पुनरुत्थान में आपका विश्वास कितना मज़बूत है?
“पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।”—यूहन्ना ११:२५.
१, २. यहोवा के हर उपासक को पुनरुत्थान में मज़बूत विश्वास की ज़रूरत क्यों है?
पुनरुत्थान में आपका विश्वास कितना मज़बूत है? क्या यह मौत के डर को आपके दिल से निकालता है और जब आपके किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती तब क्या आपको इससे तसल्ली मिलती है? (मत्ती १०:२८; १ थिस्सलुनीकियों ४:१३) क्या आप परमेश्वर के उन प्राचीन सेवकों की तरह हैं जिन्होंने पुनरुत्थान में मज़बूत विश्वास की वज़ह से ठट्ठों को सहा, कोड़े खाए, जुल्म सहे, और जेल में सज़ा काटी?—इब्रानियों ११:३५-३८.
२ जी हाँ, यहोवा परमेश्वर के एक सच्चे उपासक को इस बारे में ज़रा भी शक नहीं होना चाहिए कि पुनरुत्थान होगा और उसके इस विश्वास से उसके जीने के ढंग पर असर पड़ना चाहिए। यह हैरतअंगेज़ सच्चाई है कि परमेश्वर के ठहराए हुए समय में समुद्र, मृत्यु और अधोलोक उन मरे हुओं को जो उन में हैं दे देंगे। फिर इन जी उठे लोगों के पास इस पूरी धरती पर फैले खूबसूरत बगीचे यानी परादीस में हमेशा तक ज़िंदा रहने का मौका होगा।—प्रकाशितवाक्य २०:१३; २१:४, ५.
भविष्य के जीवन के बारे में शंकाएँ
३, ४. मृत्यु के बाद जीवन के बारे में अभी-भी कई लोग क्या मानते हैं?
३ ईसाईजगत ने सदियों से यह सिखाया है कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता है। यू.एस. कैथोलिक मैगज़ीन के एक लेख में कहा गया: “सदियों से ईसाइयों ने अपनी ज़िंदगी में निराशाओं और दुःखों का सामना इस उम्मीद पर किया है कि जब उन्हें दूसरी ज़िंदगी मिलेगी तब शांति और चैन होगा और उनकी इच्छाएँ पूरी होंगी और उन्हें खुशी मिलेगी।” हालाँकि कई ईसाई देशों के लोग धर्म का पक्ष नहीं लेते और उससे चिढ़ते भी हैं, फिर भी उनमें से अनेक लोगों का मानना है कि मरने के बाद किसी न किसी रूप में ज़िंदगी ज़रूर होगी। लेकिन इसके अलावा उन्हें और कुछ साफ-साफ नहीं पता।
४ टाइम मैगज़ीन में एक लेख ने कहा: “लोग अभी-भी [मृत्यु के बाद जीवन] में विश्वास रखते हैं: लेकिन इसके बारे में उनके सोच-विचार और ज़्यादा धुँधला गए हैं और वे आजकल अपने पादरियों को भी इसके बारे में बहुत कम बोलते हुए सुनते हैं।” आजकल धर्म के अगुवे, मृत्यु के बाद जीवन के बारे में इतनी चर्चा क्यों नहीं करते जितनी पहले किया करते थे? एक धर्म विद्वान जेफरी बर्टन रसल कहते हैं: “मेरे ख्याल में [पादरी] इस मामले से इसलिए दूर रहना चाहते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर वे इस बारे में चर्चा करेंगे तो उन्हें लोगों से फटकारे खानी पड़ेंगी।”
५. नरक की शिक्षा को आज अनेक लोग किस नज़र से देखते हैं?
