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“तुममें से एक की भी जान नहीं जाएगी”‘परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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16, 17. (क) पौलुस कब प्रार्थना करता है और इसका क्या असर होता है? (ख) पौलुस की बात कैसे सच निकलती है?
16 जहाज़ पर लोग बीते दो हफ्तों से डरे-सहमे हैं। तेज़ हवाएँ जहाज़ को धकेलती हुईं करीब 870 किलोमीटर दूर ले जाती हैं। फिर नाविकों को लगता है कि किनारा पास है क्योंकि उन्हें लहरों के तट से टकराने की आवाज़ आती है। वे जहाज़ के पीछेवाले हिस्से से लंगर डालते हैं ताकि जहाज़ को सही-सलामत किनारे पर लगा सकें। अब नाविक अपनी जान बचाने के लिए जहाज़ से भाग निकलने की कोशिश करते हैं। मगर पौलुस सेना-अफसर और सैनिकों से कहता है, “अगर ये आदमी जहाज़ में नहीं रहे, तो तुम भी नहीं बच पाओगे।” इसलिए सैनिक उन्हें रोक लेते हैं। जब जहाज़ कुछ सँभल जाता है तो पौलुस लोगों को समझाने लगता है कि वे कुछ खा लें। वह एक बार फिर उन सबको भरोसा दिलाता है कि वे ज़रूर ज़िंदा बचेंगे। फिर पौलुस ‘सबके सामने परमेश्वर को धन्यवाद देता है।’ (प्रेषि. 27:31, 35) प्रार्थना में परमेश्वर को धन्यवाद देकर पौलुस ने लूका, अरिस्तरखुस और आज के मसीहियों के लिए एक अच्छी मिसाल रखी। जब आपको दूसरों के सामने प्रार्थना करने का मौका मिलता है, तो आपकी प्रार्थनाएँ कैसी होती हैं? क्या उन्हें सुनकर लोगों को हिम्मत और दिलासा मिलता है?
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