‘अन्त के समय’ में जागते रहो
“देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा।”—मरकुस १३:३३.
१. जबकि उत्तेजक घटनाएं इस ‘अन्त के समय’ में हो रही हैं, तो हमें कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
जैसे-जैसे उत्तेजक घटनाएं इस ‘अन्त के समय’ में प्रगट हो रही हैं, वैसे ही मसीहियों की प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए? (दानिय्येल १२:४) उन्हें संदेह में नहीं छोड़ा गया है। यीशु मसीह ने ऐसी भविष्यवाणी की, जिस में संगठित चिह्न हैं, और जिनकी पूर्ति इस २०वीं शताब्दी में हो रही है। उसने उन अनेक बातों के होने की भविष्यसूचना दी जिनके द्वारा १९१४ से आरंभ होने वाला समय अनुपम बन गया है। दानिय्येल द्वारा की गई “अन्त के समय” की भविष्यवाणी से परिचित होने के कारण, यीशु ने अपनी ही महान भविष्यवाणी के बाद अपने चेलों से ‘जागते रहने’ का आग्रह किया।—लूका २१:३६.
२. आध्यात्मिक रूप से जागृत रहने की अधिक आवश्यकता क्यों है?
२ क्यों जागते रहें? इस लिए कि यह मानव इतिहास का अत्यंत ख़तरनाक समय है। मसीहियों का इस समय आध्यात्मिक निद्रा में पड़ना संकटपूर्ण होगा। यदि हम आत्मसंतुष्ट रहें या अपने जी को जीवन की चिंताओं से भारी होने दें, तो ख़तरे में होंगे। लूका २१:३४, ३५ में, यीशु मसीह ने हमें चेतावनी दी: “इसलिए सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फंदे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा।”
३, ४. (क) परमेश्वर के क्रोध का दिन लोगों पर अचानक “फन्दे की नाईं” आ पड़ेगा, ऐसा कहकर यीशु क्या कहना चाहते थे? (ख) चूँकि परमेश्वर जाल नहीं बिछाते हैं, तो वह दिन आम लोगों पर क्यों अचानक आ पड़ेगा?
३ यीशु ने कारण सहित कहा था कि यहोवा का दिन ‘तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़ेगा।’ जाल में प्राय: एक प्रकार का फाँद होता है, और उसे पक्षियों और स्तनधारी पशुओं को पकड़ने के लिए काम में लाया जाता है। जाल में एक तरह का घोड़ा होता है, और जिस किसी का पैर इस में पड़ जाए, वह उस घोड़े को चलाता है। तब जाल खींचकर बदं हो जाता है, और शिकार फँस जाता है। यह सब कुछ बहुत ही अचानक हो जाता है। यीशु ने कहा कि इसी रीति से आध्यात्मिक रूप से निष्क्रिय लोगों को चकित किया जाएगा और परमेश्वर के ‘कोप का दिन’ उन पर आ जाएगा।—नीतिवचन ११:४.
४ क्या यह यहोवा परमेश्वर हैं जो लोगों के लिए जाल फैलाते हैं? नहीं, वह लोगों को असावधान दशा में पकड़कर नाश करने के लिए नहीं बैठा है। परन्तु वह दिन लोगों पर इसलिए आ पड़ेगा कि वे परमेश्वर के राज्य को प्राथमिकता नहीं देते हैं। उनके चारों ओर होनेवाली घटनाओं के अर्थ को अनदेखी करते हुए, वे अपने ही जीवन की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए अपनी अपनी इच्छा के अनुसार चलते हैं। परन्तु, यह परमेश्वर के ठहराए हुए समय को नहीं बदलता है। उनसे लेखा लेने के लिए उनका अपना निश्चित समय है। और, दयामय रूप से, वह मानवजाति को अपने आनेवाले न्यायदंड के प्रति अज्ञानता में नहीं छोड़ता।—मरकुस १३:१०.
