अध्याय 4
“कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी”
प्रेषित हिम्मत से काम लेते हैं और यहोवा उनकी सेवा पर आशीष देता है
प्रेषितों 3:1–5:11 पर आधारित
1, 2. पतरस और यूहन्ना मंदिर के फाटक के पास क्या चमत्कार करते हैं?
दोपहर का वक्त है। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा है। यहूदी लोग और मसीह के चेले मंदिर में इकट्ठा हो रहे हैं। थोड़ी ही देर में ‘प्रार्थना का वक्त’ शुरू होनेवाला है।a (प्रेषि. 2:46; 3:1) हर जगह काफी भीड़ है। भीड़ में पतरस और यूहन्ना भी हैं। वे मंदिर में सुंदर कहलानेवाले फाटक की तरफ जाते हैं। इतने शोरगुल में एक अधेड़ उम्र का भिखारी फाटक के पास बैठा भीख माँग रहा है। वह जन्म से लँगड़ा है।—प्रेषि. 3:2; 4:22.
2 पतरस और यूहन्ना जैसे ही फाटक के पास पहुँचते हैं, वह भिखारी उनसे पैसे माँगने लगता है। वे दोनों रुक जाते हैं और पतरस उस आदमी से कहता है, “सोना-चाँदी तो मेरे पास नहीं है मगर जो मेरे पास है वह तुझे दे रहा हूँ। यीशु मसीह नासरी के नाम से मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो और चल-फिर।” फिर पतरस उस लँगड़े आदमी का हाथ पकड़कर उसे उठाता है और वह आदमी ज़िंदगी में पहली बार अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है! क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यह चमत्कार देखकर लोग कैसे दंग रह गए होंगे? (प्रेषि. 3:6, 7) और उस भिखारी के बारे में सोचिए, वह किस तरह आँखें फाड़कर अपने पैरों की तरफ देख रहा होगा और सँभल-सँभलकर अपने पहले कदम बढ़ा रहा होगा। बाइबल बताती है कि वह खुशी के मारे उछलने-कूदने लगा और ज़ोर-ज़ोर से परमेश्वर की तारीफ करने लगा!
3. पतरस भीड़ को और उस आदमी को जो ठीक हुआ है, क्या तोहफा देता है?
3 यह चमत्कार देखकर लोग दौड़े-दौड़े सुलैमान के बरामदे के पास आते हैं जहाँ पतरस और यूहन्ना खड़े हैं। यह वही जगह थी जहाँ एक बार यीशु ने भी लोगों को सिखाया था। (यूह. 10:23) पतरस भीड़ को समझाता है कि वे यह चमत्कार कैसे कर पाए। फिर वह भीड़ को और उस आदमी को जो ठीक हुआ है, एक ऐसा तोहफा देता है जो सोने-चाँदी से बढ़कर है। इस तोहफे के सामने वह चमत्कार भी कुछ नहीं है जो अभी-अभी हुआ था। आखिर यह तोहफा क्या है? यह है पश्चाताप करने का मौका ताकि उनके पाप धुल जाएँ और वे यीशु के चेले बन सकें। वही यीशु जिसे यहोवा ने ‘जीवन दिलानेवाला खास अगुवा’ ठहराया है।—प्रेषि. 3:15.
4. (क) उस यादगार दिन के बाद अधिकारी क्या करने की कोशिश करते हैं? (ख) हम किन दो सवालों के जवाब जानेंगे?
4 यह वाकई एक यादगार दिन है! एक लँगड़ा आदमी ठीक हो गया और चल-फिर पाया। और हज़ारों लोगों को यह मौका मिला कि वे परमेश्वर की मरज़ी जानें और उसके मुताबिक चल सकें। (कुलु. 1:9, 10) लेकिन उस दिन जो हुआ उसकी वजह से चेलों का सामना बड़े-बड़े अधिकारियों से होता है। अधिकारी उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं ताकि वे यीशु की आज्ञा ना मानें और प्रचार करना बंद कर दें। (प्रेषि. 1:8) वे पतरस और यूहन्ना को “कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी” समझते हैं। फिर भी पतरस और यूहन्ना ने भीड़ को जिस तरह गवाही दी, उससे हम क्या सीख सकते हैं?b (प्रेषि. 4:13) और हम उन चेलों की तरह कैसे विरोध का सामना कर सकते हैं?
