ईश्वरीय शान्ति के सन्देशवाहकों के रूप में सेवा करना
“पहाड़ों पर उसके पांव क्या ही सुहावने हैं जो . . . शान्ति की बातें सुनाता है।”—यशायाह ५२:७.
१, २. (क) जैसे यशायाह ५२:७ में पूर्वबताया गया है, कौन-से सुसमाचार को प्रकाशित किया जाना है? (ख) यशायाह के भविष्यसूचक शब्दों का प्राचीन इस्राएल के मामले में क्या अर्थ था?
घोषणा करने के लिए सुसमाचार है! यह शान्ति का समाचार है—सच्ची शान्ति का। यह उद्धार का सन्देश है जो परमेश्वर के राज्य से सम्बन्धित है। बहुत समय पहले भविष्यवक्ता यशायाह ने इसके बारे में लिखा, और उसके शब्दों को हमारे लिए यशायाह ५२:७ में संभालकर रखा गया है, जहाँ यूँ लिखा है: “पहाड़ों पर उसके पांव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है, जो सिय्योन से कहता है, तेरा परमेश्वर राज्य करता है।”
२ यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता यशायाह को यह सन्देश प्राचीन इस्राएल के लाभ के लिए और आज हमारे लाभ के लिए अभिलिखित करने को उत्प्रेरित किया। इसका मतलब क्या है? जिस समय यशायाह ने ये शब्द लिखे, इस्राएल के उत्तरी राज्य को शायद पहले ही अरामियों द्वारा बन्धुवाई में ले लिया गया था। बाद में, यहूदा के दक्षिणी राज्य के निवासी बाबुल में बन्धुओं की तरह ले जाए जाते। वे जाति में मनोव्यथा और खलबली के दिन थे क्योंकि लोग यहोवा के आज्ञाकारी नहीं रहे थे और इसलिए परमेश्वर के साथ शान्ति में नहीं थे। जैसे यहोवा ने उन्हें कहा, उनके पापपूर्ण आचरण के कारण उनके और उनके परमेश्वर के बीच एक विभाजन हो रहा था। (यशायाह ४२:२४; ५९:२-४) लेकिन, यशायाह के माध्यम से यहोवा ने पूर्वबताया कि समय आने पर बाबुल के फाटक खुल जाएँगे। परमेश्वर के लोग अपनी जन्मभूमि में लौटने के लिए आज़ाद होते, ताकि वहाँ यहोवा के मन्दिर का पुनःनिर्माण करें। सिय्योन पुनःस्थापित होता, और सच्चे परमेश्वर की उपासना यरूशलेम में फिर से की जाती।—यशायाह ४४:२८; ५२:१, २.
३. इस्राएल के लिए पुनःस्थापना की प्रतिज्ञा शान्ति की एक भविष्यवाणी भी कैसे थी?
३ छुटकारे की यह प्रतिज्ञा शान्ति की एक भविष्यवाणी भी थी। उस देश में पुनःस्थापित किया जाना जिसे यहोवा ने इस्राएलियों को दिया था, परमेश्वर की दया और उनके पश्चाताप का प्रमाण होता। यह सूचित करता कि वे परमेश्वर के साथ शान्ति में थे।—यशायाह १४:१; ४८:१७, १८.
“तेरा परमेश्वर राजा बन गया है”
४. (क) किस अर्थ में यह कहा जा सकता है कि सा.यु.पू. ५३७ में ‘यहोवा राजा बन गया था’? (ख) यहोवा ने बाद के सालों में अपने लोगों के लाभ के लिए बातों को कैसे योजित किया?
