यहोवा के भय में चलें
“[कलीसिया] प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती थी।”—प्रेरितों के काम ९:३१.
१, २. (अ) जब मसीही कलीसिया को कुछ समय के लिए चैन मिला, तब क्या हुआ? (ब) हालाँकि यहोवा उत्पीड़न की अनुमति देते हैं, वह और क्या करते हैं?
एक शिष्य के सम्मुख परम परीक्षा थी। क्या वह परमेश्वर के प्रति ख़राई बनाए रखता? हाँ, बिल्कुल रखता! वह परमेश्वर के भय में, अपने बनानेवाले के लिए श्रद्धायुक्त विस्मय सहित चला था और वह यहोवा के एक वफ़ादार गवाह के तौर से मरता।
२ वह परमेश्वर से डरनेवाला और ख़राई रखनेवाला व्यक्ति स्तिफनुस था, “जो विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था।” (प्रेरितों. ६:५) उसकी हत्या से उत्पीड़न की एक लहर उठी, लेकिन उसके बाद यहूदिया, गलील और सामरिया में कलीसिया को कुछ समय के लिए चैन मिला और उनकी आध्यात्मिक रूप से उन्नति हुई। इसके अतिरिक्त, “वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती थी।” (प्रेरितों. ९:३१) आज यहोवा के गवाह होने के नाते, हम निश्चित हो सकते हैं कि चाहे हम शान्ति का या उप्रदव का अनुभव करें, परमेश्वर हमें आशीर्वाद देंगे, जैसा कि प्रेरितों के काम अध्याय ६ से १२ में दिखाया गया है। तो जब उत्पीड़ित किए जाएँ, तब हम परमेश्वर के श्रद्धायुक्त भय में चलें या उत्पीड़न से जो भी राहत मिले, उस समय को आत्मिक उन्नति और परमेश्वर की अधिक सक्रिय सेवा के लिए इस्तेमाल करें।—व्यवस्थाविवरण ३२:११, १२; ३३:२७. (हमारा सुझाव है कि आप इस अंक में प्रेरितों के काम पर के लेखों का व्यक्तिगत अभ्यास करते समय, मोटे टाइप अक्षरों से सूचित हिस्सों को इस किताब में से पढ़ें।)
अन्त तक विश्वसनीय
३. यरूशलेम में कौनसी समस्या सुलझायी गयी, और कैसे?
३ अगर शान्ति के समय में समस्याएँ उत्पन्न हो भी जाएँ, तो शायद अच्छे प्रबंधों के द्वारा उन्हें हल किया जा सकता है। (६:१-७) यरूशलेम में यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों ने शिकायत की कि दैनिक भोजन वितरण में इब्रानी भाषा बोलनेवाले यहूदी विश्वासियों को खास कृपा दिखायी जा रही थी और उनकी विधवाओं की उपेक्षा हो रही थी। इस समस्या को तब सुलझाया गया जब प्रेरितों ने सात मनुष्यों को “इस आवश्यक काम पर ठहराया।” उन में से एक स्तिफनुस था।
४. स्तिफनुस ने झूठे आरोपों की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
४ परन्तु, परमेश्वर से डरनेवाले स्तिफनुस ने कुछ समय बाद ही एक परीक्षा का सामना किया। (६:८-१५) कुछ लोगों ने उठकर स्तिफनुस से वाद-विवाद किया। कुछेक “उस आराधनालय में से थे, जो लिबिरतीनों की कहलाती है,” जो शायद वे यहूदी थे जिनको रोमियों ने बन्दी बनाया था और बाद में मुक्त किया था या जो शायद यहूदी मत धारण करनेवाले थे, जो किसी समय ग़ुलाम रहे थे। स्तिफनुस ने जिस ज्ञान और आत्मा से बातें की, उसके सामने अपनी स्थिति न बनाए रख सकने की वजह से, उसके शत्रुओं ने उसे यहूदी महासभा के सामने पेश किया। वहाँ झूठे गवाहों ने कहा: ‘हम ने उसे यह कहते सुना कि यीशु मंदिर को ढा देगा, और उन रीतों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।’ फिर भी, उसके विरोधी भी देख सकते थे कि स्तिफनुस एक अपराधी नहीं था, बल्कि उसका मुखड़ा एक फ़रिश्ते का सा अविक्षुब्ध था, परमेश्वर के एक ऐसे दूत के जैसे जिसे पक्का यक़ीन था कि उसे समर्थन हासिल है। उन लोगों के चहरों से कितना भिन्न, जो कि बुराई से प्रद्वेषी लग रहे थे, इसलिए कि उन्होंने अपने आप को शैतान के लिए उपयुक्त बनाया था!
