कौन “उद्धार पाएगा”?
“जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।”—प्रेरितों २:२१.
१. पिन्तेकुस्त सा यु ३३ का दिन विश्व इतिहास में एक खास मोड़ क्यों था?
पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ विश्व इतिहास में एक खास मोड़ था। क्यों? क्योंकि उस दिन एक नयी जाति का जन्म हुआ। शुरूआत में, यह एक बहुत बड़ी जाति नहीं थी—यरूशलेम में एक उपरौठी कोठरी में एकत्रित हुए यीशु के मात्र १२० चेले। लेकिन आज, जबकि उस समय की अधिकांश जातियों को भुला दिया गया है, उस उपरौठी कोठरी में जन्मी जाति अभी तक हमारे साथ है। यह सच्चाई हम सभी के लिए सबसे ज़्यादा महत्त्व की है, क्योंकि यह वह जाति है जिसे मानवजाति के सामने उसका साक्षी होने के लिए परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया गया है।
२. नई जाति अस्तित्त्व में आने पर कौन-सी चमत्कारिक घटनाएँ घटीं?
२ जब वह नई जाति अस्तित्त्व में आई, महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं जिससे योएल के भविष्यसूचक वचनों की पूर्ति हुई। हम इन घटनाओं के बारे में प्रेरितों २:२-४ में पढ़ते हैं: “एकाएक आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द हुआ, और उस से सारा घर जहां वे बैठे थे, गूंज गया। और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” इस प्रकार वे १२० वफादार पुरुष और स्त्री एक आत्मिक जाति बने। वे उस जाति के पहले सदस्य थे जिन्हें प्रेरित पौलुस ने बाद में ‘परमेश्वर का इस्राएल’ कहा।—गलतियों ६:१६.
३. पिन्तेकुस्त सा यु ३३ के दिन योएल की कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हुई?
३ “बड़ी आंधी की सी सनसनाहट” का कारण जानने के लिए भीड़ इकट्ठी हो गई और प्रेरित पतरस ने उन्हें समझाया कि योएल द्वारा की गई एक भविष्यवाणी पूरी हो रही थी। कौन-सी भविष्यवाणी? सुनिए उसने क्या कहा: “परमेश्वर कहता है, कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे, और तुम्हारे पुरनिए स्वप्न देखेंगे। बरन मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे। और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम, और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात् लोहू, और आग और धूंए का बादल दिखाऊंगा। प्रभु के महान और प्रसिद्ध दिन के आने से पहिले सूर्य अंधेरा और चान्द लोहू हो जाएगा। और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।” (प्रेरितों २:१७-२१) जिन शब्दों को पतरस ने उद्धृत किया वे योएल २:२८-३२ में पाए जाते हैं और उनकी पूर्ति का मतलब था कि यहूदी जाति के लिए समय समाप्त हो रहा था। “प्रभु के महान और प्रसिद्ध दिन” का समय, बेवफा इस्राएल के न्याय करने का समय निकट था। लेकिन किसे बचाया जाएगा, या कौन उद्धार पाएगा? और इसने किस बात का पूर्वाभास दिया?
भविष्यवाणी की दो पूर्तियाँ
४, ५. होनेवाली घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, पतरस ने कौन-सी सलाह दी, और वह सलाह उसके दिनों के बाद भी क्यों लागू होती है?
