सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है
“जिस के कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।”—प्रकाशितवाक्य ३:२२.
१० से २१ तक के पृष्ठों पर की जानकारी, “नियत समय निकट आ गया है,” इस शीर्षक की संगोष्ठी के आरंभिक वार्ताओं के तौर से, १९८८ के दौरान यहोवा के गवाहों के दैवी न्याय ज़िला सम्मेलनों में प्रस्तुत की गयी थी।
१. इस दुःखी युग में प्रकाशितवाक्य के कौनसे शब्द सुसमाचार हैं, और वहाँ ज़िक्र की गयी “भविष्यद्वाणी” और “नियत समय” क्या है?
कुछ वर्ष पहले संयुक्त राज्य अमरीका के एक समाजविज्ञानी ने कहा कि उस देश के लोगों को बहुत ज़्यादा स्वतंत्रता थी लेकिन पर्याप्त खुशी न थी। उस ने आगे कहा कि लोग “पाते हैं कि खुशी उनके हाथ ही न आयी है। जिस परादीस का वादा उन्होंने खुद को किया, वह कोरा साबित हुआ है।” इसका विचार करके, प्रकाशितवाक्य १:३ में प्रेरित यूहन्ना के शब्द तो सचमुच सुसमाचार है, इसलिए कि वह हमें बताता है कि हम किस तरह ख़ुशी पा सकते हैं। यूहन्ना ने लिखा: “धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं और इस में लिखी हुई बातों को मानते हैं; क्योंकि नियत समय निकट आया है।” वह जिस “भविष्यद्वाणी” का उल्लेख कर रहा है, यह वही है जो प्रकाशितवाक्य की किताब में लेखबद्ध है। और “नियत समय” वह समय है जब यह प्रकाशितवाक्य भविष्यद्वाणी परिपूर्ण होगी। यूहन्ना के शब्द आज हमारे लिए गहरा अभिप्राय रखते हैं।
२. जैसे पहली सदी ख़त्म होने को आयी, यूहन्ना शायद क्या विचार कर रहा था?
२ उसके प्रकाशितवाक्य की किताब लिखने के ६० से भी ज़्यादा वर्ष पहले, यूहन्ना पिन्तकुस्त के अवसर पर उपस्थित था जब अभिषिक्त मसीही कलीसिया स्थापित हुई। अब, सामान्य युग ९६ में, वह कलीसिया अपने प्रारंभिक १२० सदस्यों से बढ़कर एक बड़ा, अंतर्राष्ट्रीय संघटन बन गयी थी। लेकिन कुछ समस्याएँ उत्पन्न हुईं थीं। जिस तरह यीशु, पौलुस, और पतरस ने चिताया था, धर्मत्याग और संप्रदाय प्रकट होना शुरु हो रहे थे, और यूहन्ना ने विचार किया होगा कि भविष्य में क्या होनेवाला था।—मत्ती १३:२४-३०, ३६-४३; प्रेरितों के काम २०:२९, ३०; २ पतरस २:१-३.
३. प्रकाशितवाक्य में यूहन्ना के देखे और लेखबद्ध किए गए दर्शन किस बात की गारंटी थे?
३ फिर, उसकी ख़ुशी का अंदाज़ा लगाइए, जब उसे “यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य” मिला, “जो उसे परमेश्वर ने इसलिए दिया, कि अपने दासों को वे बातें, जिन का शीघ्र होना अवश्य है, दिखाए।” (प्रकाशितवाक्य १:१) भव्य दर्शनों की एक श्रृंखला में, यूहन्ना ने देखा कि यहोवा के उद्देश्य ज़रूर परिपूर्ण किए जाते और विश्वसनीय मसीहियों की सहिष्णुता को विस्मयकारी रीति से प्रतिफलित की जाती। उसने यीशु से सात कलीसियाओं के लिए संदेश भी प्राप्त किए; ये, असल में, यीशु के अपनी राज्य महिमा में आने से पहले, मसीहियों को उसका आख़री सीधा उपदेश था।
सात कलीसियाएँ
४. (अ) विश्वसनीय मसीही कलीसिया की क्या ज़िम्मेदारी है? (ब) यह वास्तविकता कि अभिषिक्त प्राचीन मसीह के दहिने हाथ में सात तारों के तौर से दिखायी देते हैं, उस से क्या संकेत होता है?
