अध्ययन लेख 15
यीशु की मिसाल पर चलिए और मन की शांति पाइए
‘परमेश्वर की वह शांति जो समझ से परे है, तुम्हारे दिल की हिफाज़त करेगी।’—फिलि. 4:7.
गीत 113 शांति, हमारी अमानत!
लेख की एक झलकa
1-2. यीशु बेचैन क्यों था?
धरती पर यीशु की ज़िंदगी का आखिरी दिन है। वह बहुत बेचैन है। जल्द ही दुष्ट लोग उसे तड़पाएँगे और मार डालेंगे। लेकिन उसे अपनी मौत से बढ़कर दूसरी बातों की चिंता है, जो ज़्यादा मायने रखती हैं। वह अपने पिता से बेहद प्यार करता है और हमेशा उसे खुश करना चाहता है। यीशु जानता है कि आनेवाली मुश्किल परीक्षा में अगर वह वफादार रहा, तो इससे यहोवा का नाम बुलंद होगा। यीशु को लोगों से भी प्यार है और वह जानता है कि उसके वफादार रहने से पूरी मानवजाति के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खुल जाएगा।
2 भले ही यीशु बहुत तनाव में था, लेकिन उसका मन शांत था। इसी वजह से वह अपने प्रेषितों से कह पाया, ‘मैं तुम्हें शांति देता हूँ।’ (यूह. 14:27) उसे ‘परमेश्वर की शांति’ मिली यानी ऐसा सुकून, जो एक व्यक्ति को तब मिलता है, जब यहोवा के साथ उसका गहरा रिश्ता होता है। परमेश्वर से मिली इस शांति की वजह से यीशु को चैन मिला और उसने बहुत ज़्यादा चिंता नहीं की।—फिलि. 4:6, 7.
3. इस लेख में हम किन बातों पर ध्यान देंगे?
3 हममें से शायद ही कोई उस तनाव से गुज़रे, जिससे यीशु गुज़रा था। लेकिन उसके चेले होने के नाते हम सबको परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। (मत्ती 16:24, 25; यूह. 15:20) यीशु की तरह कभी-कभी हम भी बेचैन हो जाते हैं। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं, ताकि हम बहुत ज़्यादा चिंता न करें और अपने मन की शांति न खो बैठें? ध्यान दीजिए कि धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु ने कौन-से तीन कदम उठाए। यह भी गौर कीजिए कि जब हम पर परीक्षाएँ आती हैं, तो हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं।
यीशु ने बार-बार प्रार्थना की
4. पहला थिस्सलुनीकियों 5:17 को ध्यान में रखते हुए बताइए कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिन किन मौकों पर बार-बार प्रार्थना की।
4 पहला थिस्सलुनीकियों 5:17 पढ़िए। धरती पर अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिन यीशु ने कई बार प्रार्थना की। अपनी मौत की याद में जब उसने एक समारोह की शुरूआत की, तो उसने रोटी के लिए और फिर दाख-मदिरा के लिए प्रार्थना की। (1 कुरिं. 11:23-25) जहाँ उसने फसह मनाया था, वहाँ से निकलने से पहले उसने अपने चेलों के साथ एक बार फिर प्रार्थना की। (यूह. 17:1-26) उसी रात जब वह और उसके चेले जैतून पहाड़ पर आए, तो उसने कई बार प्रार्थना की। (मत्ती 26:36-39, 42, 44) यहाँ तक कि दम तोड़ने से पहले यीशु ने जो आखिरी शब्द कहे, वे भी प्रार्थना के रूप में थे। (लूका 23:46) सच में, उस दिन यीशु के साथ जो-जो हुआ, उस सबके बारे में उसने यहोवा से प्रार्थना की।
5. प्रेषितों की हिम्मत क्यों टूट गयी?
5 यीशु परीक्षा का सामना किस वजह से कर पाया? एक वजह यह थी कि उसने लगातार यहोवा से प्रार्थना की और वह उस पर निर्भर रहा। वहीं प्रेषित उस रात लगातार प्रार्थना करने से चूक गए। इस वजह से जब परीक्षा की घड़ी आयी, तो उनकी हिम्मत टूट गयी। (मत्ती 26:40, 41, 43, 45, 56) हम परीक्षाओं के दौरान यहोवा के वफादार तभी रह पाएँगे, जब हम यीशु की मिसाल पर चलेंगे और ‘प्रार्थना करते रहेंगे।’ लेकिन सवाल है कि हम किस बात के लिए प्रार्थना कर सकते हैं?
6. विश्वास होने से कैसे हमारा मन शांत रह पाता है?
