‘अधर्म के धन से मित्र बना लो’
“अधर्म के धन से अपने लिये मित्र बना लो; . . . जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है।” —लूका १६:९, १०.
१. मिस्र देश से उनके बच निकलने पर मूसा और इस्राएल के पुत्रों ने यहोवा की स्तुति कैसे की?
चमत्कार से बचाए गए—क्या ही विश्वास-वर्धक अनुभव! मिस्र से इस्राएल के निर्गमन का श्रेय केवल सर्वशक्तिमान, यहोवा को ही दिया जा सकता था। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मूसा और इस्राएलियों ने गाया: “यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है; मेरा ईश्वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूंगा, . . . मेरे पूर्वजों का परमेश्वर वही है, मैं उसको सराहूंगा।”—निर्गमन १५:१, २; व्यवस्थाविवरण २९:२.
२. मिस्र से निकलते वक़्त यहोवा के लोग अपने साथ क्या ले गए?
२ इस्राएलियों की नयी-प्राप्त स्वतंत्रता मिस्र में उनकी स्थिति से कितनी भिन्न थी! अब वे बिना रुकावट के यहोवा की उपासना कर सकते थे। और वे मिस्र से खाली हाथ नहीं निकले। मूसा बताता है: “इस्राएलियों ने . . . मिस्रियों से सोने चांदी के गहने और वस्त्र मांग लिये। और यहोवा ने मिस्रियों को अपनी प्रजा के लोगों पर ऐसा दयालु किया, कि उन्हों ने जो जो मांगा वह सब उनको दिया। इस प्रकार इस्राएलियों ने मिस्रियों को लूट लिया।” (निर्गमन १२:३५, ३६) परन्तु मिस्र के इस धन का उन्होंने कैसे प्रयोग किया? क्या इसका परिणाम ‘यहोवा को सराहना’ था? हम उनके उदाहरण से क्या सीखते हैं?—१ कुरिन्थियों १०:११ से तुलना कीजिए।
“यहोवा की भेंट”
३. झूठी उपासना में इस्राएल के सोने के प्रयोग ने यहोवा से कैसी प्रतिक्रिया उत्पन्न की?
३ इस्राएल के लिए परमेश्वर के निर्देशन प्राप्त करने के लिए सीनै पर्वत पर मूसा के ४०-दिन-लंबे पड़ाव के दौरान, नीचे इंतज़ार कर रहे लोग बेचैन हो उठे। अपनी सोने की बालियाँ निकालकर, उन्होंने हारून से कहा कि वह उनके लिए उपासना करने के लिए एक मूर्ति बनाए। हारून ने उनके लिए एक वेदी भी बनायी, और अगले दिन भोर को उन्होंने वहाँ बलि चढ़ायी। क्या उनके सोने के इस प्रयोग ने उन्हें उनके छुड़ानेवाले का प्रिय बनाया? बिलकुल नहीं! “अब मुझे मत रोक,” यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं।” मूसा के निवेदन पर ही यहोवा ने राष्ट्र को क्षमा किया, हालाँकि विद्रोही अगुवे परमेश्वर की ओर से एक विपत्ति में मारे गए।—निर्गमन ३२:१-६, १०-१४, ३०-३५.
४. “यहोवा की भेंट” क्या थी, और इसे किसने चढ़ाया?
४ बाद में, इस्राएल को अपने धन का इस तरह इस्तेमाल करने का मौक़ा मिला जिसने यहोवा को प्रसन्न किया। उन्होंने “यहोवा के लिए भेंट” इकट्ठी की।a सोना, चान्दी, तांबा, नीला धागा, विभिन्न रंग के कपड़े, मेढ़ों की खालें, सूइसों की खालें, और बबूल की लकड़ी निवासस्थान के निर्माण और उसे सजाने के लिए दिए गए दान में से थे। वृत्तांत भेंट देनेवालों की मनोवृत्ति की ओर हमारा ध्यान खींचता है। “जितने अपनी इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके ये वस्तुएं ले आएं।” (निर्गमन ३५:५-९, तिरछे टाइप हमारे) इस्राएलियों ने अत्यधिकता से प्रतिक्रिया दिखाई। अतः, एक विद्वान के शब्दों को उद्धृत करें तो, निवासस्थान “सौन्दर्य और उत्कृष्ट वैभव” का एक भवन था।
मन्दिर के लिए भेंट
५, ६. मंदिर के सम्बन्ध में, दाऊद ने अपने धन का कैसे प्रयोग किया, और दूसरों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?
