तैयार रहने का सबूत दीजिए!
“तैयार रहने का सबूत दो, क्योंकि जिस घड़ी तुमने सोचा भी न होगा, उस घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।”—मत्ती 24:44.
1, 2. (क) बाइबल में बतायी किन भविष्यवाणियों की तुलना बाघ के हमले से की जा सकती है? (ख) भविष्य में होनेवाले इस हमले का आप पर क्या असर होना चाहिए?
बाघों का खेल दिखानेवाला एक जाना-माना कलाकार अपने प्रदर्शन से कई सालों तक लोगों का दिल बहलाता रहा। उसके साथ कभी कोई हादसा नहीं हुआ था। वह कहता है: “जब एक जानवर आप पर भरोसा करने लगता है तो ऐसा महसूस होता है जैसे आपको दुनिया का सबसे खूबसूरत तोहफा मिला है।” लेकिन 3 अक्टूबर, 2003 को वह भरोसा टूट गया। उस दिन 172 किलो के एक सफेद बाघ ने बिना किसी वजह के उस पर हमला कर दिया।
2 अचानक हुए इस हमले के लिए कलाकार तैयार नहीं था। एक “जंगली जानवर” का ज़िक्र बाइबल भी करती है। वह बताती है कि यह जानवर हमला करनेवाला है और इसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए। (प्रकाशितवाक्य 17:15-18 पढ़िए।) यह जानवर किस पर वार करेगा? हमले के वक्त पासा पलटेगा और शैतान की यह दुनिया अपने ही खिलाफ हो जाएगी। सुर्ख लाल रंग का जंगली जानवर संयुक्त राष्ट्र को और “दस सींग” सभी राजनैतिक शक्तियों को दर्शाते हैं। ये दोनों मिलकर वेश्या जो महानगरी बैबिलोन यानी दुनिया-भर में फैले झूठे धर्म का साम्राज्य है, उसके खिलाफ हो जाएँगे और उसे फाड़ खाएँगे। यह कब होगा? हमें वह दिन और घड़ी तो नहीं मालूम। (मत्ती 24:36) लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि यह ऐसी घड़ी होगा, जिसकी हमने कल्पना तक नहीं की होगी, साथ ही उस हमले से पहले का वक्त घटाया गया है। (मत्ती 24:44; 1 कुरिं. 7:29) इसलिए ज़रूरी है कि हम आध्यात्मिक तौर पर तैयार रहें ताकि हमले के वक्त और जब मसीह न्यायदंड सुनाने आए, तब वह हमें छुटकारा दे। (लूका 21:28) हम कैसे तैयार रह सकते हैं? इसके लिए हमें परमेश्वर के उन वफादार सेवकों से सीखना होगा जिन्होंने तैयार रहने का सबूत दिया और इसलिए वे परमेश्वर के वादे पूरे होते देख सके। क्या हम इन सच्ची मिसालों को दिल में उतारेंगे?
नूह की तरह तैयार रहने का सबूत दीजिए
3. किन हालात की वजह से नूह के लिए वफादारी से परमेश्वर की सेवा करना मुश्किल हो गया?
3 नूह के समय में दुनिया बहुत गंदी हो चुकी थी, फिर भी उसने खुद को तैयार रखा ताकि वह परमेश्वर के वादे को पूरा होते देख सके। कल्पना कीजिए जब बागी स्वर्गदूत इंसानी रूप धारण करके धरती की सुंदर स्त्रियों के साथ रहने लगे तब नूह को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा। इन स्वर्गदूतों के बच्चे आम इंसानों से कई गुना बड़े और ताकतवर थे। वे “शूरवीर” थे जो अपनी ताकत के बल पर लोगों पर कहर ढाते थे। (उत्प. 6:4) ये लंबे-चौड़े “शूरवीर” जहाँ जाते वहाँ तबाही मचा देते और सोचिए इस वजह से कितनी हिंसा फैल गयी होगी। नतीजा यह हुआ कि चारों तरफ बुराई का बोलबाला था, लोगों की सोच और उनके व्यवहार से नीचता झलकती थी। तब सारे जहान के महाराजा और मालिक यहोवा ने दुष्ट लोगों के नाश का एक समय तय किया।—उत्पत्ति 6:3, 5, 11, 12 पढ़िए।a
4, 5. किन मायनों में हमारे दिन नूह के दिनों की तरह हैं?