५. गवाही देते समय स्तिफनुस ने कौनसी बातों पर बल दिया?
५ महायाजक कैफ़ा ने जब स्तिफनुस से सवाल किए, तब उसने एक साहसी गवाही दी। (७:१-५३) उसके इस्राएली इतिहास पर किए पुनरीक्षण से स्पष्ट हुआ कि परमेश्वर का उद्देश्य था कि जब मसीहा आ जाते तब व्यवस्था और मंदिर की सेवा को रद्द किया जाता। स्तिफनुस ने ग़ौर किया कि जिस उद्धारक को हर इस्राएली आदर करने का दावा करता था, वही मूसा इस्राएलियों द्वारा ठुकराया जा चुका था, क्योंकि उन्होंने अब उस व्यक्ति को स्वीकार नहीं किया, जो महत्तर उद्धार ला रहे थे। यह कहकर कि परमेश्वर हाथ से बनाए हुए घरों में नहीं रहते, स्तिफनुस ने दिखाया कि मंदिर और उसकी उपासना करने की व्यवस्था, दोनों समाप्त होनेवाले थे। पर चूँकि परमेश्वर के न्यायी उस से न डरते थे और ना ही उसकी इच्छा जानना चाहते थे, स्तिफनुस ने कहा: ‘हे हठीले, तुम हमेशा पवित्र आत्मा का सामना करते रहते हो। तुम्हारे बापदादों ने भविष्यद्वक्ताओं में से किन को नहीं सताया? उन्होंने उस धर्मी के आगमन का संदेश देनेवालों को मार डाला, और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए हो।’
६. (अ) उसकी मौत से पहले, स्तिफनुस को कौनसा विश्वास सबल करनेवाला अनुभव हुआ? (ब) स्तिफनुस क्यों सही सही कह सका: “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर”?
६ स्तिफनुस के निडर बयान के फलस्वरूप उसकी हत्या हुई। (७:५४-६०) यीशु की मौत में अपने दोष के इस भण्डाफोड़ से न्यायी बेहद क्रोधित हो गए थे। लेकिन स्तिफनुस के विश्वास को कितना बल मिला जब उसने ‘स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को और यीशु को परमेश्वर की दहिनी ओर खड़ा देखा’! स्तिफनुस अब इस विश्वास से अपने शत्रुओं का सामना कर सकता था कि उसने परमेश्वर की इच्छा का पालन किया था। हालाँकि यहोवा के गवाहों को अब कोई दर्शन दिखायी नहीं देते, फिर भी जब हमें उत्पीड़ित किया जाता है, तब हम समान ईश्वर-प्रदत्त प्रशान्ति पा सकते हैं। स्तिफनुस को यरूशलेम के बाहर फेंक देने के बाद, उसके शत्रुओं ने उसे पत्थरवाह करना शुरु किया, और उसने यह बिनती की: “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।” यह उचित था क्योंकि परमेश्वर ने यीशु को यह अधिकार दिया था कि वह दूसरों को पुनरुत्थित करके जीवन दे। (यूहन्ना ५:२६; ६:४०; ११:२५, २६) अपने टेके हुए घुटनों पर, स्तिफनुस ने पुकारा: “हे यहोवा, यह पाप उन पर मत लगा।” फिर वह एक शहीद के रूप में मौत की नींद में सो गया, उसी तरह जैसे उस समय से, आधुनिक समय में भी, यीशु के कई अनुयायी मौत में सो गए हैं।
उत्पीड़न सुसमाचार को फैलाता है
७. उपद्रव के फलस्वरूप क्या हुआ?
