क्या आप हमारी आध्यात्मिक विरासत की कदर करते हैं?
“परमेश्वर ने . . . गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया कि उनके बीच से वे लोग चुन ले जो परमेश्वर के नाम से पहचाने जाएँ।”—प्रेषि. 15:14.
1, 2. (क) ‘दाविद का डेरा’ क्या था? वह दोबारा कब खड़ा किया जाता? (ख) आज कौन एक साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं?
ईसवी सन् 49 में यरूशलेम में शासी निकाय की एक खास सभा हुई। उस सभा के दौरान चेले याकूब ने कहा, “पतरस ने पूरा ब्यौरा देकर बताया है कि परमेश्वर ने कैसे पहली बार गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया कि उनके बीच से वे लोग चुन ले जो परमेश्वर के नाम से पहचाने जाएँ। और इस बात से भविष्यवक्ताओं के वचन भी मेल खाते हैं, जैसा कि लिखा है: ‘इन बातों के बाद मैं वापस आऊँगा और दाविद का गिरा हुआ डेरा फिर से खड़ा करूँगा; और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा और उसे दोबारा उठाऊँगा, ताकि उसके बचे हुए लोग जी-जान से यहोवा की खोज करें और उनके साथ वे सारे गैर-यहूदी भी, जिनके बारे में यहोवा, जो ये काम करता है, कहता है, ये मेरे नाम से पुकारे जाते हैं। इन बातों की जानकारी उसे सदियों से थी।’”—प्रेषि. 15:13-18.
2 ‘दाविद का डेरा [या, शाही दरबार]’ उस वक्त गिरा जब राजा सिदकिय्याह को राजगद्दी से हटाया गया। (आमो. 9:11) लेकिन यह भविष्यवाणी कहती है कि “डेरा” दोबारा खड़ा किया जाएगा और इस बार दाविद के वंशज यीशु को हमेशा-हमेशा के लिए राजा घोषित किया जाएगा। (यहे. 21:27; प्रेषि. 2:29-36) याकूब ने उस ऐतिहासिक सभा में यह भी बताया कि आमोस की भविष्यवाणी के मुताबिक, यहूदी और गैर-यहूदी दोनों को यीशु के साथ स्वर्ग में राज करने के लिए अभिषिक्त किया जा रहा है। आज धरती पर बचे हुए अभिषिक्त मसीही और यीशु की लाखों “दूसरी भेड़ें” एक साथ मिलकर यहोवा के सेवकों के नाते बाइबल की सच्चाई का ऐलान कर रहे हैं।—यूह. 10:16.
यहोवा के लोगों के सामने आयी चुनौती
3, 4. बैबिलोन में यहूदियों को परमेश्वर के वफादार रहने में किस बात से मदद मिली?
3 जब यहूदियों को बंदी बनाकर बैबिलोन ले जाया गया, तो यह साफ ज़ाहिर हो गया कि ‘दाविद का डेरा’ गिर गया है। बैबिलोन में परमेश्वर के लोग ईसा पूर्व 607 से 537 तक यानी 70 साल बंधुआई में रहे। वहाँ झूठा धर्म चारों तरफ फैला हुआ था, ऐसे में भी परमेश्वर के वफादार रहने में उन्हें किस बात से मदद मिली? उसी बात से जिसकी मदद से आज यहोवा के लोग शैतान की दुनिया में परमेश्वर के वफादार रह पाते हैं। (1 यूह. 5:19) वह है आध्यात्मिक विरासत जिसकी बदौलत यहोवा के सेवक वफादार बने रह पाते हैं।
4 आज हमारी आध्यात्मिक विरासत में हमारे पास परमेश्वर का लिखित वचन है। बैबिलोन में यहूदी बंधुओं के पास हालाँकि पूरी बाइबल नहीं थी, मगर उन्हें मूसा के कानून का और उसमें दी दस आज्ञाओं का ज्ञान ज़रूर था। वे ‘सिय्योन के गीत’ जानते थे और उन्हें बहुत-से नीतिवचन मुँह-ज़बानी याद थे। इसके अलावा, वे बीते ज़माने के परमेश्वर के सेवकों के बारे में भी जानते थे कि कैसे उन्होंने वफादारी से सेवा की है। जब इन यहूदी बंधुओं ने सिय्योन को याद किया तो वे रो पड़े। वे अब भी यहोवा को भूले नहीं थे। (भजन 137:1-6 पढ़िए।) यही वजह है कि बैबिलोन में रहते हुए भी वे यहोवा के करीब बने रहे, जहाँ झूठे धर्म की शिक्षाओं और कामों की भरमार थी।
त्रिएक की शिक्षा नयी नहीं
5. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि प्राचीन बैबिलोन और मिस्र में त्रिदेव या त्रिएक की शिक्षा पायी जाती थी?