५, ६. (क) आने वाले न्याय के कारण, मानवजाति के लिए सृष्टिकर्ता ने कौनसा प्रेममय प्रबंध किया है, परन्तु उसका परिणाम सामान्यत: क्या निकलेगा? (ख) जागृत रहने में हमारी सहायता के लिए किन बातों पर विचार किया जाएगा?
५ यह पूर्व-चेतावनी महान सृष्टिकर्ता की ओर से एक प्रेमपूर्ण प्रबंध है, जो अपनी सांकेतिक चरणों की चौकी पर रहनेवाली मानवजाति के कल्याण में रूचि रखता है। (यशायाह ६६:१) वह उस स्थान के निवासियों को हृदय में बनाए रखते हैं, जहाँ कहा गया है कि उनके चरण रखे हैं। इसलिए वह अपने पार्थिव राजदूतों और दूतों के द्वारा उन्हें भविष्य में होनेवाली घटनाओं के विषय में चेतावनी देता है। (२ कुरिन्थियों ५:२०) फिर भी, समस्त चेतावनी देने पर भी, वे घटनाएं मानव परिवार पर वैसे ही अचानक आ पड़ेंगी मानो उन्होंने एक जाल में पैर रख दिया हो। ऐसा क्यों? इसलिए कि अधिकांश लोग आध्यात्मिक रूप से सो रहे हैं। (१ थिस्सलुनीकियों ५:६) तुलनात्मक रूप से केवल एक छोटी संख्या ही इस चेतावनी पर ध्यान दे रही है और वही परमेश्वर के नए संसार में जीवित बचेगी।—मत्ती ७:१३, १४.
६ तब हम, इन अंतिम दिनों में, कैसे जागृत रह सकते हैं जिससे बचनेवालों में सम्मिलित हो सकें? यहोवा आवश्यक सहायता प्रदान करते हैं। आइए हम उन सात बातों पर ध्यान दें जिन्हें हम कर सकते हैं।
ध्यान भंग से संघर्ष करें
७. ध्यान भंग के संबंध में यीशु ने क्या चेतावनी दी थी?
७ पहले, हमें ध्यान भंग से संघर्ष करना होगा। मत्ती २४:४२, ४४ में, यीशु ने कहा था: “इस लिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। इसलिए तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” यीशु ने यहाँ जिस भाषा का उपयोग किया है सूचित करती है कि इस संकटपूर्ण समय में बहुत-सी बातें ध्यान भंग करतीं, और ध्यान भंग विनाश की ओर ले जा सकता है। नूह के दिनों में बहुत-सी बातों ने लोगों को विचारमग्न रखा। उसके परिणामस्वरूप, ध्यान भंग हुए लोगों ने उस समय हो रही घटनाओं पर “ध्यान नहीं दिया”, और जल प्रलय उन्हें बहा ले गया। उसी प्रकार, यीशु ने चेतावनी दी: “वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।”—मत्ती २४:३७-३९.
८, ९. (क) जीवन की सामान्य चिंताएं कैसे ख़तरनाक रीति से हमारा ध्यान भंग कर सकती हैं? (ख) पौलुस और यीशु ने हमें क्या चेतावनी दी है?