४ जब यहोवा ने सा.यु.पू. ५३७ में यह छुटकारा दिया, तो सिय्योन के लिए यह घोषणा उपयुक्त रूप से की जा सकती थी: “तेरा परमेश्वर राजा बन गया है।” (हिन्दी—कॉमन लैंग्वेज, रॆफ़रॆन्स एडिशन, फुटनोट) वाक़ई, यहोवा ‘युग युग का राजा’ है। (प्रकाशितवाक्य १५:३) लेकिन उसके लोगों का यह छुटकारा उसकी सर्वसत्ता का एक ताज़ा प्रदर्शन था। एक उल्लेखनीय रूप से, इसने उस समय तक सबसे शक्तिशाली मानवी साम्राज्य पर उसकी ताक़त की श्रेष्ठता प्रदर्शित की। (यिर्मयाह ५१:५६, ५७) यहोवा की आत्मा के कार्य के परिणामस्वरूप, उसके लोगों के विरुद्ध अन्य साज़िशें बनायी गयीं। (एस्तेर ९:२४, २५) बार-बार, यहोवा ने विविध तरीक़ों से हस्तक्षेप किया ताकि मादी-फ़ारस के राजाओं को स्वयं अपनी सर्वसत्ता की इच्छा पूरी करने के साथ सहयोग करा सके। (जकर्याह ४:६) उन दिनों में जो अद्भुत घटनाएँ घटीं वे हमारे लिए एज्रा, नहेमायाह, एस्तेर, हाग्गै, और जकर्याह की बाइबल पुस्तकों में अभिलिखित हैं। और उन पर पुनर्विचार करना कितना विश्वासवर्धक है!
५. किन महत्त्वपूर्ण घटनाओं को यशायाह ५२:१३-५३:१२ में बताया गया है?
५ फिर भी, सा.यु.पू. ५३७ में और उसके बाद जो कुछ हुआ वो तो सिर्फ़ शुरूआत ही थी। अध्याय ५२ में पुनःस्थापना की भविष्यवाणी के तुरन्त बाद यशायाह ने मसीहा के आने के बारे में लिखा। (यशायाह ५२:१३-५३:१२) मसीहा के द्वारा, जो यीशु मसीह साबित हुआ, यहोवा छुटकारे और शान्ति का एक ऐसा सन्देश देता जो सा.यु.पू. ५३७ में जो हुआ उससे भी अधिक महत्त्व का होता।
यहोवा का शान्ति का सबसे बड़ा सन्देशवाहक
६. यहोवा का शान्ति का सबसे बड़ा सन्देशवाहक कौन है, और उसने स्वयं अपने-आप पर किस कार्य-नियुक्ति को लागू किया?
६ यीशु मसीह यहोवा का शान्ति का सबसे बड़ा सन्देशवाहक है। वह परमेश्वर का वचन है, यहोवा का अपना व्यक्तिगत प्रवक्ता। (यूहन्ना १:१४) इसके तालमेल में, यरदन नदी में बपतिस्मा प्राप्त करने के कुछ समय बाद, यीशु नासरत के आराधनालय में खड़ा हुआ और उसने यशायाह अध्याय ६१ से अपनी कार्यनियुक्ति को ऊँचे शब्द में पढ़ा। उस कार्यनियुक्ति ने यह स्पष्ट किया कि जिसका प्रचार करने के लिए उसे भेजा गया था उसमें ‘छुटकारा’ और ‘स्वास्थ्यलाभ’ (NW) शामिल था, और साथ ही यहोवा की स्वीकार्यता पाने का मौक़ा भी। फिर भी, यीशु ने शान्ति के सन्देश की घोषणा करने से बढ़कर किया। परमेश्वर ने उसे स्थायी शान्ति का आधार प्रदान करने के लिए भी भेजा था।—लूका ४:१६-२१.
७. परमेश्वर के साथ शान्ति से क्या परिणित होता है जो यीशु मसीह के द्वारा सम्भव होता है?