५ कई गिरजों में सिखाया जाता है कि लोग मरने के बाद स्वर्ग या अग्निमय नरक में जाते हैं। पादरी स्वर्ग के बारे में बात करने से कतराते हैं और नरक के बारे में बात करने से तो और भी ज़्यादा कतराते हैं। एक अखबार ने कहा: “ऐसे गिरजे भी जो कल तक यह सिखाते थे कि नरक में हमेशा तड़पाया जाता है . . . इन दिनों नरक की शिक्षा पर इतना ज़ोर नहीं दे रहे।” वाकई, आजकल के ज़्यादातर धर्मशास्त्री नरक को पीड़ा भुगतने की सचमुच की जगह नहीं मानते, जैसा मध्य युग में माना जाता था। इसके बजाय वे एक ऐसे नरक के बारे में सिखाना पसंद करते हैं जहाँ पीडाएँ नहीं होतीं। इन धर्मशास्त्रियों के मुताबिक नरक में तड़पाया नहीं जाता बल्कि “परमेश्वर से आध्यात्मिक दूरी” की वज़ह से पापी तड़पते हैं।
६. किसी हादसे का सामना करने पर कुछ लोगों का विश्वास क्यों डगमगाने लगता है?
६ लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के डर से अपनी शिक्षाओं को नरम बनाने से शायद कुछ चर्चों का नाम खराब न हो, लेकिन इसकी वज़ह से चर्च जानेवाले करोड़ों श्रद्धालु लोग उलझन में पड़ जाते हैं कि किस बात पर यकीन करें और किस पर नहीं। इसलिए जब मौत उनके सामने होती है तो उनका विश्वास डगमगाने लगता है। इनका नज़रिया एक महिला की भावना से मिलता है जिसके परिवार के कई लोग एक दर्दनाक हादसे में मारे गए थे। जब उससे पूछा गया कि क्या उसके धर्म से उसे कुछ तसल्ली मिली है, तो उसने झिझकते हुए कहा, “शायद हाँ।” लेकिन अगर उसने पूरे यकीन के साथ जवाब दिया होता कि सचमुच उसे अपने विश्वास की वज़ह से तसल्ली मिली है तब भी उसे कितने दिनों तक फायदा होनेवाला था, अगर उसके धर्म का आधार ही गलत होता? इस पर विचार करना सचमुच बहुत ज़रूरी है क्योंकि सच्चाई यह है कि ज़्यादातर चर्च मृत्यु के बाद के जीवन की जो शिक्षा देते हैं वह बाइबल पर आधारित नहीं है।
मृत्यु के बाद जीवन के बारे में चर्च का नज़रिया
७. (क) ज़्यादातर चर्चों का कौन-सा समान आधार है? (ख) एक धर्मशास्त्री ने अमर आत्मा की शिक्षा के बारे में क्या कहा?
७ ईसाईजगत के लगभग सभी पंथ आपसी मतभेदों के बावजूद इस बात को मानते हैं कि इंसान के अंदर अमर आत्मा होती है जो इंसान के मरने के बाद उसके शरीर में से निकल जाती है। ज़्यादातर लोग यह मानते हैं कि जब एक इंसान मरता है तो उसकी आत्मा स्वर्ग में जाती है। कुछ लोगों को डर है कि उनकी आत्मा अग्निमय नरक या शोधनस्थान में जा सकती है। लेकिन अमर आत्मा पर विश्वास ही इन सभी पंथों में मृत्यु के बाद जीवन की शिक्षा का समान आधार है। इस बारे में धर्मशास्त्री ऑस्कर कलमान ने किताब अमरता और पुनरुत्थान (अंग्रेज़ी) में एक लेख में लिखा। उसने कहा: “अगर हम आज एक आम ईसाई से पूछें . . . कि उसने नये नियम से इंसान की मृत्यु के बाद के भविष्य के बारे में क्या सीखा है तो एक दो को छोड़कर हमें यह जवाब मिलेगा: ‘अमर आत्मा।’” लेकिन कलमान ने आगे कहा: “ईसाईजगत का यह प्रमुख विश्वास उसकी सबसे बड़ी गलती है।” कलमान कहता है कि जब पहली बार उसने यह कहा तो हंगामा मच गया। लेकिन उसका यह कहना सही था।
८. यहोवा ने पहले पुरुष और स्त्री के सामने क्या आशा रखी थी?
