एक दुर्गुण-भरे संसार में सद्गुण क़ायम रखना
‘सब काम बिना कुड़कुड़ाए और निर्विवाद किया करो, जिस से तुम निर्दोष और भोले बनो तथा इस कुटिल और भ्रष्ट पीढ़ी के बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बनो।’—फिलिप्पियों २:१४, १५, NHT.
१, २. परमेश्वर ने कनानियों के नाश की माँग क्यों की?
यहोवा की आज्ञाएँ समझौता करने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़तीं। इस्राएली प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करनेवाले ही थे जब भविष्यवक्ता मूसा ने उन्हें बताया: “उनको अवश्य सत्यानाश करना, अर्थात् हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिब्बियों, और यबूसियों को, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है।”—व्यवस्थाविवरण ७:२; २०:१७.
२ चूँकि यहोवा दयालु परमेश्वर है, उसने कनान के निवासियों के नाश की माँग क्यों की? (निर्गमन ३४:६) एक कारण था कि ‘ऐसा न हो कि जितने घिनौने काम कनानी अपने देवताओं की सेवा में करते आए थे वैसा ही करना इस्राएल को भी सिखाएं, और इस तरह वे यहोवा परमेश्वर के विरुद्ध पाप करें।’ (व्यवस्थाविवरण २०:१८) मूसा ने यह भी कहा: “उन जातियों की दुष्टता ही के कारण यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालता है।” (व्यवस्थाविवरण ९:४) कनानी लोग दुर्गुण का साकार रूप थे। लैंगिक दुराचारिता और मूर्तिपूजा उनकी उपासना की ख़ास विशेषता थी। (निर्गमन २३:२४; ३४:१२, १३; गिनती ३३:५२; व्यवस्थाविवरण ७:५) कौटुंबिक व्यभिचार, लौंडेबाज़ी, और पशुगमन ‘कनान देश के काम’ थे। (लैव्यव्यवस्था १८:३-२५) मासूम बच्चों को क्रूरतापूर्वक झूठे देवताओं के लिए बलि किया जाता था। (व्यवस्थाविवरण १८:९-१२) कोई ताज्जुब नहीं कि यहोवा ने इन जातियों के अस्तित्त्व मात्र को अपने लोगों के भौतिक, नैतिक और आध्यात्मिक हित के लिए एक ख़तरा समझा!—निर्गमन ३४:१४-१६.
३. इस्राएलियों द्वारा कनान के निवासियों के संबंध में परमेश्वर की आज्ञाओं को पूरी रीति से न मानने के कारण क्या परिणाम हुआ?
३ क्योंकि परमेश्वर की आज्ञाओं का पूरी रीति से पालन नहीं किया गया था, प्रतिज्ञात देश पर इस्राएलियों की विजय के बाद कनान के अनेक निवासी जीवित बच गए थे। (न्यायियों १:१९-२१) कुछ समय बाद, कनानियों के दुर्बोध प्रभाव को महसूस किया गया, और यह कहा जा सकता था: “वे [इस्राएली, यहोवा की] विधियां, और अपने पुरखाओं के साथ उसकी वाचा, और जो चितौनियां उस ने उन्हें दी थीं, उनको तुच्छ जानकर, निकम्मी बातों के पीछे हो लिए; जिस से वे आप निकम्मे हो गए, और अपने चारों ओर की उन जातियों के पीछे भी हो लिए जिनके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि उनके से काम न करना।” (२ राजा १७:१५) जी हाँ, वर्षों के दौरान अनेक इस्राएली उन्हीं दुर्गुणों की आदत में पड़ गए जिनकी वज़ह से परमेश्वर ने कनानियों के सर्वनाश की आज्ञा दी थी—मूर्तिपूजा, अमर्यादित लैंगिक कार्य, और यहाँ तक कि बच्चों की बलि चढ़ाना!—न्यायियों १०:६; २ राजा १७:१७; यिर्मयाह १३:२७.