४ सा.यु. ३३ के बाद के सालों में, परमेश्वर का आत्मिक इस्राएल फूला-फला, लेकिन शारीरिक इस्राएल जाति नहीं। सा.यु. ६६ में शारीरिक इस्राएल का रोम के साथ युद्ध चल रहा था। सा.यु. ७० में, इस्राएल का अस्तित्त्व करीब-करीब खत्म हो चुका था और यरूशलेम को उसके मंदिर सहित जलाकर खाक में मिलाया जा चुका था। सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त में, पतरस ने उस आनेवाली मुसीबत को देखते हुए एक उत्तम सलाह दी। दोबारा योएल को उद्धृत करते हुए, उसने कहा: ‘जो कोई यहोवा का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।’ हरेक यहूदी को यहोवा का नाम लेने का निजी फैसला करना था। इसमें पतरस के अगले निर्देशनों का पालन करना शामिल था: “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले।” (प्रेरितों २:३८) पतरस के सुननेवालों को यीशु को एक मसीहा के रूप में स्वीकार करना था, जिसे एक जाति के तौर पर इस्राएल ने ठुकरा दिया था।
५ योएल के उन भविष्यसूचक वचनों का पहली शताब्दी के नम्र लोगों पर गहरा असर हुआ। लेकिन, आज उनका असर पहले से भी ज़्यादा हुआ है क्योंकि, जैसा २०वीं शताब्दी की घटनाएँ दिखाती हैं, योएल की भविष्यवाणी की दूसरी पूर्ति हुई है। आइए, हम देखें कैसे।
६. सन् १९१४ के निकट आते-आते, परमेश्वर के इस्राएल की पहचान कैसे स्पष्ट होना शुरू हो गयी थी?
६ प्रेरितों की मृत्यु के बाद, परमेश्वर का इस्राएल झूठी मसीहियत के जंगली दानों द्वारा ढक गया था। लेकिन अंत के समय में, जो १९१४ से शुरू हुआ, इस आत्मिक जाति की पहचान एक बार फिर स्पष्ट हो गई। यह सब गेहूँ और जंगली दानों के यीशु के दृष्टांत की पूर्ति में हुआ था। (मत्ती १३:२४-३०, ३६-४३) जब १९१४ निकट आया, अभिषिक्त मसीहियों ने खुद को बेवफा मसीहीजगत से अलग करना शुरू कर दिया। उन्होंने निडरता से उसके झूठे धर्मसिद्धांतों को ठुकरा दिया और प्रचार किया कि “अन्य जातियों का समय” जल्द ही पूरा होनेवाला है। (लूका २१:२४) लेकिन पहले विश्व युद्ध ने, जो १९१४ में शुरू हुआ, कुछ ऐसे मसले खड़े किए जिनके लिए वे तैयार नहीं थे। हद-से-ज़्यादा दबाव आने पर अनेक लोग ढीले पड़ गए और कुछ ने समझौता कर लिया। १९१८ तक उनकी प्रचार गतिविधि लगभग खत्म हो गयी थी।
७. (क)सन् १९१९ में पिन्तेकुस्त सा यु ३३ जैसी ही कौन-सी घटना घटी? (ख) सन् १९१९ से, यहोवा के सेवकों पर परमेश्वर की आत्मा के उँडेले जाने का कैसा असर हुआ?
७ लेकिन ऐसा ज़्यादा समय तक नहीं चला। १९१९ से यहोवा ने अपने लोगों पर उस तरीके से पवित्र आत्मा उँडेलना शुरू किया जिसने सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त की याद दिलायी। बेशक, १९१९ में अन्य-अन्य भाषाओं में बोलना नहीं हुआ और बड़ी आँधी की सी सनसनाहट नहीं हुई। हम १ कुरिन्थियों १३:८ में पौलुस के शब्दों से समझते हैं कि चमत्कार करने का समय बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था। लेकिन परमेश्वर की आत्मा का स्पष्ट प्रमाण मिला जब १९१९ में, सीडर पॉइंट, ओहायो, अमरीका के एक अधिवेशन में वफादार मसीही दोबारा सक्रिय हुए और राज्य के सुसमाचार का प्रचार कार्य फिर से शुरू किया। १९२२ में वे सीडर पॉइंट में दोबारा एकत्रित हुए और इस अपील द्वारा प्रेरित हुए, “राजा और उसके राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो।” जैसा पहली सदी में हुआ था, संसार को परमेश्वर की आत्मा के उँडेले जाने के प्रभावों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया गया था। हरेक समर्पित मसीही—पुरुष और स्त्री, बूढ़े और जवान—“भविष्यद्वाणी” करने लगे यानी “परमेश्वर के बड़े बड़े कामों” की घोषणा करने लगे। (प्रेरितों २:११) पतरस की तरह उन्होंने नम्र लोगों से आग्रह किया: “इस कुटिल पीढ़ी से बचो।” (प्रेरितों २:४०, NHT) प्रतिक्रिया दिखानेवाले ऐसा कैसे कर सकते थे? योएल २:३२ (NHT) में पाए गए योएल के वचनों का पालन करने के द्वारा: “जो कोई यहोवा का नाम लेगा वह उद्धार पाएगा।”
८. सन् १९१९ से, परमेश्वर के इस्राएल के कार्य कैसे बढ़ते चले गए हैं?
