महा-कृपा की वजह से तुम्हें आज़ाद किया गया है
“अब पाप का तुम पर अधिकार न हो, क्योंकि तुम . . . महा-कृपा के अधीन हो।”—रोमि. 6:14.
1, 2. रोमियों 5:12 की आयत कैसे हमारी मदद कर सकती है?
मान लीजिए आप उन आयतों की सूची बनाते हैं जिन्हें आप मुँह-ज़बानी जानते हैं और अकसर इस्तेमाल करते हैं। क्या उस सूची में रोमियों 5:12 की आयत सबसे पहले आएगी? सोचिए आपने कितनी बार इस आयत का हवाला दिया है जहाँ लिखा है, “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।”
2 यह आयत बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब में कई बार इस्तेमाल हुई है। जब हम अपने बच्चों या दूसरों के साथ इस किताब के अध्याय 3, 5 और 6 पर चर्चा करते हैं तो हम रोमियों 5:12 की आयत पढ़ते हैं। इस आयत का इस्तेमाल करके हम समझाते हैं कि पृथ्वी क्यों आज एक फिरदौस नहीं है, हमें क्यों फिरौती की ज़रूरत है और हम क्यों मरते हैं। लेकिन यह आयत इस बात के लिए हमारी कदरदानी और बढ़ा सकती है कि यहोवा के साथ हमारा एक रिश्ता है। यह हमारी मदद कर सकती है कि हम यहोवा को खुश करने की ठान लें और उसने जो वादे किए हैं उन पर अपना ध्यान लगाए रखें।
3. हमें कौन-सी सच्चाई कबूल करनी होगी?
3 हम सब पापी हैं और यह सच्चाई हम सबको कबूल करनी होगी। हम हर दिन गलतियाँ करते हैं। लेकिन हमें यकीन दिलाया गया है कि परमेश्वर जानता है कि हम मिट्टी ही हैं और वह हम पर दया करेगा। (भज. 103:13, 14) आदर्श प्रार्थना में चेलों को परमेश्वर से यह बिनती करना भी सिखाया गया था, “हमारे पापों की हमें माफी दे।” (लूका 11:2-4) इसलिए हमें उन गलतियों पर सोचते नहीं रहना चाहिए जिन्हें परमेश्वर माफ कर चुका है। लेकिन हमारे लिए यह जानना अच्छा होगा कि परमेश्वर किस वजह से हमारे पापों को माफ करता है।
महा-कृपा की वजह से माफी मिली
4, 5. (क) रोमियों 5:12 में कही बात को समझने के लिए हमें क्या करना होगा? (ख) रोमियों 3:24 में शब्द “महा-कृपा” का क्या मतलब है?
4 प्रेषित पौलुस ने रोमियों 5:12 में जो कहा उसे समझने के लिए हमें उसके आस-पास के अध्यायों पर ध्यान देना होगा, खासकर अध्याय 6 पर। इससे हम यह समझ पाएँगे कि यहोवा किस वजह से हमें माफ करता है। अध्याय 3 में हम पढ़ते हैं, “सब ने पाप किया है . . . मगर परमेश्वर ने उन्हें यह मुफ्त वरदान दिया जब उसने अपनी महा-कृपा की वजह से उन्हें नेक इंसान करार दिया। परमेश्वर ने उन्हें उस फिरौती के ज़रिए रिहाई दिलाकर नेक करार दिया, जो मसीह यीशु ने चुकायी है।” (रोमि. 3:23, 24) शब्द “महा-कृपा” से पौलुस का क्या मतलब था? उसने जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया उसके मतलब के बारे में एक किताब बताती है कि “यह एक ऐसी कृपा है जो उदारता से की जाती है और जिसके बदले में कुछ पाने की माँग नहीं की जाती।” कोई भी इंसान अपने बलबूते इसे नहीं पा सकता है, न ही इसे पाने का हकदार बन सकता है।
5 एक विद्वान समझाता है कि इंसानों को पाप और मौत से छुड़ाने के लिए परमेश्वर और मसीह ने जो कुछ किया है, उन सब बातों का सार इस एक यूनानी शब्द में है। परमेश्वर ने यह महा-कृपा किस तरह ज़ाहिर की? और इससे आज हमें क्या फायदा होता है और भविष्य के लिए क्या आशा मिलती है? आइए देखें।
6. परमेश्वर की महा-कृपा से किन्हें फायदा होता है और यह कैसे मुमकिन हुआ?