‘अपनी शक्ति’ से नहीं (प्रेषि. 3:11-26)
5. पतरस ने जिस तरह भीड़ से बात की, उससे हम क्या सीखते हैं?
5 पतरस और यूहन्ना अब भीड़ से बात करना शुरू करते हैं। वे जानते हैं कि भीड़ में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने यीशु को मार डालने की माँग की थी। (मर. 15:8-15; प्रेषि. 3:13-15) फिर भी पतरस बिना डरे उन्हें बताता है कि उसने उस लँगड़े आदमी को यीशु के नाम से ठीक किया है। यही नहीं, वह भीड़ से साफ-साफ कहता है कि मसीह की मौत के लिए वे भी ज़िम्मेदार हैं। लेकिन पतरस इन लोगों से नफरत नहीं करता क्योंकि वह जानता है कि उन्होंने जो भी किया “अनजाने में किया।” (प्रेषि. 3:17) वह उन्हें अपने भाई कहता है और उन्हें राज की खुशखबरी सुनाता है। वह कहता है कि अगर वे पश्चाताप करें और मसीह पर विश्वास करें, तो यहोवा उन्हें “ताज़गी के दिन” देगा। (प्रेषि. 3:19) हमें भी पतरस की तरह बिना डरे लोगों को साफ-साफ बताना चाहिए कि बहुत जल्द परमेश्वर के न्याय का दिन आनेवाला है। पर हमें उनके बारे में पहले से कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए बल्कि यह सोचना चाहिए कि एक-न-एक दिन वे हमारे मसीही भाई-बहन बन सकते हैं। फिर पतरस की तरह हम भी उन्हें राज की खुशखबरी सुना सकेंगे।
6. पतरस और यूहन्ना ने कैसे दिखाया कि वे नम्र हैं?
6 प्रेषित नम्र थे। उन्होंने लोगों से यह नहीं कहा कि उन्होंने अपनी ताकत से उस लँगड़े आदमी को ठीक किया। पतरस ने भीड़ से कहा, “तुम हमें ऐसे क्यों देख रहे हो मानो हमने अपनी शक्ति से या परमेश्वर की भक्ति [यानी अपनी श्रद्धा] से इसे चलने-फिरने के काबिल बनाया हो?” (प्रेषि. 3:12) पतरस और दूसरे प्रेषित जानते थे कि उन्होंने जो बड़े-बड़े काम किए हैं, वे अपनी ताकत से नहीं बल्कि परमेश्वर की ताकत से किए हैं। इसलिए लोगों से वाह-वाही लूटने के बजाय उन्होंने सारा श्रेय यहोवा और यीशु को दिया।
7, 8. (क) हम लोगों को कौन-सा तोहफा दे सकते हैं? (ख) ‘सबकुछ पहले जैसा कर दिया जाएगा,’ यह बात आज कैसे पूरी हो रही है?
