सच्चे न्याय की प्रत्याशा हम किस से कर सकते हैं?
“क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय नहीं करेगा?” —उत्पत्ति १८:२५, फ़ेरार फ़ेंटन द्वारा, द होली बाइबल इन मॉडर्न इंग्लिश।
१, २. प्रचलित अन्याय के प्रति अनेक लोग कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
संभवतः आप दुःखद रूप से अवगत हैं कि अन्याय की भरमार है। स्वयं आप सच्चे न्याय के इस प्रचलित अभाव के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
२ कुछ लोग एक न्याय्य परमेश्वर के अस्तित्व पर संदेह करके प्रतिक्रिया दिखाते हैं। वे शायद अज्ञेयवादी होने का दावा करेंगे। शायद आप ने उस शब्द को पहले सुना हो। यह एक ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र करता है जिसे लगता है कि “कोई भी मूलभूत तत्त्व (जैसे परमेश्वर) अज्ञात है और शायद अज्ञेय है।” १९वीं सदी में डार्विन के क्रमविकास का एक प्रस्तावक, जीवविज्ञानी थॉमस एच. हक्सली ने पहली बार “अज्ञेयवादी” शब्द इस तरीक़े से इस्तेमाल किया।a
३, ४. “अज्ञेयवादी” शब्द की पूर्वपीठिका क्या है?
३ परंतु, हक्सली ने “अज्ञेयवादी” शब्द कहाँ से प्राप्त किया? दरअसल, वह प्रेरित पौलुस, पहली-सदी के एक विधिवक्ता द्वारा दूसरे ही भावार्थ में इस्तेमाल की गयी एक अभिव्यक्ति का उपयोग कर रहा था। यह एक प्रसिद्ध भाषण में कही गयी। यह भाषण आज संबद्ध है, इसलिए कि यह न्याय सब के लिए कब और कैसे प्रचलित होगा और, उस से भी ज़्यादा, स्वयं हम किस तरह उस से फ़ायदा ले सकेंगे, इस विषय जानने का हमें एक ठोस आधार देता है।
४ “अज्ञेयवादी” (“अज्ञात”) शब्द पौलुस का एक वेदी के ज़िक्र से लिया गया था, जिस पर अंकित था “अनजाने ईश्वर के लिए।” प्रेरितों के काम की ऐतिहासिक किताब के १७वें अध्याय में चिकित्सक लूका ने वह छोटा भाषण लिपिबद्ध किया। उस अध्याय में पहले दिखाया गया है कि पौलुस किन हालात में अथेने आया था। साथ वाले चौखटे में (पृष्ठ २३), आप लूका की परिचायक जानकारी और संपूर्ण भाषण का विवरण पढ़ सकेंगे।
५. अथेनियों को पौलुस ने जो भाषण दिया उसका अवस्थापन क्या था? (प्रेरितों के काम १७:१६-३१ पढ़वा लें।)
५ पौलुस का भाषण सचमुच ही प्रभावशाली है और हमारे ध्यानपूर्वक मनन के योग्य है। चूँकि हम बड़े अन्यायों से घेरे हुए हैं, हम उस में से बहुत कुछ सीख सकते हैं। प्रथम दृश्य ग़ौर करें, जो आप प्रेरितों के काम १७:१६-२१ में पढ़ सकते हैं। अथेनी लोगों को विद्या के ऐसे सुप्रसिद्ध केंद्र में रहने का अभिमान था, जहाँ सॉक्रेटीज़, प्लेटो, और ॲरिस्टॉटल् ने सिखाया था। अथेने एक अति धार्मिक शहर भी था। अपने इर्द-गिर्द पौलुस को मूर्तियाँ नज़र आती थीं—युद्ध देवता ॲरीज़, या मार्ज़ की मूर्तियाँ; ज़ीयुस की; एसक्युलापीयस, औषधि के देवता की; हिंसात्मक समुद्र-देवता, पोसाइडन की; डायोनिसियस, ॲथेना, ईरॉस, इत्यादि, देवताओं की भी।
६. पौलुस ने जो अथेने में पाया, उसकी तुलना में आप का इलाका किस तरह है?
