“परमेश्वर का वचन जीवित और प्रबल है”
१, २. (अ) जो लोग मसीही बनते हैं, उनकी ज़िन्दगी में किस बात से परिवर्तन घटित होते हैं? (ब) बाइबल किसी व्यक्ति पर कितनी गहराई से असर कर सकती है?
सामान्य युग की पहली सदी के मध्य भाग में, प्रेरित पौलुस ने रोम में स्थित मसीही मण्डली को एक चिट्ठी लिखी। उस में उसने इस आवश्यकता को विशिष्ट किया कि सच्चे मसीहियों को परिवर्तन करने थे। उसने कहा: “इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” (रोमियों १२:२) यह कौनसी बात है जो यीशु के अनुयायियों को बदल देती है, यहाँ तक कि उनका सोचने का ढंग ही बदल जाता है? मूलतः, यह परमेश्वर के वचन, बाइबल की ताक़त है।
२ पौलुस ने दिखाया कि बाइबल हम पर कितनी गहराई से असर कर सकती है, जब उसने लिखा: “परमेश्वर का वचन जीवित और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है, और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है।” (इब्रानियों ४:१२) सचमुच, लोगों में ऐसे परिवर्तन लाने में बाइबल की अद्भुत शक्ति एक प्रत्यायक सबूत है कि यह सिर्फ़ मनुष्य का वचन होने से कहीं ज़्यादा है।
३, ४. मसीहियों के व्यक्तित्व किस हद तक बदल जाते हैं?
३ रोमियों १२:२ में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “बदलता जाए,” यों किया गया है, वह मेटा·मॉर·फोʹऊ शब्द से आता है। इस से एक पूर्ण परिवर्तन सूचित होता है, किसी इल्ली का एक तितली बन जाने के कायान्तरण के समान। यह इतनी पूरी तरह से संपूर्ण है कि बाइबल इसका ज़िक्र एक व्यक्तित्व परिवर्तन के तौर से करती है। एक और बाइबल आयत में हम पढ़ते हैं: “पुराने व्यक्तित्व को उसके कामों समेत उतार डालो, और नए व्यक्तित्व को पहन लो, जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार, यथार्थ ज्ञान के ज़रिए नया बनता जाता है।”—कुलुस्सियों ३:९, १०, न्यू.व.
४ कुरिन्थ में स्थित मण्डली को लिखते हुए, पौलुस ने दिखाया कि पहली सदी में व्यक्तित्व परिवर्तन किस हद तक हुए। उसने कहा: “न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न पुरुषवेश्या, न समलिंगकामी, न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न लुटेरे परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। और तुम में से कितने ऐसे ही थे। परन्तु तुम . . . धोए गए।” (१ कुरिन्थियों ६:९-११, न्यू.व.) जी हाँ, अनैतिक और झगड़ालु व्यक्ति, चोर और शराबी, अनुकरणीय मसीहियों में बदल गए थे।
आज के व्यक्तित्व परिवर्तन
५, ६. बाइबल की ताक़त से एक नौजवान का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से किस तरह बदल गया?