८ यहोवा परमेश्वर ने इंसानों को इसलिए नहीं बनाया था कि पहले वे मरें और फिर बाद में स्वर्ग में आएँ। उसका यह उद्देश्य ही नहीं था कि वे कभी मरें। आदम और हव्वा को सिद्ध बनाया गया था और उन्हें इस धरती को सिद्ध बच्चों से भरने का मौका दिया गया था। (उत्पत्ति १:२८; व्यवस्थाविवरण ३२:४) हमारे पहले माता-पिता से कहा गया था कि वे सिर्फ तभी मरते जब वे परमेश्वर की आज्ञा तोड़ते। (उत्पत्ति २:१७) अगर वे अपने स्वर्गीय पिता की आज्ञा मानते रहते तो वे धरती पर हमेशा जीवित रहते।
९. (क) क्या इंसान में अमर आत्मा है? (ख) इंसान के मरने पर क्या होता है?
९ लेकिन दुःख की बात है कि आदम और हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी। (उत्पत्ति ३:६, ७) इसके बुरे अंजामों के बारे में पौलुस ने कहा: “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५:१२) आदम और हव्वा धरती पर हमेशा ज़िंदा रहने के बजाय मर गए। उसके बाद क्या हुआ? क्या उनमें अमर आत्मा थी जिसे उनके पाप करने की वज़ह से धधकते हुए नरक में झोंक दिया जाता? जब आदम और हव्वा मरे तो उनमें से कोई ऐसी चीज़ नहीं निकली जो ज़िंदा रही, वे पूरी तरह मर चुके थे। उनके साथ वही हुआ जैसा यहोवा ने आदम को बताया था: “[तू] अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।”—उत्पत्ति ३:१९.
१०, ११. डॉन फ्लेमिंग की बाइबल डिक्शनरी (हिंदी) आत्मा की शिक्षा के बारे में क्या कहती है और यह बाइबल की शिक्षा से कैसे सहमत है?
१० इससे डॉन फ्लेमिंग की बाइबल डिक्शनरी (हिंदी) सहमत है। आत्मा के बारे में एक लेख में यह कहती है: “पुराना नियम के लेखकों ने यह नहीं कहा कि आत्मा ऐसी है जिसका अस्तित्व देह से अलग है। उनके लिए आत्मा (‘नेफेश’) का अर्थ जीवन था। पशु तथा मनुष्य दोनों ही ‘नेफेश’ हैं अर्थात् जीवधारी हैं। अंग्रेजी के पुराने संस्करण ने अपने इस अनुवाद से उलझन उत्पन्न कर दी है कि ‘मनुष्य जीवित आत्मा (प्राणी) बन गया।’ (उत्प. 2:7), क्योंकि अन्य अनुवादों में ‘जीवित आत्मा’ वे ही शब्द हैं जिनका अनुवाद पहिले ‘जीवित प्राणी’ किया गया है (उत्प. 1:21, 24)। सम्पूर्ण पशुओं का जीवन ‘नेफेश’ है (या साइक; प्रका. 8:9)।” यह आगे कहती है कि बाइबल के मुताबिक “हमें व्यक्ति को इस प्रकार नहीं समझना चाहिए कि वह निर्जीव देह और देह रहित प्राण के मेल से बना है परन्तु उसे एक इकाई समझना चाहिए कि वह एक जीवित देह है। इस ‘नेफेश’ का अनुवाद ‘व्यक्ति’ भी किया जा सकता है।” ऐसी ईमानदारी वाकई काबिले-तारीफ है मगर एक व्यक्ति पूछ सकता है कि आखिर चर्च जानेवाले आम लोगों को ये सारी सच्चाइयाँ क्यों नहीं बताई गईं।
११ चर्च सदस्यों की चिंता और डर दोनों दूर हो जाते अगर उन्हें बाइबल की सरल सच्चाइयाँ बताई जातीं कि इंसान के अंदर ऐसी कोई भी अमर चीज़ नहीं होती जो मरने के बाद ज़िंदा रहती है और पीड़ा भुगतती है। जबकि यह शिक्षा चर्च की शिक्षा से बिलकुल फर्क है, यह पूरी तरह बुद्धिमान व्यक्ति सुलैमान की बात से मेल खाती है जिसने ईश्वर-प्रेरणा से कहा: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको [इस जीवन में] कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है। जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना, क्योंकि अधोलोक में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धि है।”—सभोपदेशक ९:५, १०.