७ यीशु के जन्म के समय, बेतलेहेम के पास चरवाहों को स्वर्गदूत नज़र आए थे, जो परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे और कह रहे थे: “आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।” (तिरछे टाइप हमारे।) (लूका २:८, १३, १४) जी हाँ, वहाँ उन लोगों के लिए शान्ति होगी जिन पर परमेश्वर ने प्रसन्नता दिखायी है क्योंकि उन्होंने उस प्रबन्ध में विश्वास जताया जो वह अपने पुत्र के माध्यम से कर रहा था। इसका मतलब क्या होता? इसका अर्थ यह होता कि हालाँकि मनुष्य पाप में जन्मते हैं, वे लोग परमेश्वर के साथ एक स्वच्छ स्थिति, अर्थात् उसके साथ एक अनुमोदित सम्बन्ध पा सकें। (रोमियों ५:१) वे लोग अंदरूनी प्रशान्ति का, शान्ति का आनन्द ले सकते हैं जो किसी और तरीक़े से सम्भव नहीं है। परमेश्वर के नियुक्त समय में, वहाँ आदम के वंशागत पाप के सभी प्रभावों से छुटकारा होगा, जिसमें बीमारी और मृत्यु भी शामिल है। लोग अब से अंधे या बहरे या लंगड़े नहीं होंगे। कुंठित करनेवाली कमज़ोरी और दिल तोड़नेवाले मानसिक विकार हमेशा-हमेशा के लिए निकाल दिए जाएँगे। परिपूर्णता में सर्वदा के लिए जीवन का आनन्द लेना सम्भव होगा।—यशायाह ३३:२४; मत्ती ९:३५; यूहन्ना ३:१६.
८. ईश्वरीय शान्ति किसे दी जाती है?
८ ईश्वरीय शान्ति किसे दी जाती है? यह उन सभी को दी जाती है जो यीशु मसीह में विश्वास जताते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा कि ‘परमेश्वर की प्रसन्नता इसी में है कि यीशु के क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं का मसीह के द्वारा अपने साथ मेल कर ले।’ प्रेरित ने आगे कहा कि इस मेलमिलाप करने में ‘स्वर्ग में की वस्तुएँ’ शामिल होंगी—अर्थात्, वे लोग जो स्वर्ग में मसीह के साथ संगी वारिस होंगे। इनमें ‘पृथ्वी पर की वस्तुएँ’ भी शामिल होंगी—अर्थात्, वे लोग जिन पर इस पृथ्वी पर सर्वदा तक जीने के अवसर का अनुग्रह होगा जब इसे परादीस की सम्पूर्ण स्थिति में लाया जाता है। (कुलुस्सियों १:१९, २०) यीशु के बलिदान का उनके द्वारा लाभ उठाने के कारण और दिल से परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता के कारण, ये सभी परमेश्वर के साथ स्नेहिल मैत्री का आनन्द ले सकते हैं।—याकूब २:२२, २३ से तुलना कीजिए।
९. (क) परमेश्वर के साथ शान्ति और किन सम्बन्धों को प्रभावित करती है? (ख) सभी जगह स्थायी शान्ति को मद्देनज़र रखते हुए, यहोवा ने अपने पुत्र को कौन-सा अधिकार सौंपा?
९ परमेश्वर के साथ ऐसी शान्ति कितनी अत्यावश्यक है! अगर परमेश्वर के साथ कोई शान्ति नहीं है, तो किसी भी अन्य सम्बन्ध में कोई स्थायी या अर्थपूर्ण शान्ति नहीं हो सकती। यहोवा के साथ शान्ति पृथ्वी पर सच्ची शान्ति की नींव है। (यशायाह ५७:१९-२१) उचित ही, यीशु मसीह शान्ति का राजकुमार है। (यशायाह ९:६) इस व्यक्ति को जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर के साथ फिर से मेलमिलाप कर सकते हैं, यहोवा ने शासन करने का अधिकार भी सौंपा है। (दानिय्येल ७:१३, १४) और मनुष्यजाति पर यीशु के राजसी शासन के परिणाम के सम्बन्ध में, यहोवा प्रतिज्ञा करता है: “शान्ति का अन्त न होगा।”—यशायाह ९:७; भजन ७२:७.