६ यद्यपि, अगर पौलुस आपके नगर, या इलाके का निरीक्षण करता, तो क्या होता? शायद वह बहुत सी मूर्तियाँ देखता, ईसाईजगत् के देशों में भी। अन्य जगह, शायद वह और भी ज़्यादा देख सकता। एक संदर्शिका बताती है: “भारतीय देवता, अपने अस्थिर यूनानी ‘भाइयों’ से विपरीत, एकविवाही हैं, और उनकी सहचारिणियों को कुछ अति प्रभावशाली क्षमताएँ निर्दिष्ट थीं . . . कोई अतिशयोक्ति के बग़ैर, ऐसे करोड़ों देवता हैं, जो जीवन और प्रकृति के हर रूप से संबंधित हैं।”
७. प्राचीन यूनानी देवता किस तरह थे?
७ अनेक यूनानी देवता संकीर्ण-मना और बहुत ही अनैतिक चित्रित किए गए थे। उनका आचरण मनुष्यों के लिए शर्मनाक, हाँ, आज के अधिकांश देशों में अपराधी होगा। तो फिर, आप को हर कारण है यह विचार करने के लिए कि उस समय के यूनानी लोगों ने ऐसे देवताओं से किस तरह के न्याय की प्रत्याशा की होगी। फिर भी, पौलुस ने देखा कि अथेनी लोग उनके प्रति ख़ास तौर से निष्ठावान थे। अपनी धार्मिक दृढ़ धारणाओं सहित, उसने असली मसीहियत की उच्च सच्चाइयाँ समझाना शुरू किया।
एक चुनौती-भरा श्रोतागण
८. (अ) कौनसे विश्वास और दृष्टिकोण इपिकूरियों को चिह्नित करते हैं? (ब) स्तोइकियों का क्या विश्वास था?
८ कुछ यहूदी और यूनानी लोगों ने दिलचस्पी से सुना, लेकिन प्रभावशाली इपिकूरी और स्तोईकी तत्त्वज्ञ किस तरह प्रतिक्रिया दिखाते? जैसे कि आप देखेंगे, उनके विचार कई अंश तक आज के सामान्य विश्वासों के समान थे, उन के समान भी, जो पाठशाला में युवजन को सिखाए जाते हैं। इपिकूरियों ने इस तरह का जीना प्रोत्साहित किया कि जितना संभव हो उतना सुखविलास हासिल करें, खासकर मानसिक सुखविलास। उनका ‘खाए-पीए, क्योंकि कल मर ही जाएँगे’ तत्त्वज्ञान की विशेषता थी सिद्धान्त और सद्गुण का अभाव। (१ कुरिन्थियों १५:३२) वे विश्वास नहीं करते थे कि देवताओं ने इस ब्रह्मांड की सृष्टि की; उसके बजाय, वे सोचते थे कि जीवन एक सहज ब्रह्मांड में संयोग से उत्पन्न हुआ। इसके अतिरिक्त, देवता इन्सानों में दिलचस्पी नहीं रखते थे। स्तोइकियों का कैसा तत्त्वज्ञान था? वे तर्क पर ज़ोर देते थे, यह विश्वास करके कि भौतिक द्रव्य और शक्ति ब्रह्मांड में प्रारंभिक मूलतत्त्व थे। परमेश्वर पर एक व्यक्ति के तौर से विश्वास करने के बजाय, स्तोइकियों ने उसकी कल्पना एक अव्यक्तिक देवता के तौर से की। उन्हें यह भी लगा कि क़िस्मत मानवी मामलों को संचालित करती थी।
९. जिस स्थिति में पौलुस था, उस में प्रचार करना एक चुनौती क्यों थी?
९ ऐसे तत्त्वज्ञों ने पौलुस के सरेआम शिक्षण के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? उस समय दिमाग़ी दर्प से मिश्रित कुतूहल एक अथेनी विशेषता थी, और ये तत्त्वज्ञ पौलुस से तर्क-वितर्क करने लगे। आख़िकार, वे उसे अरयुपगुस ले गए। अथेने के बाज़ार के ऊपर, लेकिन बुलन्द ॲक्रॉपोलिस के नीचे, एक चट्टानी पहाड़ी थी जिसका नाम युद्ध के देवता, मार्ज़, या एरीज़, के नाम के अनुसार रखा गया था, अतः मार्ज़ पहाड़ी, या अरियुपगुस। पुरातन समय में, वहाँ एक अदालत या परिषद् जमा होती थी। पौलुस को शायद किसी अदालत में लिया गया होगा, जो कि शायद ऐसी जगह जमा हुई होगी, जहाँ से अन्य मन्दिरों और मूर्तियों के साथ साथ ॲक्रॉपोलिस और उसके लोकप्रिय पार्थेनोन नज़र आते थे। कुछेक सोचते हैं कि प्रेरित पौलुस ख़तरे में था इसलिए कि रोमी नियम में नए देवताओं का परिचय करना निषिद्ध था। लेकिन अगर पौलुस अरियुपगुस मात्र अपने विश्वासों को ही स्पष्ट करने के लिए लिया गया था या यह प्रदर्शित करने कि क्या वह एक क़ाबिल शिक्षक था या नहीं, वह एक भयोत्पादक श्रोतागण के सामने खड़ा था। क्या उन्हें दूर करे बग़ैर वह अपने अत्यावश्यक संदेश की व्याख्या दे सकता था?
