अध्याय 26
“तुममें से एक की भी जान नहीं जाएगी”
जहाज़ टूटने पर भी पौलुस दिखाता है कि उसका विश्वास मज़बूत है और वह लोगों से प्यार करता है
प्रेषितों 27:1–28:10 पर आधारित
1, 2. पौलुस किस सफर पर जानेवाला है? उसके मन में क्या सवाल उठ रहे होंगे?
पौलुस के कानों में फेस्तुस के ये शब्द बार-बार गूँज रहे हैं, “तू सम्राट के पास जाएगा।” वह शायद सोच रहा होगा कि रोम में उसके साथ क्या होगा। पौलुस को कैद में पड़े-पड़े दो साल बीत गए हैं, लेकिन अब रोम का यह सफर कुछ दिनों के लिए ही सही, उसे एक अलग माहौल देगा। (प्रेषि. 25:12) पौलुस पहले भी कई बार जहाज़ से सफर कर चुका है। लेकिन जब भी वह अपने सफर को याद करता है तो उसे समुंदर की ताज़ी हवाओं और खुले आसमान के नज़ारों से ज़्यादा उन जोखिमों और मुश्किलों का खयाल आता है जिनसे वह गुज़रा था। इसलिए इस सफर को लेकर उसके मन में कई सवाल उठ रहे होंगे। उसे इस बात की भी चिंता हो रही होगी कि सम्राट के सामने जाकर क्या होगा।
2 पौलुस कई बार “समुंदर के खतरों से” गुज़रा था। जैसे, तीन बार उसका जहाज़ समुंदर में टूट गया, यहाँ तक कि एक रात और एक दिन उसे समुंदर के बीच काटना पड़ा। (2 कुरिं. 11:25, 26) पर इस बार उसका सफर बहुत अलग होगा। वह एक कैदी बनकर जा रहा है। ऊपर से कैसरिया से रोम तक का सफर 3,000 किलोमीटर से भी लंबा है। क्या वह सही-सलामत रोम पहुँच पाएगा? अगर वह पहुँच भी गया तो क्या उसको वहाँ मौत की सज़ा मिलेगी? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि पौलुस का फैसला एक ऐसा शख्स करने जा रहा है जो उस ज़माने में शैतान की दुनिया का सबसे शक्तिशाली सम्राट था।
3. पौलुस ने क्या ठान लिया है? हम इस अध्याय में क्या देखेंगे?
3 अब तक आपने पौलुस के बारे में काफी कुछ पढ़ा है। आपको क्या लगता है, क्या पौलुस आनेवाली मुश्किलों के बारे में सोचकर हिम्मत हार बैठा होगा? बिलकुल नहीं! उसे यह तो पता था कि मुश्किलें आएँगी लेकिन क्या मुश्किलें आएँगी यह ठीक-ठीक नहीं पता था। इसलिए उसे जो नहीं पता था उस बारे में उसने बहुत ज़्यादा चिंता नहीं की। उसे मालूम था कि अगर वह हद-से-ज़्यादा चिंता करेगा तो प्रचार काम के लिए उसकी खुशी कम हो जाएगी। (मत्ती 6:27, 34) पौलुस जानता था कि यहोवा की यही मरज़ी है कि वह सभी लोगों को, यहाँ तक कि बड़े-बड़े अधिकारियों को भी गवाही दे। (प्रेषि. 9:15) पौलुस ने ठान लिया कि वह इस ज़िम्मेदारी को निभाकर रहेगा, फिर चाहे कुछ भी हो जाए। क्या हमारा इरादा भी पौलुस की तरह पक्का है? तो आइए पौलुस के साथ इस यादगार सफर पर निकलें और देखें कि हम उससे क्या-क्या सीख सकते हैं।
“हवा का रुख हमारे खिलाफ था” (प्रेषि. 27:1-7क)
4. पौलुस किस तरह के जहाज़ में अपना सफर शुरू करता है? सफर में उसके साथी कौन हैं?