१०. यीशु ने परमेश्वर के शान्ति के सन्देश को प्रकाशित करने में कैसे उदाहरण रखा?
१० परमेश्वर के शान्ति के सन्देश की सभी मनुष्यजाति को ज़रूरत है। यीशु ने इसे प्रचार करने में व्यक्तिगत रूप से एक उत्साही उदाहरण रखा। उसने ऐसा यरूशलेम के मन्दिर क्षेत्र में, पहाड़ के पास, सड़क पर, कुँए पर एक सामरी स्त्री के साथ, और लोगों के घरों में किया। जहाँ कहीं लोग थे, यीशु ने शान्ति और परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार करने के अवसर निकाले।—मत्ती ४:१८, १९; ५:१, २; ९:९; २६:५५; मरकुस ६:३४; लूका १९:१-१०; यूहन्ना ४:५-२६.
मसीह के पदचिन्हों पर चलने के लिए प्रशिक्षित
११. यीशु ने अपने शिष्यों को किस कार्य के लिए प्रशिक्षित किया?
११ यीशु ने अपने शिष्यों को परमेश्वर के शान्ति के सन्देश का प्रचार करना सिखाया। ठीक जैसे यीशु यहोवा का “विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह” था, उन्होंने समझ लिया कि उन पर भी साक्ष्य देने की ज़िम्मेदारी थी। (प्रकाशितवाक्य ३:१४; यशायाह ४३:१०-१२) उन्होंने अपने अगुए के रूप में मसीह की ओर देखा।
१२. पौलुस ने प्रचार गतिविधि के महत्त्व को कैसे दिखाया?
१२ प्रेरित पौलुस ने प्रचार गतिविधि के महत्त्व पर तर्क किया, और कहा: “पवित्र शास्त्र यह कहता है, कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित [“निराश,” NW] न होगा।” इसका मतलब, जो कोई यहोवा के उद्धार के मुख्य अभिकर्ता के रूप में यीशु मसीह पर विश्वास जताता है वह निराश न होगा। और किसी भी व्यक्ति की नृजातीय पृष्ठभूमि उसे अयोग्य नहीं ठहराती, क्योंकि पौलुस ने आगे कहा: “यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिये कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेनेवालों के लिये उदार है। क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” (रोमियों १०:११-१३) लेकिन लोग उस अवसर के बारे में कैसे सीखनेवाले थे?
१३. अगर लोगों को सुसमाचार सुनना था तो किस बात की ज़रूरत थी, और प्रथम-शताब्दी के मसीहियों ने उस ज़रूरत के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
१३ पौलुस उन सवालों को पूछने के द्वारा, जिनके बारे में यहोवा के प्रत्येक सेवक को सोचना चाहिए, इस ज़रूरत से निपटा। प्रेरित ने पूछा: “फिर जिस पर उन्हों ने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें?” (रोमियों १०:१४, १५) प्रारम्भिक मसीहियत का रिकार्ड इस बात की शक्तिशाली गवाही देता है कि पुरुषों और स्त्रियों, जवानों और बूढ़ों ने, मसीह और उसके प्रेरितों द्वारा रखे गए उदाहरण के प्रति अनुक्रिया दिखाई। वे सुसमाचार के जोशीले उद्घोषक बन गए। यीशु के अनुकरण में, जहाँ कहीं भी लोग उन्हें मिलते, उन्होंने उन्हें प्रचार किया। क्योंकि वे किसी को भी चूकना नहीं चाहते थे, उन्होंने सार्वजनिक स्थानों में और घर-घर दोनों में अपनी सेवकाई की।—प्रेरितों १७:१७; २०:२०.
१४. यह कैसे सच साबित हुआ कि सुसमाचार सुनानेवालों के “पांव” “सुहावने” थे?
