अगोरा—प्राचीन अथेने की जान
अथेने के बौद्धिक समाज में कोलाहल मचा हुआ था! इस यूनानी शहर के अगोरा, या बाज़ार में हमेशा नए-नए विचारों का प्रचार किया जाता था। लेकिन इस दफे बात कुछ अलग ही थी। अभी-अभी उस शहर में पहुँचा एक यहूदी आदमी “अन्य देवताओं का प्रचारक” मालूम पड़ता था। “जो लोग मिलते थे, उन से” वह बहुत ही असाधारण बातें कह रहा था। घमंडी इपिकूरी व गंभीर-मुखी स्तोईकी लोगों ने पूछा कि “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” जी हाँ, अथेने का अगोरा दुनिया के किसी भी विषय पर सार्वजनिक वाद-विवाद करने की बेहतरीन जगह थी। लेकिन नए ईश्वरों के बारे में बात करना—तौबा! तौबा! यह तो बर्दाश्त के बाहर था!—प्रेरितों १७:१७, १८.
जब प्रेरित पौलुस ने अथेने के अगोरा में पहली बार प्रचार करना शुरू किया, तब अथेने के लोगों ने उसे ऐसी ही शक की निगाह से देखा। वह यीशु मसीह व पुनरुत्थान के बारे में बात कर रहा था। लेकिन अथेने की खुले-विचारोंवाली संस्कृति के लिए, अगोरा में ऐसी नयी धारणाओं पर बात करने में कौन-सी असाधारण बात थी?
अथेने का चौक
असल में खुद अगोरा बेमिसाल था और उसकी भूमिका भी जो यह अथेने के लोगों के धार्मिक व जन जीवन में निभाता था। अथेने का अगोरा लगभग २५ एकड़ का हल्के-से ढलानवाला इलाका है जो एक्रॉपॉलिस के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। ऐसा लगता है कि सा.यु.पू. छठी सदी की शुरूआत में, अथेने के राजनेता व विधिकर्त्ता सोलोन के जमाने में, यह तय किया गया था कि ज़मीन के इस टुकड़े को चौक बनाया जाएगा। अथेने में लोकतंत्र की स्थापना की वज़ह से, जिसमें जन जीवन पर काफी ज़ोर दिया गया, अगली सदी के शुरूआती वर्षों में निर्माण कार्य में काफी बढ़ोतरी हुई। इसने अगोरा में एक नयी जान फूँक दी और उसकी भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो गयी।
यूनानी शब्द अगोरा एक क्रिया से बना है जिसका मतलब है “जमा होना, इकट्ठा होना।” यह बिलकुल ठीक शब्द है, क्योंकि इस अगोरा को शहर में मिलने की खास जगह के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। अगोरा सामाजिक व जन जीवन का केंद्र बन गया। यह जन प्रशासन व न्यायपालिका का केंद्र था, खरीद-फरोख्त व व्यापार का मुख्य स्थान था, यूनानी नाटकों का रंगमंच था, खेलकूद की स्पर्धाओं का स्थल था और बड़ी-बड़ी चर्चाओं के लिए मिलने की पसंदीदा जगह थी।
क्या आप अथेने में अगोरा के मंदिरों, स्तंभों, मूरतों, स्मारकों, व जन इमारतों के अवशेषों में घूमना चाहेंगे? अगोरा के इतिहास के पन्नों को पलटते हुए, चलिए हम आज के शहरों के शोर-शराबे व दौड़-धूप को पीछे छोड़, कंकड़-पत्थर के रास्तों की ओर कदम बढ़ाएँ, जहाँ संगमरमर के खामोश खँडहर, तराशी गयी चट्टानें, और टूटे-फूटे प्रवेश-द्वार हैं जिन पर जंगली घास और जड़ी-बूटियाँ उग आयी हैं।
मंदिर, तीर्थस्थान, व संरक्षक देवता
