बाइबल की भविष्यवाणियाँ मसीह की तरफ इशारा करती हैं
“यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्मा है।”—प्रकाशितवाक्य 19:10.
1, 2. (क) सामान्य युग 29 से इस्राएलियों को क्या फैसला करना था? (ख) इस लेख में किस बात पर गौर किया जाएगा?
सामान्य युग 29 का साल है। इस्राएल में हर तरफ यही चर्चा हो रही है कि वादा किया हुआ मसीहा कौन हो सकता है। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की सेवा देखकर लोगों का यकीन बढ़ जाता है कि वही मसीहा होगा। (लूका 3:15) मगर यूहन्ना, मसीहा होने से इनकार कर देता है। इसके बजाय, वह यीशु नासरी की तरफ इशारा करके कहता है: “मैं ने . . . गवाही दी है, कि यही परमेश्वर का पुत्र है।” (यूहन्ना 1:20, 34) जल्द ही भीड़, यीशु की शिक्षा सुनने और उससे चंगा होने के लिए उसके पीछे हो लेती है।
2 इसके बाद के महीनों में, यहोवा अपने बेटे के बारे में ढेर सारे सबूत देता है कि वही मसीहा है। जिन लोगों ने शास्त्र का अध्ययन किया है और जो यीशु के काम देखते हैं, उनके पास उस पर विश्वास करने का ठोस आधार है। मगर परमेश्वर ने जिन्हें चुना था, उनमें से ज़्यादातर लोग उस पर विश्वास नहीं करते। बहुत कम लोग यह स्वीकार करते हैं कि यीशु, परमेश्वर का पुत्र, मसीह है। (यूहन्ना 6:60-69) अगर आप उस समय जी रहे होते तो आप क्या फैसला करते? क्या आपका दिल यीशु को मसीहा कबूल करने और उसका वफादार चेला होने के लिए आपको उकसाता? ज़रा उन सबूतों पर गौर कीजिए जो खुद यीशु ने अपनी पहचान कराने के लिए दिए। एक सबूत उसने तब दिया, जब उस पर सब्त का नियम तोड़ने का इलज़ाम लगाया गया। और बाद में अपने वफादार चेलों का विश्वास मज़बूत करने के लिए उसने कुछ और सबूत दिए।
खुद यीशु सबूत देता है
3. यीशु को किन हालात की वजह से अपनी पहचान के सबूत देने पड़े?
3 यह सा.यु. 31 में फसह का समय है। यीशु यरूशलेम में है। उसने अभी-अभी 38 साल से बीमार एक इंसान को चंगा किया है। उसने ऐसा सब्त के दिन किया, इसलिए यहूदी उसे सताने लगते हैं। इसके अलावा, यीशु ने परमेश्वर को अपना पिता कहा है, इसलिए वे उस पर परमेश्वर की निंदा करने का इलज़ाम लगाते और उसे जान से मारने की कोशिश करते हैं। (यूहन्ना 5:1-9, 16-18) यीशु अपनी सफाई में जो कहता है, उसमें तीन ज़बरदस्त दलीलें देखने को मिलती हैं। यीशु असल में कौन है, यह जानने में ये दलीलें किसी भी नेकदिल यहूदी को कायल कर देतीं।
4, 5. यूहन्ना की सेवा का मकसद क्या था, और उसने यह काम कितने असरदार ढंग से पूरा किया?
4 सबसे पहले, यीशु अपने एक गवाह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की तरफ ध्यान खींचता है, जो उससे पहले आया था। वह कहता है: “तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उस ने सच्चाई की गवाही दी है। वह तो जलता और चमकता हुआ दीपक था; और तुम्हें कुछ देर तक उस की ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा।”—यूहन्ना 5:33, 35.