५ व्यक्तित्व में समान परिवर्तन आज भी देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण अमरीका में एक छोटा लड़का नौ साल की उम्र में अनाथ हो गया। वह माता-पिता के मार्गदर्शन के बिना बड़ा हुआ और उसके व्यक्तित्व में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हुईं। वह बताता है: “१८ साल का होने से पहले ही मुझे ड्रग्स की लत पूरी तरह से लग गयी थी और उस आदत को सँभालने हेतु चोरी करने की वजह से मैं ने पहले ही जेल में कुछ समय बिताया था।” यद्यपि, उसकी मौसी यहोवा की एक गवाह थी, और आख़िरकार वह उसे मदद कर सकी।
६ नौजवान स्पष्ट करता है: “मेरी मौसी ने मेरे साथ बाइबल का अभ्यास करना शुरू किया, और सात महीनों बाद मैं ड्रग्स की आदत को तोड़ सका।” उसने अपने पहले के दोस्तों के साथ भी दोस्ती तोड़ दी और यहोवा के गवाहों के बीच नए दोस्त बना लिए। वह आगे कहता है: “इन नए साथियों ने, और साथ साथ मेरा नियमित रूप से बाइबल अभ्यास करने से, मैं प्रगति कर सका और आख़िरकार परमेश्वर की सेवा करने के लिए मेरा जीवन अर्पित कर सका।” जी हाँ, यह भूतपूर्व ड्रग ॲड्डिक्ट और चोर अब एक सक्रिय, स्वच्छ रूप से जीनेवाला मसीही है। ऐसा आत्यंतिक व्यक्तित्व परिवर्तन किस तरह हुआ? बाइबल की ताक़त के ज़रिए।
७, ८. वर्णन करें कि कैसे बाइबल की मदद से व्यक्तित्व में एक कठिन समस्या को सुधारा गया।
७ एक और उदाहरण दक्षिण यूरोप से आता है। वहाँ, एक तरुण व्यक्तित्व में एक बहुत ही कठिन समस्या के साथ बड़ा हुआ: हिंसात्मक गुस्सा। वह सतत झगड़ता रहता था। परिवार में हुए एक बहस के दौरान, उसने अपने पिता को भी मारा, जिस से वह ज़मीन पर गिर पड़ा! फिर भी, अन्त में उसने यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल का अभ्यास किया और रोमियों की किताब में परमेश्वर के इस आदेश पर ध्यान दिया: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो। . . . जहाँ तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो।”—रोमियों १२:१७-१९.
८ वे शब्द उसे यह समझने में मददगार साबित हुए कि उसकी कमज़ोरी कितनी बुरी थी। बाइबल के विषय एक बढ़ते हुए ज्ञान ने उसके अंतःकरण को परिष्कृत किया, जिस से उसे अपने तेज़ गुस्से को क़ाबू में रखने की मदद हुई। एक बार, उसके अपने अभ्यास में कुछ प्रगति करने के बाद, किसी अजनबी ने चिल्ला-चिल्लाकर उसका अपमान किया। उस तरुण ने फिर से वही जाने-पहचाने गुस्से को उसके भीतर उमड़ते हुए महसूस किया। फिर उसने कुछ और महसूस किया: शर्मिंदगी का एक एहसास; और इस ने उसे अपना गुस्सा निकालने से रोक लिया। उसने आत्म-संयम विकसित किया था, जो कि आत्मा का एक महत्त्वपूर्ण फल है। (गलतियों ५:२२, २३, न्यू.व.) परमेश्वर के वचन की ताक़त के कारण, उसका व्यक्तित्व अब दूसरा बन गया था।
९. पौलुस के अनुसार, हमारा व्यक्तित्व किस ज़रिए से बदल जाता है?
९ यद्यपि, बाइबल ऐसा शक्तिशाली असर कैसे उत्पन्न करती है? कुलुस्सियों ३:१० में, पौलुस ने कहा कि हमारा व्यक्तित्व यथार्थ ज्ञान के ज़रिए बदलता जाता है, जो ज्ञान बाइबल में पाया जाता है। लेकिन ज्ञान से लोग किस तरह बदल जाते हैं?
यथार्थ ज्ञान की भूमिका
१०, ११. (अ) जब हम बाइबल का अभ्यास करते हैं, हम व्यक्तित्व के वांछनीय और अवांछनीय गुणों के बारे में क्या सीखते हैं? (ब) अपने व्यक्तित्व में एक परिवर्तन लाने के लिए ज्ञान के अतिरिक्त किस बात की ज़रूरत है?
१० पहली बात, बाइबल व्यक्तित्व के उन अवांछनीय विशेषताओं की पहचान कराती है जिसे छोड़ देना ही पड़ेगा। इन में ऐसी बातें हैं जैसा कि “घमण्ड से चढ़ी हुई आँखें, झूठ बोलनेवाली जीभ, और निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ, अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन, बुराई करने को वेग दौड़नेवाले पाँव, झूठ बोलनेवाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करनेवाला मनुष्य।” (नीतिवचन ६:१६-१९) दूसरी बात, बाइबल उन वांछनीय गुणों का वर्णन करती है जो हमें विकसित करने चाहिए, इन में, “प्रेम, आनन्द, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और आत्म-संयम” शामिल हैं।—गलतियों ५:२२, २३, न्यू.व.
