यहोवा का वचन प्रबल होता है!
“यहोवा का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।”—प्रेरितों १९:२०.
१. प्रेरितों के काम, इस बाइबल किताब के अध्ययन में कौनसे विषयों पर ध्यान दिया जाएगा?
यहोवा कार्य का एक बड़ा द्वार खोल रहे थे। ख़ास तौर से पौलुस उस कार्य में अगुवाई करता। (रोमियों ११:१३) वस्तुतः, प्रेरितों के काम में हो रहे हमारे अध्ययन में हम उसे रोमांचक मिशनरी यात्रा करते हुए पाते हैं।—प्रेरितों १६:६-१९:४१.
२. (अ) सामान्य युग के लगभग वर्ष ५० से लेकर वर्ष ५६ तक, पौलुस ने किस तरह एक ईश्वरीय रूप से प्रेरित लिपिकार के रूप में सेवा की? (ब) क्या हुआ जब परमेश्वर ने पौलुस और अन्यों की सेवकाई पर आशीष दी?
२ पौलुस एक ईश्वरीय रूप से प्रेरित लिपिकार भी था। सामान्य युग के लगभग वर्ष ५० से लेकर वर्ष ५६ तक, उसने कुरिन्थुस से १ और २ थिस्सलुनीकियों, उसी शहर से या सीरियाई अन्ताकिया से गलतियों, इफिसुस से १ कुरिन्थियों, मकिदुनिया से २ कुरिन्थियों और कुरिन्थुस से रोमियों की पत्रियाँ लिखीं। और जैसे परमेश्वर ने पौलुस और अन्यों की सेवकाई पर आशीष दी, “यहोवा का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।”—प्रेरितों १९:२०.
एशिया से यूरोप तक
३. पौलुस और उसके साथियों ने पवित्र आत्मा द्वारा दिए मार्गदर्शन के संबंध में कौनसा उत्तम मिसाल पेश किया?
३ पौलुस और उसके साथियों ने पवित्र आत्मा से मार्गदर्शन स्वीकार करने का एक उत्तम मिसाल पेश किया। (१६:६-१०) शायद श्रवणीय प्रकटन, सपनों या दर्शनों के द्वारा, आत्मा ने उन्हें एशिया के ज़िले में और बितूनिया के प्रान्त में सुसमाचार सुनाने से मना किया, जहाँ पर बाद में सुसमाचार सुनाया गया। (प्रेरितों १८:१८-२१; १ पतरस १:१, २) आत्मा ने उन्हें पहले वहाँ प्रवेश करने से क्यों मना किया? कर्मचारी कम थे, और आत्मा उन्हें यूरोप में अधिक फलवान् क्षेत्रों की ओर ले जा रही थी। वैसे ही आज, अगर एक क्षेत्र में जानेवाला रास्ता बन्द है, तो यहोवा के गवाह कहीं और प्रचार करते हैं, निश्चित होकर कि परमेश्वर की आत्मा उन्हें भेड़-समान लोगों तक ले जाएगी।
४. सहायता के लिए बिनती कर रहे एक मकिदुनी पुरुष के विषय पौलुस के दर्शन की ओर कैसी प्रतिक्रिया हुई?
४ फिर पौलुस और उसके साथी एक मिशनरी क्षेत्र के तौर से एशिया माइनर के एक इलाके, मूसिया ‘से होकर’ आगे निकल गए। बहरहाल, एक दर्शन में, पौलुस ने एक मकिदुनी पुरुष को सहायता की बिनती करते हुए देखा। इसलिए मिशनरी झट मकिदुनिया में गए, जो कि बाल्कन प्रायद्वीप का एक इलाका है। उसी तरह, कई गवाह पवित्र आत्मा द्वारा अब उन जगहों में सेवा करने के लिए निर्देशित होते हैं जहाँ ज़रूरत बहुत ज़्यादा है।
५. (अ) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि फिलिप्पी में यहोवा का वचन प्रबल होता गया? (ब) आज किस रीति से कई आधुनिक गवाह लुदिया के समान हैं?
