बाइबल समयों में यरूशलेम पुरातत्वविज्ञान क्या प्रकट करता है?
यरूशलेम में ख़ासकर १९६७ से, बड़े-बड़े दिलचस्प पुरातात्विक कार्य हुए हैं। खुदाई किए गए अनेक स्थल अब जनता के लिए खोल दिए गए हैं, सो आइए हम उनमें से कुछ स्थानों की यात्रा करें और देखें कि कैसे पुरातत्वविज्ञान बाइबल इतिहास से मेल खाता है।
राजा दाऊद का यरूशलेम
जिस क्षेत्र का बाइबल सिय्योन पर्वत कहकर उल्लेख करती है, जिस पर प्राचीन दाऊदपुर का निर्माण किया गया था, वह आधुनिक महानगर यरूशलेम में काफ़ी छोटा दिखता है। १९७८-८५ के बीच मरहूम प्रोफ़ेसर यिगल शाइलो के नेतृत्व में, दाऊदपुर की खुदाई ने पहाड़ी के पूर्वी भाग में पत्थरों की एक विशाल सीढ़ीनुमा संरचना, या टेक दीवार को उजागर किया।
प्रोफ़ेसर शाइलो ने दावा किया कि यह ज़रूर सीढ़ीदार दीवारों से बने विशाल आधार का अवशेष होगा जिस पर यबूसियों (दाऊद की विजय से पहले के निवासियों) ने एक क़िला निर्माण किया था। उसने समझाया कि जो पत्थरों की सीढ़ीनुमा संरचना उसने इन सीढ़ीदार दीवारों के ऊपर पायी थी, वह यबूसी क़िले के स्थल पर दाऊद द्वारा निर्मित नए गढ़ का हिस्सा थी। २ शमूएल ५:९ में, हम पढ़ते हैं: “दाऊद उस गढ़ में रहने लगा, और उसका नाम दाऊदपुर रखा। और दाऊद ने चारों ओर मिल्लो से लेकर भीतर की ओर शहरपनाह बनवाई।”
इस संरचना के पास में शहर की प्राचीन जल-प्रणालियों के प्रवेश-मार्ग हैं, जिसके कुछ भाग दाऊद के समय के लगते हैं। यरूशलेम की जल-सुरंग प्रणाली के बारे में बाइबल में दिए गए कुछ कथनों ने सवाल खड़े किए हैं। मिसाल के तौर पर, दाऊद ने अपने लोगों से कहा कि “जो कोई यबूसियों को मारना चाहे, उसे चाहिये कि नाले [“जल सुरंग,” NW] से होकर चढ़े, और” शत्रु को “मारे।” (२ शमूएल ५:८) दाऊद के प्रधान योआब ने ऐसा किया। अभिव्यक्ति “जल सुरंग” का सही-सही अर्थ क्या है?
मशहूर शीलोह सुरंग के बारे में अन्य सवाल खड़े किए गए हैं, जो कि संभवतः राजा हिजकिय्याह के इंजीनियरों द्वारा सा.यु.पू. आठवीं शताब्दी में बनायी गयी थी और जिसका ज़िक्र २ राजा २०:२० व २ इतिहास ३२:३० में किया गया है। विपरीत छोर से खोदते हुए, सुरंग खोदनेवालों के दो दल कैसे मिल पाते? उन्होंने घुमावदार रास्ते का चुनाव क्यों किया जिसकी वज़ह से सुरंग एक सीधे रास्ते के बजाय काफ़ी लंबी हो गयी? श्वास लेने के लिए उन्हें पर्याप्त वायु कैसे मिली, ख़ासकर जब उन्होंने संभवतः तेल से जलनेवाले दियों का इस्तेमाल किया होगा?