११ ऐसे यथार्थ ज्ञान से एक निष्कपट व्यक्ति को अपनी जाँच करने और यह देखने की मदद होती है, कि उसे व्यक्तित्व के कौनसे गुण विकसित करने की ज़रूरत है, और उसे किन गुणों को छोड़ देने की कोशिश करनी चाहिए। (याकूब १:२५) फिर भी, यह केवल एक शुरुआत है। ज्ञान के अतिरिक्त, प्रेरणा की ज़रूरत है, एक ऐसी बात जिस से वह यहाँ तक प्रेरित हो, कि वह बदलना चाहता है। एक बार फिर, उसे बाइबल में से यथार्थ ज्ञान की ज़रूरत है।
सच्चरित होने के लिए प्रेरित
१२. परमेश्वर के व्यक्तित्व के बारे ज्ञान से हमें बदलने की मदद कैसे होती है?
१२ पौलुस ने कहा कि वांछनीय नया व्यक्तित्व “अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार” बनाया जाता है। (कुलुस्सियों ३:१०) तो मसीही व्यक्तित्व को परमेश्वर के निज व्यक्तित्व से सदृश होना चाहिए। (इफिसियों ५:१) बाइबल के ज़रिए, परमेश्वर का व्यक्तित्व हम पर प्रकट होता है। हम मनुष्यजाति के साथ उनके व्यवहार को देखते हैं और उनके उत्तम गुणों पर ग़ौर करते हैं, जैसा कि उनका प्रेम, कृपा, भलाई, रहम, और धर्म। ऐसे ज्ञान से एक नेकदिल इन्सान परमेश्वर से प्रीति रखने और उस तरह का व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित होता है, जिसे परमेश्वर स्वीकृति देता है। (मत्ती २२:३७) स्नेही बच्चों के रूप में, हम अपने स्वर्गीय पिता को प्रसन्न करना चाहते हैं, इसलिए हम अपनी कमज़ोर, अपूर्ण अवस्था में जितना संभव हो उतना उनके व्यक्तित्व का अनुकरण करने की कोशिश करते हैं।—इफिसियों ५:१.
१३. कौनसा ज्ञान हमें ‘धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखने’ को सिखाता है?
१३ हमारी प्रेरणा बाइबल द्वारा दिए उस ज्ञान से मज़बूत बनती है, कि व्यक्तित्व के दोनों, अच्छे और बुरे गुण कहाँ ले जाते हैं। (भजन संहिता १४:१-५; १५:१-५; १८:२०, २४) हमें पता चलता है कि दाऊद को उसकी ईश्वरीय भक्ति और धर्म के प्रति प्रेम के लिए आशीर्वाद दिया गया, परन्तु जब वह आत्म-संयम को नहीं पकड़ पाया, तब उसे दुःख उठाने पड़े। जब सुलैमान के बुढ़ापे में उसके उत्तम गुण भ्रष्ट हो गए, तब हमें उसके दुःखद परिणाम दिखायी देते हैं। योशिय्याह और हिजकिय्याह की ईमानदारी की वजह से प्राप्त आशीर्वादों की विषमता अहाब की कमज़ोरी और मनश्शे के हठीले धर्मत्याग से उत्पन्न अनर्थकर परिणामों से किया गया है। (गलतियों ६:७) इस प्रकार हम ‘धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखने’ को सीखते हैं।—इब्रानियों १:९; भजन संहितात ४५:७; ९७:१०.
१४. इस दुनिया और उस में के व्यक्तियों के लिए यहोवा के उद्देश्य क्या हैं?
१४ यह प्रेरणा परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे यथार्थ ज्ञाने से और भी अधिक मज़बूत बनती है। ऐसा ज्ञान ‘हमारे मन को प्रवृत्त करनेवाली ताक़त’ ही, अपने विचारों और कार्यों को प्रेरित करनेवाली आत्मा को बदलने की मदद करता है। (इफिसियों ४:२३, २४, न्यू.व.) जब हम बाइबल का अभ्यास करते हैं, हमें मालूम हो जाता है कि यहोवा बुराई को हमेशा के लिए बरदाश्त नहीं करेंगे। जल्दी ही, वह इस अधर्मी दुनियों का नाश करेंगे और ‘नए आकाश और नई पृथ्वी’ उत्पन्न करेंगे, ‘जिन में धार्मिकता बास करेगी।’ (२ पतरस ३:८-१०, १३) इस नयी दुनिया में कौन रहेगा? “धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएँगे।”—नीतिवचन २:२१, २२.
