प्रेरितिक समयों में प्रकाश-कौंधें
“धर्मी के लिए प्रकाश कौंधा है, और खरे हृदयवालों के लिए आनन्द भी।” —भजन ९७:११, NW.
१. यहोवा के साक्षी आज कैसे प्रारंभिक मसीहियों के सदृश हैं?
सच्चे मसीहियों के तौर पर, हम भजन ९७:११ के शब्दों का कितना मूल्यांकन करते हैं! हमारे लिए बारंबार “प्रकाश कौंधा” है। वाक़ई, हममें से कुछ जनों ने दशकों तक यहोवा का कौंधता हुआ प्रकाश देखा है। यह सब हमें नीतिवचन ४:१८ की याद दिलाता है, जो यों कहता है: “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” परम्परा के बजाय शास्त्र के लिए हमारे मूल्यांकन में, हम यहोवा के साक्षी प्रारंभिक मसीहियों के सदृश हैं। उनकी मनोवृत्ति ईश्वरीय उत्प्रेरणा द्वारा लिखे गए मसीही यूनानी शास्त्र की ऐतिहासिक पुस्तकों से और उसकी पत्रियों से स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
२. यीशु के अनुयायियों को प्रकाश की जो पहली कौंधें मिलीं वे क्या थीं?
२ यीशु मसीह के प्रारंभिक अनुयायियों को प्रकाश की जो पहली कौंधें मिलीं, वे मसीहा के बारे में थीं। अन्द्रियास ने अपने भाई शमौन पतरस से कहा: ‘हम को मसीह मिल गया।’ (यूहन्ना १:४१) कुछ समय बाद, स्वर्ग के पिता ने प्रेरित पतरस को ऐसे तरीक़े से साक्ष्य देने में समर्थ किया जिससे वह दृष्टिकोण प्रतिबिंबित हुआ, जब उसने यीशु मसीह से कहा: “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।”—मत्ती १६:१६, १७; यूहन्ना ६:६८, ६९.
उनकी प्रचार नियुक्ति पर प्रकाश
३, ४. अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु ने अपने अनुयायियों को उनकी भविष्य की गतिविधि के बारे में कौन-सा प्रबोधन दिया?
३ अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु मसीह ने एक ऐसी बाध्यता के बारे में प्रकाश-कौंधें दीं जो उसके सभी अनुयायियों पर है। अति संभव है कि उसने गलील में एकत्रित ५०० शिष्यों से कहा: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती २८:१९, २०; १ कुरिन्थियों १५:६) तत्पश्चात्, मसीह के सभी अनुयायियों को प्रचारक होना था, और उनकी प्रचार नियुक्ति को “इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों” तक सीमित नहीं होना था। (मत्ती १०:६) ना ही उन्हें पापों की क्षमा के लिए पश्चाताप के प्रतीक में यूहन्ना का बपतिस्मा देना था। इसके बजाय, उन्हें लोगों को “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा” देना था।
४ यीशु के स्वर्ग जाने से कुछ ही समय पहले, उसके ११ विश्वासी प्रेरितों ने पूछा: “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” इस प्रश्न का उत्तर देने के बजाय, यीशु ने उन्हें उनकी प्रचार नियुक्ति के बारे में अतिरिक्त निर्देशन दिए। उसने कहा: “जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” तब तक, वे मात्र यहोवा के साक्षी रहे थे, लेकिन अब वे मसीह के भी साक्षी होते।—प्रेरितों १:६-८.
५, ६. पिन्तेकुस्त के दिन यीशु के शिष्यों ने कौन-सी प्रकाश-कौंधें प्राप्त कीं?
५ मात्र दस दिन बाद, यीशु के अनुयायियों ने क्या ही चमकदार प्रकाश-कौंधें प्राप्त कीं! सामान्य युग ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन, उन्होंने पहली बार योएल २:२८, २९ के अर्थ को पूरी तरह समझा: “मैं [यहोवा] सब प्राणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूंगा; तुम्हारे बेटे-बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगीं, और तुम्हारे पुरनिये स्वप्न देखेंगे, और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे। तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा उण्डेलूंगा।” यीशु के शिष्यों ने पवित्र आत्मा को आग की सी जीभों के रूप में देखा, जो यरूशलेम में एकत्रित—लगभग १२० पुरुष और स्त्री—सभी के सिर पर आ ठहरी थीं।—प्रेरितों १:१२-१५; २:१-४.
