भाइयों को मंडली में ज़िम्मेदारी उठाने के लिए प्रशिक्षण दीजिए
“हर कोई जिसे पूरी तरह सिखाया जाता है, वह अपने गुरु जैसा होगा।”—लूका 6:40.
1. धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु ने कैसे एक बेहतरीन मंडली की बुनियाद डाली?
प्रेषित यूहन्ना ने अपनी सुसमाचार की किताब के आखिर में लिखा: “दरअसल, ऐसे और भी बहुत-से काम हैं जो यीशु ने किए थे। अगर कभी इनके बारे में पूरा ब्यौरा लिखा जाए, तो मैं समझता हूँ कि जो खर्रे लिखे जाते वे पूरी दुनिया में भी न समाते।” (यूह. 21:25) यीशु को धरती पर सेवा के लिए बहुत कम वक्त मिला था, मगर इस दौरान उसने ज़बरदस्त काम किए। यीशु ने पुरुषों को इकट्ठा किया, उन्हें तालीम दी और इस तरह संगठित किया कि वे उसकी मौत के बाद प्रचार काम में अगुवाई ले सकें। ईसवी सन् 33 तक एक ऐसी बेहतरीन मंडली की बुनियाद पड़ चुकी थी, जो जल्द ही तेज़ी से बढ़ती।—प्रेषि. 2:41, 42; 4:4; 6:7.
2, 3. (क) मंडली में सेवा के लिए बपतिस्मा पाए भाइयों की बहुत ज़्यादा ज़रूरत क्यों है? (ख) हम इस लेख में क्या देखेंगे?
2 आज पूरी दुनिया में करीब 1,00,000 मंडलियों में सत्तर लाख से भी ज़्यादा राज प्रचारक हैं जो खुशखबरी का प्रचार कर रहे हैं। इसलिए अगुवाई करने के लिए भाइयों की, खासकर मसीही प्राचीनों की बहुत ज़रूरत है। जो भाई अपने भाई-बहनों की सेवा के लिए आगे बढ़ता है, वह दरअसल “एक बढ़िया काम करने की चाहत रखता है।”—1 तीमु. 3:1.
3 लेकिन मंडली में सेवा करने के लिए पुरुष खुद-ब-खुद काबिल नहीं हो जाते। सिर्फ अच्छी शिक्षा या ज़िंदगी के अनुभव उन्हें इस काम के लिए तैयार नहीं करते। यह सेवा अच्छी तरह करने के लिए पुरुषों को आध्यात्मिक तौर पर काबिल होने की ज़रूरत है। जी हाँ, उनकी अपनी कामयाबी या हुनर से ज़्यादा ज़रूरी है कि उनके अंदर आध्यात्मिक गुण हों। मंडली में पुरुषों को इस सेवा के काबिल कैसे बनाया जा सकता है? यीशु ने कहा: “हर कोई जिसे पूरी तरह सिखाया जाता है, वह अपने गुरु जैसा होगा।” (लूका 6:40) इस लेख में हम देखेंगे कि कुशल शिक्षक यीशु मसीह ने कैसे अपने चेलों को बड़ी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए तैयार किया और हम उसके उदाहरण से क्या सीख सकते हैं।
“मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है”
4. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह अपने चेलों का सच्चा दोस्त है?