५ मकिदुनिया में यहोवा का वचन प्रबल होता गया। (१६:११-१५) फिलिप्पी में, जिसके निवासी अधिकतर रोमी नागरिक थे, प्रत्यक्षतः बहुत कम यहूदी थे और उस में कोई आराधनालय न था। इसलिए भाई नगर के बाहर नदी के किनारे पर ‘प्रार्थना करने के एक स्थान’ में गए। वहाँ उपस्थित लोगों में लुदिया थी, जो संभवतः एशिया माइनर के एक नगर, थुआथीरा की एक यहूदी मत धारण करनेवाली स्त्री थी। वह नगर उसके रँगाई उद्योग-धन्धे के लिए मशहूर था। वह बैंजनी रंजक या उस रँग के कपड़े और उस से रँगे जानेवाले वस्त्र बेचती थी। लुदिया और उसके परिवार के बपतिस्मा लेने के बाद, उसने उनकी मेहमानदारी करने के मौक़े के लिए इतने गंभीर रूप से बिनती की, कि लूका ने लिखा: “वह हमें मनाकर ले गई।” आज उस तरह की बहनों के लिए हम आभारी हैं।
एक दरोगा विश्वासी बन जाता है
६. फिलिप्पी में दुष्टात्मिक कार्य के फलस्वरूप पौलुस और सीलास की क़ैद किस तरह हुई?
६ फिलिप्पी में होनेवाले आध्यात्मिक विकास से शैतान अत्यन्त क्रोधित हुआ होगा, इसलिए कि वहाँ हुए दुष्टात्मिक कार्य के फलस्वरूप पौलुस और सीलास को क़ैद हुई। (१६:१६-२४) बहुत दिन तक उनके पीछे एक लड़की चलती रही, जिस में “भावी कहनेवाली आत्मा थी” (अक्षरश, “पाइथन की आत्मा”)। दुष्टात्मा ने शायद पाइथियन अपोलो नाम एक देवता का अभिनय किया होगा, कल्पित रूप से, जिसने पाइथन नाम के अज़गर को मार डाला। भविष्यकथन करके वह लड़की अपने स्वामियों के लिए बहुत कमा लाती थी। अजी, उसने शायद किसानों को बताया होगा कि कब बीज बोएँ, कुँवारियों को बताया होगा कि कब शादी करें, और खनिकों को, कि सोने के लिए कहाँ खोदा जाएँ! वह भाइयों के पीछे पीछे चलती रही और चिल्लाती रही: “ये मनुष्य परम प्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।” शायद दुष्टात्मा ने उससे ऐसा कहलवाया, ताकि नज़र आए कि उसकी भविष्यवाणियाँ ईश्वरीय रूप से प्रेरित हैं, लेकिन दुष्टात्माओं को यहोवा के बारे में और उद्धार के लिए उनके प्रबंध के बारे में घोषणा करने का कोई अधिकार नहीं है। जब पौलुस ऐसी परेशानी से थक गया, उसने यीशु के नाम से उस दुष्टात्मा को निकाल दिया। चूँकि उनका धन्धा चौपट हो चुका था, उस लड़की के स्वामी पौलुस और सीलास को बाज़ार के चौक में घसीट ले गए, जहाँ उन्हें छड़ियों से मारा गया। (२ कुरिन्थियों ११:२५) फिर उन्हें क़ैद किया गया और काठ में उनके पाँवों को ठोंक दिया गया। ऐसे यन्त्र को इस रीति से समंजित किया जा सकता था कि किसी व्यक्ति की टाँगों को ज़बरदस्ती से एक दूसरे के दूर, मानो उन्हें अलग कर रहे हों, किया जा सकता था, जिस से बहुत अधिक तक़लीफ़ होती थी।
७. फिलिप्पी में पौलुस और सीलास की क़ैद किस के लिए और कैसे एक आशीर्वाद बनी?