बाइबलीय पुरातत्वविज्ञान समीक्षा (अंग्रेज़ी) पत्रिका ने ऐसे सवालों के संभव जवाब प्रस्तुत किए हैं। इस खुदाई के एक भूवैज्ञानिक सलाहकार, डैन गिल को यों कहते हुए उद्धृत किया गया है: “दाऊदपुर के नीचे एक सुविकसित प्राकृतिक कार्स्ट प्रणाली है। कार्स्ट एक भूवैज्ञानिक पद है जो पोखरों, गुहामयों और जलमार्गों के ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र को वर्णित करता है, जो भूमिगत शैल-समूहों से रिसती और बहती हुई भूमिगत जलधारा की वज़ह से उत्पन्न होता है। . . . दाऊदपुर के नीचे की भूमिगत जलप्रणालियों की हमारी भूवैज्ञानिक जाँच यह सूचित करती है कि इन्हें मूलतः मनुष्यों द्वारा बड़े कौशल के साथ प्राकृतिक (कार्स्टिक) अपरदनकारी जलमार्गों और कूपकों का विस्तार करके बनाया गया था, जिन्हें प्रकार्यात्मक जल सप्लाई प्रणालियों में जोड़ दिया गया था।”
यह शायद यह समझाने में मदद करे कि शीलोह सुरंग की खुदाई कैसे की गयी थी। इसे शायद पहाड़ी के नीचे एक प्राकृतिक जलमार्ग के घुमावदार रास्ते को देखते हुए बनाया गया होगा। प्रत्येक छोर से कार्य करनेवाले दल ने शायद मौजूदा गुहामयों को बदलने के द्वारा एक अस्थायी सुरंग खोदी होगी। फिर एक ढलानवाला जलमार्ग खोदा गया होगा ताकि पानी गीहोन सोते से शीलोह के कुण्ड में बह सके, जो संभवतः शहर की दीवारों के भीतर स्थित था। यह इंजीनियरी की एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि ५३३ मीटर की इसकी लंबाई के बावजूद, दोनों छोर की ऊँचाई में केवल ३२ सेंटीमीटर का अंतर है।
विद्वानों ने काफ़ी समय पहले ही जान लिया था कि प्राचीन शहर के जल का मुख्य स्रोत था गीहोन सोता। यह शहर की दीवारों के बाहर था लेकिन इतना क़रीब था कि एक सुरंग और एक ११-मीटर गहरा कूपक खोदा जा सके, जिससे निवासी सुरक्षात्मक दीवारों के बाहर जाए बिना पानी निकालने में समर्थ होते। यह वॉरन कूपक के नाम से जाना जाता है, जो १८६७ में इस प्रणाली को खोज निकालनेवाले व्यक्ति, चार्ल्स वॉरन के नाम पर रखा गया। लेकिन सुरंग और कूपक कब बनाए गए थे? क्या वे दाऊद के समय में अस्तित्त्व में थे? क्या यह वही जल सुरंग थी जिसे योआब ने इस्तेमाल किया था? डैन गिल जवाब देता है: “यह परखने के लिए कि वॉरन कूपक असल में एक प्राकृतिक पोखर था या नहीं, हमने कार्बन-१४ के लिए इसकी ऊबड़-खाबड़ दीवारों के कैल्सियमी भूपटल के एक टुकड़े की जाँच की। इसमें यह नहीं था, जो यह सूचित करता है कि यह भूपटल ४०,००० साल से भी ज़्यादा पुराना है: यह सुस्पष्ट प्रमाण देता है कि यह कूपक मनुष्यों के हाथों खोदा हुआ नहीं हो सकता।”
हिजकिय्याह के समय के अवशेष
राजा हिजकिय्याह उस समय जीवित था जब अश्शूर जाति अपने मार्ग में आई हर किसी चीज़ पर विजय हासिल कर रही थी। उसके शासन के छठवें साल में, अश्शूरियों ने शोमरोन पर विजय हासिल की, जो दस-गोत्र राज्य की राजधानी थी। आठ साल बाद (सा.यु.पू. ७३२), अश्शूर के लोग फिर से आ धमके जिससे यहूदा तथा यरूशलेम को ख़तरा हो गया। दूसरा इतिहास ३२:१-८ हिजकिय्याह की प्रतिरक्षा युद्ध-नीति का वर्णन देता है। क्या इस युग के कोई दृश्य प्रमाण हैं?