5 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को “जलता और चमकता हुआ दीपक” इसलिए कहा गया, क्योंकि बेगुनाह होने पर भी हेरोदेस के हाथों कैद किए जाने से पहले, उसने मसीहा के आने का रास्ता तैयार किया था। इस तरह उसने परमेश्वर से मिला काम पूरा किया था। यूहन्ना ने कहा: “इसलिये मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि [मसीहा] इस्राएल पर प्रगट हो जाए। . . . मैं ने आत्मा को कबूतर की नाईं आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। और मैं तो उसे पहिचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है। और मैं ने देखा, और गवाही दी है, कि यही परमेश्वर का पुत्र है।”a (यूहन्ना 1:26-37) यूहन्ना ने साफ शब्दों में बताया कि यीशु परमेश्वर का पुत्र यानी वादा किया गया मसीहा है। यूहन्ना की गवाही इतनी ज़बरदस्त थी कि उसकी मौत के लगभग आठ महीने बाद, कई नेकदिल यहूदियों ने यह कबूल किया कि “जो कुछ यूहन्ना ने इस [पुरुष] के विषय में कहा था, वह सब सच था।”—यूहन्ना 10:41, 42.
6. यीशु के कामों से क्यों लोगों को कायल हो जाना चाहिए था कि वह परमेश्वर की ओर से आया था?
6 इसके बाद, यीशु एक और दलील देकर अपने मसीहा होने का सबूत देता है। वह लोगों का ध्यान अपने उन बढ़िया कामों की तरफ खींचता है, जो साबित करते हैं कि परमेश्वर उसके साथ है। वह कहता है: “मेरे पास जो गवाही है वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात् यही काम जो मैं करता हूं, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है।” (यूहन्ना 5:36) इस सबूत को यीशु के दुश्मन भी नकार नहीं सकते थे। यीशु के बढ़िया कामों में उसके कई चमत्कार भी शामिल थे। उसके कुछ दुश्मनों ने बाद में यह पूछा: “हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।” (यूहन्ना 11:47) मगर दूसरी तरफ, कुछ लोगों ने विश्वास ज़ाहिर किया और कहा: “मसीह जब आएगा, तो क्या इस से अधिक आश्चर्यकर्म दिखाएगा जो इस ने दिखाए?” (यूहन्ना 7:31) इसके अलावा, यीशु के सुननेवालों के पास यह देखने का भी बढ़िया मौका था कि उसमें वही गुण हैं जो उसके पिता में हैं।—यूहन्ना 14:9.
7. इब्रानी शास्त्र कैसे यीशु की गवाही देता है?
7 यीशु आखिर में एक ऐसा पक्का सबूत देता है जिसे कोई भी काट नहीं सकता था। वह कहता है: “पवित्रशास्त्र . . . मेरी गवाही देता है। क्योंकि यदि तुम मूसा की प्रतीति करते, तो मेरी भी प्रतीति करते, इसलिये कि उस ने मेरे विषय में लिखा है।” (यूहन्ना 5:39, 46) बेशक मूसा उन बहुत-से गवाहों में से सिर्फ एक था, जिन्होंने मसीह के आने से पहले उसके बारे में लिखा था। उनके लेखों में सैकड़ों भविष्यवाणियाँ दर्ज़ हैं और वंशावलियाँ विस्तार से लिखी हैं, और ये सभी मसीहा की पहचान के लिए मददगार थीं। (लूका 3:23-38; 24:44-46; प्रेरितों 10:43) और मूसा की व्यवस्था के बारे में क्या? प्रेरित पौलुस ने लिखा: “व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है।” (गलतियों 3:24) जी हाँ, “यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्मा [या, उसकी पूरी मंशा और मकसद] है।”—प्रकाशितवाक्य 19:10.
8. बहुत-से यहूदियों ने क्यों मसीहा पर विश्वास नहीं किया?