८ उन शुरूआत के सालों से, परमेश्वर के इस्राएल से संबंधित मामले बढ़ते चले गए हैं। अभिषिक्त जनों को मुहर लगाने का काम बहुत आगे बढ़ चुका है, और १९३० के दशक से पार्थिव आशा रखनेवाली नम्र लोगों की एक बड़ी भीड़ उभरकर सामने आयी है। (प्रकाशितवाक्य ७:३, ९) सभी अत्यावश्यकता की भावना महसूस करते हैं, क्योंकि योएल २:२८, २९ की दूसरी पूर्ति दिखाती है कि हम यहोवा के एक और ज़्यादा भयानक दिन के निकट हैं, जब संसार-व्याप्त धार्मिक, राजनीतिक और व्यापारिक रीति-व्यवस्था नष्ट कर दी जाएँगी। हमारे पास पूरे विश्वास के साथ “यहोवा का नाम” लेने के पुख्ता कारण हैं कि वह हमें बचाएगा!
हम यहोवा का नाम कैसे लेते हैं?
९. यहोवा का नाम लेने में कौन-सी कुछ बातें शामिल हैं?
९ यहोवा का नाम लेने में क्या शामिल है? योएल २:२८, २९ का संदर्भ हमें इस सवाल का जवाब देने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, यहोवा हर ऐसे व्यक्ति की नहीं सुनता जो उसका नाम लेता है। एक और भविष्यवक्ता, यशायाह के ज़रिए यहोवा ने इस्राएल से कहा: “जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुख फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा।” यहोवा ने अपने ही लोगों की सुनने से इनकार क्यों किया? वह खुद समझाता है: “तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं।” (यशायाह १:१५) यहोवा ऐसे किसी भी व्यक्ति की नहीं सुनेगा जो रक्तदोषी है या जो पाप करता रहता है। इसीलिए पिन्तेकुस्त के दिन पतरस ने यहूदियों से मन फिराने के लिए कहा। योएल २:२८, २९ के संदर्भ में, हम देखते हैं कि योएल ने भी मन फिराने पर ज़ोर दिया। उदाहरण के लिए, योएल २:१२, १३ में हम पढ़ते हैं: “तौभी यहोवा की यह वाणी है, अभी भी सुनो, उपवास के साथ रोते-पीटते अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ। अपने वस्त्र नहीं, अपने मन ही को फाड़कर अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो; क्योंकि वह अनुग्रहकारी, दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला, करुणानिधान . . . है।” १९१९ से लेकर, अभिषिक्त मसीहियों ने इन शब्दों के अनुसार काम किया। उन्होंने अपनी असफलता पर पश्चाताप किया और दोबारा कभी-भी समझौता न करने या ढीले न पड़ने का निश्चय किया। इससे परमेश्वर की आत्मा के उँडेले जाने का रास्ता खुला। हरेक व्यक्ति जो यहोवा का नाम लेना चाहता है और सुनवाई चाहता है उसके लिए इसी मार्ग पर चलना ज़रूरी है।
१०. (क) सच्चा मन फिराव क्या है? (ख) यहोवा सच्चे मन फिराव की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखाता है?
