परमेश्वर की संतानों के लिए जल्द ही महिमा की स्वतंत्रता
“सृष्टि . . . व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई। कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।”—रोमियों ८:२०, २१.
१. यीशु के बलिदान का प्रतिरूप प्रायश्चित्त के दिन कैसे दिया गया था?
यहोवा ने अपने एकलौते पुत्र को छुड़ौती बलिदान के रूप में दिया जिसने १,४४,००० मनुष्यों के लिए स्वर्गीय जीवन का और बाक़ी मनुष्यजाति के लिए पृथ्वी की अनंत आशाओं का मार्ग खोला। (१ यूहन्ना २:१, २) जैसे पिछले लेख में बताया गया, आत्मा से उत्पन्न मसीहियों के लिए यीशु के बलिदान का प्रतिरूप दिया गया था जब इस्राएल का महायाजक अपने लिए, अपने घराने के लिए, और लेवी के गोत्र के लिए वार्षिक प्रायश्चित्त के दिन पाप बलि के तौर पर एक बैल की बलि चढ़ाता था। उसी दिन, वह अन्य सभी इस्राएलियों के लिए पाप बलि के तौर पर एक बकरे की बलि चढ़ाता था, ठीक जैसे मसीह के बलिदान से आम तौर पर सभी मनुष्यों को भी लाभ होगा। एक ज़िंदा बकरा पिछले साल में किए लोगों के सामूहिक पाप को लाक्षणिक रूप से ले जाता था, और वीराने में ग़ायब हो जाता था।a—लैव्यव्यवस्था १६:७-१५, २०-२२, २६.
२, ३. रोमियों ८:२०, २१ में अभिलिखित पौलुस के कथन का क्या मतलब है?
२ उन मनुष्यों की आशा के बारे में बताने के बाद जो स्वर्ग में ‘परमेश्वर के पुत्र’ बनेंगे, प्रेरित पौलुस ने कहा: “सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है। क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई। कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।” (रोमियों ८:१४, १७, १९-२१) इस वाक्य का क्या मतलब है?
३ जब हमारे परदादा आदम को एक परिपूर्ण मनुष्य के तौर पर बनाया गया, तो वह “परमेश्वर का पुत्र” या उसकी संतान था। (लूका ३:३८, NHT) पाप करने की वज़ह से, वह “विनाश के दासत्व” में आ गया और इस स्थिति को उसने पूरी मनुष्यजाति में फैला दिया। (रोमियों ५:१२) परमेश्वर ने मनुष्यों को उनकी विरासत में प्राप्त अपरिपूर्णता की वज़ह से “व्यर्थता” के साथ पैदा होने दिया, लेकिन उसने “वंश,” यानी यीशु मसीह के ज़रिए आशा भी दी। (उत्पत्ति ३:१५; २२:१८; गलतियों ३:१६) प्रकाशितवाक्य २१:१-४ उस समय की ओर इशारा करता है जब ‘मृत्यु, शोक, विलाप, और पीड़ा जाती रहेगी।’ क्योंकि “मनुष्यों” से इसका वादा किया गया है, यह हमें यक़ीन दिलाता है कि ‘परमेश्वर के पार्थिव संतानों’ की हैसियत से राज्य शासन के अधीन रहनेवाले नए पार्थिव समाज के मनुष्यों का तन और मन पूरी तरह से तंदुरूस्त किया जाएगा और उन्हें हमेशा-हमेशा का जीवन दिया जाएगा। मसीह के हज़ार साल के शासन के दौरान, आज्ञाकारी मनुष्य “विनाश के दासत्व से छुटकारा” पाएँगे। आख़िरी परीक्षा के दौरान यहोवा के प्रति निष्ठावान साबित होने के बाद, वे लोग विरासत में प्राप्त पाप और मृत्यु से हमेशा के लिए आज़ाद हो जाएँगे। (प्रकाशितवाक्य २०:७-१०) फिर उस समय पृथ्वी पर जीवित लोगों के पास “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता” होगी।
वे कहते हैं “आ”!