8 क्या ये सारे सबूत, जैसे यूहन्ना की पक्की गवाही, खुद यीशु के चमत्कार और ईश्वरीय गुण, साथ ही पवित्रशास्त्र में दर्ज़ ढेरों सबूत आपको कायल नहीं कर देते कि यीशु ही मसीहा था? जिस इंसान को परमेश्वर और उसके वचन से सच्चा प्यार होता, वह आसानी से इन सबूतों को देख सकता था और यीशु पर विश्वास कर सकता था कि वही वादा किया गया मसीहा है। मगर यहूदियों में इसी प्यार की कमी थी। यीशु ने अपने दुश्मनों से कहा: “मैं तुम्हें जानता हूं, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं।” (यूहन्ना 5:42) वे ‘अद्वैत परमेश्वर की ओर से आदर’ चाहने के बजाय “एक दूसरे से आदर चाहते” थे। यीशु अपने पिता की तरह उनकी ऐसी सोच से घृणा करता था, इसलिए ताज्जुब नहीं कि यीशु की बातें उनके कानों को अखरती थीं!—यूहन्ना 5:43, 44; प्रेरितों 12:21-23.
दर्शन में की गयी भविष्यवाणी से मज़बूत हुए
9, 10. (क) चेलों को इस वक्त पर चिन्ह दिखाना क्यों बिलकुल सही होता? (ख) यीशु ने अपने चेलों से कौन-सा अनोखा वादा किया?
9 यीशु को अपने मसीहा होने का सबूत दिए एक साल से ज़्यादा समय बीत चुका है। सामान्य युग 32 का फसह आया और चला गया। यीशु पर विश्वास करनेवाले बहुत-से चेलों ने अब उसके पीछे चलना छोड़ दिया है। इसकी वजह शायद उन पर ढाए गए ज़ुल्म, धन-दौलत का लोभ या जीवन की चिंताएँ रही होंगी। दूसरे शायद यह देखकर उलझन में पड़ गए या निराश हो गए कि जब लोगों ने यीशु को राजा बनाना चाहा, तो उसने क्यों इनकार कर दिया। और जब यहूदी धर्म-गुरुओं ने यीशु को स्वर्ग से चिन्ह दिखाने को कहा, तब उसने कोई चिन्ह नहीं दिखाया जिससे उसकी महिमा होती। (मत्ती 12:38, 39) यीशु के ऐसा इनकार करने की वजह से शायद कुछ चेलों के मन में संदेह पैदा हुआ। यही नहीं, यीशु ने अपने चेलों के सामने कुछ ऐसी बातों का खुलासा करना शुरू किया था जिन्हें समझना उन्हें बड़ा मुश्किल लग रहा था। जैसे उसने कहा: “मुझे अवश्य है कि यरूशलेम को जाऊं, और पुरनियों और महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुख उठाऊं; और मार डाला जाऊं।”—मत्ती 16:21-23.
10 बस अगले 9-10 महीनों में वह घड़ी आती जब ‘यीशु जगत छोड़कर पिता के पास जाता।’ (यूहन्ना 13:1) इसलिए यीशु को अपने वफादार चेलों के बारे में बहुत चिंता होने लगी। वह उनमें से कुछ चेलों को ठीक वही चीज़ दिखाने का वादा करता है, जो उसने अविश्वासी यहूदियों को दिखाने से इनकार किया था। जी हाँ, स्वर्ग से एक चिन्ह। यीशु कहता है: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो यहां खड़े हैं, उन में से कितने ऐसे हैं; कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।” (मत्ती 16:28) बेशक यीशु यह नहीं कह रहा था कि उसके कुछ चेले तब तक ज़िंदा रहेंगे, जब तक कि मसीहाई राज्य सन् 1914 में स्थापित नहीं हो जाता। इसके बजाय, यीशु अपने तीन करीबी चेलों को एक दर्शन में अपनी उस शानदार महिमा की झलक दिखाना चाहता था, जो उसे राजा बनने पर मिलती। यही दर्शन रूपांतरण कहलाता है।
11. रूपांतरण के दर्शन का वर्णन कीजिए।
11 यीशु छः दिन के बाद पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर ले जाता है। शायद यह हर्मोन पर्वत था। वहाँ ‘उनके सामने यीशु का रूपान्तर होता है और उसका मुंह सूर्य की नाईं चमकता और उसका वस्त्र ज्योति की नाईं उजला हो जाता है।’ यीशु के साथ मूसा और एलिय्याह नबी बातें करते दिखायी देते हैं। यह सनसनीखेज़ घटना ज़रूर रात में घटी होगी, जिससे उसकी महिमा का तेज और भी साफ दिखायी दिया होगा। दरअसल, यह दर्शन इतना असल लग रहा था कि पतरस ने वहाँ तीन मण्डप बनाना चाहा—एक यीशु के लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए। पतरस अभी बोल ही रहा है कि एक उजला बादल उन्हें छा लेता है और उसमें से यह आवाज़ आती है: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं: इस की सुनो।”—मत्ती 17:1-6.
