यहोवा हमारे शासक हैं!
“हमें मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए।”—प्रेरितों के काम ५:२९, न्यू.व.
१, २. जब मनुष्यों की माँगें ईश्वरीय इच्छा के प्रतिकूल होती हैं, तब यहोवा के गवाह कौनसा प्रेरितिक दृष्टिकोण अपनाते हैं?
यहोवा परमेश्वर ने १२ मनुष्यों को एक उच्चन्यायालय के सामने पेश होने दिया था। वह वर्ष सामान्य युग ३३ था, और न्यायालय यहूदी महासभा थी। यीशु मसीह के प्रेरितों की जाँच हो रही थी। सुन लीजिए! ‘हम ने तुम्हें आज्ञा दी थी कि तुम इस नाम से उपदेश न करना,’ यहूदी महायाजक कहता है, ‘लेकिन तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है।’ इस पर पतरस और दूसरे प्रेरित कहते हैं: “हमें मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए।” (प्रेरितों के काम ५:२८, २९, न्यू.व.) तत्त्व में, उन्होंने कहा: “यहोवा हमारे शासक हैं।”
२ जी हाँ, यहोवा, यीशु के सच्चे अनुयायियों के शासक हैं। यह प्रेरितों के काम नाम की बाइबल किताब में स्पष्ट किया गया है, जो “प्रिय वैद्य लूका” ने सा.यु. के लगभग वर्ष ६१ में लिखा। (कुलुस्सियों ४:१४) जब मनुष्यों की माँगें यहोवा की इच्छा के प्रतिकूल होती हैं, तब प्रेरितों के जैसे, आज यहोवा के लोग अपने स्वर्गीय शासक की आज्ञा का पालन करते हैं। लेकिन हम प्रेरितों के काम से और क्या सीख सकते हैं? (हमारा सुझाव है कि आप व्यक्तिगत अभ्यास करते समय किताब के मोटे टाइप के अक्षरों में विशेष रूप से उल्लेख किए गए हिस्सों को पढ़ लें।)
यीशु गवाहों को कार्य सौंपते हैं
३. जब यीशु के अनुयायियों का “पवित्रात्मा में बपतिस्मा” हुआ, तब उनका प्रमुख कार्य क्या था?
३ प्रेरित परमेश्वर के लिए एक दृढ़ स्थिति इसलिए ले सके कि आध्यात्मिक रूप से उनका बल बढ़ाया गया था। यीशु यात्ना खम्भे पर मर गए थे, लेकिन वे जानते थे कि उनका पुनरुत्थान हुआ था। (१:१-५) पूरे ४० दिनों में यीशु ने “अपने आप को . . . जीवित दिखाया” और मूर्त रूप धारण करके राज्य सच्चाइयाँ सिखाते रहे। उन्होंने अपने शिष्यों को यरूशलेम में रुकने के लिए कहा ताकि वे “पवित्रात्मा में” बपतिस्मा पा सकें। प्रचार कार्य तब उनका प्रमुख कार्य होता, जैसा कि यह आज यहोवा के गवाहों के लिए है।—लूका २४:२७, ४९; यूहन्ना २०:१९-२१:२४.
४. जब पवित्र आत्मा यीशु के अनुयायियों पर आती, तब क्या होता?
४ चूँकि अभी तक पवित्र आत्मा में उनका बपतिस्मा नहीं हुआ था, प्रेरितों ने ग़लती से सोचा कि एक पार्थिव शासन रोमी प्रधानता को ख़त्म करता, इसलिए कि उन्होंने पूछा: “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” (१:६-८) तत्त्व में, यीशु ने ‘नहीं’ कहा, इसलिए कि ‘समयों और कालों को जानना उनका काम नहीं’ था। ‘जब पवित्र आत्मा उन पर आती,’ तब वे परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य, न कि एक पार्थिव राज्य के बारे में गवाही देने के लिए समर्थ किए जाते। वे यरूशलेम, यहूदिया और सामरिया, तथा “पृथ्वी की छोर तक” गवाही देते। इन आख़री दिनों में, पवित्र आत्मा की मदद से, यहोवा के गवाह ऐसा ही कार्य एक विश्वव्यापी रूप से कर रहे हैं।
५. यीशु किस तरह से उसी रीति से आ जाते, जिस रीति से गए थे?
