मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
3-9 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 1-2
“यीशु का पहला चमत्कार”
मसीह—परमेश्वर की शक्ति है
3 यीशु ने अपना पहला चमत्कार गलील के काना नाम के एक कसबे में एक शादी में किया था। शायद शादी में उम्मीद से ज़्यादा मेहमान आए होंगे। बात चाहे जो भी हो, वहाँ दाख-मदिरा कम पड़ गयी थी। नए शादीशुदा जोड़े के लिए यह बहुत शर्म की बात थी क्योंकि शादी में आए मेहमानों को खिलाना-पिलाना उनका फर्ज़ था। इन मेहमानों में यीशु की माँ, मरियम भी थी। बेशक उसके बेटे के बारे में भविष्यवाणियों में जितने वादे किए गए थे, उन पर उसने कई सालों तक मनन किया होगा। वह जानती थी कि यीशु “परम-प्रधान का बेटा” कहलाएगा। (लूका 1:30-32; 2:52) क्या उसे लगता था कि उसके अंदर कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं, जो अभी तक ज़ाहिर नहीं हुई हैं? हो सकता है, लेकिन एक बात तो पक्की है, वहाँ मरियम और यीशु उस नए जोड़े की मदद करना चाहते थे और उन्हें शर्मिंदा होते नहीं देखना चाहते थे। इसलिए यीशु ने 380 लीटर पानी को “बढ़िया दाख-मदिरा” में बदल दिया। (यूहन्ना 2:3, 6-11 पढ़िए।) क्या यह चमत्कार करना यीशु का फर्ज़ था? जी नहीं। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे लोगों की फिक्र थी और वह दरियादिली दिखाकर स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की मिसाल पर चल रहा था।
जीज़स द वे पेज 41 पै 6
उसने पहला चमत्कार किया
यह यीशु का पहला चमत्कार है। यीशु के चेलों ने अभी-अभी उसके साथ जाना शुरू किया है, इसलिए यह चमत्कार देखकर उनका विश्वास मज़बूत होता है। इस घटना के बाद यीशु, उसकी माँ और उसके सौतेले भाई कफरनहूम शहर जाते हैं। यह शहर गलील सागर के उत्तर-पश्चिमी तट पर है।
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अ.बाइ. यूह 1:1 अध्ययन नोट
वचन: या “लोगोस।” यूनानी में हो लोगोस। इस आयत में यह उपाधि के तौर पर इस्तेमाल हुआ है। शब्द “वचन” यूह 1:14 और प्रक 19:13 में भी आया है। यूहन्ना ने बताया कि यह उपाधि यीशु के लिए इस्तेमाल हुई है। इस उपाधि को यीशु पर तब लागू किया गया जब वह स्वर्ग में था, जब उसने परिपूर्ण इंसान के तौर पर धरती पर सेवा की और बाद में जब उसे स्वर्ग में ऊँचा पद दिया गया। यीशु परमेश्वर की तरफ से बोलता था और उसी के ज़रिए सृष्टिकर्ता ने दूसरे स्वर्गदूतों और इंसानों को जानकारी और हिदायतें दीं। तो फिर यह सोचना सही होगा कि यीशु के धरती पर आने से पहले यहोवा, वचन यानी इसी स्वर्गदूत के ज़रिए इंसानों से बात करता था।—उत 16:7-11; 22:11; 31:11; निर्ग 3:2-5; न्या 2:1-4; 6:11, 12; 13:3.
