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दावत का न्यौतायीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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‘एक आदमी ने शाम के खाने की आलीशान दावत रखी और बहुतों को न्यौता दिया। उसने अपने दास से कहा कि जिन्हें बुलाया गया है उनसे जाकर कह, “आ जाओ, सबकुछ तैयार है।” मगर वे सभी बहाने बनाने लगे। पहले ने कहा, “मैंने एक खेत खरीदा है, उसे देखने के लिए मेरा जाना ज़रूरी है। मुझे माफ कर।” दूसरे ने कहा, “मैंने पाँच जोड़ी बैल खरीदे हैं और मैं उनकी जाँच-परख करने जा रहा हूँ। मुझे माफ कर।” एक और ने कहा, “मेरी अभी-अभी शादी हुई है, मैं नहीं आ सकता।”’—लूका 14:16-20.
ये सच में बहाने हैं। जिन आदमियों ने खेत और बेल खरीदा उन्होंने खरीदने से पहले उन्हें जाँचा होगा। उन्हें फिर से जाँचने की कोई जल्दी नहीं है। तीसरा आदमी शादी की तैयारियाँ नहीं कर रहा है। उसकी शादी हो चुकी है। तो इन तीनों को इतना खास न्यौता ठुकराना नहीं चाहिए था। इसलिए जिसने दावत रखी है, उसे उन पर बहुत गुस्सा आता है। वह अपने दास से कहता है:
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दावत का न्यौतायीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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यहोवा ने यीशु के ज़रिए लोगों को स्वर्ग के राज में आने का न्यौता दिया है। सबसे पहले यहूदियों को न्यौता मिला, खासकर धर्म गुरुओं को। लेकिन उनमें से ज़्यादातर ने यीशु के संदेश पर यकीन नहीं किया। बहुत जल्द यह न्यौता उन लोगों को मिलनेवाला है जिन्हें यहूदियों में नीचा समझा जाता है। और उन लोगों को भी न्यौता मिलेगा जिन्होंने यहूदी धर्म अपनाया है। आखिरी और तीसरा न्यौता गैर-यहूदियों को दिया जाएगा जिनके बारे में यहूदी सोचते हैं कि वे परमेश्वर की आशीष पाने के लायक नहीं हैं।—प्रेषितों 10:28-48.
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