“जो कोई सुने, वह कहे: ‘आ!’”
इस साल के दौरान, यहोवा के गवाह संसार भर के २०० से अधिक देशों में अपने १९९१ के वार्षिक पाठ के सामंजस्य में अपने आप को लगाएंगे: “जो कोई सुने, वह कहे: ‘आ!’”
“आत्मा और दुलहन लगातार कहती हैं: ‘आ!’ जो कोई सुने, वह कहे: ‘आ!’” और जो प्यासा हो, वह आए; और जो कोई चाहे वह जीवन का जल मुफ़त ले।”—प्रकाशितवाक्य २२:१७, न्यू.व.
१. हमे किस “जल” के पास “आने” का निमंत्रण दिया गया है?
आप को “आने!” के लिए निमन्त्रण दिया जाता है। किस लिए आएं? क्यों, जल से अपनी प्यास बुझाने के लिए आएं। यह साधारण जल नहीं है, लेकिन वही जल है जिसके बारे यीशु मसीह ने बताया था जब उसने कुंए पर सामरी स्त्री से कहा: “परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक पियासा न होगा, बरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहेगा।” (यूहन्ना ४:१४) यीशु ने यह “जल” कहाँ से पाया?
२. “जल” का स्रोत क्या है, और किस घटना के बाद ही यह बह सकता था?
२ प्रेरित यूहन्ना को दर्शन में उस उद्गम को देखने का सुअवसर मिला जहाँ से यह “जल” निकलता है, जैसा उसने प्रकाशितवाक्य २२:१ में लिखा: “फिर उसने मुझे बिल्लौर की सी झलकती हुई, जीवन के जल की एक नदी दिखाई, जो परमेश्वर और मेम्ने के सिंहासन से निकलकर . . . बहती थी।” हाँ, इस बिल्लौर से झलकते जल का स्रोत जिसमें जीवन देने वाले तत्त्व हैं, और कोई नहीं, जीवन देनेवाला, यहोवा खुद है, जो इसे मेम्ने यीशु मसीह के द्वारा उपलब्ध कराता है। (प्रकाशितवाक्य २१:६ से तुलना करें) चूँकि “परमेश्वर और मेम्ने के सिंहासन” का जिक्र किया गया है, निश्चय यह १९१४ में मसीही राज्य की स्थापना के बाद होगा, अर्थात, प्रभु के दिन के आरंभ होने के बाद, कि यह जीवन का जल बहना शुरु होता है।—प्रकाशितवाक्य १:१०.
३, ४. “जल” किस का प्रतिनिधित्व करता है, और इसे किन लोगों के लिए उपलब्ध होना है?
३ यह जीवन का जल क्या संकेत करता है? यह सिद्ध मानव जीवन को पुनःस्थापित करने के परमेश्वर के प्रबन्ध को चित्रित करता है, परादीस में बदली हुई एक पृथ्वी पर सिद्धता में अनन्त जीवन। जीवन का जल यीशु मसीह के द्वारा जीवन के सभी प्रबन्धों का प्रतिनिधित्व करता है। क्या ये सभी अभी उपलब्ध हैं? नहीं, सभी नहीं, क्योंकि पहले परमेश्वर को वर्त्तमान दुष्ट रीति-रिवाज और इसके अदृश्य शासक, शैतान इब्लीस को हटाना है। लेकिन, राज्य के सुसमाचार को सुनने और आज्ञा मानने और उसके अनुसार अपने जीवन को चलाने के द्वारा हम इस “जल” में से जो कुछ अभी उपलब्ध है, उसे ले सकते हैं।—यूहन्ना ३:१६; रोमियों १२:२.
४ इस प्रकार, यूहन्ना को ‘जीवन की नदी’ दिखाने के बाद, यीशु ने अपने स्वर्गदूत को दर्शन के साथ भेजने के अपने उद्देश्य के बारे में यूहन्ना को बताया। तब यूहन्ना ने घोषणा सुनी: “आत्मा, और दुलहन लगातार कहती हैं: ‘आ!’ और जो कोई सुने, वह कहे: ‘आ!’ और जो प्यासा हो, वह आए; और जो कोई चाहे वह जीवन का जल मुफ़त ले।” (प्रकाशितवाक्य २२:१७, न्यू.व.) अतः, परमेश्वर के सेवक प्यासे लोगों को आमंत्रण देते हैं कि परमेश्वर के मेम्ने के द्वारा पृथ्वी पर अनन्त जीवन पाने के परमेश्वर के प्रबन्धों से पीना शुरू करें।—यूहन्ना १:२९.
