यीशु का जीवन और सेवकाई
यीशु आश्चर्यजनक रूप से हज़ारों को खिलाते हैं
बारह प्रेरितों ने सम्पूर्ण गलील में एक विशिष्ट प्रचार यात्रा का आनन्द लिया है। अब, यूहन्ना के प्राणदण्ड के कुछ ही समय बाद, वे यीशु के पास वापस आते हैं और अपने विलक्षण अनुभव बताते हैं। यह देखते हुए कि वे थके हुए हैं और कि इतने अधिक लोग आ-जा रहे हैं कि उन्हें भोजन करने का समय तक नहीं है, यीशु कहते हैं: ‘हम आप अलग किसी एकाकी स्थान में चले जाएँ जहाँ तुम थोड़ा विश्राम कर सको।’
संभवतः कफरनहूम के पास, अपनी नाव पर चढ़कर, वे एक सुनसान जगह की ओर जाते हैं, प्रत्यक्षतः यरदन के पूर्व बेतसैदा के आगे। तथापि, बहुत से लोग उन्हें जाते हुए देख लेते हैं, और अन्य लोग इसके बारे जान जाते हैं। ये सभी तट के किनारे किनारे आगे भागते हैं, और जब नाव किनारे के पास रुकती है, वे वहाँ उनसे मिलने के लिए मौजूद होते हैं।
नाव से उतरकर बड़ी भीड़ को देखकर, यीशु उन पर तरस खाते हैं, क्योंकि ये लोग उन भेड़ों के समान हैं जिनका कोई चरवाहा न हो। अतः वह उनके बीमारों को चंगा करते हैं और उन्हें बहुत सी बातें सिखाना शुरू करते हैं।
समय शीघ्र ही बीत जाता है, और यीशु के शिष्य उसके पास आते हैं और कहते हैं: “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिए कुछ खाने को मोल लें।”
तथापि, यीशु उत्तर देते हैं: “तुम ही उन्हें खाने को दो।” तब, चूँकि यीशु पहले से ही जानते थे कि वह क्या करने वाले हैं, उन्होंने फिलिप्पुस से यह पूछकर उसकी परीक्षा ली: “हम इनके भोजन के लिए कहाँ से रोटी मोल लाएँ?”
फिलिप्पुस के दृष्टिकोण से परिस्थिति कठिन है। अजी, क़रीब ५,००० पुरुष हैं, और स्त्रियों तथा बच्चों को भी गिनकर १०,००० से अधिक लोग हैं! “दो सौ दीनार [उस समय एक दीनार एक दिन की मज़दूरी थी] की रोटी उनके लिए पूरी भी न होगी कि उन में से हर एक को थोड़ी थोड़ी मिल जाए,” फिलिप्पुस उत्तर देता है।
इतने अधिक लोगों को भोजन खिलाने की असंभवता को दिखाने के लिए ही शायद, अन्द्रियास बिना पूछे बताता है: “यहाँ एक लड़का है जिसके पास जव की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं,” फिर आगे कहता है: “परन्तु इतने लोगों के लिए वे क्या हैं?”
चूँकि यह बसन्त ऋतु है, सामान्य युग ३२ के फसह के कुछ ही समय पहले, वहाँ हरी घास बहुत अधिक है। अतः यीशु अपने शिष्यों से कहते हैं कि लोगों को ५० और १०० के समूहों में घास पर बैठने के लिए कहें। वह पाँच रोटियों और दो मछलियों को लेते हैं, स्वर्ग की ओर देखते हैं, और आशिष के लिए प्रार्थना करते हैं। तब वह रोटियों को तोड़ना और मछलियों को भाग करना शुरू करते हैं। इन्हें वह अपने शिष्यों को देते हैं, जो कि पारी से, उन्हें लोगों में बाँट देते हैं। आश्चर्यजनक रूप से, सभी लोग पेट भरकर खाते हैं!
बाद में यीशु अपने शिष्यों से कहते हैं: “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।” जब वे ऐसा करते हैं, तब जो कुछ उन्होंने खाया, उस में से बचे हुए टुकड़ों से १२ टोकरियाँ भर लेते हैं! मत्ती १४:१३-२१; मरकुस ६:३०-४४; लूका ९:१०-१७; यूहन्ना ६:१-१३.
◆ यीशु अपने प्रेरितों के लिए एक सुनसान जगह क्यों ढूँढ़ते हैं?
◆ यीशु अपने शिष्यों को कहाँ ले जाते हैं, और क्यों उनकी विश्राम करने की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती है?
◆ जब देर हो जाती है, शिष्य किस बात का आग्रह करते हैं, पर यीशु किस तरह लोगों की देखभाल करते हैं?