जी हाँ, १९६९ में, प्रोफ़ेसर नमान अवीगाद ने इस युग के अवशेष खोज निकाले। खुदाई से एक विशाल दीवार का एक भाग नज़र आया, जिसका पहला भाग ४० मीटर लंबा, सात मीटर चौड़ा, और अंदाजन, आठ मीटर ऊँचा था। यह दीवार अंशतः तल-शिला पर खड़ी थी और अंशतः हाल में निर्माण किए गए मकानों पर खड़ी थी। किसने इस दीवार को बनाया और कब? “बाइबल के दो परिच्छेदों ने अवीगाद को दीवार का काल और मक़सद सुस्पष्ट रूप से बताने में मदद दी,” एक पुरातात्विक पत्रिका रिपोर्ट करती है। इन परिच्छेदों में यों लिखा है: “फिर हिजकिय्याह ने हियाव बान्धकर शहरपनाह जहां कहीं टूटी थी, वहां वहां उसको बनवाया, और उसे गुम्मटों के बराबर ऊंचा किया और बाहर एक और शहरपनाह बनवाई।” (२ इतिहास ३२:५) “[तुम] शहरपनाह के दृढ़ करने के लिये घरों को ढा [दोगे]।” (यशायाह २२:१०) आज आगंतुक इस तथा-कथित चौड़ी शहरपनाह के एक भाग को पुराने शहर की यहूदी बस्ती में देख सकते हैं।
विभिन्न खुदाइयाँ यह भी प्रकट करती हैं कि इस समय यरूशलेम, पहले जितना समझा गया था, उससे कहीं ज़्यादा बड़ा था, संभवतः इसका कारण अश्शूरियों द्वारा पराजित किए जाने के बाद उत्तरी राज्य से आए शरणार्थियों का आधिक्य रहा हो। प्रोफ़ेसर शाइलो ने अनुमान लगाया कि यबूसियों का शहर क़रीब १५ एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ था। सुलैमान के समय में यह तक़रीबन ४० एकड़ तक फैला हुआ था। ३०० साल बाद, राजा हिजकिय्याह के समय तक शहर का क़िलेबंदी किया हुआ क्षेत्र क़रीब १५० एकड़ तक फैल चुका था।
पहले मंदिर के युग के क़ब्रिस्तान
पहले मंदिर के युग, यानि कि, सा.यु.पू. ६०७ में बाबुलियों द्वारा यरूशलेम के नाश होने से पहले के क़ब्रिस्तान, जानकारी का एक और स्रोत रहे हैं। सनसनीख़ेज़ खोज की गयीं जब १९७९/८० में हिन्नोम की तराई की ढलानों पर खुदाई करने पर कुछ क़ब्र-गुफाएँ पायी गयीं। “यरूशलेम में पुरातात्विक खोज के समस्त इतिहास में, यह पहले मंदिर के उन कुछेक भंडारों में से एक था जो अपनी सारी वस्तुओं सहित पाया गया। इसमें एक हज़ार से भी ज़्यादा वस्तुएँ थीं,” पुरातत्वविज्ञानी गेब्रियल बारके कहता है। वह आगे कहता है: “इस्राएल में, और विशेषकर यरूशलेम में काम कर रहे हर पुरातत्वविज्ञानी का मनचाहा सपना होता है लिखित सामग्री पाना।” दो छोटे-छोटे चाँदी के ख़र्रे पाए गए, जिनमें क्या था?