के साथ: शा., “की तरफ।” इस संदर्भ में यूनानी संबंधसूचक अव्यय प्रोज़ का मतलब है किसी के करीब आना और दोस्ती करना। यहाँ एक की नहीं बल्कि दो शख्स की बात की गयी है यानी वचन और एकमात्र सच्चे परमेश्वर की।
वचन एक ईश्वर था: या “वचन ईश्वर जैसा था।” यूहन्ना की इस बात से हमें “वचन” (यूनानी में हो लोगोस; इस आयत में वचन का अध्ययन नोट देखें) यानी यीशु मसीह के एक गुण के बारे में पता चलता है। वह परमेश्वर का पहलौठा है जिसके ज़रिए परमेश्वर ने बाकी सारी चीज़ों की सृष्टि की। इस ऊँचे ओहदे की वजह से उसे “एक ईश्वर; ईश्वर जैसा” बताया गया है। कई अनुवादकों का मानना है कि वचन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बराबर है इसलिए इस आयत का अनुवाद इस तरह होना चाहिए, “वचन परमेश्वर था।” लेकिन यूहन्ना का यह मतलब नहीं था कि “वचन” सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बराबर था और यह मानने के हमारे पास वाजिब कारण हैं। पहली वजह यह है कि “वचन एक ईश्वर था” इन शब्दों से पहले और बाद में साफ-साफ बताया गया है कि वचन “परमेश्वर के साथ था।” इसके अलावा, यूनानी शब्द थियॉस आयत 1 और 2 में तीन बार आया है। पहली और तीसरी बार थियॉस से पहले यूनानी निश्चित उपपद आया है जबकि दूसरी बार नहीं आया है। कई विद्वान मानते हैं कि यह बात गौर करने लायक है। इन आयतों में थियॉस से पहले निश्चित उपपद का इस्तेमाल दिखाता है कि वहाँ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की बात की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ, जहाँ निश्चित उपपद नहीं आया है, वहाँ थियॉस का मतलब यह नहीं कि “वचन” परमेश्वर है बल्कि उसके गुण की बात की जा रही है। इसलिए अँग्रेज़ी, फ्रेंच और जर्मन भाषा की कई बाइबलों में इस आयत का अनुवाद नयी दुनिया अनुवाद की तरह किया गया है। वह यह कि वचन “एक ईश्वर था या ईश्वर जैसा था।” यही बात तीसरी और चौथी सदी के प्राचीन अनुवादों में भी देखी जा सकती है जैसे, कॉप्टिक भाषा की साहिदिक और बोहैरिक बोलियों में पायी जानेवाली यूहन्ना की किताब। इन अनुवादों में यूह 1:1 में जहाँ थियॉस पहली बार आया है उसका अनुवाद दूसरी बार आए थियॉस से अलग है। इन अनुवादों में “वचन” के बारे में बताया गया है कि उसकी शख्सियत परमेश्वर के जैसी है मगर वह अपने पिता, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बराबर नहीं है। कुल 2:9 भी बताता है कि मसीह में “परमेश्वर के सारे गुण पूरी हद तक पाए जाते हैं।” और 2पत 1:4 बताता है कि मसीह के साथ राज करनेवाले भी ‘परमेश्वर के जैसे’ बनेंगे। इसके अलावा, इब्रानी शास्त्र में जहाँ-जहाँ “परमेश्वर” के लिए शब्द ‘एल और एलोहीम’ आया है, वहाँ सेप्टुआजेंट में यूनानी शब्द थियॉस इस्तेमाल हुआ है और इसका बुनियादी मतलब है, “शक्तिशाली जन।” ‘एल और एलोहीम’ शब्द सर्वशक्तिमान परमेश्वर, दूसरे देवताओं और इंसानों के लिए इस्तेमाल होता है। वचन को “एक ईश्वर” या “शक्तिशाली जन” कहना यश 9:6 में दी गयी भविष्यवाणी से मेल खाता है जहाँ बताया गया है कि मसीहा “शक्तिशाली ईश्वर” कहलाया जाएगा (न कि “सर्वशक्तिमान परमेश्वर”) और अपनी प्रजा के लिए “युग-युग का पिता” होगा। “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा” अपने जोश के कारण ऐसा ज़रूर करेगा।—यश 9:7.
अ.बाइ. यूह 1:29 अध्ययन नोट
परमेश्वर का मेम्ना: यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने लोगों के सामने यीशु को “परमेश्वर का मेम्ना” कहा। तब तक यीशु का बपतिस्मा हो चुका था और शैतान ने उसे फुसलाने की कोशिश की थी। ये शब्द सिर्फ यहाँ और यूह 1:36 में पाए जाते हैं। (अति. क7 देखें।) यहाँ यीशु की तुलना एक मेम्ने से की गयी है जो सही है। बाइबल की कई आयतों से पता चलता है कि पापों का प्रायश्चित करने और परमेश्वर से सुलह करने के लिए भेड़ें चढ़ायी जाती थीं। ये बलिदान इस बात की निशानी थे कि आगे चलकर यीशु अपना परिपूर्ण शरीर इंसानों की खातिर दे देगा। “परमेश्वर का मेम्ना,” इन शब्दों से मिलते-जुलते विचार शास्त्र की कई आयतों में पाए जाते हैं। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला इब्रानी शास्त्र से अच्छी तरह वाकिफ था, शायद इसलिए जब उसने परमेश्वर का मेम्ना कहा तो उसके मन में आगे बतायी एक या उससे ज़्यादा बातें रही होंगी: वह मेढ़ा जो अब्राहम ने अपने बेटे इसहाक के बदले चढ़ाया था (उत 22:13), फसह का मेम्ना जिसे इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाने के लिए हलाल किया गया था (निर्ग 12:1-13) या वह नर-मेम्ना जिसे यरूशलेम में परमेश्वर की वेदी पर हर दिन सुबह-शाम चढ़ाया जाता था (निर्ग 29:38-42)। यूहन्ना के मन में शायद यशायाह की वह भविष्यवाणी भी रही होगी जहाँ यहोवा उस शख्स को “मेरा सेवक” कहता है जिसे “भेड़ की तरह बलि होने के लिए लाया गया।” (यश 52:13; 53:5, 7, 11) जब प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ की मंडली को पहली चिट्ठी लिखी तो उसने यीशु को “हमारे फसह का मेम्ना” कहा। (1कुर 5:7) प्रेषित पतरस ने कहा कि ‘मसीह का खून बेशकीमती’ है और वह “बेदाग और निर्दोष मेम्ना है।” (1पत 1:19) इसके अलावा, प्रकाशितवाक्य की किताब में 25 से ज़्यादा बार महिमावान यीशु को लाक्षणिक तौर पर “मेम्ना” कहा गया है।—इसके कुछ उदाहरण हैं: प्रक 5:8; 6:1; 7:9; 12:11; 13:8; 14:1; 15:3; 17:14; 19:7; 21:9; 22:1.
