अगर तुम ये बातें मानो, तो सुखी होगे
“मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ और उसका काम पूरा करूँ।”—यूह. 4:34.
1. दुनिया के स्वार्थी रवैए का हम पर कैसे असर हो सकता है?
परमेश्वर के वचन से जो बातें हम सीखते हैं, उन पर चलना कई बार मुश्किल होता है। वह इसलिए कि इन “आखिरी दिनों” में हम ऐसे लोगों के बीच रहते हैं, जिनमें नम्रता की कमी है, जबकि परमेश्वर के सिद्धांतों पर चलने के लिए नम्र होना बहुत ज़रूरी है। आज ज़्यादातर ‘लोग सिर्फ खुद से प्यार करते हैं, पैसे से प्यार करते हैं, डींगें मारते हैं, मगरूर हैं’ और ‘संयम नहीं रखते।’ (2 तीमु. 3:1-3) परमेश्वर के सेवक होने के नाते हम जानते हैं कि इस तरह का व्यवहार गलत है, लेकिन कभी-कभी हमें लग सकता है कि ऐसे लोग कामयाब हो रहे हैं और ज़िंदगी का मज़ा ले रहे हैं। (भज. 37:1; 73:3) शायद हम यह भी सोचें, ‘क्या खुद से ज़्यादा दूसरों की भलाई के बारे में सोचने का कोई फायदा है? अगर मैं नम्र रहूँ, तो क्या लोग मेरी इज़्ज़त करेंगे?’ (लूका 9:48) दुनिया के लोगों की तरह स्वार्थी बनने से भाई-बहनों के साथ हमारे रिश्ते में दूरियाँ आ सकती हैं। यहाँ तक कि लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो सकता है कि हम सच्चे मसीही हैं। लेकिन परमेश्वर के नम्र सेवकों के बारे में अध्ययन करने से और उनकी मिसाल पर चलने से हमें काफी फायदा होता है।
2. पुराने ज़माने के वफादार सेवकों से हम क्या सीखते हैं?
2 पुराने ज़माने के वफादार सेवकों से हम बहुत-कुछ सीख सकते हैं। जैसे, यहोवा के दोस्त बनने में किस बात से उन्हें मदद मिली? उन्होंने उसे खुश करने के लिए क्या किया? सही काम करने के लिए उन्हें हिम्मत कहाँ से मिली? अगर हम बाइबल का गहराई से अध्ययन करते वक्त इस तरह के सवालों के जवाब जानने की कोशिश करें, तो हमारा विश्वास मज़बूत हो सकता है।
विश्वास मज़बूत करने के लिए क्या ज़रूरी है?
3, 4. (क) हमें सिखाने के लिए यहोवा ने कौन-से इंतज़ाम किए हैं? (ख) विश्वास मज़बूत करने के लिए सिर्फ ज्ञान लेना काफी क्यों नहीं है?
3 हमारा विश्वास मज़बूत करने के लिए यहोवा हमें बहुत-कुछ देता है। हमें बाइबल, किताबों-पत्रिकाओं, jw.org वेबसाइट, JW ब्रॉडकास्टिंग, सभाओं और सम्मेलनों के ज़रिए सलाह और प्रशिक्षण मिलता है। लेकिन यीशु ने समझाया कि सिर्फ ज्ञान लेना काफी नहीं है। उसने कहा, “मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ और उसका काम पूरा करूँ।”—यूह. 4:34.
4 यीशु के लिए परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना खाना खाने की तरह था। जिस तरह पौष्टिक भोजन करने से हमें अच्छा लगता है और हम सेहतमंद रहते हैं, उसी तरह परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने से हमें खुशी मिलती है और हमारा विश्वास मज़बूत होता है। उदाहरण के लिए, क्या कभी ऐसा हुआ है कि थके होने पर भी आप प्रचार में गए, मगर वापस आने पर आप खुश थे और तरो-ताज़ा महसूस कर रहे थे?