१०. अपनी जानकारी पेश करने में पौलुस ने व्यवहार-कौशल का इस्तेमाल किस तरह किया?
१० प्रेरितों के काम १७:२२, २३ में से ग़ौर करें कि पौलुस ने किस व्यवहार-कौशल और बुद्धि से शुरुआत की। जब उसने क़बूल किया कि अथेनी लोग कितने धार्मिक थे और उनकी कितनी मूर्तियाँ थीं, तब उसके कुछेक श्रोताओं ने उस बात को एक सम्मान माना होगा। उनके अनेकदेववाद पर आक्षेप करने के बजाय, पौलुस ने एक ऐसी वेदी पर ध्यान केंद्रित किया, जो उसने देखी थी, वही जो “अनजाने ईश्वर के लिए” समर्पित थी। ऐतिहासिक प्रमाण दिखाता है कि ऐसी वेदियाँ विद्यमान थीं, जिस से लूका के वृत्तांत में हमारा भरोसा सदृढ़ होना चाहिए। पौलुस ने इस वेदी को एक गोता-तख़्ते के तौर से इस्तेमाल किया। अथेनी लोग ज्ञान और तर्क को बहुमूल्य समझते थे। फिर भी, वे क़बूल करते थे कि एक ऐसा ईश्वर था जो उनके लिए “अनजाना” (यूनानी, एʹनॉ·स्टॉस) था। तो फिर, यह तर्कसंगत था कि वे पौलुस को उस ईश्वर के विषय उन्हें समझाने की अनुमति दें। कोई भी व्यक्ति उस तर्कणा में दोष न निकाल सकता था, है ना?
क्या परमेश्वर अज्ञेय है?
११. पौलुस ने अपने श्रोतागण को सच्चे परमेश्वर के विषय सोचने के लिए किस तरह राज़ी करा लिया?
११ ख़ैर, यह “अनजाना ईश्वर” किस तरह है? “परमेश्वर” ने यह दुनिया और उस में हर चीज़ बनाई। कोई इन्सान नहीं नकारता कि यह ब्रह्मांड अस्तित्व में है, कि पौधे और जानवर अस्तित्व रखते हैं, कि हम इन्सान अस्तित्व रखते हैं। इस सब में प्रकट शक्ति, प्रज्ञा, हाँ, बुद्धि ने, इसे संयोग का फल होने के बजाय, एक बुद्धिमान और शक्तिशाली सृजनहार का फल होना सूचित किया। दरअसल, पौलुस की तर्कणा-धारा हमारे समय में और भी ज़्यादा संगत है।—प्रकाशितवाक्य ४:११; १०:६.
१२, १३. पौलुस ने जो बात बतायी उसका समर्थन कौनसे आधुनिक प्रमाण से मिलता है?
