परमेश्वर का वचन सर्वदा तक बना रहता है
“परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा।”—यशायाह ४०:८.
१. (क) यहाँ “हमारे परमेश्वर का वचन” का क्या अर्थ है? (ख) मनुष्यों की प्रतिज्ञाओं की परमेश्वर के वचन से क्या तुलना है?
मनुष्यों में यह प्रवृत्ती होती है कि वे प्रमुख पुरुषों एवं स्त्रियों की प्रतिज्ञाओं पर अपना भरोसा रखें। लेकिन अपने जीवन में सुधार के लिए तरसनेवाले लोगों के लिए ये प्रतिज्ञाएँ चाहे जितनी भी चाहनेयोग्य क्यों न लगें, जब उनकी तुलना हमारे परमेश्वर के वचन के साथ की जाए तो ये प्रतिज्ञाएँ मुर्झा जानेवाले फूलों की तरह होती हैं। (भजन १४६:३, ४) २,७०० से भी अधिक साल पहले, यहोवा परमेश्वर ने भविष्यवक्ता यशायाह को यह लिखने के लिए प्रेरित किया: “सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है। घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा।” (यशायाह ४०:६, ८) वह बना रहनेवाला “वचन” क्या है? यह परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में उसका कथन है। आज हमारे पास यह “वचन” बाइबल में लिखित रूप में है।—१ पतरस १:२४, २५.
२. यहोवा ने कौन-सी मनोवृत्तियों और कार्यों के रहते, प्राचीन इस्राएल और यहूदा के संबंध में अपना वचन पूरा किया?
२ प्राचीन इस्राएल में रहनेवाले लोगों ने यशायाह द्वारा अभिलिखित बातों की सच्चाई का अनुभव किया। अपने भविष्यवक्ताओं द्वारा यहोवा ने पूर्वबताया कि उसके प्रति घोर अविश्वसनीयता के कारण, पहले तो इस्राएल के दस-गोत्रीय राज्य को और फिर यहूदा के दो-गोत्रीय राज्य को निर्वासन में ले जाया जाएगा। (यिर्मयाह २०:४; आमोस ५:२, २७) हालाँकि उन्होंने यहोवा के भविष्यवक्ताओं को सताया, और यहाँ तक कि उनका क़त्ल किया, एक ख़र्रे को जलाया जिसमें परमेश्वर का चेतावनी संदेश था, और भविष्यवाणी की पूर्ति को रोकने के लिए सैन्य मदद के लिए मिस्र से अपील की, फिर भी यहोवा का वचन विफल नहीं हुआ। (यिर्मयाह ३६:१, २, २१-२४; ३७:५-१०; लूका १३:३४) इसके अतिरिक्त, पश्चातापी यहूदी शेषजनों को उनकी भूमि में पुनःस्थापित करने की परमेश्वर की प्रतिज्ञा की एक उल्लेखनीय पूर्ति हुई।—यशायाह, अध्याय ३५.
३. (क) यशायाह द्वारा अभिलिखित कौन-सी प्रतिज्ञाएँ हमारे लिए ख़ास दिलचस्पी की हैं? (ख) आप क्यों क़ायल हैं कि ये बातें सचमुच पूरी होंगी?
३ यशायाह के ज़रिए, यहोवा ने मसीहा द्वारा मनुष्यजाति पर एक धर्मी शासन के बारे में, पाप और मृत्यु से छुटकारे के बारे में और पृथ्वी को परादीस में परिवर्तित किए जाने के बारे में भी पूर्वबताया। (यशायाह ९:६, ७; ११:१-९; २५:६-८; ३५:५-७; ६५:१७-२५) क्या ये बातें भी पूरी होंगी? इसमें कोई शक नहीं! “परमेश्वर . . . झूठ बोल नहीं सकता।” उसने हमारे लाभ की ख़ातिर अपने भविष्यसूचक वचन को अभिलिखित करवाया, और उसने यह निश्चित किया है कि वह सुरक्षित रहे।—तीतुस १:२; रोमियों १५:४.