4 पौलुस और दूसरे कैदियों को रोमी सेना-अफसर यूलियुस के हाथ सौंपा जाता है। यूलियुस उन सबको कैसरिया में एक मालवाहक जहाज़ पर चढ़ाता है। यह जहाज़ एशिया माइनर के पश्चिमी तट के अद्र-मुत्तियुम नाम के बंदरगाह से आया था। कैसरिया से यह जहाज़ उत्तर की तरफ बढ़ेगा और उसके बाद पश्चिम की तरफ जाएगा। रास्ते में वह जगह-जगह रुककर माल उतारेगा और नया माल भरेगा। इन जहाज़ों में यात्रियों के लिए कोई सुविधा नहीं होती थी, कैदियों के लिए तो बिलकुल भी नहीं। (यह बक्स देखें, “समुद्री सफर और व्यापार मार्ग।”) पर शुक्र है, जहाज़ पर सवार मुजरिमों के बीच पौलुस अकेला मसीही नहीं है। उसके साथ उसके दोस्त अरिस्तरखुस और लूका भी हैं। लूका ने ही सफर की पूरी कहानी लिखी। पौलुस के इन साथियों ने शायद जहाज़ का किराया खुद भरा, या हो सकता है उन्होंने पौलुस के सेवकों के नाते उसके साथ सफर किया। इस बारे में हमें कोई पक्की जानकारी नहीं है।—प्रेषि. 27:1, 2.
5. पौलुस को सीदोन में किन लोगों से मिलने का मौका मिलता है? हम इस घटना से क्या सीख सकते हैं?
5 जब जहाज़ कैसरिया से रवाना होता है, तो वह उत्तर की तरफ करीब 110 किलोमीटर का सफर तय करता है और अगले दिन सीरिया के तट पर सीदोन बंदरगाह पहुँचता है। ऐसा मालूम होता है कि यूलियुस पौलुस के साथ मुजरिमों जैसा सलूक नहीं करता। शायद इसलिए क्योंकि पौलुस एक रोमी नागरिक है और अब तक उसका जुर्म साबित नहीं हुआ है। (प्रेषि. 22:27, 28; 26:31, 32) यही वजह है कि सीदोन पहुँचने पर यूलियुस पौलुस को अपने मसीही भाई-बहनों से मिलने की इजाज़त देता है। भाई-बहनों को पौलुस की मेहमान-नवाज़ी करने में कितनी खुशी हुई होगी जो एक लंबी कैद के बाद उनसे मिल रहा था! क्या आप भी भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी करने के मौके ढूँढ़ सकते हैं? अगर आप ऐसा करें तो आपका भी हौसला बढ़ेगा।—प्रेषि. 27:3.
6-8. सीदोन से पौलुस का जहाज़ कहाँ-कहाँ गया? पौलुस ने किन मौकों का फायदा उठाकर प्रचार किया होगा?
6 इसके बाद, जहाज़ सीदोन से निकलता है और उत्तर की तरफ बढ़ता हुआ किलिकिया के पास से गुज़रता है जहाँ पौलुस का शहर तरसुस है। लूका यह नहीं बताता कि इस बीच जहाज़ कहाँ-कहाँ रुका। मगर वह एक खतरे का ज़िक्र ज़रूर करता है। उसने कहा, “हवा का रुख हमारे खिलाफ था।” (प्रेषि. 27:4, 5) ऐसे में भी पौलुस ने गवाही देने का मौका नहीं छोड़ा होगा। उसने ज़रूर दूसरे कैदियों को और जहाज़ पर जितने भी लोग थे जैसे नाविकों और सैनिकों को प्रचार किया होगा। यहाँ तक कि जहाज़ जहाँ-जहाँ रुका होगा, वहाँ भी उसने खुशखबरी सुनायी होगी। आज जब हमारे सामने गवाही देने के मौके आते हैं, तो क्या हम भी पौलुस की तरह उन मौकों का फायदा उठाएँगे?