१२. अमर आत्मा की शिक्षा को ईसाईजगत ने कहाँ से लिया?
१२ आखिर ईसाईजगत में ऐसी शिक्षा क्यों दी जाती है जो बाइबल से हटकर है? न्यू कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया कहती है कि आरंभिक चर्च फादर्स ने अमर आत्मा का आधार बाइबल में नहीं बल्कि “यूनान के कवियों और तत्वज्ञानियों और परंपरागत सोच-विचार में पाया था . . . बाद में विद्वानों ने प्लेटो या अरिस्टॉटल के सिद्धांतों को इस्तेमाल करना पसंद किया।” यह आगे कहती है कि “प्लेटो और नव-प्लेटो विचार-धाराएँ”—जिसमें अमर आत्मा की शिक्षा भी शामिल है—आखिरकार “ईसाईजगत की एक मूल धर्मशिक्षा” बना दी गई।
१३, १४. यूनानी गैरमसीही तत्वज्ञान से किसी तरह का ज्ञान पाने की उम्मीद रखना मूर्खता क्यों है?
१३ क्या मसीही होने का दावा करनेवालों को मृत्यु के बाद जीवन की शिक्षा लेने के लिए गैरमसीही यूनानी तत्वज्ञानियों की शरण लेनी चाहिए थी? बिलकुल नहीं। जब पौलुस ने यूनान देश में रह रहे कुरिन्थ के मसीहियों को लिखा, तब उसने कहा: “इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है; कि वह ज्ञानियों को उन की चतुराई में फंसा देता है। और फिर प्रभु ज्ञानियों की चिन्ताओं को जानता है, कि व्यर्थ हैं।” (१ कुरिन्थियों ३:१९, २०) प्राचीन यूनानी लोग मूर्तिपूजक थे। तो फिर उनके पास सच्चाई कहाँ से हो सकती थी? पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों से पूछा: “मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध? क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर के मन्दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है कि मैं उन में बसूंगा और उन में चला फिरा करूंगा; और मैं उन का परमेश्वर हूंगा, और वे मेरे लोग होंगे।”—२ कुरिन्थियों ६:१६.
१४ पवित्र सच्चाइयों को सबसे पहले इस्राएल जाति द्वारा ही प्रकट किया गया था। (रोमियों ३:१, २) सा.यु. ३३ के बाद, इन्हें पहली सदी की अभिषिक्त मसीही कलीसिया द्वारा प्रकट किया गया। पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों के बारे में कहा: “परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया [उन लोगों के लिए तैयार की गईं वस्तुएँ जो उससे प्रेम करते हैं]।” (१ कुरिन्थियों २:१०. प्रकाशितवाक्य १:१, २ भी देखें।) ईसाईजगत की अमर आत्मा की शिक्षा यूनानी तत्वज्ञान से ली गई थी। परमेश्वर ने इसे न तो इस्राएल द्वारा और न ही पहली सदी की अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया के माध्यम से सिखाया था।
मरे हुओं के लिए सच्ची आशा
१५. यीशु के मुताबिक मरे हुओं के लिए सच्ची आशा क्या है?
१५ अगर अमर आत्मा नहीं है तो मरे हुओं के लिए सच्ची आशा क्या है? यह पुनरुत्थान की आशा है, जो बाइबल की मूल शिक्षा और सचमुच परमेश्वर की एक अद्भुत प्रतिज्ञा है। यीशु ने पुनरुत्थान की आशा प्रदान की जब उसने अपनी मित्र मारथा से कहा: “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।” (यूहन्ना ११:२५) यीशु में विश्वास करने का मतलब है पुनरुत्थान में विश्वास करना न कि अमर आत्मा में।
१६. पुनरुत्थान में विश्वास करना तर्कसंगत क्यों है?