5 बैबिलोन में झूठी उपासना का एक अहम हिस्सा था, त्रिदेव या त्रिएक की शिक्षा। मिसाल के लिए, एक त्रिदेव इन तीन देवी-देवताओं से मिलकर बना था, सिन (चंद्र-देवता), शामाश (सूर्य-देवता) और इशतर (प्रजनन शक्ति और युद्ध की देवी)। प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि एक देवता, एक देवी से विवाहित है और उनके एक बेटा है। इन तीनों से मिलकर एक त्रिदेव बनता था, लेकिन इन्हें समान दर्जा नहीं दिया जाता था। मिस्र का एक त्रिदेव या त्रिएक ओसिरिस देवता, आइसिस देवी और उनके बेटे होरस से मिलकर बना था।
6. त्रिएक की शिक्षा क्या है? हमें इस झूठी शिक्षा के जाल में फँसने से कैसे बचाया गया है?
6 आज ईसाईजगत भी त्रिएक की शिक्षा मानता है। पादरी कहते हैं कि पिता, बेटा और पवित्र शक्ति एक ही परमेश्वर हैं। मगर यह शिक्षा पूरे विश्व पर हुकूमत करने के यहोवा के अधिकार को चुनौती देती है। इसके मुताबिक वह त्रिएक का एक हिस्सा है, यानी वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं है, उसके पास सिर्फ एक-तिहाई शक्ति है। मगर यहोवा के लोगों को इस झूठी शिक्षा के जाल में फँसने से बचाया गया है। हमने बाइबल से सीखा है, “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” (व्यव. 6:4) यीशु ने यही बात दोहरायी और सभी सच्चे मसीही उसकी बात से सहमत हैं।—मर. 12:29.
7. जो शख्स त्रिएक की शिक्षा पर विश्वास करता है, वह अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा क्यों नहीं ले सकता?
7 त्रिएक की शिक्षा यीशु की उस आज्ञा से बिलकुल मेल नहीं खाती जो उसने अपने चेलों को दी थी कि “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:19) इसका मतलब अगर एक शख्स सच्चे मसीही और यहोवा के साक्षी के तौर पर बपतिस्मा लेना चाहता है तो ज़रूरी है कि वह कबूल करे कि पिता यहोवा परमप्रधान है। और यीशु परमेश्वर का बेटा है जिसने धरती पर आकर हमारे लिए फिरौती बलिदान दिया। साथ ही, बपतिस्मा लेनेवाले उम्मीदवार को यह भी कबूल करना होगा कि पवित्र शक्ति परमेश्वर की सक्रिय शक्ति है, न कि त्रिएक का एक हिस्सा। (उत्प. 1:2) जो शख्स त्रिएक की शिक्षा पर विश्वास करता है, वह अगर अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करता भी है, तो उसका समर्पण सच्चा नहीं होगा और इसलिए वह बपतिस्मा नहीं ले सकता। हम अपनी आध्यात्मिक विरासत के कितने शुक्रगुज़ार हैं! इसकी बदौलत हम परमेश्वर की निंदा करनेवाली इस शिक्षा में फँसने से बच पाए हैं!
जादू-टोने की शिक्षा
8. बैबिलोन के लोग देवी-देवताओं और दुष्ट स्वर्गदूतों के बारे में क्या विश्वास रखते थे?
8 बैबिलोन के लोग न सिर्फ अपने देवी-देवताओं में, बल्कि दुष्ट स्वर्गदूतों और जादू-टोने में भी विश्वास रखते थे। दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया कहती है, ‘बैबिलोन में देवी-देवताओं के बाद दूसरा दर्जा दुष्ट-स्वर्गदूतों को दिया जाता था। माना जाता था कि दुष्ट-स्वर्गदूतों में इंसानों को मानसिक और शारीरिक रूप से तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित करने की शक्ति है। उनके धर्म के ज़्यादातर नियम और अनुष्ठान इन दुष्ट स्वर्गदूतों से बचाव के बारे में होते थे। इसलिए जगह-जगह लोग मदद के लिए अपने देवी-देवताओं से प्रार्थना करते थे।’
9. (क) बैबिलोन की बंधुआई में बुहत-से यहूदी कैसे झूठी शिक्षाएँ मानने लगे? (ख) क्या बात हमें दुष्ट स्वर्गदूतों से संपर्क करने के खतरे से बचाती है?