४. हालाँकि मूल बाइबल हस्तलिपियों को सुरक्षित नहीं रखा गया, यह कैसे सच है कि परमेश्वर का वचन “जीवित” है?
४ यहोवा ने मूलभूत हस्तलिपियों को सुरक्षित नहीं रखा जिनमें उसके प्राचीन लेखकों ने वे भविष्यवाणियाँ लिखीं। लेकिन उसका “वचन,” उसका घोषित उद्देश्य एक जीवित वचन साबित हुआ है। वह उद्देश्य अप्रतिरोध्य रूप से आगे बढ़ता है, और जब वह बढ़ता है, उन लोगों के आंतरिक विचार और प्रेरणाएँ स्पष्ट हो जाती हैं जिनके जीवन को उसने छू लिया है। (इब्रानियों ४:१२) इसके अतिरिक्त, ऐतिहासिक अभिलेख दिखाता है कि उत्प्रेरित शास्त्रों की सुरक्षा और अनुवाद भी ईश्वरीय मार्गदर्शन द्वारा हुआ है।
दमन करने की कोशिशों का सामना करना
५. (क) उत्प्रेरित इब्रानी शास्त्र को नष्ट करने के लिए एक अरामी राजा द्वारा कौन-सा प्रयास किया गया था? (ख) वह क्यों असफल हुआ?
५ कई बार, शासकों ने इन उत्प्रेरित लेखों का सर्वनाश करने की कोशिश की है। सा.यु.पू. १६८ में, अरामी राजा ऐन्ट्यकस इपिफॆनज़ (पृष्ठ १० पर दिखाया गया) ने उस मंदिर में ज़ूस के लिए एक वेदी खड़ी की जो यहोवा के लिए समर्पित था। साथ ही उसने ‘व्यवस्था की पुस्तकों’ को खोजकर उन्हें जलाकर राख कर दिया, और घोषणा की कि अपने पास ऐसे शास्त्र रखनेवाले व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया जाएगा। यरूशलेम और यहूदिया में उसने चाहे जितनी भी प्रतियाँ जलाईं, वह शास्त्र का पूरी तरह से दमन नहीं कर सका। उस समय यहूदियों की बस्तियाँ अनेक देशों में बिखरी हुई थीं, और हर आराधनालय में ख़र्रों का अपना संचय था।—प्रेरितों १३:१४, १५ से तुलना कीजिए।
६. (क) प्रारंभिक मसीहियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे शास्त्र को नष्ट करने के लिए कौन-सा ज़ोरदार प्रयास किया गया? (ख) इसका परिणाम क्या हुआ?
६ सामान्य युग ३०३ में, रोमी सम्राट डायक्लीशन ने उसी तरह आज्ञा दी कि मसीही सभा स्थानों को तबाह कर दिया जाए और उनके ‘शास्त्र को आग में फूँक दिया जाए।’ ऐसा विनाश एक दशक तक चलता रहा। हालाँकि यह सताहट बहुत ही भयानक थी, डायक्लीशन मसीहियत को उखाड़ फेंकने में क़ामयाब नहीं हुआ, ना ही परमेश्वर ने सम्राट के कर्मचारियों को अपने उत्प्रेरित वचन के किसी भी भाग को पूरी तरह नष्ट करने दिया। लेकिन परमेश्वर के वचन के वितरण और प्रचार के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के द्वारा विरोधकों ने दिखाया कि उनके दिल में क्या था। उन्होंने अपनी पहचान शैतान द्वारा अंधे किए गए मनुष्यों के रूप में कराई जो उसकी इच्छा पूरी करते हैं।—यूहन्ना ८:४४; १ यूहन्ना ३:१०-१२.
७. (क) पश्चिमी यूरोप में बाइबल ज्ञान को फैलाने से रोकने के लिए कौन-से प्रयास किए गए? (ख) बाइबल के अनुवाद और प्रकाशन में क्या हासिल किया गया?
