-
‘यहोवा, दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर’प्रहरीदुर्ग—1998 | अक्टूबर 1
-
-
१२, १३. किन बातों से कुछ लोगों को आज अपने आपे में आने में मदद मिली है? (बक्स देखिए।)
१२ “जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, कि मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहां भूखा मर रहा हूं। मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊंगा और उस से कहूंगा कि पिता जी मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले। तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला।”—लूका १५:१७-२०.
-
-
‘यहोवा, दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर’प्रहरीदुर्ग—1998 | अक्टूबर 1
-
-
१४. गुमराह बेटे ने क्या करने की सोची और इस बात में उसने नम्रता कैसे दिखायी?
१४ लेकिन जो भटक चुके हैं वो अपने हालात को बदलने के लिए क्या कर सकते हैं? यीशु की कहानी में गुमराह बेटे ने वापस घर लौटने और अपने पिता से माफी माँगने का फैसला किया। उसने यह कहने की सोची, “मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले।” मज़दूर को एक दिन की मज़दूरी पर रखा जाता था, और अगले दिन काम से निकाला जा सकता था। उसे घर के दास से भी कम समझा जाता था क्योंकि दास भी एक मायने में परिवार के सदस्य जैसा होता था। गुमराह बेटा यह नहीं सोच रहा था कि उसे बेटे की हैसियत से कबूल किया जाए। वह सबसे निचला दर्जा पाने के लिए भी तैयार था, ताकि वह नए सिरे से हर दिन अपने पिता के लिए अपनी वफादारी साबित कर सके। लेकिन, कुछ ऐसा होने जा रहा था जिसकी उस गुमराह बेटे ने उम्मीद भी नहीं की थी।
-