7 जहाज़ आगे बढ़ते-बढ़ते एशिया माइनर के दक्षिणी तट पर मूरा बंदरगाह पहुँचता है। यहाँ पौलुस और बाकी यात्रियों को दूसरा जहाज़ लेना है जो उन्हें सीधे उनकी मंज़िल रोम पहुँचाएगा। (प्रेषि. 27:6) मूरा बंदरगाह पर मिस्र से आनेवाले कुछ जहाज़ रुकते थे जिनमें अनाज भरा होता था। उन दिनों रोम के लिए अनाज मिस्र से ही आता था। जब यूलियुस ऐसा एक जहाज़ देखता है तो वह सैनिकों और कैदियों को उस पर चढ़ने के लिए कहता है। यह जहाज़ पहलेवाले जहाज़ से काफी बड़ा होगा, क्योंकि इसमें ढेर सारा अनाज तो था ही साथ ही 276 लोग भी सवार थे। इनमें जहाज़ के नाविक, सैनिक, कैदी और दूसरे कई लोग भी हैं जो रोम जा रहे हैं। इस जहाज़ पर पौलुस को मानो प्रचार का और भी बड़ा इलाका मिल जाता है और उसने बेशक इस मौके का अच्छा इस्तेमाल किया होगा।
8 जहाज़ मूरा से रवाना होता है। उसका अगला पड़ाव कनिदुस द्वीप है, जो एशिया माइनर के दक्षिण-पश्चिम में है। आम तौर पर जब मौसम अच्छा रहता है तो एक ही दिन में कनिदुस पहुँच जा सकता है। लेकिन अब मौसम खराब होने लगता है। लूका बताता है कि “कई दिनों तक धीमी रफ्तार से बढ़ते हुए हम बड़ी मुश्किल से कनिदुस द्वीप पहुँचे।” (प्रेषि. 27:7क) (यह बक्स देखें, “भूमध्य सागर में जब हवा का रुख जहाज़ के खिलाफ होता।”) सोचिए, जब जहाज़ पर तेज़ हवाओं के थपेड़े पड़ रहे होंगे और वह ऊँची लहरों में हिचकोले खा रहा होगा, तो जहाज़ पर सवार लोगों की क्या हालत हुई होगी!
“जहाज़ आँधी में बुरी तरह हिचकोले” खा रहा है (प्रेषि. 27:7ख-26)
9, 10. क्रेते के पास पहुँचने पर कौन-सी मुश्किलें खड़ी होती हैं?
9 जहाज़ के कप्तान ने सोचा कि वे कनिदुस से पश्चिम के ही रास्ते आगे बढ़ेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। लूका बताता है, “हवा हमें सीधे आगे नहीं बढ़ने दे रही थी।” (प्रेषि. 27:7ख) अब तक समुंदर की जो धाराएँ जहाज़ को आगे बढ़ने में मदद दे रही थीं, वे छूट जाती हैं और उत्तर-पश्चिम से आनेवाली तेज़ आँधी जहाज़ को नीचे दक्षिण की तरफ ज़ोर से धकेलती है। आँधी से बचने के लिए जहाज़ क्रेते द्वीप की आड़ में आगे बढ़ता है। क्रेते द्वीप जहाज़ को तूफानी हवाओं का शिकार होने से बचाता है, ठीक जैसे कुछ वक्त पहले कुप्रुस द्वीप ने उन्हें तेज़ हवाओं से आड़ दी थी। जब जहाज़ क्रेते द्वीप के पूरब में सलमोने के सामने से गुज़रता है तो खतरा कुछ कम हो जाता है। वह इसलिए कि क्रेते द्वीप के दक्षिण की तरफ हवाएँ इतनी तेज़ नहीं हैं। आप सोच सकते हैं कि जहाज़ के मुसाफिरों ने कैसी चैन की साँस ली होगी! मगर नाविकों को एक और डर सता रहा है। सर्दियाँ पास हैं और ऐसे में जहाज़ से सफर करना और भी जोखिम भरा है।
10 लूका इस घटना का ठीक-ठीक ब्यौरा देता है, “[क्रेते द्वीप के] किनारे-किनारे बड़ी मुश्किल से खेते हुए हम उस जगह पहुँचे जो ‘बढ़िया बंदरगाह’ कहलाती है।” जी हाँ, हालाँकि जहाज़ द्वीप की आड़ में जा रहा है, फिर भी उसे काबू में रखना बहुत मुश्किल हो रहा है। आखिरकार उन्हें एक छोटी खाड़ी में लंगर डालने की जगह मिल जाती है। माना जाता है कि इस खाड़ी से कुछ ही दूरी पर क्रेते द्वीप उत्तर की तरफ मुड़ता है। वे यहाँ कितने समय तक रुकते हैं? लूका बताता है कि वे “बहुत दिन” तक यहाँ रहते हैं फिर भी हालात के सुधरने का कोई आसार नज़र नहीं आता। यह सितंबर-अक्टूबर का समय है जब समुद्री सफर बहुत खतरनाक होता था।—प्रेषि. 27:8, 9.