७ वास्तव में स्तिफनुस की मौत के फलस्वरूप सुसमाचार फैल गया। (८:१-४) उपद्रव किए जाने की वजह से प्रेरितों को छोड़ सब के सब शिष्य यहूदिया और सामरिया में तितर-बितर हो गए। शाऊल, जो स्तिफनुस की हत्या में सहमत था, यीशु के अनुयायियों को घसीटकर बन्दीगृह में डालने के लिए घर घर घुसता गया और उसने एक जानवर की तरह कलीसिया को उजाड़ दिया। जब तितर-बितर हुए शिष्य प्रचार करते गए, परमेश्वर का भय रखनेवाले राज्य प्रचारकों को उत्पीड़ित करके उन्हें रोकने का शैतान का षड्यन्त्र व्यर्थ कर दिया गया। आज भी, उत्पीड़न की वजह से अक़सर सुसमाचार का फैलाव हुआ है या इस से राज्य के प्रचार कार्य की ओर ध्यान आकर्षित हुआ है।
८. (अ) सामरिया में किए गए प्रचार के फलस्वरूप क्या हुआ? (ब) पतरस ने उस दूसरी चाबी का, जो यीशु ने उसे सौंप दी थी, प्रयोग कैसे किया?
८ प्रचारक फिलिप्पुस “मसीह का प्रचार करने” सामरिया नगर में गया। (८:५-२५) जब सुसमाचार का प्रचार हुआ, अशुद्ध आत्माओं को निकाल दिया गया और लोगों को स्वस्थ किया गया, उस नगर में बड़ा आनन्द हुआ। यरूशलेम से प्रेरितों ने पतरस और यूहन्ना को सामरिया भेज दिया, और जब उन्होंने प्रार्थना की और उन लोगों पर अपने हाथ रखे, जिन्होंने बपतिस्मा लिया था, तब नए शिष्यों ने पवित्र आत्मा प्राप्त किया। नए बपतिस्मा पाए हुए शमौन नाम के एक भूतपूर्व टोना करनेवाले मनुष्य ने इस अधिकार को ख़रीदने की कोशिश की, लेकिन पतरस ने कहा: ‘तेरे रुपये तेरे साथ नाश हों। तेरा मन परमेश्वर के आगे सीधा नहीं।’ उसे पश्चाताप करने और क्षमा के लिए यहोवा से बिनती करने के लिए कहा गया, सो उसने प्रेरितों से कहा कि वे उसकी तरफ़ से प्रार्थना करें। इस से आज यहोवा के सभी डरनेवाले प्रभावित होने चाहिए कि वे अपने मन की रक्षा करने के लिए ईश्वरीय मदद के लिए प्रार्थना करें। (नीतिवचन ४:२३) (इस घटना से अँग्रेज़ी शब्द “साइमनी,” या “धर्मपदविक्रय,” “गिरजा का पद या चर्च संबंधी पदोन्नति की ख़रीदारी या बिक्री” आता है।) पतरस और यूहन्ना ने बहुत सामरी गाँवों में सुसमाचार का प्रचार किया। इस प्रकार, पतरस ने उस दूसरी चाबी का प्रयोग किया जो यीशु ने उसे स्वर्गीय राज्य में प्रवेश करने के वास्ते ज्ञान और मौक़े का दरवाज़ा खोलने के लिए दिया था।—मत्ती १६:१९.
९. वह कूशी कौन था जिसे फिलिप्पुस ने सुसमाचार सुनाया, और वह आदमी बपतिस्मा क्यों ले सका?