७ इस क़ैद से दरोगा और उसके परिवार को आशीर्वाद मिला। (१६:२५-४०) क़रीब आधी रात को पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्वर का गुण-गान गाकर कर रहे थे, निश्चित होकर कि वह उनके साथ था। (भजन ४२:८) अचानक, एक भुईंडोल हुआ जिसमें दरवाज़े खुल गए और सब बन्धन खुल गए जब बेड़ियाँ काँड़ियों या दीवारों से अलग हो गयीं। दरोगा को डर लगा कि कहीं उसे मृत्युदण्ड ना भुगतना पड़े, इसलिए कि उसके क़ैदी भाग गए थे। वह खुदखुशी करने ही वाला था, जब पौलुस ने पुकारा: “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहाँ हैं!” पौलुस और सीलास को बाहर ले आकर, दरोगा ने पूछा कि वह किस तरह उद्धार पा सकता था। जो उत्तर मिला वह था, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर।” यहोवा का वचन सुनने के बाद, “उस ने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।” उस से कैसी खुशी उत्पन्न हुई!
८. फिलिप्पी के हाकिमों ने कौनसी कार्यवाई ली, और अगर उन्होंने सब के सामने अपनी ग़लती क़बूल कर ली होती, तो क्या निष्पन्न हुआ होगा?
८ दूसरे दिन, हाकिमों ने पौलुस और सीलास को छोड़ देने की आज्ञा दी। लेकिन पौलुस ने कहा: ‘उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना मारा, और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या हमें चुपके से निकाल देते हैं? वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।’ अगर हाकिम अपनी ग़लती सब के सामने कबूल कर लें, शायद वे दूसरे मसीहियों को मारने और क़ैद करने से हिचकिचाएँगे। रोमी नागरिकों को निकाल न सक कर, हाकिमों ने आकर भाइयों को जाने के लिए कहा, लेकिन संगी विश्वासियों को प्रोत्साहित करने के बाद ही वे चले गए। ऐसी चिन्ता ही अब शासी निकाय के सदस्यों और अन्य यात्रा करनेवाले प्रतिनिधियों को पूरी दुनिया में परमेश्वर के लोगों को भेंट देने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित करती है।
थिस्सलुनीके और बिरीया में यहोवा का वचन प्रबल होता है
९. पौलुस ने कौनसे तरीक़े से, जो अब भी यहोवा के गवाह द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, ‘अर्थ खोला और समझाया’ कि मसीहा को दुःख उठाना और मरे हुओं में से जी उठना अवश्य था?
९ फिर परमेश्वर का वचन मकिदुनिया की राजधानी और मुख्य बन्दरगाह, थिस्सलुनीके में प्रबल हुआ। (१७:१-९) वहाँ पौलुस ने यहूदियों के साथ तर्क किया, और “अर्थ खोल खोलकर समझाता” रहा कि मसीहा को दुःख उठाना और मरे हुओं में से जी उठना अवश्य था। (पौलुस ने भविष्यवाणियों की तुलना उन घटनाओं से की, जो पूरा हो रही थीं, उसी तरह जैसे यहोवा के गवाह करते हैं।) इस प्रकार, कुछेक यहूदी, अनेक यहूदी मत धारण करनेवाले व्यक्ति, और अन्य लोग विश्वासी बन गए। जब कुछ इर्ष्यालु यहूदियों ने एक भीड़ लगायी, परन्तु पौलुस और सीलास को पा न सके, तब उन्होंने यासोन और कितने और भाइयों को नगर के हाकिमों के सामने खींच लिया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया, एक ऐसा आरोप जो अब भी यहोवा के लोगों पर लगाया जाता है। बहरहाल, ‘पर्याप्त ज़मानत’ देने के बाद भाइयों को छोड़ दिया गया।
१०. बिरीया के यहूदियों ने किस अर्थ से शास्त्रों में ‘ध्यानपूर्वक ढूँढ़ा?’