7 प्रचार करते वक्त हमें भी प्रेषितों की तरह नम्र रहना चाहिए। यह सच है कि आज परमेश्वर हमें बीमार लोगों को ठीक करने की ताकत नहीं देता। लेकिन हम लोगों की मदद कर सकते हैं ताकि वे परमेश्वर और मसीह पर अपना विश्वास बढ़ा सकें। और हम उन्हें वही तोहफा दे सकते हैं जो पतरस ने दिया था। यानी पापों की माफी पाने और यहोवा से ताज़गी पाने का मौका। हर साल लाखों लोग यह तोहफा कबूल कर रहे हैं और बपतिस्मा लेकर मसीह के चेले बन रहे हैं।
8 पतरस ने एक ऐसे वक्त का ज़िक्र किया था जब ‘सबकुछ पहले जैसा कर दिया जाएगा।’ आज हम उसी दौर में जी रहे हैं। “परमेश्वर ने बीते ज़माने में अपने पवित्र भविष्यवक्ताओं से [जो] कहलवाया था,” उसके मुताबिक सन् 1914 में स्वर्ग में परमेश्वर का राज स्थापित हुआ। (प्रेषि. 3:21; भज. 110:1-3; दानि. 4:16, 17) उसके कुछ समय बाद, मसीह ने धरती पर सच्ची उपासना फिर से शुरू करवायी। नतीजा, लाखों लोग परमेश्वर के राज की प्रजा बने हैं और लाक्षणिक फिरदौस में जी रहे हैं। यानी वे शांति से और साथ मिलकर यहोवा की उपासना कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पुरानी शख्सियत उतार फेंकी है और ‘नयी शख्सियत पहन ली है, जो परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी है।’ (इफि. 4:22-24) यह यहोवा की पवित्र शक्ति से ही हो पाता है ठीक जैसे पवित्र शक्ति से वह लँगड़ा आदमी ठीक हुआ था। तो अब तक हमने क्या सीखा? यही कि हमें पतरस की तरह निडर होकर और कुशलता से दूसरों को परमेश्वर का वचन सिखाना चाहिए। और जब चेला बनाने के काम में कामयाबी मिलती है तो हमें याद रखना चाहिए कि वह हमारी वजह से नहीं बल्कि परमेश्वर की शक्ति से मिलती है।
‘हम बोलना नहीं छोड़ सकते’ (प्रेषि. 4:1-22)
9-11. (क) पतरस और यूहन्ना का संदेश सुनकर यहूदी धर्म गुरु क्या करते हैं? (ख) प्रेषितों ने क्या करने की ठान ली है?
9 उस लँगड़े आदमी का ठीक होना, खुशी से उसका उछलना-कूदना, फिर पतरस का भाषण देना, मंदिर में इतना कुछ हो रहा है तो ज़ाहिर है, काफी शोरगुल होगा। इसलिए मंदिर के पहरेदारों का सरदार और प्रधान याजक यह देखने के लिए आते हैं कि वहाँ क्या हो रहा है। ये आदमी शायद सदूकी गुट के हैं। इस गुट के लोग बहुत अमीर थे और शासन-प्रशासन में उनका बहुत ज़ोर चलता था और वे रोमी सरकार के साथ शांति बनाए रखने की कोशिश करते थे। सदूकी ज़बानी तौर पर दिए गए कानून ठुकराते थे, जो फरीसियों को बहुत अज़ीज़ थे। यही नहीं, सदूकी इस शिक्षा को नहीं मानते थे कि मरे हुए ज़िंदा होंगे।c इसलिए जब वे देखते हैं कि पतरस और यूहन्ना निडर होकर लोगों को सिखा रहे हैं कि यीशु दोबारा ज़िंदा हुआ है, तो उनका खून खौल उठता है!
10 वे पतरस और यूहन्ना पर झपट पड़ते हैं और उन्हें सीधे ले जाकर जेल में डाल देते हैं। अगले दिन वे उन्हें घसीटकर यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत के सामने लाते हैं। अदालत के रुतबेदार आदमियों की नज़र से देखें तो पतरस और यूहन्ना “कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी” हैं और उन्हें मंदिर में सिखाने का कोई अधिकार नहीं है। वे तो किसी जाने-माने धार्मिक स्कूल में भी नहीं गए। मगर फिर पतरस और यूहन्ना अपनी सफाई में बोलना शुरू करते हैं और बेधड़क होकर और यकीन से बात करते हैं। यह देखकर पूरी अदालत दंग रह जाती है! आखिर वे इतने यकीन से कैसे बोल पा रहे हैं? एक वजह यह है कि वे “यीशु के साथ रहा करते थे।” (प्रेषि. 4:13) उनका गुरु यीशु पूरे अधिकार के साथ लोगों को सिखाता था, ना कि शास्त्रियों की तरह।—मत्ती 7:28, 29.