५ यीशु ने अभी वह विश्वव्यापी प्रचार कार्य दिया ही था, कि वह आकाश की ओर चढ़ने लगे। उस स्वर्गारोहण की शुरुआत इस प्रकार हुई कि वे अपने शिष्यों से अलग होकर ऊपर की ओर बढ़ने लगे, और बाद में यीशु अपने स्वर्गीय शासक के सामने आए और फिर आत्मिक क्षेत्र की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। (१:९-११) एक बादल ने उन्हें उनकी आँखों से छिपा लिया, जिसके बाद उन्होंने अपने माँसल शरीर की भौतिकता दूर कर दी। दो स्वर्गदूत नज़र आए और उन्होंने कहा कि वह ‘उसी रीति से आएँगे’ जिस रीति से ऊपर ले लिए गए थे। और उसी तरह से हुआ है। सिर्फ़ यीशु के शिष्यों ने उसे जाते देखा, उसी तरह जैसे सिर्फ़ यहोवा के गवाह ही उनकी अदृश्य वापसी पहचान लेते हैं।
यहोवा एक चयन करते हैं
६. यहूदा इस्करियोती के स्थान पर दूसरे व्यक्ति को किस तरह चुना गया?
६ कुछ देर बाद प्रेरित यरूशलेम लौट आए। (१:१२-२६) एक अटारी में (शायद मरकुस की माँ, मरियम के घर में) ११ वफ़ादार प्रेरित यीशु के सौतेले भाइयों, उनके अन्य शिष्यों, और उनकी माता, मरियम के साथ प्रार्थना में लगे थे। (मरकुस ६:३; याकूब १:१) परन्तु कौन यहूदा के “अध्यक्ष पद” को प्राप्त करता? (भजन संहिता १०९:८) लगभग १२० शिष्य मौजूद थे जब परमेश्वर ने यीशु के पकड़नेवाले, यहूदा, के स्थान पर काम करने के लिए एक दूसरे आदमी को चुना, और इस प्रकार प्रेरितों की संख्या को फिर से १२ कर दी। चुने गए आदमी को एक ऐसा व्यक्ति होना था जो यीशु की सेवकाई के समय में एक शिष्य था और जो उनके पुनरुत्थान का गवाह था। बेशक, उस आदमी को यहोवा को अपने शासक के तौर से स्वीकार करना भी आवश्यक था। प्रार्थना होने के बाद, मत्तियाह और यूसुफ बर-सबा के बारे में चिट्ठियाँ डाल दी गयीं। परमेश्वर ने मत्तियाह के नाम पर चिट्ठी निकलवायी।—नीतिवचन १६:३३.
७. (अ) यह किस तरह हुआ कि यहूदा ने “अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया?” (ब) यहूदा किस तरह मरा?
७ यहूदा इस्करियोती ने निश्चय ही यहोवा को अपने शासक के तौर से स्वीकार नहीं किया था। अजी, उसने तो चाँदी के ३० मुहरों के लिए परमेश्वर के पुत्र को पकड़वाया था! यहूदा ने उन पैसों को मुख्य याजकों को लौटा दिया, लेकिन पतरस ने कहा कि उस विश्वासघाती ने “अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया।” यह कैसे? ख़ैर, उसी ने “लोहू का खेत,” जैसा कि इसे कहा गया, ख़रीदने के लिए पैसा और एक कारण भी दे दिया। इसे तथा हिन्नोम की घाटी की दक्षिणी ओर पर एक समतल भूखण्ड को एक ही माना गया है। चूँकि उसके स्वर्गीय पिता के साथ का उसका रिश्ता पूर्ण रूप से तबाह हो चुका था, यहूदा ने “अपने आप को फाँसी दी।” (मत्ती २७:३-१०) शायद रस्सी या पेड़ की डाली टूट गयी, इसलिए वह ‘सिर के बल गिरा, और’ जब वह विषमधार चट्टानों पर गिर पड़ा, तब ‘उसका पेट फट गया।’ हम में से कोई एक झूठा भाई न हों!
