यहोवा के लोगों को विश्वास में स्थिर बनाया गया
“कलीसिया विश्वास में स्थिर होती गईं और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गईं।”—प्रेरितों १६:५.
१. परमेश्वर ने प्रेरित पौलुस को किस रीति से इस्तेमाल किया?
यहोवा परमेश्वर ने शाऊल तारसी को एक “चुने हुए पात्र” के तौर से इस्तेमाल किया। प्रेरित पौलुस के हैसियत से, उसने ‘कैसा कैसा दुःख उठाया।’ लेकिन उसके और अन्यों के कार्य के ज़रिए, यहोवा के संगठन ने एकता और अद्भुत वृद्धि का अनुभव किया।—प्रेरितों ९:१५, १६.
२. प्रेरितों के काम १३:१-१६:५ पर ग़ौर करना क्यों लाभदायक होगा?
२ अन्यजातीय लोग बढ़ती हुई तादाद में मसीही बन रहे थे, और शासी निकाय की एक अत्यावश्यक सभा ने परमेश्वर के लोगों के बीच एकता बढ़ाने के लिए और उन्हें विश्वास में स्थिर बनाने के लिए बहुत ज़्यादा कार्य किया। प्रेरितों. १३:१-१६:५ में लिपिबद्ध इन और अन्य विकासों पर ध्यान देना बहुत ज़्यादा लाभदायक होगा, इसलिए कि अब यहोवा के गवाह समान वृद्धि और आध्यात्मिक आशीषों का अनुभव कर रहे हैं।—यशायाह ६०:२२.
मिशनरी कार्य करना शुरु करते हैं
३. अन्ताकिया में “भविष्यद्वक्ताओं और उपदेशकों” ने क्या काम किया?
३ अन्ताकिया, सीरिया, की मण्डली द्वारा भेजे गए आदमियों ने विश्वासियों को विश्वास में स्थिर बनने में मदद की। (१३:१-५) अन्ताकिया में “भविष्यद्वक्ता और उपदेशक” थे, अर्थात् बरनबास, शमौन (नाइगर), लूकियुस कुरेनी, मनाहेम, और शाऊल तारसी। भविष्यद्वक्ताओं ने परमेश्वर के वचन पर व्याख्या की और घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी की, जबकि उपदेशकों ने शास्त्रों और धर्मी जीवन बिताने के विषय में शिक्षा दी। (१ कुरिन्थियों १३:८; १४:४) बरनबास और शाऊल को एक ख़ास नियतकार्य मिला। बरनबास के चचेरे भाई मरकुस को साथ ले जाकर, वे कुप्रुस को चले गए। (कुलुस्सियों ४:१०) उन्होंने पूर्वी बन्दरगाह सलमीस की आराधनालयों में सुसमाचार सुनाया, लेकिन ऐसा कोई विवरण नहीं है कि यहूदियों ने अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी। चूँकि ये लोग आर्थिक रूप से संपन्न थे, उन्हें मसीहा की क्या ज़रूरत थी?
४. जब मिशनरी कुप्रुस में प्रचार करते रहे, तब क्या हुआ?
४ परमेश्वर ने कुप्रुस में होनेवाले अन्य प्रचार कार्य पर आशीष दी। (१३:६-१२) पाफुस में, मिशनरियों को बार-यीशु (इलीमास) नाम का एक यहूदी टोन्हा और झूठा भविष्यद्वक्ता मिला। जब उसने सिरगियुस पौलुस सूबे को परमेश्वर का वचन सुनने से रोकना चाहा, तब शाऊल ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर कहा: ‘हे सारे कपट और चतुराई से भरे हुए इब्लीस की सन्तान, सकल धर्म के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गों को टेढ़ा करना न छोड़ेगा?’ तब, परमेश्वर के दण्ड-रूपी हाथ ने इलीमास को कुछ समय तक अन्धा बना दिया, और सिरगियुस पौलुस ने “प्रभु के उपदेश से चकित होकर विश्वास किया।”
५, ६. (अ) जब पौलुस ने पिसिदिया के अन्ताकिया की अराधनालय में उपदेश दिया, तब उसने यीशु के बारे में क्या कहा? (ब) पौलुस के भाषण का क्या असर हुआ?