जीवन के जल की आवश्यक्ता उत्पन्न होती है
५. मानवजाति को इस दैविक प्रबन्ध की आवश्यकता कैसे पड़ी?
५ दुःख की बात है, मानव परिवार के पहले माता-पिता जीवन के उस मार्ग पर नहीं चले जो उनके वंश को यह मौका देता कि एक परादीस घर में सदा के लिए सिद्ध मानव जीवन का आनन्द उठाएं। मानवजाति के लिए अनन्त जीवन के लिए आवश्यक था कि आदम अपने सृष्टिकर्ता की सेवा आज्ञाकारिता से करने का बुद्धिमानीपूर्ण निर्णय करता। एक विद्राही आत्मिक प्राणी के प्रभाव में आकर, हव्वा ने आँदोलन शुरु किया जिसका परिणाम मानवजाति के लिए मृत्यु हुआ, और आदम, उसके सिद्ध पति ने, उस मृत्यु देनेवाले मार्ग में उसका साथ देना पसन्द किया। इस प्रकार, मानवजाति की आनेवाली पीढ़ियों को स्वाभाविक जीवन देनेवाले के रूप में, आदम ही वह जन था जिसने सम्पूर्ण मानव परिवार में मृत्यु के कार्यकलाप को आरंभ किया। यह बात है कि बाइबल कहती है: “इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिए कि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५:१२) आदम और हव्वा के पाप करने के बाद ही उन्होंने मानव परिवार में नए सदस्यों को बढ़ाना शुरु किया।—भजन संहिंता ५१:५.
६. यहोवा ने क्यों प्रबन्ध किया कि “जल” उपलब्ध हो?
६ क्या परमेश्वर को सदा के लिए रोक दिया जाता कि सिद्ध मानवों से भरी एक परादीस पृथ्वी के अपने उद्देश्य को पूरा कर सके? बाइबल का उत्तर, निश्चय ही नहीं में है! तथापि, अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए, यहोवा ने एक प्रेमपूर्ण प्रबन्ध किया जो आदम की विनाशकारी असफलता को प्रभावहीन कर देता और फिर भी न्याय और धार्मिकता के साथ पूरी तरह मेल खाता, जिसका वह स्वयं सम्पूर्ण और अन्तिम अभिव्यक्ति है। वह इसे “जीवन के जल की नदी” के द्वारा करता है। इसके जरिए, वह आज्ञाकारी मानवजाति को सिद्ध मानव जीवन पुनः प्रदान करेगा, जिसका जीवन के स्रोत तक पहुंच जब्त हो चुका था। यह नदी यीशु मसीह के हजार वर्ष के शासन के दौरान अपने पूरे अर्थ में बहती है। इस प्रकार, मसीह के हजार वर्ष के शासन की पूरी अवधि में, मानवों को, इसमें जो मरे हुओं में से पुनरूत्थान प्राप्त करते हैं शामिल हैं, “जीवन के जल की नदी” से पीना ही है।—यहेजकेल ४७:१-१०; प्रेरितो के काम २४:१५ से तुलना करें।
७. “जल” का प्रबन्ध किस आधार पर किया गया है?
७ यहोवा अपने जीवन का आनन्द उठाते है, और वह अपनी कुछ सृष्टि को बुद्धियुक्त जवीन का सुअवसर प्रदान करने में भी आनन्द उठाते हैं। यहोवा के जीवनदायक प्रबन्ध का आधार यीशु का छुड़ौती का बलिदान है। (मरकुस १०:४५; १ यूहन्ना ४:९ १०) इसमें परमेश्वर का वचन भी शामिल है, जिसे बाइबल कभी कभी “जल” कहती है। (इफिसियों ५:२६) उन मानव प्राणियों को, जिन्होंने प्रारंभिक प्रबन्धों को खो दिया जिसे परमेश्वर ने सिद्ध मानव जोड़े आदम और हव्वा के लिए बनाया था, यहोवा परमेश्वर “आ!” कहने के लिए मुक्त हैं।
दुलहन वर्ग आमंत्रण देता है “आ!”
८. सबसे पहले यह “जल” किनको और कब दिया गया?