5. बुद्धिमानी से काम लेने से क्या फायदा होता है?
5 यहोवा हमसे जो कुछ करने के लिए कहता है, वह करने से हम बुद्धिमानी से काम ले रहे होते हैं। (भज. 107:43) इससे हमारा भला होता है। बाइबल में लिखा है, “[बुद्धि के] सामने हर वह चीज़ फीकी है, जिसे पाने की तू चाहत रखता है। . . . जो बुद्धि को थामते हैं, उनके लिए यह जीवन का पेड़ है, जो इसे थामे रहते हैं, वे सुखी माने जाएँगे।” (नीति. 3:13-18) यीशु ने अपने चेलों से कहा, “तुमने ये बातें जान ली हैं, लेकिन अगर तुम ऐसा करो तो सुखी होगे।” (यूह. 13:17) यीशु ने चेलों से जो कुछ करने के लिए कहा था, उसे करते रहने से ही वे खुश रहते। वे यीशु की शिक्षाओं और उसकी मिसाल पर ज़िंदगी-भर चलते रहे।
6. सीखी हुई बातों पर चलते रहना ज़रूरी क्यों है?
6 आज हमें भी सीखी हुई बातों पर चलते रहना है। ज़रा एक कारीगर के बारे में सोचिए। उसके पास अलग-अलग औज़ार हैं, सामान है और काम करने का ज्ञान भी। लेकिन इनका होना काफी नहीं है, इन्हें काम में लाने से ही वह अच्छा कारीगर बन पाएगा। सालों बाद जब वह एक तजुरबेकार कारीगर हो जाएगा, तब भी उसे इन सब बातों को काम में लाते रहना होगा, ताकि वह एक अच्छा कारीगर बना रहे। उसी तरह जब हमने बाइबल से सच्चाई सीखी और उसके मुताबिक काम किया, तब हमें खुशी मिली। लेकिन हमेशा खुश रहने के लिए हमें हर दिन वह करना होगा, जो यहोवा हमें सिखाता है।
7. बाइबल में दी मिसालों से सीखने के लिए हमें क्या करना होगा?
7 आइए कुछ हालात देखें, जिनमें नम्र रहना मुश्किल हो सकता है। इस लेख में हम यह भी सीखेंगे कि इस तरह के हालात में पुराने ज़माने के वफादार लोग कैसे नम्र रहे। लेकिन हमें यह जानकारी सिर्फ पढ़नी नहीं है, बल्कि इस पर गहराई से सोचना है और उसके मुताबिक चलना है।
सबको एक बराबर समझिए
8, 9. प्रेषितों 14:8-15 से कैसे पता चलता है कि पौलुस नम्र था? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
8 परमेश्वर चाहता है कि हर तरह के लोगों का “उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान पाएँ।” (1 तीमु. 2:4) तो जिन लोगों ने अब तक सच्चाई नहीं सीखी, उन्हें आप किस नज़र से देखते हैं? प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसने सिर्फ यहूदी लोगों को प्रचार नहीं किया, जो यहोवा के बारे में थोड़ा-बहुत जानते थे। उसने उन लोगों को भी प्रचार किया, जो झूठे देवी-देवताओं को पूजते थे। ऐसे लोगों को प्रचार करने के लिए पौलुस का नम्र होना ज़रूरी था। वह क्यों?
9 अपने पहले मिशनरी दौरे में पौलुस बरनबास के साथ लुकाउनिया प्रांत के लुस्त्रा शहर गया। वहाँ के लोगों ने पौलुस और बरनबास को देवताओं का अवतार समझा। वे उन्हें ज़्यूस और हिरमेस नाम से पुकारने लगे। इस पर क्या पौलुस और बरनबास गर्व से फूल गए? क्या उन्हें लगा कि चलो अब ज़ुल्म खत्म हुए, जो पहले दो शहरों में उन पर हुए थे? क्या उन्होंने सोचा कि इस तरह मान-सम्मान होने से ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग खुशखबरी सुनेंगे? नहीं, उन्होंने ऐसा कुछ नहीं सोचा, बल्कि उन्हें बहुत बुरा लगा। उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा, “तुम यह सब क्यों कर रहे हो? हम भी तुम्हारी तरह मामूली इंसान हैं।”—प्रेषि. 14:8-15.