11 अदालत प्रेषितों को हुक्म देती है कि वे प्रचार करना बंद करें। यहूदी समाज में अदालत का फैसला पत्थर की लकीर माना जाता था। कुछ हफ्ते पहले जब यीशु इसी अदालत के सामने आया, तो उसे “मौत की सज़ा” सुनायी गयी थी। (मत्ती 26:59-66) फिर भी पतरस और यूहन्ना उन अमीर, पढ़े-लिखे और रुतबेदार आदमियों से डरते नहीं। वे बेखौफ होकर मगर आदर के साथ उनसे कहते हैं, “क्या परमेश्वर की नज़र में यह सही होगा कि हम उसकी बात मानने के बजाय तुम्हारी सुनें, तुम खुद फैसला करो। मगर जहाँ तक हमारी बात है, हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।”—प्रेषि. 4:19, 20.
12. हम क्या कर सकते हैं ताकि हम हिम्मत और यकीन से गवाही दे पाएँ?
12 क्या आपमें भी प्रेषितों की तरह हिम्मत है? जब प्रचार में आपको ऐसे लोग मिलते हैं जो बहुत अमीर, पढ़े-लिखे हैं और जिनका समाज में ऊँचा रुतबा है तो आप कैसा महसूस करते हैं? जब आपके घरवाले, स्कूल के साथी या साथ काम करनेवाले आपके विश्वास की वजह से आपका मज़ाक उड़ाते हैं तो आपको कैसा लगता है? क्या आप डर जाते हैं और झिझक महसूस करते हैं? अगर हाँ, तो आप इन भावनाओं पर काबू पा सकते हैं। धरती पर रहते वक्त यीशु ने अपने प्रेषितों को सिखाया था कि वे कैसे पूरे यकीन और आदर के साथ अपने विश्वास की पैरवी कर सकते हैं। (मत्ती 10:11-18) जब यीशु ज़िंदा हुआ तो उसने अपने चेलों से वादा किया कि वह “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक” उनके साथ रहेगा। (मत्ती 28:20) आज यीशु के निर्देशन में “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” हमें सिखाता है कि हम अपने विश्वास की पैरवी कैसे कर सकते हैं। (मत्ती 24:45-47; 1 पत. 3:15) यह दास हमें मंडली की सभाओं और प्रकाशनों के ज़रिए हिदायतें देता है। जैसे, हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा से और jw.org वेबसाइट पर “पवित्र शास्त्र से जुड़े सवालों के जवाब” भाग में दिए लेखों से। क्या आप इन इंतज़ामों का पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं? अगर हाँ, तो आप और भी हिम्मत और यकीन से गवाही दे पाएँगे। प्रेषितों की तरह आप भी ठान लेंगे कि आप उन सच्चाइयों के बारे में बोलना नहीं छोड़ेंगे जो आपने देखी और सुनी हैं।
‘उन सभी ने ऊँची आवाज़ में परमेश्वर से बिनती की’ (प्रेषि. 4:23-31)
13, 14. जब हम विरोध का सामना करते हैं तो हमें क्या करना चाहिए और क्यों?
13 इसके बाद अदालत पतरस और यूहन्ना को छोड़ देती है। वे फौरन मंडली के भाई-बहनों से मिलने जाते हैं। फिर वे सब एक साथ मिलकर ‘ऊँची आवाज़ में परमेश्वर से बिनती करते’ हैं कि वह प्रचार करते रहने के लिए उन्हें हिम्मत दे। (प्रेषि. 4:24) पतरस अच्छी तरह जानता है कि अपनी ताकत पर भरोसा करना कितनी बड़ी मूर्खता है। कुछ हफ्ते पहले उसने यही गलती की थी। उसने दावे के साथ यीशु से कहा था, “तेरे साथ जो होगा उसकी वजह से चाहे बाकी सबका विश्वास डगमगा जाए, मगर मेरा विश्वास कभी नहीं डगमगाएगा।” पर जैसा यीशु ने कहा था, पतरस के अंदर इंसान का डर समा गया और उसने अपने दोस्त और गुरु को जानने से इनकार कर दिया। लेकिन पतरस ने अपनी इस गलती से सबक सीखा।—मत्ती 26:33, 34, 69-75.