८ सबसे पहले “आ!” का निमन्त्रण देने वाले वो हैं जो मेम्ने, यहोवा के पहिलौठे आत्मिक पुत्र, के लाक्षणिक दुलहन का गठन करते हैं। (प्रकाशितवाक्य १४:१, ३, ४; २१:९) मसीह की आत्मिक दुलहन अपने आप से “आ!” नहीं कह रही है, अर्थात, उनसे नहीं जिन्हें यहोवा परमेश्वर दुलहन वर्ग का भाग होने के लिए १,४४,००० को पूरा करने के लिए आगे भी इकठ्ठा करते। निमंत्रण के ये शब्द उन मानवों को दिए जाते हैं जो हरमगिदोन के बाद पृथ्वी पर सिद्ध मानव जीवन प्राप्त करने की आशा रखते हैं। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) १९१४ से, इस रीति-रिवाज के अन्तिम समय के दौरान, हमने परमेश्वर की पवित्र आत्मा के सहयोग से “दुलहन” के द्वारा निमंत्रण दिए जाते सुना है।
९. हम कैसे जानते हैं कि यह सिर्फ एक छोटे दल के लिए नहीं है?
९ रोमांचकारी रूप से, बाइबल की आखिरी पुस्तक दिखाती है कि ‘एक ऐसी बड़ी भीड़ जिसे कोई गिन नहीं सकता’ परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार की घोषणा की अनुक्रिया करेंगे और दृढ़ता के साथ अपने आप को उस शाही सरकार के पक्ष में खड़ा करेंगे। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १६, १७) क्या आप उस बड़ी भीड़ में से हैं? तब, “जो कोई सुने, वह कहे: ‘आ!’”
आत्मा और दुलहन कहते हैं, “आ!”
१०. लाक्षणिक जल का आरंभ अवश्य कहाँ से है और क्यों?
१० परन्तु प्रकाशितवाक्य २२:१७ में परमेश्वर और लाक्षणिक दूल्लहे का जिक्र क्यों नहीं किया गया है? पहला, ध्यान दीजिए कि आयत यह नहीं बताती है कि आत्मा किसके निर्देशन में कार्य करती है। फिर भी, आत्मा का उल्लेख हमारा ध्यान स्वयं यहोवा परमेश्वर की ओर ही ले जाता है। पिता को चित्र से बाहर नहीं निकाला जाता है, क्योंकि वही पवित्र आत्मा का स्रोत है। दूसरा, पुत्र अपने पिता के साथ पूरा सहयोग करता है, जैसा वह स्वयं कहता है: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, कवेल वह जो पिता को करते देखता है।” (यूहन्ना ५:१९) इसके अलावा, जबकि यह निमंत्रण एक प्रेरित वचन है जो आखिरकार यहोवा परमेश्वर से आरंभ होता है, मानव परमेश्वरीय निर्देशन, या “प्रेरित अभिव्यक्तियों” को “वचन” यीशु मसीह, के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। (प्रकाशितवाक्य २२:६; २२:१७ भी, रेफरेन्स बाइबल, फुटनोट; युहन्ना १:१) तब, उचित रूप से हम दूल्हे, मसीह को, इस निमंत्रण के साथ संगठित करते हैं। हाँ, हम निश्चित हो सकते कि दोनों, यहोवा परमेश्वर, दूल्हे का पिता, और दूल्हा यीशु मसीह, “दुलहन” के साथ मिलकर पवित्र आत्मा के द्वारा कहते हैं, “आ!”
११, १२. (अ) पहले से ही क्या सूचित किया गया कि पीने का निमंत्रण और भी बढ़ाया जाएगा? (ब) बाद के वर्षों में स्थिति कैसे अधिक स्पष्ट हुई?
११ “आ!” का यह निमंत्रण दशकों से लोगों को दिया जा रहा है जो “जीवन के जल” के प्यासे हैं। १९१८ में भी, दुलहन वर्ग ने एक संदेश का प्रचार करना शुरू किया जो खास कर उन लोगों को शामिल करता था जो पृथ्वी पर रह सकेंगे। यह आम भाषण जिसका शीर्षक था “लाखों जो आज जीवित हैं शायद कभी नहीं मरेंगे।” इसने एक आशा प्रस्तुत करी कि बहुतेरे हरमगिदोन से बचेंगे और इसके बाद परमेश्वर के मसीही राज्य के आधीन परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे। परन्तु उस संदेश ने बचाव के इस सुअवसर के लिए सामान्य तरीके से धार्मिकता को छोड़, काई निश्चित रास्ता नहीं दिखाया।
१२ “आ!” के निमंत्रण को अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए, १९२२ में यह संदेश उन सभी लोगों को दिया गया जो परमेश्वर की सेवा करने में दिलचस्पी रखते थे: “राजा और राज्य की घोषणा करो।” १९२३ में दुलहन वर्ग ने यह समझ प्राप्त करी कि मत्ती २५:३१-४६ में यीशु के दृष्टान्त के “भेड़” और “बकरी” हरमगिदोन से पहले प्रगट होते हैं। तब, १९२६ में, मार्च १५ के द वॉचटावर में लेख निकाला गया “अनुग्रहक आमंत्रण।” इसका शीर्षक पाठ था प्रकाशितवाक्य २२:१७, और इसमें दुलहन वर्ग को “आ!” का निमंत्रण देने के उत्तरदायित्व पर जोर दिया गया।—पृष्ठ ८७-९.a
दूसरी भेड़ “आ!” कहने में साथ देते हैं
१३, १४. १९३० के वर्षों में, क्या अतिरिक्त स्पष्टीकरण दिया गया कि अन्य लोग भी लाक्षणिक जल से पिएँगे?