१२ कुछ समय पहले, इन द सेंटर ऑफ इम्मेंसिटीज़ नामक किताब में, बर्तानवी खगोलज्ञ सर बरनार्ड लवेल ने पृथ्वी पर सबसे सरल जीव-रूपों की अत्यधिक पेचीदगी के बारे में लिखा। उसने इस विषय पर भी विचार किया कि क्या ऐसा जीवन संभवतः संयोग से घटित हो सकता था या नहीं। उसका निष्कर्ष: “एक आकस्मिक घटना की संभाव्यता, . . . जिस से एक सबसे छोटा प्रोटीन अणु निर्माण हो सकता है, अकल्पित रूप से कम है। समय और जगह की जिस सीमित अवस्था के अन्तर्गत हम इस पर ग़ौर कर रहे हैं, वह प्रभावपूर्ण रूप से शून्य है।”
१३ या फिर दूसरे सिरे पर ग़ौर करें—हमारा ब्रह्मांड। खगोलज्ञों ने उसके उद्गम की जाँच करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक यंत्र इस्तेमाल किए हैं। उन्होंने क्या पाया है? गॉड ॲन्ड द ॲस्ट्रॉनोमर्स में, रॉबर्ट जॅस्ट्रो ने लिखा: “अब हम समझ सकते हैं कि खगोलीय प्रमाण किस तरह दुनिया की शुरुआत के बाइबलीय दृष्टिकोण की ओर ले जाता है।” “जो वैज्ञानिक तर्क की शक्ति में अपने विश्वास के बलबूते पर जीया है, उसके लिए कहानी एक बुरे सपने की तरह ख़त्म होती है। वह अज्ञान के पहाड़ों पर चढ़ा है; वह सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ने वाला ही है; जैसे ही वह आख़री चट्टान के ऊपर से खुद को खींचता है, उसका स्वागत धर्मविज्ञानियों की टोली [सृष्टि में विश्वास करनेवाले लोग] से होता है, जो वहाँ सदियों से बैठे हुए हैं।”—भजन १९:१ से तुलना करें।
१४. परमेश्वर का मानव-निर्मित मन्दिरों में न रहने के विषय पौलुस के कथन को कौनसे तर्क से समर्थन मिला?
१४ इस प्रकार हम देख सकते हैं कि प्रेरितों के काम १७:२४ में पौलुस का टीका कितना सही था, जो कि हमें, आयत २५ में, उसके अगले विचार की ओर ले जाता है। जो शक्तिशाली परमेश्वर “पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं” को बना सकता था, वह निश्चय ही द्रव्यात्मक ब्रह्मांड से बड़ा है। (इब्रानियों ३:४) तो यह सोचना तर्कसंगत न होता कि वह मन्दिरों में रहने तक सीमित होता, खास कर उन मन्दिरों में जो ऐसे इन्सानों द्वारा बनाए गए थे जिन्होंने खुले आम स्वीकार किया कि वह उनके लिए “अनजाना” था। उन तत्त्वज्ञों को बताने के लिए यह कैसी प्रभावशाली बात थी, जो कि शायद उसी क्षण उस जगह के ऊपर के मन्दिरों की ओर झाँक रहे होंगे!—१ राजा ८:२७; यशायाह ६६:१.
१५. (अ) पौलुस के श्रोतागण के दिमाग़ में ॲथेना क्यों रही होगी? (ब) परमेश्वर दाता है, इस वास्तविकता से कौनसे निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए?
१५ संभवतः, पौलुस के श्रोताओं ने ॲक्रॉपोलिस पर अपनी संरक्षक देवी, ॲथेना, की एक मूर्ति की पूजा की थी। पार्थेनोन में पूज्य ॲथेना हाथीदाँत और सोने की बनी थी। ॲथेना की एक और मूर्ति ७० फुट लंबी थी और समुद्र पर के जहाज़ों से दिखी जा सकती थी। और कहा गया था कि ॲथेना पोलियस नाम से जानी गयी मूर्ति स्वर्ग से गिरी; लोग उसके लिए नियमित रूप से एक नया हाथ का बना वस्त्र ले आते थे। फिर भी, जिस परमेश्वर से वे मनुष्य अनजान थे, अगर वही उच्चत्तम था, और उसी ने ब्रह्मांड की सृष्टि की थी, तो उसे क्या ज़रूरत होती कि उसकी सेवा उन चीज़ों से की जाए जो मनुष्य शायद ले आते? जिस किसी चीज़ की हमें ज़रूरत हो, वह ही हमें देता है: हमारा “जीवन,” उसे बनाए रखने के लिए “श्वास,” और “सब कुछ” देता है, जिस में सूर्य, वर्षा, और वह उर्वर भूमि, जहाँ से हमारा अन्न उगता है, शामिल है। (प्रेरितों के काम १४:१५-१७; मत्ती ५:४५) वही दाता है, और इन्सान पानेवाले हैं। निश्चय ही दाता पानेवालों पर निर्भर नहीं होता।
एक मूल से—हर कोई
१६. इन्सानों की शुरुआत से संबंधित पौलुस ने क्या दावा किया?