11. पौलुस क्या सलाह देता है? मगर जहाज़ के लोग क्या फैसला करते हैं?
11 पौलुस को भूमध्य सागर से सफर करने का काफी तजुरबा था। इसलिए कुछ यात्री पौलुस से सलाह करते हैं कि अब उन्हें क्या करना चाहिए। पौलुस रुकने की सलाह देता है क्योंकि आगे बढ़ने से “भारी नुकसान” हो सकता है और लोगों की जान भी जा सकती है। लेकिन जहाज़ का कप्तान और मालिक आगे बढ़ना चाहते हैं, शायद यह सोचकर कि जितनी जल्दी हो सके किसी सुरक्षित जगह पहुँचना ठीक रहेगा। वे यूलियुस को भी कायल कर देते हैं और जहाज़ के ज़्यादातर लोग यही राय देते हैं कि हमें तट के किनारे-किनारे आगे बढ़ना चाहिए और किसी तरह फीनिक्स बंदरगाह पहुँचना चाहिए। फीनिक्स एक बड़ा बंदरगाह है इसलिए वे सोचते हैं कि वहाँ जाकर सर्दियाँ बिताना सही रहेगा। फिर जैसे ही दक्षिण से आनेवाली हवा मंद-मंद बहने लगती है, वे जहाज़ को आगे ले जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब मौसम अच्छा हो गया है, पर यह उनका वहम है।—प्रेषि. 27:10-13.
12. क्रेते छोड़ने के बाद जहाज़ के सामने कौन-से खतरे आते हैं? जहाज़ को बचाने के लिए नाविक क्या-क्या करते हैं?
12 वे बढ़िया बंदरगाह से कुछ ही दूर जाते हैं कि उत्तर-पूर्व से एक “बड़ी आँधी” चलती है और जहाज़ तूफान में बुरी तरह फँस जाता है। तब वे “कौदा नाम के एक छोटे द्वीप” की आड़ में जाते हैं और वहाँ कुछ समय के लिए पनाह लेते हैं। यह द्वीप बढ़िया बंदरगाह से करीब 65 किलोमीटर दूर था। लेकिन अब भी एक खतरा है। तूफानी हवाएँ जहाज़ को ज़ोर से धकेलती हुईं दक्षिण की तरफ ले जा सकती हैं जहाँ वह अफ्रीका के रेतीले तट से टकराकर चूर-चूर हो सकता है। इससे बचने के लिए सबसे पहले नाविक जहाज़ के पीछेवाले हिस्से में लगी डोंगी या छोटी नाव को ऊपर खींच लेते हैं। उन्हें बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है क्योंकि डोंगी शायद पानी से भर गयी थी। इसके बाद वे बड़ी मुश्किल से जहाज़ को ऊपर से नीचे तक रस्सों या मोटी-मोटी ज़ंजीरों से बाँध देते हैं ताकि उसके तख्ते एक-दूसरे से जुड़े रहें। फिर वे पाल उतार देते हैं और जहाज़ को तूफान में टिकाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं। ज़रा सोचिए, यह अनुभव कितना डरावना रहा होगा! सबकुछ करने के बाद भी जहाज़ लगातार “आँधी में बुरी तरह हिचकोले” खा रहा है। तीसरे दिन वे जहाज़ का माल समुंदर में फेंकने लगते हैं ताकि जहाज़ हलका हो जाए और तैरता रहे।—प्रेषि. 27:14-19.
13. जहाज़ में सफर करनेवालों का क्या हाल होता है?