१३ इसके अलावा, १९३२ के समय में भी, द वॉचटावर ने “दूसरी भेंड़ों” के उत्तरदायित्व को दिखाया, कि वे भी “आ” कहें। (यूहन्ना १०:१६) इसके अगस्त १ के अंक, पृष्ठ २३२, परिच्छेद २९ में कहा गया: “यहोवा के गवाहों की जोश अब येहू की तरह है और उन्होंने योनादाब वर्ग [दूसरी भेड़] को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे उनके साथ आ जाएं और दूसरों के सामने यह घोषणा करने में कि पमरेश्वर का राज्य आ गया है कुछ भाग लें।” तब प्रकाशितवाक्य २२:१७ का उद्धृत करने के बाद, परिच्छेद में कहा गया: “अभिषिक्त उन सभी को प्रोत्साहित करें जो राज्य के सुसमाचार को बताने में हिस्सा लेंगे। प्रभु के संदेश की घोषणा करने के लिए उन्हें प्रभु से अभिषिक्त होने की जरूरत नहीं हैं। यहोवा के गवाहों को अभी यह जानकर बहुत सांत्वना है कि यहोवा की उदार भलाई के कारण उन्हें जीवन के जल को एक ऐसी श्रेणी के लोगों तक पहुँचाने कि अनुमति दी जा रही है जिन्हें हरमगिदोन से बचाकर पृथ्वी पर अनन्त जीवन दिया जा सकता है।”b
१४ १९३४ के बाद से, शेष अभिषिक्त लोगों ने दिखाया कि इन दूसरी भेड़ों ने अब स्वयं परमेश्वर के लिए समर्पित करना है और इस समर्पण को पानी में बपतिस्मा के द्वारा दर्शाना चाहिए और फिर अन्य भी प्यासे लोगों को “आ” कहने में दुलहन वर्ग के साथ शामिल होना चाहिए। इस प्रकार, अब दुलहन वर्ग के द्वारा इन प्यासी दूसरी भेड़ों को एक साथ “एक ही चरवाहा” यीशु मसीह के अधीन “एक ही झुण्ड” में इकट्ठा करने के लिए एक निश्चित निमंत्रण दिया जा रहा था। (यूहन्ना १०:१६) १९३५ में उस वर्ष की आम सम्मेलन में शेष अभिषिक्त लोगों को यह जानकर बड़ी प्रोत्साहन मिली की भेड़ सरीखे लोगों का वर्ग जिनसे वे “आ!” कह रहे थे, वास्तव में प्रकाशितवाक्य ७:९-१७ की “बड़ी भीड़” थी। इससे निमंत्रण देने के कार्य को बड़ा बल मिला।
१५. “आ” का निमंत्रण देने में “आत्मा” कैसे शामिल थी?
१५ “आ” कहने में, दुलहन वर्ग परमश्वर की आत्मा के साथ सामंजस्य में था। अपनी आत्मा के द्वारा अपने लिखित वचन की भविष्यवाणियों का अर्थ खोलने के द्वारा, उन्होंने दुलहन वर्ग के शेष लोगों को निमंत्रण बढ़ाने के लिए उकसाया। ये भविष्यवाणियाँ जिन पर उनका आमंत्रण आधारित था परमेश्वर की आत्मा के द्वारा प्रेरित किया गया था। अतः, वास्तव में, परमेश्वर की आत्मा, जो मसीह और उनकी दुलहन के जरिए बह रहा था, भेड़ सरीखे लोगों की बड़ी भीड़ से कह रहा था, “आ!”—प्रकाशितवाक्य १९:१०.