6 हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह ‘हमारा विश्वास बढ़ाए।’ (लूका 17:5; यूह. 14:1) हममें विश्वास होना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि शैतान यीशु के सभी चेलों की परीक्षा लेता है। (लूका 22:31) लेकिन जब हम एक-के-बाद-एक मुश्किलों का सामना करते हैं, तब विश्वास कैसे हमारे मन को शांत रखता है? हमसे जो हो सकता है, हम करते हैं और बाकी हम यहोवा पर छोड़ देते हैं। हमें भरोसा होता है कि वह सही समय पर हमारी मुश्किलों का सबसे बढ़िया हल निकालेगा। यही भरोसा हमें मन की शांति देता है और हम बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करते।—1 पत. 5:6, 7.
7. भाई रौबर्ट की बातों से आपने क्या सीखा?
7 हमारे सामने चाहे जैसी भी मुश्किलें आएँ, प्रार्थना करने से हमारे मन की शांति बनी रहती है। भाई रौबर्ट का उदाहरण लीजिए जिनकी उम्र 80 से ऊपर है और जो एक प्राचीन के नाते वफादारी से सेवा कर रहे हैं। वे बताते हैं, “फिलिप्पियों 4:6, 7 में दी सलाह से मैं ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव का सामना कर पाया। एक वक्त ऐसा था जब मुझे पैसों की समस्या थी और कुछ समय के लिए मेरे पास प्राचीन की ज़िम्मेदारी नहीं रही।” भाई रौबर्ट कैसे अपने मन की शांति बनाए रख पाए हैं? वे बताते हैं, “जब भी चिंताएँ मुझे आ घेरती हैं, मैं तुरंत प्रार्थना करता हूँ। मैंने अनुभव किया है कि जब मैं दिल से प्रार्थना करता हूँ और बार-बार ऐसा करता हूँ, तो मुझे काफी सुकून और शांति मिलती है।”
यीशु ने जोश से प्रचार किया
8. यूहन्ना 8:29 के मुताबिक और किस वजह से यीशु का मन शांत रह पाया?
8 यूहन्ना 8:29 पढ़िए। जब यीशु को सताया जा रहा था, तब भी उसका मन शांत था, क्योंकि वह जानता था कि उसका पिता उससे खुश है। वह तब भी यहोवा की आज्ञा मानता रहा, जब ऐसा करना आसान नहीं था। यीशु अपने पिता से प्यार करता था और पिता की सेवा करना उसकी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी काम था। धरती पर आने से पहले वह परमेश्वर का “कुशल कारीगर” था। (नीति. 8:30) फिर जब वह धरती पर आया, तो उसने जोश से अपने पिता के बारे में दूसरों को सिखाया। (मत्ती 6:9; यूह. 5:17) इस काम से यीशु को बहुत खुशी मिली।—यूह. 4:34-36.
9. प्रचार में लगे रहने से हमारा मन कैसे शांत रह पाता है?
9 यीशु की तरह हम भी यहोवा की आज्ञा मानते हैं और “प्रभु की सेवा में हमेशा . . . बहुत काम” करने की कोशिश करते हैं। (1 कुरिं. 15:58) जब हम “ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार करने” में लगे रहते हैं, तो हम अपनी परेशानियों के बारे में सही नज़रिया रख पाते हैं। (प्रेषि. 18:5) उदाहरण के लिए, हमें प्रचार में अकसर ऐसे लोग मिलते हैं, जो हमसे ज़्यादा बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ये लोग जब यहोवा से प्यार करने लगते हैं और उसकी सलाह मानने लगते हैं, तो उनकी ज़िंदगी सँवर जाती है और वे ज़्यादा खुश रहते हैं। जब भी हम ऐसा होते देखते हैं, तो हमारा भरोसा बढ़ जाता है कि यहोवा हमारी भी देखभाल करेगा। यह भरोसा होने से हमारा मन शांत रह पाता है। एक बहन, जो खुद को किसी लायक नहीं समझती और गहरी निराशा से जूझ रही है, बताती है, “जब मैं प्रचार में लगी रहती हूँ, तो मैं खुद को यहोवा के बहुत करीब महसूस करती हूँ। इस वजह से मैं अपनी भावनाओं पर काबू कर पाती हूँ और ज़्यादा खुश रहती हूँ।”
10. बहन ब्रेंडा की बातों से आपने क्या सीखा?