४, ५. (क) निष्ठाहीन यहूदा और इस्राएल को क्या हुआ? (ख) फिलिप्पियों २:१४, १५, (NHT) में क्या आग्रह किया गया है, और कौन-से सवाल उठाए गए हैं?
४ भविष्यवक्ता होशे ने इसलिए घोषणा की: “हे इस्राएलियो, यहोवा का वचन सुनो; इस देश के निवासियों के साथ यहोवा का मुक़द्दमा है। इस देश में न तो कुछ सच्चाई है, न कुछ करुणा और न कुछ परमेश्वर का ज्ञान ही है। यहां शाप देने, झूठ बोलने, वध करने, चुराने, और व्यभिचार करने को छोड़ कुछ नहीं होता; वे व्यवस्था की सीमा को लांघकर कुकर्म करते हैं और खून ही खून होता रहता है। इस कारण यह देश विलाप करेगा, और मैदान के जीव-जन्तुओं, और आकाश के पक्षियों समेत उसके सब निवासी कुम्हला जाएंगे; और समुद्र की मछलियां भी नाश हो जाएंगी।” (होशे ४:१-३) सा.यु.पू. ७४० में, इस्राएल का भ्रष्ट उत्तरी राज्य अश्शूरियों द्वारा पराजित कर दिया गया। लगभग एक शताब्दी बाद, निष्ठाहीन यहूदा का दक्षिणी राज्य बाबुलियों द्वारा जीत लिया गया।
५ ये घटनाएँ सचित्रित करती हैं कि दुर्गुणों के वश में हो जाना कितना ख़तरनाक हो सकता है। परमेश्वर अधार्मिकता से घृणा करता है और अपने लोगों के बीच इसे सहन नहीं करेगा। (१ पतरस १:१४-१६) यह सच है कि हम “वर्तमान् बुरे संसार” में रहते हैं, एक ऐसे संसार में जो अधिकाधिक भ्रष्ट होता जा रहा है। (गलतियों १:४; २ तीमुथियुस ३:१३) फिर भी, परमेश्वर का वचन सभी मसीहियों से ऐसा व्यवहार करने का आग्रह करता है जिससे वे ‘निर्दोष और भोले बनें तथा इस कुटिल और भ्रष्ट पीढ़ी के बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बनकर वे संसार में ज्योति बनकर चमक रहे हैं।’ (फिलिप्पियों २:१४, १५, NHT) लेकिन एक दुर्गुण-भरे संसार में हम सद्गुण कैसे क़ायम रख सकते हैं? क्या ऐसा करना सचमुच संभव है?
दुर्गुण-भरा रोमी संसार
६ प्रथम-शताब्दी मसीहियों ने सद्गुण क़ायम रखने में चुनौती का सामना क्यों किया?
६ प्रथम-शताब्दी मसीहियों ने सद्गुण क़ायम रखने की चुनौती का सामना किया क्योंकि दुर्गुण रोमी समाज के हर पहलू में समाया हुआ था। रोमी तत्त्वज्ञानी सॆनॆका ने अपने समकालीनों के बारे में कहा: “आदमी दुष्टता की बड़ी शत्रुता में संघर्ष करते हैं। हर दिन ग़लत काम करने की इच्छा बढ़ती जाती है, और इसका डर कम होता जाता है।” उसने रोमी समाज की तुलना “जंगली जानवरों के एक समाज” से की। इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि मनोरंजन के लिए रोमी परपीड़क मल्ल-युद्ध मुक़ाबलों और कामुक नाट्य प्रदर्शनों को ढूँढ़ निकालते थे।
७. पौलुस ने उन दुर्गुणों का कैसे वर्णन किया जो सा.यु. प्रथम शताब्दी के अनेक लोगों में आम तौर पर पाए जाते थे?
७ शायद प्रेरित पौलुस के मन में प्रथम शताब्दी के लोगों का पतित चालचलन रहा हो जब उसने लिखा: “परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला। वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया।” (रोमियों १:२६, २७) अशुद्ध शारीरिक इच्छाओं पर उतारू, रोमी समाज दुर्गुण से लबालब भर गया।
८. यूनानी और रोमी समाज में बच्चों का अकसर कैसे शोषण किया जाता था?