४. “जीवन का जल सेंतमेंत” लेने का मतलब क्या है?
४ मनुष्यों के सामने क्या ही शानदार आशा रखी गयी है! इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि आत्मा से उत्पन्न मसीही जो अब भी धरती पर हैं, इसके बारे में दूसरों को बताने में जोश से आगे बढ़ रहे हैं! उन लोगों के तौर पर जो महिमावान् मेम्ने, यानी यीशु मसीह की “दुल्हिन” का भाग बनेंगे, अभिषिक्त शेषवर्ग इन भविष्यसूचक शब्दों की पूर्ति में लगा है: “आत्मा, और दुल्हिन दोनों कहती है, आ; और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।” (प्रकाशितवाक्य २१:२, ९; २२:१, २, १७) जी नहीं, यीशु के बलिदान के लाभ सिर्फ़ १,४४,००० अभिषिक्त जनों तक ही सीमित नहीं हैं। परमेश्वर की आत्मा धरती पर दुल्हन वर्ग के शेष जनों के ज़रिए यह कहने का काम करती रहती है कि “आ।” जो कोई सुननेवाला धर्म का प्यासा है, उसे यह कहने का आमंत्रण है कि “आ,” ताकि उद्धार के लिए यहोवा के प्रचुर प्रबंध से फ़ायदा उठाए।
५. यहोवा के साक्षियों के बीच कौन-से लोग होने की वज़ह से उन्हें ख़ुशी है?
५ यहोवा के साक्षियों को यीशु मसीह के ज़रिए जीवन के लिए परमेश्वर के प्रबंध में विश्वास है। (प्रेरितों ४:१२) उन्हें ख़ुशी है कि उनके बीच ऐसे सच्चे दिलवाले लोग हैं जो परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में सीखना और उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हैं। उनके राज्य-गृह उन सभी लोगों के लिए खुले हैं जो इस “अन्त समय” में ‘आकर जीवन का जल सेंतमेंत’ लेना चाहते हैं।—दानिय्येल १२:४.
समय के गुज़रते तबदीलियाँ
६. परमेश्वर की आत्मा ने अलग-अलग समयों में यहोवा के सेवकों पर कैसे काम किया है?
६ परमेश्वर के पास अपने उद्देश्यों को पूरा करने का अपना समय है, और मनुष्यों के साथ उसके व्यवहार पर इसका असर पड़ता है। (सभोपदेशक ३:१; प्रेरितों १:७) हालाँकि परमेश्वर की आत्मा मसीह-पूर्व समयों में उसके सेवकों पर आयी, उन्हें उसके आत्मिक पुत्रों के तौर पर उत्पन्न नहीं किया गया। लेकिन, यीशु से शुरू होते हुए, यहोवा का वक़्त आ पहुँचा था कि स्वर्गीय विरासत के लिए समर्पित पुरुषों और स्त्रियों को उत्पन्न करने के लिए पवित्र आत्मा का इस्तेमाल करे। और हमारे दिनों के बारे में क्या? वही आत्मा यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ पर काम कर रही है, लेकिन यह उनमें स्वर्गीय जीवन की उम्मीद और इच्छा नहीं जगा रही। (यूहन्ना १०:१६) परमेश्वर ने परादीस पृथ्वी पर अनंत जीवन की उन्हें जो आशा दी है, उसके साथ वे ख़ुशी-ख़ुशी अभिषिक्त शेषवर्ग का समर्थन करते हैं। वे पुरानी दुनिया से परमेश्वर की धार्मिक नयी दुनिया की बदलाहट के इस समय में गवाही देने के द्वारा वह समर्थन करते हैं।—२ पतरस ३:५-१३.
७. बाइबल विद्यार्थी किस कटनी के काम में शामिल थे, लेकिन वे परादीस के बारे में क्या जानते थे?
