“इन में सब से बड़ा प्रेम है”
“पर अब विश्वास, आशा, प्रेम, ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।”—१ कुरिन्थियों १३:१३.
१. एक मानव-विज्ञानी ने प्रेम के बारे में क्या कहा है?
दुनिया के एक सबसे श्रेष्ठ मानव-विज्ञानी ने एक बार कहा: “मानव-जाति के इतिहास में पहली बार हम समझ चुके हैं कि मानवों की सारी आधारभूत मनोवैज्ञानिक ज़रूरतों में से सबसे अहम ज़रूरत प्रेम की ज़रूरत है। यह सारी मानवीय ज़रूरतों के केंद्र पर है, उसी तरह जैसे सूरज हमारे सौर परिवार के केंद्र पर है और ग्रह उस की चारों ओर चक्कर लगाते हैं। . . . जिस बच्चे से प्रेम नहीं किया गया हो, वह जीव-रासायनिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से उस बच्चे से बहुत ही अलग है जिस से प्रेम किया गया है। पूर्वोक्त बच्चे का बढ़ना भी अवरोक्त बच्चे से अलग है। हम अब यह जान गए हैं कि मानव जीने के लिए पैदा होता है, मानो जीना और प्रेम करना एक ही बात है। बेशक, यह कोई नयी बात नहीं। यह पर्वत के उपदेश का अनुसमर्थन है।”
२. (अ) प्रेरित पौलुस ने प्रेम के महत्त्व को किस तरह दर्शाया? (ब) अब कौनसे सवालों पर ग़ौर करना योग्य है?
२ जी हाँ, जैसे इस सांसारिक ज्ञान-सम्पन्न आदमी ने क़बूल किया, मानवीय हित में प्रेम के महत्त्व की सच्चाई कोई नयी बात नहीं है। इसकी क़दर सिर्फ़ अभी-अभी ही दुनिया के पंडितों द्वारा हो रही होगी, लेकिन १९ से ज़्यादा शतकों पहले यह परमेश्वर के वचन में प्रकट हुई थी। इसीलिए प्रेरित पौलुस लिख सका: “पर अब विश्वास, आशा, प्रेम, ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।” (१ कुरिन्थियों १३:१३) क्या आप जानते हैं प्रेम विश्वास और आशा से बड़ा क्यों है? ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि प्रेम परमेश्वर के गुणों का सब से बड़ा गुण और उसकी आत्मा के फलों का सबसे बड़ा फल है?
चार क़िस्म के प्रेम
३. रोमानी प्रेम की कौनसी धर्मशास्त्रीय मिसालें हैं?
३ प्रेम दिखाने की मानवीय क्षमता, मानवजाति के लिए परमेश्वर की बुद्धि और प्रेममय परवाह की अभिव्यक्ति है। दिलचस्पी की बात है कि प्राचीन यूनानियों की भाषा में “प्रेम” के लिए चार शब्द थे। एक था ईʹरॉस, जो यौन-आकर्षण से सम्बन्धित रोमानी प्रेम को सूचित करता है। मसीही यूनानी शास्त्रों के लेखकों को ईʹरॉस शब्द इस्तेमाल करने का कोई मौक़ा न मिला, हालाँकि सेप्टुआजिन्ट में नीतिवचन ७:१८ और ३०:१६ में इसके प्रकार इस्तेमाल किए जा चुके हैं, और इब्रानी शास्त्रों में रोमानी प्रेम के अन्य उल्लेख भी हैं। मसलन, हम पढ़ते हैं कि इसहाक ने रिबका से “प्रेम किया।” (उत्पत्ति २४:६७) इस क़िस्म के प्रेम की एक सचमुच ही उल्लेखनीय मिसाल याकूब के मामले में पायी जाती है, जिसे प्रत्यक्षतः पहली ही नज़र में खुबसूरत राहेल से प्रेम हो गया। दरअसल, “याकूब ने राहेल के लिए सात बरस सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण थोड़े ही दिनों के बराबर जान पड़े।” (उत्पत्ति २९:९-११, १७, २०) श्रेष्ठगीत भी एक गड़रिये और एक कन्या के बीच में रोमानी प्रेम से सम्बन्धित है। लेकिन इस पर बहुत ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया जा सकता कि इस क़िस्म का प्रेम, जो बहुत ज़्यादा संतोष और हर्ष का स्रोत हो सकता है, सिर्फ़ परमेश्वर के धर्मी स्तरों के अनुरूप दिखाया जाना चाहिए। हमें बाइबल में बताया गया है कि किसी पुरुष को अपनी विधिपूर्वक ब्याहता स्त्री के ही प्रेम से ‘नित्य आकर्षित रहना’ चाहिए।—नीतिवचन ५:१५-२०.