10 एक और बहन के उदाहरण पर गौर कीजिए। बहन ब्रेंडा और उसकी बेटी को एक गंभीर बीमारी है। वह बहन चल-फिर नहीं पाती, इसलिए वह व्हील-चेयर के सहारे जीती है। वह बहुत जल्द थक जाती है। उससे जितना हो सकता है, वह घर-घर का प्रचार करती है, लेकिन ज़्यादातर वह खत के ज़रिए गवाही देती है। वह बताती है, “जब मैंने यह समझ लिया कि इस दुनिया में मेरी बीमारी ठीक नहीं होगी, तो मैं अपना पूरा ध्यान प्रचार सेवा में लगाने लगी। सच कहूँ तो गवाही देने से मैं अपनी परेशानियाँ भूल जाती हूँ। मैं बस यह सोचती रहती हूँ कि जिनको मैंने गवाही दी, उनकी मैं कैसे मदद कर सकती हूँ। प्रचार करने से मेरा ध्यान भविष्य की आशा पर लगा रहता है।”
यीशु ने अपने दोस्तों की मदद स्वीकार की
11-13. (क) प्रेषित और दूसरे लोग किस तरह यीशु के सच्चे दोस्त साबित हुए? (ख) यीशु के दोस्तों का उस पर क्या असर हुआ?
11 धरती पर यीशु की सेवा आसान नहीं थी। इस दौरान उसके वफादार प्रेषित उसके सच्चे दोस्त साबित हुए। बाइबल में बतायी यह बात उन पर एकदम सही बैठती है: “ऐसा भी दोस्त होता है, जो भाई से बढ़कर वफा निभाता है।” (नीति. 18:24) यीशु को अपने इन दोस्तों से गहरा लगाव था। उसकी सेवा के दौरान उसके भाइयों ने उस पर विश्वास नहीं किया। (यूह. 7:3-5) एक बार तो उसके घरवालों को यह भी लगा कि वह पागल हो गया है। (मर. 3:21) लेकिन यीशु के वफादार प्रेषित कितने अलग थे। अपनी आखिरी रात यीशु ने उनसे कहा, “तुम वे हो जो मेरी परीक्षाओं के दौरान मेरा साथ देते रहे।”—लूका 22:28.
12 माना कि प्रेषितों ने कभी-कभी यीशु को निराश किया, लेकिन उसने उनकी कमियों पर ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय उसने देखा कि प्रेषितों को उस पर विश्वास है। (मत्ती 26:40; मर. 10:13, 14; यूह. 6:66-69) अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात यीशु ने अपने वफादार प्रेषितों से कहा, “मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है वह सब तुम्हें बता दिया है।” (यूह. 15:15) सच में, यीशु को अपने दोस्तों से बहुत हौसला मिला। प्रचार काम में उनका सहयोग पाकर वह खुशी से फूला नहीं समाया।—लूका 10:17, 21.
13 प्रेषितों के अलावा ऐसे बहुत-से आदमी-औरत थे, जो यीशु के दोस्त थे। उन्होंने प्रचार काम में और दूसरे तरीकों से उसकी मदद की। कुछ दोस्त उसे अपने घर खाने पर बुलाते थे। (लूका 10:38-42; यूह. 12:1, 2) कई ऐसे थे, जो उसके साथ जगह-जगह सफर करते थे और अपनी धन-संपत्ति से उसकी सेवा करते थे। (लूका 8:3) यीशु के इतने अच्छे दोस्त इसलिए थे कि वह खुद उनका अच्छा दोस्त था। उसने उनकी खातिर अच्छे काम किए थे और वह उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता था। हालाँकि यीशु परिपूर्ण था, फिर भी वह अपने अपरिपूर्ण दोस्तों की मदद के लिए एहसानमंद था। वाकई वह अपने दोस्तों की वजह से मन की शांति बनाए रख पाया।
14-15. (क) अच्छे दोस्त बनाने के लिए हमें क्या करना होगा? (ख) ऐसे दोस्त किस तरह हमारी मदद करते हैं?
14 अच्छे दोस्त हमें यहोवा के वफादार रहने का बढ़ावा देते हैं। अगर हम चाहते हैं कि हमारे अच्छे दोस्त हों, तो पहले हमें अच्छे दोस्त बनना होगा। (मत्ती 7:12) मिसाल के लिए, बाइबल बढ़ावा देती है कि हम दूसरों के लिए कुछ करें, खासकर किसी “ज़रूरतमंद” के लिए। (इफि. 4:28) ज़रा अपनी मंडली के भाई-बहनों के बारे में सोचिए। क्या कोई भाई या बहन ढलती उम्र या बीमारी की वजह से घर से बाहर नहीं जा सकता? क्या आप उसके लिए खरीदारी कर सकते हैं? अगर किसी परिवार को पैसों की दिक्कत है, तो क्या आप उन्हें खाने पर बुला सकते हैं? क्या आप मंडली में दूसरों को jw.org® वेबसाइट और JW लाइब्रेरी ऐप इस्तेमाल करना सिखा सकते हैं? जितना हम दूसरों की मदद करेंगे, उतना ही हम खुश रहेंगे।—प्रेषि. 20:35.