५ हालाँकि इस्राएल के राजा सुलैमान ने यहोवा की उपासना के लिए एक स्थायी भवन के निर्माण को निर्देशित किया, सुलैमान के पिता, दाऊद ने इसके निर्माण के लिए विस्तृत तैयारी की थी। दाऊद ने बड़ी मात्रा में सोना, चान्दी, तांबा, लोहा, लकड़ी, और बहुमूल्य पत्थर इकट्ठे किए। “फिर मेरा मन अपने परमेश्वर के भवन में लगा है,” दाऊद ने अपने लोगों से कहा, “इस कारण जो कुछ मैं ने पवित्र भवन के लिये इकट्ठा किया है, उस सब से अधिक मैं अपना निज धन भी जो सोना चान्दी के रूप में मेरे पास है, अपने परमेश्वर के भवन के लिये दे देता हूं। अर्थात् तीन हजार किक्कार . . . सोना, और सात हजार किक्कार तपाई हुई चान्दी, जिस से कोठरियों की भीतें मढ़ी जाएं।” दाऊद ने दूसरों को भी उदार होने का प्रोत्साहन दिया। लोगों की प्रतिक्रिया उदार थी: अधिक सोना, चान्दी, तांबा, लोहा, और बहुमूल्य पत्थर। लोगों ने “सम्पूर्ण हृदय से . . . स्वेच्छापूर्वक यहोवा के लिए दिया।”—१ इतिहास २२:५; २९:१-९, NHT.
६ इन स्वैच्छिक भेंटों से, इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना के लिए गहरा मूल्यांकन व्यक्त किया। दाऊद ने नम्रतापूर्वक प्रार्थना की: “मैं क्या हूं? और मेरी प्रजा क्या है? कि हम को इस रीति से अपनी इच्छा से तुझे भेंट देने की शक्ति मिले?” क्यों? “तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है। . . . मैं ने तो यह सब कुछ मन की सिधाई और अपनी इच्छा से दिया है।”—१ इतिहास २९:१४, १७.
७. आमोस के दिनों से हम चेतावनी का कौन-सा सबक़ सीखते हैं?
७ फिर भी, इस्राएल के गोत्र अपने मन और हृदय में यहोवा की उपासना को प्राथमिकता देने से चूक गए। सामान्य युग पूर्व नवीं शताब्दी तक, एक विभाजित इस्राएल आध्यात्मिक लापरवाही का दोषी हो चुका था। इस्राएल के उत्तरी दस-गोत्र के राज्य के बारे में यहोवा ने आमोस द्वारा घोषणा की: “हाय उन पर जो सिय्योन में सुख से रहते, और उन पर जो सामरिया के पर्वत पर निश्चिन्त रहते हैं।” उसने उनका वर्णन ऐसे पुरुषों के तौर पर किया जो “हाथी दांत के पलंगों पर लेटते, . . . अपने अपने बिछौने पर पांव फैलाए सोते . . . भेड़-बकरियों में से मेम्ने और गौशालाओं में से बछड़े खाते . . . कटोरों में से दाखमधु पीते” हैं। परन्तु उनकी धन-संपत्ति कोई बचाव नहीं थी। परमेश्वर ने चिताया: “वे अब बंधुआई में पहिले जाएंगे, और जो पांव फैलाए सोते थे, उनकी धूम जाती रहेगी।” सामान्य युग पूर्व ७४० में इस्राएल ने अश्शूर के हाथों कष्ट सहन किया। (आमोस ६:१, ४, ६, ७) और समय के बीतने पर यहूदा का दक्षिणी राज्य भी भौतिकवाद का शिकार बन गया।—यिर्मयाह ५:२६-२९.
मसीही समयों में संपत्ति का सही प्रयोग
८. संपत्ति के प्रयोग के बारे में यूसुफ और मरियम क्या अच्छा उदाहरण पेश करते हैं?