बारके समझाता है: “जब मैंने खुली हुई चाँदी की पट्टी देखी और उसे मैग्निफाइंग ग्लास के नीचे रखा, तो मैं देख सका कि उसकी सतह बारीकी से बने हुए अक्षरों से भरी पड़ी थी, जो चाँदी की बहुत ही पतली और नाज़ुक परत पर किसी तेज़ औज़ार से कुरेदे हुए थे। . . . वह ईश्वरीय नाम जो स्पष्ट रूप से अभिलेख में दिखता है, प्राचीन इब्रानी लिपि में लिखे गए चार इब्रानी अक्षरों से बना है, योद-हे-वॉव-हे।” बाद के एक प्रकाशन में, बारके आगे कहता है: “हमें आश्चर्य हुआ कि दोनों चाँदी के फलकों पर मंगलकामना के कथन लिखे हुए थे जो बाइबलीय याजकीय आशीष से बहुत मिलते-जुलते थे।” (गिनती ६:२४-२६) यह पहली बार था कि यहोवा का नाम यरूशलेम में खोज किए गए अभिलेख में पाया गया था।
विद्वानों ने इन चाँदी के ख़र्रों का काल निर्धारित कैसे किया? जिस पुरातात्विक माहौल में ये पाए गए थे, मुख्यतः उसी के द्वारा। भंडार में ३०० से भी अधिक मिट्टी के बर्तन पाए गए थे जिनका काल निर्धारित किया जा सकता था, और जो सा.यु.पू. सातवीं और छठवीं शताब्दियों के समय के थे। दूसरे काल-निर्धारित अभिलेखों से तुलना किए जाने पर, यह लिपि उसी कालावधि की है। ये ख़र्रे यरूशलेम के इस्राएल म्यूज़ियम में प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं।
सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम का नाश
बाइबल २ राजा अध्याय २५, २ इतिहास अध्याय ३६, और यिर्मयाह अध्याय ३९ में सा.यु.पू. ६०७ में हुए यरूशलेम के नाश के बारे में बताती है, और रिपोर्ट करती है कि नबूकदनेस्सर की सेना ने शहर को आग लगा दी। क्या हाल में की गयी खुदाई ने इस ऐतिहासिक वृत्तांत की पुष्टि की है? प्रोफ़ेसर यिगल शाइलो के मुताबिक़, “स्पष्ट पुरातात्विक प्रमाण . . . बाइबल में दिए गए [बाबुल के नाश के] प्रमाण की पुष्टि करता है; विभिन्न भवनों का सर्वनाश, और ऐसा अग्निकांड जिसने मकानों के लकड़ी से बने विभिन्न भागों को राख कर दिया।” उसने आगे कहा: “इस नाश के निशान यरूशलेम में की गयी प्रत्येक खुदाई में पाए गए हैं।”
आगंतुक इस नाश के अवशेष देख सकते हैं जो कुछ २,५०० साल से भी पहले घटित हुआ था। इस्राएली गुम्मट, जला हुआ कमरा, और सील घर उन मशहूर पुरातात्विक स्थलों के नाम हैं जिन्हें सुरक्षित रखा गया है और जनता के देखने के लिए खोला गया है। पुरातत्वविज्ञानी जेन एम. केहिल और डेविड टार्लर प्राचीन यरूशलेम प्रकट (अंग्रेज़ी) पुस्तक में यों सार देते हैं: “बाबुल के लोगों द्वारा यरूशलेम का व्यापक नाश न केवल जला हुआ कमरा और सील घर जैसे भवनों में पाए गए झुलसे अवशेष की उन मोटी-मोटी परतों से प्रत्यक्ष होता है, बल्कि ढह गयी इमारतों के ऊँचे पथरीले मलबे से भी प्रत्यक्ष होता है जो पूरी पूर्वी ढलान पर बिछा हुआ पाया गया। पुरातात्विक प्रमाण . . . शहर के विनाश के बारे में बाइबलीय विवरण की पुष्टि करता है।”
अतः, दाऊद के समय से लेकर सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम के नाश तक इसके बारे में बाइबल द्वारा खींची गयी तसवीर की पुष्टि, अनेक तरीक़ों से गत २५ वर्षों के दौरान की गयी पुरातात्विक खुदाइयों द्वारा की गयी है। लेकिन सा.यु. प्रथम शताब्दी के यरूशलेम के बारे में क्या?