10-16 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 3-4
“यीशु ने सामरी औरत को गवाही दी”
अ.बाइ. यूह 4:6 अध्ययन नोट
थका-माँदा: पूरी बाइबल में सिर्फ इसी आयत में बताया गया है कि यीशु “थका-माँदा” था। वह दोपहर 12 बजे का समय था और उस सुबह शायद यीशु ने यहूदिया की यरदन घाटी से लेकर सामरिया के सूखार तक सफर तय किया था। यरदन से सूखार जाने के लिए उसे 3,000 फुट या उससे ज़्यादा ऊँची चढ़ाई चढ़नी पड़ी थी।—यूह 4:3-5; अति. क7 देखें।
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अ.बाइ. यूह 3:29 अध्ययन नोट
दूल्हे का दोस्त: बाइबल के ज़माने में दूल्हे का कोई करीबी उसकी तरफ से रिश्ता पक्का करने और शादी की तैयारियाँ करने में खास भूमिका निभाता था। माना जाता था कि उसी ने दूल्हा-दुल्हन का रिश्ता जोड़ा है। शादी के दिन लड़कीवाले दुल्हन को लेकर दूल्हे या उसके पिता के घर आते और वहाँ शादी की दावत रखी जाती थी। दावत के वक्त जब दूल्हे का दोस्त दूल्हे को अपनी दुल्हन से बात करते देखता, तो उसकी आवाज़ सुनकर दोस्त को बहुत खुशी होती थी, क्योंकि वह उन दोनों को मिलाने की ज़िम्मेदारी अच्छे-से निभा चुका होता। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने अपनी तुलना ‘दूल्हे के दोस्त’ से की। यीशु एक तरह से दूल्हा था और उसके चेले एक समूह के तौर पर उसके लिए दुल्हन जैसे थे। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने यीशु मसीह को उसकी “दुल्हन” वर्ग के शुरू के सदस्यों से यानी उसके शुरूआती चेलों से मिलाया। इस तरह उसने मसीहा के लिए रास्ता तैयार किया। (यूह 1:29, 35; 2कुर 11:2; इफ 5:22-27; प्रक 21:2, 9) “दूल्हे का दोस्त” जब लड़का-लड़की को मिलाने का काम पूरा कर लेता, तो इसके बाद वह लोगों की नज़रों में उतना नहीं आता था। यूहन्ना की भूमिका भी कुछ इसी तरह थी। इसलिए उसने यीशु के बारे में कहा, “यह ज़रूरी है कि वह बढ़ता जाए और मैं घटता जाऊँ।”—यूह 3:30.
अ.बाइ. यूह 4:10 अध्ययन नोट
जीवन देनेवाला पानी: शा. “जीवित पानी।” जिन यूनानी शब्दों का अनुवाद “जीवन देनेवाला पानी” किया गया है, उनका शाब्दिक मतलब है, बहता पानी, सोते का पानी या सोते से निकलनेवाला ताज़ा पानी। इस तरह का पानी कुंड के पानी से अलग होता था। कुंड का पानी काफी समय से जमा रहता था। लैव 14:5 में जिन इब्रानी शब्दों का अनुवाद ‘ताज़ा पानी’ किया गया है, उसका शाब्दिक अनुवाद है, “जीवित पानी।” यिर्म 2:13 और 17:13 में यहोवा को ‘जीवन के जल का सोता’ कहा गया है, जिसका मतलब है लाक्षणिक तौर पर जीवन का जल देनेवाला। सामरी स्त्री से बात करते समय यीशु ने ‘जीवन देनेवाले पानी’ का ज़िक्र लाक्षणिक तौर पर किया था, मगर शायद वह पहले उसे सचमुच का पानी समझ बैठी थी।—यूह 4:11.
