यीशु का जीवन और सेवकाई
फ़रीसियों का हठीला अविश्वास
भूतपूर्व अन्धे भिखारी के माँ-बाप डरते हैं, जब उन्हें फ़रीसियों के सामने बुलाया जाता है। वे जानते हैं कि जो कोई यीशु पर विश्वास व्यक्त करता है, उसे मंदिर में से निष्कासित करना तय हुआ है। बिरादरी में इस तरह दूसरों से संग-साथ तोड़ दिए जाने से ज़बरदस्त मुश्किलें आ सकती हैं, ख़ास तौर से एक ग़रीब परिवार पर। इसलिए माता-पिता सावधान हैं।
“क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अन्धा जन्मा था?” फ़रीसी पूछते हैं। “फिर अब वह क्योंकर देखता है?”
“हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अन्धा जन्मा था,” माता-पिता पुष्टि करते हैं। “परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब क्योंकर देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उस की आँखें खोलीं।” बेशक उनके बेटे ने जो कुछ भी हुआ वह सब उन्हें बता दिया है, लेकिन उसके माता-पिता विवेकशील रूप से कहते हैं: “वह सयाना है; उसी से पूछ लो। वह अपने विषय में आप कह देगा।”
इसलिए, फ़रीसी एक बार फिर उस आदमी को बुला भेजते हैं। अब की बार वे उसे डराने की कोशिश करते हैं, यह सूचित करते हुए कि उन्होंने यीशु के ख़िलाफ़ अभियोगात्मक सबूत इकट्ठा किया है। “परमेश्वर की स्तुति कर,” वे माँग करते हैं। “हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।”
भूतपूर्व अन्धा आदमी उनके आरोप का खण्डन नहीं करता, पर यह ग़ौर करता है: “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं।” लेकिन वह आगे कहता है: “मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अन्धा था और अब देखता हूँ।”
उसके सबूत में कोई नुक़्स निकालने की कोशिश में, फ़रीसी एक बार फिर पूछते हैं: “उस ने तेरे साथ क्या किया? और किस तरह तेरी आँखें खोलीं?”
“मैं तो तुम से कह चुका,” वह आदमी कुड़कुड़ाता है, “और तुम ने न सुना। अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो?” व्यंग्यात्मक रूप से, वह पूछता है: “क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?”
इस जवाब से फ़रीसियों का क्रोध भड़क उठता है। “तू ही उसका चेला है,” वे आरोप लगाते हैं, “हम तो मूसा के चेले हैं। हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते कि कहाँ का है।”
ताज्जुब व्यक्त करते हुए, दीन भिखारी जवाब देता है: “यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते कि कहाँ का है तौभी उस ने मेरी आँखें खोल दीं।” इस से क्या निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए? वह भिखारी इस स्वीकृत आधार-वाक्य की ओर संकेत करता है: “हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है। जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अन्धे की आँखें खोली हों।” इस प्रकार, निष्कर्ष को ज़ाहिर होना चाहिए: “यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।”
फ़रीसियों के पास ऐसे सीधे-सादे, स्पष्ट तर्क के लिए कोई जवाब नहीं। वे सच्चाई का सामना नहीं कर सकते, और इसलिए वे उस आदमी की निन्दा करते हैं: “तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है?” इस पर, प्रत्यक्षतः उसे मंदिर में से बहिष्कृत करते हुए, वे उसे बाहर निकाल देते हैं।
जब यीशु को पता चलता है कि उन्होंने क्या किया है, वह उस आदमी को ढूँढ़ निकालता है और कहता है: “क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है?”
भूतपूर्व अन्धा भिखारी कहता है, “हे प्रभु, वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूँ?”
यीशु जवाब देता है, “जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है।”
फ़ौरन ही, वह आदमी यीशु के सामने दंडवत करके कहता है: “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ।”
फिर यीशु व्याख्या करता है: “मैं इस जगत में न्याय के लिए आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएँ।”
इस पर, पास खड़े होकर सुन रहे फ़रीसी कहते हैं: “क्या हम भी अन्धे हैं?” अगर वे क़बूल करते कि वे मानसिक रूप से अन्धे थे, तो यीशु के प्रति उनके विरोध के लिए एक बहाना तो होता। जैसे यीशु उन से कहता है: “यदि तुम अन्धे होते तो पापी न ठहरते।” फिर भी, वे कठोर मन से आग्रह करते हैं कि वे अन्धे नहीं और उन्हें किसी आध्यात्मिक प्रबोधन की आवश्यकता नहीं। इसलिए यीशु ग़ौर करता है: “परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।” यूहन्ना ९:१९-४१.
◆ फ़रीसियों के सामने बुलाए जाने पर भूतपूर्व अन्धे भिखारी के माता-पिता क्यों भयभीत होते हैं, और इसलिए वे सावधानी बरतते हुए किस तरह जवाब देते हैं?
◆ फ़रीसी किस तरह भूतपूर्व अन्धे को डराने की कोशिश करते हैं?
◆ उस आदमी की कौनसी तर्कसंगत दलील से फ़रीसियों को गुस्सा आता है?
◆ यीशु के प्रति अपने विरोध के लिए फ़रीसियों के पास कोई बहाना क्यों नहीं होता?