८ इतिहास स्पष्ट नहीं करता कि रोमियों के मध्य में समलैंगिकता कितनी प्रबल थी। लेकिन, इसमें कोई संदेह नहीं कि वे अपने यूनानी पूर्वगामियों द्वारा प्रभावित हुए थे, जिनके बीच यह व्यापक रूप से प्रचलित थी। युवा लड़कों को भ्रष्ट करने का बूढ़े आदमियों का रिवाज़ था, वे एक विद्यार्थी-शिक्षक संबंध में उन्हें अपनी छत्र-छाया में ले लेते थे जो अकसर युवाओं को विकृत लैंगिक आचरण की ओर ले जाता था। निःसंदेह, शैतान और उसके पिशाच ऐसे दुर्गुण और बच्चों के दुर्व्यवहार के पीछे थे।—योएल ३:३; यहूदा ६, ७.
९, १०. (क) किस तरीक़े से १ कुरिन्थियों ६:९, १० अनेक प्रकार के दुर्गुणों की निंदा करता है? (ख) कुरिन्थियों की कलीसिया के कुछ लोगों की पृष्ठभूमि क्या थी, और उनके मामले में क्या परिवर्तन हुआ था?
९ ईश्वरीय उत्प्रेरणा के प्रभाव में लिखते हुए, पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को बताया: “क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्त्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।”—१ कुरिन्थियों ६:९-११.
१० पौलुस की उत्प्रेरित पत्री ने इस प्रकार लैंगिक अनैतिकता की निंदा की कि “वेश्यागामी . . . परमेश्वर के राज्य के वारिस [न] होंगे।” लेकिन कई दुर्गुणों की सूचि देने के बाद, पौलुस ने कहा: “तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम . . . धोए गए।” परमेश्वर की मदद से पापियों के लिए उसकी दृष्टि में शुद्ध होना संभव था।
११. प्रथम-शताब्दी मसीही अपने समय के दुष्ट माहौल में कितने सफल रहे?
११ जी हाँ, मसीही सद्गुण प्रथम शताब्दी के दुर्गुण-भरे संसार में भी फूला-फला। विश्वासियों की ‘बुद्धि के नए हो जाने से उनका चाल-चलन भी बदल गया।’ (रोमियों १२:२) उन्होंने अपना ‘पिछला चालचलन’ छोड़ दिया और ‘अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नए बनते गए।’ इस प्रकार वे संसार के दुर्गुणों से दूर भागे और ‘नये मनुष्यत्व को पहिन लिया, जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया था’—इफिसियों ४:२२-२४, NHT.
आज का दुर्गुण-भरा संसार
१२. वर्ष १९१४ से संसार में क्या परिवर्तन आया है?
१२ हमारे समय के बारे में क्या? जिस संसार में हम जी रहे हैं वह पहले से कहीं अधिक दुर्गुण से भरा हुआ है। ख़ास तौर पर १९१४ से एक विश्व-व्यापी नैतिक पतन हुआ है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) सद्गुण, नैतिकता, प्रतिष्ठा, और आचार-शास्त्र के पारंपरिक विचारों को ठुकराकर अनेक लोग अपने सोच-विचार में आत्म-केंद्रित बन गए हैं और ‘सब नैतिक बुद्धि से सुन्न हो गए हैं।’ (इफिसियों ४:१९, NW) न्यूज़वीक पत्रिका ने कहा: “हम नैतिक सापेक्षवाद के युग में जीते हैं,” और आगे कहा कि इस प्रबल नैतिक माहौल ने “सही और ग़लत के सभी विचारों को मात्र व्यक्तिगत रुचि, भावनात्मक पसंद या सांस्कृतिक चुनाव का मामला बना दिया है।”
१३. (क) आज का अधिकांश मनोरंजन कैसे दुर्गुण को बढ़ावा देता है? (ख) अनुचित मनोरंजन का लोगों पर कौन-सा बुरा प्रभाव हो सकता है?