6 आदम ही वह इंसान था जिससे पाप और मौत “सब इंसानों में फैल गयी।” इस तरह ‘एक आदमी के गुनाह की वजह से मौत ने राजा बनकर राज किया।’ लेकिन यहोवा ने महा-कृपा करते हुए हमारे लिए रास्ता निकाला ताकि सब इंसान “एक आदमी यीशु मसीह के ज़रिए” छुड़ाए जा सकें। (रोमि. 5:12, 15, 17) उस ‘एक आदमी यीशु के आज्ञा मानने से बहुत लोग नेक ठहरे।’ और वे आस लगा सकते हैं कि ‘यीशु मसीह के ज़रिए उन्हें हमेशा की ज़िंदगी’ मिलेगी।—रोमि. 5:19, 21.
7. फिरौती का इंतज़ाम क्यों सचमुच में परमेश्वर की महा-कृपा है?
7 यहोवा किसी भी तरह से मजबूर नहीं था कि वह हम इंसानों के लिए अपने बेटे की कुरबानी दे। यही नहीं, पापों की माफी के लिए परमेश्वर और यीशु ने जो कुछ किया, उसके बारे में कोई भी पापी इंसान यह दावा नहीं कर सकता कि मैं इसका हकदार हूँ। इसलिए यह सचमुच परमेश्वर की महा-कृपा है कि वह हमारे पाप माफ करता है और हमें हमेशा की ज़िंदगी की आशा देता है। आइए हम अपने जीने के तरीके से दिखाएँ कि हम परमेश्वर के कितने एहसानमंद हैं।
परमेश्वर की महा-कृपा की कदर कीजिए
8. कुछ लोग क्या सोचने की भूल करते हैं?
8 आदम की पापी संतान होने की वजह से हमारा झुकाव बुराई की तरफ है इसलिए हम पाप करते हैं। फिर भी ऐसा सोचना बड़ी भूल होगी कि ‘मेरे पाप करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यहोवा मुझे माफ कर ही देगा, क्योंकि उसकी महा-कृपा इतनी महान है।’ अफसोस की बात है कि प्रेषितों के ज़माने में कुछ मसीही ऐसी ही सोच रखते थे। (यहूदा 4 पढ़िए।) आज हमें सावधान रहना चाहिए कि हम ऐसी सोच रखनेवालों की बातों में न आ जाएँ और उनकी गलत सोच न अपनाने लगें।
9, 10. पौलुस और दूसरे मसीही किस मायने में पाप और मौत से आज़ाद थे?
9 पौलुस ने ज़ोर देकर बताया कि मसीहियों को इस तरह की सोच ठुकरानी चाहिए कि अगर वे पाप करते रहें तो परमेश्वर उन्हें माफ कर देगा। उसने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि मसीही “पाप के लिए मर चुके” थे। (रोमियों 6:1, 2 पढ़िए।) इसका क्या मतलब था?
10 फिरौती बलिदान के ज़रिए परमेश्वर ने पहली सदी में पौलुस और दूसरे मसीहियों के पाप माफ किए थे। यहोवा ने पवित्र शक्ति से उनका अभिषेक किया था और उन्हें बेटे होने का सम्मान दिया था। अगर वे वफादार रहते तो वे मसीह के साथ स्वर्ग में जीते और उसके साथ राज करते। लेकिन पौलुस ने क्यों कहा कि वे “पाप के लिए मर चुके” हैं जबकि वे धरती पर ज़िंदा थे और परमेश्वर की सेवा कर रहे थे? इसे समझाने के लिए उसने यीशु की मिसाल दी। यीशु इंसानी शरीर में मरा, फिर उसे स्वर्ग में ज़िंदा करके अमर जीवन दिया गया। मौत का अब यीशु पर कोई अधिकार नहीं था। अभिषिक्त मसीही भी कुछ इसी तरह ‘पाप के लिए तो मरे हुए थे, मगर मसीह यीशु के ज़रिए परमेश्वर के लिए ज़िंदा’ थे। (रोमि. 6:9, 11) अब वे पहले जैसी ज़िंदगी नहीं जीते थे। वे अपने पापी शरीर की इच्छाओं के गुलाम नहीं थे और उसके चलाए नहीं चलते थे। इस मायने में कहा जा सकता है कि वे पाप और मौत से आज़ाद थे।
11. किस मायने में आज हम मसीही, “पाप के लिए मर चुके” हैं?