६ साथ ही पिन्तेकुस्त के दिन, शिष्यों ने पहली बार समझा कि भजन १६:१० के शब्द पुनरुत्थित यीशु मसीह पर लागू होते हैं। भजनहार ने कहा था: “तू [यहोवा परमेश्वर] मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपने पवित्र भक्त को सड़ने देगा।” शिष्यों ने समझा कि वे शब्द राजा दाऊद को लागू नहीं हो सकते थे, क्योंकि उसकी क़ब्र उस दिन तक उनके साथ थी। इसमें आश्चर्य नहीं कि लगभग ३,००० लोग, जिन्होंने इस नए प्रकाश की व्याख्या सुनी, इतने क़ायल हो गए कि उन्होंने उसी दिन बपतिस्मा प्राप्त किया!—प्रेरितों २:१४-४१.
७. रोमी सूबेदार कुरनेलियुस से अपनी मुलाक़ात के दौरान प्रेरित पतरस ने कौन-सा चमकदार प्रकाश प्राप्त किया?
७ कई शताब्दियों तक, इस्राएलियों ने परमेश्वर द्वारा उनके बारे में कही गयी बातों का मूल्यांकन किया: “पृथ्वी के सारे कुलों में से मैं ने केवल तुम्हीं पर मन लगाया है।” (आमोस ३:२) सो यह वाक़ई एक चमकदार प्रकाश-कौंध थी जो प्रेरित पतरस और उसके साथ रोमी सूबेदार कुरनेलियुस के घर जानेवाले लोगों को प्राप्त हुई, जब ख़तनारहित अन्यजातीय विश्वासियों पर पवित्र आत्मा पहली बार उतरी। यह ध्यान देने योग्य है कि यह एकमात्र अवसर था कि पवित्र आत्मा बपतिस्मे से पहले दी गयी। लेकिन यह आवश्यक था। नहीं तो पतरस यह नहीं जान पाता कि ये ख़तनारहित अन्यजातीय लोग बपतिस्मा के लिए योग्य थे। इस घटना के अभिप्राय को पूरी तरह समझते हुए, पतरस ने पूछा: “क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये [अन्यजातीय लोग] बपतिस्मा न पांए, जिन्हों ने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पाया है?” निश्चय ही, उपस्थित कोई भी जन उचित रूप से विरोध नहीं कर सकता था, और इसलिए इन अन्यजातीय लोगों का बपतिस्मा हुआ।—प्रेरितों १०:४४-४८. प्रेरितों ८:१४-१७ से तुलना कीजिए।
और ख़तना नहीं
८. कुछ प्रारंभिक मसीहियों को ख़तने की शिक्षा को छोड़ना कठिन क्यों लगा?
८ ख़तने के प्रश्न से सम्बन्धित सत्य की एक और तेज़ कौंध प्रकट हुई। ख़तने के रिवाज़ की शुरूआत सा.यु.पू. १९१९ में इब्राहीम के साथ यहोवा की वाचा से हुई थी। तब परमेश्वर ने इब्राहीम को आदेश दिया कि उसे और उसके घराने के बाक़ी सारे पुरुषों को ख़तना करवाना था। (उत्पत्ति १७:९-१४, २३-२७) सो ख़तना इब्राहीम के वंशजों का पहचान चिन्ह बन गया। और वे इस रिवाज़ के बारे में कितना गर्व करते थे! परिणामस्वरूप, “ख़तनारहित” घृणा की अभिव्यक्ति बन गयी। (यशायाह ५२:१; १ शमूएल १७:२६, २७) यह देखना आसान है कि क्यों कुछ प्रारंभिक यहूदी मसीही इस प्रतीक को बनाए रखना चाहते थे। उन में से कुछ लोगों की पौलुस और बरनबास से इस विषय पर काफ़ी चर्चा हुई थी। इसे निपटाने के लिए, पौलुस और अन्य लोग मसीही शासी निकाय का परामर्श लेने के लिए यरूशलेम गए।—प्रेरितों १५:१, २.