८ इसकी विषमता में, बाद के समयों में परमेश्वर के सेवकों की तुलनात्मक रूप से ग़रीब स्थिति ने उन्हें सच्ची उपासना के लिए उत्साह प्रदर्शित करने से नहीं रोका। मरियम और यूसुफ का उदाहरण लीजिए। कैसर औगूस्तुस के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने अपने परिवार के गृहनगर, बैतलहम को सफ़र किया। (लूका २:४, ५) वहाँ यीशु का जन्म हुआ। चालीस दिन बाद, यूसुफ और मरियम निर्धारित शुद्धिकरण बलि चढ़ाने के लिए नज़दीक ही यरूशलेम के मन्दिर गए। मरियम ने दो छोटे पक्षियों की बलि चढ़ायी जो उनकी ग़रीब भौतिक स्थिति को सूचित करती है। न उसने और न ही यूसुफ ने दावा किया कि उनकी ग़रीबी यहोवा को बलि न चढ़ाने का एक उचित कारण थी। इसके बजाय, उन्होंने आज्ञाकारिता से अपनी सीमित संपत्ति का प्रयोग किया।—लैव्यव्यवस्था १२:८; लूका २:२२-२४.
९-११. (क) पैसों का हम कैसे प्रयोग करते हैं इसके सम्बन्ध में मत्ती २२:२१ में यीशु के शब्द क्या मार्गदर्शन प्रदान करते हैं? (ख) उस विधवा की छोटी भेंट क्यों व्यर्थ में अर्पित नहीं की गई थी?
९ बाद में, फरीसियों और हेरोदियों ने यीशु को धोखे से फँसाने की कोशिश की, यह कहते हुए: “इसलिये हमें बता तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं।” यीशु के जवाब ने उसकी समझदारी को प्रकट किया। जो सिक्का उन्होंने उसे दिया था उसे दिखाते हुए, यीशु ने पूछा: “यह मूर्ति और नाम किस का है?” उन्होंने जवाब दिया: “कैसर का।” बुद्धिमानी से उसने निष्कर्ष निकाला: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” (मत्ती २२:१७-२१) यीशु जानता था कि जो अधिकारी सिक्कों को निकालता है वह अपेक्षा करता था कि कर अदा किए जाएँ। परन्तु वहाँ उसने अपने अनुयायियों और शत्रुओं को समान रीति से यह समझने में मदद दी कि एक सच्चा मसीही “जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को” देने का प्रयास भी करता है। इसमें व्यक्ति की भौतिक परि-संपत्ति का सही प्रयोग शामिल है।
१० मन्दिर में यीशु ने एक ऐसी घटना देखी जो इस बात को सचित्रित करती है। उसने अभी-अभी लोभी शास्त्रियों को धिक्कारा था, जो ‘बिधवाओं के घर खा जाते थे।’ लूका वर्णन करता है: “उस ने आंख उठाकर धनवानों को अपना अपना दान भण्डार में डालते देखा। और [यीशु] ने एक कंनाल बिधवा को भी उस में दो दमड़ियां डालते देखा। तब उस ने कहा; मैं तुम से सच कहता हूं कि इस कंगाल बिधवा ने सब से बढ़कर डाला है। क्योंकि उन सब ने अपनी अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।” (लूका २०:४६, ४७; २१:१-४) कुछ लोगों ने कहा कि मन्दिर बहुमूल्य पत्थरों से सजा हुआ था। यीशु ने जवाब दिया: “वे दिन आएंगे, जिन में यह सब जो तुम देखते हो, उन में से यहां किसी पत्थर पर पत्थर भी न छुटेगा, जो ढाया न जाएगा।” (लूका २१:५, ६) क्या उस विधवा की छोटी भेंट व्यर्थ थी? बिलकुल नहीं। उसने उस प्रबन्ध का समर्थन किया जो उस वक़्त यहोवा द्वारा स्थापित था।
११ यीशु ने अपने असली अनुयायियों को बताया: “कोई दास दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता: क्योंकि वह तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा; या एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा: तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।” (लूका १६:१३) अतः, हम हमारी आर्थिक संपत्ति के प्रयोग में सही संतुलन कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं?