१४ निश्चित ही, हरेक व्यक्ति ने मसीही प्रचारकों को कृपालुता से स्वीकार नहीं किया। अलबत्ता, यशायाह ५२:७ से पौलुस का उद्धरण सच साबित हुआ। यह सवाल पूछने के बाद, “यदि [वे] भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें?” उसने आगे कहा: “जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” हम में से अधिकांश लोग अपने पाँवों को सुहावना, या सुंदर नहीं समझते। तो फिर, इसका क्या मतलब है? यह पाँव है जो व्यक्ति को सामान्य रूप से चलाता है जब वह दूसरों को प्रचार करने के लिए जाता है। ऐसे पाँव सचमुच व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। और हम निश्चित हो सकते हैं कि उन अनेक लोगों के लिए जिन्होंने प्रेरितों और यीशु मसीह के अन्य प्रथम-शताब्दी शिष्यों से सुसमाचार सुना, ये प्रारम्भिक मसीही वाक़ई एक सुंदर नज़ारा थे। (प्रेरितों १६:१३-१५) इससे भी बढ़कर, वे लोग परमेश्वर की नज़रों में बहुमूल्य थे।
१५, १६. (क) प्रारम्भिक मसीहियों ने कैसे प्रदर्शित किया कि वे लोग सचमुच शान्ति के सन्देशवाहक थे? (ख) कौन-सी बात हमें अपनी सेवकाई को उसी तरह पूरा करने के लिए मदद कर सकती है जैसे प्रथम-शताब्दी के मसीहियों ने की?
१५ यीशु के अनुयायियों के पास शान्ति का एक सन्देश था, और उन्होंने उसे एक शान्तिपूर्ण तरीक़े से दिया। यीशु ने अपने शिष्यों को ये निर्देश दिए: “जिस घर में भी प्रवेश करो, पहिले कहो, ‘इस घर में शान्ति बनी रहे।’ यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य हो; तो तुम्हारी शान्ति उस पर बनी रहेगी अन्यथा वह तुम्हारे पास लौट आएगी।” (लूका १०:५, ६, NHT) शालोह्म, या “शान्ति” एक पारम्परिक यहूदी अभिवादन है। लेकिन, यीशु के निर्देश में इससे भी ज़्यादा शामिल था। ‘मसीह के राजदूतों’ के तौर पर उसके अभिषिक्त शिष्यों ने लोगों से आग्रह किया: “परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो।” (२ कुरिन्थियों ५:२०) यीशु के निर्देशों के सामंजस्य में, उन्होंने लोगों के साथ परमेश्वर के राज्य और व्यक्तियों के रूप में उसका उनके लिए जो अर्थ हो सकता है उसके बारे में बात की। जिन्होंने सुना उन्होंने एक आशिष पायी; जिन्होंने इस सन्देश को ठुकरा दिया वे इसे खो बैठे।
१६ आज यहोवा के साक्षी अपनी सेवकाई को उसी तरह से पूरा करते हैं। जो सुसमाचार वे लोगों के पास ले जाते हैं वह उनका नहीं है; यह उस व्यक्ति का है जिसने उन्हें भेजा है। उनकी कार्य-नियुक्ति है उसे देना। अगर लोग इसे स्वीकार करते हैं, तो वे अपने-आपको अद्भुत आशिषों को प्राप्त करने की स्थिति में लाते हैं। यदि वे इसे ठुकराते हैं, तो वे लोग यहोवा परमेश्वर और उसके पुत्र, यीशु मसीह के साथ शान्ति को ठुकरा रहे हैं।—लूका १०:१६.
एक अशान्त संसार में शान्तिपूर्ण
१७. जब गाली-गलौज करनेवाले लोगों से सामना हो तब भी हमें कैसे आचरण रखना चाहिए, और क्यों?