४ अभिषिक्त मसीहियों के ये सात कलीसियाएँ, सात दीवटों के तौर से चित्रित किए गए थे, और उनके भीतर के अभिषिक्त प्राचीन, मसीह के दहिने हाथ में के सात तारों के तौर से चित्रित किए गए थे। (प्रकाशितवाक्य १:१२, १६) इस सजीव बिंब से, यूहन्ना ने देखा कि विश्वसनीय मसीही कलीसियाओं को एक अँधेरी दुनिया में जलते हुए दीवटों की तरह, पथ-प्रदर्शक होना चाहिए। (मत्ती ५:१४-१६) यीशु का प्राचीनों को अपने दहिने हाथ में लेने से दिखायी दिया कि वह प्राचीनों को मार्गदर्शन देकर और नियंत्रित करके, उनकी अगुवाई करता है।
५. सात कलीसियाओं को दिए संदेश यूहन्ना के समय में किस को निर्दिष्ट थे?
५ यीशु यूहन्ना से कहता है: “जो कुछ तू देखता है, उसे पुस्तक में लिखकर सातों कलीसियाओं के पास भेज दे, अर्थात् इफिसुस और स्मुरना, और पिरगमुन, और थूआतीरा, और सरदीस, और फिलदिलफिया, और लौदीकिया में।” (प्रकाशितवाक्य १:११) यूहन्ना के समय में ये कलीसियाएँ सचमुच अस्तित्व में थीं, और हमें यक़ीन हो सकता है कि जब यूहन्ना ने प्रकाशितवाक्य लिखना ख़त्म किया, तब प्रत्येक कलीसिया को एक प्रति मिली होगी। लेकिन प्रकाशितवाक्य के बारे में हेस्टिंगस् का डिक्षनेरी ऑफ द बाइबल (बाइबल का शब्दकोश) क्या कहता है, इस पर ग़ौर करें: “न[ए] क़[रार] मे शायद ही कोई दूसरा पुस्तक होगा जो दूसरे शत[ताब्दी] में इतने उत्तम रीति से अनुप्रमाणित है।” इसका मतलब है कि न केवल सात कलीसियाओं के मसीहियों ने प्रकाशितवाक्य की किताब के बारे में जाना और पढ़ा, लेकिन कई दूसरों ने भी ऐसा किया, जो इस भविष्यद्वाणी के वचनों का अध्ययन करना चाहते थे। सचमुच, यीशु का उपदेश सभी अभिषिक्त मसीहियों के लिए था।
६, ७. (अ) प्रकाशितवाक्य के शब्द मूलतः कब लागू होते हैं, और हम यह किस तरह जानते हैं? (ब) कौन आज सात तारों और सात कलीसियाओं से चित्रित हैं?
६ लेकिन सात कलीसियाओं को दिए ये संदेशों को एक अधिक विस्तृत प्रयुक्ति है। प्रकाशितवाक्य १:१० में, यूहन्ना कहता है: “मैं प्रभु के दिन में आत्मा की प्रेरणा में आ गया।” यह आयत प्रकाशितवाक्य की समझ पर से ताला खुलवाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कूँजी है। यह संकेत करता है कि मूलतः यह “प्रभु के दिन” से संबद्ध है, जो कि १९१४ में यीशु के राजा होने के समय से शुरु हुआ। यह समझ सात कलीसियाओं को यीशु के संदेशों से सत्यापित होता है। उस में हम ऐसी अभिव्यक्तियाँ पाते हैं जैसे कि पिरगमुन को निर्दिष्ट ये शब्द: “मैं तेरे पास शीघ्र ही” आ रहा हूँ। (प्रकाशितवाक्य २:१६; ३:३, ११) सा. यु. ९६ के बाद, जब तक कि वह १९१४ में राजा के हैसियत से सिंहासनारूढ़ न हुआ, तब तक यीशु किसी अर्थपूर्ण रीति से नहीं आया। (प्रेरितों के काम १:९-११) फिर, मलाकी ३:१ की परिपूर्णता में, वह १९१८ में फिर से ‘आ गया,’ जब वह पहले परमेश्वर के परिवार का न्याय करने यहोवा के मंदिर में आ गया। (१ पतरस ४:१७) अब नज़दीक के भविष्य में, वह एक बार फिर ‘आएगा,’ जब वह “जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते, उन से पलटा लेगा।”—२ थिस्सलुनीकियों १:७, ८; मत्ती २४:४२-४४.
