यहोवा के राज्य की निडरता से घोषणा करें!
“जो उसके पास आते थे उन सब का वह स्वागत करता, उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता।”—प्रेरितों के काम २८:३०, ३१, न्यू.व.
१, २. दैवी समर्थन का पौलुस के पास क्या प्रमाण था, और उसने कैसा उदाहरण रखा?
यहोवा हमेशा राज्य उद्घोषकों को सँभालते हैं। प्रेरित पौलुस के बारे में यह कितना सत्य था! दैवी समर्थन के साथ वह शासको के सामने गया, भीड़ के आक्रमण को सहन किया, और निडरता से यहोवा के राज्य को प्रचार करता रहा।
२ रोम में कैदी होकर भी वह “अपने पास आनेवालों का स्वागत करता और उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता था।” (प्रेरितों २८:३०, ३१, न्यू.व.) आज यहोवा के गवाहों के लिए कितना अच्छा उदाहरण! बाइबल की, प्रेरितों के काम पुस्तक के अख़िर के अध्यायों में लूका द्वारा लिखित पौलुस की सेवकाई के विषय में हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।—प्रेरितों के काम २०:१-२८:३१.
संगी विश्वासियों को प्रोत्साहन मिला
३. त्रोआस में क्या हुआ था, और हमारे समय में इसका क्या सामानान्तर है?
३ इफ़िसुस में उपद्रव समाप्त होने के बाद, पौलुस ने अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा जारी रखी। (२०:१-१२) लेकिन सूरिया कि ओर जहाज पर जाने से पहले, उसे पता चला कि यहूदियों ने उसके विरूद्ध षड़यन्त्र रची थी। क्योंकि हो सकता था कि उन्होंने उसी जहाज पर चढ़कर पौलुस को मारने की योजना बनाई हो, इसलिए वह मकिदुनिया होकर गया। त्रोआस में, उसने एक सप्ताह बिताया, जिससे संगी विश्वासियों को आगे बढ़ने के प्रोत्साहन दे सके, जैसे कि आज, यहोवा के गवाहों के बीच यात्रा-अध्यक्ष करते हैं। वहाँ से जाने से पहली रात को, पौलुस ने अपने भाषण को आधी रात तक जारी रखा। एक खिड़की पर बैठा हुआ यूतुखुस, स्पष्ट रूप से, दिन भर के मेहनत के काम से बहुत थका हुआ था। वह नींद के झोंके में, तीसरी मंज़िल पर से गिर कर मर गया, परन्तु पौलुस ने उसे पुनः जीवित कर दिया! इससे कितनी खुशी हुई होगी! फिर, ज़रा सोचिए कितनी अधिक खुशी की बात होगी जब, आनेवाले नए संसार में कई लाखों लोंगो को पुनरूत्थान होगा।—यूहन्ना ५:२८, २९.
४. सेवकाई के बारे में, पौलुस ने इफ़िसुस के प्राचीनों को क्या सिखाया था?
४ यरूशलेम जाते हुए, मीलेतुस में, पौलुस इफ़िसुस के प्राचीनों से मिला। (२०:१३-२१) उसने उन्हें याद दिलाया कि वह उन्हें, “घर घर” की सेवकाई सिखा चुका था और वह “यहूदियों और युनानियों के सामने गवाही देता रहा, कि परमेश्वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना चाहिए।” जो, अन्त में, प्राचीन बन गए थे, उन्होंने मन फिराया था और विश्वास रखते थे। प्रेरित, उन्हें इस बात का भी प्रशिक्षण दे रहा था कि वे अविश्वासियों को, घर-घर की सेवकाई में निडरता से, राज्य का प्रचार करें, जैसे कि आज यहोवा के गवाह करते हैं।
५. (अ) पवित्र आत्मा की अगुवाई के सम्बन्ध में पौलुस कैसे अनुकरणीय था? (ब) ‘झुंड की चौकसी’ करने की सलाह प्राचीनों के लिए क्यों आवश्यक थी?