4 यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि हमारे दिनों के हालात नूह के दिनों जैसे होंगे। (मत्ती 24:37) मिसाल के लिए हम देख सकते हैं कि आज भी दुष्ट स्वर्गदूत इंसानी मामलों में दखलअंदाज़ी करते हैं। (प्रका. 12:7-9, 12) इन दुष्ट स्वर्गदूतों ने नूह के दिनों में इंसानों का रूप धारण किया था। हालाँकि आज वे ऐसा नहीं कर सकते, लेकिन वे सभी को अपने काबू में करने की कोशिश करते हैं फिर चाहे वे जवान हों या बुज़ुर्ग। इन स्वर्गदूतों का दिमाग गंदा हो चुका है। लोगों को एहसास नहीं होता लेकिन ये उनके दिमाग में गंदी बातें भरने की कोशिश करते हैं और जब वे इनके असर में आकर बुरे और गंदे काम करते हैं, तो इन्हें बड़ा मज़ा आता है।—इफि. 6:11, 12.
5 परमेश्वर का वचन शैतान को “हत्यारा” कहता है और बताता है कि उसके पास “मौत देने का ज़रिया है।” (यूह. 8:44; इब्रा. 2:14) शैतान सामने से आकर तो हमें नहीं मार सकता लेकिन यह खूँखार स्वर्गदूत इंसानों में धोखाधड़ी और गलत कामों का रुझान पैदा करता है। वह लोगों को इस कदर बुरा बना देता है कि लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। मिसाल के लिए, आँकड़े बताते हैं कि अमरीका में पैदा होनेवाले हर 142 बच्चों में से 1 का कत्ल कर दिया जाएगा। आज लोग बिना सोचे-समझे जिस तरह हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, उसे देखकर क्या आपको नहीं लगता कि यहोवा इस पर ध्यान देगा, ठीक जैसे उसने नूह के दिनों में दिया था? क्या इसे खत्म करने के लिए वह कुछ नहीं करेगा?
6, 7. नूह और उसके परिवार ने कैसे दिखाया कि वे परमेश्वर पर विश्वास करते और उसका भय मानते हैं?
6 वक्त आने पर यहोवा ने नूह को बताया कि वह जलप्रलय से सब प्राणियों का नाश कर देगा। (उत्प. 6:13, 17) यहोवा ने नूह को कहा कि वह एक लंबे, बड़े बक्से के आकार का जहाज़ बनाए। नूह और उसका परिवार काम में जुट गया। परमेश्वर का कहना मानने और उसके न्याय के दिन के लिए तैयार रहने में किस बात ने उनकी मदद की?
7 मज़बूत विश्वास और परमेश्वर के भय ने नूह और उसके परिवार को परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए उभारा। (उत्प. 6:22; इब्रा. 11:7) परिवार का मुखिया होने के नाते नूह यहोवा के करीब बना रहा और उस दुष्ट दुनिया के बुरे कामों से दूर रहा। (उत्प. 6:9) वह जानता था कि उसके परिवार को उस ज़माने के लोगों के दुष्ट कामों और बगावती रवैये से सावधान रहना है। साथ ही उनके लिए यह भी ज़रूरी था कि वे रोज़मर्रा के कामों में बहुत ज़्यादा व्यस्त न हो जाएँ। परमेश्वर ने उन्हें एक काम दिया था और ज़रूरी था कि पूरा परिवार उस काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दे।—उत्पत्ति 6:14, 18 पढ़िए।
नूह और उसके परिवार ने तैयार रहने का सबूत दिया
8. कैसे पता चलता है कि नूह का परिवार भी परमेश्वर की भक्ति करता था?
8 हालाँकि बाइबल नूह के बारे में ज़्यादा बताती है, मगर उसकी पत्नी, बेटे और बहुएँ भी यहोवा के उपासक थे। यह हम कैसे कह सकते हैं? भविष्यवक्ता यहेजकेल ने जो लिखा उससे यह बात पुख्ता होती है। यहेजकेल ने कहा कि अगर नूह उसके वक्त में होता, तो नूह अपनी नेकी के आधार पर अपने बच्चों को उद्धार नहीं दिला सकता था। इससे पता चलता है कि उसके बच्चे बड़े हो चुके थे और उन्हें खुद फैसला करना था कि वे परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे या नहीं। उन्होंने अपने पिता का साथ दिया और इस तरह दिखाया कि वे परमेश्वर और उसके मार्गों से प्यार करते हैं। (यहे. 14:19, 20) नूह के परिवार ने उसके दिए निर्देशनों को माना, उसके विश्वास के भागीदार बनें और परमेश्वर की तरफ से मिले काम में किसी चीज़ को बाधा नहीं बनने दिया।
9. आज कौन नूह के जैसा विश्वास दिखा रहे हैं?