पवित्र आत्मा से भर गए!
८. यीशु के शिष्यों का बपतिस्मा पवित्र आत्मा में कब हुआ, और इसका परिणाम क्या था?
८ उस प्रतिज्ञात बपतिस्मा के बारे में क्या, जो पवित्र आत्मा में होनेवाला था? यह सामान्य युग के वर्ष ३३ में पिन्तेकुस्त के रोज़ हुआ, यीशु के स्वर्गारोहण के दस दिन बाद। (२:१-४) वह बपतिस्मा कितनी रोमांचकारी घटना थी! उस दृश्य की कल्पना करें। उस अटारी में क़रीब १२० शिष्य मौजूद थे, जब ‘एकाएक आकाश से बड़ी तेज़ हवा की सी सनसनाहट की आवाज़ हुई, और उस से सारा घर भर गया।’ यह हवा न थी, लेकिन इसकी आवाज़ उसके जैसे थी। एक “आग की सी” जीभ प्रत्येक शिष्य और प्रेरित के सिर पर बैठ गयी। “वे सब पवित्र आत्मा से भर गए और . . . वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” जब वह बपतिस्मा हुआ, वह पवित्र आत्मा से भी उत्पन्न हुए, अभिषिक्त और एक आत्मिक विरासत के प्रमाणस्वरूप उन पर मुहर लगायी गयी थी।—यूहन्ना ३:३, ५; २ कुरिन्थियों १:२१, २२; १ यूहन्ना २:२०.
९. आत्मा से भरे शिष्यों ने किस के बारे में बताया?
९ इस घटना से ‘आकाश के नीचे की हर एक जाति में से’ यहूदी और यहूदी मत धारण करनेवाले, जो यरूशलेम में रहते थे, प्रभावित हुए। (२:५-१३) अचम्भित होकर, उन्होंने पूछा: ‘हम में से हर एक किस तरह अपनी अपनी जन्म भूमि की भाषा सुनते हैं?’ शायद ये मेदी (यहूदिया के पूर्व), फ्रूगिया (एशिया माइनर में), और रोम (यूरोप में) जैसी जगहों की भाषाएँ होंगी। जब शिष्यों ने विविध भाषाओं में “परमेश्वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में बताया, तब अनेक सुननेवाले चकित हुए, लेकिन हँसी उड़ानेवालों ने सुझाया कि वे नशे में थे।
पतरस एक उत्तेजक गवाही देता है
१०. सा.यु. के वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त के रोज़ हुई घटना से कौनसी भविष्यद्वाणी पूरी हुई, और क्या इसकी कोई आधुनिक अनुरूपता है?
१० पतरस ने यह बताकर गवाही देना शुरू किया कि नशे में होने के लिए सुबह के नौ बजे तो बहुत ही जल्दी था। (२:१४-२१) उलटा, यह घटना परमेश्वर की उस प्रतिज्ञा की पूर्ति थी, कि वह अपने लोगों पर पवित्र आत्मा बहाएँगे। परमेश्वर ने पतरस को हमारे समय की ओर संकेत करने के लिए ये शब्द, “अन्त के दिनों में,” और “वे भविष्यद्वाणी करेंगे,” जोड़ने के लिए प्रेरित किया। (योएल २:२८-३२) यहोवा के बड़े दिन से पहले वह आकाश में अद्भुत काम और पृथ्वी पर चिह्न देते, और सिर्फ़ वही लोगों को बचाया जाता जो विश्वास से उनका नाम लेंगे। अभिषिक्त लोगों पर पवित्र आत्मा का उसी तरह से बहाया जाना, उन्हें बड़ी स्फूर्ति और कार्यकुशलता से “भविष्यद्वाणी कर” सकने के लिए समर्थ किया है।
११. यीशु के संबंध में, यहूदियों ने और परमेश्वर ने क्या किया?