14 अगर आप यीशु के बारे में गवाही देते रहना चाहते हैं तो सिर्फ पक्का इरादा होना काफी नहीं है। जब विरोधी आपको यहोवा की सेवा करने से या प्रचार करने से रोकते हैं, तो वही कीजिए जो पतरस और यूहन्ना ने किया था। हिम्मत के लिए यहोवा से प्रार्थना कीजिए। मंडली के भाई-बहनों से मदद माँगिए। प्राचीनों और दूसरे अनुभवी मसीहियों को अपनी मुश्किलें बताइए। जब दूसरे आपके लिए प्रार्थना करेंगे, तो आपका दिल मज़बूत होगा और आपको प्रचार में लगे रहने की ताकत मिलेगी।—इफि. 6:18; याकू. 5:16.
15. अगर आपने कुछ समय के लिए प्रचार करना बंद कर दिया था, तो आप क्या याद रख सकते हैं?
15 अगर आपने कभी विरोधियों के डर से कुछ समय के लिए प्रचार करना बंद कर दिया था तो निराश मत होइए। याद रखिए, यीशु की मौत के बाद सभी प्रेषितों ने प्रचार करना बंद कर दिया था, लेकिन जल्द ही वे दोबारा प्रचार करने लगे। (मत्ती 26:56; 28:10, 16-20) अपनी बीती गलतियों के बारे में सोचते मत रहिए। इसके बजाय इस दौरान आपने जो सीखा उसे दूसरों को बताकर उनका हौसला बढ़ाइए।
16, 17. चेलों की प्रार्थना से हम क्या सीख सकते हैं?
16 जब अधिकारी हम पर ज़ुल्म करते हैं तो हमें परमेश्वर से क्या प्रार्थना करनी चाहिए? गौर कीजिए कि चेले क्या बिनती करते हैं। वे यह नहीं कहते कि परमेश्वर उन्हें तकलीफों से बचा ले। वे जानते हैं कि यीशु ने कहा था, “अगर उन्होंने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे।” (यूह. 15:20) इसलिए चेले यहोवा से बिनती करते हैं कि वह उन विरोधियों की धमकियों पर “ध्यान दे।” (प्रेषि. 4:29) चेले साफ देख सकते हैं कि उन पर जो ज़ुल्म हो रहे हैं उनसे दरअसल भविष्यवाणी पूरी हो रही है। वे यह भी जानते हैं कि दुनिया के शासक चाहे जो भी कहें, परमेश्वर की मरज़ी ‘धरती पर पूरी’ होकर ही रहेगी, ठीक जैसे यीशु ने प्रार्थना करना सिखाया था।—मत्ती 6:9, 10.
17 चेले परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहते हैं इसलिए वे प्रार्थना करते हैं, “अपने दासों की मदद कर कि वे पूरी तरह निडर होकर तेरा वचन सुनाते रहें।” यहोवा फौरन उनकी प्रार्थना सुनता है। बाइबल में लिखा है, “वह जगह जहाँ वे इकट्ठा थे, काँप उठी और वे सब-के-सब पवित्र शक्ति से भर गए और निडर होकर परमेश्वर का वचन सुनाने लगे।” (प्रेषि. 4:29-31) दुनिया की कोई भी ताकत परमेश्वर की मरज़ी को पूरा होने से नहीं रोक सकती। (यशा. 55:11) चाहे मुश्किल कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, दुश्मन कितने ही ताकतवर क्यों ना हों, अगर हम परमेश्वर को पुकारें तो वह हमें उसका वचन सुनाते रहने की हिम्मत ज़रूर देगा।
हमें ‘इंसानों को नहीं, परमेश्वर को’ जवाब देना है (प्रेषि. 4:32–5:11)
18. यरूशलेम की मंडली के भाई-बहन एक-दूसरे के लिए क्या करते हैं?