१० उसके बाद पौलुस और सीलास बिरीया के नगर में गए। (१७:१०-१५) वहाँ यहूदियों ने शास्त्रों में ‘ध्यानपूर्वक ढूँढ़ा,’ उसी तरह जैसे कि आज यहोवा के गवाह लोगों को करने का प्रोत्साहन देते हैं। उन बिरीया वासियों ने पौलुस के शब्दों पर संदेह नहीं किया बल्कि उन्होंने खोज किया ताकि यह साबित कर सके कि यीशु ही मसीहा था। इसका नतीजा? अनेक यहूदी और कुछेक यूनानी (संभवतः यहूदी मत धारण करनेवाले) विश्वासी बन गए। जब थिस्सलुनीके के यहूदियों ने लोगों को उसकाया, भाई पौलुस के रक्षण के लिए उसे साथ लेकर समुद्र के किनारे पर चले गए, जहाँ से शायद उनकी टोली के कुछ सदस्य अथेने के बन्दरगाह नगर, पिरेइयस (आधुनिक समय का पिराइएवस्) के लिए रवाना होने के लिए एक जहाज़ पर चढ़ गए।
यहोवा का वचन अथेने में प्रबल होता है
११. (अ) पौलुस ने किस तरह अथेने में सुसमाचार को निडरता से सुनाया, लेकिन किसने उनके साथ विवादास्पद रूप से बात की? (ब) कुछ लोगों का क्या अर्थ था जब उन्होंने पौलुस का ज़िक्र एक “बकवादी” के तौर से किया?
११ अथेने में सुसमाचार निडरता से सुनाया गया। (१७:१६-२१) यीशु और पुनरुत्थान के बारे में पौलुस के शब्दों के कारण, दार्शनिकों ने पौलुस के साथ विवादास्पद रूप से बात की। कुछेक इपिकूरी थे, जिन्होंने सुख-विलास पर ज़ोर दिया। अन्य स्तोईकी थे, जो आत्म-संयम पर बल देते थे। कुछों ने पूछा: “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” “बकवादी” (अक्षरशः, “दाना चुगनेवाला”), इस शब्द से सूचित हुआ कि पौलुस एक चिड़िया की तरह था जो दाना चुगता और ज्ञान के टुकड़े थोड़ा-थोड़ा करके बाँटता, जिस में कोई बुद्धिमानी न थी। अन्यों ने कहा: “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है।” यह एक गंभीर बात थी, इसलिए कि सुकरात ऐसे ही एक आरोप पर अपनी जान गवाँ बैठा था। जल्द ही पौलुस को अरियुपगुस (मार्स पहाड़ी) पर ले जाया गया, संभवतः जहाँ खुले में होनेवाली सबसे बड़ी अदालत, ॲक्रॉपोलिस के पास मिलती थी।
१२. (अ) अच्छे भाषण देने की कला की कौनसी बातें अरियुपगुस पर दिए पौलुस के भाषण में प्रकट हैं? (ब) पौलुस ने परमेश्वर के बारे में कौनसी बातें की, और नतीजा क्या रहा?