५ परमेश्वर की पवित्र आत्मा के निर्देशन को स्वीकार करने में, पौलुस अनुकरणीय था। (२०:२२-३०) “आत्मा में बन्धा हुआ” या उसकी अगुवाई का अनुकरण करने के लिए बाध्य होकर, प्रेरित यरूशलेम जाता था, जब कि वहाँ उसे बँधुवाई और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था। वह जीवन की क़दर करता था, लेकिन उसके लिए सबसे आवश्यक बात थी, परमेश्वर की ओर अपनी खराई को बनाए रखना, जैसे कि आज, हमारे लिए भी होनी चाहिए। पौलुस ने प्राचीनों से आग्रह किया, कि वह ‘पूरे झुंड की चौकसी करें, जिसमें, पवित्र आत्मा ने उन्हें अध्यक्ष ठहराया है।’ उसके “जाने के बाद” (प्रत्यक्ष रूप से मृत्यु के बाद) “फाड़नेवाले भेड़िए” “झुडं को न छोड़ेगे”। ऐसे मनुष्य, प्राचीनों ही में से उठ खड़े होंगे, और कम विवेक-बुद्धि वाले शिष्य, उनकी टेढ़ी-मेढ़ी शिक्षाओं को स्वीकार कर लेंगे।—२ थिस्सलुनीकियों २:६.
६. (अ) पौलुस क्यों भरोसे के साथ, प्राचीनों को परमेश्वर को सौंप सकता था? (ब) पौलुस ने प्रेरितों के काम २०:३५ के सिद्धान्त का कैसे पालन किया?
६ धर्मत्याग से बचने के लिए, प्राचीनों को आत्मिक रूप से सतर्क रहने की ज़रूरत थी। (२०:३१-३८) प्रेरित ने उन्हें इब्रानी शास्त्र और यीशु की शिक्षायें सिखाई थी, जिनमें वह पवित्र करनेवाले शक्ति है जो उन्हें, “सब पवित्र जनों के बीच में साझी मीरास”, स्वर्गीय राज्य को पाने में सहायता कर सकती थी। अपनी और अपने सहयोगियों की जीविका का प्रबन्ध करने के लिए काम करके, पौलुस ने प्राचीनों को मेहनती होने का प्रोत्साहन दिया। (प्रेरितों के काम १८:१-३; १ थिस्सलुनीकियों २:९) यदि हम भी ऐसा ही आचरण रखें और अनन्त जीवन पाने के लिए, दूसरों की सहायता करें, तो हम यीशु के इन शब्दों को मूल्यांकन करेंगे: “लेने से अधिक, देने में खुशी होती है।” इस कथन की समझ, इंजीलों में पायी जाती है, परन्तु केवल पौलुस द्वारा इसे उद्धृत करा गया है, जिसे यह मौखिकर रूप से या प्रेरणा से प्राप्त हुआ होगा। यदि हम पौलुस की तरह आत्मत्यागी होंगे तो बहुत अधिक आनन्द उठा सकेंगे। क्योंकि उसने अपने आप को इतनी अधिक दे दिया था कि, उसके जाने से इफ़िसुस के प्राचीन बहुत अधिक उदास हो गए थे!
यहोवा की इच्छा को पूरी होने दें
७. परमेश्वर की इच्छा के आधीन होने का, पौलुस ने कैसे उदाहरण रखा?
७ जैसे-जैसे पौलुस की तीसरी मिशनरी यात्रा समाप्ति पर थी (लगबग ५६ सा.यु.) उसने परमेश्वर की इच्छा के आधीन होने का अच्छा उदाहरण रखा। (२१:१-१४) कैसरिया में वह और उसके सहयोगी, फिलिप्पुस के पास रहे, जिसकी चार कुंवारी पुत्रियां “भविष्यद्वाणी करती थी,” पवित्र आत्मा के द्वारा वे होनेवाली घटनाओं के बारे में बताती थी। वहाँ पर मसीही भविष्यद्वक्ता अगबुस ने पौलुस के पटके से अपने हाथ पाँव बान्ध लिए और आत्मा द्वारा प्रेरित होकर कहा कि पटके के स्वामी को यहूदी, यरूशलेम में बान्ध देंगे और अन्य जातियों के हाथ में सौंप देंगे। पौलुस ने कहा, “मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिए, यरूशलेम में न केवल बान्धे जाने ही के लिए बरन मरने के लिए भी तैयार हूँ।” शिष्यों ने यह कहकर कि “यहोवा की इच्छा पूरी हो” चुपचाप स्वीकार कर लिया।
८. यदि हम कभी, अच्छी सलाह को मानने में कठिनाई पाते हैं, तो हमें क्या याद रखना चाहिए?