५ कुप्रुस से, टोली एशिया माइनर में पिरगा नाम नगर के लिए रवाना हुई। फिर पौलुस और बरनबास पर्वतों के बीच के रास्तों से उत्तर की ओर, संभवतः ‘नदियों और डाकुओं के जोख़िमों में,’ पिसिदिया के अन्ताकिया में चले गए। (२ कुरिन्थियों ११:२५, २६) वहाँ पौलुस ने आराधनालय में उपदेश दिया। (१३:१३-४१) उसने इस्राएल के साथ परमेश्वर के व्यवहार पर पुनर्विचार किया और दाऊद के वंश यीशु की पहचान दी, कि वही उद्धारक था। हालाँकि यहूदी शासकों ने यीशु की मृत्यु के लिए माँग की थी, उन्हीं के पूर्वजों को दिया वादा पूरा किया गया जब परमेश्वर ने उसे पुनरुत्थित किया। (भजन २:७; १६:१०; यशायाह ५५:३) पौलुस ने अपने श्रोताओं को चेतावनी दी कि वे मसीह के ज़रिए परमेश्वर के उद्धार करने के उपहार को तुच्छ न समझें।—हबक्कुक १:५, सेप्टुआजिन्ट.
६ पौलुस के प्रवचन से दिलचस्पी उत्पन्न हुई, जैसा कि आज यहोवा के गवाहों द्वारा दिए गए भाषण उत्पन्न करते हैं। (१३:४२-५२) अगले सब्त के दिन लगभग सारा शहर यहोवा का वचन सुनने के लिए इकट्ठा हुआ, और इस से यहूदी ईर्ष्या से भर गए। अजी, सिर्फ़ एक ही हफ़्ते में, प्रत्यक्ष रूप से मिशनरियों ने इतने सारे अन्यजातीय लोगों का धर्म-परिवर्तन कराया था, जितना कि यहूदियों ने अपने जीवन भर में नहीं कराए थे! चूँकि यहूदियों ने ईश-निन्दात्मक रूप से पौलुस का खण्डन किया था, अब समय आ चुका था कि आध्यात्मिक प्रकाश कहीं और चमके, और उन्हें बताया गया: ‘जबकि तुम परमेश्वर के वचन को दूर करते हो, और अपने को अनन्त जीवन के योग्य नहीं ठहराते, हम अन्यजातियों की ओर फिरते हैं।’—यशायाह ४९:६.
७. उपद्रव की ओर पौलुस और बरनबास ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
७ अब अन्यजातीय लोग आनन्दित होने लगे, और जितने अनन्त जीवन के लिए सही रीति से प्रवृत्त थे, उन्होंने विश्वास किया। परन्तु, जैसे जैसे यहोवा का वचन देश भर में ले जाया गया, यहूदियों ने कुलीन स्त्रियों को (जो संभवतः अपने पतियों या अन्यों पर दबाव डालतीं) और बड़े लोगों को उकसाया कि वे पौलुस और बरनबास को उनके क्षत्रों के बाहर फेंक दें। लेकिन यह भी मिशनरियों को रोकने में असफल रहा। वे केवल ‘उन के सामने अपने पाँवों की धूल झाड़कर’ इकुनियुम (आधुनिक कॉन्या) को, जो कि गलतिया के रोमी प्रान्त का एक मुख्य नगर है, चल दिए। (लूका ९:५; १०:११) ख़ैर, पिसिदिया के अन्ताकिया में छोड़े गए शिष्यों का क्या हुआ? चूँकि उन्हें विश्वास में स्थिर बनाया गया था, वे “आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।” इस से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ज़रूरी नहीं कि विरोध आध्यात्मिक प्रगति में बाधा डाले।
उपद्रव के बावजूद विश्वास में स्थिर
८. इकुनियुम में सुसमाचार को सफलतापूर्वक सुनाने के फलस्वरूप क्या हुआ?