15 हमारे दोस्त मुसीबत की घड़ी में हमारा साथ देंगे और मन की शांति बनाए रखने में हमारी मदद करेंगे। जब अय्यूब अपनी परीक्षाओं के बारे में बता रहा था, तो एलीहू ने ध्यान से उसकी सुनी। उसी तरह जब हम अपनी चिंता-परेशानी अपने दोस्तों को बताएँगे, तो वे भी ध्यान से हमारी सुनेंगे। (अय्यू. 32:4) लेकिन हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वे हमें बताएँ कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। हाँ इतना ज़रूर है कि बाइबल से वे हमें जो सलाह देंगे, उससे हमें काफी फायदा होगा। (नीति. 15:22) राजा दाविद ने नम्र होकर अपने दोस्तों की मदद स्वीकार की। उसी तरह अगर हमारे दोस्त ज़रूरत की घड़ी में हमारी तरफ मदद का हाथ बढ़ाते हैं, तो हमें ठुकराना नहीं चाहिए, बल्कि नम्र होकर मदद स्वीकार करनी चाहिए। (2 शमू. 17:27-29) देखा जाए तो ऐसे दोस्त सच में यहोवा की तरफ से अनमोल तोहफे हैं।—याकू. 1:17.
मन की शांति कैसे बनाए रखें?
16. फिलिप्पियों 4:6, 7 के मुताबिक हमें सिर्फ किसके ज़रिए शांति मिल सकती है? समझाइए।
16 फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए। यहोवा यह क्यों कहता है कि वह जो शांति देता है वह “मसीह यीशु के ज़रिए” मिल सकती है? वह इसलिए कि जब एक व्यक्ति यहोवा के मकसद में यीशु की भूमिका समझता है और उस पर विश्वास करता है, तभी उसे सच्ची और हमेशा कायम रहनेवाली शांति मिल सकती है। उदाहरण के लिए, यीशु के फिरौती बलिदान की वजह से हमें अपने सभी पापों की माफी मिल सकती है। (1 यूह. 2:12) इस बात से हमें कितनी राहत मिलती है! इसके अलावा, यीशु परमेश्वर के राज का राजा है और जल्द ही वह सारी दुख-तकलीफें दूर करेगा, जो शैतान और उसकी व्यवस्था की वजह से हम पर आयी हैं। (यशा. 65:17; 1 यूह. 3:8; प्रका. 21:3, 4) यह बात हमें कितनी बढ़िया आशा देती है! भले ही यीशु ने हमें एक मुश्किल काम सौंपा है, लेकिन उसने हमें अकेला नहीं छोड़ा। वह दुनिया के आखिरी वक्त तक हमेशा हमारा साथ देगा। (मत्ती 28:19, 20) यह आश्वासन हमें कितनी हिम्मत देता है! राहत, आशा और हिम्मत, तीनों बहुत ज़रूरी हैं, क्योंकि इनके होने से हमें मन की शांति मिलती है।
17. (क) मन की शांति बनाए रखने के लिए एक मसीही को कौन-से कदम उठाने होंगे? (ख) जैसे यूहन्ना 16:33 में वादा किया गया है, तब हम क्या कर पाएँगे?
17 तो फिर जब आपकी ज़िंदगी में मुसीबतों का तूफान आता है, तब आप मन की शांति बनाए रखने के लिए क्या करेंगे? यीशु की मिसाल पर चलकर तीन कदम उठाइए। पहला, प्रार्थना कीजिए और उसमें लगे रहिए। दूसरा, मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी यहोवा की आज्ञा मानिए और जोश से प्रचार कीजिए। तीसरा, मुसीबत की घड़ी में दोस्तों की मदद स्वीकार कीजिए। फिर आप पूरा भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्वर की शांति आपके दिल और दिमाग की हिफाज़त करेगी और यीशु की तरह आप हर परीक्षा में खरे उतर पाएँगे और जीत हासिल कर पाएँगे।—यूहन्ना 16:33 पढ़िए।
गीत 41 मेरी प्रार्थना सुन
a हम सब किसी-न-किसी परेशानी से गुज़रते हैं, जो हमारा सुख-चैन छीन लेती है। इस लेख में हम सीखेंगे कि यीशु ने मन की शांति बनाए रखने के लिए कौन-से तीन कदम उठाए। हम यह भी देखेंगे कि ये तीन कदम उठाकर हम कैसे मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी मन की शांति पा सकते हैं।