९ परमेश्वर के स्वर्गदूत ने फिर फिलिप्पुस को एक नया कार्य दिया। (८:२६-४०) यरूशलेम से अज्जाह के मार्ग पर एक रथ में एक “खोजा” सवार था, जो कूशियों की रानी कन्दाके के खज़ाने का खजांची था। वह शारीरिक रूप से एक ख़ोजा नहीं था, जिस पर यहूदी सभा में आने की रोक थी, परन्तु वह एक ख़तना प्राप्त यहूदी मत धारण किए हुए व्यक्ति के तौर से यरूशलेम में उपासना करने के लिए गया था। (व्यवस्थाविवरण २३:१) फिलिप्पुस ने उस ख़ोजे को यशायाह की किताब से पढ़ते हुए पाया। रथ पर चढ़ने का आमंत्रण पाकर, फिलिप्पुस ने यशायाह की भविष्यद्वाणी पर विचार-विमर्श करके “उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया।” (यशायाह ५३:७, ८) कुछ देर बाद कूशी बोल उठा: “देख, यहाँ जल है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है?” कुछ रोक नहीं थी, चूँकि वह परमेश्वर के बारे में जानता था और अब उसे मसीह पर भी विश्वास हो गया था। इसलिए फिलिप्पुस ने कूशी को बपतिस्मा दिया, जो आनन्द करता हुआ अपने मार्ग पर चला गया। क्या ऐसी कोई बात है जो आपको बपतिस्मा लेने से रोक रही है?
एक उत्पीड़क का धर्मपरिवर्तन
१०, ११. दमश्क के मार्ग पर और उसके कुछ ही समय बाद शाऊल तारसी के साथ क्या हुआ?
१० इसी बीच, शाऊल इस कोशिश में था कि यीशु के अनुयायियों को क़ैद या घात की धमकी देकर उन्हें अपने विश्वास को त्याग देने पर मजबूर करे। (९:१-१८अ) महायाजक (संभवतः कैफ़ा) ने उसे दमश्क की आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ दीं, जिसमें उसे यह अधिकार दिया गया कि वह ऐसे पुरुष और स्त्रियों को क़ैदी बनाकर यरूशलेम ले आए जो “उस पंथ” के थे, या जिनके जीवन का ढंग यीशु के आदर्श पर आधारित था। दमश्क के पास, लगभग दोपहर के समय, आकाश से एक ज्योति चमकी और एक आवाज़ ने पूछा: “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” जो मनुष्य शाऊल के साथ थे, वे “शब्द तो सुनते थे,” परन्तु जो कहा जा रहा था, वह समझ नहीं पा रहे थे। (प्रेरितों. २२:६, ९ से तुलना करें।) महिमान्वित यीशु का वह आंशिक प्रकटन ही शाऊल को अन्धा बनाने के लिए काफ़ी था। परमेश्वर ने उसकी दृष्टि लौटा देने के लिए शिष्य हनन्याह का उपयोग किया।
११ उसके बपतिस्मा के बाद, भूतपूर्व उत्पीड़क अब उत्पीड़न का पात्र बन गया। (९:१८ब-२५) दमश्क में रहनेवाले यहूदी शाऊल की हत्या करना चाहते थे। बहरहाल, रात के अन्धेरे में, शिष्यों ने उसे दीवार की एक खुली जगह में से, संभवतः गूथे हुए टहनियों से बने या रस्सी से बने एक बड़े गूँथे हुए टोकरे में बिठाकर, नीचे उतार दिया। (२ कुरिन्थियों ११:३२, ३३) वह खुली जगह एक शिष्य के घर की खिड़की रही होगी, जो कि दीवार से लगकर बनाया गया था। चतुराई से शत्रुओं से बच निकलने और प्रचार करते रहने में कोई कायरता न थी।
१२. (अ) यरूशलेम में शाऊल के साथ क्या हुआ? (ब) मण्डलियों का कार्य कैसे रहा?