१६ फिर, प्रेरितों के काम १७:२६ में, पौलुस ने एक ऐसी सच्चाई बता दी जिसके बारे में कई लोगों को सोचना चाहिए, खास कर चूँकि आजकल इतना सारा जातीय अन्याय प्रकट है। उसने कहा कि सृजनहार ने “एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिए बनायी हैं।” यह कल्पना कि मानव जाति एकत्व या भाईचारा (न्याय के लिए उसके निहितार्थ सहित) थी, उन आदमियों को ग़ौर करने की बात थी, इसलिए कि अथेनी लोगों ने दावा किया था कि उनकी एक खास शुरुआत हुई थी जिस से वे मनुष्यजाति के बाक़ी हिस्से से अलग रखे गए थे। परन्तु, पौलुस ने पहले मनुष्य, आदम, जो हम सभों का प्रजनक बना, का उत्पत्ति वृत्तांत स्वीकार किया। (रोमियों ५:१२; १ कुरिन्थियों १५:४५-४९) यद्यपि, आप शायद जानना चाहेंगे: ‘क्या ऐसी धारणा हमारे आधुनिक वैज्ञानिक युग में कायम रखी जा सकती है?’
१७. (अ) आधुनिक प्रमाण उसी ओर में कैसे संकेत करता है, जिस ओर पौलुस ने संकेत किया? (ब) इसका न्याय से क्या संबंध है?
१७ क्रमविकास का मत सुझाता है कि मनुष्यजाति विभिन्न जगहों और प्रकारों में विकसित हुई। लेकिन पिछले वर्ष के प्रारंभ में, न्यूज़वीक ने अपना विज्ञान भाग “आदम और हव्वा के लिए खोज,” इस विषय के लिए इस्तेमाल किया। इस में आनुवंशिकी के क्षेत्र के हाल के विकास पर फ़ोकस किया गया था। जबकि, जैसा हम अपेक्षा कर सकते हैं, सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं, प्रकट होनेवाला दृश्य इस निष्कर्ष की ओर संकेत करता है कि सभी मनुष्यों को एक सर्वसामान्य आनुवंशिक पूर्वज है। चूँकि, जैसे बाइबल ने बहुत पहले कहा, हम सभी भाई-बहन हैं, क्या सब के लिए न्याय होना नहीं चाहिए? क्या हम सभों को निष्पक्ष बरताव के हक़दार होना न चाहिए, हमारे चमड़े का रंग, बालों का प्रकार, या अन्य ऊपरी विशेषताएँ चाहे जो हो? (उत्पत्ति ११:१; प्रेरितों के काम १०:३४, ३५) फिर भी, हमें अब भी यह जानने की ज़रूरत है कि मनुष्यजाति के लिए न्याय किस तरह और कब आएगा?
१८. मनुष्यों से परमेश्वर के व्यवहार से संबंधित पौलुस के कथन के लिए क्या आधार था?
१८ ख़ैर, आयत २६ में, पौलुस ने सूचित किया कि यह अपेक्षित किया जा सकता था कि मनुष्यजाति के लिए सृजनहार की एक इच्छा, या न्याय्य उद्देश्य, होती। प्रेरित जानता था कि जब परमेश्वर ने इस्राएल की जाति से व्यवहार किया, तब उसने यह आदेश दिया कि उन्हें कहाँ रहना चाहिए और दूसरी जातियों को उनसे किस तरह बरताव करना चाहिए। (निर्गमन २३:३१, ३२; गिनती ३४:१-१२; व्यवस्थाविवरण ३२:४९-५२) निश्चय ही, पौलुस के श्रोतागण ने शायद उसके टीका को मूलतः अपने पर अभिमान से लागू किया होगा। वास्तव में, चाहे वे यह जानते थे या नहीं, यहोवा परमेश्वर ने उस समय, या इतिहास में उस वक्त, के बारे में अपनी इच्छा भविष्यसूचक रूप से व्यक्त की थी, जब यूनान पाँचवीं महान् विश्व शक्ति होती। (दानिय्येल ७:६; ८:५-८, २१; ११:२, ३) चूँकि यह हस्ती राष्ट्रों को भी युक्ति से चला सकता है, तो क्या यह तर्कसंगत नहीं कि हमें उसके विषय जानना चाहिए?
१९. प्रेरितों के काम १७:२७ में पौलुस की बात तर्कसंगत क्यों है?