१० याद रखिए, सच्चा मन फिराव केवल यह कहना नहीं कि “मुझे माफ कर दीजिए।” इस्राएली अपनी भावनाओं की गहराई दिखाने के लिए अपने वस्त्रों को फाड़ते थे। लेकिन यहोवा कहता है: ‘अपने वस्त्र नहीं, अपने मन ही को फाड़ो।’ सच्चा मन फिराव हृदय से, हमारे अंदर से होता है। इसमें बुराई को छोड़ देना शामिल है, जैसा कि हम यशायाह ५५:७ में पढ़ते भी हैं: “दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे।” इसमें पाप से घृणा करना शामिल है, जैसे यीशु ने किया। (इब्रानियों १:९) फिर, छुड़ौती बलिदान के आधार पर हम क्षमा पाने के लिए यहोवा पर भरोसा रखते हैं, क्योंकि यहोवा “अनुग्रहकारी, दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला, करुणानिधान” है। वह हमारी उपासना स्वीकार करेगा, हमारी आत्मिक अन्नबलि और अर्घ स्वीकार करेगा। जब हम उसका नाम लेंगे तब वह हमारी सुनेगा।—योएल २:१४.
११. सच्ची उपासना को हमारे जीवन में कौन-सा स्थान मिलना चाहिए?
११ पहाड़ी उपदेश में, यीशु ने हमें कुछ और ध्यान में रखने के लिए बताया जब उसने कहा: “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो।” (मत्ती ६:३३) हमारी उपासना को हलकी बात नहीं समझा जाना चाहिए, जो हम मानो अपने अंतःकरण को शांत करने के लिए जितना कम-से-कम हो सकता है करते हैं। परमेश्वर की सेवा को हमारे जीवन में पहला स्थान मिलना चाहिए। इसलिए, योएल के ज़रिए यहोवा आगे कहता है: “सिय्योन में नरसिंगा फूंको, . . . लोगों को इकट्ठा करो। सभा को पवित्र करो; पुरनियों को बुला लो; बच्चों और दूधपीउवों को भी इकट्ठा करो। दुल्हा अपनी कोठरी से, और दुल्हिन भी अपने कमरे से निकल आएं।” (योएल २:१५, १६) नव-विवाहितों का ध्यान बँटना स्वाभाविक है, वे केवल एक दूसरे में ही मस्त रहते हैं। लेकिन उनके लिए भी यहोवा की सेवा करना पहले स्थान पर आता है। और कोई भी बात, इससे बढ़कर नहीं कि हम अपने परमेश्वर के पास इकट्ठे हों और उसका नाम लें।
१२. पिछले साल की स्मारक रिपोर्ट में बढ़ोतरी की कौन-सी संभावना नज़र आती है?
१२ इस बात को मन में रखते हुए, आइए हम यहोवा के साक्षियों की १९९७ सेवा-वर्ष रिपोर्ट द्वारा दिखाए गए आँकड़ों पर विचार करें। पिछले साल में ५५,९९,९३१ राज्य प्रकाशकों का शिखर हासिल हुआ—सचमुच स्तुतिकर्ताओं की एक बड़ी भीड़! स्मारक पर उपस्थिति १,४३,२२,२२६ थी—प्रकाशकों की संख्या से लगभग ८५ लाख ज़्यादा। यह गिनती बढ़ोतरी की शानदार संभावना दिखाती है। उन ८५ लाख में से अनेक दिलचस्पी रखनेवाले व्यक्ति या बपतिस्मा-प्राप्त माता-पिता के बच्चे पहले ही यहोवा के साक्षियों के साथ अध्ययन कर रहे हैं। सभा में पहली बार उपस्थित होनेवाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी थी। उनकी उपस्थिति ने यहोवा के साक्षियों को एक बढ़िया मौका दिया कि उन्हें ज़्यादा अच्छी तरह जान पाएँ और आगे उन्नति करने के लिए उनकी सहायता करें। फिर, कुछ लोग हर साल स्मारक में आते हैं और संभवतः कुछेक सभाओं में भी आते हैं, लेकिन वे इससे आगे नहीं बढ़ते। बेशक, ऐसे लोगों का हमारी सभाओं में हार्दिक स्वागत है। लेकिन हम उनसे योएल के भविष्यसूचक वचनों पर ध्यानपूर्वक मनन करने और इस बात पर विचार करने का आग्रह करते हैं कि उन्हें और कौन-कौन-से कदम उठाने चाहिए जिससे उन्हें निश्चय हो कि जब वे यहोवा का नाम लें तब वह उनकी सुनेगा।
१३. अगर हम पहले से यहोवा का नाम ले रहे हैं, तो दूसरों की ओर हमारी क्या ज़िम्मेदारी है?