७ परमेश्वर, सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा उँडेलने के द्वारा ‘बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाने’ लगा, और यह साफ़ है कि उसने “परमेश्वर के [आत्मिक] इस्राएल” को पूरा करने का समय पक्का कर लिया था जिसकी कुल गिनती १,४४,००० है। (इब्रानियों २:१०; गलतियों ६:१६; प्रकाशितवाक्य ७:१-८) १८७९ से शुरू होते हुए, अभिषिक्त मसीहियों की कटनी के काम के बारे में इस पत्रिका में बार-बार ज़िक्र किया जाता था। लेकिन बाइबल विद्यार्थी (जो अब यहोवा के साक्षी कहलाते हैं) यह भी जानते थे कि शास्त्र एक परादीस पृथ्वी पर अनंत जीवन की उम्मीद के बारे में बात करता है। उदाहरण के लिए, जुलाई १८८३ के प्रहरीदुर्ग अंक ने कहा: “जब यीशु अपना राज्य स्थापित कर लेगा, बुराई का सफ़ाया कर देगा, वगैरह-वगैरह, तब यह ज़मीन एक परादीस बन जाएगी, . . . और वे सभी जो अपनी क़ब्रों में हैं उस परादीस में आ जाएँगे। और उसके नियमों का पालन करने के द्वारा वे उसमें हमेशा-हमेशा के लिए जी सकते हैं।” जैसे-जैसे वक़्त गुज़रा, अभिषिक्त जनों की कटनी का काम कम हुआ, और आहिस्ते-आहिस्ते उन लोगों को यहोवा के संगठन में इकट्ठा किया गया जिनकी आशा स्वर्गीय नहीं थी। इस दरमियान, परमेश्वर ने अपने अभिषिक्त सेवकों, यानी नए सिरे से जन्मे मसीहियों को ग़ौरतलब अंतर्दृष्टि दी।—दानिय्येल १२:३; फिलिप्पियों २:१५; प्रकाशितवाक्य १४:१५, १६.
८. पृथ्वी की आशा के बारे में १९३० के दशक के शुरूआती सालों में समझ कैसे बढ़ी?
८ ख़ासकर १९३१ से पृथ्वी की आशा रखनेवाले लोग मसीही कलीसिया के साथ मेल-जोल रख रहे हैं। उस साल, यहोवा ने आत्मा से उत्पन्न मसीहियों की आँखें यह देखने के लिए खोलीं कि यहेजकेल अध्याय ९ इस पार्थिव वर्ग को सूचित करता है, जिसे बचकर परमेश्वर के नए संसार में जाने के लिए चिन्हित किया जा रहा है। सन् १९३२ में इस नतीजे पर पहुँचा गया कि आज के ऐसे भेड़-समान लोगों का पूर्वसंकेत येहू के साथी यहोनादाब द्वारा किया गया। (२ राजा १०:१५-१७) और सन् १९३४ में साफ़-साफ़ दिखाया गया कि ‘योनादाब-वर्ग’ को ख़ुद को परमेश्वर के प्रति “समर्पित” करना चाहिए। १९३५ में “बड़ी भीड़” को अन्य भेड़ों के तौर पर पहचाना गया जिनके पास पार्थिव आशा थी। पहले समझा जाता था कि यह “बड़ी भीड़” द्वितीय आत्मिक वर्ग है जो स्वर्ग में मसीह की दुल्हन की “साथी” होगी। (प्रकाशितवाक्य ७:४-१५; २१:२, ९; भजन ४५:१४, १५) और ख़ासकर १९३५ से अभिषिक्त जन ऐसे सच्चे दिलवाले लोगों की तलाश के काम में सबसे आगे रहे हैं जो परादीस पृथ्वी पर हमेशा के जीवन के लिए तरसते हैं।
९.सन् १९३५ से, कुछ मसीहियों ने प्रभु के सांझ भोज के प्रतीकों में भाग लेना क्यों बंद कर दिया?