११ पतरस ने फिर मसीहा की पहचान दी। (२:२२-२८) परमेश्वर ने यीशु को सामर्थ के काम, चिह्न और अद्भुत काम करने के लिए सामर्थ बनाने के द्वारा उनके मसीहापन को अनुप्रमाणित किया। (इब्रानियों २:३, ४) लेकिन यहूदियों ने उन्हें “अधर्मियों के हाथ से,” वे रोमी जो परमेश्वर के नियम का पालन नहीं कर रहे थे, एक खम्भे पर चढ़ा दिया। यीशु को “परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया,” क्योंकि यह ईश्वरीय इच्छा थी। यद्यपि, परमेश्वर ने यीशु को पुनरुत्थित किया और उसके मानवीय शरीर को इस प्रकार ख़त्म कर दिया कि यह सड़ नहीं गया।—भजन १६:८-११.
१२. दाऊद ने किस बात का पूर्वदर्शन किया, और उद्धार किस बात पर निर्भर है?
१२ जैसे जैसे पतरस की गवाही जारी रही, वैसे वैसे मसीही भविष्यद्वाणी पर और भी अधिक बल डाला जाता गया। (२:२९-३६) उसने कहा कि दाऊद ने अपने सबसे बड़े संतान, मसीहा यीशु के पुनरुत्थान का पूर्वदर्शन किया। स्वर्ग में परमेश्वर के दाँये हाथ पर एक सर्वोच्च पद से, यीशु ने अपने पिता से प्राप्त पवित्र आत्मा को उँडेल दिया। (भजन संहिता ११०:१) पतरस के श्रोताओं ने शिष्यों के सिर पर आग की सी जीभों को देखकर और उनके द्वारा बोली गयी भाषाओं को सुनकर, उसकी क्रिया को ‘देखा और सुना’ था। उसने यह भी दिखाया कि उद्धार यीशु को प्रभु और मसीहा के तौर से मानने पर निर्भर है।—रोमियों १०:९; फिलिप्पियों २:९-११.
यहोवा बढ़ती देते हैं
१३. (अ) उचित रीति से बपतिस्मा-प्राप्त होने के लिए, यहूदियों और यहूदी मत धारण करनेवालों को क्या स्वीकार करना था? (ब) कितने लोगों ने बपतिस्मा लिया, और यरूशलेम में इसका कैसा असर हुआ?
१३ पतरस के शब्द कितने प्रभावकारी थे! (२:३७-४२) उसके सुननेवालों के हृदय छिद गए इसलिए कि उन्होंने मसीहा के मृत्युदण्ड को सहमति दी थी। इसलिए उसने प्रोत्साहित किया: “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।” यहूदी और यहूदी मत धारण करनेवाले पहले से ही यहोवा को अपना परमेश्वर, और उनकी आत्मा के लिए उनकी ज़रूरत को स्वीकार करते थे। उन्हें अब पश्चाताप करने और यीशु को मसीहा के तौर से स्वीकार करने की आवश्यकता थी ताकि पिता, पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से (उस पद या क्रिया को मानकर) बपतिस्मा ले सकें। (मत्ती २८:१९, २०) यहूदियों और यहूदी मत धारण करनेवालों को गवाही देकर, पतरस ने उस पहली आध्यात्मिक कुंजी का प्रयोग किया जो यीशु ने उसे विश्वास करनेवाले यहूदियों को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के वास्ते ज्ञान और मौक़े का द्वार खोलने के लिए दिया था। (मत्ती १६:१९) उस एक दिन में, ३,००० व्यक्तियों ने बपतिस्मा लिया! यरूशलेम के उस छोटे से क्षेत्र में इतने सारे गवाह प्रचार करते हुए कल्पना करें!
१४. विश्वासियों की ‘सब वस्तुएँ’ क्यों और किस रीति से ‘साझे की थीं?’