9 बैबिलोन की बंधुआई में बहुत-से यहूदी झूठी शिक्षाएँ मानने लगे। आगे चलकर जैसे-जैसे यूनानी लोगों की शिक्षाएँ ज़ोर पकड़ने लगीं, बहुत-से यहूदी यह मानने लगे कि दुष्ट स्वर्गदूत अच्छे भी हो सकते हैं। नतीजा, वे दुष्ट स्वर्गदूतों के शिकंजे में आने लगे। लेकिन आज हम सच्चे मसीही दुष्ट स्वर्गदूतों से संपर्क नहीं करते। हम इस खतरे से इसलिए बच पाते हैं क्योंकि हमारे पास आध्यात्मिक विरासत है, हम जानते हैं कि बैबिलोन में जादू-टोने के जो काम किए जाते थे, उनकी परमेश्वर ने निंदा की। (यशा. 47:1, 12-15) जी हाँ, हम भी जादू-टोना या भूत-विद्या के बारे में वही नज़रिया रखते हैं जो परमेश्वर का है।—व्यवस्थाविवरण 18:10-12; प्रकाशितवाक्य 21:8 पढ़िए।
10. महानगरी बैबिलोन के कामों और शिक्षाओं के बारे में क्या कहा जा सकता है?
10 बैबिलोन के लोगों की तरह, आज भी झूठे धर्म को माननेवाले जादू-टोने के काम करते हैं। तभी पूरी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म को बाइबल में महानगरी बैबिलोन कहा गया है। (प्रका. 18:21-24) ये झूठे धर्म वाकई पुराने ज़माने के बैबिलोन के धर्म की तरह हैं, क्योंकि बैबिलोन से ही झूठी शिक्षाओं और बुरे कामों की शुरूआत हुई। भूत-विद्या, मूर्तिपूजा और दूसरे पापों से भरी हुई महानगरी बैबिलोन का जल्द ही नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 18:1-5 पढ़िए।
11. हमारी किताबों-पत्रिकाओं में जादू-टोने के बारे में क्या चेतावनियाँ दी गयी हैं?
11 यहोवा ने कहा, “रहस्यमय शक्ति का काम मैं बरदाश्त नहीं कर सकता।” (यशा. 1:13, एन. डब्ल्यू.) जादू-टोने के काम उन्नीसवीं सदी में ज़ोर-शोर से हो रहे थे। इसलिए मई 1885 की ज़ायन्स वॉच टावर में कहा गया था, “लोगों का यह विश्वास कि मरे हुए किसी दूसरे लोक में जीवित हैं कोई नयी बात नहीं है। पुराने ज़माने में भी, कई धर्मों में यह शिक्षा पायी जाती थी और सभी संस्कृतियों में ऐसा सिखाया जाता था।” उसमें यह भी बताया गया था कि दुष्ट स्वर्गदूत यह दिखावा करते हैं कि वे दरअसल मरे हुए लोग हैं जो धरती पर जीवित लोगों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं। नतीजा, दुष्ट स्वर्गदूतों ने न सिर्फ बहुतों की सोच भ्रष्ट की है, बल्कि उनके कामों पर भी असर किया है। बहुत साल पहले छपी पुस्तिका शास्त्र जादू-टोने के बारे में क्या कहता है? (अँग्रेज़ी) में भी इस तरह की चेतावनी दी गयी थी, ठीक जैसे हाल ही में छपी किताबों-पत्रिकाओं में बताया गया है।
क्या मरे हुए किसी दूसरी दुनिया में तड़प रहे हैं?
12. परमेश्वर की प्रेरणा से सुलैमान ने मरे हुओं के बारे में क्या कहा?
12 इसका जवाब “वे सभी” दे सकते हैं “जो सच्चाई को जान गए हैं।” (2 यूह. 1) बेशक हम सुलैमान के इन शब्दों से सहमत हैं, “जीवता कुत्ता मरे हुए सिंह से बढ़कर है। क्योंकि जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते . . . जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना, क्योंकि अधोलोक [इंसान की कब्र] में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धि है।”—सभो. 9:4, 5, 10.