9 आज जब हम अपनी मसीही बिरादरी में परिवार के मुखियाओं को नूह की मिसाल पर चलने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते देखते हैं तो बहुत खुशी होती है! उन्हें इस बात का एहसास है कि परिवार के लिए सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान और बच्चों की पढ़ाई का इंतज़ाम करना ही काफी नहीं है। उन्हें अपने परिवार की अध्यात्मिक ज़रूरतों का भी ख्याल रखना है। इस तरह वे दिखाते हैं कि वे यहोवा के दिन के लिए तैयार हैं।
10, 11. (क) नूह और उसके परिवार ने जहाज़ के अंदर कैसा महसूस किया होगा? (ख) हमें खुद से क्या सवाल पूछना चाहिए?
10 नूह, उसकी पत्नी, बेटों और बहुओं को जहाज़ बनाने में करीब 50 साल लग गए। इस दौरान वे सैकड़ों बार जहाज़ के अंदर-बाहर गए होंगे। उन्होंने जहाज़ को इस तरह बनाया कि पानी अंदर ना जा सके, उसमें ढेर सारा खाना रखा और जानवरों को अंदर ले गए। ज़रा कल्पना कीजिए। जहाज़ के अंदर दाखिल होने का दिन आ पहुँचा है। ईसा पूर्व 2,370 के दूसरे महीने का 17वाँ दिन है। वे सब अंदर चले जाते हैं। यहोवा जहाज़ का दरवाज़ा बंद कर देता है और बारिश शुरू हो जाती है। यह कोई मामूली बारिश नहीं है, आकाश के झरोखे खुल गए हैं और जम के बारिश हो रही है। (उत्प. 7:11, 16) जहाज़ के बाहर सभी लोग डूब रहे हैं लेकिन जो भीतर हैं, वे सुरक्षित हैं। नूह के परिवार ने उस वक्त कैसा महसूस किया होगा? सच, उन्होंने यहोवा का कितना एहसान माना होगा। और बेशक उन्होंने सोचा होगा, ‘अच्छा हुआ कि हम सच्चे परमेश्वर के साथ-साथ चले और हमने तैयार रहने का सबूत दिया!’ (उत्प. 6:9) अब कल्पना कीजिए कि हर-मगिदोन का युद्ध खत्म हो गया है और आप सुरक्षित बच गए हैं। क्या आपका दिल नूह के परिवार की तरह यहोवा के लिए कदरदानी से नहीं भर उठेगा?
11 यहोवा ने वादा किया है कि वह शैतान की इस व्यवस्था को खत्म करेगा और यहोवा के इस वादे को पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता। खुद से पूछिए, ‘क्या मुझे भरोसा है कि परमेश्वर का हर वादा पूरा होगा यहाँ तक कि उसकी छोटी-से-छोटी बात भी और सभी वादे उसके ठहराए वक्त पर पूरे होंगे?’ अगर ऐसा है, तो हमेशा यह बात अपने ध्यान में रखिए कि ‘यहोवा का दिन’ तेज़ी से नज़दीक आ रहा है और इस तरह तैयार रहने का सबूत दीजिए।—2 पत. 3:12.
मूसा चौकन्ना रहा
12. किन चीज़ों से मूसा का ध्यान आध्यात्मिक बातों से भटक सकता था?
12 आइए एक और मिसाल पर गौर करें। इंसानी नज़रिए से देखा जाए तो मूसा मिस्र में एक ऊँचे ओहदे पर था और उसके सामने आगे बढ़ने के कई मौके थे। फिरौन की बेटी ने उसे गोद लिया था, जिस वजह से उसका बहुत मान था। वह बढ़िया-से-बढ़िया खाना खाता, अच्छे-से-अच्छे कपड़े पहनता और ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीता था। उसने ऊँची शिक्षा भी हासिल की। (प्रेषितों 7:20-22 पढ़िए।) आगे जाकर शायद उसे विरासत में बहुत बड़ी जायदाद मिलती।
13. मूसा ने किस तरह परमेश्वर के वादों पर अपनी नज़र टिकाए रखी?