८ खुद पौलुस और बरनबास उपद्रव के बावजूद विश्वास में स्थिर साबित हुए। (१४:१-७) इकुनियुम की आराधनालय में किए उनके प्रचार की ओर प्रतिक्रिया दिखाकर, कई यहूदी और यूनानी लोग विश्वासी बन गए। जब अविश्वासी यहूदियों ने अन्यजातियों को नए विश्वासियों के ख़िलाफ़ भड़काया, तब इन दो परिश्रम करनेवालों ने परमेश्वर के भरोसे पर हियाव से बातें की, और परमेश्वर ने उन्हें प्रभावशाली चिह्न करने के लिए सामर्थी बनाकर अपना अनुग्रह दिखाया। इस से भीड़ में फूट पड़ गयी, चूँकि कुछ लोग यहूदियों की ओर थे और अन्य लोग प्रेरितों (जिन्हें भेजा गया है) की ओर थे। प्रेरित कायर नहीं थे, पर जब उन्हें पता चला कि उन्हें पत्थरवाह करने का षड्यन्त्र रचा जा रहा है, वे अक्लमन्दी से उस जगह को छोड़कर दक्षिणी गलातिया में एशिया माइनर के एक प्रान्त, लुकाउनिया में सुसमाचार सुनाने के लिए चले गए। विवेकी होकर, हम भी अक़सर उपद्रव के बावजूद सेवकाई में क्रियाशील रह सकते हैं।—मत्ती १०:२३.
९, १०. (अ) लुस्त्रा वासियों ने लँगड़े मनुष्य के स्वस्थ किए जाने की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? (ब) लुस्त्रा में पौलुस और बरनबास ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
९ फिर लुकाउनिया के लुस्त्रा नगर में सुसमाचार सुनाया गया। (१४:८-१८) वहाँ पौलुस ने जन्म ही से लँगड़े मनुष्य को स्वस्थ किया। यह न समझकर कि यहोवा इस चमत्कार के पीछे थे, भीड़ों ने ज़ोर से कहा: “देवता मनुष्यों के रूप में होकर हमारे पास उतर आए हैं!” चूँकि यह लुकाउनिया की भाषा में कहा गया था, बरनबास और पौलुस को नहीं पता था कि क्या हो रहा है। चूँकि पौलुस ने बोलने में नेतृत्त्व लिया, लोगों ने उसे हिरमेस (देवताओं का वाक्पटु दूत) और बरनबास को ज़्यूस, प्रधान यूनानी देवता, माना।
१० ज़्यूस के पुरोहित ने पौलुस और बरनबास के लिए बलिदान चढ़ाने के लिए बैल और फूलमालाएँ भी लायीं। संभवतः सामान्य रूप से समझे जानेवाली यूनानी भाषा में बोलते हुए या एक दुभाषिया का उपयोग करके, मेहमानों ने जल्दी से समझा दिया कि वे भी इन्सान थे, जिनकी कमज़ोरियाँ थीं और वे सुसमाचार को इसलिए सुना रहे थे कि लोग इन “व्यर्थ वस्तुओं” (निर्जीव देवताओं, या मूर्तियों) से फिरकर जीवते परमेश्वर की ओर आ जाएँ। (१ राजा १६:१३; भजन ११५:३-९; १४६:६) जी हाँ, परमेश्वर ने पहले सब जातियों को (लेकिन इब्रानियों को नहीं) अपने अपने मार्गों में चलने दिया, हालाँकि उन्होंने अपने आप को अपने अस्तित्व और भलाई के बारे में बे-गवाह न छोड़ा, किन्तु ‘उन्हें वर्षा तथा फलवन्त ऋतु देकर उनके मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।’ (भजन १४७:८) ऐसी तर्कणा के बावजूद, बरनबास और पौलुस ने मुश्किल से भीड़ को उनके लिए बलिदान चढ़ाने से रोक दिया। फिर भी, मिशनरियों ने देवताओं के तौर से ना समादर स्वीकार किया, और ना ही उन्होंने ऐसे अधिकार का प्रयोग उस क्षेत्र में मसीहियत स्थापित करने के लिए किया। एक उत्तम मिसाल, ख़ास तौर से अगर हम उन बातों के लिए अत्याधिक प्रशंसा की अभिलाषा करते हैं जो यहोवा हमें उनकी सेवा में पूरा करने देते हैं!