13 पूरे जहाज़ में डर और दहशत फैली है। मगर पौलुस और उसके साथियों को यकीन है कि उन्हें कुछ नहीं होगा। यीशु ने पौलुस से वादा किया था कि वह रोम ज़रूर जाएगा और वहाँ गवाही देगा। (प्रेषि. 19:21; 23:11) बाद में एक स्वर्गदूत ने इसी बात को पुख्ता किया। लेकिन तूफान अभी थमा नहीं है। दो हफ्ते से यह खतरनाक तूफान दिन-रात आतंक मचा रहा है। पूरा आसमान काले घने बादलों से घिरा हुआ है और लगातार बारिश हो रही है। सूरज और तारे नज़र नहीं आते इसलिए कप्तान समझ नहीं पाता कि जहाज़ फिलहाल कहाँ है और किस दिशा में जा रहा है। जहाज़ में सफर करनेवालों की हालत खराब है। कुछ डरे-सहमे हुए हैं, तो कुछ समुद्री यात्रा की वजह से बीमार हैं। और ठंड और बारिश की वजह से कुछ लोगों की कँपकँपी छूट रही है। तो भला ऐसे में किसी को खाने का खयाल कहाँ से आएगा?
14, 15. (क) पौलुस किस बात का फिर से ज़िक्र करता है और क्यों? (ख) पौलुस ने लोगों को आशा का जो संदेश दिया उससे हम क्या सीखते हैं?
14 पौलुस लोगों से कुछ कहने के लिए खड़ा होता है। वह बताता है कि उसने पहले ही सलाह दी थी कि जहाज़ को आगे बढ़ाना ठीक नहीं होगा। मगर वह इस बात का फिर से ज़िक्र क्यों करता है? ध्यान दीजिए उसने यह नहीं कहा, ‘मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था,’ मानो उनकी गलती बता रहा हो। वह बस इतना कह रहा था कि अगर वे उसकी बात पर ध्यान देते तो उन्हें इतनी तकलीफ नहीं झेलनी पड़ती। फिर वह उनसे कहता है, “अब . . . मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि हिम्मत रखो, क्योंकि तुममें से एक की भी जान नहीं जाएगी, सिर्फ जहाज़ का नुकसान होगा।” (प्रेषि. 27:21, 22) पौलुस के ये शब्द सुनकर लोगों ने राहत की साँस ली होगी! और पौलुस को भी कितनी खुशी हुई होगी कि परमेश्वर ने उसके ज़रिए लोगों को आशा का यह संदेश दिया। इससे हम क्या सीखते हैं? यही कि यहोवा को हरेक की जान प्यारी है। प्रेषित पतरस ने लिखा था, “यहोवा . . . नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो बल्कि यह कि सबको पश्चाताप करने का मौका मिले।” (2 पत. 3:9) इसलिए हमें ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को आशा का संदेश सुनाना है क्योंकि लोगों की जान दाँव पर लगी है!
15 पौलुस ने पहले भी जहाज़ में कई लोगों को गवाही दी होगी और “उस आशा” के बारे में बताया होगा ‘जिसका वादा परमेश्वर ने किया था।’ (प्रेषि. 26:6; कुलु. 1:5) लेकिन अब जब जहाज़ टूटने पर है तो वह उन्हें एक और आशा देता है कि वे सब तूफान से ज़िंदा बच जाएँगे। और इस बात का यकीन दिलाने के लिए वह उनसे कहता है, “मैं जिस परमेश्वर का हूँ . . . उसका एक स्वर्गदूत रात को मेरे पास आया था और उसने मुझसे कहा, ‘पौलुस, मत डर। तू सम्राट के सामने ज़रूर खड़ा होगा और देख, परमेश्वर तेरी वजह से उन सबकी भी जान बचाएगा जो तेरे साथ सफर कर रहे हैं।’” फिर पौलुस उन्हें बढ़ावा देता है, “हिम्मत रखो क्योंकि मुझे परमेश्वर पर विश्वास है कि जैसा मुझे बताया गया है बिलकुल वैसा ही होगा। मगर हमारा जहाज़ एक द्वीप के किनारे जाकर टूट जाएगा।”—प्रेषि. 27:23-26.
“सब लोग किनारे पर सही-सलामत पहुँच” जाते हैं (प्रेषि. 27:27-44)
16, 17. (क) पौलुस कब प्रार्थना करता है और इसका क्या असर होता है? (ख) पौलुस की बात कैसे सच निकलती है?