८ पौलुस ने यरूशलेम के प्राचीनों को बताया कि उनकी सेवकाई द्वारा, परमेश्वर ने अन्य जातियों के मध्य क्या-क्या किया है। (२१:१५-२६) यदि हम कभी भी, अच्छी सलाह को स्वीकार करने में कठिनाई पायें, हम याद कर सकते हैं कि पौलुस ने कैसे उसे स्वीकारा था। यह साबित करने के लिए कि वह अन्य देशों के यहूदियों को “मूसा से फिर जाने को” नहीं सिखा रहा है, उसने प्राचीनों की यह सलाह मानी कि जाकर रस्मी शुद्धिकरण प्राप्त करें और अपना एवं चार अन्य पुरुषों का खर्च उठाएँ। यद्यपि यीशु की मृत्यु ने, नियम को मार्ग से हटा दिया था, फिर भी पौलुस ने उसके शपथ सम्बन्धी अभिलक्षणों को मानकर कोई गलत काम नहीं किया—रोमियों ७:१२-१४.
भीड़ द्वारा आक्रमण लेकिन निर्भीक बने रहना
९. भीड़ द्वारा आक्रमण के सम्बन्ध में, पौलुस और आप यहोवा के गवाहों के अनुभवों में क्या समानान्तर पाया जाता है?
९ यहोवा के गवाहों ने बहुधा भीड़ द्वारा आक्रमण का सामना करते हुए भी, परमेश्वर से खराई बनाए रखी है। (उदाहरण के लिए देखें १९७५ की इयरबुक ऑफ जेहोवाज़ विटनेसिस, पृष्ठ १८०-९०) इसी प्रकार आसिया के यहूदियों ने पौलुस के विरूद्ध भीड़ आक्रमण को प्रोत्साहन दिया। (२१:२७-४०) त्रफ़िमुस इफ़िसी को उसके साथ देखकर, उन्होंने प्रेरित पर झूठा आरोप लगाया कि वह युनानियों को मन्दिर में ले जाकर उसे अपवित्र करता है। पौलुस को मारने ही वाले थे कि, रोमी सरदार क्लौदियुस लूसियास और उसके आदमीयों ने आकर उपद्रव को शान्त किया! जैसे कि पहले बताया गया था (परन्तु यहूदियों की वजह से) लूसियास ने पौलुस को ज़ंज़ीरों से बन्धवा दिया। (प्रेरितों के काम २१:११) मन्दिर के आँगन से जुड़ें हुए सैनिक गढ़ में पौलुस को ले जाने से पहले, लूसियास को यह पता चला कि पौलुस कोई राजद्रोही नहीं, परन्तु एक यहूदी है जिसे मन्दिर क्षेत्र में जाने की अनुमति थी। बोलने की अनुमति पाकर, पौलुस ने लोगों को इब्रानी में सम्बोधित किया।
१०. पौलुस के भाषण को यरूशलेम के यहूदियों ने कैसे ग्रहण किया, और उसे कोड़े क्यों नहीं मारे गए?
