बाहरी रूप देखकर राय कायम मत कीजिए
“जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय मत करो, बल्कि सच्चाई से न्याय करो।”—यूह. 7:24.
1. (क) यशायाह ने यीशु के बारे में क्या भविष्यवाणी की? (ख) इससे हमें दिलासा क्यों मिलता है?
यशायाह ने यीशु मसीह के बारे में भविष्यवाणी की, “वह मुँह देखा न्याय नहीं करेगा और न सुनी-सुनायी बातों के आधार पर डाँट लगाएगा।” वह “सच्चाई से गरीबों का न्याय करेगा।” इस भविष्यवाणी से हमें कितना दिलासा मिलता है! (यशा. 11:3, 4) आज जहाँ देखो, वहाँ लोग एक-दूसरे के साथ पक्षपात या भेदभाव करते हैं। वे लोगों का बाहरी रूप देखकर राय कायम करते हैं। हमें ऐसे वक्त का बेसब्री से इंतज़ार है, जब परिपूर्ण न्यायी यीशु मसीह इस धरती पर न्याय करेगा। वह लोगों का मुँह देखा न्याय नहीं करेगा।
2. (क) यीशु ने क्या आज्ञा दी? (ख) इस लेख में हम किन बातों पर चर्चा करेंगे?
2 हर दिन हम लोगों के बारे में कोई-न-कोई राय कायम करते हैं। लेकिन हमारी राय गलत भी हो सकती है, क्योंकि हम यीशु की तरह परिपूर्ण नहीं हैं। अकसर हम लोगों की शक्ल-सूरत देखकर राय कायम कर लेते हैं। इस वजह से यीशु ने आज्ञा दी, “जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय मत करो, बल्कि सच्चाई से न्याय करो।” (यूह. 7:24) यीशु चाहता है कि हम उसकी तरह बनें और लोगों का बाहरी रूप देखकर कोई राय कायम न करें। इस लेख में हम ऐसी तीन बातों पर चर्चा करेंगे, जिनकी वजह से हम गलत राय कायम कर सकते हैं, (1) लोगों की जाति या राष्ट्र, (2) उनकी हैसियत और (3) उनकी उम्र। हर बात पर चर्चा करते वक्त हम यह भी देखेंगे कि हम यूहन्ना 7:24 में दी यीशु की आज्ञा कैसे मान सकते हैं।
जाति या राष्ट्र देखकर राय कायम न करें
3, 4. (क) पतरस ने अपनी सोच किन घटनाओं की वजह से बदली? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) यहोवा ने पतरस को कौन-सी नयी समझ दी?
3 जब प्रेषित पतरस को कैसरिया में एक गैर-यहूदी कुरनेलियुस के घर जाने के लिए कहा गया, तो सोचिए कि उसे कैसा लगा होगा। (प्रेषि. 10:17-29) बचपन से ही उसे सिखाया गया था कि गैर-यहूदी अशुद्ध लोग हैं। लेकिन फिर कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं, जिनसे पतरस की सोच पूरी तरह बदल गयी। जैसे, एक बार परमेश्वर ने उसे एक दर्शन दिखाया। (प्रेषि. 10:9-16) उसने देखा कि आकाश से एक चादर जैसा कुछ नीचे आ रहा है और उसमें ऐसे जानवर हैं, जिन्हें अशुद्ध माना जाता है। फिर उसे एक आवाज़ सुनायी दी, “पतरस उठ, इन्हें काटकर खा!” पतरस ने साफ मना कर दिया। मगर उससे कहा गया, “तू अब से उन चीज़ों को दूषित मत कहना जिन्हें परमेश्वर ने शुद्ध किया है।” दर्शन देखने के बाद पतरस को समझ में नहीं आया कि उसने जो सुना, उसका क्या मतलब है। तभी कुरनेलियुस के दूत उसके पास आए। फिर पवित्र शक्ति ने उसे निर्देश दिया कि वह कुरनेलियुस के घर जाए। तब पतरस उन दूतों के साथ चला गया।
4 अगर पतरस “जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय” करता, तो वह कुरनेलियुस के घर कभी नहीं जाता। उस ज़माने में यहूदी गैर-यहूदियों के घर में कभी कदम नहीं रखते थे। फिर पतरस क्यों गया? हालाँकि वह भी गैर-यहूदियों से भेदभाव करता था, मगर उसने जो दर्शन देखा और पवित्र शक्ति ने जो निर्देश दिया, उसकी वजह से उसने अपनी सोच बदली। कुरनेलियुस की बात सुनने के बाद पतरस ने कहा, “अब मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ कि परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर वह इंसान जो उसका डर मानता है और सही काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, उसे वह स्वीकार करता है।” (प्रेषि. 10:34, 35) यह नयी समझ पाकर पतरस रोमांचित हो उठा। इस समझ का असर सभी मसीहियों पर होता। वह कैसे?