१२ यरूशलेम में, बरनबास ने शिष्यों की मदद की ताकि वे शाऊल को एक संगी-विश्वासी के तौर से स्वीकार कर सकें। (९:२६-३१) वहाँ शाऊल ने निडरता से यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के साथ वाद-विवाद किया, जिन्होंने भी उसकी हत्या करने की कोशिश की। इसका पता चलने पर, भाई उसे कैसरिया में ले गए और वहाँ से उसे किलिकिया में उसके गृह-नगर, तरसुस, को भेज दिया। फिर सारे यहूदिया, गलील और सामरिया में कलीसिया “को चैन मिला, और उसकी” आध्यात्मिक रूप से “उन्नति होती गयी।” जैसे जैसे यह ‘यहोवा के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती रही, यह बढ़ती गयी।’ यह आज सभी मण्डलियों के अनुपालन के लिए कितना उत्तम मिसाल है, यदि वे यहोवा का आशीर्वाद पाना चाहते हैं!
अन्यजातीय लोग विश्वासी बन जाते हैं!
१३. परमेश्वर ने पतरस को लुद्दा और याफा में कौनसे चमत्कार करने के लिए सामर्थ दिया?
१३ पतरस भी अपने आप को व्यस्त रख रहा था। (९:३२-४३) शारोन की तराई के लुद्दा में (जो अब लोद है), उसने लकवाग्रस्त ऐनियास को स्वस्थ किया। यह चिकित्सा बहुतों को प्रभु की ओर फिरने का कारण बना। याफा में, प्रिय शिष्या तबीता (दोरकास) बीमार होकर मर गयी। जब पतरस पहुँच गया, रोती हुई विधवाओं ने उसे वे वस्त्र दिखाए जो दोरकास ने बनाए थे और जो शायद वे पहन रही थीं। उसने दोरकास को फिर से ज़िन्दा किया, और जब इसकी ख़बर फैल गयी, बहुत से लोग विश्वासी बन गए। याफा में पतरस चर्मकार शमौन के घर में रहा, जो कि समुन्दर के पास था। चर्मकार जानवरों के चमड़ों को समुन्दर के पानी में भिगोकर, रोयाँ निकालने से पहले उन्हें चूने से संसाधित करते थे। खालों को कुछेक पौधों के रस से सिझाकर उन्हें चमड़ा बनाया जाता था।
१४. (अ) कुरनेलियुस कौन था? (ब) कुरनेलियुस की प्रार्थनाओं के विषय में क्या सही था?
१४ उस समय (सा.यु. ३६ में), कहीं और भी कुछ विशिष्ट विकास हो रहा था। (१०:१-८) कैसरिया में श्रद्धालु अन्यजातीय कुरनेलियुस रहता था, एक रोमी शतपति, जिसके कमान में लगभग एक सौ मनुष्य थे। वह “इतालियानी नाम पलटन” का सूबेदार था, जो इटाली में रोमी नागरिक और मुक्त किए हुए ग़ुलामों में से नियुक्त रंगरूटों से बनी थी। हालाँकि कुरनेलियुस परमेश्वर का भय रखता था, वह एक यहूदी धर्ममत धारण करनेवाला व्यक्ति न था। एक दर्शन में, एक स्वर्गदूत ने उससे कहा कि उसकी प्रार्थनाएँ “स्मरण के लिए परमेश्वर के सामने पहुँचे” थे। यद्यपि उस वक्त कुरनेलियुस यहोवा के सामने समर्पित नहीं हुआ था, उसे अपनी प्रार्थना का जवाब मिल गया। लेकिन जैसे स्वर्गदूत ने आदेश दिया, उसने पतरस को बुला भेजा।
१५. शमौन के घर के छत पर जब पतरस प्रार्थना कर रहा था, तब क्या हुआ?