१० पौलुस ने एक निर्भीक गवाही दी। (२२:१-३०) उसने अपनी पहचान एक यहूदी के रूप में दी, जो, उच्च सम्मान प्राप्त गमलीएल द्वारा सिखाया गया था। प्रेरित ने समझाया कि जब वह दमिश्क की ओर मार्ग, के अनुयायियों को उत्पीड़न देने जा रहा था, तो वहाँ महिमायुक्त यीशु मसीह को देखकर वह अन्धा हो गया था, लेकिन, हनन्याय ने उसकी आँखों को ज्योति को ठीक किया। उसके बाद प्रभु ने पौलुस से कहा था: “चला जा, क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियों के पास दूर दूर भेजूंगा।” यह शब्द, जंगल में चिंगारी के समान पड़े। भीड़ के लोग यह चिल्लाते हुए कि पौलुस का जीवित रहना उचित नहीं है, गुस्से में अपने बाहरी वस्त्र फेंककर, आकाश में धूल उड़ाने लगे। तो लूसियास ने उसे सैनिकों के गढ़ भिजवा दिया, ताकि कोड़े मारकर यह जाँच की जाए कि यहूदी किस कारण से उसके विरोध में थे। कोड़े की मार (एक ऐसे साधन से जिसमें चाबुक का फ़ीता चमड़े का होता था और उसमें गाँठे होती थी या वह धातु अथवा हड्डी के टुकड़ों से जड़ा हुआ होता था) को, पौलुस ने यह पूछकर रूकवाया: ‘क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारों?’ यह जानकर कि पौलुस रोमी नागरिक था, लूसियास डर गया और उसे महासभा के आगे ले गया, यह जानने के लिए कि, यहूदीयों द्वारा उसपर दोष क्यों लगाया जा रहा था।
११. पौलुस किस अर्थ में एक फ़रीसी था?
११ महासभा के सामने, अपनी सफ़ाई में जब पौलुस ने यह कहना शुरू किया कि उसने “परमेश्वर के लिए बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया है,” तो महायाजक हनन्याह ने उसे थप्पड़ मारने की आज्ञा दी। (२३:१-१०) पौलुस ने कहा, “हे चूना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा” कुछ लोगों ने पूछा, “क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा कहता है?” हो सकता है, नज़र कमज़ोर होने के कारण पौलुस ने हनन्याह को नहीं पहचाना होगा। लेकिन यह जानकर, कि सभा फ़रीसियों और सदूकियों से मिलकर बनी थी, पौलुस ने कहा: ‘मैं एक फ़रीसी हूँ जिसका मुकद्दमा, पुनरूत्थान की आशा के विषय में हो रहा है।’ इससे महासभा में फूट पड़ गयी, क्योंकि फ़रीसी पुनरूत्थान पर विश्वास करते थे, और सदूकी नहीं करते थे। इससे इतना झगड़ा उत्पन्न हो गया कि लूसियास को प्रेरित की रक्षा करनी पड़ी।
१२. यरूशलेम में, उनके जीवन को घात करने के षड़यन्त्र से पौलुस कैसे बच गया?
१२ उसके बाद, उनके जीवन को घात करने के षड़यन्त्र से पौलुस बच गया। (२३:११-३५) चालीस यहूदियों ने यह शपथ खायी थी, कि उसको मारे बिना, वे न खायेंगे और न पीयेंगे। पौलुस के भाँजे ने यह सूचना उसे और लूसियास को दी। यहूदिया की रोमी प्रशासीक राजधानी, कैसरिया में हाकिम अन्तोनियुस फेलिक्स के पास पौलुस को सैनिक सुरक्षा के साथ ले जाया गया। पौलुस की सुनवाई करने की प्रतिज्ञा करके फेलिक्स ने उसे, हाकिम के मुख्यालय, हिरोदेस महान के प्रितोरियुम राजभवन के पहरे में रखा।
शासको के सामने निडरता
१३. पौलुस ने फेलिक्स को किस बात की गवाही दी, और उसका क्या प्रभाव पड़ा?