८ इस बात को भी ध्यान में रखें कि लूका २१:३४, ३५ में दी गई चेतावनी में यीशु जीवन की सामान्य बातों के विषय में चर्चा कर रहा था, जैसे कि खाना, पीना, और रोज़ी कमाने की चिंताएं। वे ऐसी बातें हैं जो सभी लोगों के लिए सामान्य है जिन में प्रभु के चेले भी सम्मिलित हैं। (मरकुस ६:३१ से तुलना करें.) ये बातें अपने आप में शायद हानिकारक न हों, परन्तु यदि उन्हें छूट दी जाए तो, वे हमारा ध्यान भंग कर सकती हैं, हमें विचारमग्न कर सकती हैं, और इस प्रकार हम में ख़तरनाक आध्यात्मिक निद्रा उत्पन्न कर सकती हैं।
९ इस लिए, हम उच्चतम महत्त्व की बात की अवहेलना ना करें—यानी ईश्वरीय स्वीकृति प्राप्ति। जीवन की साधारण बातों में तल्लीन हो जाने की अपेक्षा, आओ हम उन्हें उसी सीमा तक उपयोग में लाएं जितना कि जीवित रहने के लिए आवश्यक है। (फिलिप्पियों ३:८) उन्हें राज्य हितों को दबाना नहीं चाहिए। जैसा रोमियों १४:१७ कहता है, “परमेश्वर का राज्य खाना-पीना नहीं, परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा से होता है।” यीशु के इन शब्दों को स्मरण रखें, जब उसने यह कहा था: “इसलिए पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:३३) इसके अतिरिक्त, लूका ९:६२ में, यीशु ने कहा: “जो कोई अपना हाथ हल पर रख कर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”
१०. यदि हम अपनी आँखों को सीधे लक्ष्य की ओर स्थिर नहीं रखते हैं, तो क्या ख़तरा है?
१० एक बार हम सांकेतिक रूप से हल चलाना आरंभ कर देते हैं, तो हमें एक सीधी रेखा में ही आगे चलते रहना चाहिए। जो हलवाहा पीछे मुड़कर देखता है, वह सीधी रेखा में हल नहीं चला सकेगा। उसका ध्यान भंग हुआ है और बड़ी सरलता से उसका ध्यान हटाया जा सकता है या किसी भी विघ्न के द्वारा उसे रोका जा सकता है। हम लूत की पत्नी के समान न बनें, जिसने पीछे मुड़कर देखा और सुरक्षित स्थान तक पहुँच न सकी। हमें अपनी आँखों से बिल्कुल सीधे, लक्ष्य की ओर, देखना चाहिए। ऐसा करने के लिए हमें ध्यान भंग से लड़ना होगा।—उत्पत्ति १९:१७, २६; लूका १७:३२.
संपूर्ण गंभीरता से प्रार्थना करें
११. ध्यान भंग के ख़तरे की चेतावनी देने के बाद यीशु ने किस चीज़ पर ज़ोर दिया?
११ लेकिन जागृत रहने के लिए हम और बहुत कुछ कर सकते हैं। एक दूसरी महत्त्वपूर्ण चीज़ है: संपूर्ण गंभीरता से प्रार्थना करें। जीवन की साधारण बातों द्वारा ध्यान भंग होने देने के विरोध में चेतावनी देने के बाद, यीशु ने यह सलाह दी: “इसलिए जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।”—लूका २१:३६.
१२. किस प्रकार की प्रार्थना की आवश्यकता है, और उसके क्या परिणाम होंगे?
१२ इस रीति से हमें अपनी स्थिति के ख़तरे और जागृत रहने की आवश्यकता के विषय में लगातार बिनती करते रहना चाहिए। इस लिए आओ हम प्रार्थनापूर्वक सच्ची लगन से निवदेन करते हुए परमेश्वर के पास चलें। पौलुस रोमियों १२:१२ में कहते हैं: “प्रार्थना में नित्य लगे रहो।” और इफिसियों ६:१८ में, हम ऐसा पढ़ते हैं: “और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिए जागते रहो।” यह ऐसी आकस्मिक प्रार्थना नहीं है जिसका कोई विशेष महत्त्व न हो। हमारा अस्तित्व ही ख़तरे में है। इस लिए हमें ईश्वरीय सहायता के लिए गंभीरता से निवेदन करने की आवश्यकता है। (इब्रानियों ५:७ से तुलना करें.) इस प्रकार हम अपने आपको यहोवा के पक्ष में बनाए रखेंगे। इस बात के लिए हमारी सहायता करने में ‘हर समय प्रार्थना में लगे रहने’ के अलावा कोई और चीज़ अधिक लाभप्रद नहीं होगी। तब यहोवा हमें बड़ी सावधान स्थिती में बनाए रखेंगे। फिर, प्रार्थना में लगे रहना कितना महत्त्वपूर्ण है!