४. धर्मशास्त्रों में पारिवारिक प्रेम की कौनसी मिसाल है?
४ फिर वह मज़बूत पारिवारिक प्रेम, या स्वाभाविक स्नेह है, जो रक्त-सम्बन्धी रिश्तों पर आधारित है, और जिसके लिए यूनानियों में स्टॉर·जेʹ शब्द का इस्तेमाल हुआ करता था। इस से यह कहने में आ गया है कि “आख़िर, खून का ही रिश्ता है।” इस की एक बढ़िया मिसाल हमारे पास उस प्रेम में है, जो मरियम और मरथा को अपने भाई लाजर के लिए था। यह तथ्य कि वह उनकी ज़िन्दगी में बहुत ही अहमियत रखता था, इस बात से देखा जा सकता है कि उन्होंने उसकी अचानक मौत के कारण कितना शोक किया। और जब यीशु ने उनके प्रिय लाजर को ज़िन्दा किया, उन्होंने कितना हर्ष मनाया! (यूहन्ना ११:१-४४) किसी माँ का अपने बच्चे के लिए ममता इस क़िस्म के प्रेम की एक और मिसाल है। (१ थिस्सलुनीकियों २:७ से तुलना करें।) इस प्रकार, सिय्योन के लिए यहोवा का प्रेम कितना गहरा है, इस बात पर ज़ोर देने के लिए, यहोवा ने कहा कि यह किसी माता का अपने दूधपिउवे बच्चे के लिए ममता से भी बढ़कर है।—यशायाह ४९:१५.
५. स्वाभाविक स्नेह का अभाव आज किस तरह ज़ाहिर है?
५ हम “अन्तिम दिनों” में और साथ ही उस “कठिन समय” में जी रहे हैं, “जिनसे निपटना मुश्किल होगा,” इस बात का एक संकेत “स्वाभाविक स्नेह” का अभाव है। (२ तीमुथियुस ३:१, ३, न्यू.व.) चूँकि पारिवारिक प्रेम का अभाव है, कुछेक युवजन घर से भाग जाते हैं, और कुछेक बच्चे, जो अब बड़े हो चुके हैं, अपने बूढ़े माँ-बाप का ध्यान नहीं रखते। (नीतिवचन २३:२२ से तुलना करें।) स्वाभाविक स्नेह का अभाव बच्चों के दुर्व्यवहार की व्यापकता से भी दिखायी देता है—कुछेक माता-पिता अपने बच्चों को इतनी कठोरता से मारते हैं कि उन्हें अस्पताल में रखवाना आवश्यक हो जाता है। अनेक माता-पिताओं का अपने बच्चों को अनुशासित करने से रह जाने में भी माता-पिता के प्रेम का अभाव दिखायी देता है। बच्चों को मनमानी करने देना प्रेम का सबूत नहीं बल्कि कम से कम प्रयास करके उन्हें बड़ा होने देने का सबूत है। जो बाप अपने बच्चों से सचमुच ही प्यार करता है, वह, जब-जब ज़रूरी हो, उन्हें अनुशासित करेगा।—नीतिवचन १३:२४; इब्रानियों १२:५-११.
६. दोस्तों के बीच के स्नेह की धर्मशास्त्रीय मिसालें दीजिए।
६ फिर वह यूनानी शब्द फि·लीʹआ है, जिस से दोस्तों के बीच का स्नेह सूचित होता है (और जिस में कोई यौन-सम्बन्धी इंगित नहीं), जैसे दो प्रौढ़ आदमियों और औरतों के बीच स्नेह। इस की एक बढ़िया मिसाल उस प्रेम में पायी जा सकती है जो दाऊद और योनातन को एक दूसरे के लिए था। जब योनातन लड़ाई में मारा गया, दाऊद ने यह कहते हुए उसके लिए शोक किया: “हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दुःखित हूँ; तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था; तेरा प्रेम मुझ पर अद्भुत, वरन स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था।” (२ शमूएल १:२६) हमें यह भी मालूम होता है कि मसीह के मन में प्रेरित यूहन्ना के लिए एक ख़ास अनुराग था, जो उस शिष्य के तौर से जाना जाता है, “जिस से यीशु प्रेम रखता था।”—यूहन्ना २०:२.