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जन16 अंक2 पेज 9 पै 1-4, अँग्रेज़ी
क्या मसीहियों को किसी पवित्र स्थान में ही उपासना करनी चाहिए?
यीशु ने आगे कहा, “वह समय आ रहा है और अभी-भी है, जब सच्चे उपासक पिता की उपासना पवित्र शक्ति और सच्चाई से करेंगे। दरअसल, पिता ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहा है जो इसी तरह उसकी उपासना करेंगे।” (यूहन्ना 4:23) सदियों से यहूदी मानते थे कि यरूशलेम का महान मंदिर ही सच्ची उपासना की सबसे खास जगह है। वे साल में तीन बार अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाने यरूशलेम जाया करते थे। (निर्गमन 23:14-17) मगर यीशु ने कहा कि जल्द ही सबकुछ बदल जाएगा और “सच्चे उपासक” पवित्र शक्ति और सच्चाई से उपासना करेंगे।
यहूदी अपने मंदिर को देख सकते थे क्योंकि वह एक जगह पर बनी इमारत थी। लेकिन पवित्र शक्ति और सच्चाई दिखायी देनेवाली चीज़ें नहीं हैं, न ही ये दोनों बातें किसी एक जगह तक सीमित हैं। तो यीशु यह बता रहा था कि सच्चे मसीहियों को उपासना के लिए किसी खास जगह या इमारत जाने की ज़रूरत नहीं होगी, चाहे वह गरिज्जीम पहाड़ हो, यरूशलेम का मंदिर हो या कोई और पवित्र जगह।
यीशु ने सामरी औरत को यह भी बताया कि उपासना के मामले में यह बदलाव होने का “समय आ रहा है।” वह समय कब आया? वह समय तब आया जब यीशु ने अपना जीवन बलिदान किया। तब से मूसा के कानून के मुताबिक होनेवाली उपासना के तौर-तरीकों का अंत हो गया। (रोमियों 10:4) मगर यीशु ने यह भी कहा, “वह समय . . . अभी-भी है।” उसने ऐसा क्यों कहा? वह इसलिए क्योंकि मसीहा के नाते, वह उन लोगों को अभी से इकट्ठा कर रहा था जो उसकी यह आज्ञा मानते: “परमेश्वर अदृश्य है और उसकी उपासना करनेवालों को पवित्र शक्ति और सच्चाई से उसकी उपासना करनी चाहिए।” (यूहन्ना 4:24) मगर पवित्र शक्ति और सच्चाई से उपासना करने का क्या मतलब है?
जब यीशु ने पवित्र शक्ति से उपासना करने के बारे में बताया, तो उसके कहने का यह मतलब नहीं था कि बड़े जोश से परमेश्वर की उपासना की जाएगी। वह कहना चाहता था कि पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन के मुताबिक उपासना की जाएगी। पवित्र शक्ति कई बातों का मार्गदर्शन करती है, जिनमें से एक है, परमेश्वर के वचन की समझ देना। (1 कुरिंथियों 2:9-12) और यीशु जिस सच्चाई की बात कर रहा था, वह है बाइबल की शिक्षाओं का सही ज्ञान लेना। इसलिए हमारी उपासना तभी स्वीकार की जाएगी जब हम किसी खास जगह उपासना करने के बजाय, बाइबल की शिक्षाओं और पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन के मुताबिक उपासना करेंगे।
17-23 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 5-6
“यीशु के पीछे सही इरादे से चलिए”
अ.बाइ. यूह 6:10 अध्ययन नोट
आदमियों की गिनती करीब 5,000 थी: सिर्फ मत्ती ने अपनी किताब में इस चमत्कार का ज़िक्र करते वक्त बताया कि आदमियों के अलावा, “औरतें और बच्चे भी थे।” (मत 14:21) यीशु ने चमत्कार करके जिन लोगों को खाना खिलाया, उनकी कुल गिनती 15,000 से ज़्यादा रही होगी।
अ.बाइ. यूह 6:14 अध्ययन नोट
भविष्यवक्ता: व्य 18:15, 18 में बताया गया था कि मूसा के जैसा एक भविष्यवक्ता आएगा। पहली सदी में कई यहूदी उम्मीद लगाए हुए थे कि वह भविष्यवक्ता मसीहा होगा। यूह 6:14 में लिखा है कि उस भविष्यवक्ता को दुनिया में आना था। यहाँ शायद मसीहा के प्रकट होने की बात की जा रही है, जिसका लोग इंतज़ार कर रहे थे। इस आयत में बतायी घटनाएँ सिर्फ यूहन्ना की किताब में दर्ज़ हैं।
अ.बाइ. यूह 6:27, 54 अध्ययन नोट