१५. अगर हम सचमुच यहोवा के उद्देश्यों के बारे बाइबल जो कहती है, उस पर विश्वास करते हैं, तो हम पर व्यक्तियों के तौर से इसका कैसा असर होगा?
१५ अगर हम इस प्रतिज्ञा पर सचमुच विश्वास करेंगे, तो हमारे सोचने का पूरा ढंग ही प्रभावित होगा। बुराई के नाश के बारे भविष्यद्वाणी करने के बाद, प्रेरित पतरस कहता है: “तो जब कि ये सब वस्तुएँ, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए और परमेश्वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिए कैसा यत्न करना चाहिए।” (२ पतरस ३:११, १२) हमें अपने व्यक्तित्व को अपनी उस तीव्र इच्छा से ढालना चाहिए, कि जब दुष्ट लोगों का नाश होगा, तब हम उन ईमानदार लोगों में होंगे जो बचे रहेंगे।
१६. नयी दुनिया में किस तरह के व्यक्तित्वों के लिए कोई जगह नहीं होगी, और इस ज्ञान से हम पर कैसा असर होना चाहिए?
१६ प्रकाशितवाक्य की किताब में ईमानदार लोगों को यह वचन दिया गया है कि, इस दुनिया के ख़त्म होने के बाद, “[परमेश्वर] उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” लेकिन फिर यह चेतावनी दी गयी है कि “डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और मूर्तिपूजकों, और सब झूठों” को ठुकरा दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य २१:४, ८) उन अवांछनीय गुणों से बचे रहना कितनी बुद्धिमत्ता की बात है, जिसकी अनुमति परमेश्वर नयी दुनिया में नहीं देंगे!
बाहर से सहायता
१७. बाइबल हमें किस तरह की सहायता खोजने की सलाह देती है?
१७ फिर भी, मानव कमज़ोर हैं, और अगर उन्हें परिवर्तन करने हैं, तो आम तौर से उन्हें जानकारी और प्रेरणा के अलावा किसी और बात की ज़रूरत होती है। उन्हें वैयक्तिक सहायता की ज़रूरत है, और बाइबल हमें दिखाती है कि हम यह सहायता कहाँ पा सकते हैं। मिसाल के तौर पर, यह कहती है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों से व्यवहार करनेवाले बुरी तरह विफल होंगे।” (नीतिवचन १३:२०, न्यू.व.) उसी तरह, अगर हम ऐसे लोगों से संगति करेंगे जो वे गुण प्रकट करते हैं, जो हम विकसित करना चाहते हैं, तो इस से हमारी अत्याधिक मात्रा में उनके जैसे बनने में बड़ी सहायता होगी।—उत्पत्ति ६:९; नीतिवचन २:२०; १ कुरिन्थियों १५:३३.
१८, १९. हमें अपने मन और हृदय को परमेश्वर की आत्मा के प्रभाव में डालने के लिए क्या करना चाहिए?
१८ इसके अतिरिक्त, यहोवा खुद सहायता देते हैं, जो कि पवित्र आत्मा के रूप में मिलती है—वही आत्मा जो वे पहले के समय में चमत्कार करने के लिए उपयोग करते थे। वस्तुतः, “प्रेम, आनन्द, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और आत्म-संयम” जैसे अत्यंत वांछनीय गुणों को “आत्मा का फल” कहा जाता है। (गलतियों ५:२२, २३, न्यू.व.) हम पवित्र आत्मा की सहायता कैसे पा सकते हैं? चूँकि बाइबल पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित की गयी थी, जब हम उसे पढ़ते हैं या उसके बार दूसरों से बात करते हैं, हम अपने मन और हृदय को उस आत्मा की प्रत्ययकारी ताक़त के प्रभाव में डाल रहे होते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१६) वास्तव में, यीशु ने वचन दिया कि जब हम दूसरों से अपनी आशा के बारे बात करते हैं, हम शायद उस आत्मा का सीधा असर अनुभव करेंगे।—मत्ती १०:१८-२०.