७. अ·गाʹपे किस क़िस्म का प्रेम है, और यह प्रेम किस तरह दिखाया गया है?
७ १ कुरिन्थियों १३:१३ में जहाँ पौलुस ने विश्वास, आशा और प्रेम का ज़िक्र किया और कहा कि “इन में सब से बड़ा प्रेम है,” उस ने कौनसे यूनानी शब्द का प्रयोग किया? यहाँ दिया गया शब्द अ·गाʹपे है, वही शब्द, जिसका प्रयोग प्रेरित यूहन्ना ने तब किया जब उसने कहा: “परमेश्वर प्रेम है।” (१ यूहन्ना ४:८, १६) यह सिद्धान्त द्वारा नियंत्रित या शासित प्रेम है। इस में स्नेह और अनुराग शायद हो या न हो, लेकिन यह एक निःस्वार्थ जज़बात या भावना है जो पानेवाले के गुण या देनेवाले को प्राप्त होने वाले किसी लाभ पर ध्यान किए बिना, दूसरों के प्रति भलाई करने से सम्बद्ध है। इस क़िस्म के प्रेम के कारण परमेश्वर अपने सबसे क़ीमती परमप्रिय रत्न, अपने एकलौते बेटे, यीशु मसीह को देने के लिए प्रेरित हुए, “ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६) जैसे पौलुस हमें भली-भाँति याद दिलाता है: “किसी धर्मी जन के लिए कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिए कोई मरने का हियाव करे। परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा।” (रोमियों ५:७, ८) जी हाँ, ज़िन्दगी में उनके पद की तरफ़ या उस प्रेम को व्यक्त करनेवाले के लिए इसकी क़ीमत की तरफ़ कोई ध्यान दिए बिना, अ·गाʹपे दूसरों के प्रति भलाई करता है।
विश्वास और आशा से बड़ा क्यों है?
८. अ·गाʹपे विश्वास से बड़ा क्यों है?
८ पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि इस क़िस्म का प्रेम (अ·गाʹपे) विश्वास से बड़ा था? उस ने १ कुरिन्थियों १३:२ में लिखा: “यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं।” (मत्ती १७:२० से तुलना करें।) जी हाँ, अगर ज्ञान हासिल करने और विश्वास में बढ़ने की हमारी कोशिशें किसी स्वार्थी उद्देश्य से की गयी हों, तो इस से हमें परमेश्वर की तरफ़ से कोई लाभ न मिलेगा। उसी तरह, यीशु ने दिखाया कि कुछ लोग ‘उसके नाम से भविष्यद्वाणी करते, दुष्टात्माओं को निकालते, और उसके नाम से कई अचम्भे के काम करते,’ लेकिन उन्हें उसका अनुमोदन नहीं मिलता।—मत्ती ७:२२, २३.
९. प्रेम आशा से बड़ा क्यों है?
९ अ·गाʹपे क़िस्म का प्रेम आशा से भी बड़ा क्यों है? इसलिए कि आशा शायद आत्म-केंद्रित हो सकती है, जहाँ व्यक्ति मुख्य रूप से खुद को मिलनेवाले लाभ के बारे में ज़्यादा परवाह करता हो, जबकि प्रेम “अपनी भलाई नहीं चाहता।” (१ कुरिन्थियों १३:४, ५) इसके अलावा, आशा—जैसे कि “भारी क्लेश” में से नयी दुनिया में प्रवेश करने तक जीवित रहने की आशा—तब समाप्त होती है जब आशा की गयी वस्तु प्राप्त होती है। (मत्ती २४:२१) जैसे पौलुस कहता है: “आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है, जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहाँ रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उसकी आशा क्या करेगा? परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज से उस की बाट जोहते भी हैं।” (रोमियों ८:२४, २५) स्वयं प्रेम ही सब बातें सह लेता है, और यह कभी टलता नहीं। (१ कुरिन्थियों १३:७, ८) इस प्रकार, निःस्वार्थ प्रेम (अ·गाʹपे) दोनों विश्वास और आशा से बड़ा है।
बुद्धि, न्याय, और सामर्थ्य से बड़ा?