4 यीशु ने अपने चेलों को कभी अपने से कम नहीं समझा बल्कि उनके साथ एक दोस्त की तरह पेश आया। उसने उनके साथ समय बिताया, उन पर भरोसा किया और उसने ‘जो कुछ अपने पिता से सुना था वह सब उन्हें बताया।’ (यूहन्ना 15:15 पढ़िए।) आप कल्पना कर सकते हैं कि वे कितने रोमांच से भर गए होंगे जब यीशु ने उनके इस सवाल का जवाब दिया: “तेरी मौजूदगी की और दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त की क्या निशानी होगी?” (मत्ती 24:3, 4) यीशु ने खुलकर अपने विचार और भावनाएँ अपने चेलों पर ज़ाहिर कीं। उदाहरण के लिए, जिस रात यीशु को धोखे से पकड़वाया गया, उस रात वह पतरस, याकूब और यूहन्ना को गतसमनी के बाग में ले गया, जहाँ उसने यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की थी। उसने इन प्रेषितों से अपना दर्द नहीं छिपाया, जिससे वे समझ सके कि वह किस मुश्किल घड़ी से गुज़र रहा है। (मर. 14:33-38) यह भी सोचिए कि पहले जब यीशु का रूप बदला तो चेलों पर इसका भी कितना ज़बरदस्त असर हुआ होगा। (मर. 9:2-8; 2 पत. 1:16-18) यीशु ने उनके साथ जो गहरी दोस्ती कायम की उसकी वजह से आगे चलकर उन्हें अपनी भारी ज़िम्मेदारियाँ उठाने में काफी मदद मिली।
5. किन तरीकों से प्राचीन, भाई-बहनों के साथ अच्छा रिश्ता बनाने की कोशिश करते हैं?
5 यीशु की तरह मसीही प्राचीन भी आज दूसरों के साथ दोस्ती करते हैं और उन्हें मदद देते हैं। वे अपने भाई-बहनों में निजी दिलचस्पी दिखाने के लिए उनके साथ समय बिताते हैं और इस तरह एक करीबी रिश्ता कायम करते हैं। यह सच है कि प्राचीनों को कई बातें गुप्त रखनी पड़ती हैं मगर वे दूसरों के साथ बाइबल की वे सच्चाइयाँ बाँटते हैं जो उन्होंने सीखी हैं। वे अपने भाई-बहनों पर भरोसा करते हैं। प्राचीन, सहायक सेवकों को कमतर नहीं समझते फिर चाहे वे उनसे उम्र में काफी छोटे क्यों न हों। इसके बजाय वे उन्हें आध्यात्मिक पुरुष समझते हैं जो मंडली की खातिर ज़रूरी सेवाएँ कर रहे हैं और जिनमें आगे चलकर और ज़िम्मेदारियाँ सँभालने की क्षमता है।
“मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है”
6, 7. यीशु ने अपने चेलों के लिए क्या मिसाल रखी और उसका चेलों पर क्या असर हुआ?
6 यीशु के चेले आध्यात्मिक बातों की कदर तो करते थे, मगर उनकी पुरानी संस्कृति और उनके रहन-सहन का असर अब भी उनकी सोच पर था। (मत्ती 19:9, 10; लूका 9:46-48; यूह. 4:27) लेकिन, यीशु ने उन्हें सुधारने के लिए ना तो लंबे-चौड़े भाषण दिए और ना ही धमकियाँ दीं। उसने उनसे कभी हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं की या कुछ ऐसा करने की सलाह नहीं दी जो वह खुद कभी नहीं करता। इसके बजाए यीशु ने अपने उदाहरण से उन्हें सिखाया।—यूहन्ना 13:15 पढ़िए।
7 यीशु ने अपने चेलों के लिए कैसा आदर्श रखा? (1 पत. 2:21) उसने सादगी भरी ज़िंदगी जी जिससे वह अच्छी तरह दूसरों की सेवा कर सके। (लूका 9:58) यीशु अपनी हदें पहचानता था इसलिए उसने हमेशा परमेश्वर के वचन से ही लोगों को सिखाया। (यूह. 5:19; 17:14, 17) वह दयालु था और लोगों को उसके पास आने में कोई झिझक महसूस नहीं होती थी। उसका प्यार ही हर काम के पीछे उसकी सबसे बड़ी प्रेरणा था। (मत्ती 19:13-15; यूह. 15:12) यीशु की मिसाल का उसके प्रेषितों पर अच्छा असर हुआ। उदाहरण के लिए, याकूब ने बड़ी हिम्मत के साथ मौत का सामना किया और अपनी आखिरी साँस तक वफादारी से परमेश्वर की सेवा करता रहा। (प्रेषि. 12:1, 2) उसका एक वफादार चेला यूहन्ना भी यीशु के पदचिन्हों पर 60 से भी ज़्यादा सालों तक चलता रहा।—प्रका. 1:1, 2, 9.