१९ इसके अलावा, बाइबल आदेश देती है: “प्रार्थना में नित्य लगे रहो।” (रोमियों १२:१२) प्रार्थना के ज़रिए हम यहोवा को सम्बोधित करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं, उनका शुक्रिया अदा करते हैं, और उनकी सहायता के लिए बिनती करते हैं। अगर हम उन से व्यक्तित्व के ऐसे अवांछनीय गुणों पर क़ाबू पाने हेतु सहायता की बिनती करेंगे, जैसा कि गुस्सैल मिज़ाज, हठीलापन, अधीरता या घमण्ड, तो परमेश्वर की आत्मा अपनी हर कोशिश का समर्थन करेगी, जो हम उस प्रार्थना के अनुसार करते हैं।—यूहन्ना १४:१३, १४; याकूब १:५; १ यूहन्ना ५:१४.
२०. मसीहियों को नया व्यक्तित्व पहनने की कोशिश क्यों करते रहना पड़ता है?
२० जब पौलुस ने लिखा: “तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए,” वह बपतिस्मा पाए हुए, अभिषिक्त मसीहियों की एक मण्डली को लिख रहा था। (रोमियों १:७; १२:२) और मूल यूनानी भाषा में, उसने क्रियापद का एक ऐसा प्रकार इस्तेमाल किया, जिस से निरंतर क्रिया संकेत होती है। इस से सूचित होता है कि बाइबल के यथार्थ ज्ञान के प्रभाव के ज़रिए हम में लाया गया परिवर्तन प्रगतिशील है। पौलुस के समय के मसीहियों की तरह—आज हम भ्रष्टाचारी प्रभावों से भरी दुनिया से घिरे हुए हैं। और हम—उन्हीं की तरह—अपूर्ण हैं, ग़लती करने के प्रवृत्त हैं। (उत्पत्ति ८:२१) इसलिए, हमें पुराने, स्वार्थी व्यक्तित्व पर क़ाबू पाने और नए व्यक्तित्व को पहनने की कोशिश करते रहना चाहिए, जैसा कि उन्होंने किया। प्रारंभिक मसीही इस हद तक सफ़ल हुए कि वे उनके इर्द-गिर्द की दुनिया से बिल्कुल अलग होने के तौर से विशिष्ट थे। आज भी मसीही वैसा ही करते हैं।
“यहोवा के सिखलाए हुए” लोग
२१. इन अन्तिम दिनों में परमेश्वर के लोगों के संबंध में पूरा होनेवाली कुछेक भविष्यद्वाणियाँ क्या हैं?
२१ सचमुच, आज परमेश्वर की आत्मा न सिर्फ़ व्यक्तियों पर असर करती है, परन्तु मसीहियों के एक पूरे संघटन पर, जिनकी गिनती लाखों में होती है। इसी संघटन के संबंध में यशायाह के भविष्यसूचक शब्दों की पूर्ति होती है: “और बहुत देशों के लोग आएँगे, और आपस में कहेंगे: ‘आओ, हे लोगो, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़ें, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएँ; तब वह हम को अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।’” (यशायाह २:३, न्यू.व.) उनके विषय में यशायाह की दूसरी भविष्यद्वाणी भी पूरा हुई है: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।” (यशायाह ५४:१३) ये कौन लोग हैं जो यहोवा द्वारा सिखलाए जाने की वजह से शान्ति का आनन्द उठाते हैं?