९. जैसे कि प्रेरितों अध्याय १५ में अभिलिखित है, प्रारंभिक शासी निकाय को कौन-सी प्रकाश-कौंधें प्रकट की गयीं?
९ इस स्थिति में, प्रारंभिक मसीहियों को किसी स्पष्ट चमत्कार के ज़रिए यह प्रकाश प्राप्त नहीं हुआ कि ख़तना यहोवा के सेवकों के लिए अब एक माँग नहीं थी। इसके बजाय, उन्होंने शास्त्र की खोज करने, मार्गदर्शन के लिए पवित्र आत्मा पर भरोसा करने, और ख़तनारहित अन्यजातीय लोगों के धर्मपरिवर्तन के बारे में पतरस और पौलुस के अनुभव सुनने के द्वारा उस अधिक प्रकाश को प्राप्त किया। (प्रेरितों १५:६-२१) निर्णय एक पत्र में निकाला गया था जो अंशतः यों कहता है: “पवित्र आत्मा को, और हम को ठीक जान पड़ा, कि इन आवश्यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें; कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, परे रहो।” (प्रेरितों १५:२८, २९) इस प्रकार प्रारंभिक मसीही ख़तना करवाने के आदेश से और मूसा की व्यवस्था की अन्य माँगों से मुक्त हो गए। अतः, पौलुस गलतिया के मसीहियों से कह सका: “मसीह ने स्वतंत्रता के लिये हमें स्वतंत्र किया है।”—गलतियों ५:१.
सुसमाचार-पुस्तकों में प्रकाश
१०. कौन-सी कुछ प्रकाश-कौंधें मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक में प्रकट की गयी हैं?
१० इसमें कोई संदेह नहीं कि लगभग सा.यु. ४१ में लिखी गयी मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक में इसके पाठकों के फ़ायदे के लिए अनेक प्रकाश-कौंध हैं। पहली-शताब्दी के अपेक्षाकृत कुछ मसीहियों ने ही व्यक्तिगत रूप से यीशु को अपनी शिक्षाओं को समझाते हुए सुना था। विशेषकर, मत्ती के सुसमाचार ने ज़ोर दिया कि यीशु के प्रचार का विषय था राज्य। और कितने प्रभावशाली रूप से यीशु ने उचित हेतु रखने के महत्त्व पर ज़ोर दिया था! उसके पहाड़ी उपदेश में, उसके दृष्टान्तों में (जैसे कि वे दृष्टान्त जो अध्याय १३ में अभिलिखित हैं), और अध्याय २४ तथा २५ में उसकी महान भविष्यवाणियों में क्या ही प्रकाश-कौंधें थीं! ये सब बातें मत्ती के सुसमाचार वृत्तान्त में प्रारंभिक मसीहियों के ध्यान में लाई गयीं, जो सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के कुछ आठ साल बाद ही लिखा गया था।
११. लूका और मरकुस की सुसमाचार-पुस्तकों की अन्तर्वस्तु के बारे में क्या कहा जा सकता है?
११ लगभग १५ साल बाद, लूका ने अपनी सुसमाचार-पुस्तक लिखी। जबकि इसका अधिकांश भाग मत्ती के वृत्तान्त से मिलता-जुलता है, इसमें ५९ प्रतिशत अतिरिक्त जानकारी है। लूका ने यीशु के छः चमत्कारों को अभिलिखित किया और उसने उसके दुगने से भी ज़्यादा यीशु के ऐसे दृष्टान्तों को लिखा जिनका उल्लेख अन्य सुसमाचार लेखकों ने नहीं किया। स्पष्टतया मात्र कुछ साल बाद, मरकुस ने अपनी सुसमाचार-पुस्तक लिखी, और उसने यीशु मसीह को कार्यशील मनुष्य, एक चमत्कार करनेवाले के रूप पर ज़ोर दिया। जबकि मरकुस ने ज़्यादातर उन घटनाओं को बताया जिनका अभिलेख मत्ती और लूका पहले कर चुके थे, उसने एक ऐसे दृष्टान्त को अभिलिखित किया जो उन लोगों ने नहीं किया था। उस दृष्टान्त में, यीशु ने परमेश्वर के राज्य की तुलना बीज से की जो उगता, बढ़ता, और आहिस्ता-आहिस्ता फल लाता है।a—मरकुस ४:२६-२९.