10. पौलुस और बरनबास ने खुद को लुकाउनिया के लोगों से बड़ा क्यों नहीं समझा?
10 जब पौलुस और बरनबास ने कहा कि वे भी उनकी तरह इंसान हैं, तो उनके कहने का मतलब यह नहीं था कि वे भी लुकाउनिया के लोगों की तरह उपासना करते हैं। इसके बजाय वे यह कह रहे थे कि वे भी अपरिपूर्ण हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों कहा? उन्हें तो परमेश्वर ने मिशनरी के तौर पर भेजा था। (प्रेषि. 13:2) वे पवित्र शक्ति से अभिषिक्त किए गए थे और उन्हें स्वर्ग जाने की आशा थी। मगर इस वजह से उन्होंने खुद को दूसरों से बड़ा नहीं समझा। उन्हें एहसास था कि अगर लुकाउनिया के लोग खुशखबरी स्वीकार करें, तो उन्हें भी स्वर्ग जाने की आशा मिल सकती है।
11. प्रचार के दौरान हम पौलुस की तरह नम्र कैसे हो सकते हैं?
11 इस उदाहरण से हम एक तरीके के बारे में सीखते हैं, जिससे हम दिखा सकते हैं कि हम नम्र हैं। पौलुस की तरह हम यह कभी नहीं सोचते कि प्रचार काम करने या यहोवा की मदद से दूसरे काम करने की वजह से हम खास हैं। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘मेरे प्रचार के इलाके में जो लोग रहते हैं, उनके बारे में मैं क्या सोचता हूँ? क्या मैं किसी जाति या वर्ग के लोगों से भेदभाव करता हूँ?’ यहोवा के साक्षी पूरी दुनिया में ऐसे लोगों को ढूँढ़ते हैं, जो खुशखबरी सुनना चाहते हैं। कुछ साक्षी तो उन लोगों की भाषा या उनके दस्तूर भी सीखते हैं, जिन्हें लोग नीची नज़र से देखते हैं। लेकिन साक्षी कभी यह नहीं सोचते कि वे लोगों से बेहतर हैं। इसके बजाय वे हर इंसान को समझने की कोशिश करते हैं, ताकि राज का संदेश स्वीकार करने में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों की मदद कर सकें।
नाम लेकर प्रार्थना कीजिए
12. इपफ्रास ने कैसे दिखाया कि वह दिल से लोगों की परवाह करता है?
12 एक और तरीके से हम दिखा सकते हैं कि हम नम्र हैं, वह है कि हमें अपने भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, जिन्होंने “हमारे जैसा अनमोल विश्वास पाया है।” (2 पत. 1:1) पहली सदी के एक मसीही इपफ्रास ने यही किया था। उसका ज़िक्र बाइबल में सिर्फ तीन बार आता है। जब पौलुस रोम में एक घर में नज़रबंद था, तब उसने कुलुस्से के मसीहियों को लिखे अपने खत में इपफ्रास का ज़िक्र किया। उसके बारे में पौलुस ने लिखा, “वह हमेशा तुम्हारी खातिर जी-जान से प्रार्थना करता है।” (कुलु. 4:12) इपफ्रास वहाँ के भाइयों को अच्छी तरह जानता था और उनकी दिल से परवाह करता था। पौलुस ने उसे अपना “साथी कैदी” कहा। इससे पता चलता है कि इपफ्रास खुद कई तकलीफों से गुज़र रहा था। (फिले. 23) फिर भी वह दूसरों की चिंता कर रहा था और उनकी मदद के लिए उसने कुछ किया। उसने भाई-बहनों के लिए प्रार्थना की। हम भी ऐसा कर सकते हैं। हम भाई-बहनों का नाम लेकर प्रार्थना कर सकते हैं। ऐसी प्रार्थनाओं का ज़बरदस्त असर होता है।—2 कुरिं. 1:11; याकू. 5:16.