सैलानी वहाँ विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित अनेक मंदिरों, तीर्थस्थानों, व पवित्र स्थानों को देखकर बेहद प्रभावित होते हैं। इन सब की वज़ह से अगोरा धर्म का मुख्य केंद्र बन गया। एक्रॉपॉलिस के बाद इसी का नाम आता था। अथेने के स्वर्ण-युग के दौरान, धर्म जन-जीवन की नस-नस में समा गया था। इसका अर्थ यही हुआ कि उन विभिन्न देवताओं को अगोरा में मंदिर के लिए जगह दी गयी, जिन्हें सरकारी विभागों व प्रशासनिक सेवाओं के “संरक्षक देवताओं” का नाम दिया गया था।
इन इमारतों में प्रमुख था हिफॆस्तोस का मंदिर। देवी अथेना का नाम हिफॆस्तोस के साथ जोड़ा जाता था। यहाँ इस देवी-देवता को कला व हस्तकला के संरक्षक माना जाता था। पुरातात्विक खोजों में इस मंदिर के आस-पास लोहार व कुम्हार के काम से संबंधित चीज़ें पायी गयीं और इनका संबंध हिफॆस्तोस से जोड़ा जाता है। यह कला और आग का यूनानी देवता है। शायद सा.यु. सातवीं सदी में सही-सलामत रखे गए इस मंदिर को बदलकर सॆंट जॉर्ज यूनानी ऑर्थोडॉक्स चर्च बना दिया गया, हालाँकि आज इसे चर्च की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाता।
बेशक, अगोरा को अपने खुद के संरक्षण देवता की ज़रूरत थी। यह भाषणकला का तथा-कथित देवता ज्यूस आगोरेओस था, जिसे बेशकीमती पॆनटॆलिक संगमरमर से तराशी गयी अलंकृत वेदी समर्पित की गयी थी। (प्रेरितों १४:११, १२ से तुलना कीजिए।) पास ही ‘देवताओं की माता’ की वेदी थी जिसके दोनों तरफ कई वीरों के स्मारक शानदार रूप से सजाए गए थे।
थोड़ा और आगे जाने पर हमें एक छोटा-सा आयोनिक मंदिर दिखेगा। भूगोल-शास्त्री पॉसेनिअस ने इसे ‘पिता अपोलो का मंदिर’ कहा। क्यों? क्योंकि एक पुरानी यूनानी कथा के मुताबिक, वह आयोन का पिता था। और आयोन ने उस आयोनियन जाति की स्थापना की जिसके अथेनेवासी एक भाग हैं।a इस हैसियत से, अपोलो राज्य के प्रशासन का देवता था और उसको खासकर शहर की अलग-अलग बिरादरियों के संबंध में देवता माना जाता था।
ठीक उत्तर की ओर, हम एक छोटे मंदिर का खँडहर देखते हैं जो चूना-पत्थर से, सा.यु.पू. चौथी सदी के मध्य भाग में बनाया गया था। यहाँ पर ज्यूस व अथेना फॉट्रीओस की उपासना की जाती थी। ये पूर्वजों के धार्मिक बिरादरियों के मुख्य देवी-देवता थे। इनका सदस्य होना अथेनी नागरिकता पाने के लिए एक आवश्यक माँग थी। सड़क के ठीक उस पार, हमें ‘बारह देवताओं’ की वेदी के अवशेष देखने को मिलते हैं।
‘ज्यूस एल्यूथिरिओस के स्टोआ’ के पास में, यूनान के प्रमुख देवता का फिर से सम्मान किया जाता, लेकिन इस बार आज़ादी व छुटकारे के देवता के तौर पर। यह ओसारा (कोलोनेड), या स्टोआ बहुत ही पसंदीदा विचरण-स्थल व मिलने का स्थान था। ऐसा कहा जाता है कि विख्यात तत्त्वज्ञानी सुकरात इसी स्टोआ में अपने दोस्तों से मिलता था, जहाँ वे बैठकर गप्पे मार सकते थे या फिर टहल सकते थे। इस स्टोआ को सजाने के लिए किए गए अनेक अर्पण और भेंट, अथेने को अपने दुश्मनों से छुड़ाने या उसकी आज़ादी को बरकरार रखने में इस्तेमाल किया गया था, जैसे उस शहर की रक्षा करते वक्त शहीद हुए सैनिकों की ढालें।