यीशु के दिन का यरूशलेम
खुदाई, बाइबल, प्रथम शताब्दी का यहूदी इतिहासकार जोसिफ़स, और अन्य स्रोत, सा.यु. ७० में रोमियों द्वारा यरूशलेम के नाश किए जाने से पहले, यीशु के दिन के यरूशलेम को समझने में विद्वानों की मदद करते हैं। यरूशलेम के एक बड़े होटल के पीछे प्रदर्शित किए गए एक मॉडल में, नयी-नयी खुदाई जो प्रकट करती हैं, उनके मुताबिक़ नियमित रूप से परिवर्तन किए जा रहे हैं। शहर की मुख्य विशिष्टता थी पर्वतीय मंदिर, जिसके आकार को हेरोद ने सुलैमान के समय की तुलना में दुगुना कर दिया था। यह प्राचीन संसार में मनुष्यों के हाथों से बना सबसे बड़ा चबूतरा था, जो लगभग ४८० मीटर बाय २८० मीटर का था। निर्माण के कुछ पत्थरों का वज़न ५० टन था, एक का वज़न तो ४०० टन के क़रीब था और एक विद्वान के मुताबिक़, “प्राचीन संसार में कहीं भी इसके आकार का तुल्य नहीं था।”
इसमें आश्चर्य नहीं कि कुछ लोग स्तब्ध हो गए थे जब उन्होंने यीशु को यह कहते हुए सुना: “इस मन्दिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा।” उन्होंने सोचा कि उसका अर्थ वह विशाल मंदिर का भवन था, हालाँकि उसका अर्थ “अपनी देह के मन्दिर” के विषय में था। इसीलिए, उन्होंने कहा: “इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हैं, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?” (यूहन्ना २:१९-२१) पर्वतीय मंदिर के आस-पास की जगहों में की गयी खुदाई के परिणामस्वरूप, अब आगंतुक यीशु के समय की दीवारों का कुछ भाग और अन्य वास्तुकलात्मक विशिष्टताएँ देख सकते हैं और जिन सीढ़ियों से वह संभवतः मंदिर के दक्षिण फाटकों तक चल कर गया, वे भी उन सीढ़ियों से होकर जा सकते हैं।
पर्वतीय मंदिर की पश्चिमी दीवार से कुछ ही दूर, पुराने शहर की यहूदी बस्ती में सा.यु. प्रथम शताब्दी से, जले हुए मकान और हेरोदेस की बस्ती नामक दो अच्छी तरह से मरम्मत किए गए खुदाई के स्थल हैं। जले हुए मकान की खोज के बाद, पुरातत्वविज्ञानी नमान अवीगाद ने लिखा: “अब यह बहुत ही स्पष्ट था कि यह इमारत यरूशलेम के नाश के दौरान, ७० ई.स. में रोमियों द्वारा जलायी गयी थी। शहर में की गयी खुदाई के इतिहास में पहली बार, शहर के जल जाने के बारे में स्पष्ट और साफ़-साफ़ पुरातात्विक प्रमाण उजागर हुआ था।”—पृष्ठ १२ पर चित्र देखिए।
इनमें से कुछ खोज यीशु के जीवन की कुछ घटनाओं पर प्रकाश डालती हैं। इमारतें भीतरी शहर में थीं, जहाँ यरूशलेम के धनी लोग रहते थे, जिनमें महायाजक शामिल थे। मकानों में बड़ी संख्या में रिवाज़ी स्नान-कुण्ड पाए गए। एक विद्वान यों कहता है: “बड़ी संख्या में पाए गए स्नान-कुण्ड इस बात का प्रमाण देते हैं कि दूसरे मंदिर युग के दौरान, भीतरी शहर के निवासी रिवाज़ी शुद्धता के नियमों का सख़्ती से पालन करते थे। (ये नियम मिश्नाह में अभिलिखित हैं, जिसमें मिकवे की बारीकियों पर दस अध्याय लिखे गए हैं।)” यह जानकारी इन रिवाज़ों पर फरीसियों और शास्त्रियों को कही गयी यीशु की टिप्पणियों को समझने में हमारी मदद करती है।—मत्ती १५:१-२०; मरकुस ७:१-१५.