१३ प्रेरित ने झूठे आरोपों के विरूद्ध, जल्द ही सफ़ाई पेश करी और फ़ेलिक्स को निडरता से प्रचार किया। (२४:१-२७) यहूदी अभियोक्ताओं के सामने, पौलुस ने दिखाया कि उसने भीड़ को नहीं उकसाया था। उसने कहा कि वह व्यवस्था और भष्यिद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी हुई बातों को मानता है और “धर्मी और अधर्मी दोनों के जी उठने” पर विश्वास करता है। पौलुस, “दया की भेंटो” (यीशु के शिष्यों के लिए अभिदान, जिनकी दरिद्रता का कारण उत्पीड़न हो) के साथ यरूशलेम गया था और रस्मी तौर से शुद्ध किया गया था। भले ही, फेलिक्स ने न्याय स्थगित कर दिया था, बाद में पौलुस ने उसे और उसकी पत्नी द्रुसिल्ला (हिरोदेस अग्रिप्पा I की पुत्री) को मसीह, धार्मिकता, आत्मसंयम और आनेवाले न्याय के बारे में प्रचार किया। ऐसी बातचीत से भयभीत होकर फेलिक्स ने पौलुस को वहाँ से भेज दिया। लेकिन बाद में, उसने बार-बार प्रेरित को बुलवाया, इस बात की व्यर्थ आशा करके कि उसे उनसे रिश्वत मिलेगी। फ़ेलिक्स जानता था कि पौलुस निर्दोष था, फिर भी उसने, यहूदियों को खुश करने के लिए उसे बन्धुआ छोड़ दिया। दो वर्ष बाद, फ़ेलिक्स की जगह पर, परकियुस फ़ेस्तुस आ गया।
१४. फ़ेस्तुस के सामने आकर, पौलुस ने किस कानूनी प्रबन्ध का लाभ उठाया, और इसमें आपको क्या समानान्तर मिलता है?
१४ पौलुस ने फ़ेस्तुस के सामने भी एक साहसी सफ़ाई पेश करी। (२५:१-१२) यदि प्रेरित ने मार डालने योग्य कोई काम किया था तो वह माफी नहीं माँगेगा, लेकिन कोई भी उसे, यहूदियो पर कृपा-दृष्टि करके, उनके हवाले नहीं कर सकता था। पौलुस ने कहा, “मैं कैसर से निवेदन करता हूँ!” वह एक रोमी नागरिक के अधिकार का लाभ उठाकर, अपना मुकद्दमा रोम में करवाना चाहता था (उस समय नीरो के सामने)। निवेदन स्वीकार कर लिया गया, पौलुस को पूर्वकथित “रोम में गवाही” देनी थी (प्रेरितों के काम २३:११) यहोवा के गवाह भी ‘सुसमाचार का बचाव और कानूनी ढंग से प्रमाणित’ करने के प्रबन्धों का लाभ उठाते हैं।—फिलिप्पियों १:७, न्यू.व.
१५. (अ) जब पौलुस राजा अग्रिप्पा और कैसर के सामने गया, तो कौनसी भविष्यद्वाणी पूरी हुई? (ब) शाऊल ने कैसे ‘पैने पर लात’ मारी थी?
१५ उत्तरी यहूदिया के राजा हिरोदेस अग्रिप्पा II और उसकी बहन बिरनीस (जिसके साथ उसके अगम्यागमनी सम्बन्ध थे) जब कैसरिया में फेस्तुस से मिलने आए तो, उन्होंने पौलुस को सुना। (२५:१३-२६:२३) अग्रिप्पा और कैसर को गवाही देकर, पौलुस ने उस भविष्यद्वाणी को पूरा किया कि वह प्रभु का नाम, राजाओं को बताएगा। (प्रेरितों के काम ९:१५) अग्रिप्पा को यह बताते हुए कि दमिश्क जाते हुए मार्ग पर क्या हुआ था, पौलुस ने यीशु की बात पर ध्यान दिलाया “पैने पर लात मारना तेरे लिए कठिन है।” जैसे कि एक ढीठ बैल पैने के चुभाए जाने का प्रतिरोध करके अपने आप को चोट पहुँचाता है, वैसे ही शाऊल ने परमेश्वर द्वारा समर्थन प्राप्त यीशु के शिष्यों के विरूद्ध लड़कर, अपने आप को चोट पहुँचाई थी।
१६. पौलुस की गवाही पर, फेस्तुस और अग्रिप्पा ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?
