? क्या स्वर्ग में प्रवेश देना, मनुष्यजाति में जो अच्छे और प्रशंसनीय हैं उन्हें बनाए रखने के लिए परमेश्वर का तरीक़ा है? बाइबल का दृष्टिकोण क्या है?
जो स्वर्ग में नहीं हैं
बाइबल का कथन स्पष्ट है: “क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे?” (१ कुरिन्थियों ६:९) लेकिन, बाइबल अनेक धर्मी और अन्याय के शिकार लोगों के बारे में भी बात करती है जो स्वर्ग के वारिस न होंगे।
यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में जो जल्द-ही प्राणाहुती देनेवाला था, यीशु ने स्वयं कहा: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उन में से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उस से बड़ा है।” (मत्ती ११:११) बालक यीशु को मारने की अपनी कोशिश में, बैतलहम और उसके ज़िलों के सब लड़के जो दो साल और उस से कम उम्र के थे, दुष्ट राजा हेरोदेस द्वारा क्रूरतापूर्वक वध किए गए। (मत्ती २:१६) फिर भी, यीशु ने कहा: “कोई [पुरुष, स्त्री, या बच्चा] स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र [यीशु]।” (यूहन्ना ३:१३) यीशु ने इन अन्याय के शिकार लोगों के स्वर्ग में होने की बात क्यों नहीं की?
यीशु ने मार्ग खोला
यीशु ने अपने आपको “मार्ग और सच्चाई और जीवन” कहा और प्रेरित पौलुस ने उसका उल्लेख, ‘जो [मृत्यु में, NW] सो गए हैं, उन में पहिले फल’ के तौर पर किया। (यूहन्ना १४:६; १ कुरिन्थियों १५:२०) परिणामस्वरूप, कोई उससे पहले स्वर्ग नहीं पहुँच पाता। परन्तु अपने पुनरुत्थान के क़रीब ४० दिन बाद जब यीशु स्वर्ग चढ़ा, तो क्या उसके पीछे मरे हुए योग्य विश्वासी लोग भी स्वर्ग गए? क़रीब दस दिन बाद, प्रेरित पतरस ने राजा दाऊद के बारे में कहा कि “वह तो मर गया और गाड़ा भी गया और उस की कब्र आज तक हमारे यहां वर्तमान है। . . . क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा।”—प्रेरितों २:२९, ३४.
अतः, स्वर्ग में प्रवेश सहे गए अन्यायों के मुआवज़े या व्यक्तिगत वफ़ादारी के लिए प्रतिफल मिलने से भी अधिक शामिल करता है। इसके बजाय, यह स्वर्ग-स्थित एक शासकों के निकाय के गठन का प्रबंध करता है। यह निकाय मसीह के निर्देशन के अधीन, पवित्र आत्मा से अभिषिक्त, मनुष्यों की प्रतिनिधिक संख्या से बना होगा।—रोमियों ८:१५-१७; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.
एक स्वर्गीय राज्य
यीशु ने इस शासन या सरकार को “स्वर्ग का राज्य” या ‘परमेश्वर का राज्य’ कहा। (मत्ती ५:३, २०; लूका ७:२८) यह इरादा नहीं किया गया था कि बड़ी संख्या में मनुष्य इस प्रशासनिक निकाय में शामिल किए जाएँ। अतः, यीशु ने इसे ‘छोटा झुण्ड’ कहा। (लूका १२:३२) बाइबल के इस भाग में उपयोग की गई मूल भाषा में, शब्द “छोटा” (मै-क्रोस्), शब्द बड़ा (मे-गास्) के विपरीत है। लूका १२:३२ में इसका प्रयोग परिमाण का, या संख्या में थोड़ा होने का संकेत करता है। अतः यह ‘स्वर्ग के राज्य’ में असीमित संख्या के लोगों के लिए सदस्यता की अनुमति नहीं देता है। उदाहरण के लिए: यदि आपसे एक ग्लास में थोड़ा पानी डालने के लिए कहा जाए, आप निश्चित ही उसमें अत्यधिक मात्रा में पानी नहीं डालेंगे। वैसे ही, वह ‘छोटा झुण्ड’ लोगों की अत्यधिक संख्या से नहीं बनाया जा सकता। परमेश्वर के राज्य में मसीह के साथ संगी शासकों की एक निर्धारित (‘छोटी’) संख्या है।
इन शासकों की सही संख्या, १,४४,०००, प्रेरित यूहन्ना को प्रकट की गई। (प्रकाशितवाक्य १४:१, ४) इससे पहले प्रकाशितवाक्य में इन्हीं लोगों को “हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से . . . परमेश्वर के लिये राज्य और याजक” कहा गया है और वे स्वर्ग से पृथ्वी पर राज्य करते हैं। (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०) यीशु मसीह के साथ यह प्रशासनिक निकाय वह राज्य है जिसके लिए उसने अपने अनुयायियों को प्रार्थना करना सिखाया। यह इस पृथ्वी पर कुशासन को अंत करने का भी माध्यम है। इस प्रकार यह मनुष्य के घर, पृथ्वी पर न्याय और शांति पुनःस्थापित करेगा और साथ ही उसके निवासियों को अनन्त ओजस्विता भी पुनःप्रदान करेगा।—भजन ३७:२९; मत्ती ६:९, १०.
