कार्य जो आपको खुश कर सकता है
“एक मुद्रक के रूप में मैं सचमुच अपना काम पसन्द करता था,” जेनोआ, इट्ली, के रहनेवाले ॲन्टोनियो का कहना है। “मुझे अच्छा वेतन मिलता था, जिसके कारण मैं कई घण्टे ज़्यादा ओवरटाइम काम करता था। मेरी जवानी के बावजूद, कुछ ही वर्षों में मैं अपने मालिकों का दायाँ बाज़ू बन गया।” ऐसा प्रतीत होता है कि ॲन्टोनियो उन तमाम लक्ष्यों को पा गया था, जिन से अनेक लोग परिश्रम करने के लिए उकसाए जाते हैं: धन, प्रतिष्ठा और एक दिलचस्प नौकरी जिस में वह खुश था।
क्या ॲन्टोनियो ‘अपने सारे परिश्रम के लिए अच्छाई देख’ रहा था? (सभोपदेशक ३:१३; न्यू.व.) और क्या ऐसा कार्य उसे सचमुच खुश कर रहा था? वह आगे कहता है, “हमारी इस उन्मत्त जीवन-शैली से उत्पन्न होनेवाले तनाव के कारण हमारे बीच पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न हो गईं। इस ने हमें दुःखी कर दिया।” अपनी अपनी परितुष्ट करनेवाली नौकरी के बावजूद, ना ॲन्टोनियो और ना ही उसकी पत्नी खुश थे। आपके बारे में क्या? क्या आप ‘अपने सारे परिश्रम के लिए अच्छाई देख रहे हैं’? क्या आपका कार्य सचमुच आपको खुश कर रहा है?
ठोस प्रेरणा?
जीविका कमाना परिश्रम करने का एक मुख्य कारण है। कुछ देशों में, सिर्फ़ गुज़र करने के लिए ही लोगों को ज़्यादा घण्टे कार्य करना पड़ता है। कुछ लोग दिन-रात गुलामों की तरह मेहनत करते हैं ताकि उनके बच्चों को बेहतर ज़िन्दगी मिल सके। और भी अन्य लोग धन संचय करने हेतु बाध्यकारी रूप से कार्य करते हैं।
फिलिप्पीन्स की लियोनीडा की दो नौकरियाँ थीं। दिन में वह एक बैंक में काम करती थीं और शाम को तीन-चार घण्टे कालेज में पढ़ाती थीं। क्या ज़्यादा पैसों से कोई लाभ हुआ? वह बताती है, “मैं हमेशा घड़ी देखती रहती थी। मैं ऊब गयी थी। मैं वह सब बिना सन्तोष के कर रही थी।”
नहीं, केवल धन के लिए किए गए कार्य से कभी सच्चा सन्तोष और खुशी नहीं मिलती। बुद्धिमान राजा सुलैमान सलाह देते हैं, “धनी होने के लिए परिश्रम न करना, क्योंकि वह उकाब पक्षी की नाईं निःसन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है।” (नीतिवचन २३:४, ५) रिपोर्ट किया गया है कि कुछ उकाब ८० मील प्रति घण्टे तक की गति से उड़ते हैं। यह भली-भाँति दर्शाता है कि परिश्रम से कमाया हुआ धन कितनी तेज़ी से उड़ सकता है। यदि कोई व्यक्ति धन संचय कर भी ले, तो भी, जब वह मर जाता है, तब अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता।—सभोपदेशक ५:१५; लूका १२:१३-२१.