१०. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि प्रेम परमेश्वर के चार मूलभूत गुणों में सबसे बड़ा है?
१० आइए अब हम यहोवा परमेश्वर के चार मूलभूत गुणों पर ग़ौर करें: बुद्धि, न्याय, सामर्थ्य और प्रेम। क्या यह भी कहा जा सकता है कि प्रेम इन में सबसे बड़ा है? निश्चय ही, ऐसा कहा जा सकता है। क्यों? क्योंकि प्रेम ही वह प्रेरक शक्ति है जो परमेश्वर के किए हर काम के पीछे है। इसीलिए प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर प्रेम है।” जी हाँ, प्रेम यहोवा में मूर्तिमान हो जाता है। (१ यूहन्ना ४:८, १६) हम धर्मशास्त्रों में कहीं भी यह नहीं पढ़ते कि परमेश्वर बुद्धि, न्याय या सामर्थ्य हैं। उलटा, हमें बताया गया है कि ये गुण यहोवा के हैं। (अय्यूब १२:१३; भजन १४७:५; दानिय्येल ४:३७) उन में ये चार गुण परिपूर्ण रूप से सन्तुलित हैं। प्रेम से प्रेरित होकर, यहोवा बाक़ी तीन गुणों का प्रयोग करके, या उन्हें ध्यान में रखते हुए अपने उद्देश्यों को पूरा करते हैं।
११. इस विश्व और आत्मिक तथा मानवीय प्राणियों की सृष्टि करने के लिए यहोवा किस से प्रेरित हुए?
११ तो फिर, इस विश्व और मेधावी आत्मिक तथा मानवीय प्राणियों की सृष्टि करने के लिए यहोवा किस गुण से प्रेरित हुए? क्या वह बुद्धि या सामर्थ्य से प्रेरित हुए? नहीं, इसलिए कि परमेश्वर ने सृष्टि करने में अपनी बुद्धि और सामर्थ्य का मात्र प्रयोग ही किया। मसलन, हम पढ़ते हैं: “यहोवा ने पृथ्वी की नेव बुद्धि ही से डाली।” (नीतिवचन ३:१९) इसके अलावा, उनके न्याय के गुण से यह आवश्यक नहीं हुआ कि वह नैतिक रूप से आज़ाद निर्णय करनेवाले लोगों की सृष्टि करे। परमेश्वर के प्रेम से वह दूसरों को मेधावी अस्तित्व के आनन्द में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित हुए। आदम के अपराध के कारण मानवजाति पर न्याय के द्वारा जो दण्ड आया, उसे हटा देने का तरीक़ा भी प्रेम से ही पाया गया। (यूहन्ना ३:१६) जी हाँ, और प्रेम से ही यहोवा यह उद्देश्य करने तक प्रेरित हुए कि आज्ञाकारी मानवजाति आनेवाले पार्थिव परादीस में जीए।—लूका २३:४३.
१२. हमें परमेश्वर की सामर्थ्य, न्याय और प्रेम के प्रति कैसी अनुक्रिया दिखानी चाहिए?
१२ परमेश्वर की सर्वशक्तिमान् सामर्थ्य के कारण, हम उन्हें कभी जलन करने तक भड़काने की हिम्मत न करें। पौलुस ने पूछा: “क्या हम प्रभु (यहोवा, न्यू.व.) को रिस दिलाते हैं? क्या हम उस से शक्तिमान हैं?” (१ कुरिन्थियों १०:२२) हाँ, यहोवा “जलन रखनेवाला ईश्वर” है, एक ग़लत भावार्थ से नहीं, परन्तु “अनन्य भक्ति लेने” के भावार्थ से। (निर्गमन २०:५, किंग जेम्स वर्शन) मसीही होने के तौर से, हम परमेश्वर की अगाध बुद्धि के अनेक प्रदर्शनों से विस्मित होते हैं। (रोमियों ११:३३-३५) उनकी न्याय के लिए हमारा गहरा आदर हमारा जानबूझकर किए गए पापों से दूर रहने का कारण होना चाहिए। (इब्रानियों १०:२६-३१) लेकिन प्रेम निर्विवाद रूप से परमेश्वर के चार मूलभूत गुणों में सबसे बड़ा है। और यहोवा का निःस्वार्थ प्रेम हमें उनके क़रीब खींचता है और उन्हें प्रसन्न करने, उनकी उपासना करने और उनके पवित्र नाम के पवित्रीकरण में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करता है।—नीतिवचन २७:११.