16 जहाज़ पर लोग बीते दो हफ्तों से डरे-सहमे हैं। तेज़ हवाएँ जहाज़ को धकेलती हुईं करीब 870 किलोमीटर दूर ले जाती हैं। फिर नाविकों को लगता है कि किनारा पास है क्योंकि उन्हें लहरों के तट से टकराने की आवाज़ आती है। वे जहाज़ के पीछेवाले हिस्से से लंगर डालते हैं ताकि जहाज़ को सही-सलामत किनारे पर लगा सकें। अब नाविक अपनी जान बचाने के लिए जहाज़ से भाग निकलने की कोशिश करते हैं। मगर पौलुस सेना-अफसर और सैनिकों से कहता है, “अगर ये आदमी जहाज़ में नहीं रहे, तो तुम भी नहीं बच पाओगे।” इसलिए सैनिक उन्हें रोक लेते हैं। जब जहाज़ कुछ सँभल जाता है तो पौलुस लोगों को समझाने लगता है कि वे कुछ खा लें। वह एक बार फिर उन सबको भरोसा दिलाता है कि वे ज़रूर ज़िंदा बचेंगे। फिर पौलुस ‘सबके सामने परमेश्वर को धन्यवाद देता है।’ (प्रेषि. 27:31, 35) प्रार्थना में परमेश्वर को धन्यवाद देकर पौलुस ने लूका, अरिस्तरखुस और आज के मसीहियों के लिए एक अच्छी मिसाल रखी। जब आपको दूसरों के सामने प्रार्थना करने का मौका मिलता है, तो आपकी प्रार्थनाएँ कैसी होती हैं? क्या उन्हें सुनकर लोगों को हिम्मत और दिलासा मिलता है?
17 पौलुस की प्रार्थना सुनने के बाद ‘उन सबको हिम्मत मिलती है और वे खाना खाने लगते हैं।’ (प्रेषि. 27:36) इसके बाद वे जहाज़ को हलका करने के लिए गेहूँ समुंदर में फेंकने लगते हैं ताकि जहाज़ तैरता रहे और उसे आसानी से किनारे पर लगाया जा सके। जब दिन निकलता है तो नाविक लंगर के रस्से काट डालते हैं और पतवारों के बंधन ढीले कर देते हैं। फिर वे आगे का पाल चढ़ा लेते हैं ताकि हवा के रुख में जहाज़ को किनारे की तरफ बढ़ा सकें। लेकिन तभी जहाज़ का सामनेवाला हिस्सा रेत में धँस जाता है और पीछेवाला हिस्सा लहरों के थपेड़ों से बुरी तरह टूटने लगता है। यह देखकर सैनिक तय करते हैं कि वे कैदियों को मार डालेंगे ताकि कोई भी तैरकर भाग ना जाए। मगर यूलियुस उन्हें रोक देता है। वह सबसे कहता है कि वे या तो तैरकर या दूसरी चीज़ों का सहारा लेकर किनारे पहुँच जाएँ। पौलुस की बात सच निकलती है। सभी 276 लोग बच जाते हैं। वे “सब लोग किनारे पर सही-सलामत पहुँच” जाते हैं। लेकिन यह जगह कौन-सी है?—प्रेषि. 27:44.
“अनोखी कृपा” (प्रेषि. 28:1-10)
18-20. माल्टा के लोग कैसे “अनोखी कृपा” करते हैं? परमेश्वर पौलुस के हाथों क्या चमत्कार करता है?
18 ऐसा मालूम होता है कि यह जगह माल्टा द्वीप है जो सिसिली के दक्षिण में है। (यह बक्स देखें, “माल्टा कहाँ था?”) इस द्वीप के लोगों की भाषा और संस्कृति बिलकुल अलग है फिर भी वे इन अनजान मुसाफिरों पर “अनोखी कृपा” करते हैं। यानी इंसानियत के नाते उनकी मदद करते हैं। (प्रेषि. 28:2) वे इन अजनबियों के लिए आग जलाते हैं क्योंकि बारिश हो रही है। ऊपर से वे पूरी तरह भीगे हुए हैं और ठंड से ठिठुर रहे हैं। आग से उन्हें गरमी मिलती है। फिर एक चमत्कार होता है।
19 पौलुस बाकी लोगों की तरह लकड़ियाँ बटोरकर आग पर रख रहा है। तभी एक ज़हरीला साँप निकलता है और उसके हाथ से लिपटकर उसे डस लेता है। यह देखकर माल्टा के लोग सोचने लगते हैं कि इस आदमी ने ज़रूर कोई पाप किया होगा इसलिए उसे देवताओं से सज़ा मिली है।a
20 माल्टा के लोगों को लगता है कि अब पौलुस का “शरीर सूज जाएगा।” एक किताब बताती है कि मूल भाषा में यहाँ शरीर सूजने के लिए जो शब्द इस्तेमाल हुआ है वह शब्द आम तौर पर डॉक्टर इस्तेमाल करते हैं। इससे हम समझ पाते हैं कि लूका ने यह शब्द इस्तेमाल क्यों किया, क्योंकि वह खुद एक “वैद्य” था। (प्रेषि. 28:6; कुलु. 4:14) पर पौलुस अपना हाथ झटककर साँप को नीचे गिरा देता है और उसे कुछ नहीं होता। यह सच में परमेश्वर का एक चमत्कार था!