13. यहूदियों ने यूनान के धर्म और संस्कृति से कौन-सी शिक्षा अपनायी थी?
13 यहोवा ने यहूदियों को इस बारे में सच्चाई बतायी थी कि मरने पर असल में क्या होता है। फिर भी जब यूनानी साम्राज्य, सिकंदर महान के चार सेनापतियों में बँटा और यूनानियों ने यहूदा और सीरिया पर कब्ज़ा किया, तब यूनानी लोग यहूदियों पर अपना धर्म और संस्कृति मानने का दबाव डालने लगे। नतीजा, यहूदी यह झूठी शिक्षा मानने लगे कि इंसान के अंदर साए जैसी कोई चीज़ होती है जो मौत के बाद भी ज़िंदा रहती है। वे यह भी मानने लगे कि कोई ऐसी जगह होती है, जहाँ मरे हुए तड़पाए जाते हैं। ऐसा नहीं कि इस शिक्षा की शुरूआत यूनानियों ने की थी। बैबिलोन और अश्शूर के धर्म (अँग्रेजी) किताब कहती है कि बैबिलोन के लोगों का मानना था, ‘पाताल लोक ऐसी जगह है जो बहुत डरावनी और खौफनाक है। वहाँ देवी-देवता और दुष्ट स्वर्गदूत राज करते हैं, जिनके पास ज़बरदस्त शक्ति है।’ जी हाँ, बैबिलोन के लोगों का भी मानना था कि इंसान के शरीर का कुछ अंश मौत के बाद भी ज़िंदा रहता है।
14. अय्यूब और अब्राहम मौत और दोबारा जी उठाए जाने के बारे में क्या जानते थे?
14 नेक इंसान अय्यूब के पास बाइबल नहीं थी, फिर भी वह मौत के बारे में सच्चाई जानता था। उसे इस बात का भी एहसास था कि यहोवा प्यार करनेवाला परमेश्वर है और वह अय्यूब को दोबारा ज़िंदा करने के लिए बेताब रहेगा। (अय्यू. 14:13-15) अब्राहम को भी विश्वास था कि परमेश्वर मरे हुओं को दोबारा जी उठाएगा। (इब्रानियों 11:17-19 पढ़िए।) ज़ाहिर है परमेश्वर का भय रखनेवाले ये लोग यह शिक्षा नहीं मानते थे कि मरने के बाद इंसान का कोई अंश ज़िंदा रहता है। क्योंकि जो मर नहीं सकता उसे दोबारा ज़िंदा करने का सवाल ही नहीं उठता। बेशक परमेश्वर की पवित्र शक्ति की मदद से ही अय्यूब और अब्राहम समझ पाए कि मरने पर क्या होता है। साथ ही, वे पुनरुत्थान में भी विश्वास कर पाए। ये सच्चाइयाँ भी हमारी विरासत का हिस्सा हैं।
“फिरौती के ज़रिए रिहाई”—बेहद ज़रूरी
15, 16. हमें पाप और मौत से कैसे छुटकारा दिलाया गया है?
15 हम परमेश्वर के कितने एहसानमंद हैं कि उसने हमें उस इंतज़ाम के बारे में भी सच्चाई बतायी है जिसके ज़रिए उसने हमें आदम से मिले पाप और मौत से छुड़ाया है। (रोमि. 5:12) हम जानते हैं कि यीशु ‘सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया था और इसलिए आया था कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।’ (मर. 10:45) हमें “उस फिरौती के ज़रिए रिहाई” के बारे में जानकर कितनी खुशी होती है, “जो मसीह यीशु ने चुकायी” है!—रोमि. 3:22-24.
16 पहली सदी के यहूदियों और गैर-यहूदियों को अपने पापों के लिए पश्चाताप करने और यीशु के फिरौती बलिदान पर विश्वास करने की ज़रूरत थी। ऐसा करने पर ही उन्हें माफी मिल सकती थी। यही बात आज हम पर लागू होती है। (यूह. 3:16, 36) लेकिन अगर एक इंसान त्रिएक और अमर आत्मा जैसी झूठी शिक्षाएँ मानता है तो वह यीशु की फिरौती से फायदा नहीं पा सकता। मगर हम फिरौती से फायदा पा सकते हैं। क्यों? क्योंकि हम परमेश्वर के “प्यारे बेटे” के बारे में सच्चाई जानते हैं, “जिसके ज़रिए उसने फिरौती देकर हमें छुटकारा दिलाया है, यानी हमारे पापों की माफी दी है।”—कुलु. 1:13, 14.