७ इस को मन में रखते हुए, हम समझते हैं कि सात कलीसियाएँ १९१४ के बाद अभिषिक्त मसीहियों के सभी कलीसियाओं को चित्रित करते हैं, और सात तारें उन कलीसियाओं में सभी अभिषिक्त प्राचीनों को चित्रित करते हैं। इसके अलावा, जो प्राचीन “अन्य भेड़” वर्ग के हैं, वे भी, विस्तरण से, यीशु के नियंत्रण के दहिने हाथ में हैं। (यूहन्ना १०:१६) और सात कलीसियाओं को दिया उपदेश सिद्धांततः आज दुनिया भर में परमेश्वर के लोगों की सभी कलीसियाओं पर लागू होता है, जिन में पार्थीव आशा रखने वाले मसीहियों से बनाए गए कलीसियाएँ भी सम्मिलित हैं।
८. जब यीशु १९१८ में तथाकथित मसीहियों का निरीक्षण करने के लिए आया, तब उसने कौनसी स्थिति पायी?
८ १९१८ में जब यीशु स्वकथित मसीहियों का निरीक्षण करने आया, उसने पृथ्वी पर ऐसे अभिष्क्ति मसीही पाए जो भविष्यद्वाणी के वचनों का पालन करने की खूब कोशिश कर रहे थे। १८७० के दशक से वे लोगों को सन् १९१४ के महत्त्व के बारे में चिता रहे थे। पहले विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने मसीहीजगत् के हाथों बहुत कष्ट उठाए थे, और १९१८ में, जब वॉच टावर सोसाइटी के प्रमुख अधिकारी झूठे इल्ज़ाम लगाए जाने पर ग़िरफ़्तार हुए, उनका काम लगभग बंद ही हो गया। लेकिन उस वक्त के उनके अनुभव एक चमत्कारिक हद तक प्रकाशितवाक्य की भविष्यद्वाणियों से मेल खाते हैं। और सात कलीसियाओं को दिए यीशु के शब्दों का अनुपालन करने के उनके दृढ़ निश्चय से, इस अँधकारयुक्त संसार में एकमात्र पथ-प्रदर्शन करनेवाले मसीही होने के तौर से उनकी पहचान बिना कोई संदेह से हुई। आज, यह अवशेष एक यूहन्ना वर्ग बनता है जो प्रकाशितवाक्य के अनेक हिस्सों की परिपूर्णताएँ देखने और उन में भाग लेने के लिए अब भी जिंदा है।
उपदेश और प्रशंसा
९, १०. यीशु के कौनसे शब्दों की परिपूर्णता से आधुनिक मसीहियों को अत्यंत आनन्द मिला है? व्याख्या करें।
९ प्रकाशितवाक्य ३:८ में, यीशु ने फिलदिलफिया की कलीसिया से कहा: “मैं तेरे कामों को जानता हूँ—देख! मैं ने तेरे सामने एक द्वार खोल रखा है, जिसे कोई बन्द नहीं कर सकता—कि तेरी सामर्थ थोड़ी सी है, और तू ने मेरे वचन का पालन किया है और मेरे नाम का इन्कार नहीं किया।” प्रकट रूप से, फिलदिलफिया के मसीही क्रियाशील रहे थे, और अब उनके सामने मौका का एक दरवाज़ा खुल रहा था।
१० इस संदेश की आधुनिक वास्तविकता से परमेश्वर के लोग बहुत आनन्दित हुए। १९१८ में हुए उनके परीक्षाकारी अनुभवों के बाद, वे आत्मिक रूप से पुनःस्थापित किए गए, और १९१९ में यीशु ने उनके लिए मौका का एक दरवाज़ा खोल दिया। वे उस द्वार में से होकर गए जब उन्होंने सभी जातियों को राज्य का सुसमाचार प्रचार करने का समादेश स्वीकार किया। उन पर यहोवा की आत्मा होने से, इस काम में किसी बात से रुकावट न आ सकी, और इन विश्वसनीय मसीहियों को यीशु की उपस्थिति के चिह्न का एक प्रधान अंग परिपूर्ण करने का बड़ा विशेषाधिकार मिला। (मत्ती २४:३, १४) उनके विश्वसनीय प्रचार कार्यकलाप के फलस्वरूप, १,४४,००० के बचे हुए लोग बुलाए जाकर अभिषिक्त किए गए, और “बड़ी भीड़” बड़ी संख्या में एकत्रित हुई। (प्रकाशितवाक्य ७:१-३, ९) इस से परमेश्वर के लोगों को कितना आनन्द मिला है!