१६ यीशु ने इससे पहले भी पुनरुत्थान के बारे में ज़िक्र किया था जब उसने कुछ यहूदियों से कहा: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।” (यूहन्ना ५:२८, २९) यहाँ यीशु मृत्यु के बाद शरीर से निकलकर सीधे स्वर्ग जानेवाली आत्मा के बारे में बात नहीं कर रहा था। यीशु की यह बात भविष्य में उन लोगों के बाहर ‘निकलने’ के बारे में थी जो कई सदियों से यहाँ तक कि हज़ारों साल से कब्रों में हैं। ये मरे हुए लोग हैं जो जीवित होकर निकलते हैं। क्या यह नामुमकिन है? उस परमेश्वर के लिए नामुमकिन नहीं है “जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं।” (रोमियों ४:१७) परमेश्वर पर विश्वास न रखनेवाले शायद मृत्यु से जी उठने की बात का मज़ाक उड़ाएँ मगर यह इस सच्चाई से एकदम मेल खाती है कि “परमेश्वर प्रेम है” और इससे भी कि वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”—१ यूहन्ना ४:१६; इब्रानियों ११:६.
१७. पुनरुत्थान से परमेश्वर क्या काम पूरे करेगा?
१७ आखिर परमेश्वर उन लोगों को बिना जीवित किए कैसे प्रतिफल दे सकता है जो “प्राण देने तक विश्वासी” साबित होते हैं। (प्रकाशितवाक्य २:१०) पुनरुत्थान से परमेश्वर वह काम भी पूरा करेगा जिसके बारे में प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।” (१ यूहन्ना ३:८) अदन के बगीचे में शैतान तब पूरी मानवजाति का हत्यारा बन गया जब वह हमारे पहले माता-पिता को पाप और मृत्यु के रास्ते पर ले गया। (उत्पत्ति ३:१-६; यूहन्ना ८:४४) यीशु ने शैतान के कामों का नाश करना शुरू कर दिया जब उसने अपने सिद्ध जीवन का बलिदान दिया जिससे मानवजाति को पाप की उस वंशागत गुलामी से छुटकारा मिला। यह गुलामी आदम के जानबूझकर आज्ञा तोड़ने की वज़ह से मिली। (रोमियों ५:१८) आदम के इस पाप की वज़ह से मरनेवाले लोगों का पुनरुत्थान शैतान के कामों को नाश करने में एक और कदम होगा।
शरीर और अमर आत्मा
१८. यीशु जी उठा था, पौलुस की इस दलील को कुछ यूनानी तत्वज्ञानियों ने कैसे लिया और क्यों?
१८ जब प्रेरित पौलुस ऐथेने में था, वहाँ उसने एक भीड़ को सुसमाचार प्रचार किया जिसमें कुछ यूनानी तत्वज्ञानी भी थे। एकमात्र सच्चे परमेश्वर और मन फिराव के बारे में उसकी चर्चा को उन्होंने ध्यान से सुना। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? पौलुस ने अपना भाषण यह कहकर खत्म किया: “क्योंकि [परमेश्वर] ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” इस बात से हंगामा मच गया। “मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो ठट्ठा करने लगे।” (प्रेरितों १७:२२-३२) धर्मशास्त्री ऑस्कर कलमान ने कहा: “शायद उन यूनानियों के लिए जो अमर आत्मा में विश्वास रखते थे, मसीहियों द्वारा सिखायी जानेवाली पुनरुत्थान की शिक्षा को स्वीकार करना कठिन था। . . . सुकरात और प्लेटो जैसे बड़े तत्वज्ञानियों की शिक्षाओं का किसी भी तरीके से नये नियम की शिक्षाओं के साथ तालमेल नहीं बिठाया जा सकता।”
१९. मसीहीजगत के धर्मशास्त्रियों ने किस तरह पुनरुत्थान की शिक्षा को अमर आत्मा की शिक्षा के साथ जोड़ने की कोशिश की?