२२. (अ) कौन आज यहोवा के द्वारा सिखलाए जा रहे हैं? (ब) उदाहरण दीजिए यह दर्शाने के लिए कि बाहर के लोग पहचानते हैं कि यहोवा के गवाह अलग हैं।
२२ ख़ैर, एक उत्तर अमरीकी अख़बार, न्यू हेवन रेजिस्टर को लिखी एक चिट्ठी के इस उद्धरण पर ग़ौर कीजिए: “चाहे आप उनके धर्म प्रचार कार्य की वजह से चिढ़ गए या क्रोधित [नाराज़] हुए हों या नहीं, जैसा कि मैं हुआ हूँ, फिर भी आप को उनकी सर्मपण-भावना, उनके सदाचार, उनका मानव बरताव का एक उत्कृष्ट उदाहरण और स्वास्थ्यकर जीवन-क्रम की दाद देनी ही पड़ेगी।” यह लेखक किन के बारे में बोल रहा था? वही समूह जिन के बारे में बूएनोज़ आइरेज़, आर्जेंटीना, के द हेरल्ड में विचार-विमर्श किया गया था, जब इस में बताया गया: “इन सारे वर्षों के दौरान यहोवा के गवाह परिश्रमी, शान्त, कमख़र्च और धर्मभीरु नागरिक साबित हुए हैं।” उसी तरह, इतालियन अख़बार, ला स्टॅम्पा ने कहा: “वे टैक्स देने से हट नहीं जाते और न ही अपने ही फ़ायदे के लिए असुविधाजनक नियमों का पालन करने से बच निकलते हैं। पड़ोसी के लिए प्रेम, सत्ता लेने से अस्वीकार करना, अहिंसा और वैयक्तिक सच्चाई के नैतिक आदर्श . . . उनके ‘रोज़मर्रा’ के जीवन-क्रम में भाग लेते हैं।”
२३. एक संघटन के तौर से यहोवा के गवाह अलग होने के तौर से क्यों स्पष्ट दिखायी देते हैं?
२३ एक समूह के तौर से यहोवा के गवाह—प्रारंभिक मसीहियों के जैसे—अलग होने के तौर से क्यों स्पष्ट दिखायी देते हैं? काफ़ी हद तक, वे अन्य सभी लोगों के जैसे हैं। उनका जन्म समान मानवी अपूर्णताओं समेत होता है, और उनकी वही आर्थिक समस्याएँ तथा मूलभूत आवश्यकताएँ होती हैं। बहरहाल, एक विश्वव्यापी मण्डली के तौर से, वे परमेश्वर के वचन को अपनी ज़िन्दगी में प्रभाव डालने देते हैं। उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होनेवाला असली मसीहियों का एक अंतर्राष्ट्रीय संघटन बहुत ही ठोस सबूत है कि बाइबल परमेश्वर का प्रेरित वचन है।—भजन संहिता १३३:१.
बाइबल प्रेरित है
२४. कई और लोगों के लिए हमारी क्या प्रार्थना है?
२४ इन दो लेखों में, हम ने सबूत की मात्र दो धाराओं पर विचार-विमर्श किया है, यह दर्शाने के लिए कि बाइबल मनुष्यों का नहीं, परमेश्वर का वचन है। चाहे वे बाइबल की बेजोड़ बुद्धि पर ग़ौर करें या उसकी लोगों में परिवर्तन लाने की ताक़त पर—या ऐसी अन्य कई बातों पर, जिस से यह अतुलनीय सूचित होती है—निष्कपट लोग तो यह समझने से बिल्कुल रह नहीं जाएँगे कि यह अवश्य परमेश्वर के द्वारा ही प्रेरित है। मसीही होने के नाते, हम प्रार्थना करते हैं कि कई और लोग इस सच्चाई को पहचान लेंगे। फिर वे भी भजनकार के आनन्दित शब्दों को प्रतिध्वनित करेंगे: “देख, मैं तेरे नियमों से कैसी प्रीति रखता हूँ! हे यहोवा, अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला। तेरे वचन का जोड़ सत्य ही है, और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।”—भजन संहिता ११९:१५९, १६०.
क्या आप याद करते हैं?
◻ सच्चे मसीहियों पर बाइबल का क्या असर होता है?
◻ यथार्थ ज्ञान से हमें बदलने की सहायता कैसे मिलती है?
◻ अच्छे गुणों को विकसित करने और बुरे गुणों पर क़ाबू पाने के लिए प्रेरित होने की सहायता हमें बाइबल से कैसे मिलती है?
◻ ईश्वरीय गुणों को विकसित करने में कौनसी सहायता उपलब्ध है?
◻ यहोवा के लोगों के बीच बाइबल के प्रेरित होने का कौनसा सबूत दिखायी देता है?
[पेज 25 पर तसवीरें]
सुलैमान के बुढ़ापे में उसकी बेवफ़ाई के दुःखद परिणाम से हमें धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखने के लिए प्रेरित होना चाहिए
[पेज 27 पर तसवीरें]
अगर हम यहोवा को सहायता की बिनती करेंगे, तो उसकी आत्मा हमारी हर कोशिश को, जो हम बुरे गुणों को क़ाबू में लाने के लिए करते हैं, सदृढ़ करेगी