११. यूहन्ना के समय में संप्रदायवादियों ने यहोवा के संघटन को भ्रष्ट करने की कोशिश किस तरह की, और हमारे अपने समय में उन्होंने वैसा ही किस तरह किया है?
११ क्या उन्हें इस आनन्द से कोई वंचित कर सकता है? हाँ। उदाहरणार्थ, सहिष्णुता के एक उत्तम प्रमाण के बावजूद, पिरगमुन के प्राचीन नीकुलइयो के पंथ की शिक्षा कलीसिया के बाहर रखने में असमर्थ रहे। (प्रकाशितवाक्य २:१५) सांप्रदायिकता बढ़ रही थी। उसी तरह, इन अंतिम दिनों के पूरे समय में, कुछ व्यक्तियों ने धर्मत्याग किया है और यहोवा के संघटन को भ्रष्ट करने की कोशिश की है। आम तौर से प्राचीनों ने उनका प्रतिरोध किया है, पर दुःख की बात है कि, कुछेक गुमराह कर दिए गए हैं। ऐसा हो कि हम धर्मत्यागियों को कभी हम से अपना आनन्द छीनने न दें!
१२. (अ) एक बिलाम और एक इजेबेल-सा प्रभाव क्या है? (ब) आधुनिक समय में क्या शैतान ने मसीही कलीसिया में एक बिलाम या एक इजेबेल-सा प्रभाव प्रस्तुत करने की कोशिश की है?
१२ यीशु ने पिरगमुन की कलीसिया को उन लोगों के विरुद्ध चिताया जो “बिलाम की शिक्षा को मानते” थे। (प्रकाशितवाक्य २:१४) यह कौनसी शिक्षा थी? पिरगमुन में कोई व्यक्ति वहाँ के मसीहियों को उसी तरह भ्रष्ट कर रहा था जिस तरह बिलाम ने विराने में इस्राएलियों को भ्रष्ट किया: उन्हें प्रोत्साहित करने के ज़रिए कि वे “मूरतों के बलिदान खाएँ और व्यभिचार करें।” (गिनती २५:१-५; ३१:८) यीशु ने थूआतीरा की कलीसिया को “उस स्त्री इजेबेल” के ख़िलाफ़ चिताया। यह स्त्री भी मसीहियों को “व्यभिचार करने, और मूरतों के आगे के बलिदान खाने को” सिखा रही थी। (प्रकाशितवाक्य २:२०) क्या शैतान ने आज मसीही कलीसिया में एक बिलाम या इजेबेल-सा प्रभाव प्रस्तुत करने की कोशिश की है? उसने निश्चय ही ऐसा किया है, इस हद तक कि लगभग ४०,००० लोग प्रति वर्ष जाति बहिष्कृत किए जाते हैं, अधिकांशतः अनैतिकता के कारण। कैसी त्रासदी! बिलाम-से पुरुष और इजेबेल-सी स्त्रियाँ, दोनों ने प्राचीनों का विरोध करके कलीसिया को भ्रष्ट करने की कोशिश की है। ऐसे अपवित्र प्रभावों को हम अपनी पूरी ताक़त से प्रतिरोध करें!—१ कुरिन्थियों ६:१८; १ यूहन्ना ५:२१.