७ बाइबल ज्ञान के फैलाव को रोकने के लिए अन्य रूप से भी कोशिशें की गयीं। जब लातीनी भाषा रोज़मर्रा की भाषा न रही, तब वे विधर्मी शासक नहीं परंतु तथाकथित मसीही ही थे—पोप ग्रॆगरी सप्तम (१०७३-८५) और पोप इनोसॆंट तृतीय (११९८-१२१६)—जिन्होंने उन भाषाओं में बाइबल के अनुवाद का ज़ोरदार विरोध किया जो आम लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाती थीं। चर्च के अधिकार के विरुद्ध विसम्मति को कुचलने की कोशिश में, टूलूज़, फ्रांस की रोमन कैथोलिक काउंसिल ने १२२९ में आज्ञा जारी की कि एक आम व्यक्ति अपने पास आम भाषा में बाइबल की पुस्तकें नहीं रख सकता। उस आज्ञा को लागू करवाने के लिए धर्माधिकरण को प्रबल रूप से इस्तेमाल किया गया। फिर भी, धर्माधिकरण के ४०० साल बाद, परमेश्वर के वचन के प्रेमियों ने संपूर्ण बाइबल का अनुवाद किया था और कुछ २० भाषाओं में उसके मुद्रित संस्करणों को, साथ ही अतिरिक्त बोलियों में और १६ अन्य भाषाओं में, उसके अधिकतर भागों को वितरित कर रहे थे।
८. रूस में, १९वीं शताब्दी के दौरान, बाइबल अनुवाद और वितरण के क्षेत्र में क्या हो रहा था?
८ यह केवल रोमन कैथोलिक चर्च नहीं था जिसने सामान्य लोगों से बाइबल को छिपाकर रखने की कोशिश की। १९वीं सदी के आरंभ में, सेंट पीटर्सबर्ग एकैडमी ऑफ़ डिवीनिटी के एक प्रॉफ़ॆसर, पावस्की ने मत्ती की सुसमाचार पुस्तक को यूनानी से रूसी भाषा में अनुवादित किया। मसीही यूनानी शास्त्र की अन्य पुस्तकों को भी रूसी भाषा में अनुवादित किया गया, और पावस्की ने बतौर संपादक काम किया। इन्हें हाथों-हाथ वितरित किया गया, जब तक कि १८२६ में ज़ार को चर्च की युक्ति के द्वारा रूसी बाइबल संस्था को रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च की “पवित्र धर्मसभा” के निर्देशन के अधीन करने के लिए उकसाया नहीं गया। चर्च ने बाद में संस्था की गतिविधियों को पूरी तरह से दबा दिया। बाद में, पावस्की ने इब्रानी शास्त्र का इब्रानी भाषा से रूसी में अनुवाद किया। लगभग उसी समय, ऑर्थोडॉक्स चर्च के एक आर्किमैंड्राइट, [एक पादरी] माकारिओस ने भी इब्रानी शास्त्र को इब्रानी भाषा से रूसी में अनुवादित किया। उन दोनों को उनके प्रयासों के लिए सज़ा दी गयी, और उनके अनुवादों को चर्च के लेखागार में जमा कर दिया गया। चर्च दृढ़संकल्प था कि बाइबल को पुरानी स्लोवानीय भाषा में ही रखे, जो उस समय सामान्य लोगों द्वारा पढ़ी या समझी नहीं जाती थी। केवल तब जाकर “पवित्र धर्मसभा” ने १८५६ में अपने ही धर्मसभा द्वारा अनुमोदित अनुवाद का ज़िम्मा उठाया जब बाइबल का ज्ञान लेने के लोगों के प्रयासों को और दबाया नहीं जा सका। यह अनुवाद ऐसे निर्देशनों के तहत किया गया जिन्हें यह निश्चित करने के लिए ध्यानपूर्वक रचा गया था कि इस्तेमाल की गयी अभिव्यक्तियाँ चर्च के दृष्टिकोण से मेल खाएँ। इस प्रकार, परमेश्वर के वचन के फैलाव के संबंध में, धार्मिक अगुओं के बाहरी दिखावे और उनके असली उद्देश्य के बीच एक अंतर दिखाया जा रहा था, जो उनकी बातों और कार्यों से स्पष्ट हुआ।—२ थिस्सलुनीकियों २:३, ४.