8. प्राचीन, जवान पुरुषों और मंडली के दूसरे भाई-बहनों के लिए कैसी मिसाल रखते हैं?
8 जो प्राचीन खुद को परमेश्वर की सेवा में पूरी तरह लगा देते हैं, नम्र होते हैं और दूसरों से प्यार करते हैं वे अपने से कम उम्र के जवान पुरुषों के लिए एक बढ़िया मिसाल पेश करते हैं। (1 पत. 5:2, 3) जो प्राचीन वफादारी में, सिखाने में, मसीही ज़िंदगी जीने में और प्रचार में बेहतरीन मिसाल रखते हैं, वे इस बात का यकीन रख सकते हैं कि दूसरों को उनकी मिसाल से सीखने का मौका मिलेगा।—इब्रा. 13:7.
‘यीशु ने उन्हें आदेश देकर भेजा’
9. हम यह क्यों कह सकते हैं कि यीशु ने अपने चेलों को प्रचार काम करने की तालीम दी?
9 करीब दो साल तक प्रचार करने के बाद यीशु ने इस सेवा को बढ़ाने के लिए अपने 12 प्रेषितों को प्रचार में भेजा। लेकिन इससे पहले यीशु ने उन्हें साफ हिदायतें दीं। (मत्ती 10:5-14) एक और मौके पर, हज़ारों की भीड़ को चमत्कार करके खाना खिलाने से पहले, यीशु ने अपने चेलों को निर्देश दिए कि वे कैसे लोगों को तरतीब से बिठाएँ और भोजन बाँटें। (लूका 9:12-17) इसमें दो राय नहीं कि यीशु ने अपने चेलों को साफ-साफ हिदायतें देकर उन्हें प्रशिक्षित किया। इस तरह की तालीम और पवित्र शक्ति की मदद से ही प्रेषित आगे चलकर ईसवी सन् 33 और उसके बाद भी बड़े पैमाने पर व्यवस्थित तरीके से प्रचार काम कर सके।
10, 11. नए लोगों को मंडली में सेवा करने के लिए कैसे तालीम दी जा सकती है?
10 आज एक इंसान की तालीम तब से शुरू हो जाती है जब वह बाइबल अध्ययन शुरू करता है। शायद हमें उसे यह सिखाना पड़े कि वह अच्छी तरह कैसे पढ़ सकता है। जैसे-जैसे वह अध्ययन में तरक्की करता है, हमें उसे और भी मदद देने की ज़रूरत पड़ती है। जब वह सभाओं में आने लगता है तो उसे सेवा स्कूल के बारे में और प्रचारक बनने के बारे में तालीम देनी पड़ सकती है। बपतिस्मे के बाद, उसे राज-घर के रख-रखाव से जुड़ी बातों के बारे में भी तालीम की ज़रूरत पड़ सकती है। आगे चलकर एक भाई को यह समझने में भी मदद दी जा सकती है कि उसे सहायक सेवक की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए क्या करना होगा।
11 जब प्राचीन बपतिस्मा पाए एक भाई को कोई काम देते हैं तो वे उसे समझाते हैं कि उस काम के बारे में संगठन के निर्देश क्या हैं और वह काम कैसे किया जाना है। प्राचीनों को इस तरह समझाना चाहिए कि तालीम पानेवाले भाई को यह साफ समझ में आ जाए कि उससे क्या उम्मीद की जा रही है। अगर उसे दिए गए काम को करने में मुश्किल हो रही है तो एक प्राचीन तुरंत इस नतीजे पर नहीं पहुँचेगा कि वह उस काम के काबिल नहीं है। इसके बजाय वह प्यार से उसे समझाएगा कि उसे किस पहलू में सुधार करने की ज़रूरत है और वह उसके साथ उस काम से जुड़े निर्देश और उसका मकसद फिर से दोहराएगा। प्राचीन ऐसे भाइयों की तहेदिल से मदद करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि दूसरों की सेवा करने से उन्हें खुशी मिलेगी।—प्रेषि. 20:35.
“जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है”
12. यीशु की सलाह असरदार क्यों होती थी?
12 यीशु ने चेलों की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए उन्हें सलाह दी। उदाहरण के लिए, यीशु ने एक बार यूहन्ना और याकूब को फटकारा क्योंकि वे उन सामरियों पर स्वर्ग से आग बरसाना चाहते थे, जिन्होंने उन्हें अपने यहाँ पनाह नहीं दी थी। (लूका 9:52-55) जब याकूब और यूहन्ना की माँ, यीशु के पास अपने बेटों की सिफारिश लेकर आयी कि राज में उन्हें खास पद दिया जाए तब यीशु ने सीधे उन दोनों भाइयों से कहा: “मेरी दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देना मेरे अधिकार में नहीं, लेकिन ये जगह उनके लिए हैं, जिनके लिए मेरे पिता ने इन्हें तैयार किया है।” (मत्ती 20:20-23) यीशु जो भी सलाह देता था वह हमेशा साफ, कारगर और बाइबल सिद्धांतों पर आधारित होती थी। उसने अपने चेलों को भी सिखाया कि वे कैसे बाइबल सिद्धांतों को ध्यान में रखकर फैसले ले सकते हैं। (मत्ती 17:24-27) यीशु अपने चेलों की हदें पहचानता था और उनसे सिद्धता की माँग नहीं करता था। उसकी सलाह सच्चे प्यार पर आधारित होती थी।—यूह. 13:1.
13, 14. (क) सलाह की ज़रूरत किसे होती है? (ख) एक प्राचीन उस भाई को कैसे सलाह दे सकता है जो आध्यात्मिक तरक्की नहीं कर रहा है?
13 जो भी पुरुष मसीही मंडली में ज़िम्मेदारी उठाने के लिए मेहनत करता है, उसे कभी-न-कभी बाइबल से सलाह की ज़रूरत पड़ती ही है। नीतिवचन 12:15 कहता है कि “जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है।” एक जवान भाई कहता है: “मैंने देखा है कि मेरी अपनी कमज़ोरियाँ ही मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। एक प्राचीन की सलाह की वजह से मैं अपनी कमज़ोरियों के प्रति सही नज़रिया रख पाया।”
14 जब प्राचीन देखते हैं कि एक भाई के चाल-चलन में कुछ खामियाँ हैं जो उसकी आध्यात्मिक तरक्की में रुकावट बन रही हैं तो वे उसे कोमलता से सुधारने में पहल कर सकते हैं। (गला. 6:1) किसी भाई के गलत रवैए की वजह से भी उसे सलाह देने की ज़रूरत पड़ सकती है। उदाहरण के लिए, अगर एक भाई परमेश्वर के काम के लिए इतना जोश नहीं दिखाता तो प्राचीन यीशु की मिसाल देकर उसे समझा सकते हैं कि यीशु, राज का एक जोशीला प्रचारक था और उसने अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे लोगों को चेला बनाएँ। (मत्ती 28:19, 20; लूका 8:1) अगर ऐसा लगे कि कोई भाई हमेशा दूसरों से आगे बढ़ने की होड़ में रहता है, तो प्राचीन उसे बता सकते हैं कि यीशु ने अपने चेलों को समझाया कि बड़ी-बड़ी पदवी पाने की चाहत रखने के क्या खतरे हो सकते हैं। (लूका 22:24-27) अगर एक भाई दूसरे की गलतियों को आसानी से माफ नहीं करता तो उसे कैसे मदद दी जा सकती है? तब उस दास की मिसाल दी जा सकती है जो दूसरे का कर्ज़ माफ करने के लिए तैयार नहीं था बावजूद इसके कि उसका उससे भी बड़ा कर्ज़ माफ कर दिया गया था। उसके लिए यह सलाह बहुत असरदार हो सकती है। (मत्ती 18:21-35) जब सलाह की ज़रूरत होती है तो अच्छा होगा कि प्राचीन सलाह देने में देर न करें।—नीतिवचन 27:9 पढ़िए।
“खुद को प्रशिक्षण देता रह”
15. दूसरों की सेवा करने में एक प्राचीन का परिवार कैसे उसे सहयोग दे सकता है?