१२ अरियुपगुस पर दिया पौलुस का भाषण एक ऐसे भाषण का उत्तम मिसाल था, जिस में एक प्रभावशाली प्रस्तावना, तर्कसंगत बढ़ती और प्रत्यायक दलील, सभी थे—जैसा कि यहोवा के गवाहों के थिओक्रॅटिक मिनिस्ट्री स्कूल में सिखाया जाता है। (१७:२२-३४) उसने कहा कि अथेने के लोग अन्यों की तुलना में अधिक धार्मिक थे। अजी, उनकी एक वेदी “एक अनजाने ईश्वर के लिए” भी थी, शायद इसलिए कि किसी भी देवता का अपमान न हो! पौलुस ने एक सृजनहार के बारे में बताया जिसने “एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ . . . बनाई,” और “उनके ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को . . . बान्धा,” जैसा कि कनानियों को किस समय उखाड़ दिया जाए। (उत्पत्ति १५:१३-२१; दानिय्येल २:२१; ७:१२) इस परमेश्वर को पाया जा सकता है, क्योंकि पौलुस ने कहा कि “हम तो उसी के वंश भी हैं।” वह यहोवा द्वारा मनुष्य की सृष्टि की ओर संकेत कर रहा था और उन्हीं के कवि अरातुस और क्लीएन्थीस के शब्दों का उद्धरण कर रहा था। परमेश्वर के वंश होने के नाते, हमें नहीं सोचना चाहिए कि पूर्ण सृजनहार अपूर्ण मनुष्य द्वारा बनायी गयी एक मूर्ती के समान है। परमेश्वर ने पहले ऐसी अज्ञानता की आनाकानी की, लेकिन अब वह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा दे रहे थे, इसलिए के उन्होंने एक दिन ठहराया है जिस में वह अपने नियुक्त व्यक्ति के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करनेवाले हैं। चूँकि पौलुस “यीशु का सुसमाचार सुना” रहा था, उनके श्रोताओं को मालूम था कि उसका मतलब यह था कि मसीह ही वह न्यायी होगा। (प्रेरितों १७:१८; यूहन्ना ५:२२, ३०) मन फिराने की बात ता इपिकुरियों को बुरी लगी, और यूनानी दार्शनिक अमरता की बातें तो स्वीकार कर सकते थे परन्तु मृत्यु और पुनरुत्थान की बातें नहीं। प्रत्यक्षतः, उन अनेकों लोगों की तरह जो अब सुसमाचार को टालते हैं, कुछों ने कहा: ‘हम तुझ को फिर कभी सुनेंगे।’ लेकिन न्यायी दियुनुसियुस और अन्य लोग विश्वासी बन गए।
परमेश्वर का वचन कुरिन्थुस में प्रबल होता है
१३. पौलुस ने सेवकाई में अपना खर्च किस तरह चलाया, और हम कौनसा आधुनिक जोड़ पाते हैं?
१३ पौलुस फिर अखाया के प्रान्त की राजधानी, कुरिन्थुस में गया। (१८:१-११) वहाँ उसकी मुलाक़ात अक्विला और प्रिस्किल्ला से हुई, जो कि वहाँ तब आए थे जब क़ैसर क्लौदियुस ने उन यहूदियों को रोम छोड़ने की आज्ञा दी जो रोमी नागरिक नहीं थे। सेवकाई में अपना ख़र्च चलाने के लिए, पौलुस इस मसीही दंपत्ति के साथ तंबू बनाने लगा। (१ कुरिन्थियों १६:१९; २ कुरिन्थियों ११:९) बक़री के लोम से बने सख़्त कपड़े को काटना और सीना मुश्किल काम था। उसी तरह, यहोवा के गवाह धर्म-निर्पेक्ष काम करके अपनी भौतिक आवश्यकताओं के लिए प्रबंध करते हैं, परन्तु उनका प्रधान कार्य सेवकाई है।
१४. (अ) कुरिन्थुस के यहूदियों के लगातार विरोध के सम्मुख, पौलुस ने क्या किया? (ब) पौलुस को किस तरह आश्वासन दिया गया कि उसे कुरिन्थुस में ठहरना चाहिए, लेकिन आज यहोवा के लोग मार्गदर्शन किस तरह प्राप्त करते हैं?
