बाइबल की किताब नंबर 48—गलतियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: कुरिन्थुस या सूरिया का अन्ताकिया
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 50–52
गलतियों 1:2 बताता है कि पौलुस ने गलतिया की कलीसियाओं के नाम यह पत्री लिखी थी। इनमें पिसिदिया का अन्ताकिया, इकुनियुम, दिरबे और लुस्त्रा की कलीसियाएँ शामिल थीं। हालाँकि ये कलीसियाएँ अलग-अलग ज़िलों में थीं, लेकिन ये सभी रोमी प्रांत, गलतिया का हिस्सा थे। प्रेरितों का अध्याय 13 और 14 बताते हैं कि पौलुस, अपनी पहली मिशनरी यात्रा पर बरनबास के साथ इसी इलाके में आया था। और उन्होंने गलतिया की कलीसियाओं को संगठित किया था। ये कलीसियाएँ यहूदियों और गैर-यहूदियों से बनी थीं। इन गैर-यहूदियों में केल्ट या गॉल जाति के लोग भी शामिल थे। इन कलीसियाओं को करीब सा.यु. 46 में संगठित किया गया था। उस वक्त पौलुस को यरूशलेम से आए ज़्यादा समय नहीं हुआ था।—प्रेरि. 12:25.
2 पौलुस ने सा.यु. 49 को अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा शुरू की और सीलास के साथ गलतिया के इलाके में प्रचार किया। नतीजा, “कलीसिया[एँ] विश्वास में स्थिर होती गईं और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गईं।” (प्रेरि. 16:5; 15:40, 41; 16:1, 2) लेकिन उनके पीछे-पीछे झूठे शिक्षक आए। ये शिक्षक कुछ ऐसे यहूदी मसीही थे जो अब भी यहूदी रिवाज़ों को मानने पर अड़े हुए थे। उन्होंने गलतिया की कलीसियाओं में कुछ मसीहियों को इस बात के लिए कायल किया कि खतना करवाना और मूसा की व्यवस्था का पालन करना सच्ची मसीहियत के अहम पहलू हैं। इसी दौरान, पौलुस मूसिया से होते हुए मकिदुनिया और यूनान गया। इसके बाद, वह कुरिन्थुस आया, जहाँ उसने 18 से भी ज़्यादा महीने भाइयों के साथ बिताए। फिर सा.यु. 52 में वह इफिसुस के रास्ते से सूरिया के अन्ताकिया के लिए रवाना हुआ और उसी साल वहाँ पहुँचा। यह जगह एक तरह से उसका घर था।—प्रेरि. 16:8, 11, 12; 17:15; 18:1, 11, 18-22.
3 पौलुस ने गलतियों के नाम अपनी पत्री कहाँ से और कब लिखी? बेशक, उसे जैसे ही उन यहूदी मसीहियों की हरकतों का पता चला, उसने फौरन यह पत्री लिखी होगी। मुमकिन है कि उसने यह पत्री कुरिन्थुस या इफिसुस या फिर सूरिया के अन्ताकिया से लिखी होगी। हो सकता है, जब वह सा.यु. 50-52 में कुरिन्थुस में 18 महीनों के लिए था, तब उसने यह पत्री लिखी हो। क्योंकि गलतिया से खबर पहुँचने में थोड़ा बहुत वक्त ज़रूर लगा होगा। लेकिन इस बात की गुंजाइश कम लगती है कि पौलुस ने इसे इफिसुस से लिखा हो, क्योंकि अपनी यात्रा की वापसी पर उसने वहाँ बहुत कम समय बिताया था। लेकिन जब पौलुस सूरिया के अन्ताकिया में अपने घर आया, तो वह वहाँ ‘कुछ दिन रहा।’ यह शायद सा.यु. 52 की गर्मियों का वक्त था। और क्योंकि एशिया माइनर से सूरिया के अन्ताकिया तक खबरें आसानी से पहुँचायी जा सकती थीं, तो यह मुमकिन है कि पौलुस को उन यहूदी मसीहियों के बारे में खबर इसी शहर में मिली हो और उसने यहीं से गलतिया के भाइयों को अपनी पत्री लिखी हो।—प्रेरि. 18:23.