11 हमारे बारे में क्या? मसीही बनने से पहले हम पाप करते थे और हमें इस बात का एहसास तक नहीं था कि हमारे काम परमेश्वर की नज़र में कितने बुरे थे। हम “अशुद्धता और दुराचार की गुलामी” में थे। और हमारे बारे में कहा जा सकता था कि हम “पाप के गुलाम थे।” (रोमि. 6:19, 20) फिर हमने बाइबल से सच्चाई जानी, अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए, अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित किया और बपतिस्मा लिया। तब से हमारी यही इच्छा है कि हम ‘दिल से आज्ञाकारी बनें’ और परमेश्वर की शिक्षाओं और स्तरों को मानें। एक मायने में हम भी ‘पाप से आज़ाद किए गए हैं’ और ‘नेकी के दास बन गए’ हैं। (रोमि. 6:17, 18) इसलिए हमारे बारे में भी कहा जा सकता है कि हम “पाप के लिए मर चुके” हैं।
12. हममें से हरेक को क्या फैसला करना है?
12 पौलुस ने कहा, “ऐसा मत होने दो कि तुम्हारे नश्वर शरीर में पाप राजा बनकर राज करता रहे और तुम शरीर की ख्वाहिशों के गुलाम बनकर उसी की मानो।” (रोमि. 6:12) इससे पता चलता है कि हमें एक फैसला करना है। हम या तो अपने पापी शरीर की सोच और इच्छाओं के गुलाम बन सकते हैं या उन्हें काबू में कर सकते हैं। खुद से पूछिए, ‘क्या मैं किसी गलत इच्छा को इस हद तक बढ़ने देता हूँ कि मैं गलत काम कर बैठूँ? या मैं उसे फौरन ठुकरा देता हूँ?’ अगर परमेश्वर की महा-कृपा के लिए हमारे दिल में गहरी कदर होगी तो हम उसे खुश करने की पूरी कोशिश करेंगे।
ऐसी लड़ाई जिसे आप जीत सकते हैं
13. क्या बात हमें यकीन दिलाती है कि हम भी पाप से फिरकर सही काम कर सकते हैं?
13 पहली सदी में, कुरिंथ में कुछ लोग मूर्तियाँ पूजनेवाले, शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवाले, समलैंगिक काम करनेवाले, चोर और पियक्कड़ थे। लेकिन फिर उन्होंने यहोवा को जाना, उससे प्यार करने लगे और अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए। वे पहले जो काम करते थे उनके बारे में सोचकर “शर्म महसूस करते” थे। (रोमि. 6:21; 1 कुरिं. 6:9-11) रोम के कुछ मसीहियों को भी ऐसे ही बदलाव करने थे। पौलुस ने उन्हें लिखा, “न ही अपने अंगों को बुराई के हथियार बनने के लिए पाप के हवाले करते रहो। इसके बजाय, मरे हुओं में से ज़िंदा किए गए लोगों के नाते खुद को परमेश्वर को सौंप दो, साथ ही अपने अंगों को नेकी के हथियार बनने के लिए परमेश्वर के हवाले कर दो।” (रोमि. 6:13) पौलुस को यकीन था कि वे सही काम कर सकते हैं और परमेश्वर की महा-कृपा से फायदा पाते रह सकते हैं।
14, 15. “दिल से आज्ञाकारी” बनने के लिए हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?