१४ जब पौलुस ने यीशु के मसीहापन की घोषणा की, तब कुरिन्थुस के यहूदी निन्दा करते रहे। इसलिए यह दिखाने के लिए उनके प्रति उसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं रही, पौलुस ने अपने वस्त्र झाड़े और वह संभवतः एक रोमी, तितुस युस्तुस नाम व्यक्ति के घर में सभाएँ आयोजित करने लगा। अनेक लोग (जिन में आराधनालय का भूतपूर्व सरदार, क्रिसपुस और उसके परिवारवाले शामिल थे) बपतिस्मा प्राप्त विश्वासी बन गए। यदि यहूदियों के विरोध से पौलुस ने कभी विचार किया कि क्या कुरिन्थ में रहे या नहीं, तो उसका सारा संदेह दूर हुआ जब प्रभु ने उसे दर्शन के द्वारा बताया: ‘मत डर। कहे जा, क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ और कोई तेरी हानि न करेगा। इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।’ इसलिए पौलुस वहाँ कुल मिलाकर डेढ़ साल तक परमेश्वर का वचन सिखाता रहा। हालाँकि यहोवा के लोगों को अब दर्शन प्राप्त नहीं होते, प्रार्थना और पवित्र आत्मा के द्वारा पाए गए मार्गदर्शन से उन्हें राज्य हितों पर असर करनेवाले समान बुद्धिमान निर्णय लेने की मदद मिलती है।
१५. जब पौलुस को हाकिम गल्लियो के सामने पेश किया गया तब क्या हुआ?
१५ यहूदी पौलुस को हाकिम युनुस गल्लियो के पास ले गए। (१८:१२-१७) उन्होंने संकेत किया कि पौलुस ग़ैर-क़ानूनी रूप से शिष्य बना रहा था—एक झूठा आरोप जो यूनानी पादरी यहोवा के गवाहों पर आज भी लगाते हैं। गल्लियो को पूरी तरह मालूम था कि पौलुस बुराई का दोषी न था और कि यहूदियों को रोम और उसके क़ानून का ज़रा-सा भी ख़याल न था, इसलिए उसने उन्हें भगा दिया। जब प्रेक्षकों ने आराधनालय के नए सरदार सोस्थिनेस की पिटाई की, तब गल्लियो ने दख़ल न दिया, शायद यह सोचकर कि पौलुस के विरुद्ध भीड़ के दुर्व्यवहार के प्रत्यक्ष नेता को वही मिल रहा था जिसका वह योग्य था।
१६. एक मन्नत के संबंध में पौलुस का अपना सिर मुण्डवाना क्यों स्वीकार्य था?
१६ पौलुस एजियन सागर के एक बन्दरगाह, किंख्रिया से एशिया माइनर के एक नगर, इफिसुस के लिए रवाना हो गया। (१८:१८-२२) उस यात्रा से पहले ‘उसने अपना सिर मुण्डवाया था, क्योंकि उसने एक मन्नत मानी थी।’ यह नहीं बताया गया है कि पौलुस ने यह मन्नत यीशु के अनुयायी बनने से पहले मानी थी या क्या यह मन्नत की मुद्दत की शुरुआत थी या अन्त था। मसीही व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, लेकिन यह ईश्वर-प्रदत्त और पवित्र थी, और ऐसी मन्नत के विषय में ऐसी कोई भी पापमय बात न थी। (रोमियों ६:१४; ७:६, १२; गलतियों ५:१८) इफिसुस में, पौलुस ने यहूदियों के साथ तर्क किया और उसने वादा किया कि यदि यह परमेश्वर की इच्छा थी, तो वह ज़रूर वापस आता। (वह वादा बाद में पूरा हुआ।) उसके सीरियाई अन्ताकिया में लौट जाने के बाद उसकी दूसरी मिशनरी यात्रा ख़त्म हो गयी।
यहोवा का वचन इफिसुस में प्रबल होता है
१७. बपतिस्मा के संबंध में, अपुल्लोस और कुछ अन्य लोगों को क्या बताना आवश्यक हुआ?