१५ इसी बीच, जब पतरस शमौन के घर के छत पर प्रार्थना कर रहा था, उसे एक दर्शन मिला। (१०:९-२३) एक तल्लीन अवस्था में, उसने आकाश से बड़ी चादर के समान एक पात्र को उतरते देखा, जिसमें अशुद्ध चार-पैरों वाले जानवर, रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी भरे पड़े थे। जब उसे आदेश दिया गया कि मारकर खाएँ, पतरस ने कहा कि उसने कभी ऐसी कोई चीज़ न खायी थी जो अपवित्र है। “जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कह,” उसे बताया गया। उस दर्शन से पतरस हैरान हो गया, लेकिन उसने आत्मा के निर्देश के अनुसार किया। इस प्रकर, वह और छः यहूदी भाई कुरनेलियुस के दूतों के साथ गए।—प्रेरितों. ११:१२.
१६, १७. (अ) पतरस ने कुरनेलियुस और उसके घर में एकत्र हुए लोगों से क्या कहा? (ब) जब पतरस अभी बोल ही रहा था, तब क्या हुआ?
१६ अब पहले अन्यजातीय लोग सुसमाचार सुनने ही वाले थे। (१०:२४-४३) जब पतरस और उसके साथी कैसरिया में पहुँच गए, तब कुरनेलियुस, उसके रिश्तेदार और उसके कई गहरे दोस्त इन्तज़ार कर रहे थे। कुरनेलियुस ने पतरस के पाँवों को पकड़कर उसे प्रणाम किया, लेकिन प्रेरित ने दीनता से ऐसा प्रणाम अस्वीकार किया। उसने बताया कि किस तरह यहोवा ने यीशु को मसीहा के रूप में पवित्र आत्मा और सामर्थ से अभिषिक्त किया और यह स्पष्ट किया कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, उस को पापों की क्षमा मिलेगी।
१७ अब यहोवा ने कुछ किया। (१०:४४-४८) पतरस ये बातें कह ही रहा था, कि परमेश्वर ने उन विश्वास करनेवाले अन्यजातीय लोगों को पवित्र आत्मा दे दी। वहीं के वहीं, वे परमेश्वर के आत्मा से उत्पन्न हुए और वे विदेशी भाषाओं में बोलने और उसकी महिमा करने के लिए प्रेरित हुए। अतः, उन्हें उचित रूप से यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया गया। तो इस प्रकार पतरस ने तीसरी चाबी को परमेश्वर का भय रखनेवाले अन्यजातीय लोगों के वास्ते स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए ज्ञान और मौक़े का दरवाज़ा खोलने के लिए इस्तेमाल किया।—मत्ती १६:१९.
१८. जब पतरस ने समझाया कि अन्यजातीय भाइयों का “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” हुआ था, तब यहूदी भाइयों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
१८ बाद में, यरूशलेम में, ख़तना करवाने के समर्थकों ने पतरस से वाद-विवाद किया। (११:१-१८) जब उसने समझाया कि किस तरह अन्यजातीय लोगों का “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” हुआ था, उसके यहूदी भाइयों ने सम्मति दी और यह कहकर उन्होंने परमेश्वर की बड़ाई की: “तब तो परमेश्वर ने अन्यजातीयों को भी जीवन के लिए मन फिराव का दान दिया है।” जब हमें ईश्वरीय इच्छा स्पष्ट की जाती है, तब हमें भी ग्रहणशील होना चाहिए।
अन्यजातीय मण्डली स्थापित
१९. शिष्य मसीही किस तरह कहलाए?