यहोवा के संगठन और उसके कार्य के साथ-साथ रहें
१३. जागृत रहने के लिए किस प्रकार की संगति की आवश्यकता है?
१३ हम इन सभी बातों से बचना चाहते हैं जो संसार पर आनेवाली हैं। हम मनुष्य के पुत्र की स्वीकृति पाकर उसके सामने खड़े रहना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए एक तीसरी चीज़ है जिसे हम कर सकते हैं: यहोवा के ईश्वरीय संगठन के साथ-साथ अटूट रूप से रहें। हमें बिना किसी शर्त के उस संगठन के साथ संगति करने और उसकी गतिविधियों में भाग लेने की आवश्यकता है। इस प्रकार हम सुस्पष्ट रूप से अपनी पहचान ऐसे मसीहियों के तौर से देंगे जो जागते रहते हैं।
१४, १५. (क) किस काम में लगे रहना हमें जागृत रहने में सहायता करेगा? (ख) प्रचार का कार्य कब पूरा होगा इसका निर्णय कौन करेगा, और इस विषय में हमें कैसा महसूस करना चाहिए? (ग) जो राज्य प्रचार कार्य किया जा चुका है, बड़े क्लेश के बाद पलट कर जब उसे देखेंगे तब हम क्या समझेंगे?
१४ इन से निकट संबंध रखने वाली एक चौथी चीज़ है जो हमें जागृत रहने में सहायता कर सकती है। हमें उन लोगों में होना चाहिए जो इस रीति-व्यवस्था पर आने वाले अन्त के विषय में लोगों को चेतावनी दे रहे हैं। इस पुरानी रीति-व्यवस्था का संपूर्ण अन्त तब तक नहीं आएगा जब तक कि ‘राज्य के इस सुसमाचार’ का प्रचार उस सीमा तक नहीं हो जाता है, जितना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उद्देश्य है। (मत्ती २४:१४) प्रचार कार्य कब समाप्त किया जा चुका, इसका निर्णय लेना यहोवा के गवाहों के हाथ में नहीं है। यह अधिकार यहोवा ने अपने ही वश में रखा है। (मरकुस १३:३२, ३३) फिर भी, हम मनुष्यजाति को कभी भी मिल सकनेवाली सर्वोत्तम सरकार, यानी परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार करने में जितना संभव हो उतना परिश्रम करने, और जितना ज़रूरी हो उतने समय के लिए कार्य करने को कृतसंकल्प हैं। जिस समय “बड़ा क्लेश” आरंभ होगा, उस समय हम इसी कार्य में व्यस्त पाए जाएंगे। (मत्ती २४:२१) आने वाले समस्त भविष्यकाल में, उद्धार पाए हुए लोग पीछे मुड़ सकेंगे और हार्दिक रूप से पुष्टि कर सकेंगे कि यीशु मसीह झूठा भविष्यवक्ता नहीं था। (प्रकाशितवाक्य १९:११) प्रचार कार्य उस में भाग लेनेवालों की अपेक्षा से भी ज़्यादा हद तक पूरा किया जा चुका होगा।
१५ अतः, उस विशेष घड़ी में जब यह कार्य परमेश्वर के संतुष्ट होने तक पूरा किया जा चुका होगा, संभवतः इस में भाग लेनेवालों की संख्या पहले किसी भी समय में भाग लेनेवालों की संख्या से कहीं अधिक होगी। इस महान कार्य में हमें भी भाग लेने का मौक़ा मिला, इसके लिए हम कितने आभारी होंगे! प्रेरित पतरस हमें आश्वासन देता है कि यहोवा “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो, वरन यह कि सबको मन फिराव का अवसर मिले।” (२ पतरस ३:९) इसके परिणामस्वरूप, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सक्रिय शक्ति आज पहले से कहीं अधिक प्रबलता से कार्य कर रही है, और यहोवा के गवाह इस आत्मा-प्रेरित कार्य में लगे रहना चाहते हैं। इसी लिए यहोवा के संगठन के साथ-साथ रहें, और इसकी सार्वजनिक सेवकाई में व्यस्त रहें। आपके जागृत रहने में यह सहायक होगा।
आत्म-निरीक्षण करें
१६. हमें अपनी आध्यात्मिकता की वर्तमान स्थिति का आत्म-निरीक्षण क्यों करना चाहिए?