5. (क) यहोवा सभी मसीहियों को क्या समझाना चाहता है? (ख) सच्चाई जानने के बाद भी हममें कौन-सी भावना हो सकती है?
5 यहोवा पतरस के उदाहरण से सभी मसीहियों को समझाना चाहता है कि वह भेदभाव नहीं करता। उसके लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि हम किस जाति या राष्ट्र के हैं या कौन-सी भाषा बोलते हैं। अगर हम उसका डर मानें और सही काम करें, तो वह हमें स्वीकार करेगा। (गला. 3:26-28; प्रका. 7:9, 10) शायद यह सच्चाई आप जानते हैं। लेकिन अगर आप ऐसे देश या परिवार में पले-बढ़े हैं, जिसमें लोगों से भेदभाव करना आम है, तो क्या हो सकता है? भले ही आपको लगे कि अब आप भेदभाव नहीं करते, फिर भी हो सकता है कि आपके अंदर से यह भावना पूरी तरह न निकली हो। हालाँकि पतरस ने दूसरे मसीहियों को यह समझने में मदद दी कि परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, मगर बाद में उसने खुद भेदभाव किया। (गला. 2:11-14) अगर हमारे अंदर अब भी कहीं भेदभाव जड़ पकड़े हुए है, तो हम क्या कर सकते हैं? हम यीशु की यह आज्ञा कैसे मान सकते हैं कि लोगों का बाहरी रूप देखकर राय कायम न करें?
6. (क) हम अपने अंदर से भेदभाव निकालने के लिए क्या कर सकते हैं? (ख) एक प्राचीन की रिपोर्ट से उसके बारे में क्या पता चला?
6 हमें परमेश्वर के वचन की मदद से खुद की जाँच करनी चाहिए कि कहीं हम अब भी भेदभाव तो नहीं करते। (भज. 119:105) हम इस बारे में किसी भरोसेमंद दोस्त से भी पूछ सकते हैं, क्योंकि कई बार हम अपने अंदर यह कमी नहीं देख पाते। (गला. 2:11, 14) हो सकता है कि यह भावना हममें इस कदर जड़ पकड़े हो कि हमें इसका एहसास ही न हो। एक प्राचीन के साथ ऐसा ही हुआ। उसने एक ऐसे मसीही पति-पत्नी के बारे में रिपोर्ट लिखी, जो पूरे समय की सेवा कर रहे थे और बहुत मेहनती थे। पति उस राष्ट्र से था, जिसे बहुत-से लोग नीचा समझते थे। उस प्राचीन ने भाई के बारे में बहुत-सी अच्छी बातें लिखीं। उसने यह भी लिखा कि हालाँकि वह उस राष्ट्र से है, जिसके लोग आम तौर पर गंदे रहते हैं और रहन-सहन भी निचले स्तर का होता है, फिर भी उसके व्यवहार और जीने के तरीके से पता चलता है कि उस राष्ट्र का हर व्यक्ति ऐसा नहीं होता। इससे हम क्या सीखते हैं? यहोवा के संगठन में हम चाहे जितनी भी बड़ी ज़िम्मेदारी निभाते हों, हमें नम्र रहना चाहिए और दूसरों से पूछना चाहिए कि कहीं हम अब भी भेदभाव तो नहीं करते। भेदभाव मिटाने के लिए हम और कौन-से कदम उठा सकते हैं?
7. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमने “अपने दिलों को बड़ा किया है”?