१३ जैसा प्रथम शताब्दी में था, पतित मनोरंजन आज सामान्य है। टेलीविज़न, रोडियो, फ़िल्मों, और वीडियो में लैंगिक बातों से भरा कार्यक्रम दिखाना आम हो गया है। दुर्गुण कंप्यूटर नॆटवर्कों में भी प्रवेश कर चुका है। अश्लील सामग्री वर्तमान-दिन कंप्यूटर नॆटवर्कों पर बहुतायत में उपलब्ध हो रही है, और विभिन्न आयु के लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं। इन सब के क्या प्रभाव हैं? एक अख़बार स्तंभकार कहता है: “जब खून-ख़राबा और अंगभंग और गिरी हुई लैंगिकता से हमारी प्रचलित संस्कृति ओतप्रोत हो जाती है, तो हम खून-ख़राबे और अंगभंग और गिरी हुई लैंगिकता के आदी हो जाते हैं। हम ढीले पड़ जाते हैं। दुराचारिता अधिकाधिक सहनीय बन जाती है, क्योंकि बहुत कम बातों से हमें आघात पहुँचने लगता है।”—१ तीमुथियुस ४:१, २ से तुलना कीजिए।
१४, १५. इसका क्या प्रमाण है कि लैंगिक नैतिकता का संसार-भर में पतन हुआ है?
१४ द न्यू यॉर्क टाइम्स् की इस रिपोर्ट पर ग़ौर कीजिए: “२५ वर्ष पहले जिस बात को घृणित समझा जाता था वह अब स्वीकार्य सहवास प्रबंध बन गयी है। १९८० और १९९१ के बीच [अमरीका में] शादी करने के बजाय साथ रहनेवाले जोड़ों की संख्या ८० प्रतिशत बढ़ गई है।” यह मात्र उत्तरी अमरीका का चलन नहीं है। पत्रिका एशियावीक रिपोर्ट करती है: “[एशिया] के सभी देशों में एक सांस्कृतिक वाद-विवाद छिड़ा हुआ है। वाद-विषय है स्वच्छंद लैंगिकता बनाम पारंपरिक मूल्य, और परिवर्तन के लिए दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।” आँकड़े दिखाते हैं कि अनेक देशों में व्यभिचार और विवाह-पूर्व मैथुन को अधिकाधिक स्वीकार किया जा रहा है।
१५ बाइबल ने पूर्वबताया था कि हमारे समय में शैतानी गतिविधि बहुत तीव्र होगी। (प्रकाशितवाक्य १२:१२) तो फिर इससे हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि दुर्गुण भयानक रूप से प्रबल है। उदाहरण के लिए, बच्चों के लैंगिक शोषण ने अब एक महामारी का रूप ले लिया है।a संयुक्त राष्ट्र बाल निधि रिपोर्ट करती है कि “व्यापारिक लैंगिक शोषण वस्तुतः संसार के सभी देशों में बच्चों को हानि पहुँचा रहा है।” प्रत्येक वर्ष “ऐसा रिपोर्ट किया जाता है कि संसार-भर में दस लाख से अधिक बच्चों को बालवेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जाता है, उन्हें सीमा-पार ले जाकर लैंगिक उद्देश्यों के लिए बेचा जाता है, और बाल अश्लील चित्रण के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।” समलैंगिकता भी सामान्य है, जिसे कुछ राजनीतिज्ञ और धार्मिक नेता एक “वैकल्पिक जीवन-शैली” के रूप में बढ़ावा देने में अगुवाई करते हैं।
संसार के दुर्गुणों को ठुकराना
१६. लैंगिक नैतिकता के मामले में यहोवा के साक्षी क्या स्थिति अपनाते हैं?