१३. (अ) गुनगुनेपन को देखकर यीशु की कोफ़्त का वर्णन करें। (ब) लौदीकिया के भाई गुनगुने क्यों थे, और हम आज इस कमज़ोरी से किस तरह दूर रह सकते हैं?
१३ प्रकाशितवाक्य ३:१५, १६ में, यीशु ने लौदीकिया की कलीसियों से कहा: “मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। सो इसलिए कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह में से उगलने पर हूँ।” गुनगुनेपन पर यीशु को महसूस होनेवाली कोफ़्त का यह क्या ही सजीव वर्णन! वह आगे कहता है: “तू जो कहता है, कि ‘मैं धनी हूँ, और धनवान हो गया हूँ, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं।’” जी हाँ, भौतिकवाद ने लौदीकिया के मसीहियों को बहकाया था। वे आत्म-संतुष्ट और उत्साहविहीन थे। लेकिन यीशु ने उन से कहा कि: “तू नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है।” (प्रकाशितवाक्य ३:१७) क्या हम यीशु की नज़रों में “अभागा और तुच्छ और अन्धा, और नंगा” होना चाहते हैं? बिल्कुल नहीं! तो हम हर हालत में भौतिकवादी या गुनगुना होने से लड़ें।—१ तीमुथियुस ६:९-१२.
अंत तक सहन करें
१४. (अ)स्मुरना की कलीसिया के लोग कौनसे कठिनाइयों का सामना कर रहे थे? (ब) स्मुरना के अनुभवों के कौनसे आधुनिक समानांतर हैं?
१४ एक ऐसी कलीसिया जो गुनगुना न थी वह स्मुरना की कलीसिया थी। इन मसीहियों से यीशु ने कहा: “मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूँ—परंतु तू धनी है—और जो लोग अपने आप को यहूदी कहते हैं और हैं नहीं, पर शैतान की सभा हैं, उन की निन्दा को भी जानता हूँ। जो दुःख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर, क्योंकि देखो! इब्लीस तुम में से कितनों को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ, और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा।” (प्रकाशितवाक्य २:८-१०) यह आज कितनी अच्छी तरह मसीहियों के अनुभव के बराबर है! आधुनिक मसीही, अभिषिक्त और अन्य भेड़, दोनों ने “शैतान की” आज की “सभा,” मसीहीजगत्, से प्रचंड विरोध भी सहन किया है। प्रथम विश्व युद्ध से अब तक, हज़ारों पुरुष, स्त्री, और बच्चे मारे गए, क़ैद किए गए, उत्पीड़ित किए गए, उनका बलात्कार किया गया, या अपनी ख़राई के ख़ातिर विश्वसनीयता में समझौता करने से इन्कार करने की वजह से जान से मार दिए गए हैं।
१५, १६. उत्पीड़न झेलने के बावजूद अभिषिक्त मसीही किस तरह आनन्दित हो सकते हैं? (ब) कौनसे खास प्रतिफल हैं जो अन्य भेड़ों को मिलनेवाले हैं, जिस से उन्हें भी आनन्दित होने की मदद होती हैं?
१५ क्या ऐसे अनुभव आनन्द लाते हैं? स्वयं में नहीं। लेकिन प्रेरितों के जैसे, परीक्षाएँ सहन करनेवाले विश्वसनीय मसीह ‘[यीशु के] नाम के लिए निरादर होने के योग्य ठहराए जाने’ की वजह से एक गहरा भीतरी आनन्द महसूस करते हैं। (प्रेरितों के काम ५:४१) और उनके शत्रु उन्हें चाहे जो कुछ भी करे, वे आनन्दित रहते हैं इसलिए कि वे जानते हैं कि उनकी ख़राई प्रतिफलित होने का नियत समय नज़दीक है और प्रतिफल सचमुच ही शानदार है। स्मुरना के मसीहियों से यीशु ने कहा: “प्राण देने तक विश्वासी रह, तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूँगा।” (प्रकाशितवाक्य २:१०) और सरदीस की कलीसिया से उसने कहा: “जो जय पाए, उसे इसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहनाया जाएगा; और मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से न काटूँगा, पर उसका नाम अपने पिता और अपने स्वर्गदूतों के सामने मान लूँगा।”—प्रकाशितवाक्य ३:५.