13. आप इपफ्रास की तरह प्रार्थना कैसे कर सकते हैं?
13 सोचिए कि आप किसका नाम लेकर प्रार्थना कर सकते हैं। आप अपनी मंडली के उन लोगों या परिवारों के बारे में सोच सकते हैं, जिन्हें शायद कुछ मुश्किल फैसले करने हों या जिन पर गलत काम करने का दबाव डाला जा रहा हो या फिर जिन्हें कोई और समस्या हो। आप उन मसीहियों के लिए भी प्रार्थना कर सकते हैं, जिनके नाम jw.org वेबसाइट पर दिए गए हैं।a आप उन भाई-बहनों के लिए भी प्रार्थना कर सकते हैं, जिनके किसी अपने की मौत हो गयी है या जिन्होंने हाल ही में प्राकृतिक विपत्ति या युद्ध की मार सही है या फिर जो आर्थिक समस्याओं से गुज़र रहे हैं। जी हाँ, ऐसे बहुत-से भाई-बहन हैं, जिनके लिए हम प्रार्थना कर सकते हैं! उनके लिए प्रार्थना करके हम दिखा रहे होते हैं कि हमें सिर्फ अपने भले की नहीं, बल्कि दूसरों के भले की भी फिक्र है। (फिलि. 2:4) यहोवा ऐसी प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनता है।
“सुनने में फुर्ती” कीजिए
14. ध्यान से सुनने के मामले में यहोवा किस तरह सबसे बढ़िया उदाहरण है?
14 हम नम्र हैं, यह दिखाने का एक और तरीका है, दूसरों की ध्यान से सुनना। याकूब 1:19 में लिखा है कि हमें “सुनने में फुर्ती” करनी चाहिए। इस मामले में सबसे बढ़िया उदाहरण यहोवा का है। (उत्प. 18:32; यहो. 10:14) ज़रा निर्गमन 32:11-14 में दर्ज़ यहोवा और मूसा की बातचीत पर गौर कीजिए। (पढ़िए।) हालाँकि यहोवा को मूसा की राय जानने की ज़रूरत नहीं थी, फिर भी उसने मूसा को अपनी बात कहने दी। क्या आप ऐसे इंसान की ध्यान से सुनेंगे और उसकी बात मानेंगे, जिसकी सोच पहले सही नहीं थी? मगर यहोवा ने मूसा की सुनी। वह सभी इंसानों की ध्यान से सुनता है और उनके साथ सब्र से पेश आता है, जो पूरे विश्वास से उससे प्रार्थना करते हैं।
15. हम यहोवा की तरह दूसरों का आदर कैसे कर सकते हैं?
15 खुद से पूछिए, ‘अगर यहोवा इतना नम्र है कि वह अब्राहम, राहेल, मूसा, यहोशू, मानोह, एलियाह और हिजकियाह जैसे लोगों की सुनता है, तो क्या मुझे भी ऐसा नहीं करना चाहिए? अपने सभी भाइयों के सुझाव सुनकर, यहाँ तक कि उनके अच्छे सुझाव मानकर क्या मैं उनका और भी आदर कर सकता हूँ? क्या मंडली में या परिवार में ऐसा कोई है, जिस पर मुझे और भी ध्यान देना है? इस मामले में मैंने क्या करने की सोची है?’—उत्प. 30:6; न्यायि. 13:9; 1 राजा 17:22; 2 इति. 30:20.
“क्या पता यहोवा मेरा दुख देखे”
16. जब शिमी ने राजा दाविद का अपमान किया, तो दाविद ने क्या किया?