14 आज भी कुछ भाई-बहनों के बारे में यह बात सच है। कुरिंथ के लोगों की तरह वे भी बुरे काम करते थे मगर उन्होंने पाप की राह छोड़ दी। उन लोगों को “धोकर शुद्ध” किया गया। चाहे आपने जो भी बदलाव किए हों, मगर क्या अब भी आप परमेश्वर की नज़र में शुद्ध बने हुए हैं? परमेश्वर आज भी हमारे पाप माफ करके हम पर महा-कृपा कर रहा है। क्या यह बात आपको उभारती है कि आप ‘अपने अंगों को पाप के हवाले’ न करें? इसके बजाय, क्या आप ‘मरे हुओं में से ज़िंदा किए गए लोगों के नाते खुद को परमेश्वर को सौंपते’ रहेंगे?
15 इसके लिए हमें उन गंभीर पापों को ठुकराना होगा जिनमें कुरिंथ के कुछ लोग लगे हुए थे। ऐसा करना ज़रूरी है क्योंकि तभी हम कह पाएँगे कि हमने परमेश्वर की महा-कृपा कबूल की है और हम पर ‘पाप का अधिकार’ नहीं है। लेकिन क्या हम उन पापों से भी दूर रहेंगे जिन्हें कुछ लोग इतना गंभीर नहीं मानते? क्या हम इस मामले में भी दिखाएँगे कि हम “दिल से आज्ञाकारी” हैं? —रोमि. 6:14, 17.
16. हम कैसे जानते हैं कि मसीहियों के लिए सिर्फ गंभीर पापों से दूर रहना काफी नहीं?
16 अब ज़रा प्रेषित पौलुस के बारे में सोचिए। हमें पूरा यकीन है कि वह उन गंभीर पापों से कोसों दूर था जो 1 कुरिंथियों 6:9-11 में बताए गए हैं। फिर भी वह कबूल करता है कि वह पाप का दोषी है। उसने लिखा, “मैं असिद्ध हूँ और पाप के हाथों बिका हुआ हूँ। मैं क्यों ऐसे काम करता हूँ, मैं नहीं जानता। क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ वह नहीं करता, मगर जिस काम से मुझे नफरत है, वही करता हूँ।” (रोमि. 7:14, 15) इससे पता चलता है कि ऐसे और भी काम थे जिन्हें पौलुस पाप समझता था और वह उनके खिलाफ लड़ भी रहा था। (रोमियों 7:21-23 पढ़िए।) “दिल से आज्ञाकारी” बनने के लिए हमें भी ऐसे कामों के खिलाफ लड़ते रहना चाहिए।
17. आप क्यों ईमानदार रहना चाहते हैं?
17 मिसाल के लिए, ईमानदार होने के बारे में सोचिए। मसीहियों के लिए ईमानदार होना बहुत ज़रूरी है। (नीतिवचन 14:5; इफिसियों 4:25 पढ़िए।) हम शैतान की तरह नहीं बनना चाहते जो “झूठ का पिता है।” और हम जानते हैं कि हनन्याह और उसकी पत्नी ने झूठ बोलने की वजह से ही अपनी जान गँवायी थी। इसलिए हम झूठ नहीं बोलते। (यूह. 8:44; प्रेषि. 5:1-11) मगर ईमानदार होने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम झूठ न बोलें। अगर परमेश्वर की महा-कृपा के लिए हमारे दिल में सचमुच कदर होगी तो हम दूसरे मायनों में भी ईमानदार होंगे।
18, 19. ईमानदार होने का क्या मतलब है?