१६ यहोवा के साक्षी उन लोगों के सुर में सुर नहीं मिलाते जो लैंगिक नैतिकता के अनुज्ञात्मक स्तरों का समर्थन करते हैं। तीतुस २:११, १२ कहता है: “परमेश्वर का वह अनुग्रह प्रगट है, जो सब मनुष्यों के उद्धार का कारण है। और हमें चिताता है, कि हम अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धर्म और भक्ति से जीवन बिताएं।” जी हाँ, हम विवाह-पूर्व मैथुन, परस्त्रीगमन, और समलैंगिकताb जैसे दुर्गुणों के कार्यों के लिए सच्ची नफ़रत, एक घृणा विकसित करते हैं। (रोमियों १२:९; इफिसियों ५:३-५) पौलुस ने यह सलाह दी: “जो कोई प्रभु का नाम लेता है, वह अधर्म से बचा रहे।”—२ तीमुथियुस २:१९.
१७. शराब के प्रयोग के बारे में सच्चे मसीहियों का क्या दृष्टिकोण है?
१७ सच्चे मसीही संसार के छोटे-मोटे दिखनेवाले दुर्गुणों के दृष्टिकोण को ठुकरा देते हैं। उदाहरण के लिए, अनेक लोग आज अत्यधिक शराब पीने को हँसी-ठट्टा के रूप में देखते हैं। लेकिन यहोवा के लोग इफिसियों ५:१८ में दी गई सलाह का पालन करते हैं: “दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ।” यदि एक मसीही पीने का फ़ैसला करता है तो वह इसे संतुलन में पीता है।—नीतिवचन २३:२९-३२.
१८. परिवार के सदस्यों से अपने बर्ताव में बाइबल के सिद्धांत यहोवा के सेवकों को कैसे मार्गदर्शित करते हैं?
१८ यहोवा के सेवकों के नाते, हम संसार के कुछ लोगों के इस दृष्टिकोण को भी ठुकराते हैं कि अपने साथी और बच्चों पर चीखना और चिल्लाना या कटु शब्दों से उन्हें ताड़ना देना स्वीकृत आचरण है। सद्गुण के मार्ग पर चलने के निश्चय के साथ, मसीही पति और पत्नी पौलुस की सलाह को लागू करने के लिए मिलकर कार्य करते हैं: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। और एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।”—इफिसियों ४:३१, ३२.
१९. व्यापार जगत में दुर्गुण कितना प्रबल है?
१९ बेईमानी, धोखा-धड़ी, झूठ बोलना, गलाकाट व्यापार हथकंडे, और चोरी करना भी आज आम बात है। व्यापारिक पत्रिका सीएफ़ओ में एक लेख रिपोर्ट करता है: “४,००० कर्मचारियों के सर्वेक्षण . . . ने पाया कि ३१ प्रतिशत जवाब देनेवालों ने पिछले वर्ष के दौरान ‘गंभीर दुराचरण’ को अपनी आँखों से देखा है।” ऐसे दुराचरण में झूठ बोलना, झूठी रिपोर्टें बनाना, लैंगिक उत्पीड़न, और चोरी शामिल हैं। यदि हमें यहोवा की नज़रों में नैतिक रूप से शुद्ध रहना है, तो हमें ऐसे चालचलन से दूर रहना और अपने आर्थिक लेन-देन में ईमानदार होना ज़रूरी है।—मीका ६:१०, ११.
२०. मसीहियों को “रुपये का लोभ” क्यों नहीं होना चाहिए?
२० विचार कीजिए कि एक ऐसे व्यक्ति का क्या हुआ जिसने सोचा कि यदि वह आर्थिक जोखिम-व्यापार में एक बड़ा हाथ मार लेगा तो उसके पास परमेश्वर की सेवा के लिए ज़्यादा समय होगा। उसने दूसरे लोगों को उन्हें मिलनेवाले मुनाफ़े की संभावना को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताने के द्वारा पूँजी लगाने की योजना में खींचा। जब मुनाफ़े नहीं मिले, तो होनेवाले भारी नुक़सान की भरपाई करने के लिए वह इतना उतावला हो गया कि उसने वह रुपया चुराया जो उसे सौंपा गया था। उसके कामों और अपश्चातापी रवैये के कारण, उसे मसीही कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया गया। बाइबल की चेतावनी वाक़ई सच है: “पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमु ६:९, १०.