विश्वासयोग्य भण्डारी
१२-१४. (क) मसीही किस संपत्ति के भण्डारी हैं? (ख) किन उल्लेखनीय तरीक़ों से यहोवा के लोग आज अपने भण्डारी कार्य को विश्वास के साथ निभाते हैं? (ग) आज परमेश्वर के कार्य की सहायता करने के लिए पैसा कहाँ से आता है?
१२ जब हम अपना जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं, हम वास्तव में कहते हैं कि जो कुछ हमारा है, अर्थात् हमारी सारी संपत्ति, उसी का है। तो फिर, जो हमारा है उसका हमें कैसे प्रयोग करना चाहिए? कलीसिया में मसीही सेवा के बारे में चर्चा करते हुए, वॉच टावर संस्था के पहले अध्यक्ष, भाई सी. टी. रस्सल ने लिखा: “हर एक व्यक्ति अपने-आपको प्रभु द्वारा नियुक्त अपने समय, प्रभाव, पैसे आदि का भण्डारी माने, और हर एक को स्वामी की महिमा के लिए अपने तोड़ों का अपनी योग्यता के अनुसार सर्वोत्तम प्रयोग करने की कोशिश करनी चाहिए।”—नयी सृष्ट (अंग्रेज़ी), पृष्ठ ३४५.
१३ “भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि वह विश्वास योग्य निकले,” १ कुरिन्थियों ४:२ कहता है। एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के तौर पर यहोवा के गवाह जितना हो सके उस विवरण के सामंजस्य में कार्य करने की कोशिश करते हैं। ऐसा वे अपना समय मसीही सेवकाई में प्रयोग करने के द्वारा तथा ध्यानपूर्वक अपनी शिक्षण क्षमताओं को विकसित करने के द्वारा करते हैं। इसके अलावा, उपासना के लिए उत्कृष्ट सभागृह तैयार करने के लिए ‘क्षेत्रीय निर्माण कमेटियों’ के निर्देशन के अधीन स्वयंसेवकों के दल अपना समय, शक्ति, और जानकारी स्वेच्छा से देते हैं। इन सब से यहोवा बहुत प्रसन्न होता है।
१४ इस विशाल शिक्षण अभियान और निर्माण कार्य की सहायता करने के लिए पैसा कहाँ से आता है? स्वेच्छापूर्वक देनेवालों से, जैसे निवासस्थान के निर्माण के दिनों में आया था। व्यक्तिगत तौर पर, क्या हम भाग ले रहे हैं? जिस तरह हम अपनी आर्थिक संपत्ति का प्रयोग करते हैं क्या वह प्रदर्शित करता है कि यहोवा की सेवा हमारे लिए सर्वोच्च महत्त्व की है? पैसों के मामलों में, आइए हम विश्वासयोग्य भण्डारी हों।
उदारता का एक नमूना
१५, १६. (क) पौलुस के दिनों के मसीहियों ने उदारता कैसे प्रदर्शित की? (ख) हमारी इस चर्चा को हमें किस दृष्टिकोण से देखना चाहिए?
१५ प्रेरित पौलुस ने मकिदुनिया और अखया के मसीहियों की उदार भावना के बारे में लिखा। (रोमियों १५:२६) स्वयं पीड़ित होने के बावजूद, अपने भाइयों की मदद के लिए उन्होंने तत्परता से भेंट दी। पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों को भी समान रीति से उदारता से दान करने को प्रोत्साहित किया कि वे अपनी बढ़ती में से दूसरों की घटी की क्षतिपूर्ति करें। कोई भी उचित रूप से पौलुस पर ज़बरदस्ती वसूली करने का दोष नहीं लगा सकता था। उसने लिखा: “जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा। हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।”—२ कुरिन्थियों ८:१-३, १४; ९:५-७, १३.
१६ विश्वव्यापी राज्य कार्य के लिए आज हमारे भाई और दिलचस्पी रखनेवाले लोग जो उदार भेंट देते हैं, वह प्रमाण देता है कि इस विशेषाधिकार को वे कितना अधिक महत्त्व देते हैं। लेकिन, जैसे पौलुस ने कुरिन्थियों को स्मरण कराया, यह अच्छा होगा कि हम इस चर्चा को एक अनुस्मारक समझें।
१७. देने के कौन-से व्यवस्थित प्रबंध को पौलुस ने प्रोत्साहित किया, और क्या यह आज लागू किया जा सकता है?