7 हमें “अपने दिलों को बड़ा” करना चाहिए। तभी हम भाइयों से भेदभाव करने के बजाय उनसे प्यार कर पाएँगे। (2 कुरिं. 6:11-13) क्या आपको सिर्फ अपनी जाति, राष्ट्र या भाषा बोलनेवाले लोगों के साथ उठना-बैठना अच्छा लगता है? अगर ऐसा है, तो दूसरे लोगों के साथ भी वक्त बिताने की कोशिश कीजिए। अलग-अलग संस्कृति के भाई-बहनों के साथ प्रचार करने जाइए। आप उन्हें अपने घर खाने पर बुला सकते हैं या फिर जब आप भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होते हैं, तो उन्हें भी शामिल कर सकते हैं। (प्रेषि. 16:14, 15) इस तरह आपके दिल में उनके लिए इतना प्यार भर जाएगा कि भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी। अब आइए हम एक और बात पर चर्चा करें, जिसकी वजह से हम गलत राय कायम कर सकते हैं।
अमीरी या गरीबी देखकर राय कायम न करें
8. लैव्यव्यवस्था 19:15 से हम क्या सीखते हैं?
8 एक व्यक्ति अमीर है या गरीब, इससे भी उसके बारे में हमारे नज़रिए पर असर हो सकता है। लैव्यव्यवस्था 19:15 में लिखा है, “तुम . . . न किसी गरीब की तरफदारी करना और न ही किसी अमीर का पक्ष लेना। तुम अपने संगी-साथी का न्याय सच्चाई से करना।”
9. सुलैमान ने कौन-सा कड़वा सच लिखा और इससे हम क्या सीखते हैं?
9 एक व्यक्ति अमीर है या गरीब, इस बात का उसके साथ हमारे व्यवहार पर कैसा असर पड़ सकता है? इस बारे में सुलैमान ने एक कड़वा सच बताया। उसने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा, “गरीब से उसके अपने भी नफरत करते हैं, लेकिन अमीर के कई दोस्त होते हैं।” (नीति. 14:20) इस नीतिवचन से हम सीखते हैं कि अगर हम खुद पर ध्यान न दें, तो हम भाई-बहनों की हैसियत देखकर दोस्ती करने लग सकते हैं। शायद हम अमीर भाई-बहनों से दोस्ती तो करें, लेकिन गरीब भाई-बहनों से दूर-दूर रहें। ऐसा करने के क्या अंजाम हो सकते हैं?
10. याकूब ने मसीहियों के बीच उठी किस समस्या के बारे में बताया?
10 अगर हम भाई-बहनों की हैसियत देखकर उनके साथ व्यवहार करें, तो इससे मंडली में फूट पड़ सकती है। पहली सदी की मंडलियों में कुछ ऐसा ही होने लगा था। इस वजह से याकूब ने मसीहियों को इस बारे में कुछ सलाह दी। (याकूब 2:1-4 पढ़िए।) हमें मंडली की एकता भंग नहीं करनी चाहिए। हम ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि हम लोगों की हैसियत देखकर उनके बारे में राय कायम न करें?
11. एक व्यक्ति अमीर है या गरीब, क्या इससे परमेश्वर के साथ उसके रिश्ते पर कोई फर्क पड़ता है? समझाइए।
11 हमें भाई-बहनों को उसी नज़र से देखना चाहिए, जिस नज़र से यहोवा देखता है। यहोवा की नज़र में कोई व्यक्ति इस वजह से अनमोल नहीं ठहरता कि वह अमीर है या गरीब, न ही यहोवा के साथ उसका रिश्ता इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास कितना पैसा या कितनी चीज़ें हैं। यह सच है कि यीशु ने कहा था कि “एक अमीर आदमी के लिए स्वर्ग के राज में दाखिल होना बहुत मुश्किल होगा,” मगर उसने यह नहीं कहा कि यह नामुमकिन होगा। (मत्ती 19:23) यीशु ने यह भी कहा, “सुखी हो तुम जो गरीब हो क्योंकि परमेश्वर का राज तुम्हारा है।” (लूका 6:20) लेकिन उसके कहने का यह मतलब नहीं था कि सभी गरीब लोग उसकी बात सुनेंगे और खास तौर पर उन्हीं को आशीषें मिलेंगी। बहुत-से गरीब लोग यीशु के चेले नहीं बने। इन सारी बातों से पता चलता है कि एक व्यक्ति अमीर है या गरीब, इस आधार पर हम यह राय कायम नहीं कर सकते कि परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता मज़बूत है या कमज़ोर।
12. बाइबल में अमीर और गरीब दोनों को क्या सलाह दी गयी है?