यहोवा की सेवा में लगे रहिए!
17, 18. हम यहोवा के लोगों के इतिहास के बारे में कहाँ से जान सकते हैं? इस बारे में सीखना हमारे लिए क्यों फायदेमंद है?
17 हमारी आध्यात्मिक विरासत में सच्ची शिक्षाएँ, परमेश्वर के सेवक होने के नाते हमारे अनुभव और परमेश्वर से मिली बहुत-सी आशीषें भी शामिल हैं। दुनिया-भर में हो रहे हमारे शानदार कामों के बारे में दशकों से हमारी इयरबुक में जानकारी छापी जा रही है। वीडियो फेथ इन ऐक्शन, पार्ट 1 और पार्ट 2, साथ ही दूसरे साहित्य जैसे जेहोवाज़ विटनेसेज़—प्रोक्लेमर्स ऑफ गॉड्स किंगडम में हमारे इतिहास के बारे में काफी जानकारी दी गयी है। और अकसर हमारी पत्रिकाओं में भाई-बहनों के दिल छू लेनेवाले अनुभव आते हैं।
18 यहोवा के संगठन के इतिहास के बारे में जानने से हमें फायदा होगा, ठीक जैसे इसराएलियों को इस बात पर गौर करने से फायदा हुआ था कि कैसे परमेश्वर ने उन्हें मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया था। (निर्ग. 12:26, 27) मूसा ने परमेश्वर के बहुत-से हैरतअंगेज़ काम देखे थे, इसीलिए बुज़ुर्ग होने पर उसने इसराएलियों को बढ़ावा दिया, “प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण करो, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षों को विचारो; अपने [पिता] से पूछो, और वह तुम को बताएगा; अपने वृद्ध लोगों से प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे।” (व्यव. 32:7) ‘यहोवा की प्रजा और उसकी चराई की भेड़ों’ के नाते हम खुशी-खुशी उसकी महिमा करते हैं और दूसरों को उसके महान कामों के बारे में बताते हैं। (भज. 79:13) यहोवा के लोगों के इतिहास के बारे में जानने-सीखने से हमें उसकी सेवा में लगे रहने का बढ़ावा मिलेगा।
19. हम आध्यात्मिक रौशनी में चलते हैं इसलिए हमें क्या करना चाहिए?
19 हम इस बात के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम अंधकार में नहीं भटक रहे, बल्कि परमेश्वर की तरफ से मिलनेवाली आध्यात्मिक रौशनी में चल रहे हैं। (नीति. 4:18, 19) तो आइए हम परमेश्वर के वचन का दिल लगाकर अध्ययन करें और पूरे जोश से दूसरों को सच्चाई बताएँ। और हमेशा वही नज़रिया रखें जो भजनहार का था, जिसने सारे जहान के महाराजा और मालिक यहोवा की महिमा करते हुए कहा, “मैं केवल तेरे ही धर्म की चर्चा किया करूंगा। हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं। इसलिये हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भज. 71:16-18.
20. हम किन मसलों से वाकिफ हैं? आप उनके बारे में कैसा महसूस करते हैं?
20 यहोवा के समर्पित लोग होने के नाते हम परमेश्वर की हुकूमत और इंसान की खराई के मसले से अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसलिए हम इस सच्चाई का ऐलान करते हैं कि यहोवा पूरे जहान का महाराजा और मालिक है और वही हमारी भक्ति पाने के योग्य है। (प्रका. 4:11) यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है जिसकी मदद से हम नेकदिल लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं, खेदित मन के लोगों को शांति देते हैं और विलाप करनेवालों को दिलासा देते हैं। (यशा. 61:1, 2) शैतान, परमेश्वर के लोगों और सभी इंसानों पर हुकूमत करने की चाहे लाख कोशिश कर ले, वह कामयाब नहीं होगा। हम अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर करते हैं और करते रहेंगे। हमने ठान लिया है कि हम परमेश्वर के वफादार बने रहेंगे और सारे जहान के महाराजा और मालिक यहोवा की हमेशा-हमेशा महिमा करते रहेंगे।—भजन 26:11; 86:12 पढ़िए।