१७ पौलुस ने अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा जल्द ही शुरू की। (लगभग सामान्य युग के वर्ष ५२-५६ में)। (१८:२३-१९:७) उसी बीच इफिसुस में, अपुल्लोस ने यीशु के बारे में सिखाया, किन्तु वह सिर्फ़ यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था जो कि व्यवस्था नियम के ख़िलाफ़ किए पापों के प्रायश्चित का एक प्रतीक था। प्रिस्किल्ला और अक्विल्ला ने “परमेश्वर का मार्ग उस को और भी ठीक ठीक बताया,” संभवतः यह समझाते हुए कि यीशु के जैसे बपतिस्मा पाने में एक व्यक्ति का पानी में निमज्जित होना और उँडेल दी गयी आत्मा प्राप्त करना भी शामिल है। सामान्य युग वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त के अवसर पर पवित्र आत्मा से हुए बपतिस्मा के बाद, जिस किसी ने यूहन्ना का बपतिस्मा लिया था, उसको यीशु के नाम में फिर से बपतिस्मा लेने की ज़रूरत थी। (मत्ती ३:११, १६; प्रेरितों २:३८) बाद में इफिसुस में, लगभग १२ यहूदी मनुष्यों ने, जिन्होंने यूहन्ना का बपतिस्मा लिया था, “प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा लिया।” यह शास्त्रों में लिपिबद्ध एकमात्र पुनःबपतिस्मा है। जब पौलुस ने अपने हाथ उन पर रखे, तब उनको पवित्र आत्मा प्राप्त हुई और स्वर्गीय स्वीकृति के दो चमत्कारिक सूचनाएँ मिली—भिन्न भिन्न भाषाओं में बोलना और भविष्यद्वाणी करना।
१८. इफिसुस में रहते समय, पौलुस ने कहाँ कहाँ सुसमाचार सुनाया, और नतीजा क्या रहा?
१८ निश्चय ही पौलुस को इफिसुस में, जो कि ३,००,००० निवासियों का एक नगर था, व्यस्त रखा गया। (१९:८-१०) देवी अरतिमिस का मंदिर प्राचीन दुनिया के सात अजूबों में से एक था, और इस के रंगशाला में २५,००० लोग बैठ सकते थे। आराधनालय में, पौलुस ने प्रत्यायक तर्क पेश करके अनुनय से ‘समझाया’ लेकिन उसने उन्हें छोड़ दिया जब कुछ लोग इस मार्ग, या मसीह में विश्वास पर आधारित जीवन बिताने के तरीक़े को बुरा कहने लगे। दो साल तक, पौलुस हर रोज़ तुरन्नुस की पाठशाला में विवाद किया करता था, और “वचन” सारे एशिया के ज़िले में फैल गया।
१९. इफिसुस में क्या हुआ जिस के कारण ‘यहोवा का वचन फैलता और प्रबल होता गया?’
१९ लोगों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने की शक्ति देकर, परमेश्वर ने पौलुस के क्रियाकलाप के लिए अपनी स्वीकृति दिखायी। (१९:११-२०) लेकिन स्क्किवा नाम के एक यहूदी महायाजक के सात पुत्र यीशु का नाम लेकर एक दुष्टात्मा को निकालने में असफ़ल रहे, इसलिए कि वे परमेश्वर और मसीह के प्रतिनिधि नहीं थे। दुष्टात्मा-ग्रस्त आदमी ने उन्हें घायल भी कर दिया! इस से लोग भयभीत हो गए, और “प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई हुई।” जो लोग विश्वासी बन गए उन्होंने अपने टोना-संबंधी आदतें त्याग दीं और अपनी किताबों को सब के सामने जला डाला, जिन में संभवतः मंत्र-तंत्र और जादुई नुसख़े थे। “यों,” लूका ने लिखा, “यहोवा का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।” आज भी, परमेश्वर के सेवक लोगों को दुष्टात्माओं के प्रभाव से छूटने की मदद करते हैं।—व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२.