12 यहोवा के संगठन में अमीर लोग भी हैं और गरीब लोग भी। वे सब पूरे दिल से यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी सेवा करते हैं। बाइबल में अमीर लोगों से कहा गया है कि वे “अपनी आशा दौलत पर न रखें जो आज है तो कल नहीं रहेगी, बल्कि परमेश्वर पर रखें।” (1 तीमुथियुस 6:17-19 पढ़िए।) इसके अलावा बाइबल यहोवा के सभी सेवकों को, फिर चाहे वे अमीर हों या गरीब, खबरदार करती है कि वे पैसों से प्यार न करें। (1 तीमु. 6:9, 10) अगर हम भाई-बहनों को उसी नज़र से देखें, जिस नज़र से यहोवा देखता है, तो हम उनकी हैसियत देखकर उनके बारे में कोई राय कायम नहीं करेंगे। लेकिन क्या किसी की उम्र देखकर उसके बारे में राय कायम करना सही होगा?
उम्र देखकर राय कायम न करें
13. बुज़ुर्गों का आदर करने के मामले में बाइबल क्या सिखाती है?
13 अकसर बाइबल में कहा गया है कि हमें बुज़ुर्गों का आदर करना चाहिए। लैव्यव्यवस्था 19:32 में लिखा है, “तुम पके बालवालों के सामने उठ खड़े होना और बुज़ुर्गों का आदर करना। इस तरह तुम अपने परमेश्वर का डर मानना।” नीतिवचन 16:31 में बताया गया है, “पके बाल एक इंसान का खूबसूरत ताज हैं, बशर्ते वह नेकी की राह पर चला हो।” पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि वह बुज़ुर्ग भाइयों को न डाँटे, बल्कि उन्हें पिता समझकर उनके साथ व्यवहार करे। (1 तीमु. 5:1, 2) हालाँकि तीमुथियुस को बुज़ुर्ग भाइयों पर कुछ अधिकार दिया गया था, फिर भी उसे हमेशा उनके साथ आदर से पेश आना था और उनका लिहाज़ करना था।
14. हमें अपने से बड़ी उम्र के भाई-बहनों को सुधारने की ज़रूरत कब पड़ सकती है?
14 लेकिन अगर कोई बुज़ुर्ग भाई जानबूझकर पाप करता है या ऐसी बात का बढ़ावा देता है, जो यहोवा को पसंद नहीं, तो क्या किया जाना चाहिए? हमें याद रखना चाहिए कि जानबूझकर पाप करनेवाले को यहोवा सज़ा देता है, फिर चाहे वह बुज़ुर्ग क्यों न हो और लोग उसकी इज़्ज़त क्यों न करते हों। यशायाह 65:20 में लिखा है, “एक पापी चाहे सौ साल का भी हो, शाप मिलने पर वह मर जाएगा।” इसी से मिलता-जुलता सिद्धांत यहेजकेल के दर्शन में भी बताया गया है। (यहे. 9:5-7) लेकिन आदर देने के मामले हमें एक अहम बात याद रखनी चाहिए। वह यह है कि “अति प्राचीन” परमेश्वर यहोवा है और हमें उसका हमेशा आदर करना चाहिए। (दानि. 7:9, 10, 13, 14) यहोवा का आदर करने से हमें गलत कदम उठानेवालों को सुधारने की हिम्मत मिलेगी, फिर चाहे उनकी उम्र जो भी हो।—गला. 6:1.
15. जवान भाइयों का आदर करने के मामले में हम प्रेषित पौलुस से क्या सीखते हैं?
15 मंडली में जवान भाइयों के बारे में हमारा नज़रिया क्या होना चाहिए? क्या हमें उनका भी आदर करना चाहिए? पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा, “कोई भी तेरी कम उम्र की वजह से तुझे नीची नज़रों से न देखे। इसके बजाय, बोलने में, चालचलन में, प्यार में, विश्वास में और शुद्ध चरित्र बनाए रखने में विश्वासयोग्य लोगों के लिए एक मिसाल बन जा।” (1 तीमु. 4:12) जब पौलुस ने यह बात लिखी, तब तीमुथियुस कोई 30 साल का था, फिर भी पौलुस ने उसे कई बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी थीं। इससे हम क्या सीखते हैं? हमें जवान भाइयों को कम नहीं आँकना चाहिए। ज़रा यीशु पर ध्यान दीजिए, 33 साल की उम्र तक उसने धरती पर सेवा करते वक्त कितना कुछ कर लिया था!