१७ पौलुस ने भाइयों को अपनी देन में एक व्यवस्थित प्रबन्ध का पालन करने के लिए उकसाया। उसने कहा: “सप्ताह के पहिले दिन तुम में से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करे।” (१ कुरिन्थियों १६:१, २) भेंट देने में यह हमारे और हमारे बच्चों के लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य कर सकता है। चाहे हम यह भेंट कलीसिया के ज़रिये दें या सीधे वॉच टावर संस्था के निकटतम शाखा दफ़्तर को भेजें। एक पूर्व अफ्रीकी शहर में प्रचार करने को नियुक्त एक मिशनरी दंपति ने दिलचस्पी रखनेवालों को बाइबल अध्ययन में उनके साथ भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। इस पहली सभा के अन्त में, मिशनरियों ने समझदारी से कुछ सिक्के एक डिब्बे में डाले जिस पर “राज्य कार्य के लिए अंशदान” लिखा हुआ था। उपस्थित होनेवाले दूसरे लोगों ने भी वैसा ही किया। बाद में, जब ये नए लोग एक मसीही कलीसिया में संगठित हो चुके थे, तो सफ़री ओवरसियर ने भेंट की और उनके अंशदानों की नियमितता के बारे में टिप्पणी की।—भजन ५०:१०, १४, २३.
१८. संकट में पड़े हमारे भाइयों की मदद हम कैसे कर सकते हैं?
१८ प्राकृतिक विपदाओं के शिकार और युद्धग्रस्त क्षेत्रों में रहनेवालों की मदद के लिए हमारी संपत्ति का प्रयोग करने का भी विशेषाधिकार हमारे पास है। जब पूर्वी यूरोप में आर्थिक और राजनैतिक उथल-पुथल मची हुई थी तब संसार के उस भाग में भेजी गयी राहत सामग्री के बारे में पढ़ने से हम कितने रोमांचित हुए! सामग्री और पैसों के अंशदानों ने प्रतिकूल अवस्था में पड़े मसीहियों के प्रति हमारे भाइयों की उदारता और एकता को प्रदर्शित किया।b—२ कुरिन्थियों ८:१३, १४.
१९. जो पूर्ण-समय की सेवा में हैं उनकी मदद के लिए हम क्या व्यावहारिक कार्य कर सकते हैं?
१९ हम अपने भाइयों के कार्य का बहुत मूल्यांकन करते हैं जो पूर्ण-समय की सेवकाई में पायनियरों, सफ़री ओवरसियरों, मिशनरियों, और बेथेल स्वयंसेवकों के तौर पर कार्य करते हैं, है ना? अपनी परिस्थितियों के अनुसार, हम उन्हें सीधे तरीक़े से कुछ भौतिक मदद करने में समर्थ हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब सफ़री ओवरसियर आपकी कलीसिया को भेंट करता है, आप शायद उसके रहने का, भोजन का प्रबन्ध कर सकते हैं, या उसकी यात्रा के ख़र्च में मदद कर सकते हैं। ऐसी उदारता हमारे स्वर्गीय पिता की नज़र से छिपी नहीं रहती, जो चाहता है कि उसके सेवकों की देखरेख की जाए। (भजन ३७:२५) कुछ साल पहले एक भाई ने, जो केवल कुछ अल्पाहार ही प्रदान कर सकता था, एक सफ़री ओवरसियर और उसकी पत्नी को अपने घर आमंत्रित किया। जब वह पति-पत्नी संध्या क्षेत्र सेवा के लिए निकले, तो भाई ने अपने मेहमानों को एक लिफ़ाफ़ा दिया। अन्दर एक बैंक नोट था (एक अमरीकी डॉलर के बराबर) जिसके साथ यह हस्तलिखित नोट भी था: “एक प्याला चाय या एक गैलन पेट्रोल के लिए।” इस नम्र तरीक़े से क्या ही उत्तम मूल्यांकन व्यक्त किया गया!
२०. किस विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारी के प्रति हम लापरवाही नहीं दिखाना चाहते?