९ सन् १९३५ से कुछ मसीहियों ने, जो प्रभु के सांझ भोज में रोटी और दाखमधु में भाग लिया करते थे, भाग लेना बंद कर दिया। क्यों? क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि उनकी आशा स्वर्ग की नहीं, पृथ्वी की है। एक स्त्री ने, जिसका बपतिस्मा १९३० में हुआ था, कहा: “हालाँकि समझा जाता था कि [भाग लेना] सही है, ख़ासकर जोशीले पूर्ण-समय के सेवकों के लिए, फिर भी मुझे कभी-भी यक़ीन नहीं हुआ कि मेरे पास स्वर्ग की आशा है। फिर, १९३५ में हमें यह समझाया गया कि एक बड़ी भीड़ इकट्ठी की जा रही है जिसकी आशा इस पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा के लिए रहने की है। इस बात को समझकर हम कई लोग ख़ुश हुए कि हम उस बड़ी भीड़ का एक भाग हैं, और फिर हमने प्रतीकों में भाग लेना बंद कर दिया।” मसीही साहित्यों का स्वरूप भी बदल गया। जबकि पहले के सालों के साहित्य ख़ासकर यीशु के आत्मा से उत्पन्न अनुयायियों के लिए बनाए जाते थे, १९३५ से ‘विश्वासयोग्य दास’ की प्रहरीदुर्ग और दूसरे साहित्यों ने ऐसा आत्मिक आहार दिया जो अभिषिक्त जनों और पृथ्वी की आशा रखनेवाले उनके साथियों, दोनों की ज़रूरतों को पूरा करता।—मत्ती २४:४५-४७.
१०. किसी अविश्वासी अभिषिक्त जन की जगह कैसे भरी जा सकती है?
१० मान लीजिए कि एक अभिषिक्त जन अविश्वासी बन जाता है। तो क्या कोई और उसकी जगह लेता? पौलुस ने लाक्षणिक जैतून के पेड़ की अपनी चर्चा में इसे सूचित किया। (रोमियों ११:११-३२) अगर एक आत्मा से उत्पन्न जन की जगह भरने की ज़रूरत है, तो संभवतः परमेश्वर उस स्वर्गीय बुलावे को एक ऐसे व्यक्ति को देगा जिसका विश्वास कई सालों तक उसकी पवित्र सेवा करने में अनुकरणीय रहा है।—लूका २२:२८, २९; १ पतरस १:६, ७ से तुलना कीजिए।
एहसान की कई वज़ह
११. चाहे हमारी आशा कोई भी क्यों न हो, याकूब १:१७ हमें किस बात का यक़ीन दिलाता है?
११ हम चाहे किसी भी हैसियत से वफ़ादारी से यहोवा की सेवा करें, वह हमारी ज़रूरतों और सही-सही इच्छाओं को पूरा करेगा। (भजन १४५:१६; लूका १:६७-७४) चाहे हमारी एक असली स्वर्गीय आशा हो या हमारी आशा पृथ्वी की हो, हमारे पास परमेश्वर का एहसानमंद होने के कई ठोस कारण हैं। हमेशा वह ऐसे काम करता है जिससे उससे प्यार करनेवालों का सबसे ज़्यादा भला होता है। शिष्य याकूब ने कहा कि “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता [यहोवा परमेश्वर] की ओर से मिलता है।” (याकूब १:१७) आइए हम इनमें से कुछ वरदानों और आशीषों पर ग़ौर करें।
१२. हम यह क्यों कह सकते हैं कि यहोवा ने अपने हर वफ़ादार सेवक को एक शानदार आशा दी है?