१६ यह सच है कि ये प्रतिज्ञाएँ विशेष रूप से अभिषिक्त मसीहियों पर लागू होती हैं, उन्हें उस अमर स्वर्गीय जीवन के इनाम का स्मरण दिलाकर जो उन को मिलनेवाली है। लेकिन अन्य भेड़ों की शक्ति भी इन शब्दों से बढ़ती है। यहोवा ने उनके लिए भी इनाम तैयार किया है, इस शर्त से कि वे उत्साहपूर्ण होकर सहन करेंगे। उन्हें मसीह के नियंत्रण में राज्य के अधीनस्थ एक प्रमोदवनीय पृथ्वी पर अनन्त जीवन उत्तराधिकार में मिलने की शानदार प्रत्याशा है। वहाँ वे ऐसा प्रमोदवन पाएँगे जो इस दुनिया के लोग पाने में असफल होंगे।
१७. यीशु ने हरएक संदेश किन शब्दों से ख़त्म किया, और आज हमारे लिए उसके शब्द क्या अर्थ रखते हैं?
१७ यीशु ने कलीसियाओं को दिए अपने हर एक संदेश को इन शब्दों से ख़त्म किया: “जिस के कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।” (प्रकाशितवाक्य ३:२२) हाँ, हमें प्रधान चरवाहे के शब्दों को सुनना और पालन करना चाहिए। हमें अपवित्रता और धर्मत्याग से दूर रहना चाहिए और हमें अपना उत्साह बनाए रखना चाहिए। हमारा प्रतिफल पाना उसी पर निर्भर है। और जब हम प्रकाशितवाक्य में की अधिक जानकारी पर ग़ौर करते हैं, वैसा ही करने के लिए हम और भी ज़्यादा दृढ़ निश्चित होते हैं।
लपेटवें चर्मपत्र के मुहर
१८. (अ) यीशु स्वर्गीय दरबार में क्या प्राप्त करता है? (ब) प्रकाशितवाक्य अध्याय ६ के तीन घुडसवारों की सवारियाँ आज जी रहे मानवजाति के लिए क्या अर्थ रखते हैं?
१८ उदाहरणार्थ, अध्याय ४ और ५ में, यूहन्ना यहोवा के दिव्य दरबार का एक अचम्भाकारी दर्शन देखता है। परमेश्वर का मेम्ना, यीशु मसीह, वहाँ मौजूद है, और उसे सात मुहर लगाए हुए एक लपेटवाँ चर्मपत्र दिया जाता है। अध्याय ६ में, यीशु, एक के बाद एक, सात में से छः मुहरों को खोल देता है। जब पहला मुहर को खोल दिया जाता है, एक सफ़ेद घोड़े पर एक सवार दिखायी देता है। उसे एक मुकुट दिया जाता है और “जय करता हुआ” आगे निकल जाता है “कि और भी जय प्राप्त करे।” (प्रकाशितवाक्य ६:२) यह यीशु है, नव-राज्याभिषिक्त राजा। जब उसने १९१४ में अपनी विजयी, राजसी सवारी शुरु की, प्रभु का दिन शुरु हुआ। जब अगले तीन मुहर खोले जाते हैं, तीन और घोड़े अपने अपने सवारों सहित प्रकट होते हैं। ये भयावह प्रकटीकरण हैं, जो कि मानवी युद्ध, अकाल, और मरियों तथा अन्य कारणों के ज़रिए मृत्यु चित्रित करते हैं। वे यीशु की बड़ी भविष्यद्वाणी को सत्यापित करते हैं कि शाही सत्ता में उसकी स्वर्गीय उपस्थिति, पृथ्वी पर महा-युद्ध, अकाल, मरियाँ, भूईंडोल, और दूसरे विपत्तियों से चिह्नित होती। (मत्ती २४:३, ७, ८; लूका २१:१०, ११) सचमुच, अगर मसीहियों को ऐसा समय सहन करना हो तो उन्हें सात कलीसियाओं को दिए यीशु के शब्दों की ओर ध्यान लगाना चाहिए।
१९. (अ) मसीह की उपस्थिति के दौरान, पहले ही मरे हुए विश्वसनीय अभिषिक्त मसीहियों को कौनसा प्रतिफल दिया जाता है? (ब) छठे मुहर के खोलने से कौनसे भीषण घटनाओं के प्रतीक दिए जाते है, जिस से कौनसा प्रश्न पूछा जा सकता है?