15 यह सही है कि किसी भाई को तालीम देने में प्राचीन अगुवाई लेते हैं मगर दूसरे भी इस काम में उनकी मदद कर सकते हैं। जो भाई मंडली में ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लायक बनने के लिए मेहनत कर रहा है उसका परिवार भी उसकी मदद कर सकता है और उन्हें करनी भी चाहिए। अगर वह एक प्राचीन है तो उसकी पत्नी और बच्चे जिस तरह प्यार और आत्म-त्याग की भावना दिखाएँगे उससे उसे काफी मदद मिलेगी। जब परिवार के लोग खुशी-खुशी एक प्राचीन को अपना वक्त और ताकत मंडली के कामों में लगाने देते हैं तो वह अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभा पाता है। परिवार के लोग जब ऐसी आत्म-त्याग की भावना दिखाते हैं तो प्राचीन को खुशी मिलती है और दूसरे भी इसकी कदर करते हैं।—नीति. 15:20; 31:10, 23.
16. (क) सेवा की ज़िम्मेदारी पाने के लिए खासकर किसे मेहनत करनी होगी? (ख) एक पुरुष मंडली में ज़िम्मेदारी पाने की कोशिश कैसे कर सकता है?
16 हालाँकि दूसरे लोग एक भाई की मदद कर सकते हैं, लेकिन मंडली में ज़िम्मेदारी उठाने की चाहत खुद उसके अंदर पैदा होनी चाहिए। (गलातियों 6:5 पढ़िए।) दूसरों की सेवा करने और प्रचार में पूरी तरह हिस्सा लेने के लिए ज़रूरी नहीं कि एक भाई सहायक सेवक या प्राचीन हो, लेकिन अगर वह मंडली में ज़िम्मेदारी का पद पाने की कोशिश कर रहा है तो ज़रूरी है कि वह बाइबल की माँगों को पूरी करने के लिए मेहनत करे। (1 तीमु. 3:1-13; तीतु. 1:5-9; 1 पत. 5:1-3) अगर एक पुरुष सहायक सेवक या प्राचीन बनने की चाहत रखता है लेकिन उसे अभी तक यह ज़िम्मेदारी नहीं मिली है तो उसे इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आध्यात्मिक तरक्की के लिए उसे किन पहलुओं पर काम करना होगा। इसके लिए उसे नियमित रूप से बाइबल पढ़ना, दिल लगाकर निजी अध्ययन करना, गंभीरता से मनन करना, प्रार्थना करना और प्रचार में जोश के साथ हिस्सा लेना होगा। ऐसा करके वह पौलुस की इस सलाह को लागू कर सकेगा जो उसने तीमुथियुस को लिखी थी: “परमेश्वर की भक्ति के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए खुद को प्रशिक्षण देता रह।”—1 तीमु. 4:7.
17, 18. अगर एक भाई जीवन की चिंताओं से या खुद को नाकाबिल समझने की भावना से जूझ रहा है या फिर उसमें मंडली में ज़िम्मेदारी उठाने की इच्छा ही नहीं है, तो वह क्या कर सकता है?