१२ यहोवा ने अपने हर वफ़ादार सेवक को एक शानदार आशा दी है। उसने कुछ लोगों को स्वर्गीय जीवन के लिए बुलाया है। अपने मसीही-पूर्व साक्षियों को यहोवा ने शानदार आशा दी कि पुनरुत्थान द्वारा पृथ्वी पर अनंत जीवन पाएँ। मिसाल के तौर पर, इब्राहीम का पुनरुत्थान में विश्वास था और उसने “उस स्थिर नेववाले नगर” का—स्वर्गीय राज्य जिसमें उसे पार्थिव जीवन के लिए पुनरुत्थित किया जाएगा—इंतज़ार किया। (इब्रानियों ११:१०, १७-१९) फिर एक बार, अंत के इस समय में परमेश्वर लाखों लोगों को परादीस पृथ्वी पर अनंत जीवन की आशा दे रहा है। (लूका २२:४३; यूहन्ना १७:३) यक़ीनन, जिस किसी को यहोवा ने एक ऐसी महान आशा दी है, उसे इसके लिए बेहद एहसानमंद होना चाहिए।
१३. परमेश्वर की पवित्र आत्मा ने अपने लोगों पर कैसे कार्य किया है?
१३ यहोवा अपने लोगों के लिए वरदान के तौर पर अपनी पवित्र आत्मा देता है। जिन मसीहियों को स्वर्ग की आशा दी गयी है वे पवित्र आत्मा से अभिषिक्त हैं। (१ यूहन्ना २:२०; ५:१-४, १८) फिर भी, पृथ्वी की आशा रखनेवाले परमेश्वर के सेवकों के पास आत्मा की मदद और मार्गदर्शन है। इनमें से एक मूसा था, जिसके पास यहोवा की आत्मा थी, ठीक जैसे उन ७० आदमियों पर थी जिन्हें मूसा की मदद करने के लिए नियुक्त किया गया था। (गिनती ११:२४, २५) पवित्र आत्मा के प्रभाव में, बसलेल ने इस्राएल के निवासस्थान के सिलसिले में एक निपुण कारीग़र का काम किया। (निर्गमन ३१:१-११) परमेश्वर की आत्मा गिदोन, यिप्तह, शिमशोन, दाऊद, एलियाह, एलीशा और अन्य लोगों पर आयी। हालाँकि पुराने ज़माने के इन लोगों को स्वर्गीय महिमा में कभी भी पहुँचाया नहीं जाएगा, फिर भी पवित्र आत्मा ने इन्हें मार्गदर्शित किया था और मदद की थी, ठीक जैसे आज यीशु की अन्य भेड़ों को कर रही है। सो फिर, अगर हम परमेश्वर की आत्मा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि हमें स्वर्गीय बुलावा है। फिर भी, यहोवा की आत्मा मार्गदर्शन देती है, प्रचार करने और परमेश्वर द्वारा दिए गए दूसरे कामों को पूरा करने में मदद करती है, हमें असीम सामर्थ देती है, और हममें अपने फल उत्पन्न करती है, जैसे कि प्रेम, आनंद, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम। (यूहन्ना १६:१३; प्रेरितों १:८; २ कुरिन्थियों ४:७-१०; गलतियों ५:२२, २३) परमेश्वर ने हमें जो वरदान दिया है, क्या उसके लिए हमें शुक्रगुज़ार नहीं होना चाहिए?
१४. हमें ज्ञान और बुद्धि के परमेश्वर के वरदान से कैसे फायदा होता है?