१७ लोगों की प्रतिक्रिया चाहे जो भी हो, यहोवा के सेवकों के लिए यह मन में रखना महत्त्वपूर्ण है कि वे ईश्वरीय शान्ति के सन्देशवाहक हैं। संसार के लोग शायद गरमा-गरम बहस करें और जो उन्हें परेशान करते हैं उन्हें चुभनेवाली टिप्पणियाँ करने या गाली-गलौज करने के द्वारा उन पर अपना गुस्सा निकालें। शायद हम में से कुछ लोगों ने अतीत में ऐसा किया हो। लेकिन, अगर हमने नया मनुष्यत्व धारण किया है और अब संसार का कोई भाग नहीं हैं, तो हम उनके तौर-तरीक़ों का अनुकरण नहीं करेंगे। (इफिसियों ४:२३, २४, ३१; याकूब १:१९, २०) दूसरे चाहे कैसी भी प्रतिक्रिया क्यों न दिखाएँ, हम इस सलाह को लागू करेंगे: “जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।”—रोमियों १२:१८.
१८. अगर एक जन अधिकारी हमारे साथ कठोरता से पेश आता है, तो हमें कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए और क्यों?
१८ कभी-कभार हमारी सेवकाई हमें शायद जन अधिकारियों के सामने लाकर खड़ी कर दे। अपना अधिकार जताते हुए, वे इस बारे में ‘हमसे’ एक स्पष्टीकरण “पूछें” कि क्यों हम फलाने-फलाने कार्य करते हैं या क्यों हम कुछ विशिष्ट गतिविधि में भाग लेने से दूर रहते हैं। वे लोग शायद जानना चाहें कि हम जिस सन्देश का प्रचार करते हैं वह क्यों करते हैं—वह सन्देश जो झूठे धर्म का पर्दाफ़ाश करता है और जो वर्तमान रीति-व्यवस्था के अन्त के बारे में बताता है। मसीह द्वारा रखे गए उदाहरण के लिए हमारा आदर हमें एक ठण्डा दिमाग़ और गहरा आदर प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित करेगा। (१ पतरस २:२३; ३:१५) अकसर, ऐसे अधिकारी पादरीवर्ग के या सम्भवतः उनके अपने वरिष्ठों के दबाव में होते हैं। एक शान्त जवाब उन्हें इस बात को समझने में शायद मदद करे कि हमारी गतिविधि उनके लिए या समाज की शान्ति के लिए कोई ख़तरा नहीं है। एक ऐसा जवाब उन लोगों में आदर, सहयोग, और शान्ति की भावना जगाता है जो उसे स्वीकार करते हैं।—तीतुस ३:१, २.
१९. यहोवा के साक्षी किन गतिविधियों में कभी-भी भाग नहीं लेते?
१९ पृथ्वी-भर में यहोवा के साक्षी ऐसे लोगों के रूप में जाने जाते हैं जो संसार के रगड़ों-झगड़ों में भाग नहीं लेते। वे लोग जाति, धर्म, या राजनीति की दुनिया के संघर्षों में शामिल नहीं होते। (यूहन्ना १७:१४) क्योंकि परमेश्वर का वचन हमें ‘प्रधान अधिकारियों के अधीन रहने’ के लिए निर्देशित करता है, हम सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए नागरिक अवज्ञा के कृत्यों में भाग लेने के बारे में सोचेंगे भी नहीं। (रोमियों १३:१) यहोवा के साक्षियों ने किसी भी आन्दोलन में भाग नहीं लिया है जिसका लक्ष्य कोई सरकार का तख़्ता पलटना था। अपने मसीही सेवकों के लिए यहोवा द्वारा स्थापित किए गए स्तरों के कारण, किसी भी तरह के रक्तपात या हिंसा में उनका भाग लेना सोच के बाहर है! सच्चे मसीही शान्ति के बारे में न केवल बोलते हैं; वे लोग अपनी कथनी के सामंजस्य में जीते हैं।
२०. शान्ति के सम्बन्ध में, महाबाबुल ने किस तरह का रिकार्ड बनाया है?