16 नम्र रहने से एक और फायदा होता है। हम उस वक्त संयम रख पाते हैं, जब दूसरे हमसे बुरा व्यवहार करते हैं। (इफि. 4:2) इस मामले में 2 शमूएल 16:5-13 में एक अच्छा उदाहरण दिया गया है। (पढ़िए।) राजा शाऊल के एक रिश्तेदार शिमी ने दाविद और उसके आदमियों का अपमान किया और उन पर पत्थर फेंके। दाविद चाहता तो उसे रोक सकता था, फिर भी उसने सब्र से काम लिया और अपमान सह लिया। ऐसे हालात में दाविद संयम कैसे रख पाया? इसका जवाब हमें तीसरे भजन की जाँच करने से मिल सकता है।
17. (क) दाविद किस वजह से संयम रख पाया? (ख) हम दाविद की तरह संयम कैसे रख सकते हैं?
17 दाविद ने तीसरा भजन तब रचा, जब उसका बेटा अबशालोम उसे मारने की कोशिश कर रहा था। इसी दौरान शिमी ने उसका अपमान किया और उस पर पत्थर फेंके। लेकिन दाविद शांत रहा। किस बात ने उसकी मदद की? भजन 3:4 में दाविद ने लिखा, “मैं ज़ोर-ज़ोर से यहोवा को पुकारूँगा और वह अपने पवित्र पहाड़ से मुझे जवाब देगा।” अगर कभी हमारे साथ बुरा व्यवहार किया जाए, तो हमें भी दाविद की तरह प्रार्थना करनी चाहिए। यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्ति देगा, ताकि हम संयम रख सकें। सोचिए कि आपके सामने ऐसे कौन-से हालात आते हैं, जिनमें आप संयम रख सकते हैं और दूसरों को माफ कर सकते हैं। क्या आपको यकीन है कि यहोवा आपकी तकलीफ समझता है, वह आपकी मदद करेगा और आपको आशीष देगा?
‘बुद्धि सबसे ज़रूरी है’
18. परमेश्वर की बातें मानने से हमें कैसे फायदा होगा?
18 सही काम करने से हम बुद्धिमान बनते हैं और हमें यहोवा से आशीष मिलती है। नीतिवचन 4:7 में लिखा है, ‘बुद्धि सबसे ज़रूरी है।’ हालाँकि बुद्धि ज्ञान पर आधारित है, लेकिन बुद्धि से काम लेने का मतलब सिर्फ जानकारी समझना नहीं है। इसमें फैसला लेना भी शामिल है। चींटियाँ भी बुद्धिमानी से काम करती हैं। वे गरमियों में अपना खाना बटोरकर साबित करती हैं कि उनमें सहज बुद्धि है। (नीति. 30:24, 25) मसीह, जिसे “परमेश्वर की बुद्धि” कहा गया है, हमेशा वही करता है, जिससे उसका पिता खुश होता है। (1 कुरिं. 1:24; यूह. 8:29) जब हम नम्र रहते हैं और बुद्धि से काम लेकर वह करते हैं, जो सही है, तो यहोवा हमें आशीष देता है। (मत्ती 7:21-23 पढ़िए।) इस वजह से आइए हम मंडली में ऐसा माहौल बनाएँ, ताकि हर कोई यहोवा की सेवा नम्रता से कर सके। जो सही है, उसे करने में वक्त लगता है और सब्र से काम लेना पड़ता है। लेकिन ऐसा करने से नम्रता झलकती है और इससे हम आज ही नहीं, बल्कि हमेशा खुश रहेंगे।
a इनके नाम अँग्रेज़ी वेबसाइट पर “न्यूज़रूम” > “लीगल डेवलपमेंट्स” भाग में “जेहोवाज़ विटनेसेज़ इमप्रिज़न्ड फॉर देयर फेथ” नाम के लेख में पाए जा सकते हैं।