११. हम इस कथन से क्या सीख सकते हैं: “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा”?
११ अचानक, उपद्रव ने अपना अप्रिय फण ऊँचा किया। (१४:१९-२८) यह कैसे? पिसिदिया के अन्ताकिया और इकुनियुम से आए यहुदियों द्वारा क़ायल किए जाकर, भीड़ों ने पौलुस को पत्थरवाह किया और मरा समझकर वे उसे नगर के बाहर घसीट ले गए। (२ कुरिन्थियों ११:२४, २५) लेकिन जब शिष्य उसकी चारों ओर आ खड़े हुए, तब वह उठा और, संभवतः अन्धेरे की आड़ में, किसी के देखे बग़ैर ही नगर में गया। दूसरे दिन, वह और बरनबास दिरबे को चले गए, जहाँ काफ़ी लोग शिष्य बन गए। लुस्त्रा, इकुनियुम और अन्ताकिया को पुनः भेंट करने पर, मिशनरियों ने शिष्यों का बल बढ़ाया और उन्हें विश्वास में रहने के लिए प्रोत्साहित किया, और कहा: “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” मसीही होने के नाते, हमें भी क्लेश उठाने की अपेक्षा करनी चाहिए और हमारे विश्वास में सामंजस्य करके उनसे बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। (२ तीमुथियुस ३:१२) उस समय, प्राचीनों को उन मण्डलियों में नियुक्त किया गया जिनको पौलुस ने गलतियों का पत्र लिखा था।
१२. जब पौलुस की पहली मिशनरी यात्रा समाप्त हुई, तब उन दो मिशनरियों ने क्या किया?
१२ पिसिदिया से होकर, पौलुस और बरनबास ने पिरगा में वचन सुनाया, जो कि पंफूलिया का एक प्रमुख नगर था। कुछ समय बाद, वे सीरिया के अन्ताकिया में लौट आए। अब चूँकि पौलुस की पहली यात्रा समाप्त हो चुकी थी, इन दो मिशनरियों ने मण्डली को बताया कि ‘परमेश्वर ने उनके साथ होकर कैसे बड़े बड़े काम किए और अन्यजातियों के लिए विश्वास का द्वार खोल दिया।’ अन्ताकिया में शिष्यों के साथ काफ़ी समय बिताया गया, और बेशक इस से उन्हें विश्वास में स्थिर बनाने में काफ़ी मदद हुई। आज सफ़री अध्यक्षों द्वारा की गयी भेंट से समान आध्यात्मिक असर होता है।
एक अत्यावश्यक प्रश्न का समाधान होता है
१३. यदि मसीहियत को इब्रानी और ग़ैर-इब्रानी गुटों में विभाजित नहीं होना था, तो क्या ज़रूरी था?