जीविका बनाने के कार्य में मशग़ूल होना कभी कभी भारी ख़तरे में डाल सकता है। यह धन के लोभ की ओर ले जा सकता है। प्रथम शताब्दी में, धर्मोत्साहियों का एक समूह था जो फरीसी कहलाते थे, और जो उनके धन के प्रति लगाव के लिए प्रसिद्ध थे। (लूका १६:१४) भूतपूर्व फरीसी होने के नाते, मसीही प्रेरित पौलुस उनकी जीवन शैली से पूरी तरह अवगत था। (फिलिप्पियों ३:५) “जो धनी होना चाहते हैं,” पौलुस चेतावनी देते हैं, “वे ऐसी परिक्षा और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में पड़ते हैं जो मनुष्य को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डुबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का यत्न करते हुए कितनों ने . . . अपने आप को नाना प्रकार के दुःखों से छलनी बना लिया है।” (१ तीमुथियुस ६:९, १०) जी हाँ, सब कुछ “रुपये के लोभ” के लिए करना, किसी के जीवन को तबाह कर सकता है। ऐसा रास्ता अपनाने से खुशी कभी नहीं मिलती।
कुछों के लिए, प्रयास करने में उनका उद्देश्य अपने काम में तरक़्क़ी पाना है। तौभी, अन्ततः वे एक सच्चाई का सामना करते हैं। फॉरच्यून पत्रिका कहती है, “विश्व युद्ध II के फ़ौरन बाद बच्चे पैदा करके आबादी बढ़ानेवाले लोग, जिन्होंने नीति बनानेवाले प्रबंधक तथा परिचालन-पर्यवेक्षकों के बीच के मध्यवर्ती प्रशासन कर्मचारी वर्ग तक पहुँचने के लिए, अपने बीस से तैंतीस वर्ष तक की उम्र में अनेक त्याग किए, उन्हें यह अप्रिय किन्तु अवश्यभावी अनुभूति होती है कि, बहुत सारे परिश्रम के बावजूद भी, हर कोई शिखर पर नहीं पहुँचेगा। परिश्रम की वजह से लड़खड़ाते हुए, वे यह पूछने के लिए प्रवृत्त होते हैं कि इस सब का मतलब क्या है। क्यों इतना संघर्ष करें? कौन परवाह करता है?”
ऐसे ही एक आदमी, मीज़ूमोरी, का जीवन संसार में तरक़्क़ी करने पर केन्द्रित था। जापान के एक सबसे बड़े बैंक में, प्रबंधक वर्ग में तरक़्क़ी पाने के अपने पेशे को आगे बढ़ाते बढ़ाते, उसके पास अपने परिवार के लिए भी समय न था। तीस वर्ष तक परिश्रम करने के पश्चात्, उसका स्वास्थ्य नष्ट हो गया था, और वह खुश तो बेशक न था। वह कहता है: “मुझे पता चल गया कि प्रसिद्धि प्राप्त करने की कोशिश करनेवाले लोगों के बीच पदों के लिए प्रतिस्पर्धा, ‘व्यर्थ और वायु के पीछे भागना है।’”—सभोपदेशक ४:४; न्यू.व.
परन्तु ॲन्टोनियो जैसे लोगों के बारे में क्या, जो अपने कार्य से खुशी प्राप्त करते हैं? अपने कार्य से सम्मोहित होकर, ॲन्टोनियो ने कार्य की वेदी पर अपने पारिवारिक जीवन को क़ुर्बान कर दिया। दूसरे लोग अपने स्वास्थ्य और जीवन की बलि भी चढ़ा देते हैं, जैसा कि कई प्रमुख एवं अत्यधिक मेहनत के कारण थके हुए जापानी प्रशासकों की अचानक मृत्यु से सूचित है। उनके शोक-सन्तप्त परिवारों को सांत्वना देने हेतु एक सेवा कार्यालय को आश्चर्यजनक रूप से एक ही दिन में १३५ टेलीफोन कॉल प्राप्त हुए।
कुछ लोग अपना जीवन दूसरों की मदद करने के लिए अर्पित करते हैं। यीशु ने इस मनोवृत्ति को प्रोत्साहन दिया। (मत्ती ७:१२; यूहन्ना १५:१३) दूसरों की मदद करने के महत्त्वपूर्ण कार्य में व्यस्त रहना सचमुच ही खुशी लाता है।—नीतिवचन ११:२५.
लेकिन, ऐसे उच्च विचार से किया अध्यवसाय भी फन्दों से मुक्त नहीं है। उदाहरण के लिए, यहूदिया का राजा उज़्ज़ियाह बीहड़ में हौद खुदवाने के विशाल नागर-कार्य में जुट गया था। उज़्ज़ियाह के मन में निश्चय ही अपने लोगों के ही लाभ की बात रही होगी, क्योंकि वह उस समय “यहोवा की खोज में लगा” था और प्रत्यक्ष रूप से उसने इस ईश्वरीय आज्ञा का पालन किया कि राजा निस्स्वार्थ रहें। (२ इतिहास २६:५, १०; व्यवस्थाविवरण १७:१४-२०) इस से उसकी सैन्य कामयाबी बढ़ी और “उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गयी।” परन्तु शक्तिशाली होने के बाद वह घमण्डी बन गया जिसके परिणामस्वरूप उसका पतन हो गया। (२ इतिहास २६:१५-२०; नीतिवचन १६:१८) ऐसा व्यक्ति जो दूसरों की मदद के लिए समर्पित हो, किन्तु जो आत्म-तृप्ति और गर्व से प्रेरित हो, उसका भी पतन हो सकता है। तो फिर, क्यों किसी को परिश्रम करना चाहना चाहिए?