१२. यूहन्ना के सुसमाचार ने किस हद तक अतिरिक्त प्रबोधन प्रदान किया?
१२ फिर यूहन्ना की सुसमाचार-पुस्तक थी, जो मरकुस द्वारा अपना वृत्तान्त लिखे जाने के ३० से अधिक साल बाद लिखी गयी। यूहन्ना ने विशेषकर यीशु के मानव-पूर्व अस्तित्व के अनेक उल्लेखों के ज़रिए, उसकी सेवकाई पर कितना प्रकाश डाला! केवल यूहन्ना ही लाजर के पुनरुत्थान का वृत्तान्त देता है, और केवल वही हमें यीशु द्वारा अपने विश्वासी प्रेरितों से कही गयी अनेक उत्तम टिप्पणियाँ, साथ ही साथ विश्वासघात किए जाने की रात को उसकी हृदयस्पर्शी प्रार्थना देता है, जैसा कि अध्याय १३ से १७ में अभिलिखित है। दरअसल, कहा जाता है कि यूहन्ना के सुसमाचार का ९२ प्रतिशत भाग अद्वितीय है।
पौलुस की पत्रियों में प्रकाश-कौंधें
१३. कुछ लोगों ने रोमियों के नाम पौलुस की पत्री को इस दृष्टिकोण से क्यों देखा मानो वह एक सुसमाचार-पुस्तक हो?
१३ प्रेरितिक समयों में जी रहे मसीहियों को सत्य की प्रकाश-कौंध देने के लिए प्रेरित पौलुस को विशेषकर इस्तेमाल किया गया था। उदाहरण के लिए, रोमियों के नाम पौलुस की पत्री है, जो लगभग सा.यु. ५६ में लिखी गयी थी—तक़रीबन उसी वक़्त जब लूका ने अपना सुसमाचार लिखा। इस पत्री में पौलुस ने यह तथ्य विशिष्ट किया कि परमेश्वर के अपात्र अनुग्रह के परिणामस्वरूप और यीशु मसीह में विश्वास के ज़रिए धार्मिकता दी जाती है। सुसमाचार के इस पहलू पर पौलुस द्वारा बल दिया जाना, कुछ लोगों को रोमियों के नाम उसकी पत्री को इस दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित किया है मानो वह पाँचवीं सुसमाचार-पुस्तक हो।
१४-१६. (क) कुरिन्थ के मसीहियों के नाम अपनी पहली पत्री में, पौलुस ने एकता की ज़रूरत पर कौन-सा प्रकाश डाला? (ख) पहले कुरिन्थियों में आचरण के बारे में कौन-सा अतिरिक्त प्रकाश है?
१४ पौलुस ने कुछ ऐसे विषयों के बारे में लिखा जो कुरिन्थ के मसीहियों को परेशान कर रहे थे। कुरिन्थियों के नाम उसकी पत्री में अत्यधिक उत्प्रेरित सलाह सम्मिलित है जिसने हमारे दिन तक मसीहियों को लाभ पहुँचाया है। सबसे पहले, कुरिन्थ के लोग कुछ व्यक्तियों पर केंन्द्रित व्यक्ति-पूजक गुट बना रहे थे। सो उनकी इस ग़लती के बारे में पौलुस को उन्हें प्रबोधित करना था। प्रेरित ने उनकी मानसिक मनोवृत्ति को सुधारा। उसने उनसे निडरतापूर्वक कहा: “हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो।”—१ कुरिन्थियों १:१०-१५.
१५ कुरिन्थ की मसीही कलीसिया में घोर अनैतिकता बरदाश्त की जा रही थी। वहाँ एक पुरुष ने अपने पिता की पत्नी को ले लिया था, और इस प्रकार ‘ऐसा व्यभिचार कर रहा था जो अन्यजातियों में भी नहीं पाया जाता’ था। स्पष्ट रूप से, पौलुस ने लिखा: “उस कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।” (१ कुरिन्थियों ५:१, ११-१३) वह मसीही कलीसिया के लिए कुछ नयी बात थी—बहिष्करण। एक और विषय जिस पर कुरिन्थ की कलीसिया को प्रबोधन की ज़रूरत थी वह यह तथ्य था कि उसके कुछ सदस्य मतभेदों से निपटने के लिए अपने आध्यात्मिक भाइयों को सांसारिक न्यायालयों में ले जा रहे थे। पौलुस ने उन्हें ऐसा करने के लिए ज़बरदस्त रूप से फटकारा।—१ कुरिन्थियों ६:५-८.