१६. आज आत्मा और दुलहन कैसे निमंत्रण के साथ जुड़े हुए है?
१६ आज के दिन तक आत्मा और दुलहन, जिनका प्रतिनिधित्व शेष लोगों के द्वारा है, “लगातार कहती है: ‘आ!’” शेष लोग इन दूसरी भेड़ों से कहते हैं कि और भी दूसरों को “आ!” का निमंत्रण दें। उन्हे “जीवन का जल”, जो आज उपलब्ध है, स्वयं तक सीमित नही रखना है। उन्हे “आत्मा और दुलहन” की आज्ञा को अवश्य मानना है, अर्थातः “जो कोई सुने, वह कहे: ‘आ!’” उन सभी को जो अपनी प्यास बुझाते हैं इस निमंत्रण को अवश्य बाँटना है। उन्हे जाति, राष्ट्र, भाषा, या वर्त्तमान धर्म पर ध्यान दिए बिना सभी तक फैलाना है—प्रत्येक को हर जगह पहुँचाना है! वर्त्तमान समय में “जीवन का जल” में से जो कुछ उपलब्ध है उसे ही यहोवा के गवाह मुफ्त में, लोगों को सहायता और निमंत्रण दे रहे हैं!
१७. आज किस तरह का “जल” उपलब्ध है?
१७ सारी पृथ्वी पर, मेम्ना, यीशु मसीह, वास्तव में बड़ी भीड़ को “जीवन रूपी जल के स्रोतों के पास” ले जा रहा है। (प्रकाशितवाक्य ७:१७) यह दूषित जल नहीं है, परन्तु, अपने स्रोत से ही स्वच्छ, शीतल, स्वस्थवर्द्धक है। इन लाक्षणिक जलों का अर्थ, बाइबल की सच्चाई को समझने के अर्थ से कहीं ज्यादा हैं; इनका मतलब है यीशु मसीह के जरिए परमेश्वर के सारे प्रबन्ध जो अभी से है बड़ी भीड़ को आनन्दमय सिद्ध अनन्त जीवन के मार्ग पर ला रहे हैं।
घोषणा करने में अभी साथ दीजिए
१८. हमारे समय में निमंत्रण कितना विस्तृत है?
१८ अभी ही, इस बड़ी भीड़ की संख्या बढ़कर कई लाखों हो गई है। वे उत्साह के साथ सारी बसी हुई पृथ्वी पर राज्य के सुसमाचार की घोषणा कर रहे हैं। वे नियमित रूप से राज्य सुसमाचार के प्रचार में अपने क्षेत्र सेवकाई की रिपोर्ट देते हैं, जो अभी २१२ देशों तक पहुंच चुकी है। इस रीति रिवाज के अन्त के दौरान जैसा समय अनुमति देता है, यहोवा परमेश्वर महान समय का हिसाब रखनेवाले, के धीरज और सहिष्णुता के अनुसार निमंत्रण जारी रहेगा। वह जान जाएंगे कि समय कब पूरा हो गया है और वह निर्णायक घड़ी कब है जब वह अपने आप को सभी के सामने यहोवा के रूप में जाहिर करेगा, ठीक जैसा उन्होंने बाइबल की भविष्यवाणियों में बारम्बार दोहराए गए बयानों के अनुसार प्रतिज्ञा की है।—यहेजकेल ३६:२३; ३८:२१-२३; ३९:७.
१९. हम क्यों कह सकते हैं कि यह “जल” मुफ्त में दिया जाता है?
१९ इसलिए, जब की समय बाकी है, बड़ी भीड़ के सदस्य आनन्द के साथ दुलहन दल के शेष लोगों के साथ यह कहने में भाग लेते हैं: ‘आएं और जीवन का जल मुफ़त लें!’ इस जीवन रक्षक सुसमाचार की घोषणा करनेवाले मुफ्त में यह घोषणा कर रहे हैं, जब वे राज्य का संदेश सारे संसार में प्रचार करते हैं अपनी सेवाओं का वे मूल्य नहीं लेते हैं।
२०. क्योंकि यह “जल” उपलब्ध है परिणाम क्या होगा?