१४ ज्ञान और बुद्धि परमेश्वर की ओर से बरदान हैं जिनके लिए हमें एहसानमंद होना चाहिए, चाहे हमारी आशा स्वर्ग की हो या पृथ्वी की। यहोवा का सही-सही ज्ञान हमारी मदद करता है कि ‘उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानें’ और अपना ‘चाल-चलन प्रभु के योग्य रखें ताकि वह सब प्रकार से प्रसन्न हो।’ (फिलिप्पियों १:९-११; कुलुस्सियों १:९, १०) परमेश्वर का ज्ञान ज़िंदगी के लिए सुरक्षा और मार्गदर्शक का काम करता है। (नीतिवचन ४:५-७; सभोपदेशक ७:१२) सही ज्ञान और बुद्धि परमेश्वर के वचन पर आधारित हैं, और थोड़े से बचे अभिषिक्त जन ख़ासकर उस बात की ओर आकर्षित होते हैं जो वह उनकी स्वर्गीय आशा के बारे में बताता है। बहरहाल, परमेश्वर के वचन से प्यार और उसकी अच्छी समझ यह सूचित करने का परमेश्वर का तरीक़ा नहीं है कि हमें स्वर्गीय जीवन के लिए बुलावा दिया गया है। मूसा और दानिय्येल जैसे लोगों ने तो बाइबल के भाग तक लिखे, लेकिन उन्हें पृथ्वी पर जीवन के लिए पुनरुत्थित किया जाएगा। चाहे हमारी आशा स्वर्ग की हो या पृथ्वी की, हम सभी को यहोवा के अनुमोदित “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए आध्यात्मिक आहार मिलता है। (मत्ती २४:४५-४७) इस तरह हमें जो ज्ञान मिला है उसके लिए हम कितने एहसानमंद हैं!
१५. परमेश्वर का एक सबसे बड़ा वरदान क्या है, और आप इसे किस नज़र से देखते हैं?
१५ परमेश्वर का एक सबसे बड़ा वरदान है यीशु के छुड़ौती बलिदान का प्रेम-भरा प्रबंध, जिससे हमें फायदा होता है, चाहे हमारी स्वर्ग की आशा हो या पृथ्वी की। परमेश्वर ने मनुष्यजगत से इतना प्यार किया कि “उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६) और यीशु के प्यार ने उसे प्रेरित किया कि “बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) जैसे कि प्रेरित यूहन्ना ने समझाया, यीशु मसीह “हमारे [अभिषिक्त जनों के] पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, बरन सारे जगत के पापों का भी।” (१ यूहन्ना २:१, २) सो, हम सभी को अनंत जीवन के लिए उद्धार के प्यार-भरे प्रबंध के लिए बेहद एहसानमंद होना चाहिए।b
क्या आप आएँगे?
१६. अप्रैल ११, १९९८ को सूरज ढलने के बाद किस उल्लेखनीय घटना की यादग़ार मनायी जाएगी और किसे मौजूद होना चाहिए?
१६ परमेश्वर द्वारा अपने बेटे के ज़रिए दी गयी छुड़ौती के लिए एहसानमंदी हमें मसीह की मृत्यु की यादग़ार मनाने के लिए राज्य गृह में या दूसरी जगह मौजूद होने के लिए प्रेरित करेगी जहाँ यहोवा के साक्षी अप्रैल ११, १९९८ को सूरज ढलने के बाद इकट्ठा होंगे। जब यीशु ने धरती पर अपने जीवन की आख़िरी रात को अपने वफ़ादार प्रेरितों के साथ इस समारोह को स्थापित किया, तब उसने कहा: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका २२:१९, २०; मत्ती २६:२६-३०) थोड़े-से बचे हुए अभिषिक्त जन अख़मीरी रोटी खाएँगे, जो यीशु की निष्पाप मानवी देह को सूचित करती है और सादा दाखमधु पीएँगे, जो बलिदान में बहाए गए उसके लहू को सूचित करता है। सिर्फ़ आत्मा से उत्पन्न मसीहियों को ही इसमें भाग लेना चाहिए क्योंकि सिर्फ़ वे लोग नयी वाचा में और राज्य की वाचा में बाँधे गए हैं और उनके पास परमेश्वर की पवित्र आत्मा का पक्का प्रमाण है कि उनकी आशा स्वर्ग की है। ऐसे लाखों अन्य लोग आदरपूर्ण दर्शकों के तौर पर मौजूद होंगे जो परमेश्वर और मसीह द्वारा दिखाए गए प्रेम के लिए एहसानमंद है। यह प्रेम यीशु के बलिदान के सिलसिले में दिखाया गया जो अनंत जीवन को संभव बनाता है।—रोमियों ६:२३.