आत्मा के फलों का सबसे बड़ा फल
१३. परमेश्वर की आत्मा के फलों में प्रेम ने कौनसा स्थान पाया है?
१३ परमेश्वर की आत्मा के नौ फलों में, जिनका ज़िक्र गलतियों ५:२२, २३ में किया गया है, प्रेम ने कौनसा स्थान पाया है? ये हैं “प्रेम, हर्ष, शान्ति, सहिष्णुता, कृपा, भलाई, विश्वास, विनम्रता, और आत्म-संयम।” (न्यू.व.) अच्छे कारण से पौलुस ने प्रेम को पहले सूचिबद्ध किया। क्या प्रेम हर्ष से बड़ा है, जिसका ज़िक्र वह आगे करता है? जी हाँ, यह बड़ा है, इसलिए कि प्रेम के बिना कोई चिरस्थायी हर्ष नहीं हो सकता। दरअसल, यह दुनिया स्वार्थ के कारण ही, प्रेम के अभाव के कारण इतनी हर्षहीन है। लेकिन यहोवा के गवाहों के दरमियान प्रेम है, और उन्हें अपने स्वर्ग के पिता के लिए प्रेम है। इसलिए हम उन से हर्षमय होने की अपेक्षा कर सकते हैं, और यह पूर्वबतलाया गया था कि वे “हर्ष के मारे जयजयकार” करते।—यशायाह ६५:१४.
१४. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि प्रेम आत्मा के शान्ति के फल से बड़ा है?
१४ प्रेम आत्मा के शान्ति के फल से भी बड़ा है। प्रेम के अभाव के कारण, यह दुनिया मनमुटाव और संघर्ष से भरी हुई है। लेकिन यहोवा के लोग पूरी दुनिया में एक दूसरे के साथ शान्ति से रहते हैं। उनके मामले में भजनकार के शब्द सच हैं: “यहोवा अपनी प्रजा को शान्ति की आशिष देगा।” (भजन २९:११) उन्हें यह शान्ति इसलिए है कि उन में सच्चे मसीहियों की पहचान देनेवाला चिह्न है, अर्थात् प्रेम। (यूहन्ना १३:३५) सिर्फ़ प्रेम ही सारे विभाजक तत्त्वों को वशीभूत कर सकता है, चाहे वे प्रजातीय, राष्ट्रीय, या सांस्कृतिक तत्त्व हों। यह “एकता का एक परिपूर्ण बन्धन” है।—कुलुस्सियों ३:१४, न्यू.व.
१५. प्रेम की अत्युत्तम भूमिका आत्मा के सहिष्णुता के फल की तुलना में किस तरह देखी जा सकती है?
१५ जब प्रेम की तुलना सहिष्णुता से की जाती है, तभी उसकी अत्युत्तम भूमिका देखी जा सकती है। सहिष्णुता का मतलब है किसी ग़लती या छेड़खानी को सहनशील रूप से झेलना। सहिष्णु होने का मतलब है सहनशील होना और साथ ही गुस्सा करने में धीरजवन्त होना। लोग किस कारण से अधीर होते और जल्द से गुस्सा करते हैं? क्या यह प्रेम के अभाव के कारण नहीं? परन्तु, हमारे स्वर्ग के पिता सहिष्णु हैं और “कोप करने में धीरजवन्त” हैं। (निर्गमन ३४:६; लूका १८:७) क्यों? इसलिए कि वह हम से प्रेम करते हैं और ‘नहीं चाहते, कि कोई नाश हो।’—२ पतरस ३:९.
१६. कृपा, भलाई, नम्रता, और आत्म-संयम के साथ प्रेम किस तरह तुलता है?