२० जीवन का जल अभी पृथ्वी के चारों ओर उपलब्ध है, जिससे कि जो लोग इसे ग्रहण करना चाहते हैं पूरी संतुष्टि जीवन-रक्षक परिणाम के साथ ऐसा कर सकते हैं। छुड़ाई गई मानवजाति अनन्त जीवन का आनन्द इसी पृथ्वी पर उठाएँगे, जिसे एक परादीस में यहोवा के मूल्यावान उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए बदला जाना है। हमारे सृष्टिकर्त्ता ने पृथ्वी को व्यर्थ में नहीं परन्तु सारी पृथ्वी तक फैली हुई अदन की बाटिका या आनन्द का परादीस होने के लिए बनाया, जो परमेश्वर के स्वरूप और समानता में सिद्ध मानव प्राणियों से बसा रहेगा।
२१. पृथ्वी के लिए परमेश्वर का उद्देश्य कैसे पूरा किया जाएगा?
२१ निश्चय, इस प्रकार के एक नए संसार, में रहना एक अकथनीय महान सुअवसर और आनन्द होगा! तब वह आदेश जो परमेश्वर ने प्रथम मानव जोड़े को उत्पत्ति १:२८, २९ में दिया था बहुतायत में पूरा होगा। मानव परिवार के ऊपर जो संकट आया उसको प्रवीणता के साथ संभालने के लिए यहोवा का धन्यवाद, पृथ्वी एक परादीस होने तक वश में की जाएगी और एक सिद्ध मानव जाति से भर दी जाएगी। हाँ, परमेश्वर सभी चीजों को देखेगा जो उन्होंने बनायी हैं, और देखो, वह बहुत ही अच्छी होगी। क्या आप वहाँ होंगे? यदि हाँ, तो आप को चाहिए कि अभी मूल्यांकन दिखाते हुए जीवन के जल को मुफ्त में ग्रहण करें। “आओ” और जी भर के पीयो और जीवन के उस जल से अपनी प्यास बुझाओ जो अभी बहना शुरू हो गया है और आनेवाले हजार वर्ष के दौरन पूरी तरह बहेगा। और जो कोई इस मधुर निमंत्रण को सुनता है वह कहे: “आ!”
[फुटनोट]
a अन्य बातों के अलावा, इस लेख ने कहा: “पहले कभी भी सच्चाई की इतनी विस्तृत गवाही नहीं दी गई थी जितनी पिछले कुछ वर्षों में। . . . शेष जन उन्हें खुशी का संदेश देते हैं, और उनसे वे कहते हैं: ‘और जो कोई चाहे वह जीवन का जल मुफ़त ले।’ उन्हें बताया जाता है कि वे अभी अपने आप को प्रभु के पक्ष में, और शैतान के विरोध में खड़ा करके, आशीष पा सकते हैं। क्या इसी श्रेणी के लाग नहीं है जो अभी नम्रता और धार्मिकता को ढूंढ़ सकते हैं, और उनके क्रोध के दिन में शरण पा सकते हैं, और हरमगिदोन की बड़ी लड़ाई से पार ले जा कर, और बिना मरे हमेशा जीवित रह सकते हैं? (सपन्याह २:३) . . . विश्वस्त शेष वर्ग अनुग्रहाक निमंत्रण में साथ देते हैं और कहते है, ‘आ!’ यह संदेश उन्हें घोषणा किया जाना है जिनको सत्य और धार्मिकता के लिए इच्छा है। इसे अभी करना है।”
b अगस्त १५, १९३४ के द वॉचटावर ने दूसरी भेड़ों के उत्तरदायित्व का भी हवाला दिया और पृष्ठ २४९, परिच्छेद ३१ में कहा: “यहोनादाब वर्ग के लोग उन में से हैं जो सच्चाई के संदेश को ‘सुनते’ हैं और जिन्हें अपने सुननेवालों से कहना है: ‘आ!,’ और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।’ (प्रकाशितवाक्य २२:१७) यहोनादाब वर्ग के लोगों को उन लोगों के साथ-साथ जाना है जो प्रतीकात्मक येहू दल के हैं, अर्थात, अभिषिक्त जन, और जब कि वे अभिषिक्त यहोवा के गवाह नहीं है, राज्य के संदेश की घोषणा उन्हें करनी है।”
आपका उत्तर क्या है?
◻ प्रकाशितवाक्य २२:१७ मे किस “जल” का हवाला है?
◻ “जल” का स्रोत क्या है?
◻ “जल” की आवश्यकता क्यों है, और केवल कब यह बहना शुरू होगा?
◻ हमारे लेख में, “आत्मा” का हवाला किसे दर्शाता है, और इसमें “दुलहन” कैसे शामिल हैं?
◻ “जल” में कौन भाग ले सकता है और किस नतीजे के साथ?