21. (क) लूका ने अपने ब्यौरे में कैसे बिलकुल सटीक जानकारी दी? कुछ मिसालें देकर समझाइए। (ख) पौलुस माल्टा में कौन-से चमत्कार करता है? इसके बाद लोग क्या करते हैं?
21 माल्टा में पुबलियुस नाम का एक अमीर ज़मीनदार रहता है। वह शायद माल्टा के रोमी अफसरों में सबसे बड़ा अफसर है। लूका इस आदमी को ‘द्वीप का प्रधान’ कहता है। माल्टा से मिले दो शिलालेखों में यही उपाधि इस्तेमाल की गयी है। इससे पता चलता है कि लूका ने एकदम सटीक जानकारी दी। पुबलियुस तीन दिन तक पौलुस और उसके साथियों की मेहमान-नवाज़ी करता है। उस दौरान पुबलियुस का पिता बीमार था। एक बार फिर लूका बिलकुल सटीक जानकारी देता है कि उसे क्या तकलीफ थी। वह मेडिकल भाषा में बताता है, “उसे बुखार था और पेचिश हो गयी थी।” जब पौलुस पुबलियुस के पिता के लिए प्रार्थना करता है और उस पर हाथ रखता है तो वह ठीक हो जाता है। यह चमत्कार देखकर वहाँ के लोग पौलुस के पास बहुत-से बीमारों को लाते हैं और वह उन्हें ठीक करता है। फिर लोग पौलुस और उसके साथियों को बहुत-सी ज़रूरत की चीज़ें तोहफे में देते हैं।—प्रेषि. 28:7-10.
22. (क) एक प्रोफेसर ने लूका के ब्यौरे की तारीफ में क्या कहा? (ख) अगले अध्याय में हम क्या देखेंगे?
22 अब तक हमने पौलुस के सफर के बारे में जो भी पढ़ा, उसका ब्यौरा एकदम सही और सटीक है। यह बात एक प्रोफेसर ने भी मानी। उन्होंने कहा, ‘लूका का ब्यौरा पूरी बाइबल में बहुत ही दिलचस्प है क्योंकि इसमें घटनाओं की छोटी-बड़ी जानकारी दी गयी है। इसमें बताया है कि पहली सदी के नाविक अपने जहाज़ को बचाने के लिए कौन-कौन-से तरीके अपनाते थे और भूमध्य सागर के पूरब में कैसा मौसम होता था। ऐसी बारीक जानकारी पढ़कर लगता है कि जब ये घटनाएँ हो रही थीं तो कोई उनकी एक-एक बात को डायरी में नोट कर रहा था।’ लूका ने शायद कुछ ऐसा ही किया होगा। अब जब पौलुस माल्टा से आगे का सफर जारी रखेगा तो लूका के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होगा। जब पौलुस आखिरकार रोम पहुँचेगा तो उसके साथ क्या होगा? आइए देखते हैं।
a यहाँ बताया गया ज़हरीला साँप, वाइपर प्रजाति का था। उस ज़माने में माल्टा में वाइपर प्रजाति के साँप हुआ करते थे तभी वहाँ के लोग इस साँप के बारे में जानते थे। लेकिन आज माल्टा में ये साँप नहीं पाए जाते। सदियों के गुज़रते पर्यावरण में हुए बदलावों की वजह से या वहाँ इंसानों की आबादी बढ़ने की वजह से शायद ये साँप लुप्त हो गए।