१६ एक और बात जिससे कुरिन्थ की कलीसिया पीड़ित थी वह लैंगिक-सम्बन्धों के बारे में थी। पहला कुरिन्थियों ७ अध्याय में, पौलुस ने दिखाया कि लैंगिक अनैतिकता की व्यापकता के कारण, यह अच्छा होगा यदि प्रत्येक पुरुष की अपनी पत्नी हो और प्रत्येक स्त्री का अपना पति हो। पौलुस ने यह भी दिखाया कि जबकि अविवाहित व्यक्ति कम विकर्षणों से यहोवा की सेवा कर सकते हैं, सभी के पास अविवाहित रहने की देन नहीं है। और यदि एक स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है, तो वह फिर से विवाह करने के लिए मुक्त होती “परन्तु केवल प्रभु में।”—१ कुरिन्थियों ७:३९.
१७. पुनरुत्थान की शिक्षा पर पौलुस ने कौन-सा प्रकाश डाला?
१७ पुनरुत्थान के बारे में प्रभु ने पौलुस को प्रकाश की क्या ही कौंधें प्रकट करने के लिए इस्तेमाल किया! किस प्रकार के शरीर में अभिषिक्त मसीही उठाए जाएँगे? “स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है,” पौलुस ने लिखा। कोई भी शारीरिक देह स्वर्ग को नहीं ले जायी जाएगी, क्योंकि “मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते।” पौलुस ने आगे कहा कि सभी अभिषिक्त जन मृत्यु में नहीं सोएँगे लेकिन यीशु की उपस्थिति के दौरान कुछ जन मृत्यु से अमर जीवन के लिए क्षणभर में उठाए जाएँगे।—१ कुरिन्थियों १५:४३-५३.
१८. थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस की पहली पत्री में भविष्य के बारे में कौन-सा प्रकाश है?
१८ थिस्सलुनीका के मसीहियों के नाम उसकी पत्री में, भविष्य पर प्रकाश डालने के लिए पौलुस का इस्तेमाल किया गया। यहोवा का दिन, रात को चोर की नाईं आएगा। पौलुस ने यह भी समझाया: “जब लोग कह रहे होंगे, ‘शान्ति और सुरक्षा है,’ तब जैसे गर्भवती स्त्री पर सहसा प्रसव पीड़ा आ पड़ती है, वैसे ही उन पर भी विनाश आ पड़ेगा, और वे बच न सकेंगे।”—१ थिस्सलुनीकियों ५:२, ३, NHT.
१९, २०. इब्रानियों के नाम पौलुस की पत्री में यरूशलेम और यहूदिया के मसीहियों ने कौन-सी प्रकाश-कौंधें प्राप्त कीं?
१९ इब्रानियों के नाम अपनी पत्री लिखने के द्वारा, पौलुस ने यरूशलेम और यहूदिया के प्रारंभिक मसीहियों से प्रकाश-कौंध का संचार किया। कितने प्रभावशाली रूप से उसने मूसा की उपासना-रीति पर मसीही उपासना-रीति की श्रेष्ठता दिखायी! स्वर्गदूतों द्वारा संचार की गयी व्यवस्था का पालन करने के बजाय, मसीहियों को इन स्वर्गदूतीय संदेशवाहकों से कहीं अधिक श्रेष्ठ, परमेश्वर के पुत्र द्वारा सर्वप्रथम बताए गए उद्धार में विश्वास है। (इब्रानियों २:२-४) मूसा परमेश्वर के भवन में मात्र सेवक था। लेकिन, यीशु मसीह पूरे भवन पर अध्यक्षता करता है। मसीह मलिकिसिदक जैसा महायाजक है, और हारून के याजकपद से कहीं अधिक श्रेष्ठ पद रखता है। पौलुस ने यह भी दिखाया कि इस्राएली विश्वास और आज्ञाकारिता की कमी के कारण परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ थे, लेकिन मसीही अपनी विश्वसनीयता और आज्ञाकारिता के कारण उसमें प्रवेश करते हैं।—इब्रानियों ३:१-४:११.