१९ अब पहली अन्यजातीय मण्डली स्थापित हो गयी। (११:१९-२६) जब शिष्य उस क्लेश के मारे, जो स्तिफनुस के कारण पड़ा था, तितर-बितर हो गए थे, उन में से कुछ लोग सूरियाई अन्ताकिया को गए, जो कि अशुद्ध उपासना और नैतिक भ्रष्टाचार के लिए प्रसिद्ध था। जैसे जैसे उन्होंने वहाँ यूनानी भाषा बोलनेवाले लोगों को सुसमाचार सुनाया, “यहोवा का हाथ उन पर था,” और कई लोग विश्वासी बन गए। बरनबास और शाऊल ने वहाँ एक साल तक सिखाया, और “चेले सब से पहले अन्ताकिया ही में भगवत्कृपा से मसीही कहलाए।” (न्यू.व.) बेशक यहोवा ने आदेश दिया कि उन्हें इस नाम से बुलाया जाए, क्योंकि यूनानी शब्द ख्रे·मा·टाइʹज़ो का अर्थ है “भगवत्कृपा से कहलाना” और धर्मशास्त्रीय रूप से इसका इस्तेमाल हमेशा उस बात के संबंध में किया जाता है, जो परमेश्वर की ओर से है।
२०. अगबुस ने किस बात की भविष्यद्वाणी की, और अन्ताकिया की मण्डली ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
२० परमेश्वर का भय रखनेवाले कई भविष्यद्वक्ता भी यरूशलेम से अन्ताकिया में आए। (११:२७-३०) उन में से एक अगबुस नाम का व्यक्ति था, जिसने “आत्मा की प्रेरणा से बताया, कि सारे जगत में बड़ा अकाल” पड़नेवाला था। उस भविष्यद्वाणी की पूर्ति रोमी सम्राट् क्लौदियुस के शासनकाल में हुई (सा.यु. ४१-५४), और इतिहासकार जोसीफस इस “बड़े अकाल” का उल्लेख करता है। (जूइश ॲन्टिक्विटीज़, XX, 51 [ii, 5]; XX, 101 [v, 2]) प्रेम से प्रेरित होकर, अन्ताकिया की मण्डली ने यहूदिया में रहनेवाले ज़रूरतमंद भाइयों को एक अंशदान भेजा।—यूहन्ना १३:३५.
उपद्रव व्यर्थ रहा
२१. हेरोदेस अग्रिप्पा I ने पतरस के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाही की, और इसका नतीजा क्या रहा?
२१ वह शान्तिकाल समाप्त हो गया जब हेरोदेस अग्रिप्पा I यरूशलेम में यहोवा के भय रखनेवालों को उपद्रव करने लगा। (१२:१-११) हेरोदेस ने याकूब को, शायद उसका सिर तलवार से कटवाकर, मार डाला और यह पहला प्रेरित था जो शहीद हो गया। यह देखकर कि इस से यहूदी प्रसन्न हुए, हेरोदेस ने पतरस को बन्दी बनाया दिया। प्रत्यक्ष रूप से दोनों बाज़ू से प्रेरित को एक एक सिपाही के साथ ज़ंजीरों से बाँध दिया था, जबकि दो और सिपाही उसकी कोठरी पर पहरा दे रहे थे। हेरोदेस ने मनसूबा बनाया कि उसको फसह और अख़मीरी रोटी के दिनों के बाद (निसान १४-२१) फाँसी दी जाए, लेकिन ऐन वक्त पर मण्डली की प्रार्थनाएँ सुन ली गयीं, उसी तरह जैसे अक़सर हमारी प्रार्थनाएँ सुन ली जाती हैं। यह उस समय हुआ जब परमेश्वर के स्वर्गदूत ने प्रेरित को चमत्कारी रूप से छुड़ा लिया।
२२. जब पतरस मरकुस की माँ, मरियम के घर गया, तब क्या हुआ?