१३ प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर का नाम लेने के एक और पहलू पर ज़ोर दिया। रोमियों को लिखी अपनी पत्री में, उसने योएल के भविष्यसूचक वचनों को उद्धृत किया: “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” उसके बाद उसने तर्क किया: “फिर जिस पर उन्हों ने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें?” (रोमियों १०:१३, १४) जी हाँ, अनेक लोग जो अब तक यहोवा को नहीं जानते उन्हें उसका नाम लेने की ज़रूरत है। जो लोग यहोवा को पहले से जानते हैं उन पर न केवल प्रचार करने की, बल्कि उन लोगों तक पहुँचने और उनकी सहायता करने की ज़िम्मेदारी है।
एक आध्यात्मिक परादीस
१४, १५. यहोवा के लोग किन परादीसीय आशीषों का आनंद उठाते हैं क्योंकि वे यहोवा का नाम उसके तरीके से लेते हैं?
१४ अभिषिक्त और अन्य भेड़, दोनों का यही दृष्टिकोण है और इसके परिणामस्वरूप यहोवा उन्हें आशीष देता है। “यहोवा को अपने देश के विषय में जलन हुई, और उस ने अपनी प्रजा पर तरस खाया।” (योएल २:१८) सन् १९१९ में यहोवा ने अपने लोगों के लिए जलन दिखाई और उन पर तरस खाया जब उसने उन्हें पुनःस्थापित किया और आध्यात्मिक गतिविधि के क्षेत्र में ले आया। यह सचमुच एक आध्यात्मिक परादीस है, योएल द्वारा इस परादीस का वर्णन इन शब्दों में किया गया है: “हे देश, तू मत डर; तू मगन हो और आनन्द कर, क्योंकि यहोवा ने बड़े बड़े काम किए हैं! हे मैदान के पशुओ, मत डरो, क्योंकि जंगल में चराई उगेगी, और वृक्ष फलने लगेंगे; अंजीर का वृक्ष और दाखलता अपना अपना बल दिखाने लगेंगी। हे सिय्योनियो, तुम अपने परमेश्वर यहोवा के कारण मगन हो, और आनन्द करो; क्योंकि तुम्हारे लिये वह वर्षा, अर्थात् बरसात की पहिली वर्षा बहुतायत से देगा; और पहिले के समान अगली और पिछली वर्षा को भी बरसाएगा। तब खलिहान अन्न से भर जाएंगे, और रसकुण्ड नये दाखमधु और ताज़े तेल से उमड़ेंगे।”—योएल २:२१-२४.
१५ क्या ही मनोहर दृश्य! इस्राएल के जीवन के तीन मुख्य खाद्य पदार्थ—अन्न, जैतून का तेल और दाखमधु—बहुतायत में प्रदान किए जाना साथ ही पशुओं के बड़े-बड़े झुंड होना। हमारे दिनों में, ये भविष्यसूचक वचन आध्यात्मिक रीति से सचमुच पूरे हुए हैं। यहोवा हमें वह सारा आध्यात्मिक भोजन देता है जिसकी हमें ज़रूरत है। क्या हम सब परमेश्वर की ओर से आनेवाली ऐसी बहुतायत से प्रसन्न नहीं हैं? सचमुच, जैसे मलाकी ने पूर्वबताया था, परमेश्वर ने ‘आकाश के झरोखे खोलकर हमारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा’ की है।—मलाकी ३:१०.