२० फिर, नई वाचा व्यवस्था-वाचा से कहीं अधिक श्रेष्ठ भी है। जैसे कि यिर्मयाह ३१:३१-३४ में ६०० साल पहले भविष्यवाणी की गयी थी, जो लोग नई वाचा में हैं, उनके हृदयों पर परमेश्वर की व्यवस्था लिखी हुई है, और वे पापों की सच्ची क्षमा का आनन्द उठाते हैं। एक ऐसे महायाजक के होने के बजाय, जिसे अपने और लोगों के पापों के लिए सालाना बलिदान चढ़ाना पड़ता था, मसीहियों के पास अपने महायाजक के रूप में यीशु मसीह है, जो निष्पाप है और जिसने पापों के लिए एक ही बार बलिदान चढ़ा दिया। अपनी भेंट चढ़ाने के लिए हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थान में प्रवेश करने के बजाय, उसने स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि वह यहोवा के सामने दिखाई दे। इसके अतिरिक्त, मूसा की वाचा व्यवस्था के अधीन जानवरों का बलिदान पूरी तरह से पापों को नहीं मिटा सकता था, नहीं तो वे प्रतिवर्ष नहीं चढ़ाए जाते। लेकिन मसीह का बलिदान, जो एक ही बार चढ़ाया गया वाक़ई पापों को मिटाता है। यह सब महान आत्मिक मन्दिर पर प्रकाश डालता है, जिसके आँगन में आज अभिषिक्त शेषजन और “अन्य भेड़ें” सेवा करती हैं।—यूहन्ना १०:१६, NW; इब्रानियों ९:२४-२८.
२१. इस चर्चा ने प्रेरितिक समयों में भजन ९७:११ और नीतिवचन ४:१८ की पूर्ति के बारे में क्या दिखाया है?
२१ जगह और अधिक उदाहरण देने की अनुमति नहीं देती है, जैसे कि उन प्रकाश-कौंधों के बारे में जो प्रेरित पतरस और शिष्य याकूब तथा यहूदा की पत्रियों में पायी जाती हैं। लेकिन पूर्ववर्ती जानकारी यह दिखाने के लिए पर्याप्त होगी कि प्रेरितिक समयों में भजन ९७:११ और नीतिवचन ४:१८ की उल्लेखनीय पूर्तियाँ हुईं। सत्य प्ररूपों और परछाइयों से पूर्तियों और वास्तविकताओं की ओर आगे बढ़ने लगा।—गलतियों ३:२३-२५; ४:२१-२६.
२२. प्रेरितों की मृत्यु के बाद क्या हुआ, और अगला लेख क्या दिखाएगा?
२२ यीशु के प्रेरितों की मृत्यु और पूर्वबताए गए धर्मत्याग के प्रारंभ के बाद, सत्य का प्रकाश बहुत कम हो गया। (२ थिस्सलुनीकियों २:१-११) लेकिन, यीशु की प्रतिज्ञा के अनुसार, कई शताब्दियों के बाद स्वामी लौटा और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को “नौकर चाकरों” को सही समय पर उनका भोजन देते हुए पाया। परिणामस्वरूप, यीशु मसीह ने उस दास को “अपनी सारी संपत्ति” पर सरदार नियुक्त कर दिया। (मत्ती २४:४५-४७) उसके बाद कौन-सी प्रकाश-कौंधें हुईं? यह आगामी लेख में चर्चा किया जाएगा।
[फुटनोट]
a यहाँ ज़मीन उस वातावरण को सूचित करती है जिसमें एक मसीही, व्यक्तित्व के गुणों को विकसित करने का चुनाव करता है।—द वॉचटावर, जून १५, १९८०, पृष्ठ १८-१९ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ कौन-से बाइबल पाठ दिखाते हैं कि सत्य की समझ प्रगतिशील है?
◻ प्रेरितों की पुस्तक में कौन-सी कुछ प्रकाश-कौंधें अभिलिखित हैं?
◻ सुसमाचार-पुस्तकों में कौन-सा प्रकाश पाया जाता है?
◻ पौलुस की पत्रियों में कौन-सी प्रकाश-कौंधें हैं?