१३ विश्वास में स्थिरता पाने के लिए विचार में एकता कायम होना ज़रूरी था। (१ कुरिन्थियों १:१०) यदि मसीहियत को इब्रानी और ग़ैर-इब्रानी गुटों में विभाजित नहीं होना था, तो शासी निकाय का यह निश्चित करना ज़रूरी था कि क्या परमेश्वर के संगठन की ओर बहनेवाले अन्तयजातियों को मूसा की व्यवस्था का पालन करके ख़तना करवाना था या नहीं। (१५:१-५) यहूदिया से कुछ मनुष्य पहले से ही सीरियाई अन्ताकिया में जाकर वहाँ के अन्यजातीय विश्वासियों को सिखाने लगे थे कि जब तक उनका ख़तना न हो जाता तब तक वे उद्धार नहीं पा सकते थे। (निर्गमन १२:४८) इसलिए, पौलुस, बरनबास और अन्यों को यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों के पास भेज दिया गया। वहाँ भी, उन विश्वासियों ने, जो किसी समय विधिवादी फ़रीसी रहे थे, आग्रह किया कि अन्यजातियों को ख़तना करवाना और व्यवस्था का पालन करना ही पड़ता।
१४. (अ) हालाँकि यरूशलेम की सभा में बहस हुई, कौनसा उत्तम मिसाल पेश किया गया? (ब) उस अवसर पर पतरस की तर्कणा का सार क्या था?
१४ परमेश्वर की इच्छा क्या है, यह जानने के लिए एक सभा आयोजित कर दी गयी। (१५:६-११) जी हाँ, बहस हुई, लेकिन कोई झगड़ा नहीं हुआ जब दृढ़ विश्वास करनेवाले मनुष्यों ने अपने मत प्रकट किए—आज प्राचीनों के लिए एक उत्तम उदाहरण! कुछ समय बाद पतरस ने कहा: ‘परमेश्वर ने चुन लिया कि मेरे मुँह से अन्यजाति [जैसे कि कुरनेलियुस] सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास करें। उन्होंने उनको पवित्र आत्मा देकर उनकी गवाही दी और हम में और उन में कुछ भेद न रखा।’ [प्रेरितों १०:४४-४७] तो अब तुम चेलों की गरदन पर ऐसा जूआ [व्यवस्था का पालन करने की बाध्यता] रखकर, जिसे न हमारे बापदादे और न हम उठा सके, परमेश्वर की परीक्षा क्यों करते हो? हम [शरीर के हिसाब से यहूदी] तो विश्वास करते हैं कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे, उसी रीति से हम भी पाएँगे।’ परमेश्वर के इन ख़तना-रहित अन्यजातियों को स्वीकार करने से यह स्पष्ट हुआ कि ख़तना और व्यवस्था का पालन करना उद्धार के लिए आवश्यक न था।—गलतियों ५:१.
१५. याकूब ने कौनसे मुद्दों पर बातें की, और उसने अन्यजातीय मसीहियों को क्या लिखने की सलाह दी?
१५ जब पतरस ने समाप्त किया तब मण्डली शान्त हो गयी, लेकिन और भी कुछ कहना बाक़ी था। (१५:१२-२१) बरनबास और पौलुस ने उन चिह्नों के बारे में बताया जो परमेश्वर ने उनके द्वारा अन्यजातियों के बीच किए थे। फिर सभापति, यीशु के सौतेले भाई याकूब ने कहा: ‘शमौन [पतरस का इब्रानी नाम] ने बताया, कि परमेश्वर ने अन्यजातियों पर कैसी कृपादृष्टि की, कि उन में से अपने नाम के लिए एक लोग बना ले।’ याकूब ने संकेत किया कि पूर्वबतलाया गया ‘दाऊद के डेरे’ का पुनर्निमाण [दाऊद के वंश में राजाधिकार का पुनःस्थापन] किस तरह यीशु के, दोनों यहूदियों और अन्यजातियों में से शिष्यों (राज्य के वारिस) के एकत्र किए जाने में पूरा हो रहा था। (आमोस ९:११, १२, सेप्टुआजिन्ट; रोमियों ८:१७) चूँकि यही परमेश्वर का उद्देश्य था, शिष्यों को यह स्वीकार करना चाहिए। याकूब ने अन्यजातीय मसीहियों को लिखने की सलाह दी कि वे (१) मूरतों के बलि किए हुओं से, (२) व्यभिचार से और (३) लहू से और गला घोंटे हुओं के माँस से परे रहें। ये निषेधाज्ञा मूसा के लेखों में थे जो कि हर सब्त के दिन आराधनालयों में पढ़े जाते थे।—उत्पत्ति ९:३, ४; १२:१५-१७; ३५:२, ४.