१९ ऐसी भी बात नहीं कि परमेश्वर ने हमें उसके बारे में अँधेपन से यहाँ वहाँ ढूँढ़ते हुए अज्ञात रखा है। उसने अथेनी लोगों और हमें उसके बारे में सीखने का आधार दिया। बाद में रोमियों १:२० में पौलुस ने लिखा: “[परमेश्वर के] अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं।” अतएव, अगर हम उसे खोजना और उसके विषय सीखना चाहें तो परमेश्वर वास्तव में हम से इतनी दूर नहीं।—प्रेरितों के काम १७:२७.
२०. यह किस तरह सच है कि हम परमेश्वर से “जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं”?
२० जैसा प्रेरितों के काम १७:२८ सुझाता है, ऐसा करने के लिए हम क़दर से प्रोत्साहित होने चाहिए। परमेश्वर ने हमें जीवन दिया है। दरअसल, जिस सादे भावार्थ से पेड़ को जीवन होता है, उस से कुछ ज़्यादा हमारे पास है। हमें, और अधिकांश जानवरों को चल-फिर सकने की एक उच्चतर जीवन क्षमता है। क्या हम उसके लिए खुश नहीं? लेकिन पौलुस बात को आगे बढ़ाता है। हम व्यक्तित्व सहित बुद्धिमान जीवों के रूप में विद्यमान हैं। हमारे ईश्वर-प्रदत्त दिमाग़ हमें सोचने देते हैं, अमूर्त सिद्धान्तों को समझने (जैसे कि सच्चा न्याय), और आशा करने—जी हाँ, परमेश्वर की भावी इच्छा की पूर्ति की प्रतीक्षा करने देते हैं। जैसा कि आप समझ सकते हैं, पौलुस ने जाना होगा कि इपिकूरी और स्तोईकी तत्त्वज्ञों को ये सारी बातें स्वीकार करना बहुत होगा। उनकी मदद के लिए, उसने कुछेक यूनानी कवियों को उद्धृत किया जिन से वे परिचित थे और जिनका वे सम्मान करते थे, और जिन्होंने समान रूप से कहा था: “हम तो उसी के वंश भी हैं।”
२१. हमारा परमेश्वर का वंश होना हमें किस रीति से प्रभावित करना चाहिए?
२१ अगर लोग समझते हैं कि हम सर्वोच्च परमेश्वर की सन्तान, या वंशज हैं, तो यह उनके लिए बस उचित ही है कि वे उसकी ओर से मार्गदर्शन की प्रत्याशा करें कि किस तरह जिया जाए। हमें पौलुस की निडरता की प्रशंसा करनी ही पड़ती है, जब वह क़रीब क़रीब ॲक्रॉपोलिस के साये में ही खड़ा हुआ। उसने तर्क किया कि हमारे सृजनहार किसी भी मानव-निर्मित मूर्ति से कहीं ज़्यादा शानदार है, पार्थेनोन में उस सोने और हाथीदाँत की मूर्ति से भी ज़्यादा। पौलुस का कथन स्वीकार करनेवाले हम सभियों को उसी तरह सहमत होना चाहिए कि परमेश्वर आज के लोगों द्वारा पूजे जानेवाले किसी भी मूर्ति के जैसे नहीं।—यशायाह ४०:१८-२६.
२२. हमारा न्याय प्राप्त करने में पछतावा किस तरह अंतर्ग्रस्त है?
२२ यह सिर्फ़ मानसिक रूप से स्वीकार करने की एक तकनीकी बात नहीं, जब कि हम पहले जैसे ही जीते रहें। पौलुस ने उस बात को आयत ३० में स्पष्ट किया: “इसलिए परमेश्वर अज्ञानता [की कल्पना कि परमेश्वर एक अदना मूर्ति के जैसे है, या वह ऐसी मूर्तियों के ज़रिए भक्ति स्वीकार करेगा] के समयों से आनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है।” इस प्रकार, जब पौलुस एक प्रभावी समाप्ति की ओर बढ़ता गया, उसने एक चौंका देनेवाली बात पेश की—पछतावा! तो अगर हम सच्चे न्याय के लिए परमेश्वर की ओर आशा रखते हैं, तो इसका मतलब है कि हमें पछतावा करना पड़ेगा। उस से हमारी ओर से क्या आवश्यक है? और परमेश्वर हर एक को किस तरह न्याय देगा?