18 कुछ ही समय के अंदर यरूशलेम की नयी मंडली में भाई-बहनों की गिनती 5,000 से ज़्यादा हो जाती है।d अलग-अलग संस्कृति से होने के बावजूद सभी चेले “एक दिल और एक जान” हैं। उनके विचार और उनके सोचने का तरीका एक जैसा है यानी उनके बीच एकता है। (प्रेषि. 4:32; 1 कुरिं. 1:10) चेले प्रार्थना करते हैं कि यहोवा उनकी मेहनत पर आशीष दे। इसके अलावा वे एक-दूसरे का विश्वास मज़बूत करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद भी करते हैं। (1 यूह. 3:16-18) यूसुफ नाम के एक चेले पर गौर कीजिए जिसे प्रेषितों ने बरनबास नाम दिया था। वह अपनी ज़मीन बेचकर खुशी-खुशी सारी रकम प्रेषितों को दे देता है। इन पैसों से उन नए चेलों की मदद की जाती है जो दूर-दूर के देशों से यरूशलेम आए हैं और ज़्यादा सीखने के लिए यहाँ कुछ दिन ठहरे हैं।
19. यहोवा ने हनन्याह और सफीरा को क्यों मार डाला?
19 हनन्याह और सफीरा नाम के एक पति-पत्नी भी अपनी कुछ ज़मीन बेचकर दान देते हैं। मगर वे “चोरी-छिपे उसकी कीमत का कुछ हिस्सा अपने पास रख” लेते हैं और ऐसा दिखाते हैं मानो उन्होंने पूरी रकम दान की हो। (प्रेषि. 5:2) यहोवा फौरन उन दोनों को मार डालता है, इसलिए नहीं कि उन्होंने कम दान दिया था बल्कि इसलिए कि उन्होंने छल किया था। उन्होंने “इंसानों से नहीं, परमेश्वर से झूठ बोला” था। (प्रेषि. 5:4) उनका इरादा भी गलत था। वे इंसानों से वाह-वाही पाना चाहते थे ना कि परमेश्वर को खुश करना चाहते थे। यीशु ने इस तरह के कपटियों को सीधे-सीधे धिक्कारा था।—मत्ती 6:1-3.
20. जब हम यहोवा को कुछ देते हैं तो हमें क्या याद रखना चाहिए?
20 पहली सदी के वफादार चेले दरियादिल थे। आज लाखों यहोवा के साक्षी भी दुनिया-भर में होनेवाले प्रचार काम के लिए दिल खोलकर दान देते हैं। किसी पर भी ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाती कि उसे प्रचार के लिए अपना वक्त या पैसा देना-ही-देना है। यहोवा हरगिज़ नहीं चाहता कि हम उसकी सेवा कुड़कुड़ाते हुए या किसी दबाव में करें। (2 कुरिं. 9:7) जब भी हम अपना समय देते हैं या कुछ दान करते हैं, तो यहोवा यह नहीं देखता कि हमने कितना दिया है बल्कि यह देखता है कि हमने किस इरादे से दिया है। (मर. 12:41-44) हम हनन्याह और सफीरा की तरह नहीं बनना चाहते जिन्होंने अपने मतलब के लिए या लोगों से वाह-वाही पाने के लिए परमेश्वर की सेवा की। इसके बजाय हम पतरस, यूहन्ना और बरनबास की तरह बनना चाहते हैं। उन्होंने जो कुछ किया वह इसलिए किया क्योंकि वे यहोवा से और लोगों से प्यार करते थे।—मत्ती 22:37-40.
a मंदिर में सुबह और शाम के वक्त बलिदान चढ़ाने के साथ-साथ प्रार्थना की जाती थी। शाम का बलिदान “नौवें घंटे” में यानी दोपहर के करीब तीन बजे चढ़ाया जाता था।
b ये बक्स देखें: “पतरस—वह मछुवारा जो जोशीला प्रेषित बना” और “यूहन्ना—वह चेला जिससे यीशु बहुत प्यार करता था।”
c यह बक्स देखें, “महायाजक और प्रधान याजक।”
d ईसवी सन् 33 में यरूशलेम में फरीसियों की गिनती करीब 6,000 ही थी और सदूकी तो उससे भी कम थे। शायद यह एक और वजह थी कि क्यों उन्होंने प्रेषितों से कहा कि वे यीशु के बारे में सिखाना बंद करें।