पानाथिनीअन सड़क
अगोरा के बीच से एक चौड़ी, कंकड़-पत्थर की सड़क जाती है जिसे पानाथिनीअन सड़क कहा जाता है। इसका नाम व खासियत अथेने के राष्ट्रीय त्योहार, पानाथिनीआ से लिया गया है। इस त्योहार के दौरान देवी अथेना के सिर के घूँघट को इसी सड़क से होते हुए ‘जुलूस घर’ (शहर के फाटक की बगल में है) से लेकर एक्रॉपॉलिस तक ले जाया जाता था। पारथेनन की दीवारों पर तराशे गए नज़ारे हमें उस त्योहार के जुलूस के धूम-धाम और शान-ओ-शौकत की कल्पना करने में मदद करते हैं। जैसे, उस जुलूस की घुड़सवार फौज़, रथ, बलि चढ़ायी जानेवाली गायें व भेड़ें, बलि में प्रयोग होनेवाली चीज़ें उठाए हुए युवक-युवतियाँ। अथेने के नागरिक व उनके मेहमान जुलूस को देखते थे, जिनकी सुविधा के लिए शिल्पकारों ने अगोरा को बनाते वक्त काफी प्रबंध किए। मिसाल के तौर पर, जुलूस जिस रास्ते से गुज़रता था, उसको मद्देनज़र रखते हुए कुशलतापूर्वक इन ओसारों के आगे सीढ़ियाँ बनायी गयीं। इन तराशी गयी सीढ़ियों की संख्या काफी थी जिसकी वज़ह से उनमें कई दर्शक समा सकते थे।
“मूरतों से भरा हुआ”
एक ही जगह में इतने सारे मंदिर, प्रतिमाएँ, व स्मारक होने की वज़ह से, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि “नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर [प्रेरित पौलुस] का जी जल गया।” (प्रेरितों १७:१६) अगोरा में प्रवेश करने पर पौलुस ने जो देखा होगा, उससे उसे धक्का लगा होगा। हिरमेस देवता की लिंग प्रतिमाएँ इतनी बड़ी तादाद में थीं, कि उन्हें रखने के लिए संपूर्ण बड़े भवन की ज़रूरत पड़ी, जो हिरमेस का स्टोआ कहलाता है। हिरमेस की दूसरी रंगी हुई प्रतिमाओं के कपड़ों पर स्वस्तिक लगे हुए हैं, जो जननक्षमता व जीवन का प्रतीक हैं। वहाँ काम-वासना की देवी, वीनस जॆनॆट्रिक्स की मूरत थी, साथ ही डायोनिसस की एक मूरत थी जिस पर कई लैंगिक-संबंधी क्रूस थे। अगोरा की “पवित्रता” को चिन्हित करता हुआ एक सीमा पत्थर था जहाँ “पवित्र” जल भरा हुआ एक हौज था, जिससे प्रवेश करनेवाले सभी लोगों का रीतिनुसार शुद्धिकरण किया जाता था।
एक ऐसे गहरे धार्मिक माहौल को ध्यान में रखते हुए, हम आसानी से समझ सकते हैं कि पौलुस क्यों इतने खतरे में पड़ा था। उस पर “अन्य देवताओं का प्रचारक” होने का शक किया गया, और उस समय के कानून के मुताबिक ‘किसी भी व्यक्ति का कोई अलग सा, या नया ईश्वर नहीं होना चाहिए; ना ही उसे किसी अपरिचित ईश्वर की अकेले में उपासना करनी चाहिए जब तक कि उसे ऐसा करने की सार्वजनिक तौर पर अनुमति न मिल जाए।’ इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि उस प्रेरित से सवालात करने के लिए उसे अरियुपगुस ले जाया गया।—प्रेरितों १७:१८, १९.