१९ लेकिन इसके बावजूद प्रेरितों की मौत के बाद बड़े पैमाने पर हुए धर्मत्याग के कुछ ही समय बाद धर्मशास्त्रियों ने पुनरुत्थान की मसीही शिक्षा को प्लेटो की अमर आत्मा की शिक्षा के साथ जोड़ने की कोशिश की। जल्द ही कुछ लोग एक बीच के समाधान के लिए राज़ी हो गए: मृत्यु के बाद आत्मा शरीर से अलग (जैसा कुछ लोग कहते हैं “आज़ाद”) हो जाती है। आर. जे. कुक द्वारा लिखी गई किताब पुनरुत्थान शिक्षा की रूपरेखा (अंग्रेज़ी) के मुताबिक न्याय के दिन “हर शरीर उसकी आत्मा के साथ और हर आत्मा उसके शरीर के साथ फिर से मिल जाएगी।” शरीर के उसकी आत्मा के साथ इस मिलन को पुनरुत्थान कहा गया।
२०, २१. किसने लगातार पुनरुत्थान के बारे में सच्चाई सिखायी है और इससे उन्हें कैसे फायदा हुआ है?
२० आज भी यह सिद्धांत बड़े-बड़े चर्चों की मुख्य शिक्षा बना हुआ है। जबकि यह विचार एक धर्मशास्त्री को तर्कपूर्ण लगे, चर्च जानेवाले ज़्यादातर लोग इससे बेखबर हैं। वे बस यह मानते हैं कि मरने पर वे सीधे स्वर्ग जाएँगे। इसलिए कॉमनवील के मई ५, १९९५ के अंक में, लेखक जॉन गारवी ने दावा किया: “ज़्यादातर ईसाइयों का [मृत्यु के बाद जीवन का] विश्वास मसीहियत की सच्ची शिक्षाओं से नहीं बल्कि नवप्लेटोवाद से मिलता है, और इस विश्वास का आधार बाइबल नहीं है।” वाकई, बाइबल की शिक्षा के बदले प्लेटो की शिक्षा देकर ईसाईजगत के पादरियों ने अपने लोगों के लिए बाइबल की पुनरुत्थान की आशा को मिटा दिया है।
२१ दूसरी तरफ, यहोवा के साक्षी गैरमसीही तत्वज्ञान को ठुकराते हैं और बाइबल में दी गई पुनरुत्थान की शिक्षा पर विश्वास करते हैं। ऐसी शिक्षा उन्हें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करती है, उन्हें संतुष्टि और तसल्ली देती है। अगले लेखों में हम देखेंगे कि पृथ्वी पर जीने का विश्वास रखनेवाले और पुनरुत्थान पाकर स्वर्गीय जीवन जीने की आशा रखनेवाले दोनों ही तरह के लोगों के लिए बाइबल में दी गई पुनरुत्थान की शिक्षा की बुनियाद कितनी मज़बूत है और यह कितनी तर्कसंगत है। इन लेखों को पढ़ने की तैयारी करने के लिए हम आपको सलाह देते हैं कि आप कुरिन्थियों की पहली पत्री के १५ अध्याय को ध्यान से पढ़ें।
क्या आपको याद है?
◻ हमें पुनरुत्थान पर मज़बूत विश्वास की क्यों ज़रूरत है?
◻ यहोवा ने आदम और हव्वा के सामने क्या आशा रखी थी?
◻ यूनानी तत्वज्ञान में सच्चाई ढूँढ़ना मूर्खता क्यों है?
◻ पुनरुत्थान में विश्वास करना क्यों तर्कसंगत है?
[पेज 10 पर तसवीर]
जब हमारे पहले माता-पिता ने पाप किया तब उन्होंने इस धरती पर हमेशा ज़िंदा रहने की आशा खो दी
[पेज 12 पर तसवीर]
चर्च के विद्वानों पर प्लेटो के अमर आत्मा के विश्वास का बहुत प्रभाव हुआ
[चित्र का श्रेय]
Musei Capitolini, Roma