उस खाने के लिए . . . जो नष्ट हो जाता है, . . . उस खाने के लिए . . . जो . . . हमेशा की ज़िंदगी देता है: यीशु समझ गया कि कुछ लोग सिर्फ अपने फायदे के लिए उससे और उसके चेलों से मेल-जोल रखते थे। खाना खाने से एक इंसान बस कुछ दिन ज़िंदा रह सकता है, लेकिन परमेश्वर का वचन, जो कि “खाने” जैसा है, इंसानों के लिए हमेशा तक जीना मुमकिन कर सकता है। यीशु ने लोगों से कहा कि वे उस “खाने” के लिए काम करें “जो हमेशा की ज़िंदगी देता है” यानी परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने के लिए मेहनत करें और वे जो सीखते हैं उस पर विश्वास करें।—मत 4:4; 5:3; यूह 6:28-39.
मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है: आस-पास की आयतों से पता चलता है कि इस आयत में लाक्षणिक तौर पर खाने और पीने का ज़िक्र किया गया है, जिसका मतलब है यीशु मसीह पर विश्वास करना। (यूह 6:35, 40) यीशु प्रभु के संध्या-भोज में खाने-पीने की बात नहीं कर रहा था क्योंकि उसने यह बात ई. 32 में कही थी, जबकि प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत वह एक साल बाद करनेवाला था। उसने यह बात ‘यहूदियों के फसह के त्योहार’ से कुछ ही समय पहले कही थी। (यूह 6:4) इसलिए उसकी बात सुनकर लोगों को आनेवाले फसह के त्योहार का खयाल आया होगा और उन्हें याद आया होगा कि जिस रात इसराएली मिस्र से निकले थे, तो मेम्ने के खून की वजह से उनकी जान बची थी। (निर्ग 12:24-27) तो यीशु यह कहना चाह रहा था कि मेम्ने के खून की तरह उसका खून एक अहम भूमिका निभाएगा और चेलों के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाना मुमकिन करेगा।
हम अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर चलेंगे
13 फिर भी, लोगों ने हार नहीं मानी। वे यीशु को ढूँढ़ने निकल पड़े और जैसे यूहन्ना ने लिखा, उन्होंने उसे “झील के पार” पाया। उन्होंने यीशु का पीछा क्यों नहीं छोड़ा जबकि उसने राजा बनने से इनकार कर दिया था? दरअसल, उनमें बहुत-से खुदगर्ज़ और इंसानी नज़रिया रखनेवाले लोग थे, तभी तो वे ज़ोर देकर उस वाकये का हवाला देने लगे, जब मूसा के दिनों में यहोवा ने वीराने में इस्राएलियों को खाना मुहैया कराया था। एक तरह से वे यीशु से कह रहे थे कि ‘आपको भी लगातार हमारे लिए खाने का बंदोबस्त करना चाहिए।’ यीशु ने उनके गलत इरादे को भाँप लिया था, इसलिए उनकी गलत सोच को सुधारने के लिए उन्हें आध्यात्मिक सच्चाइयाँ सिखाने लगा। (यूहन्ना 6:17, 24, 25, 30, 31, 35-40) मगर इस पर कुछ लोग यीशु पर कुड़कुड़ाने लगे, खासकर उस वक्त जब यीशु ने यह दृष्टांत दिया: “मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता, और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा।”—यूहन्ना 6:53, 54.
14 यीशु के दृष्टांतों से अकसर लोगों का असली रूप सामने आ जाता था। यह साफ ज़ाहिर हो जाता था कि वे दिल से परमेश्वर के साथ-साथ चलने का इरादा रखते हैं या उनकी ख्वाहिशें कुछ और हैं। इस दृष्टांत का भी लोगों पर यही असर हुआ। यीशु की बात सुनने के बाद लोग भड़क उठे। हम पढ़ते हैं: “उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है?” यीशु ने आगे उन्हें बताया कि उन्हें उसकी बातों में छिपे आध्यात्मिक अर्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। उसने कहा: “आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कही हैं वे आत्मा हैं, और जीवन भी हैं।” फिर भी, बहुत-से लोग उसकी सुनने को राज़ी नहीं हुए और जैसे बाइबल कहती है: “इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।”—यूहन्ना 6:60, 63, 66.