4 इस पत्री में बताया गया है कि पौलुस को “न मनुष्यों की ओर से, और न मनुष्य के द्वारा, बरन यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा . . . प्रेरित” ठहराया गया है। इसमें पौलुस की ज़िंदगी और उसके प्रेरित होने के बारे में कई सच्चाइयाँ बतायी गयी हैं। और ये साबित करती हैं कि एक प्रेरित की हैसियत से उसने यरूशलेम के प्रेरितों के साथ मिलकर काम किया था। यहाँ तक कि उसने एक मौके पर अपने प्रेरित होने का अधिकार इस्तेमाल करते हुए एक दूसरे प्रेरित यानी पतरस को झिड़का था।—गल. 1:1, 13-24; 2:1-14.
5 क्या बात दिखाती है कि गलतियों की पत्री सच्ची और बाइबल के संग्रह का हिस्सा है? आइरीनियस, सिकंदरिया के क्लैमेंट, टर्टलियन और ऑरिजन की किताबों में इस पत्री का नाम लेकर ज़िक्र किया गया है। इसके अलावा, बाइबल की आला दर्जे की अहम हस्तलिपियों में भी इसका ज़िक्र किया गया है। ये हस्तलिपियाँ हैं, साइनाइटिक, एलैक्ज़ैंड्रीन, वैटिकन नं. 1209, कोडेक्स ईफ्राएमी साइरी रिसक्रिपटस, कोडेक्स क्लैरोमॉन्टेनस, चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46). यही नहीं, यह पत्री यूनानी शास्त्र की दूसरी किताबों और इब्रानी शास्त्र से पूरी तरह मेल खाती है। और इसमें तो इब्रानी शास्त्र से कई हवाले भी दिए गए हैं।
6 “गलतिया की कलीसियाओं के नाम” पौलुस की यह दमदार और गंभीर पत्री में वह दो बातें साबित करता है। पहली बात, वह एक सच्चा प्रेरित है (व्यवस्था को माननेवाले यहूदी मसीही इस बात को झुठलाने की कोशिश कर रहे थे)। और दूसरी, मसीह यीशु पर विश्वास करने के ज़रिए ही एक इंसान धर्मी ठहराया जाता है, न कि व्यवस्था के मुताबिक काम करने से। और इसलिए मसीहियों के लिए खतना करवाना ज़रूरी नहीं। हालाँकि आम तौर पर पौलुस अपनी पत्री किसी और से लिखवाता था, लेकिन गलतियों की पत्री उसने ‘बड़े बड़े अक्षरों में अपने हाथ से लिखी।’ (6:11) इस किताब में लिखी बातें, पौलुस और गलतिया की कलीसियाओं के लिए बहुत मायने रखती थीं। किताब में, उस आज़ादी की कदर करने पर ज़ोर दिया गया है, जो सच्चे मसीहियों को यीशु मसीह के ज़रिए मिली है।
क्यों फायदेमंद है
14 गलतियों की पत्री बताती है कि कैसे पौलुस एक खूँखार सितमगर से अन्यजातियों के लिए एक जोशीला प्रेरित बना। और उसके बाद से कैसे वह अपने भाइयों की भलाई की खातिर संघर्ष करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। (1:13-16, 23; 5:7-12) पौलुस ने अपनी मिसाल से दिखाया कि एक अध्यक्ष को जल्द-से-जल्द समस्याओं से निपटना चाहिए, साथ ही तर्क और शास्त्र का इस्तेमाल करते हुए झूठी दलीलों को कुचल देना चाहिए।—1:6-9; 3:1-6.