१४ दूर देश से आए कई लोगों के पास ज़्यादा दिन रुकने के लिए पर्याप्त खाद्य-सामग्री न थी लेकिन वे अपने नए विश्वास के बारे में अधिक सीखना और दूसरों को गवाही देना चाहते थे। इसलिए यीशु के प्रारंभिक अनुयायियों ने प्रेम से एक दूसरे की मदद की, उसी तरह जैसे यहोवा के गवाह आज करते हैं। (२:४३-४७) अस्थायी रूप से विश्वासियों “की सब वस्तुएँ साझे की थीं।” कुछ लोगों ने ज़मीन बेची, और जिस किसी की ज़रूरत होती थी, उसे पैसे दिए जाते थे। इस से मण्डली की शुरुआत उत्तम रीति से हुई जब ‘यहोवा ने हर रोज़ उद्धार पानेवालों को उन में मिला दिया।’
एक स्वास्थ्यलाभ और उसके परिणाम
१५. जब पतरस और यूहन्ना मंदिर में आ गए, तब क्या हुआ, और लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी?
१५ यहोवा ने “चिह्नों” के ज़रिए यीशु के अनुयायियों का समर्थन किया। (३:१-१०) इस प्रकार, जब पतरस और यूहन्ना दोपहर ३:०० बजे को शाम की बलि से संबंधित एक घंटे की प्रार्थना के लिए मंदिर में आ गए, एक जन्म से लंगड़ा पुरुष सुन्दर नामक द्वार के पास बैठकर “भीख माँग” रहा था। ‘चान्दी और सोना तो मेरे पास है नहीं,’ पतरस ने कहा, ‘परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूँ: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर!’ वह पुरुष तत्क्षण स्वस्थ हो गया! जब वह “चलने फिरने लगा और चलता, और कूदता और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ” मंदिर में आ गया, तब लोग ‘अत्यानंदित हो गए।’ (न्यू.व.) शायद कुछों ने इन शब्दों को याद किया होगा: “लंगड़ा हरिन की सी चौकडियाँ भरेगा।”—यशायाह ३५:६.
१६. प्रेरित एक लंगड़े पुरुष को किस तरह स्वस्थ कर सके?
१६ चकित लोग सुलैमान के ओसारे में एकत्रित हो गए, जो कि मंदिर की पूर्वी ओर पर एक छतदार ड्योढ़ी है। वहाँ पतरस ने गवाही दी। (३:११-१८) उसने दिखाया कि परमेश्वर ने प्रेरितों को उस लंगड़े पुरुष को अपने महिमान्वित पुत्र, यीशु के ज़रिए स्वस्थ करने की शक्ति दी। (यशायाह ५२:१३-५३:१२) यहूदियों ने “उस पवित्र और धर्मी का” इन्कार किया; फिर भी, यहोवा ने उसे पुनरुत्थित किया। हालाँकि उन लोगों और उनके शासकों को मालूम न था कि वे मसीहा को मार डाल रहे हैं, परमेश्वर ने इस प्रकार उन भविष्यसूचक शब्दों को पूरा किया कि “उसका मसीह दुःख उठाएगा।”—दानिय्येल ९:२६.
१७. (अ) यहूदियों को क्या करने की ज़रूरत थी? (ब) हमारे समय में ‘मसीह को भेजे जाने’ के समय से क्या हुआ है?
१७ मसीह से किए उनके बरताव के बदले, पतरस ने दिखाया कि यहूदियों को क्या करना चाहिए। (३:१९-२६) यह ज़रूरी था कि वे ‘मन फिरा दें,’ या अपने पापों के लिए पश्चाताप दिखाएँ, और ‘लौट आएँ,’ या बदल जाएँ, और एक विपरीत रास्ता अपनाएँ। अगर वे छुड़ौती बलिदान को स्वीकार करके यीशु पर मसीहा के रूप में विश्वास करते, तो पापों की क्षमा प्राप्त करनेवालों के तौर से यहोवा की ओर से उन्हें विश्रान्ति मिल जाती। (रोमियों ५:६-११) यहूदियों को याद दिलाया गया कि वे उस वाचा की सन्तान थे जो परमेश्वर ने उनके बापदादों से बाँधी थी, जब उन्होंने इब्राहीम से कहा: “तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएँगे।” इसलिए परमेश्वर ने प्रथम अपने मसीही सेवक को पश्चाताप दिखानेवाले यहूदियों को छुड़ाने के लिए भेजा। दिलचस्प रूप से, १९१४ में ‘मसीह को’ स्वर्गीय राज्य सत्ता में ‘भेजे जाने’ के समय से, यहोवा के गवाहों के बीच सच्चाइयों और ईश-तंत्रीय संघटन का एक ताज़ा करनेवाला पुनरुज्जीवन हुआ है।—उत्पत्ति १२:३; १८:१८; २२:१८.