17 अगर एक पुरुष जीवन की चिंताओं या खुद को नाकाबिल समझने की वजह से मंडली में सेवा करने के लिए आगे नहीं आ रहा तो उसे क्या करना चाहिए? उसे याद रखना चाहिए कि यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह ने हमारे लिए कितना कुछ किया है। वाकई यहोवा “प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है।” (भज. 68:19) इसलिए बेशक, स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता, एक भाई को मंडली में ज़िम्मेदारी उठाने के लिए मदद दे सकता है। जो भाई सहायक सेवक या प्राचीन नहीं है, उसे इस बात पर गौर करने से मदद मिल सकती है कि परमेश्वर के संगठन में प्रौढ़ भाइयों की बेहद ज़रूरत है। इन बातों के बारे में सोचने से एक भाई अपनी चिंताओं और नाकाबिल होने की भावना पर काबू करके आगे बढ़ने के लिए मेहनत कर पाएगा। उसे पवित्र शक्ति के फल के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, जिसमें शांति और संयम जैसे गुण शामिल हैं। ये गुण एक इंसान को चिंता और नाकाबिल होने की भावना से उबरने में मदद देते हैं। (लूका 11:13; गला. 5:22, 23) एक भाई को यह भरोसा रखना चाहिए कि अगर वह नेक इरादे से इस काम के लिए आगे आता है तो यहोवा उसे ज़रूर आशीष देगा।
18 लेकिन अगर एक भाई के दिल में मंडली की ज़िम्मेदारी उठाने की इच्छा ही पैदा नहीं होती तो क्या बात उसकी मदद कर सकती है? प्रेषित पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर . . . अपनी मरज़ी के मुताबिक तुम्हारे अंदर काम कर रहा है ताकि तुम्हारे अंदर इच्छा पैदा हो और तुम उस पर अमल भी करो।” (फिलि. 2:13) परमेश्वर ने ही एक इंसान में सेवा करने की भावना डाली है और वह अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए इसे पूरा करने की ताकत भी दे सकता है। (फिलि. 4:13) इसके अलावा एक मसीही, प्रार्थना कर सकता है कि जो सही है उसे करने में परमेश्वर उसकी मदद करे।—भज. 25:4, 5.
19. “सात चरवाहे वरन आठ प्रधान मनुष्य खड़े” होंगे, यह बात हमें क्या यकीन दिलाती है?
19 प्राचीन दूसरों को प्रशिक्षण देने के लिए जो मेहनत करते हैं, यहोवा उस पर अपनी आशीष देता है। यहोवा की आशीषें उसे भी मिलती हैं जो मंडली में ज़िम्मेदारी पाने की चाहत रखता है और दिए गए प्रशिक्षण का फायदा उठाता है। बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि परमेश्वर के लोगों में “सात चरवाहे वरन आठ प्रधान मनुष्य खड़े” होंगे जो यहोवा के संगठन में अगुवाई लेंगे। (मीका 5:5) यह हमारे लिए कितनी बड़ी आशीष है कि बहुत-से मसीही पुरुषों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और वे ज़िम्मेदारी उठाने के काबिल बन रहे हैं। इससे यहोवा की क्या ही महिमा होती है!
आप कैसे जवाब देंगे?
• ज़्यादा ज़िम्मेदारियों के काबिल बनने के लिए यीशु ने अपने चेलों को कैसे मदद दी?
• यीशु की मिसाल पर चलकर प्राचीन कैसे मंडली में अगुवाई लेने के लिए भाइयों को मदद दे सकते हैं?
• ज़िम्मेदारी का पद सँभालने में एक भाई का परिवार कैसे उसकी मदद कर सकता है?
• एक पुरुष ज़िम्मेदारी का पद पाने के लिए खुद क्या मेहनत कर सकता है?
[पेज 31 पर तसवीरें]
जब आपका बाइबल विद्यार्थी तरक्की करने की कोशिश करता है, तो आप उसे किस तरह तालीम दे सकते हैं?
[पेज 32 पर तसवीर]
पुरुष कैसे दिखा सकते हैं कि वे ज़िम्मेदारी का पद पाने की कोशिश कर रहे हैं?