शासकों का चुना हुआ निकाय
चूँकि जिन मानव सरकारों को वह राज्य हटाएगा वे भ्रष्टाचार से भरी हुई हैं, इसलिए क्या हम नहीं समझ सकते कि जो उस स्वर्गीय सरकार में शामिल होंगे वे परमेश्वर द्वारा ध्यानपूर्वक चुने हुए और परखे हुए होंगे? मनुष्यजाति की वर्तमान स्थिति की तुलना उन सैकड़ों यात्रियों से की जा सकती है जो एक क्षतिग्रस्त विमान में बुरे मौसम में यात्रा कर रहे हैं। ऐसी नाज़ुक स्थिति में, क्या आप चाहेंगे कि विमान-दल युवा और अनुभवहीन व्यक्तियों से बना हुआ हो? शायद ही! स्थिति सख़्त योग्यताओंवाले और ध्यानपूर्वक चुने हुए एक विमान-दल की माँग करेगी।
स्वर्ग में मसीह यीशु के साथ जो सेवा करेंगे उनके बारे में हम यह जानकर चिन्तामुक्त हैं कि “परमेश्वर ने अंगों को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक करके देह में रखा है।” (१ कुरिन्थियों १२:१८) व्यक्तिगत इच्छा या राज्य में एक स्थान के लिए महत्त्वाकांक्षा निर्णायक तत्व नहीं है। (मत्ती २०:२०-२३) विश्वास और आचरण के स्पष्ट स्तर परमेश्वर द्वारा स्थापित किए गए हैं ताकि अयोग्य व्यक्ति प्रवेश न कर सकें। (यूहन्ना ६:४४; इफिसियों ५:५) यीशु के पहाड़ी उपदेश के प्रारम्भिक शब्द दिखाते हैं कि मसीह के संगी शासकों को आध्यात्मिक मनोवृत्ति रखनेवाले, नम्र, धार्मिकता के प्रेमी, दयावन्त, शुद्ध मनवाले, और मेल करनेवाले होना चाहिए।—मत्ती ५:३-९; प्रकाशितवाक्य २:१० भी देखिए।
ख़ुशी की बात है कि हालाँकि अधिकांश मानवजाति को शासकों के इस प्रतिनिधिक स्वर्गीय निकाय में होने के लिए परमेश्वर द्वारा नहीं चुना गया है, उन्हें आशाहीन भी नहीं छोड़ा गया है। वे इस सुन्दर पृथ्वी पर बसेंगे और उसके ईश्वरीय शासन के फ़ायदों का आनन्द उठाएँगे। पिछले अन्यायों के शिकार जो बहुत पहले मर चुके हैं, जीवित किए जाएँगे ताकि वे भी जीवित बच निकलनेवालों के साथ पूर्ण रूप से परमेश्वर के राज्य को ‘आते’ हुए देखने के लिए जी सकें। यह प्रतिज्ञा पूरी की जाएगी: “धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे।”—मत्ती ६:९, १०; नीतिवचन २:२१; प्रेरितों २४:१५.