प्रशासन का केंद्र
अथेने सरकार का मुख्यालय थोलोस नामक गोलाकार इमारत में था। शहर के कई अध्यक्ष रात को इसी इमारत में सोते ताकि ज़िम्मेदार अधिकारी हमेशा उपलब्ध हों। थोलोस में मानक वज़न व माप का सेट रखा रहता। प्रशासन के अलग-अलग विभागों के लिए पास में ही जगह थी। ‘परिषद् भवन,’ थोलोस के उत्तर-पश्चिम की पहाड़ी को काट कर बनाए गए समतल भाग में स्थित था। वहाँ, ५०० लोगों के परिषद् के सदस्य सभाएँ आयोजित करते जिनमें वे कमिटी के कार्य करते और विधान सभा के लिए विधि बनाते।
एक और महत्त्वपूर्ण नागरिक इमारत थी रॉयल स्टोआ। वहाँ अथेने के रॉयल आरकॉन—शहर के तीन मुख्य मजिस्ट्रेट में से एक—की गद्दी थी। वहाँ से वह धार्मिक व कानूनी मामलों से संबंधित अनेक प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ सँभालता था। अति संभव है कि जब सुकरात पर अभक्त होने का इल्ज़ाम लगाया गया, तब उसे यहीं पेश होने के लिए कहा गया था। उसके सामनेवाली इमारत की दीवारों पर अथेने के पूर्वजों के कानून नक्काशे गए थे। इसी इमारत के सामने रखे गए पत्थर पर खड़े होकर, आरकॉन या मुख्य मजिस्ट्रेट हर साल अपने पद की शपथ खाते।
ऐटलस का स्टोआ
अगोरा में ऐटलस का स्टोआ सबसे अच्छी तरह सुरक्षित रखी गयी इमारत है। पिरगमुन का राजा (सा.यु.पू. दूसरी सदी), ऐटलस जब जवान था, तब उसने अथेने के स्कूलों में पढ़ाई की थी। इन्हीं स्कूलों में भूमध्य जगत के राजसी खानदानों के कई अन्य वंशजों ने भी पढ़ाई की थी। सिंहासन पर बैठने पर, उसने जिस शहर में पढ़ायी की थी, उसी शहर को यह शानदार तोहफा—ऐटलस का स्टोआ—दिया।
ऐटलस के स्टोआ को इस तरीके से बनाया गया था कि वह छतदार व मनोहर विचरण-स्थल हो, जहाँ पर लोग ज़्यादातर बातचीत व गुफ्तगू करने के लिए मिल सकें। इसकी मंज़िलें और चबूतरा ऐसी बेहतरीन जगह थी जहाँ से जुलूसों को देखा जा सकता था, साथ ही विचरण-स्थल के रूप में इसकी लोकप्रियता ने इसे खरीदारी केंद्र के तौर पर कामयाबी भी दी होगी। संभवतः सरकार ने व्यापारियों को ये दुकानें किराए पर दी होंगी ताकि इस इमारत से आमदनी मिले।
इसे पहली जैसी दशा में लाने के बाद, ऐटलस का स्टोआ ज्योमॆट्री की रचना का सर्वोत्तम उदाहरण है। कुल मिलाकर इसके अनुपात, ऊपर और नीचे की मंज़िल के स्तंभों के माप की सुंदर भिन्नता, धूप-छाँव की रोचक आँख-मिचौली, और इसकी निर्माण-सामग्री की उत्कृष्टता व खूबसूरती, ये सारी चीज़ें इसे बेमिसाल बनाती हैं। कोई भी चीज़ एक-जैसी नहीं है, जो खासकर इससे पता चलता है कि तीन भिन्न-भिन्न किस्म के स्तंभ शीर्षों का इस्तेमाल किया गया है—डोरिक, आयोनियन, व मिस्री।
सांस्कृतिक गतिविधियों का स्थान
अथेने में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम कॉनसर्ट में हुआ करते थे। यह रोमी सम्राट अगस्तुस के दामाद, विपसान्युस अग्रिप्पा की तरफ से भेंट थी। इसका अग्रभाग, रंग-बिरंगे संगमरमर से बना था। ऑडिटोरियम करीब-करीब २५ मीटर का था जिसमें लगभग १,००० लोग बैठ सकते थे। शुरूआत में इसकी छत के लिए अंदर से कोई टेक नहीं था। प्राचीन जगत में छत बनाने में यह सबसे साहस-भरी आज़माइश थी! लेकिन, संभवतः वहाँ प्रदर्शित किया गया अधिकांश मनोरंजन सच्चे मसीहियों के लिए ठीक नहीं रहा होगा, क्योंकि उनके नैतिक स्तर ऊँचे थे।—इफिसियों ५:३-५.