13 लगता है कि बचपन में मूसा को अपने माँ-बाप से जो तालीम मिली, उसकी वजह से वह समझ पाया कि मिस्र के लोग जो मूर्तिपूजा करते हैं, वह कितनी बड़ी मूर्खता है। (निर्ग. 32:8) मिस्र की ऊँची शिक्षा पाकर और राज-महल की शानो-शौकत देखकर भी मूसा ने सच्ची उपासना नहीं छोड़ी। परमेश्वर ने उसके पूर्वजों से जो वादे किए थे, उनके बारे में उसने गहराई से सोचा होगा। उसमें यह ज़बरदस्त इच्छा थी कि परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने के लिए वह खुद को तैयार साबित करे। तभी आगे चलकर मूसा ने इसराएलियों से कहा: “इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर, यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है।”—निर्गमन 3:15-17 पढ़िए।
14. मूसा के विश्वास और हिम्मत की परख कैसे हुई?
14 मूसा के लिए सच्चा परमेश्वर यहोवा मिस्र के देवताओं की बेजान मूर्तियों की तरह नहीं था, वह उसके लिए असल शख्स था। मूसा अपनी ज़िंदगी इस तरह जीता था मानो वह “अदृश्य परमेश्वर” को देख रहा हो। मूसा को विश्वास था कि परमेश्वर के लोगों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया जाएगा मगर कब, यह उसे नहीं मालूम था। (इब्रा. 11:24, 25, 27) उसमें इसराएलियों को आज़ाद कराने की ज़बरदस्त इच्छा थी और यह तब ज़ाहिर हुई जब उसने एक इसराएली गुलाम को एक मिस्री के ज़ुल्म से बचाने की कोशिश की। (निर्ग. 2:11, 12) लेकिन यहोवा का ठहराया वक्त तब तक नहीं आया था, इसलिए मूसा को दूर देश में एक भगोड़े की ज़िंदगी जीनी पड़ी। बेशक मूसा के लिए मिस्र के महल की ऐशो-आराम भरी ज़िंदगी छोड़कर वीराने में जीना आसान नहीं रहा होगा। फिर भी, उसने इस बात का सबूत दिया कि वह यहोवा का हर निर्देश मानने के लिए तैयार है। इसलिए 40 साल मिद्यान देश में गुज़ारने के बाद परमेश्वर ने उसे उसके भाइयों को छुड़ाने के लिए इस्तेमाल किया। परमेश्वर का निर्देशन मानते हुए वह मिस्र लौट आया। अब समय आ गया था कि वह परमेश्वर का दिया काम परमेश्वर की मरज़ी के हिसाब से करे। (निर्ग. 3:2, 7, 8, 10) मूसा को जो “सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव” का था, मिस्र में फिरौन के सामने जाने के लिए विश्वास और हिम्मत की ज़रूरत थी। (गिन. 12:3) उसने परमेश्वर की बात एक बार नहीं बल्कि बार-बार मानी। जैसे-जैसे मिस्र पर विपत्तियाँ आती गयीं मूसा उनका ऐलान करने के लिए फिरौन के पास जाता रहा। जब भी वह फिरौन के सामने जाता उसे यह नहीं पता होता था कि और कितनी बार उसे फिरौन के सामने जाना पड़ेगा।
15. क्या वजह थी कि रुकावटों के बावजूद मूसा ने यहोवा का आदर करने के मौकों को अपने हाथ से नहीं जाने दिया?
15 अगले 40 सालों तक यानी ईसा पूर्व 1513 से लेकर ईसा पूर्व 1473 तक मूसा को कई बार निराशा का सामना करना पड़ा। फिर भी, यहोवा का आदर करने के मौकों को उसने अपने हाथ से नहीं जाने दिया और पूरे दिल से अपने संगी इसराएलियों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। (व्यव. 31:1-8) क्यों? क्योंकि वह खुद से ज़्यादा यहोवा के नाम और हुकूमत करने के उसके हक से प्यार करता था। (निर्ग. 32:10-13; गिन. 14:11-16) मूसा की तरह हमें भी निराशाओं और रुकावटों के बावजूद यहोवा की हुकूमत का साथ देना चाहिए और यह भरोसा रखना चाहिए कि वह हमसे कहीं ज़्यादा बुद्धिमान है और काम करने के उसके तरीके हमसे कहीं बेहतर और सही हैं। (यशा. 55:8-11; यिर्म. 10:23) क्या आप ऐसा महसूस करते हैं?
आँखों में नींद न आने दो!