12, 13. रूपांतरण के दर्शन का यीशु के चेलों पर कैसा असर हुआ, और यह क्यों इतना असरदार था?
12 यह सच है कि दर्शन देखने के कुछ ही समय पहले पतरस ने अपना यह विश्वास ज़ाहिर किया था कि यीशु “जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” (मत्ती 16:16) मगर ज़रा सोचिए, अब वह खुद परमेश्वर की आवाज़ सुनता है जो पुख्ता करता है कि यीशु ही उसका अभिषिक्त बेटा है और वह क्या काम करेगा! यकीनन रूपांतरण के दर्शन से पतरस, याकूब और यूहन्ना का विश्वास और भी मज़बूत हुआ होगा! इस तरह अब वे आनेवाले दिनों का सामना करने और भविष्य में बननेवाली कलीसिया में अहम ज़िम्मेदारी निभाने के लिए अच्छी तरह तैयार किए गए।
13 रूपांतरण ने चेलों के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ी। तभी तो इसे देखने के 30 साल बाद पतरस ने लिखा: “[यीशु] ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं। और जब हम उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।” (2 पतरस 1:17, 18) रूपांतरण का यूहन्ना पर भी गहरा असर हुआ। इसलिए इस घटना के 60 साल बाद, ज़ाहिर है उसी का ज़िक्र करते हुए उसने लिखा: “हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।” (यूहन्ना 1:14) लेकिन यीशु के चेलों को सिर्फ रूपांतरण का ही दर्शन नहीं दिया गया।
परमेश्वर के वफादार सेवकों की समझ और बढ़ायी गयी
14, 15. प्रेरित यूहन्ना को किस अर्थ में यीशु के आने तक ठहरे रहना था?
14 यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद, गलील सागर के पास अपने चेलों के सामने प्रकट होता है। वहाँ वह पतरस से कहता है: “यदि मैं चाहूं कि [यूहन्ना] मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या?” (यूहन्ना 21:1, 20-22, 24) क्या इन शब्दों का यह मतलब था कि यूहन्ना बाकी प्रेरितों से ज़्यादा साल जीता? हो सकता है, क्योंकि यूहन्ना ने इसके बाद करीब और 70 साल तक वफादारी से यहोवा की सेवा की। मगर यीशु के कहने का एक खास मतलब था।
15 “मेरे आने तक,” ये शब्द हमें याद दिलाते हैं कि पहले भी यीशु ने ‘मनुष्य के पुत्र के अपने राज्य में आने’ की बात की थी। (मत्ती 16:28) यूहन्ना, यीशु के आने तक इस अर्थ में ठहरा रहता कि वह एक दर्शन के ज़रिए की गयी भविष्यवाणी में यीशु को राजा की हैसियत से आते देखता। जब ढलती उम्र में यूहन्ना को देशनिकाला देकर पतमुस द्वीप भेजा गया, तब उसने यह अद्भुत दर्शन देखा। उसमें “प्रभु के दिन” में होनेवाली सारी घटनाओं के हैरतअंगेज़ चिन्ह दिखाए गए थे। इस शानदार दर्शन का यूहन्ना पर ऐसा असर हुआ कि जब दर्शन में यीशु ने कहा: “हां, मैं शीघ्र आनेवाला हूं”, तो यूहन्ना बोल उठा: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।”—प्रकाशितवाक्य 1:1, 10; 22:20.