वे नहीं रुकते!
१८. कौनसा “पत्थर” यहूदी “राजमिस्त्रियों” द्वारा ठुकराया गया, और केवल किस के द्वारा उद्धार मिल सकता है?
१८ इस वजह से क्रोधित होकर कि पतरस और यूहन्ना ने यीशु के पुनरुत्थान के बारे में प्रचार किया, मुख्य याजक, मंदिर के सरदार, और सदूकियों ने उन्हें हवालात में रखा। (४:१-१२) सदूकी पुनरुत्थान में विश्वास नहीं करते थे, लेकिन कई अन्य लोग विश्वासी बन गए, और सिर्फ़ मनुष्यों की संख्या ही लगभग ५,००० थी। जब यरूशलेम के उच्चन्यायालय में उन से सवाल किए गए, तब पतरस ने कहा कि वह लंगड़ा पुरुष “यीशु मसीह नासरी के नाम से” स्वस्थ किया गया था, जिस को उन्होंने यातना खम्भे पर चढ़ाया था, पर जिसे परमेश्वर ने पुनरुत्थित किया था। यही “पत्थर” जिसे यहूदी “राजमिस्त्रियों” ने ठुकरा दिया, “कोने के सिरे का पत्थर” हो गया था। (भजन संहिता ११८:२२) “और,” पतरस ने कहा, “किसी दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।”
१९. जब उन्हें प्रचार कार्य बन्द करने की आज्ञा दी गयी, तब प्रेरितों ने क्या जवाब दिया?
१९ ऐसी बातचीत रोकने का प्रयत्न किया गया। (४:१३-२२) चूँकि स्वस्थ किया गया पुरुष वहाँ मौजूद था, इस “प्रसिद्ध” चिह्न को नकारना अशक्य था, फिर भी पतरस और यूहन्ना को चेतावनी दी गयी कि “यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखलाना।” उनका जवाब? “यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें।” उन्होंने अपने शासक के तौर से यहोवा की आज्ञा का पालन किया!
प्रार्थनाएँ सुन ली गयीं!
२०. शिष्यों ने किस के लिए प्रार्थना की, और उसका नतीजा क्या रहा?
२० जैसे यहोवा के गवाह सभाओं में प्रार्थना करते हैं, वैसे ही शिष्यों ने प्रार्थना की, जब छूटकर आए हुए प्रेरितों ने बताया कि उनके साथ क्या क्या हुआ था। (४:२३-३१) इस बात पर ग़ौर किया गया कि शासक हेरोदेस अन्तिपास और पुन्तियुस पीलातुस, अन्य जातीय रोमी तथा इस्राएलियों के साथ, मसीहा के ख़िलाफ़ इकट्ठे हो गए। (भजन संहिता २:१, २; लूका २३:१-१२) उस प्रार्थना के उत्तर में, यहोवा ने शिष्यों को पवित्र आत्मा से भर दिया, जिस से कि उन्होंने परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाया। अपने शासक से यह माँग न की गयी कि उत्पीड़न को समाप्त करें, परन्तु कि उसके बावजूद भी हियाव से प्रचार करने के लिए उन्हें सामर्थी बना दें।
२१. बर-नबा कौन था, और उस में कौनसे गुण थे?
२१ विश्वासियों की सब वस्तुएँ अब भी साझे की थीं, और एक भी व्यक्ति ज़रूरतमन्द न था। (४:३२-३७) एक अंशदाता यूसुफ नाम, कुप्रुस का एक लेवी था। प्रेरितों ने इसका कुलनाम बर-नबा, अर्थात् “शान्ति का पुत्र” रखा था, संभवतः इसलिए कि वह एक मदद करनेवाला और स्नेही इन्सान था। निःसंदेह, हम सभी उस तरह का व्यक्ति होना चाहेंगे।—प्रेरितों के काम ११:२२-२४.