वचन को अशुद्धि से बचाना
९. कुछ बाइबल अनुवादकों ने परमेश्वर के वचन के लिए अपना प्रेम कैसे प्रदर्शित किया?
९ शास्त्रों का अनुवाद करने और उनकी प्रतिलिपि बनानेवाले लोगों में ऐसे लोग शामिल थे जो सचमुच परमेश्वर के वचन से प्रेम करते थे और सभी लोगों को उपलब्ध कराने के लिए जिन्होंने जी-जान से मेहनत की। विलियम टिंडेल को अंग्रेज़ी में बाइबल उपलब्ध कराने में उसने जो किया उसके लिए (१५३६ में) शहीद होना पड़ा। फ्रान्तीसको दे एंतीनास को स्पेनी भाषा में मसीही यूनानी शास्त्र का अनुवाद कर उसे प्रकाशित करने के लिए कैथोलिक धर्माधिकरण द्वारा (१५४४ के बाद) क़ैद किया गया। अपनी जान पर खेल कर, रॉबर्ट मॉरिसन ने (१८०७ से १८१८ तक) चीनी भाषा में बाइबल का अनुवाद किया।
१०. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि ऐसे अनुवादक थे जो परमेश्वर के वचन के प्रेम को छोड़ दूसरे प्रभावों से प्रेरित थे?
१० लेकिन, कभी-कभी परमेश्वर के वचन के लिए प्रेम को छोड़ अन्य उद्देश्यों ने भी प्रतिलिपिकों और अनुवादकों के कार्य को प्रभावित किया। चार उदाहरणों पर ग़ौर कीजिए: (१) सामरियों ने यरूशलेम के मंदिर के प्रतिद्वंद्वी के रूप में गरीज्जीम पर्वत पर एक मंदिर बनाया। इसके समर्थन में, सामरी पंचग्रंथ के निर्गमन २०:१७ में कुछ जोड़ा गया। यह आज्ञा जोड़ी गयी, मानो यह दस नियमों का भाग थी, कि गरीज्जीम पर्वत पर पत्थर की एक वेदी बनाकर वहाँ बलि चढ़ायी जाएँ। (२) यूनानी सॆप्टूअजिंट के लिए दानिय्येल की पुस्तक का अनुवाद करनेवाले पहले व्यक्ति ने अपने अनुवाद में काफ़ी छूट ली। उसने ऐसे कथन डाले जो उसने सोचा कि इब्रानी पाठ को समझाएँगे या निखारेंगे। उसने ऐसी बारीकियों को छोड़ दिया जो उसने सोचा कि पाठकों के लिए अस्वीकार्य होंगी। जब उसने मसीहा के प्रकटन के समय से संबंधित भविष्यवाणी का अनुवाद किया, जो दानिय्येल ९:२४-२७ में पायी जाती है, उसने ग़लत समयावधि बताई और उसमें जोड़ा, फेर-बदल किया, और शब्दों को घुमा-फिरा दिया, स्पष्टतः उस भविष्यवाणी को मकाबियों के संघर्ष को समर्थन करता हुआ प्रतीत कराने के दृष्टिकोण से। (३) सा.यु. चौथी शताब्दी में, एक लातीनी संधि में, त्रियेकवाद के एक अति-उत्साही समर्थक ने स्पष्टतः “स्वर्ग में, पिता, वचन, और पवित्र आत्मा; और ये तीनों एक हैं” ये शब्द जोड़े, मानो वे १ यूहन्ना ५:७ का एक उद्धरण हों। बाद में, उस परिच्छेद को लातीनी बाइबल हस्तलिपि के पाठ में शामिल कर लिया गया। (४) प्रोटेस्टेंटों की कोशिशों को नाकाम करने के उद्देश्य से लूई तेरहवें ने (१६१०-४३) फ्रांस में, ज़्हाक कोरबैं को बाइबल का फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद करने के लिए अधिकार दिया। इस उद्देश्य के मद्देनज़र, कोरबैं ने कुछ पाठ में अंतर्वेशन किए, जिसमें प्रेरितों १३:२ में “मिस्सा के पवित्र बलिदान” का संदर्भ शामिल है।