२१. संसार में शक्तिशाली लोगों में कौन-सा आचरण आम तौर पर पाया जाता है, लेकिन मसीही कलीसिया में जो लोग ज़िम्मेदारी के पद पर हैं उनका आचरण कैसा होना चाहिए?
२१ संसार के शक्तिशाली और प्रभावशाली लोगों के पास अकसर सद्गुण की कमी होती है और वे इस आधारभूत सच्चाई को प्रदर्शित करते हैं, ‘शक्ति भ्रष्ट कर देती है।’ (सभोपदेशक ८:९) कुछ देशों में, घूसख़ोरी और भ्रष्टाचार के अन्य रूप न्यायाधीशों, पुलिसकर्मियों, और राजनीतिज्ञों की जीवन-शैली है। लेकिन, जो मसीही कलीसिया में अगुवाई करते हैं उन्हें सद्गुणी होना ज़रूरी है और उन्हें दूसरों पर प्रभुता नहीं करनी चाहिए। (लूका २२:२५, २६) प्राचीन, साथ ही सहायक सेवक “नीच-कमाई के लिये” सेवा नहीं करते। व्यक्तिगत धन-प्राप्ति की प्रत्याशा द्वारा अपने न्याय को बिगाड़ने या प्रभावित होने देने की किसी भी कोशिश से उन्हें मुक्त रहना ज़रूरी है।—१ पतरस ५:२; निर्गमन २३:८; नीतिवचन १७:२३; १ तीमुथियुस ५:२१.
२२. अगला लेख किस बात पर चर्चा करेगा?
२२ कुल मिलाकर, मसीही हमारे दुर्गुण-भरे संसार में सद्गुण क़ायम रखने की वर्तमान-दिन चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर रहे हैं। फिर भी, सद्गुण में केवल दुष्टता से दूर रहने से ज़्यादा शामिल है। अगला लेख चर्चा करेगा कि सद्गुण विकसित करने के लिए वास्तव में किस बात की ज़रूरत है।
[फुटनोट]
a अक्तूबर ८, १९९३ की सजग होइए! (अंग्रेज़ी) में छपनेवाली श्रंखला “अपने बच्चों की रक्षा कीजिए!” देखिए।
b वे लोग जो अतीत में समलैंगिक कार्यों में अंतर्ग्रस्त थे अपने आचरण में परिवर्तन कर सकते हैं, ठीक जैसे प्रथम शताब्दी मसीहियों ने किया था। (१ कुरिन्थियों ६:११) सहायक जानकारी सजग होइए!, अप्रैल ८, १९९५, पृष्ठ २३-४ में दी गई थी।
पुनर्विचार के लिए मुद्दे
◻ यहोवा ने कनानियों के नाश की आज्ञा क्यों दी?
◻ प्रथम शताब्दी में कौन-से दुर्गुण आम तौर पर पाए जाते थे, और ऐसे माहौल में मसीही कितने सफल रहे?
◻ क्या प्रमाण है कि १९१४ से संसार ने विश्व-व्याप्त नैतिक पतन को देखा है?
◻ आम तौर पर पाए जानेवाले कौन-से दुर्गुणों को यहोवा के सेवकों को ठुकराना ज़रूरी है?
[पेज 9 पर तसवीर]
प्रथम-शताब्दी मसीही सद्गुणी थे, हालाँकि वे दुर्गुण-भरे संसार में जीते थे
[पेज 10 पर तसवीर]
दुर्गुण कंप्यूटर नॆटवर्क में भी समा गया है, जो अनेक युवाओं को और दूसरों को अश्लील चित्रण सामग्री पाने में सहूलियत देता है
[पेज 12 पर तसवीर]
मसीहियों को सद्गुण क़ायम रखना ज़रूरी है, उन्हें दूसरे लोगों के बेईमान हथकंडों की नक़ल नहीं करनी चाहिए