२० आध्यात्मिक तौर पर, यहोवा के लोगों को आशिष प्राप्त है! हम अपने सम्मेलनों और अधिवेशनों में आध्यात्मिक भोज का आनन्द लेते हैं, जहाँ हम नए प्रकाशन, बढ़िया शिक्षण, और व्यावहारिक सलाह प्राप्त करते हैं। अपनी आध्यात्मिक आशिषों के लिए मूल्यांकन से भरे हृदय सहित हम परमेश्वर के राज्य हितों को विश्वभर में बढ़ावा देने में उपयोग के लिए पैसों की भेंट देने के अपने विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारी को नहीं भूलते।
‘अधर्म के धन से मित्र बना लो’
२१, २२. “अधर्म के धन” का जल्द ही क्या होगा, और यह हम से अभी क्या करने की माँग करता है?
२१ वास्तव में, बहुत से तरीक़े हैं जिनसे हम दिखा सकते हैं कि यहोवा की उपासना हमारे जीवन में पहले आती है। और यह दिखाने का एक ख़ास तौर पर महत्त्वपूर्ण तरीक़ा है हमारा यीशु की सलाह को मानना: “अधर्म के धन से अपने लिये मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें।”—लूका १६:९.
२२ ध्यान दीजिए कि यीशु ने अधर्म के धन की असफलता के बारे में बात की। जी हाँ, वह दिन आएगा जब इस व्यवस्था के पैसे मूल्यहीन हो जाएँगे। “वे अपनी चान्दी सड़कों में फेंक देंगे, और उनका सोना अशुद्ध वस्तु ठहरेगा,” यहेजकेल ने भविष्यवाणी की, “यहोवा की जलन के दिन उनका सोना चान्दी उनको बचा न सकेगी।” (यहेजकेल ७:१९) जब तक यह नहीं होता है तब तक हम भौतिक परि-संपत्ति का जिस तरह प्रयोग करते हैं उसमें हमें बुद्धिमानी और समझदारी दिखानी चाहिए। अतः हम यीशु की चेतावनी को मानने में अपनी विफलता को याद करके पछताएँगे नहीं: “जब तुम अधर्म के धन में सच्चे न ठहरे, तो सच्चा तुम्हें कौन सौंपेगा! . . . तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।”—लूका १६:११-१३.
२३. हमें किस चीज़ का बुद्धिमानी से प्रयोग करना चाहिए, और हमारा प्रतिफल क्या होगा?
२३ तो फिर, आइए हम सब यहोवा की उपासना को अपने जीवन में पहला स्थान देने और अपनी सारी परि-संपत्ति का बुद्धिमानी से प्रयोग करने के इन अनुस्मारकों को विश्वास के साथ मानें। अतः हम यहोवा और यीशु के साथ अपनी मित्रता को बनाए रख सकते हैं, जो प्रतिज्ञा करते हैं कि जब पैसा असफल होगा तब वे हमें स्वर्गीय राज्य में या एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन की प्रत्याशा के साथ “अनन्त निवासों” में ले लेंगे।—लूका १६:९.
[फुटनोट]
a “भेंट” अनुवादित इब्रानी शब्द एक क्रिया से आता है जिसका शाब्दिक अर्थ है “ऊँचा होना; उन्नत होना; ऊपर उठाना।”
b वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा १९९३ में प्रकाशित यहोवा के गवाह—परमेश्वर के राज्य के उद्घोषक (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ ३०७-१५ देखिए।
क्या आपको याद है?
▫ निवासस्थान के निर्माण के लिए भेंट देने के यहोवा के निमंत्रण के प्रति इस्राएलियों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?
▫ विधवा की भेंट क्यों व्यर्थ नहीं थी?
▫ अपनी संपत्ति के प्रयोग के तरीक़े के बारे में मसीहियों की क्या ज़िम्मेदारी है?
▫ पैसों के अपने प्रयोग पर हम पछताने से कैसे बच सकते हैं?
[पेज 15 पर तसवीर]
हालाँकि विधवा की भेंट छोटी थी वह व्यर्थ नहीं थी
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
हमारी भेंट विश्वव्यापी राज्य कार्य में सहायता करती है