११. (क) कुछ अनुवादकों की बेईमानी के बावजूद भी परमेश्वर का वचन कैसे बना रहा? (ख) बाइबल ने मूलतः जो कहा, उसे साबित करने के लिए कितना प्राचीन हस्तलिपिक प्रमाण है? (बक्स देखिए।)
११ यहोवा ने अपने वचन में ऐसे फेर-बदल को नहीं रोका, ना ही इसने उसके उद्देश्य को बदला। इसके क्या परिणाम हुए? गरीज्जीम पर्वत के लिए संदर्भ जोड़ने से सामरी धर्म मनुष्यजाति को आशिष देने के लिए परमेश्वर का साधन नहीं बन गया। इसके बजाय, इसने यह प्रमाण दिया कि हालाँकि सामरी धर्म ने पंचग्रंथ में विश्वास करने का दावा किया, फिर भी सच्चाई को सिखाने के लिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। (यूहन्ना ४:२०-२४) सॆप्टूअजिंट के शब्दों में तोड़-मरोड़ ने भविष्यवक्ता दानिय्येल द्वारा पूर्वबताए गए समय पर मसीहा को आने से नहीं रोका। इसके अतिरिक्त, हालाँकि सॆप्टूअजिंट प्रथम शताब्दी में इस्तेमाल में था, यहूदी लोग प्रमाणतः शास्त्र को अपने आराधनालयों में इब्रानी भाषा में सुनने के आदी थे। इसके परिणामस्वरूप, जब उस भविष्यवाणी की पूर्ति का समय नज़दीक आया, तो “लोग आस लगाए हुए थे।” (लूका ३:१५) जहाँ तक १ यूहन्ना ५:७ में त्रियेक का समर्थन करने के लिए और प्रेरितों १३:२ में मिस्सा की दलील देने के लिए शब्दों को जोड़ने का सवाल है, इन्होंने सच्चाई को नहीं बदला। और कुछ समय बाद धोखेबाज़ी का पूरी तरह पर्दाफ़ाश हुआ। बाइबल की मूल-भाषा हस्तलिपियों का बड़ा अंबार किसी भी अनुवाद की वैधता को परखने का एक साधन प्रदान करता है।
१२. (क) कुछ बाइबल अनुवादकों द्वारा कौन-से गंभीर बदलाव किए गए थे? (ख) ये कितने व्यापक थे?
१२ शास्त्र को बदलने के प्रयासों में कुछ आयतों को दूसरे शब्दों में कहने से ज़्यादा शामिल था। इन प्रयासों ने ख़ुद सच्चे परमेश्वर की पहचान पर आक्रमण किया। जिस प्रकार से ये और जितनी हद तक ये बदलाव किए गए, उन्होंने एक ऐसे स्रोत के प्रभाव का स्पष्ट प्रमाण दिया जो किसी भी अकेले व्यक्ति या मानवी संगठन से अधिक शक्तिशाली था—जी हाँ, यहोवा के प्रमुख-शत्रु, शैतान अर्थात् इब्लीस के प्रभाव का प्रमाण। उस प्रभाव में आकर, अनुवादकों और प्रतिलिपिकों ने—कुछ ने उत्सुकतापूर्वक, दूसरों ने अनिच्छा से—उसके उत्प्रेरित वचन से परमेश्वर का अपना व्यक्तिगत नाम, यहोवा, उन हज़ारों स्थानों से निकालना शुरू किया जहाँ वह आता था। प्रारंभिक समय में, इब्रानी से यूनानी, लातीनी, जर्मन, अंग्रेज़ी, इतालवी, और डच, साथ ही अन्य कुछ अनुवादों ने उस ईश्वरीय नाम को पूरी तरह निकाल दिया या केवल कुछ ही जगहों में रहने दिया। इसे मसीही यूनानी शास्त्र की प्रतियों में से भी निकाल दिया गया।
१३. बाइबल में फेर-बदल करने का व्यापक प्रयास इंसानी याददाश्त से परमेश्वर के नाम के निकाले जाने में परिणित क्यों नहीं हुआ?