रीति-व्यवस्था का अंत
१६. (क) हमारे वक्त के लिए यहोवा की आत्मा के उँडेले जाने का क्या मतलब है? (ख) भविष्य में क्या रखा है?
१६ परमेश्वर के लोगों की परादीसीय स्थिति के बारे में पूर्वबताने के बाद ही योएल यहोवा की आत्मा के उँडेले जाने के बारे में भविष्यवाणी करता है। जब पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन इस भविष्यवाणी को उद्धृत किया, तब उसने कहा कि यह “अन्त के दिनों” में पूरी हुई थी। (प्रेरितों २:१७) उस वक्त परमेश्वर की आत्मा के उँडेले जाने का मतलब था कि यहूदी रीति-व्यवस्था के अंतिम दिन शुरू हो चुके थे। २०वीं सदी में परमेश्वर के इस्राएल पर परमेश्वर की आत्मा के उँडेले जाने का मतलब है कि हम संसार-व्याप्त रीति-व्यवस्था के अंतिम दिनों में जी रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, भविष्य में क्या होगा? योएल की भविष्यवाणी हमसे आगे कहती है: “मैं आकाश में और पृथ्वी पर चमत्कार, अर्थात् लोहू और आग और धूएं के खम्भे दिखाऊंगा। यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जाएगा।”—योएल २:३०, ३१.
१७, १८. (क) यहोवा का कौन-सा भयानक दिन यरूशलेम पर आया? (ख) यहोवा के आनेवाले भयानक दिन की निश्चितता हमें क्या करने के लिए प्रेरित करती है?
१७ सा.यु. ६६ में, यहूदिया में ये भविष्यसूचक वचन सच साबित होने लगे जब घटनाएँ बिना रुके सा.यु. ७० में यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन की चरमसीमा की ओर बढ़ीं। उस वक्त उन लोगों के बीच होना कितना ही भयानक होता जो यहोवा के नाम की महिमा नहीं कर रहे थे! आज, ऐसी ही भयानक घटनाएँ घटनेवाली हैं, जब इस पूरे संसार की रीति-व्यवस्था यहोवा के हाथों सत्यानाश की जाएगी। फिर भी, बचाव संभव है। भविष्यवाणी आगे कहती है: “ऐसा होगा कि जो कोई यहोवा का नाम लेगा वह उद्धार पाएगा, क्योंकि सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में, जैसा यहोवा ने कहा है, उद्धार पाने वाले होंगे, अर्थात् बचनेवाले जिन्हें यहोवा ने बुलाया है।” (योएल २:३२, NHT) यहोवा के साक्षी, यहोवा का नाम जानकर सचमुच कृतज्ञ हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि जब वे उसका नाम लेंगे तब वह उन्हें बचाएगा।
१८ लेकिन, तब क्या होगा जब यहोवा का वह महान और प्रसिद्ध दिन अपनी जलजलाहट में इस संसार पर टूट पड़ेगा? इसकी चर्चा अंतिम अध्ययन लेख में की जाएगी।
क्या आपको याद है?
◻ यहोवा ने अपने लोगों पर पहली बार कब अपनी आत्मा उँडेली थी?
◻ यहोवा का नाम लेने में कौन-सी कुछ बातें शामिल हैं?
◻ यहोवा का महान और प्रसिद्ध दिन शारीरिक इस्राएल पर कब आया?
◻ यहोवा आज उसका नाम लेनेवालों को कैसे आशीष देता है?
[पेज 15 पर तसवीर]
पिन्तेकुस्त सा यु ३३ में एक नई जाति का जन्म हुआ
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
इस शताब्दी की शुरूआत में, यहोवा ने योएल २:२८, २९ की पूर्ति में दोबारा अपने लोगों पर अपनी आत्मा उँडेली
[पेज 18 पर तसवीर]
यहोवा का नाम लेने के लिए लोगों की मदद की जानी चाहिए