२० सच्चे मसीहियों की विषमता में, वे लोग जो मसीहीजगत के धार्मिक संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हैं शान्ति के सन्देशवाहक साबित नहीं हुए हैं। महाबाबुल के धर्मों ने—मसीहीजगत के गिरजे और ग़ैर-मसीही धर्म दोनों ने—राष्ट्रों के युद्धों को अनदेखा किया है, समर्थन दिया है, और वास्तव में उनकी अगुवाई की है। उन्होंने सताहट को और यहाँ तक कि यहोवा के विश्वासी सेवकों की हत्या को भी भड़काया है। इसलिए, महाबाबुल के सम्बन्ध में, प्रकाशितवाक्य १८:२४ घोषणा करता है: “भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों, और पृथ्वी पर सब घात किए हुओं का लोहू उसी में पाया गया।”
२१. अनेक सत्हृदयी लोग कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं जब वे यहोवा के लोगों के आचरण में और झूठे धर्म का अभ्यास करनेवाले लोगों के आचरण में भिन्नता देखते हैं?
२१ मसीहीजगत के धर्मों और शेष महाबाबुल के विपरीत, सच्चा धर्म एक सकारात्मक, संयुक्त करनेवाली शक्ति है। अपने सच्चे अनुयायियों को यीशु मसीह ने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३५) यह ऐसा प्रेम है जो राष्ट्रीय, सामाजिक, आर्थिक, और जातीय सीमाओं को लाँघता है जो अब बाक़ी की मानवजाति को विभाजित करती हैं। इसे देख, पृथ्वी-भर के लाखों लोग यहोवा के अभिषिक्त सेवकों से कह रहे हैं: “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।”—जकर्याह ८:२३.
२२. हम उस साक्षी कार्य को किस नज़र से देखते हैं जिसे अब भी पूरा किया जाना बाक़ी है?
२२ यहोवा के लोगों के रूप में, हम उस में बहुत ही हर्षित होते हैं जो निष्पन्न किया जा चुका है, लेकिन काम अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है। बीज बोने और अपने खेत की जुताई करने के बाद एक किसान हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ जाता। वह पसीना बहाता रहता है, ख़ासकर कटनी के मौसम की चरमसीमा में। कटनी का समय जारी, कठिन मेहनत की माँग करता है। और अभी पहले से कहीं ज़्यादा सच्चे परमेश्वर के उपासकों की एक बड़ी कटनी है। यह हर्षित होने का समय है। (यशायाह ९:३) सच है, हम विरोध और बेपरवाही का सामना करते हैं। व्यक्तियों के रूप में, हम शायद गंभीर बीमारी, कठिन पारिवारिक स्थितियों, या आर्थिक कठिनाइयों से निपटने का प्रयास कर रहे हों। लेकिन यहोवा के लिए प्रेम हमें लगे रहने के लिए मज़बूर करता है। परमेश्वर द्वारा हमें जो सन्देश सौंपा गया है वह ऐसा है जिसे लोगों को सुनने की ज़रूरत है। यह शान्ति का सन्देश है। वाक़ई, यह वह सन्देश है जिसका स्वयं यीशु ने प्रचार किया—परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार।
आपका जवाब क्या है?
◻ यशायाह ५२:७ की प्राचीन इस्राएल पर कौन-सी पूर्ति हुई?
◻ यीशु शान्ति का सबसे बड़ा सन्देशवाहक कैसे साबित हुआ?
◻ प्रेरित पौलुस ने यशायाह ५२:७ को उस कार्य के साथ कैसे जोड़ा जिसमें मसीही भाग लेते हैं?
◻ हमारे दिन में शान्ति के सन्देशवाहक होने में क्या शामिल है?
[पेज 13 पर तसवीरें]
यीशु की तरह, यहोवा के साक्षी ईश्वरीय शान्ति के सन्देशवाहक हैं
[पेज 15 पर तसवीरें]
यहोवा के साक्षी शान्तिपूर्ण बने रहते हैं, चाहे लोग राज्य सन्देश के प्रति कैसी भी प्रतिक्रिया क्यों न दिखाएँ