झूठों का परदा फ़ाश
२२, २३. हनन्याह और सफीरा का पाप क्या था, और हम उनके अनुभव से किस तरह लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
२२ परन्तु, हनन्याह और उसकी पत्नी, सफीरा ने यहोवा को अपने शासक के तौर से मानना छोड़ दिया। (५:१-११) उन्होंने एक खेत को बेचकर प्राप्त पैसों में से कुछ रक़्म रख दी, जबकि वे दिखा रहे थे कि उन्होंने प्रेरितों को सारी रक़्म दी थी। परमेश्वर की आत्मा द्वारा दिए ज्ञान से पतरस उनका पाखण्ड पहचान सका, जो कि उनकी मृत्यु का कारण बना। यह उन लोगों को क्या ही चेतावनी है, जिन्हें शैतान धूर्त होने के लिए प्रलोभित करता है!—नीतिवचन ३:३२; ६:१६-१९.
२३ इस घटना के बाद, बुरे उद्देश्य रखनेवाले किसी व्यक्ति में भी शिष्यों के साथ मिल जाने का साहस न था। फिर भी अन्य लोग विश्वासी बन गए। (५:१२-१६) इसके अतिरिक्त, जैसे जैसे बीमारों ने और दुष्टात्मा द्वारा संत्रस्त व्यक्तियों ने परमेश्वर की ताक़त में विश्वास रखा, वे ‘सब अच्छे कर दिए गए।’
मनुष्यों से ज़्यादा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करें
२४, २५. यहूदी अगुवों ने प्रेरितों को किस लिए उत्पीड़ित किया, लेकिन इन विश्वसनीय लोगों ने यहोवा के सभी सेवकों के लिए कौनसा आदर्श स्थापित किया?
२४ अब महायाजक और सदूकियों ने सभी प्रेरितों को क़ैद करके इस बढ़िया वृद्धि में बाधा डालने की कोशिश की। (५:१७-२५) लेकिन उस रात, परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उन्हें रिहा कर दिया। और सूर्योदय होने पर वह मंदिर में सिखा रहे थे! उत्पीड़न यहोवा के सेवकों को नहीं रोक सकता।
२५ फिर भी, जब प्रेरितों को महासभा के सामने पेश किया गया, तब उन पर दबाव डाला गया। (५:२६-४२) बहरहाल, चूँकि चिताकर आज्ञा दी गयी कि वे उपदेश न करें, उन्होंने कहा: “हमें मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए।” इस से यीशु के शिष्यों के लिए एक आदर्श स्थापित हुआ, एक ऐसा आदर्श जिसका अनुसरण यहोवा के गवाह आज करते हैं। गमलीएल नाम के एक व्यवस्थापक द्वारा दी एक चेतावनी के बाद, अगुवों ने प्रेरितों की पिटाई की, और उन्हें प्रचार करना बन्द करने की आज्ञा देकर उन्हें रिहा कर दिया।
२६. प्रेरितों के सेवकाई की तुलना आज यहोवा के गवाहों की सेवकाई से कैसे होती है?
२६ प्रेरित आनन्दित हुए कि वे यीशु के नाम के लिए निरादर होने के योग्य ठहरे। “और प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से . . . न रुके।” जी हाँ, वे घर-घर जानेवाले प्रचारक थे। और परमेश्वर के आधुनिक-समय के गवाह भी घर-घर जानेवाले प्रचारक हैं, जिन्होंने उनकी आत्मा इसलिए पायी है कि वे उनकी आज्ञा का पालन करते हैं और कहते हैं, “यहोवा हमारे शासक हैं!”
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ यीश के भूतपूर्व और वर्तमान अनुयायियों को कौनसा कार्य पूरा करना पड़ेगा?
◻ सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन पर क्या हुआ?
◻ पतरस ने यीशु द्वारा दी उस पहली आध्यात्मिक कुंजी का प्रयोग कब और किस तरह किया?
◻ हम हनन्याह और सफीरा के अनुभव से क्या सीख सकते हैं?
◻ जब प्रचार बन्द करने की आज्ञा दी गयी, तब प्रेरितों ने यहोवा के सभी गवाहों के लिए कौनसा आदर्श स्थापित किया?