१६ हम ने इस से पहले भी देखा है कि प्रेम विश्वास से बड़ा क्यों है, और जो कारण दिए गए हैं, ये आत्मा के बाक़ी फलों के सम्बन्ध में भी लागू होते हैं, यानी कृपा, भलाई, नम्रता, और आत्म-संयम के सम्बन्ध में। ये सभी गुण ज़रूरी हैं, लेकिन प्रेम के बिना इन से हमें कोई फ़ायदा न होगा, उसी तरह जैसे पौलुस ने १ कुरिन्थियों १३:३ में ग़ौर किया, जहाँ उसने लिखा: “यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिए दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।” दूसरी तरफ़, प्रेम से ही कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और आत्म-संयम जैसे गुण उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार, पौलुस ने कहा कि प्रेम कृपाल है और कि “वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।” जी हाँ, और “प्रेम कभी टलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:४, ७, ८, न्यू.व.) यह भली-भाँति ग़ौर किया गया है कि आत्मा के अन्य फल, पहले ज़िक्र किए गए फल, प्रेम के प्रदर्शन, या विभिन्न पहलू हैं। सचमुच, इस से समझा जा सकता है कि आत्मा के नौ फलों में प्रेम ही वास्तव में सबसे बड़ा है।
१७. कौनसे धर्मशास्त्रीय कथन इस निष्कर्ष का समर्थन करते हैं कि प्रेम आत्मा का सबसे बड़ा फल है?
१७ इस निष्कर्ष का समर्थन करते हुए, कि प्रेम परमेश्वर की आत्मा के फलों में सबसे बड़ा है, पौलुस के शब्द इस प्रकार हैं: “आपस में प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्ज़दार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है। क्योंकि (व्यवस्था, न्यू.व.) . . . का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’ प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।” (रोमियों १३:८-१०) सर्वाधिक उचित रूप से, शिष्य याकूब अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखने के इस नियम का ज़िक्र “राज्य व्यवस्था” (शाही व्यवस्था, न्यू.व.) के तौर से करता है।—याकूब २:८.
१८. कौनसा अधिक सबूत है कि प्रेम सबसे बड़ा गुण है?
१८ क्या कोई और प्रमाण है कि प्रेम सचमुच ही सबसे बड़ा गुण है? हाँ, बेशक है। ग़ौर कीजिए क्या हुआ था जब एक शास्त्री ने यीशु से पूछा: “सब से मुख्य आज्ञा कौनसी है?” उस ने शायद भली-भाँति अपेक्षा की होगी कि यीशु दस नियमों में से किसी एक को उद्धृत करेगा। लेकिन यीशु ने व्यवस्थाविवरण ६:४, ५ में से उद्धरण करके कहा: “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; हे इस्राएल सुन; प्रभु (यहोवा, न्यू.व.) हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु (यहोवा, न्यू.व.) है। और तू प्रभु (यहोवा, न्यू.व.) अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।’” फिर यीशु ने आगे कहा: “दूसरी यह है, कि ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।’ इस से बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।”—मरकुस १२:२८-३१.
१९. अ·गाʹपे के कुछेक अतिविशिष्ट फल क्या हैं?
१९ सचमुच, पौलुस ने कोई अतिशयोक्ति नहीं की, जब उसने विश्वास, आशा, और प्रेम का ज़िक्र करके कहा: “इन में सबसे बड़ा प्रेम है।” प्रेम के दर्शाने से हमारे स्वर्ग के पिता और दूसरों के साथ, जिन में मण्डली और हमारे परिवार के सदस्य शामिल हैं, अच्छे सम्बन्ध क़ायम होते हैं। प्रेम का असर हम पर उन्नति के लिए होता है। और अगले लेख में दिखाया जाएगा कि सच्चा प्रेम कितना पुरस्कारदायक हो सकता है।
आपका जवाब क्या होगा?
◻ प्रेम किस तरह विश्वास और आशा से बड़ा है?
◻ अ·गाʹपे क्या है, और ऐसा प्रेम किस तरह दर्शाया जाता है?
◻ प्रेम परमेश्वर के चार मुख्य गुणों में सबसे बड़ा क्यों है?
◻ किस तरह प्रेम आत्मा के अन्य फलों से बड़ा है?
[पेज 13 पर तसवीरें]
प्रेम ने परमेश्वर को मानवजाति की सृष्टि करने के लिए प्रेरित किया कि वे एक पार्थिव परादीस में जीवन बिताएँ। क्या आप वहाँ होने की आशा करते हैं?