२२ जल्द ही पतरस मरियम (यूहन्ना मरकुस की माँ) के घर पहुँच गया, जो प्रत्यक्ष रूप से एक मसीही सभा-स्थान था। (१२:१२-१९) अन्धेरे में, रुदे नाम की एक दासी ने पतरस की आवाज़ को पहचान लिया लेकिन उसे बन्द प्रवेशद्वार के बाहर ही खड़ा छोड़ दिया। पहले पहले शिष्यों ने सोचा होगा कि परमेश्वर ने पतरस का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक स्वर्गदूत को भेजा था जो कि उसके ही जैसी आवाज़ में बोल रहा था। बहरहाल, जब उन्होंने पतरस को अन्दर आने दिया, उसने उन्हें बताया कि वे याकूब और अन्य भाइयों को (शायद प्राचीनों को) उसके उद्धार के बारे में बताएँ। उसने फिर वह जगह छोड़ दी और कहाँ जा रहा था, यह बताए बग़ैर एक गुप्त स्थान में गया, ताकि यदि पूछ-ताछ हो तो उन्हें या खुद को ख़तरे में न डालें। पतरस के लिए हेरोदेस की खोज निष्फल रही, और सिपाहियों को दण्ड दिया गया, संभवतः उन्हें फाँसी भी दी गयी।
२३. हेरोदेस अग्रिप्पा I का शासन किस तरह समाप्त हो गया, और हम इस से क्या सीख सकते हैं?
२३ सामान्य युग वर्ष ४४ में, जब वह ५४ वर्ष का था, हेरोदेस अग्रिप्पा I का शासन कैसरिया में अचानक समाप्त हो गया। (१२:२०-२५) उसका मिज़ाज सूर और सैदा के फीनीकियों के ख़िलाफ़ लड़ने का था, जिन्होंने उसके दास बलास्तुस को घूस देकर एक सुनवाई की व्यवस्था की थी जिस में वे शान्ति का प्रस्ताव पेश कर सकते थे। “ठहराए हुए दिन” पर (जो कि क़ैसर क्लौदियुस के सम्मानार्थ पर्ब्ब था), हेरोदेस शाही वस्त्र पहनकर न्याय के सिंहासन पर बैठ गया और एक व्याख्यान देने लगा। प्रतिक्रिया दिखाकर श्रोतागण ने ज़ोर से कहा: “यह तो मनुष्य का नहीं परमेश्वर का शब्द है!” उसी क्षण यहोवा के स्वर्गदूत ने उसे मारा, “क्योंकि उसने परमेश्वर की महिमा न की।” हेरोदेस “कीड़े पकड़े मर गया।” यह चेतावनी देनेवाला उदाहरण हमें यहोवा के भय में चलते रहने के लिए प्रेरित करें, और घमण्ड से दूर रहकर उन्हीं को उस कार्य के लिए महिमा दें जो हम उनके लोग होने के तौर से करते हैं।
२४. फैलाव के संबंध में अगले लेख में क्या दिखाया जाएगा?
२४ हेरोदेस के उपद्रव के बावजूद, “यहोवा का वचन बढ़ता और फैलता गया।” दरअसल, जैसे कि अगले लेख में दिखाया जाएगा, शिष्य और भी अधिक फैलाव की प्रत्याशा कर सकते थे। क्यों? क्योंकि वे ‘यहोवा के भय में चलते थे।’
आप क्या जवाब देंगे?
◻ स्तिफनुस ने कैसे दिखाया कि वह यहोवा का भय रखता था, जैसा कि उस समय से लेकर परमेश्वर के अनेक सेवकों ने दिखाया है?
◻ स्तिफनुस की मौत से राज्य के प्रचार कार्य पर क्या असर हुआ, और क्या इसकी वर्तमान समय में कोई अनुरूपता है?
◻ तरसुस का उत्पीड़क शाऊल यहोवा का भय रखनेवाला कैसे बन गया?
◻ पहले अन्यजातीय विश्वासी कौन थे?
◻ प्रेरितों के काम अध्याय १२ किस तरह दिखाता है कि यहोवा के भय रखनेवाले उपद्रव से नहीं रोके जा सकते हैं?
[पेज 12 पर तसवीरें]
आकाश से एक ज्योति चमकी और एक आवाज़ ने पूछा: “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?”