संभव है कि प्राचीन समय के जिज्ञासु लोग ‘पानटेनोस के पुस्तकालय’ में जाते थे। इसकी दीवारों में ढेर सारे कैबिनॆट थे जहाँ पपीरस व चर्मपत्र पर हाथ से लिखे गए स्क्रोल जमा करके रखे गए थे। पुस्तकालय का मुख्य कमरा पश्चिम की ओर अभिमुख था और कतार में बने स्तंभों के बीच से आँगनवाले ओसारे को देखा जा सकता था, जो टहलने, पढ़ने या मनन करने के लिए एक सुखद स्थान था। एक शिलालेख पाया गया जिसमें पुस्तकालय के दो नियम लिखे हुए थे। वे थे: “कोई भी पुस्तक ले जाना मना है,” और “[पुस्तकालय] पहले पहर से छठे पहर तक खुला है।”
आज का अगोरा
हाल के वर्षों में, अमेरिकन स्कूल ऑफ क्लासिकल स्टडीज़ ने अगोरा को लगभग पूरी तरह से खोज निकाला है। बहुत ऊँचाई पर स्थित एक्रॉपॉलिस की छाँव तले शांत वातावरण में बसा हुआ अगोरा, ऐसे सैलानियों की पसंदीदा जगह बन गया है जो प्राचीन अथेने के इतिहास की झलक देखना चाहते हैं।
पास का ‘मोनासतीराकी जूने माल का बाज़ार’—जो अगोरा व एक्रॉपॉलिस से बस कुछ कदम दूर है—एक और अनोखी दुनिया है। यहाँ सैलानियों को यूनानी लोक-कथा व मध्य-पूर्व के बाज़ारों जैसी गतिविधि व मोल-भाव की हैरत-अंगेज़ लेकिन आनंद-भरी झलक देखने को मिलती है। और हाँ, सैलानी वहाँ यहोवा के साक्षियों को खुशी-खुशी वही काम करते देखेंगे जो प्रेरित पौलुस ने १,९०० से भी ज़्यादा साल पहले किया था—‘जो भी लोग मिलते हैं, उन को’ राज्य के सुसमाचार का जन-प्रचार करना।
[फुटनोट]
a नाम आयोनियन यावान से आता है, जो येपेत का पुत्र व नूह का पोता था।—उत्पत्ति १०:१, २, ४, ५.
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अथेने का व्यापार
अगोरा अथेने का केवल बौद्धिक व जन जीवन का ही केंद्र नहीं था, बल्कि वह शहर का मुख्य बाज़ार भी था। अथेने व्यापार का केंद्र बन गया जो अपनी मुद्रा के मूल्य और अपने आरकॉन की ईमानदारी के लिए सुविख्यात था। आरकॉन को यह निश्चित करने का अधिकार दिया गया था कि सारे व्यापारिक लेन-देन ईमानदारी और शराफत से की जाएँ।
अथेने मदिरा, जैतून का तेल, शहद, संगमरमर, तथा चीनी मिट्टी से बनी चीज़ों व संसाधित धातुओं जैसे औद्योगिक उत्पादनों का निर्यात करता था। बदले में, यह मुख्यतः गेहूँ आयात करता। चूँकि ऎटिका (अथेने के पास के क्षेत्र) में इतनी चीज़ें उत्पन्न नहीं होती थीं जिससे कि इसके रहवासियों का ठीक तरह से पेट भरे, सो व्यापार से संबंधित स्तर सख्त थे। पीराएस (अथेने के बंदरगाह) के बाज़ार में शहर व सेना, दोनों को सप्लाई करने के लिए हमेशा पर्याप्त ताज़ा भोजन रखना पड़ता था। साथ ही व्यापारियों को यह अनुमति नहीं थी कि वे माल जमा करके रखें ताकि ज़रूरत के समय पर उसे ज़्यादा दाम पर बेचें।