[फुटनोट]
a जैसा कि आज अनेक लोग करते हैं, हक्सली ने ईसाईजगत् के अन्यायों पर ग़ौर किया। अज्ञेयवाद के विषय पर एक निबन्ध में उसने लिखा: “ईसाई राष्ट्रों के इतिहास के दौरान इस स्रोत से जो पाखण्ड और क्रूरता की बौछार, झूठ, हत्याकाण्ड, और इन्सानियत की हर एक ज़िम्मेदारी के उल्लंघन बहे हैं, अगर हम उसे सिर्फ़ देख पाते, तो इस दर्शन की तुलना में नरक के हमारे बदतरीन ख़याल फीके पड़ जाते।”
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
◻ पौलुस ने अथेने में कौनसी धार्मिक स्थिति पायी, और आज एक समान स्थिति किस तरह विद्यमान है?
◻ पौलुस के समय के अथेने में पूजे जानेवाले सभी झूठे देवताओं से परमेश्वर किन रीतियों में महत्तर है?
◻ जिस रीति से परमेश्वर ने मनुष्यजाति सृजी, उसके विषय कौनसी मूलभूत वास्तविकता का मतलब है कि सब के लिए न्याय होना चाहिए?
◻ मनुष्यों को परमेश्वर की महानता के ज्ञान के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
[पेज 23 पर बक्स]
सब के लिए न्याय—प्रेरितों के काम, अध्याय १७
“१६ जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। १७ सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। १८ तब इपिकूरी और स्तोईकी पण्डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, ‘यह बकवादी क्या कहना चाहता है?’ परन्तु औरों ने कहा: ‘वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,’ क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। १९ तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, ‘क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? २० क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं, कि इन का अर्थ क्या है?’ २१ (इसलिए कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। २२ तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा:
“‘हे अथेने के लोगो, मैं देखता हूँ, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। २३ क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, कि “अनजाने ईश्वर के लिए।” सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ। २४ जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। २५ न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। २६ उस ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिए बनायी हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिए बान्धा है। २७ कि वे परमेश्वर को ढूँढ़ें, कदाचित उसे टटोलकर पा जाएँ तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं! २८ क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि “हम तो उसी के वंश भी हैं।”
२९ “‘सो परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं, कि ईश्वरत्व, सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। ३० इसलिए परमेश्वर अज्ञानता के समयों से आनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। ३१ क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।’”
[पेज 24 पर बक्स]
ब्रह्मांड सृजा गया था
नासा (नॅशनल एरोनॉटिकस् ॲन्ड स्पेस ॲड्मिनिस्ट्रेशन) के डॉ. जॉन ए. ओ’कीफ़ ने १९८० में लिखा: “मैं जैस्ट्रो के मत का समर्थन करता हूँ कि आधुनिक खगोलशास्त्र ने भरोसेमंद प्रमाण पाया है कि ब्रह्मांड लगभग पंद्रह से बीस अरब वर्ष पहले सृजा गया था।” “यह देखना कि सृष्टि का प्रमाण . . . हमारे इर्द-गिर्द हर किसी चीज़ पर: चट्टान, आस्मान, रेडियो तरंग, और भौतिकी विज्ञान के सबसे आधारभूत नियमों पर, किस तरह साफ़-साफ़ छापा गया है, मेरे लिए बहुत ही हृदयस्पर्शी है।”
[पेज 26 पर बक्स]
“आदम और हव्वा के लिए खोज”
उस शीर्षक के नीचे, एक न्यूज़वीक लेख में अंशतः इस प्रकार कहा गया: “१९७७ में अनुभवी उत्खनक रिचर्ड लीकी ने कहा: ‘ऐसा कोई एक केंद्र नहीं जहाँ आधुनिक मानव का जन्म हुआ हो।’ पर अब आनुवंशिकी विशेषज्ञ अन्य प्रकार से सोचने के लिए प्रवृत्त हैं . . . ‘अगर यह सही है, और मैं उस पर पैसा भी लगाऊँगा, तो फिर यह कल्पना भारी महत्त्वपूर्ण है,’ हारवार्ड के जीवाश्म-वैज्ञानिक और निबन्धकार, स्टीफन जे गुल्ड कहते हैं। ‘इस से हम पूर्ण रूप से समझ सकते हैं कि सभी मनुष्य, बाहरी रूप की भिन्नताओं के बावजूद, दरअसल एक ही हस्ती के अंश हैं, जिसका आरंभ एक जगह में बहुत हाल में हुआ। एक तरह का जैविक भाईचारा है जो हमारी समझ से बहुत ज़्यादा गहरा है।’”—जनवरी ११, १९८८.