धार्मिक अनुदारता सफ़ल नहीं होती
२०. इफिसुस के सुनारों ने दंगा क्यों मचा दिया, और उसका अन्त क्या था?
२० यहोवा के गवाहों ने अक़सर क्रोधित भीड़ों का सामना किया है, और इफिसुस के मसीहियों ने भी इसी तरह सामना किया। (१९:२१-४१) जैसे जैसे विश्वासियों की संख्या बढ़ने लगी, देमेत्रियुस और अन्य सुनारों का धन्धा चौपट होता चला गया, इसलिए कि और भी कम लोगों ने उनके बनाए हुए बहु-स्तनीय देवी अरतिमिस की चाँदी के मंदिर ख़रीदे। देमेत्रियुस द्वारा भड़काए जाने की वजह से, भीड़ पौलुस के साथी गयुस और अरिस्तरखुस को रंगशाला में ले गयी, लेकिन शिष्यों ने पौलुस को अन्दर जाने नहीं दिया। उत्सव और खेलों के कुछ अधिकारियों ने भी उस से बिनती की कि वह इस ख़तरे को न मोल लें। क़रीब दो घण्टों तक, भीड़ चिल्लाती रही: “इफिसियों की अरतिमिस महान है!” आख़िरकार, नगर के मन्त्री ने कहा, (जो नगरपालिका सरकार का प्रमुख था), कि कारीगर अपने आरोप हाकिम के सामने पेश करें, जिसे न्यायिक निर्णय लेने का अधिकार था, नहीं तो उनका मामला नागरिकों की “नियत सभा” में तै किया जाएगा। नहीं तो, रोमी सरकार इस नियम-विरुद्ध सभा के लोगों पर दंगा का आरोप लगा सकती है। यह कहकर, उसने उन्हें बरख़ास्त किया।
२१. परमेश्वर ने पौलुस के कार्य पर किस तरह आशीर्वाद दिया, और वह आज यहोवा के गवाहों के कार्य पर किस तरह आशीष देते हैं?
२१ परमेश्वर ने पौलुस को अनेक परीक्षाओं का सामने करने में मदद की और लोगों को धार्मिक चूक का परित्याग करने तथा सच्चाई का अंगीकार करने की उसकी कोशिशों पर आशीर्वाद दिया। (यिर्मयाह १:९, १० से तुलना करें।) हम कितने आभारी हैं कि हमारे स्वर्ग के पिता उसी तरह से हमारे काम पर आशीर्वाद देते हैं! इस प्रकार, पहली सदी के जैसे अब भी, ‘यहोवा का वचन फैलता और प्रबल होता है।’
आप क्या जवाब देंगे?
◻ पवित्र आत्मा से मार्गदर्शन पाने में पौलुस ने कौनसा उदाहरण पेश किया?
◻ पौलुस ने कौनसे तरीक़े से, जो अब भी यहोवा के दासों द्वारा इस्तेमाल होता है, बातों का ‘अर्थ खोला और उन्हें समझाया?’
◻ अरियुपगुस पर पौलुस के भाषण और यहोवा के गवाहों के प्रचार कार्य की ओर दिखायी प्रतिक्रियाओं में कौनसी समानताएँ हैं?
◻ पौलुस ने सेवकाई में अपना निर्वाह किस तरह किया, और इसकी कौनसी आधुनिक अनुरूपता है?
◻ जैसा कि उन्होंने पौलुस के कार्य के साथ किया, परमेश्वर ने आज यहोवा के गवाहों के कार्य पर किस तरह आशीष दी है?
[पेज 26 पर तसवीरें]
यहोवा का वचन प्रबल हुआ
१. फिलिप्पी में
२. और ३. अथेने में
४. और ६. इफिसुस में
५. रोम में
[चित्र का श्रेय]
Photo No. 4: Manley Studios