१३ फिर भी, उस महिमावान नाम को इंसानी याददाश्त में से नहीं निकाला गया। इब्रानी शास्त्र के स्पेनी, पुर्तगाली, जर्मन, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, और अन्य अनेक अनुवादों ने ईमानदारी से परमेश्वर का व्यक्तिगत नाम शामिल किया। १६वीं शताब्दी तक, परमेश्वर का व्यक्तिगत नाम मसीही यूनानी शास्त्र के विविध इब्रानी अनुवादों में; १८वीं शताब्दी तक, जर्मन भाषा में; १९वीं शताब्दी तक क्रोएशियाई और अंग्रेज़ी भाषा में भी फिर एक बार दिखने लगा। हालाँकि लोग परमेश्वर के नाम को छिपाना चाहें, जब “प्रभु [यहोवा] का दिन” आएगा, तब जैसे परमेश्वर घोषणा करता है, ‘जातियाँ जान लेंगी कि मैं यहोवा हूँ।’ परमेश्वर का वह घोषित उद्देश्य विफल नहीं होगा।—२ पतरस ३:१०; यहेजकेल ३८:२३; यशायाह ११:९; ५५:११.
संदेश पृथ्वीभर में पहुँचता है
१४. (क) बीसवीं शताब्दी तक, बाइबल को यूरोप की कितनी भाषाओं में मुद्रित किया गया था, और इसका परिणाम क्या था? (ख) १९१४ के अंत तक, अफ्रीका की कितनी भाषाओं में बाइबल उपलब्ध थी?
१४ बीसवीं शताब्दी के आरंभ तक, बाइबल पहले से ही यूरोप की ९४ भाषाओं में मुद्रित की जा रही थी। इसने दुनिया के उस भाग के बाइबल विद्यार्थियों को इस तथ्य के बारे में सचेत किया कि १९१४ में अन्यजातियों के समय के अंत के साथ संसार को हिला देनेवाली घटनाएँ होंगी, और वाक़ई ऐसा हुआ भी! (लूका २१:२४) ऐतिहासिक वर्ष १९१४ का अंत होने से पहले, बाइबल को व्यापक रूप से इस्तेमाल की जा रही अंग्रेज़ी, फ्रेंच और पुर्तगाली भाषा के अतिरिक्त, या तो संपूर्णतः या उसकी कुछ पुस्तकों को अफ्रीका की १५७ भाषाओं में प्रकाशित किया जा रहा था। इस प्रकार वहाँ रहनेवाले अनेक जातियों और राष्ट्रीय समूहों के नम्र लोगों को आध्यात्मिक रूप से छुटकारा दिलानेवाली सच्चाइयाँ सिखाने के लिए नींव डाली गयी।
१५. जैसे-जैसे अंतिम दिनों की शुरूआत हुई, किस हद तक अमरीकी देशों के लोगों की भाषाओं में बाइबल उपलब्ध थी?
१५ जैसे-जैसे संसार ने पूर्वबताए गए अंतिम दिनों में प्रवेश किया, बाइबल अमरीकी देशों में व्यापक रूप से उपलब्ध होने लगी। यूरोप के आप्रवासी इसे अपने साथ अपनी सभी विविध भाषाओं में लाए थे। बाइबल शिक्षा का एक व्यापक कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें जन भाषण और अंतरराष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थियों द्वारा, जो उस समय यहोवा के साक्षियों को कहा जाता था, प्रकाशित बाइबल साहित्य का व्यापक वितरण शामिल था। इसके अतिरिक्त, पश्चिमी गोलार्ध की बहुराष्ट्रीय आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाइबल संस्थाओं द्वारा पहले से ही ५७ अन्य भाषाओं में बाइबल मुद्रण किया जा रहा था।
१६, १७. (क) जब विश्वव्यापी प्रचार का समय आया तब किस हद तक बाइबल उपलब्ध हो गयी थी? (ख) किस तरह से बाइबल एक बनी रहनेवाली और अत्यंत प्रभावशाली पुस्तक साबित हुई है?