16, 17. (क) प्राचीन एक भाई के बारे में कैसे तय करते हैं कि वह सहायक सेवक या प्राचीन बनने के योग्य है या नहीं? (ख) अगर नियुक्ति के मामले में प्राचीन बाइबल के स्तरों पर ध्यान न दें, तो क्या हो सकता है?
16 कुछ संस्कृतियों में लोग लड़कों और जवानों का आदर नहीं करते। इस वजह से शायद कुछ प्राचीन जवान भाइयों की सहायक सेवक या प्राचीन के तौर पर सिफारिश न करें, जबकि वे इन ज़िम्मेदारियों के योग्य हों। बाइबल में यह नहीं बताया गया है कि सहायक सेवक या प्राचीन बनने के लिए एक भाई की कितनी उम्र होनी चाहिए। (1 तीमु. 3:1-10, 12, 13; तीतु. 1:5-9) अगर एक प्राचीन अपनी संस्कृति की वजह से इस बारे में कोई नियम बनाता है, तो वह परमेश्वर के वचन के मुताबिक नहीं चल रहा होगा। प्राचीनों को जवान भाइयों की योग्यता के बारे में अपनी राय या संस्कृति के आधार पर नहीं, बल्कि बाइबल के स्तरों के मुताबिक फैसला करना चाहिए।—2 तीमु. 3:16, 17.
17 अगर प्राचीन इस मामले में बाइबल के स्तरों पर ध्यान न दें, तो भले ही एक भाई योग्य हो, फिर भी शायद वे उसकी सिफारिश न करें। एक देश में एक सहायक सेवक अपनी मंडली में कई बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालता था। उसके बारे में सभी प्राचीनों का मानना था कि वह प्राचीनों के लिए बाइबल में दी योग्यताओं पर खरा उतर रहा है। फिर भी कुछ बुज़ुर्ग प्राचीनों को लगा कि वह बहुत ही कम उम्र का दिखता है, इसलिए प्राचीनों ने उसकी सिफारिश नहीं की। अफसोस कि उस भाई को प्राचीन नहीं नियुक्त किया गया और वजह बस यह थी कि वह बहुत छोटा लगता था। ऐसा मालूम होता है कि दुनिया की ज़्यादातर मंडलियों में यही सोच है। लेकिन हमें बाइबल के स्तरों के मुताबिक फैसला करना चाहिए, न कि अपनी राय या संस्कृति के आधार पर। इस तरह हम यीशु की यह आज्ञा मान रहे होंगे कि लोगों का बाहरी रूप देखकर उनके बारे में कोई राय कायम न करो।
नेक स्तरों के आधार पर राय कायम करें
18, 19. भाई-बहनों से भेदभाव न करने के लिए हमें क्या करना होगा?
18 अपरिपूर्ण होने के बावजूद हम सीख सकते हैं कि हम भाई-बहनों से भेदभाव न करें, ठीक जैसे यहोवा भेदभाव नहीं करता। (प्रेषि. 10:34, 35) हमें परमेश्वर के वचन से जो हिदायतें बार-बार याद दिलायी जाती हैं, उन पर हमें हमेशा ध्यान देना चाहिए। जब हम उन हिदायतों पर चलते हैं, तो हम यीशु की यह आज्ञा मान रहे होते हैं, “जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय मत करो।”—यूह. 7:24.
19 बहुत जल्द हमारा राजा यीशु मसीह सब लोगों का न्याय करेगा। वह मुँह देखा न्याय नहीं करेगा, न ही सुनी-सुनायी बातों के आधार पर करेगा। इसके बजाय वह परमेश्वर के नेक स्तरों के मुताबिक न्याय करेगा। (यशा. 11:3, 4) वह समय कितना बढ़िया होगा! हमें उस समय का बेसब्री से इंतज़ार है!