मनुष्य को कार्य करने के लिए बनाया गया
कार्य के बारे में हम एक ऐसे मनुष्य से बहुत कुछ सीख सकते हैं, जिन्होंने इस पृथ्वी पर किसी भी मनुष्य की अपेक्षा ज़्यादा अच्छा कार्य किया। यह यीशु मसीह हैं। (मत्ती २०:२८; यूहन्ना २१:२५) जब वह यातना खंभे पर मरे, तो वह बोल उठे: “पूरा हुआ!” (यूहन्ना १९:३०) उनका ३३ १/२ वर्ष का जीवन परितोषक रहा था।
यीशु का जीवन इस प्रश्न का उत्तर पाने में मदद करता है, “कैसा कार्य आपको खुश कर सकता है?” उनके स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करने से ही उन्हें अतुलनीय खुशी मिली। इसके समान ही, हमारे सृष्टिकर्ता के इच्छानुसार करना हमें उपलब्धि का अहसास दे सकता और हमें खुश कर सकता है। क्यों? क्योंकि वह हमारी बनावट और आवश्यकताओं को हम से अधिक जानते हैं।
जब परमेश्वर ने प्रथम मनुष्य, आदम को बनाया, उन्होंने उसे दोनों, शारीरिक और मानसिक कार्य करने को दिया। (उत्पत्ति २:१५, १९) चूँकि पृथ्वी की बाक़ी तमाम सृष्टि उसके ‘अधीन’ थी, आदम को प्रबन्धक का कार्य भी करना था। (उत्पत्ति १:२८) जब तक आदम इस व्यवस्था से जुड़ा रहा, उसका कार्य अर्थपूर्ण और उचित बना रहा। प्रत्येक छोटे नियतकार्य का अर्थ सर्वोच्च को प्रसन्न करने का एक और सुअवसर होता था।
लेकिन, आदम के मामले में स्थिति यूँ ही नहीं बनी रही। उसने परमेश्वर के प्रबन्ध से अलग होने का निर्णय लिया। अब आदम परमेश्वर के इच्छानुसार करने में खुश न था परन्तु वह अपनी इच्छानुसार करना चाहता था। उसने सृष्टिकर्ता के विरुद्ध पाप किया। उसके निर्णय के परिणामस्वरूप, आदम और उसकी पत्नी और उनकी सारी सन्तानें “व्यर्थता के अधीन” कर दिए गए। (रोमियों ५:१२; ८:२०) खुशी लाने के बजाय, कार्य अब कड़ी मज़दूरी बन गयी। परमेश्वर द्वारा आदम को दिए दण्ड में ये शब्द शामिल थे: “भूमि तेरे कारण शापित है। तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा। और वह तेरे लिए काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा। और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१७-१९) जिस कार्य को इसलिए गौरवपूर्ण होना चाहिए था कि इसका परम लक्ष्य मनुष्य के सृष्टिकर्ता को प्रसन्न करना था, अब यह सिर्फ़ अपनी रोटी कमाने के लिए कष्टकर परिश्रम का अर्थ रखने लगा।
इन तथ्यों से हम किस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं? यह: कि परिश्रम से दीर्घकालिक सन्तोष और खुशी केवल तभी प्राप्त हो सकती है जब हम अपने जीवन को ईश्वरीय इच्छा पूरी करने पर केन्द्रित करते हैं।
परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में ‘अच्छाई देखें’
परमेश्वर के इच्छानुसार करना यीशु के लिए मानो भोजन था—यह एक ऐसी बात थी जिससे आनन्द उठाया जा सकता था और जिससे उसका आध्यात्मिक जीवन पुष्ट हो सकता था। (यूहन्ना ४:३४) आप अपने कार्य से इस तरह का आनन्द कैसे उठा सकते हैं?