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अ.बाइ. यूह 6:44 अध्ययन नोट
खींच: जिस यूनानी क्रिया का अनुवाद “खींच” किया गया है, वह मछलियों से भरे जाल को घसीटने के बारे में बताने के लिए इस्तेमाल होता है। (यूह 21:6, 11) मगर इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर लोगों को ज़बरदस्ती घसीटकर अपने पास लाता है। इस क्रिया का मतलब “आकर्षित करना” भी हो सकता है। यिर्म 31:3 के मुताबिक यहोवा ने अपने लोगों से कहा था, “मैंने अटल प्यार से तुझे अपनी तरफ खींचा है।” (सेप्टुआजेंट बाइबल में यिर्म 31:3 में उसी यूनानी क्रिया का इस्तेमाल हुआ है।) शायद यूह 6:44 में यीशु कुछ ऐसी ही बात कह रहा था कि यहोवा प्यार से लोगों को अपनी तरफ खींचता है। यूह 12:32 से पता चलता है कि यीशु भी इसी तरह सब किस्म के लोगों को अपनी तरफ खींचता है। बाइबल के मुताबिक यहोवा ने इंसानों को अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी है। हर किसी को यह फैसला करने का हक है कि वह उसकी सेवा करेगा या नहीं। (व्य 30:19, 20) जो लोग अच्छा मन रखते हैं, उन्हें परमेश्वर प्यार से अपनी तरफ खींचता है। (भज 11:5; नीत 21:2; प्रेष 13:48) वह बाइबल में लिखी बातों और अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए उन्हें अपनी तरफ प्यार से खींचता है। यश 54:13 की भविष्यवाणी, जिसका हवाला यूह 6:45 में किया गया है, उन सब लोगों पर लागू होती है जिन्हें पिता अपनी तरफ खींचता है।—यूह 6:65 से तुलना करें।
अ.बाइ. यूह 6:64 अध्ययन नोट
यीशु जानता था . . . कौन . . . उसके साथ विश्वासघात करेगा: यीशु यहूदा इस्करियोती की बात कर रहा था। यीशु ने पूरी रात अपने पिता से प्रार्थना करने के बाद 12 प्रेषितों को चुना था। (लूक 6:12-16) ज़ाहिर है कि जब यहूदा को प्रेषित चुना गया, तब वह परमेश्वर का वफादार था। मगर यीशु इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों से जानता था कि उसका कोई करीबी ही उसके साथ विश्वासघात करेगा। (भज 41:9; 109:8; यूह 13:18, 19) जब यहूदा के मन में बुराई पनपने लगी, तो यीशु ने यह भाँप लिया क्योंकि वह जान सकता था कि इंसान के मन में क्या है। (मत 9:4) परमेश्वर के पास भविष्य जानने की काबिलीयत है, इसलिए वह जानता था कि एक ऐसा व्यक्ति यीशु को दगा देगा जिस पर यीशु भरोसा करता है। मगर परमेश्वर ने यह तय नहीं किया कि यहूदा ही वह व्यक्ति होगा क्योंकि ऐसा करना पहले से उसका भविष्य लिखने जैसा होता। परमेश्वर बीते समय में जिस तरह लोगों के साथ पेश आया और उसका जो स्वभाव है, उससे पता चलता है कि वह ऐसा नहीं कर सकता था।
शुरू से: “शुरू से” का मतलब यह नहीं कि जब यहूदा का जन्म हुआ तब से यीशु जानता था कि वह उसके साथ विश्वासघात करेगा। न ही इसका मतलब है कि जब उसे प्रेषित चुना गया था, तब से यीशु जानता था। यह इसलिए मुमकिन नहीं क्योंकि यीशु ने पूरी रात प्रार्थना करने के बाद उसे प्रेषित चुना था। (लूक 6:12-16) इसके बजाय, जब से यहूदा ने धोखाधड़ी शुरू की, तब से यीशु जान गया कि वह विश्वासघात करेगा क्योंकि उसने फौरन यहूदा का कपट भाँप लिया था। (यूह 2:24, 25; प्रक 1:1; 2:23) इससे यह भी पता चलता है कि यहूदा ने जो किया वह उसकी सोची-समझी साज़िश थी। यह ऐसा नहीं था कि उसका मन रातों-रात बुराई की तरफ फिर गया। मसीही यूनानी शास्त्र में “शुरू” या “शुरूआत” (यूनानी में, आर·खे ) का मतलब अलग-अलग हो सकता है। एक आयत में “शुरू” या “शुरूआत” का क्या मतलब है, यह आस-पास की आयतों से पता चलता है। मिसाल के लिए, 2पत 3:4 में “शुरूआत” का मतलब है, सृष्टि की शुरूआत। उसी तरह, प्रेष 11:15 में जब पतरस ने कहा कि गैर-यहूदियों पर भी पवित्र शक्ति उसी तरह उतरी “जैसे शुरूआत में हम पर उतरी थी” तो वह अपने जन्म की या उस वक्त की बात नहीं कर रहा था जब उसे प्रेषित ठहराया गया था। वह ई. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन की बात कर रहा था जब एक खास मकसद से चेलों को पवित्र शक्ति देने की “शुरूआत” हुई थी। (प्रेष 2:1-4) इस तरह की और भी कुछ आयतें हैं, जिनमें “शुरू” या “शुरूआत” का मतलब अलग-अलग है, जैसे लूक 1:2 और यूह 15:27.