16. यह क्यों ज़रूरी है कि हम अपना विश्वास मज़बूत करते रहें?
16 पहली सदी में, जो नेकदिल लोग थे उन्होंने यीशु को मसीहा कबूल किया और उस पर विश्वास किया। लेकिन उनके आस-पास के ज़्यादातर लोगों ने विश्वास नहीं किया। चेलों को आगे जो काम करना था और जिन परीक्षाओं का सामना करना था, उसे मद्देनज़र रखते हुए उनका विश्वास मज़बूत करना बेहद ज़रूरी था। इसलिए यीशु ने अपने मसीहा होने के ढेरों सबूत दिए और भविष्यवाणी के शानदार दर्शनों के ज़रिए अपने वफादार चेलों का हौसला बढ़ाया। आज “प्रभु के दिन” को शुरू हुए कई साल बीत चुके हैं। मसीह जल्द ही शैतान की सारी दुष्ट व्यवस्था का नाश कर देगा और परमेश्वर के लोगों को छुटकारा दिलाएगा। ऐसे में ज़रूरी है कि हम भी अपना विश्वास मज़बूत करें और यहोवा के सारे इंतज़ामों का फायदा उठाएँ जो हमारी आध्यात्मिक भलाई के लिए हैं।
अंधकार और संकट के दौरान बचाए गए
17, 18. पहली सदी में, यीशु के चेलों में और परमेश्वर के मकसद का विरोध करनेवालों में क्या फर्क साफ दिखायी दिया और अंत में इन दोनों समूहों का क्या हुआ?
17 यीशु की मौत के बाद, चेलों ने उसकी आज्ञा के मुताबिक बड़ी हिम्मत के साथ “यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक” गवाही देने का काम किया। (प्रेरितों 1:8) हालाँकि उन पर एक-के-बाद-एक कई अत्याचार किए गए, मगर यहोवा ने उनकी नयी मसीही कलीसिया पर आशीषें बरसायीं। उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की रोशनी मिली और कई नए चेले कलीसिया के सदस्य बने।—प्रेरितों 2:47; 4:1-31; 8:1-8.
18 दूसरी तरफ, सुसमाचार का विरोध करनेवालों का भविष्य गहरे अँधकार की तरफ बढ़ता गया। नीतिवचन 4:19 कहता है: “दुष्टों का मार्ग घोर अन्धकारमय है; वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।” उनकी “अन्धकारमय” हालत सा.यु. 66 में और भी बदतर हो गयी, जब रोमी सेना ने यरूशलेम को घेर लिया। इसके बाद, बिना किसी खास वजह के रोमी सेना शहर छोड़कर चली गयी, मगर फिर वह जल्द ही सा.यु. 70 में लौट आयी। और इस बार उसने शहर को पूरी तरह खाक में मिला दिया। यहूदी इतिहासकार, जोसीफस के मुताबिक उस समय 10 लाख से भी ज़्यादा यहूदी मार डाले गए। मगर वफादार मसीहियों की जान बच गयी। क्यों? क्योंकि जब पहली दफा घेराबंदी हटायी गयी तब उन्होंने वहाँ से भाग निकलने की यीशु की आज्ञा पर फौरन अमल किया।—लूका 21:20-22.
19, 20. (क) मौजूदा व्यवस्था का अंत करीब आते देखकर परमेश्वर के लोगों को घबराने की ज़रूरत क्यों नहीं है? (ख) सन् 1914 से पहले के दशकों में, यहोवा ने अपने लोगों को कौन-सी बढ़िया समझ दी थी?