आपको मालूम करना चाहिए कि आपके लिए “यहोवा की इच्छा” क्या है। (इफिसियों ५:१७) उनकी इच्छा है कि मानवजाति को फिर से “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतन्त्रता प्राप्त” हो जाए। (रोमियों ८:२१; २ पतरस ३:९) अब इसे पूरा करने के लिए दुनिया भर में एकत्र करने का कार्य चल रहा है। आप भी इस अति सन्तोषजनक कार्य में भाग ले सकते हैं। ऐसा कार्य निश्चित रूप से आपको खुश करेगा।
ॲन्टोनिया ने, जिसका ज़िक्र शुरू में किया गया है, बाद में सन्तोष और खुशी पायी। जब उसने और उसकी पत्नी ने अपनी अपनी “निरर्थक” लौकिक नौकरियों को पहले स्थान पर रखा और उन में रम गए थे, तब उनके आध्यात्मिक जीवन को बुरी तरह से क्षति पहुँच गयी। उस समय से ही उनकी घरेलू समस्याएँ शुरू हुई थीं। स्थिति को पहचान कर उसकी पत्नी ने नौकरी छोड़ दी और वह पूरा समय परमेश्वर के राज्य के प्रचार कार्य में “यत्न करने” लगीं।—लूका १३:२४.
ॲन्टोनियो कहता है, “फ़ौरन ही, हमने एक बड़ा परिवर्तन ग़ौर किया। लगातार होनेवाले लड़ाई-झगड़े बन्द हो गए। हमारे परिवार में शान्ति लौट आयी।” उसकी पत्नी ने दूसरों को वह ज्ञान, जिसका अर्थ “अनन्त जीवन” है, हासिल करने की मदद करने का आनन्द प्राप्त किया। (यूहन्ना १७:३) उसकी खुशी देखकर ॲन्टोनियो यह पुनः मूल्यांकन करने तक प्रेरित हुआ कि कौनसी बातें सचमुच उचित हैं। परमेश्वर की तन-मन से सेवा करने की उसकी इच्छा की जीत हुई। उसने पदोन्नति का एक प्रस्ताव ठुकराकर अपनी लौकिक नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। हालाँकि परिवर्तन का मतलब यह हुआ कि उसे एक अधिक दीन-हीन काम करना पड़ा, फिर भी दोनों, ॲन्टोनियो और उसकी पत्नी, परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हुए, अपना अधिकांश समय मसीही सेवकाई में बिताकर खुश हैं।
निश्चय ही, सभी इस स्थिति में नहीं हैं कि ऐसा बड़ा परिवर्तन कर सकें। मीज़ूमोरी, वह जापानी बैंकर जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, एक मसीही मण्डली में प्राचीन के रूप से अपनी सेवकाई का आनन्द उठा रहा है और अब भी अपनी लौकिक नौकरी के ज़रिए, जहाँ वह प्रबंधकीय पद पर है, अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। अब लौकिक रूप से नौकरी करना भी अर्थपूर्ण है।
जब आप अपनी नौकरी के प्रति ऐसा दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो आप निःसंदेह प्रयत्न करेंगे, “मनुष्यों को प्रसन्न करनेवालों की नाईं दिखाने के लिए नहीं, परन्तु मन की सीधाई से और यहोवा के भय से।” (कुलुस्सियों ३:२२) इस प्रतिस्पर्धात्मक समाज में ऐसी निष्कपटता शायद ज़्यादा देर तक चलने वाली प्रतीत नहीं होती, परन्तु, जैसा कि मीज़ूमोरी स्वीकार करता है, ऐसे सिद्धान्तों पर अमल करने से, आप पर भरोसा और आपका सम्मान किया जाएगा। यद्यपि उसने पदोन्नति के लिए काम करना छोड़ दिया, यह उसे आप ही आप मिलने लगी।—नीतिवचन २२:२९.
जी हाँ, परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के इर्द-गिर्द अपना जीवन केन्द्रित करना ही परिश्रम में खुशी प्राप्त करने की कुंजी है। इसीलिए, बुद्धिमान राजा सुलैमान इस निष्कर्ष पर पहुँचा: “मनुष्यों के लिए आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय कुछ अच्छा नहीं। और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए पीए और अपने सब परिश्रम के लिए अच्छाई देखे।”—सभोपदेशक ३:१२, १३; न्यू.व.
[पेज 7 पर तसवीरें]
अपना पारिवारिक जीवन बाइबल अध्ययन और परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के इर्द-गिर्द केन्द्रित करना ही परिश्रम के फलों का आनन्द उठाने की कुंजी है