एक बहुत ही बड़ी संख्या में पत्थर के बने बर्तन भी यरूशलेम में पाए गए हैं। नमान अवीगाद नोट करता है: “तो फिर, ये क्यों इतने अचानक और इतनी बड़ी मात्रा में यरूशलेम के घरानों में प्रकट हुए? जवाब हालाखाह, रिवाज़ी शुद्धता के बारे में यहूदी नियमों के क्षेत्र में मिलता है। मिश्नाह हमें बताता है कि पत्थर के बर्तन उन वस्तुओं में से हैं जो अशुद्ध नहीं होते . . . पत्थर का रिवाज़ी संदूषण बस संभव ही नहीं था।” ऐसा सुझाया गया है कि यह बात इसे समझाती है कि क्यों वह जल जिसे यीशु ने दाखरस में बदल दिया था, मिट्टी के मर्तबानों के बजाय पत्थर के बर्तनों में रखा गया था।—लैव्यव्यवस्था ११:३३; यूहन्ना २:६.
इस्राएल म्यूज़ियम में जाने पर दो असाधारण अस्थिपात्र दिखेंगे। बाइबलीय पुरातत्वविज्ञान समीक्षा समझाती है: “अस्थिपात्र मुख्यतः, सा.यु. ७० में रोमियों द्वारा यरूशलेम के नाश के पहले के तक़रीबन एक सौ साल के दौरान इस्तेमाल किए जाते थे। . . . मृत व्यक्ति को क़ब्र-गुफा की दीवार में बनाए गए एक खाँचे में रखा जाता था; शरीर के गल जाने के बाद, अस्थियों को जमा किया जाता था और एक अस्थिपात्र—साधारणतया अलंकृत चूना-पत्थर का एक बर्तन—में रखा जाता था।” प्रदर्शन के लिए रखे गए ये दोनों अस्थिपात्र, नवंबर १९९० को एक क़ब्र-गुफा में पाए गए थे। पुरातत्वविज्ञानी ज़्वी ग्रीनहट रिपोर्ट करता है: “क़ब्र में पाए गए दोनों अस्थिपात्रों पर दिया गया शब्द . . . ‘काइफा’ पहली बार यहाँ एक पुरातात्विक संदर्भ में प्रकट होता है। यह संभवतः महायाजक काइफा के परिवार का नाम था, जिसका ज़िक्र . . . नए नियम में किया गया है . . . यरूशलेम में इसके घर से ही यीशु को रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस को सौंप दिया गया था।” एक अस्थिपात्र में लगभग ६० साल के एक व्यक्ति की अस्थियाँ थीं। विद्वान अटकलें लगाते हैं कि ये वास्तव में काइफा की अस्थियाँ हैं। एक विद्वान इन खोजों को यीशु के समय की बताता है: “एक अन्य अस्थिपात्र में पाए गए एक सिक्के को हेरोदेस अग्रिप्पा ने ढलवाया था (सा.यु. ३७-४४)। ये दो काइफा अस्थिपात्र शायद उस शताब्दी की शुरूआत के हों।”
अरीजोना के विश्वविद्यालय के नियर ईस्टर्न आर्कियोलॉजी के प्रोफ़ेसर, विलियम जी. दॆवर ने यरूशलेम के संबंध में टिप्पणी की: “ऐसा कहना कोई बढ़ा-चढ़ाकर कहना नहीं होगा कि हमने इस मुख्य स्थल के पुरातात्विक इतिहास के बारे में पिछले पूरे १५० सालों में जितना सीखा है, उससे कहीं ज़्यादा पिछले १५ सालों में सीख लिया है।” हाल के दशकों के दौरान यरूशलेम की अनेक बड़ी-बड़ी पुरातात्विक गतिविधियों ने निश्चय ही ऐसी खोज प्रस्तुत की हैं जो बाइबल इतिहास का स्पष्टीकरण देती हैं।
[पेज 9 पर चित्र का श्रेय]
होलीलैंड होटल, यरूशलेम के मैदान पर स्थित दूसरे मंदिर के समय पर यरूशलेम शहर की प्रतिकृति
[पेज 10 पर तसवीर]
ऊपर: यरूशलेम के पर्वतीय मंदिर का दक्षिण-पश्चिम छोर
दाएँ: वॉरन कूपक में उतरते वक़्त