१९ पाँचवे मुहर के खोलने पर, अदृश्य आत्मिक राज्य में एक घटना प्रगट की जाती है। हरएक अभिषिक्त मसीही जो अपने विश्वास के लिए मरा है, उसे एक सफ़ेद वस्त्र दिया जाता है। प्रकट रूप से, चूँकि मसीह की उपस्थिति अब एक वास्तविकता है, स्वर्गीय पुनरुत्थान शुरु हुआ है। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१४-१७; प्रकाशितवाक्य ३:५) फिर छठा मुहर खोल दिया जाता है, और “पृथ्वी,” शैतान की पार्थीव रीति-व्यवस्था, एक बड़े भूईंडोल से हिला दी जाती है। (२ कुरिन्थियों ४:४) शैतान के नियंत्रण में मानवी शासन एक पुराने लपेटवें चर्मपत्र के जैसे, जो फेंक दिए जाने के लिए तैयार है, लपेटा जाता है। आतंकित, अख़ड मनुष्य चट्टानों को निराशोन्मत्त होकर चिल्लाते हैं कि “हम पर गिर पड़ो, और हमें उसके मुँह से जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने के प्रकोप से छिपा लो, क्योंकि उन का प्रकोप का भयानक दिन आ पहुँचा है, और अब कौन खड़ा रह सकता है?”—प्रकाशितवाक्य ६:१३, १४, १६, १७.
२०. यहोवा और मेम्ने के प्रकोप के बड़े दिन में कौन खड़ा रह सकता है?
२० और कौन है जो खड़ा रह सकता है? अजी, यीशु ने उस प्रश्न का उत्तर पहले ही दिया है। जो लोग ‘सुनते हैं कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है,” वे ही प्रकोप के उस बड़े दिन में खड़े रहेंगे। और इसे सत्यापित करने के लिए, यूहन्ना आगे जाकर १,४४,००० के आख़री लोगों पर मुहर लगा दिए जाने और “बड़े क्लेश” में से बचने के लिए सभी जातियों में से एक बड़ी भीड़ के एकत्रिकरण के बारे में पता चलता है। (प्रकाशितवाक्य ७:१-३, १४) पर अब लपेटवें चर्मपत्र के सातवें मुहर को खोल दिए जाने और यूहन्ना को, और, उस के ज़रिए, आज हमें, और भी कौतुहलजनक दर्शन दिखाने का समय आया है। अनुवर्ती लेख इन में से कुछों पर विचार-विर्मश करेगा।
क्या आप याद करते हैं?
◻ यीशु और कलीसिया के प्राचीनों के बीच का संबंध क्या है?
◻ पिरगमुन और थूआतीरा के प्राचीनों के सम्मुख कौनसी समस्याएँ थीं, और समान समस्याओं ने आज की कलीसियाओं पर किस तरह असर डाला है?
◻ लौदीकिया की कलीसिया ने कौनसी गंभीर ग़लती की, और हम आज उसी तरह की ग़लती करने से किस तरह बच सकते हैं?
◻ इस २०वीं सदी में मसीहियों को किस तरह सहन करना पड़ा है, और ऐसा करने के लिए यीशु की कौनसी प्रतिज्ञाओं ने उनकी मदद की है?
◻ जो निराशोन्माद और हताशा अन्यजातियाँ आरमागेडोन पर अनुभव करेंगी, उस से हम किस तरह दूर रह सकते हैं?
[पेज 13 पर तसवीरें]
कुछेक विश्वसनीय मसीही जिन्होंने नाट्ज़ी नज़रबंदी शिबिरों में अनेक कष्ट उठाए
[चित्र का श्रेय]
DÖW, Vienna, Austria