१६ ‘अंत आने से पहले’ जब सुसमाचार के विश्वव्यापी प्रचार का समय आया, तो बाइबल एशिया और पैसिफिक द्वीपों के लिए नयी नहीं थी। (मत्ती २४:१४) यह वहाँ पायी जानेवाली २३२ भाषाओं में पहले ही प्रकाशित की जा रही थी। कुछ तो संपूर्ण बाइबल थीं; अनेक मसीही यूनानी शास्त्र के अनुवाद थे; अन्य पवित्र शास्त्र की एकल पुस्तक थी।
१७ स्पष्ट रूप से, बाइबल केवल एक नुमाइशी पुरानी चीज़ की तरह नहीं बनी रही। मौजूद सभी पुस्तकों में, यह सबसे व्यापक रूप से अनुवादित और सबसे ज़्यादा वितरित पुस्तक थी। इस ईश्वरीय अनुग्रह के प्रमाण की संगतता में, इस पुस्तक में जो लिखा गया था वह पूरा हो रहा था। इसकी शिक्षाओं का और उस आत्मा का जिसने इन शिक्षाओं को प्रेरित किया, अनेक देशों में लोगों के जीवन पर स्थायी प्रभाव भी हो रहा था। (१ पतरस १:२४, २५) लेकिन और भी कुछ होना था—बहुत कुछ।
क्या आपको याद है?
◻ “हमारे परमेश्वर का वचन” क्या है जो सर्वदा तक बना रहता है?
◻ बाइबल का दमन करने के लिए कौन-सी कोशिशें की गयी हैं, और इसका क्या परिणाम हुआ?
◻ बाइबल की अखण्डता की सुरक्षा कैसे की गयी है?
◻ कैसे परमेश्वर के उद्देश्य का कथन एक जीवित वचन साबित हुआ है?
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क्या हम सचमुच जानते हैं कि बाइबल ने मूलतः क्या कहा?
क़रीब ६,००० इब्रानी हस्तलिपियाँ इब्रानी शास्त्र के अंतर्विषय को अनुप्रमाणित करती हैं। इनमें से कुछ मसीही-पूर्व युग की हैं। संपूर्ण इब्रानी शास्त्र की कम-से-कम १९ वर्तमान हस्तलिपियाँ उस अवधि की हैं जब मुद्रण तकनीक का अविष्कार भी नहीं हुआ था। इसके अतिरिक्त, उसी अवधि से, ऐसे अनुवाद मौजूद हैं जो २८ अन्य भाषाओं में किए गए थे।
मसीही यूनानी शास्त्र की, यूनानी में क़रीब ५,००० हस्तलिपियों की सूचि बनायी गयी है। इनमें से एक तो सा.यु. १२५ के पहले की है, अर्थात मूल रूप से लिखे जाने के केवल कुछ साल बाद की। और कुछ टुकड़े तो और भी पहले के माने जाते हैं। २७ उत्प्रेरित पुस्तकों में से २२ की १० से १९ संपूर्ण अन्सियल हस्तलिपियाँ उपलब्ध हैं। बाइबल की प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के लिए सबसे कम संख्या में संपूर्ण अन्सियल हस्तलिपियाँ हैं, केवल तीन। संपूर्ण मसीही यूनानी शास्त्र की एक हस्तलिपि सा.यु. चौथी शताब्दी की है।
किसी भी अन्य प्राचीन साहित्य की इतने ढेरों प्राचीन दस्तावेज़ी प्रमाण द्वारा पुष्टि नहीं की गयी है।