15 यह पत्री गलतिया की कलीसियाओं के लिए फायदेमंद थी, क्योंकि इससे यह साफ साबित हुआ कि वे मसीह में स्वतंत्र हैं। साथ ही, सुसमाचार के उलटनेवालों को झूठा ठहराया गया। इसमें खुलकर बताया गया कि एक इंसान विश्वास के ज़रिए ही धर्मी ठहराया जाता है और उद्धार पाने के लिए खतना करवाना ज़रूरी नहीं। (2:16; 3:8; 5:6) इस पत्री ने साफ बताया कि यहूदियों और गैर-यहूदियों में कुछ भेद नहीं और वे एक ही कलीसिया का हिस्सा हैं। लेकिन व्यवस्था से आज़ाद होने का मतलब यह नहीं था कि वे शरीर की इच्छाओं को पूरा करने के लिए आज़ाद थे क्योंकि उन पर यह सिद्धांत तब भी लागू था: “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” और आज भी यह सिद्धांत मसीहियों पर लागू होता है।—5:14.
16 पौलुस की पत्री से गलतिया के मसीहियों को कई शिक्षाओं को समझने में मदद मिली। इसमें इब्रानी शास्त्र के ज़बरदस्त दृष्टांत इस्तेमाल किए गए थे। पत्री में, यशायाह 54:1-6 को ईश्वर-प्रेरणा से समझाया गया और बताया गया कि यहोवा की स्त्री “ऊपर की यरूशलेम” है। इसमें “लाक्षणिक अर्थ” (बुल्के बाइबिल) रखनेवाली हाजिरा और सारा की कहानी समझायी गयी। और यह बताया गया कि परमेश्वर के वादा किए गए वारिस वे हैं, जो मसीह के ज़रिए स्वतंत्र किए गए हैं, न कि वे जो व्यवस्था के गुलाम हैं। (गल. 4:21-26; उत्प. 16:1-4, 15; 21:1-3, 8-13) पत्री में साफ तौर पर समझाया गया कि व्यवस्था वाचा ने इब्राहीम की वाचा को रद्द नहीं किया, बल्कि उसे पूरा किया। इसमें यह भी बताया गया कि इन दोनों वाचाओं के बीच करीब 430 सालों का फासला था, जो कि बाइबल में बताए घटनाक्रम के लिए बहुत मायने रखती है। (गल. 3:17, 18, 23, 24) इन सारी बातों का रिकॉर्ड आज तक इसलिए महफूज़ रखा गया है, ताकि मसीही इन्हें पढ़कर अपना विश्वास मज़बूत कर सकें।
17 सबसे बढ़कर, गलतियों की पत्री साफ ज़ाहिर करती है कि राज्य का वंश कौन है, जिसके आने की सभी भविष्यवक्ता आस लगाए हुए थे। “प्रतिज्ञाएं इब्राहीम को, और उसके वंश को दी गईं . . . और वह [वंश] मसीह है।” मसीह यीशु पर विश्वास करने के ज़रिए जो लोग परमेश्वर के पुत्र ठहरते हैं, वे इस वंश का भाग बनते हैं। जैसा कि लिखा है, “यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।” (3:16, 29) राज्य के इन वारिसों और उनके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करनेवालों को गलतियों की पत्री में दी इन बढ़िया सलाहों को मानना चाहिए: ‘मसीह ने जिस स्वतंत्रता के लिए तुम्हें स्वतंत्र किया है, उसमें स्थिर रहो।’ ‘भले काम करने में हियाव न छोड़ो क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।’ ‘सब के साथ भलाई करो; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।’—5:1; 6:9, 10.
18 आखिरकार, इसमें एक ज़बरदस्त चेतावनी भी दी गयी है कि जो लोग शरीर के कामों में लगे रहते हैं, वे ‘परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।’ तो आइए हम सब, दुनिया की गंदगी और झगड़ों से खुद को दूर कर लें। और “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम” जैसे आत्मा के फल पैदा करने में अपना मन लगाएँ।—5:19-23.