१६. पहली-सदी के शासी निकाय की चिट्ठी कौनसे तीन मुद्दों पर मार्गदर्शन देती है जो आज भी लागू हैं?
१६ शासी निकाय ने अब सीरियाई अन्ताकिया और किलिकिया के रहनेवाले अन्यजातीय मसीहियों को एक चिट्ठी भेजी। (१५:२२-३५) पवित्र आत्मा और चिट्ठी लिखनेवालों ने मूरतों के बलि किए हुओं से, खून (जो कुछ लोग नियमित रूप से खाते थे); खून बहाए बग़ैर गला घोंटे हुओं के माँस से (कई मूर्तिपूजक ऐसे माँस को एक स्वादिष्ट खाद्य मानते थे); और व्यभिचार से (यूनानी शब्द, पॉर्निʹया, जो धर्मशास्त्रीय विवाह के बाहर के अवैध यौन-संबंध को सूचित करता है) परहेज़ करने का आह्वान किया। ऐसे परहेज़ से, वे आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होते, उसी तरह जैसे यहोवा के गवाह अब हैं, इसलिए कि वे “इन आवश्यक बातों” के अनुसार करते हैं। “तुम्हारा भला हो,” ये शब्द केवल “विदाई” के शब्द कहने के बराबर थे, और इस से यह सोचना नहीं चाहिए कि ये आवश्यक बातें मुख्यतः स्वास्थ्य उपाय से संबंधित थे। जब यह चिट्ठी अन्ताकिया में पढ़ी गयी, तब मण्डली ने उस से मिले प्रोत्साहन के कारण आनन्द किया। उस समय, अन्ताकिया में परमेश्वर के लोग पौलुस, सीलास, बरनबास और अन्यों के प्रोत्साहक शब्दों से भी विश्वास में स्थिर हुए। हम भी संगी विश्वासियों को प्रोत्साहित करने और उन्हें बढ़ाने के तरीक़ों को खोजें।
दूसरी मिशनरी यात्रा शुरु होती है
१७. (अ) जब दूसरी मिशनरी यात्रा का प्रस्ताव हुआ, तब कौनसी समस्या उत्पन्न हुई? (ब) पौलुस और बरनबास ने अपने झगड़े से कैसे निपट लिया?
१७ जब दूसरी मिशनरी यात्रा का प्रस्ताव हुआ तब एक समस्या प्रस्तुत हुई। (१५:३६-४१) पौलुस ने सुझाया कि वह और बरनबास कुप्रुस और एशिया माइनर की मण्डलियों को पुनःभेंट करें। बरनबास सहमत हुआ लेकिन वह अपने चचेरे भाई मरकुस को साथ लेना चाहता था। पौलुस असहमत था इसलिए कि मरकुस उन्हें पंफूलिया में छोड़कर चला गया था। उस पर, “टंटा हुआ।” परन्तु न पौलुस ने और ना ही बरनबास ने दूसरे प्राचीनों को या शासी निकाय को अपने निजी मामले में शामिल करके व्यक्तिगत दोषनिवारण करने की कोशिश की। क्या ही उत्तम मिसाल!
१८. पौलुस और बरनबास के अलग होने के फलस्वरूप क्या हुआ, और हम इस प्रसंग से किस तरह लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
१८ फिर भी, इस झगड़े के कारण वे एक दूसरे से अलग हुए। बरनबास मरकुस को अपने साथ कुप्रुस ले गया। पौलुस, अपने साथी के तौर से सीलास के साथ “कलीसियाओं को स्थिर करता हुआ, सीरिया और किलिकिया से होते हुए निकला।” शायद बरनबास अपने पारिवारिक रिश्तों से प्रभावित हुआ होगा, लेकिन उसे पौलुस की प्रेरिताई को, और “एक चुने हुए पात्र” के तौर से उसके चुनाव को मान लेना चाहिए था। (प्रेरितों ९:१५) और हमारा क्या? इस प्रसंग से हमारे मन में ईश-तंत्रीय अधिकार को पहचानने और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को पूर्ण रूप से सहयोग देने की आवश्यकता बैठनी चाहिए!—मत्ती २४:४५-४७.