१६ फ़ेस्तुस और अग्रिप्पा ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? (२६:२४-३२) पुनरूत्थान को ना समझ पाने और पौलुस के दृढ़ विश्वास पर चकित होकर, फ़ेस्तुस ने कहा: “बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है!” इसी तरह से आज भी, पौलुस के समान, यहोवा के गवाही भी “सच्चाई और बुद्धि की बातें कहकर” कुछ लोगो द्वारा, पागल होने के दोषी ठहराए जाते हैं। अग्रिप्पा ने कहा, “तू थोड़े ही समय में मुझे मसीही बनने के लिए राज़ी करोगे।” और उसने सुनवाई बन्द कर दी, लेकिन यह मान लिया कि यदि वह कैसर से निवेदन न करता, तो छूट सकता था।
समुद्र में जोखिम
१७. पौलुस की रोम यात्रा के दौरान आए समुद्र के जोखिमों का आप कैसे वर्णन करेंगे?
१७ रोम की यात्रा में पौलुस ने “समुद्र में जोखिमो” का सामना किया। (२ कुरिन्थियों ११:२४-२७) जहाज पर कैसरिया से रोम जाते हुए कैदियों की ज़िम्मेदारी सैनिक अधिकारी यूलियुस पर थी। (२७:१-२६) जब उनका जहाज़ सैदा पहुँचा, तो पौलुस को विश्वासियों से मिलने की अनुमति दे दी गयी, जिससे उसे आत्मिक ताज़गी मिली। (३ यूहन्ना १४ से तुलना करें) आसिया के मूरा में, यूलियुस ने कैदियों को इतालिया जानेवाले एक अनाज के जहाज़ में चढ़ा दिया। तेज़, सम्मुख हवाओं के होते हुए भी वह क्रेते के लसया नगर के निकट शुभ लंगरबारी नामक बन्दरगाह पहुँच गए। वहाँ से फ़ीनिक्स जाते हुए, एक उत्तर पूर्वी प्रचण्ड वायु ने जहाज़ को घेर लिया। उत्तरी अफ्रीका के दूखर्ती सुरतिस के चोर बालू पर टिक जाने के भय से नाविको ने “पाल और सामान उतार दिया,” शायद पाल और मस्तूलो को। जहाज़ के ढाँचे के चारों ओर रस्सियों से बाँधा गया था ताकि जहाज़ के जोड़ ने खुल जाए। दूसरे दिन वह फिर आँधी तूफ़ान से पीड़ित रहने पर, माल को बाहर फेंक कर जहाज़ के वजन को कम किया गया। तीसरे दिन उन्होंने जहाज़ का साज़ सामान (पाल या अन्य फालतु उपकरण) फेंक दिया। जब कि आशा कम हो रही थी, पौलुस के पास एक स्वर्गदूत आया और उसने कहा कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि वह कैसर के सामने खड़ा होगा। कितनी एक राहत की बात थी जब प्रेरित ने बताया कि सभी यात्री एक टापू पर पहुँचाए जायेंगे!
१८. पौलुस और उसके साथ के समुद्री यात्रियों का अन्त में क्या हुआ?
१८ सभी समुद्री यात्री निश्चित रूप से बच गए। (२७:२७-४४) चौदहवे दिन की मध्यरात्री को, नाविको ने ये महसूस किया कि भूमि निकट है। थाह लेकर उन्होंने उसकी पुष्टि की, और चट्टानों से टकराने के डर से लंगर डाल दिए थे। पौलुस के आग्रह पर, सभी २७६ आदमियों ने खाना खाया। गेहूँ को समुद्र में फेंककर, फिर जहाज़ हल्का किया गया। सूर्योदय होने पर, नाविकों ने लंगरों को खोल दिया, पतवारों के बन्धन खोल दिए और हवा के सामने अगला पाल चढ़ा लिया। जहाज़ छिछले जल पर टिका, और पिछाड़ी टूटने लगी था। परन्तु सब के सब किनारे पर पहुँच गए।
१९. मिलिते में, पौलुस के साथ क्या हुआ, और वहाँ उसने दूसरों के लिए क्या किया?