24-30 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 7-8
“यीशु ने अपने पिता की महिमा की”
“यह लिखा है”
5 यीशु चाहता था कि लोग जानें कि उसका संदेश किसकी तरफ से है। उसने कहा: “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।” (यूहन्ना 7:16) एक और बार यीशु ने कहा: “मैं अपनी पहल पर कुछ भी नहीं करता, बल्कि जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ।” (यूहन्ना 8:28) एक दूसरे मौके पर उसने कहा: “मैं जो बातें तुमसे कहता हूँ वे अपनी तरफ से नहीं कहता, बल्कि पिता है जो अपने काम कर रहा है और मेरे साथ एकता में रहता है।” (यूहन्ना 14:10) यीशु ने अपनी इन बातों को सच साबित करने के लिए बार-बार परमेश्वर के वचन से हवाले दिए।
6 यीशु के कहे शब्दों पर गौर करने से पता चलता है कि उसने इब्रानी शास्त्र की आधी-से-ज़्यादा किताबों से सीधे-सीधे हवाले दिए या उनमें लिखी बातों का ज़िक्र किया। पहले-पहल शायद आपको लगे कि यह तो कोई खास बात नहीं। आप शायद सोचें कि यीशु ने अपने साढ़े तीन साल के प्रचार और सिखाने के काम में इब्रानी शास्त्र की सभी किताबों का हवाला क्यों नहीं दिया। हो सकता है कि उसने ऐसा किया हो। याद रखिए, यीशु की बातों और कामों का एक छोटा-सा हिस्सा ही दर्ज़ किया गया है। (यूहन्ना 21:25) अगर आप बाइबल में दर्ज़ यीशु की बातें पढ़ने बैठें तो आपको इसे पढ़ने में सिर्फ कुछ ही घंटे लगेंगे। ज़रा सोचिए कि आप किसी से कुछ घंटों के लिए परमेश्वर और उसके राज के बारे में बात कर रहे हैं और आप इब्रानी शास्त्र की आधी से ज़्यादा किताबों के हवाले देने की कोशिश करते हैं। यह कितना मुश्किल होगा! और-तो-और यीशु के पास ज़्यादातर मौकों पर शास्त्र के खर्रे भी नहीं होते थे जिनसे वह लोगों को पढ़कर सुनाता। जब उसने अपना मशहूर पहाड़ी उपदेश दिया, तो उसने इब्रानी शास्त्र से कई सीधे-सीधे हवाले दिए या उसमें लिखी बातों का ज़िक्र किया, वह भी सिर्फ अपनी याददाश्त के बल पर!
परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाइए, न कि दुनिया की फितरत
19 यहोवा की हर आज्ञा मानिए। यीशु ने हमेशा वही किया जिससे उसके पिता को खुशी मिलती थी। लेकिन कम-से-कम एक मौके पर वह हालात का सामना कुछ इस तरह करना चाहता था, जो उसके पिता की इच्छा से अलग था। फिर भी उसने पूरे भरोसे के साथ अपने पिता से कहा: “जो मेरी मरज़ी है, वह नहीं बल्कि वही हो जो तेरी मरज़ी है।” (लूका 22:42) खुद से पूछिए: ‘क्या मैं परमेश्वर की आज्ञा तब भी मानता हूँ जब ऐसा करना आसान नहीं होता?’ परमेश्वर की आज्ञा मानने पर ही हमारी ज़िंदगी टिकी है। वह हमारा सृष्टिकर्ता है, हमारे जीवन का स्रोत है और उसे कायम रखता है, इसलिए हमें उसकी हर आज्ञा माननी चाहिए और वह इसका हकदार भी है। (भज. 95:6, 7) उसकी आज्ञा मानने से बढ़कर कुछ नहीं। इसके बिना हम परमेश्वर की मंज़ूरी नहीं पा सकते।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
हमें क्यों सच बोलना चाहिए?