शान्ति में प्रगति
१९. आधुनिक मसीही तीमुथियुस में कौनसा मिसाल पाते हैं?
१९ इस झगड़े को कलीसिया की शान्ति भंग करने नहीं दिया गया। परमेश्वर के लोग विश्वास में सतत स्थिर किए गए। (१६:१-५) पौलुस और सीलास दिरबे से होकर लुस्त्रा को गए। वहाँ तीमुथियुस रहता था, जो किसी विश्वासी यहूदिन, यूनीके और उसके अविश्वासी पति का पुत्र था। तीमुथियुस जवान था, इसलिए कि १८ अथवा २० वर्ष बाद भी, उसे बताया गया: “कोई तेरी जवानी को तुच्छ न समझने पाए।” (१ तीमुथियुस ४:१२) चूँकि वह “लुस्त्रा और [लगभग १८ मील दूर] इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था,” वह अपनी बढ़िया सेवकाई और ईश्वरीय गुणों के लिए सुप्रसिद्ध था। मसीही युवजन को आज यहोवा की मदद माँगनी चाहिए कि वे भी समान सुनाम विकसित करें। पौलुस ने तीमुथियुस का ख़तना किया, इसलिए कि वे यहूदियों के घरों और आराधनालयों में जानेवाले थे, जो कि जानते थे कि तीमुथियुस का पिता अन्यजातीय व्यक्ति था, और प्रेरित नहीं चाहता था कि कोई भी बात उन्हें यहूदी पुरुषों और स्त्रियों को मिलने से रोकने पाए, जिन्हें मसीहा के बारे में जानना ज़रूरी था। बाइबल सिद्धान्तों का उल्लंघन किए बग़ैर, आज यहोवा के गवाह भी सुसमाचार को हर प्रकार के लोगों के लिए स्वीकार्य बनाने के लिए अपने समर्थ के अनुसार सब कुछ करते हैं।—१ कुरिन्थियों ९:१९-२३.
२०. पहली-सदी के शासी निकाय की चिट्ठी के अनुसार करने का क्या असर रहा, और आप क्या सोचते है, इस से हम पर कैसा प्रभाव होना चाहिए?
२० एक सहायक के तौर से तीमुथियुस के साथ, पौलुस और सीलास ने शिष्यों के पालन के लिए शासी निकाय की आज्ञाएँ सौंप दी। और नतीजा क्या रहा? प्रकट रूप से सीरिया, किलिकिया और गलतिया का उल्लेख करते हुए, लूका ने लिखा: “कलीसिया विश्वास में स्थिर होती गयी और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गयी।” जी हाँ, शासी निकाय की चिट्ठी के अनुसार करने के फलस्वरूप एकता और आध्यात्मिक समृद्धि कायम हुई। हमारे संकटपूर्ण समय के लिए, जब यहोवा के लोगों को विश्वास में एकीकृत और स्थिर रहने की ज़रूरत है, यह क्या ही बढ़िया मिसाल है!
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ उपद्रव के प्रति पौलुस और बरनबास ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
◻ इस कथन से क्या सीखा जा सकता है: ““हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा”?
◻ पहली-सदी के शासी निकाय द्वारा भेजी गयी चिट्ठी में लिखे तीन मुद्दों से हम कौनसा उपदेश पाते हैं?
◻ यहोवा के पहली-सदी के गवाह जिन कारणों से विश्वास में स्थिर हुए, वे आज हम पर कैसे लागू होते हैं?