१७. आत्मा से उत्पन्न किए जाने के बारे में हमें क्या याद रखना चाहिए?
१७ पहले के धार्मिक विश्वास, किसी प्रिय जन की मौत से लगा सदमा, हमारी रोज़मर्रा की मुसीबतें, या ऐसी भावना की वज़ह से, कि हमें यहोवा से कुछ ख़ास आशीष मिली है, कुछ लोगों को शायद लगे कि उनको स्वर्गीय बुलावा है। लेकिन हम सभी को याद रखना चाहिए कि मसीह के छुड़ौती बलिदान के लिए शुक्र अदा करने के लिए शास्त्र हमें स्मारक प्रतीकों में भाग लेने की आज्ञा नहीं देता। इसके अलावा, आत्मा से उत्पन्न किया जाना “न तो चाहने वाले पर और न दौड़-धूप करने वाले पर निर्भर है, परन्तु परमेश्वर पर,” जिसने यीशु को एक आत्मिक पुत्र के रूप में उत्पन्न किया और जो सिर्फ़ १,४४,००० अन्य पुत्रों को महिमा में पहुँचाता है।—रोमियों ९:१६, NHT; यशायाह ६४:८.
१८. आज यहोवा की सेवा कर रहे ज़्यादातर लोगों के लिए, आगे कौन-सी आशीषें रखी गयी हैं?
१८ इन अंतिम दिनों में यहोवा की सेवा करनेवाले ज़्यादातर इंसानों के लिए परमेश्वर द्वारा दी गयी आशा है परादीस पृथ्वी पर अनंत जीवन। (२ तीमुथियुस ३:१-५) जल्द ही वे लोग इस शानदार परादीस का आनंद लेंगे। हाकिम तब स्वर्गीय शासन के तहत पृथ्वी की बाग़डोर सँभालेंगे। (भजन ४५:१६) चारों तरफ़ शांति होगी क्योंकि धरती पर रहनेवाले लोग परमेश्वर की आज्ञाएँ मानेंगे और यहोवा के मार्गों के बारे में और भी सीखेंगे। (यशायाह ९:६, ७; प्रकाशितवाक्य २०:१२) घर बनाने और पृथ्वी को भरने का काफ़ी काम होगा। (यशायाह ६५:१७-२५) और उस ख़ुशी का अंदाज़ा लगाइए जब मरे हुए लोग फिर ज़िंदा होकर अपने परिवारों से मिलेंगे! (यूहन्ना ५:२८, २९) एक आख़िरी परीक्षा के बाद, सारी दुष्टता जाती रहेगी। (प्रकाशितवाक्य २०:७-१०) उसके बाद हमेशा-हमेशा के लिए, दुनिया परिपूर्ण लोगों से भरी हुई होगी, जो “विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त” कर चुके होंगे।
[फुटनोट]
a शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि, खंड १, पृष्ठ २२५-६, अंग्रेज़ी देखिए।
b प्रहरीदुर्ग, मार्च १, १९९२, पृष्ठ २८-३० देखिए।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ ‘जीवन का जल सेंतमेंत लेने’ का मतलब क्या है?
◻ चाहे हमारी आशा स्वर्ग की हो या पृथ्वी की, परमेश्वर के एहसानमंद होने के लिए हमारे पास कौन-से कारण हैं?
◻ हम सभी को किस वार्षिक समारोह में हाज़िर होना चाहिए?
◻ यहोवा के ज़्यादातर लोगों के लिए भविष्य में क्या रखा है?
[पेज 18 पर तसवीर]
लाखों लोगों ने “जीवन का जल सेंतमेंत” लेना शुरू कर दिया है। क्या आप उनमें से एक हैं?