19 आज हम उन्हीं के जैसे हालात में जी रहे हैं। आनेवाले बड़े क्लेश का मतलब है, शैतान की सारी दुष्ट व्यवस्था का अंत। लेकिन परमेश्वर के लोगों को घबराने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि यीशु ने वादा किया है: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती 28:20) शुरू के चेलों का विश्वास मज़बूत करने और भविष्य का सामना करने में उनकी मदद करने के लिए, यीशु ने उन्हें एक झलक दिखायी कि वह स्वर्ग में मसीहाई राजा के रूप में कैसी महिमा पाएगा। आज के बारे में क्या? वह दर्शन सन् 1914 में हकीकत बन गया। इससे परमेश्वर के लोगों का विश्वास कितना मज़बूत हुआ है! दर्शन का पूरा होना इस बात का सबूत है कि हमारा भविष्य उज्ज्वल है। साथ ही, यहोवा के सेवकों को मसीहाई राज्य की ज़्यादा समझ लगातार दी जा रही है। जहाँ एक तरफ यह दुनिया दिन-ब-दिन घुप अँधेरे में गुम होती जा रही है, वहीं “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।”—नीतिवचन 4:18.
20 सन् 1914 से पहले, अभिषिक्त मसीहियों के एक छोटे-से समूह को प्रभु के आगमन की अहम सच्चाइयों के बारे में समझ मिलने लगी थी। मसलन, उन्होंने समझा कि प्रभु का आना अदृश्य होगा, जैसा कि उन दो स्वर्गदूतों की बातों से ज़ाहिर होता है जो सा.यु. 33 में, यीशु के स्वर्ग लौटते वक्त चेलों के सामने प्रकट हुए थे। जब चेलों ने यीशु को बादलों में ओझल होते हुए देखा, तब उन स्वर्गदूतों ने उनसे कहा: “यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।”—प्रेरितों 1:9-11.
21. अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?
21 यीशु को सिर्फ उसके वफादार चेलों ने स्वर्ग लौटते हुए देखा था। उसका रूपांतरण भी सब लोगों के सामने नहीं हुआ; दरअसल दुनियावालों को इसकी खबर तक नहीं हुई। उसी तरह, जब मसीह को राज्य का अधिकार मिलता, तब भी लोगों को इसकी खबर नहीं होती। (यूहन्ना 14:19) सिर्फ उसके वफादार अभिषिक्त चेले, राजा की हैसियत से उसकी उपस्थिति को समझ पाते। अगले लेख में हम देखेंगे कि इस समझ का उन पर किस तरह गहरा असर होता और वे ऐसे लाखों लोगों को इकट्ठा करते, जो आगे चलकर इस धरती पर यीशु की प्रजा बनते।—प्रकाशितवाक्य 7:9, 14.
[फुटनोट]
a ज़ाहिर है कि यीशु के बपतिस्मे पर सिर्फ यूहन्ना ने परमेश्वर की आवाज़ सुनी थी। यीशु जिन यहूदियों से बात कर रहा था, उन्होंने “न कभी [परमेश्वर का] शब्द सुना, और न उसका रूप देखा” था।—यूहन्ना 5:37.
क्या आपको याद है?
• जब यीशु पर सब्त का नियम तोड़ने और परमेश्वर की निंदा करने का इलज़ाम लगाया गया, तब उसने अपने मसीहा होने के कौन-से सबूत दिए?
• यीशु के शुरू के चेलों को रूपांतरण से कैसे फायदा हुआ?
• यीशु की इस बात का क्या मतलब था कि यूहन्ना उसके आने तक ठहरा रहेगा?
• सन् 1914 में कौन-सा दर्शन हकीकत बन गया?
[पेज 10 पर तसवीरें]
यीशु ने अपने मसीहा होने के सबूत दिए
[पेज 12 पर तसवीर]
रूपांतरण का दर्शन विश्वास मज़बूत करनेवाला ठहरा
[पेज 13 पर तसवीर]
यूहन्ना को यीशु के “आने” तक ठहरे रहना था