16, 17. मरकुस 13:35-37 में बतायी बात आपके लिए क्यों अहमियत रखती है?
16 “चौकन्ने रहो, आँखों में नींद न आने दो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तय किया हुआ वक्त कौन-सा है।” (मर. 13:33) यीशु ने यह चेतावनी तब दी जब वह इस दुष्ट व्यवस्था के आखिरी वक्त की निशानी बता रहा था। मरकुस की किताब में दर्ज़ यीशु की ज़बरदस्त भविष्यवाणी के आखिरी शब्दों पर गौर कीजिए: “जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब आ रहा है, दिन ढलने पर, या आधी रात को या मुर्गे के बाँग देने के वक्त या तड़के सुबह। ताकि जब वह अचानक आए, तो तुम्हें सोता हुआ न पाए। मगर जो मैं तुमसे कहता हूँ, वही सब से कहता हूँ, जागते रहो।”—मर. 13:35-37.
17 यीशु के इन शब्दों पर हमें गौर करना चाहिए। उसने रात के चार अलग-अलग पहर का ज़िक्र किया। एक इंसान के लिए रात के आखिरी पहर में जागते रहना सबसे मुश्किल होता, क्योंकि यह सुबह तीन बजे से लेकर सूरज के निकलने तक का वक्त होता है। युद्ध की योजना बनानेवालों के हिसाब से यह पहर दुश्मन पर वार करने का सबसे अच्छा समय होता है, क्योंकि इस वक्त उसे “सोता हुआ” पाया जा सकता है। ठीक उसी तरह, जब हम दुनिया के लोगों को आध्यात्मिक रूप से गहरी नींद में सोते हुए यानी उन्हें राज के संदेश में दिलचस्पी नहीं लेते हुए देखते हैं, तो हमारे लिए भी जागते रहना बहुत मुश्किल हो सकता है। क्या इसमें कोई शक है कि आनेवाले विनाश से बचने और उद्धार पाने के लिए हमें ‘आँखों में नींद न आने देने’ और ‘चौकन्ना रहने’ की ज़रूरत है?
18. यहोवा के साक्षी होने के नाते, हमें क्या सम्मान मिला है?
18 इस लेख की शुरूआत में जिस कलाकार का ज़िक्र किया गया था, वह बाघ के हमले से बच गया। लेकिन बाइबल की भविष्यवाणी बताती है कि आनेवाले अंत से न तो यह झूठा धर्म और न ही यह दुष्ट व्यवस्था बचेगी। (प्रका. 18:4-8) हमारी दुआ है कि परमेश्वर के सभी सेवक चाहे वे जवान हों या बुज़ुर्ग, नूह और उसके परिवार की तरह इस बात की गंभीरता को समझें कि उन्हें यहोवा के दिन के लिए तैयार रहने का सबूत देना है। आज दुनिया में लोग परमेश्वर का आदर नहीं करते। झूठे धर्म के शिक्षक, परमेश्वर के वजूद पर शक करनेवाले और नास्तिक, सृष्टिकर्ता की खिल्ली उड़ाते हैं। लेकिन हमें खुद पर उनका असर नहीं होने देना चाहिए। आइए हम इस लेख में दी मिसालों को अपने दिल में उतार लें और ‘ईश्वरों के परमेश्वर’ जी हाँ, “महान् पराक्रमी और भय योग्य ईश्वर” यहोवा का आदर और उसकी पैरवी करने के मौकों की ताक में रहें। यह हमारे लिए कितने सम्मान की बात है!—व्यव. 10:17.
[फुटनोट]
a उत्पत्ति 6:3 में बताए “एक सौ बीस वर्ष” का मतलब जानने के लिए 15 दिसंबर, 2010 की प्रहरीदुर्ग का पेज 30 देखिए।
क्या आपको याद है?
• नूह ने अपने परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पहली जगह क्यों दी?
• आज के दिन नूह के दिनों से कैसे मिलते-जुलते हैं?
• निराशा के बावजूद, मूसा ने अपनी आँखें परमेश्वर के वादों पर क्यों टिकाए रखीं?
• बाइबल की कौन-सी भविष्यवाणियाँ आध्यात्मिक रूप से जागते रहने में आपकी मदद करती हैं?
[पेज 25 पर तसवीर]
नूह और उसके परिवार ने अपनी आँखें यहोवा के काम पर टिकाए रखीं
[पेज 26 पर तसवीर]
परमेश्वर के भरोसेमंद वादों ने मूसा को तैयार रहने में मदद दी