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‘वाह! परमेश्वर की बुद्धि क्या ही अथाह है!’प्रहरीदुर्ग—2011 | मई 15
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17. जो यहोवा ने किया वह “प्रकृति के खिलाफ” कैसे था?
17 यहोवा ने कुछ ऐसा किया जिसके बारे में जानकर बहुत-से लोगों को हैरानी होगी। पौलुस ने इस काम को “प्रकृति के खिलाफ” बताया। (रोमि. 11:24) उसने ऐसा क्यों कहा? हाँ, यह अनहोनी और प्रकृति के खिलाफ बात लग सकती है कि एक जंगली पेड़ की कलम किसी रोपे गए पेड़ में लगायी जाए, मगर पहली सदी में कुछ किसान ऐसा ही करते थे।b उसी तरह यहोवा ने भी अनोखी बात की। यहूदियों की नज़र में अन्यजाति के लोग परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक फल पैदा करने के काबिल नहीं थे। लेकिन फिर भी यहोवा ने इन्हीं लोगों को एक ऐसी “जाति” या राष्ट्र का भाग बनाया जो राज के फल पैदा करता। (मत्ती 21:43) ईसवी सन् 36 से खतना रहित गैर यहूदियों की कलमें, रोपे गए लाक्षणिक जैतून के पेड़ में लगानी शुरू हुईं, जिनमें सबसे पहले कुरनेलियुस को अभिषिक्त करके चुना गया।—प्रेषि. 10:44-48.c
18. ईसवी सन् 36 के बाद भी पैदाइशी यहूदियों के सामने क्या मौका था?
18 क्या इसका मतलब यह था कि ईसवी सन् 36 से पैदाइशी यहूदियों को अब्राहम के वंश का भाग बनने का कोई मौका नहीं था? नहीं, ऐसा नहीं है। पौलुस ने बताया: “अगर वे [पैदाइशी यहूदी] भी विश्वास दिखाने लगें, तो उनकी भी कलम लगायी जाएगी। इसलिए कि परमेश्वर उन्हें दोबारा कलम लगाने के काबिल है। इसलिए कि अगर तुझे जंगली जैतून में से काटकर, बाग में उगाए गए असली जैतून के पेड़ में प्रकृति के खिलाफ, कलम लगाया गया, तो ये असली डालियाँ अपने ही जैतून के पेड़ में और भी आसानी से क्यों न कलम लगायी जाएँगी!”d—रोमि. 11:23, 24.
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‘वाह! परमेश्वर की बुद्धि क्या ही अथाह है!’प्रहरीदुर्ग—2011 | मई 15
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d रोमियों 11:24 में जिस यूनानी भाषा के उपसर्ग का अनुवाद “बाग” किया गया है, उसका मतलब है “बढ़िया, उत्तम” या “अपने वातावरण में अच्छी तरह फलने-फूलनेवाला।” यह उपसर्ग खास तौर पर उन चीज़ों के साथ इस्तेमाल होता है, जो अपने उस मकसद को पूरा करती हैं जिसके लिए उन्हें बनाया गया है।
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