१९ भीगे और थके हुए, पोतभंग पीड़ितों ने अपने आप को मिलिते में पाया, जहाँ के टापूनिवासियों ने उन्हें “अनोखी कृपा” दिखायी। (२८:१-१६) वहाँ जैसे ही पौलुस ने एक आग पर लकड़ियों को रखा, तो एक निष्क्रिय साँप आँच लगने से नवचेतना पाकर, उसके हाथ से लिपट गया। (मिलिते में अब कोई विषैले साँप नहीं हैं, लेकिन यह एक ‘विषैला प्राणी’ था) मिलिते के निवासियों ने यह सोचा कि पौलुस एक हत्यारा है और “प्रतिशोधी न्याय” जीवित नहीं रहने देगा, लेकिन जब वह गिरकर नहीं मरा और सूजा नहीं, तो वे कहने लगे कि वह एक देवता है। बाद में पौलुस ने बहुतों को चंगा किया, जिनमें मिलिते के प्रधान पुबलियुस का पिता भी शामिल था। तीन महीनों के बाद, पौलुस, लूका और अरिस्तरखुस एक जहाज़, जिसका चिन्ह था, “ज्यूस के पुत्र” (कास्तुर और पॉलक्स, जुड़ता देवता जो नाविकों पर अनुग्रह करनेवाले समझे जाते थे) से रवाना हुए पुतियुली में पहुँचकर, यूलियुस अपने बन्दी के साथ आगे बढ़ गया। जब, रोमी राजधानी से मसीही अप्पियुस के चौक और अप्पियुस मार्ग के किनारे तीन-सराय में मिले, तो पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया और ढाढ़स बाँधा। अन्त में, पौलुस को रोम में अकेले रहने की आज्ञा मिली, लेकिन एक सिपाही उनकी रखवाली करता था।
यहोवा के राज्य की घोषणा करते रहें!
२०. रोम के अपने निवास में, पौलुस किस काम में व्यस्त था?
२० रोम में, अपने गढ़ में रहकर पौलुस ने निडरता से यहोवा के राज्य की घोषणा की। (२८:१७-३१) उसने यहूदी प्रधानों से कहा: “क्योंकि इस्राएल की आशा के लिए, मैं इस जंज़ीर में से जकड़ा हुआ हूँ।” इस आशा में, मसीहा को स्वीकार करना भी सम्मिलित है, जिसके लिए हमें भी दुख उठाने को तैयार रहना चाहिए। (फिलिप्पियों १:२९) हालाँकि, अधिकतर यहूदियों ने विश्वास नहीं किया था, लेकिन बहुत से अन्यजातियों के लोगों और यहूदी शेष लोगों के हृदय की स्थिति अच्छी थी। (यशायाह ६:९, १०) दो वर्ष तक (लगबग ५९-६१ सा.यु.) पौलुस ने उन सब का स्वागत किया, जो उसके पास मिलने आते थे, और “बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।”
२१. अपने पार्थिव जीवन के अन्त तक, पौलुस ने कैसा उदाहरण रखा?
२१ नीरो ने स्पष्टतः पौलुस को निर्दोष ठहराया और छोड़ दिया। उसके बाद तिमुथियुस और तितुस के साथ मिलकर, प्रेरित ने अपना काम फिर शुरु किया। लेकिन रोम में (लगबग ६५ सा.यु.) फिर से उसे कैद कर लिया गया, और वह संभवतः नीरो के हाथों, शहीद हुआ। (२ तिमुथियुस ४:६-८) लेकिन अन्त तक पौलुस ने एक साहसी राज्य उद्घोषक का एक अच्छा उदाहरण रखा। इन अंतिम दिनों में, परमेश्वर के सभी समर्पित लोग, इसी आत्मा के साथ, निडरता से यहोवा के राज्य की घोषणा करें!
आप कैसे उत्तर देगें?
◻ इफ़िसुस के प्राचीनों को पौलुस ने क्या सेवकाई प्रशिक्षण दिया था?
◻ परमेश्वर की इच्छा के आधीन होने का पौलुस ने कैसे उदाहरण रखा?
◻ भीड़ की हिंसा के सम्बन्ध में, पौलुस और यहोवा के गवाहों के अनुभवों में क्या समानतायें हैं?
◻ हाकिम फेस्तुस के सामने, पौलुस ने किस कानूनी प्रबन्ध का लाभ उठाया, और इसका आज के समय में क्या समानान्तर है?
◻ रोम के निवास में पौलुस किस काम में व्यस्त था, इससे क्या उदाहरण मिलता है?