18 एक इंसान झूठ बोले बिना भी बेईमानी कर सकता है। मिसाल के लिए, परमेश्वर ने इसराएलियों से कहा था, “तुम चोरी न करना, किसी के साथ धोखा न करना और एक-दूसरे के साथ बेईमानी न करना।” (एन.डब्ल्यू.) उन्हें यह बात क्यों माननी थी? यहोवा ने कहा था, “तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ।” (लैव्य. 19:2, 11) हम शायद सीधे-सीधे झूठ न बोलें लेकिन अगर हम लोगों को किसी ऐसी बात के सच होने का यकीन दिलाएँ जो असल में सच नहीं, तो यह बेईमानी होगी।
19 इसे समझने के लिए एक मिसाल पर ध्यान दीजिए। एक आदमी अपने मालिक या साथ काम करनेवालों से कहता है कि वह कल काम से जल्दी चला जाएगा क्योंकि उसे अस्पताल जाना है। मगर वह अस्पताल इसलिए नहीं जा रहा क्योंकि उसे डॉक्टर को दिखाना है बल्कि उसे सिर्फ थोड़ी देर के लिए वहाँ जाकर अपनी रिपोर्ट लेनी है या वहाँ के मेडिकल स्टोर से कुछ दवाई लेनी है। काम से जल्दी निकलने की असली वजह कुछ और है। दरअसल वह छुट्टी पर कहीं जा रहा है और उसे जल्दी निकलना है। वह आदमी दूसरों को ऐसी बात के सच होने का यकीन दिला रहा है जो असल में सच नहीं। तो क्या आप कहेंगे कि वह ईमानदार है या दूसरों को धोखा दे रहा है? कभी-कभी लोग सज़ा से बचने के लिए या अपना मतलब पूरा करने के लिए दूसरों को धोखा देते हैं। लेकिन हम यहोवा की आज्ञा मानते हैं जिसने कहा है, ‘तुम किसी के साथ धोखा न करना।’ हम वही काम करना चाहते हैं जो उसकी नज़र में सही और पवित्र हैं।—रोमि. 6:19.
20, 21. परमेश्वर की महा-कृपा के लिए कदरदानी दिखाने में हम किस हद तक जाएँगे?
20 बेशक हम शादी के बाहर यौन-संबंध रखने, पियक्कड़पन और दूसरे गंभीर पापों से दूर रहते हैं। मगर हम ऐसे हर काम से भी दूर रहना चाहते हैं जिससे यहोवा नाखुश होता है। जैसे, हम न सिर्फ शादी के बाहर यौन-संबंध रखने से दूर रहते हैं बल्कि बेहूदा किस्म का मनोरंजन भी ठुकराते हैं। हम न सिर्फ पियक्कड़पन से दूर रहते हैं बल्कि उस हद तक भी नहीं पीते कि हम अपने होश खो दें। ऐसे बुरे कामों के खिलाफ लड़ने के लिए हमें काफी मेहनत करनी होगी मगर यह ऐसी लड़ाई है जिसे हम जीत सकते हैं।
21 हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम गंभीर पाप न करें और ऐसे काम भी न करें जो इतने संगीन नहीं हैं। हम ऐसा पूरी तरह तो नहीं कर पाएँगे। फिर भी, हमें ऐसा करते रहने की कोशिश करनी चाहिए जैसे पौलुस ने की थी। उसने अपने भाइयों से गुज़ारिश की, “ऐसा मत होने दो कि तुम्हारे नश्वर शरीर में पाप राजा बनकर राज करता रहे और तुम शरीर की ख्वाहिशों के गुलाम बनकर उसी की मानो।” (रोमि. 6:12; 7:18-20) जब हम हर तरह के पाप के खिलाफ लड़ते हैं, तो हम मसीह के ज़रिए परमेश्वर की महा-कृपा के लिए सच्ची कदरदानी दिखाते हैं।
22. परमेश्वर की महा-कृपा के लिए कदरदानी दिखानेवालों के आगे क्या इनाम रखा है?
22 परमेश्वर की महा-कृपा की वजह से हमें पापों की माफी मिलती है और आगे भी मिलती रहेगी। इसलिए आइए परमेश्वर की महा-कृपा के लिए हम अपनी कदरदानी दिखाते रहें और ऐसे कामों से दूर रहें जिन्हें लोग गंभीर पाप नहीं समझते। ऐसा करने से हमें क्या इनाम मिलेगा, इस बारे में पौलुस ने बताया, “अब तुम पाप से आज़ाद किए गए हो और परमेश्वर के दास बन गए हो, इसलिए अब तुम पवित्रता की राह में अपना फल पा रहे हो और अंत में हमेशा की ज़िंदगी पाओगे।”—रोमि. 6:22.