इस मामले में, यीशु मसीह ने एक अच्छी मिसाल रखी। वह एक मौके पर कुछ ऐसे लोगों से बात कर रहा था जो उसके चेले नहीं थे, मगर उन्हें उसके सफर के बारे में दिलचस्पी थी। उन्होंने यीशु को सुझाव दिया: “यहां से कूच करके यहूदिया में चला जा।” इस पर यीशु ने क्या जवाब दिया? उसने कहा: “तुम [यरूशलेम में] पर्ब्ब में जाओ: मैं अभी इस पर्ब्ब में नहीं जाता; क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।” लेकिन इसके कुछ ही समय बाद, यीशु पर्व के लिए यरूशलेम ज़रूर गया। तो फिर उसने उन लोगों से ऐसा क्यों कहा कि वह अभी पर्व में नहीं जाएगा? क्योंकि यीशु कब, कहाँ जाएगा, इस बारे में जानने का उन्हें कोई हक नहीं था। यीशु ने उनसे झूठ नहीं बोला था बल्कि उन्हें आधी-अधूरी जानकारी दी थी, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसे या उसके चेलों को किसी तरह का खतरा हो। हम यकीन रख सकते हैं कि यीशु ने कोई झूठ नहीं बोला था, क्योंकि प्रेरित पतरस ने उसके बारे में लिखा: “न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली।”—यूहन्ना 7:1-13; 1 पतरस 2:22.
अ.बाइ. यूह 8:58 अध्ययन नोट
मैं . . . पहले से वजूद में हूँ: यहूदी लोग यीशु को पत्थरों से मार डालना चाहते थे क्योंकि उसने कहा कि उसने “अब्राहम को देखा है,” जबकि यीशु “50 साल का भी नहीं” था। (यूह 8:57) दरअसल यीशु उनसे यह कह रहा था कि अब्राहम के जन्म से पहले यानी धरती पर आने से पहले वह स्वर्ग में एक शक्तिशाली प्राणी था। आज कुछ लोग कहते हैं कि इस आयत के मुताबिक यीशु ही परमेश्वर है। उनका कहना है कि यूह 8:58 में इस्तेमाल हुआ यूनानी शब्द ऐगोइमी (कुछ बाइबलों में “मैं हूं” किया गया है) सेप्टुआजेंट में निर्ग 3:14 में लिखी बात को ही दर्शाता है, जहाँ परमेश्वर अपने बारे में बताता है। उनका कहना है कि जैसे निर्ग 3:14 में लिखा है, ठीक वैसे ही यूह 8:58 का भी अनुवाद किया जाना चाहिए। लेकिन यह दलील सही नहीं हो सकती। यूह 8:58 में यूनानी क्रिया इमी एक ऐसी क्रिया को दर्शाती है जो “अब्राहम के पैदा होने से पहले” से चल रही थी। इसलिए इस आयत में इमी का सही अनुवाद होगा, ‘मैं पहले से वजूद में हूँ,’ न कि “मैं हूँ।” बाइबल के कई पुराने और नए अनुवादों में ‘मैं पहले से वजूद में हूँ’ जैसे शब्द लिखे गए हैं। यूह 14:9 में भी यूनानी क्रिया इमी के एक रूप का अनुवाद इस तरह किया गया है: “फिलिप्पुस, मैं इतने समय से तुम लोगों के साथ हूँ और फिर भी तू मुझे नहीं जान पाया?” कई बाइबलों में ऐसा ही अनुवाद किया गया है जिससे पता चलता है कि आस-पास की आयतों के मुताबिक इमी का अनुवाद ‘मैं पहले से हूँ’ या ‘मैं इतने समय से हूँ’ जैसे शब्दों से करना गलत नहीं है। (वर्तमान काल में लिखी यूनानी क्रिया का अनुवाद पूर्ण वर्तमान काल की क्रिया में करने की कुछ और मिसालें हैं, लूक 13:7; 15:29; यूह 5:6; 15:27; प्रेष 15:21; 2कुर 12:19; 1यूह 3:8.) इसके अलावा, यूह 8:54, 55 में यीशु ने जो तर्क पेश किया, उससे भी पता चलता है कि वह खुद को पिता के बराबर नहीं बता रहा था।