१६ एक और पाँचवी चीज़ है जो हम जागृत रहने के लिए कर सकते हैं। हम में से प्रत्येक को अपनी वर्तमान स्थिति का आत्म-निरीक्षण करना चाहिए। यह पहले किसी भी समय से अब कहीं ज़्यादा उचित है। हमें प्रमाणित करना है कि हम किस के पक्ष में अटलता से खड़े हैं। गलतियों ६:४ में, पौलुस ने कहा: “हर एक अपने ही काम को जाँच ले।” पहला थिस्सलुनीकियों ५:६-८ में, पौलुस के शब्दों के अनुसार आत्म-निरीक्षण करें: “इसलिये हम औरों की नाईं सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें। क्योंकि जो सोते हैं, वे रात ही को सोते हैं, और जो मतवाले होते हैं, वे रात ही को मतवाले होते हैं। पर हम जो दिन के हैं, विश्वास और प्रेम की झिलम पहिनकर और उद्धार की आशा का टोप पहिनकर सावधान रहें।”
१७. आत्म-निरीक्षण करते समय, हमें अपने आप से कौनसे प्रश्न पूछने चाहिए?
१७ हमारे विषय में क्या कहेंगे? जब हम अपने आप को शास्त्रों के दृष्टि से जाँचते हैं, तो क्या यह पाते हैं कि हम जागृत हैं, और उद्धार की आशा का टोप पहने हैं? क्या हम ऐसे लोगों में से हैं जिन्होंने अपने आपको निश्चय ही इस पुरानी रीति-व्यवस्था से अलग कर लिया है, और अब इसके विचारों को मन में नहीं रखते हैं? क्या सचमुच हम में परमेश्वर के नए संसार की मनोवृत्ति है? क्या हम पूर्णत: सचेत हैं कि यह व्यवस्था कहाँ जा रही है? यदि ऐसा है, तो यहोवा का दिन हम पर इस तरह नहीं आ पड़ेगा मानो हम चोर हों।— १ थिस्सलुनीकियों ५:४.
१८. हमें अपने आप से और कौन से प्रश्न पूछने चाहिए, और उनका परिणाम क्या होगा?
१८ परन्तु, यदि हमारा आत्म-निरीक्षण यह प्रगट करे कि हम एक अच्छी, सुखदायक, और आरामदायक जीवन शैली बनाने में प्रयत्नशील हैं, तो क्या? और यदि हम यह पाएं कि हमारे आध्यात्मिक आँखें सुस्ती और निद्रा से भारी हो गई हैं तो क्या? क्या हम स्वप्नों की दुनिया में हैं, और संसार की किसी काल्पनिक बात का पीछा कर रहे हैं? यदि ऐसा है, तो आओ हम जाग उठें!—१ कुरिन्थियों १५:३४.
उन भविष्यवाणियों पर चिंतन करें जो पूरी हो गई हैं
१९. कुछेक भविष्यवाणियाँ क्या हैं जिनकी पूर्ति हमने देखी है?
१९ अब हम छठवीं चीज़ पर आते हैं जो हमें जागृत रहने में सहायता करेगी: उन अनेक भविष्यवाणियों पर चिंतन करें जो इस अन्त के समय में पूरी हुई हैं। जब १९१४ में अन्य जातियों के समय का अन्त हुआ, हम ७७वां वर्ष पार कर चुके हैं। जब हम बीती हुई तीन-चौथाई शताब्दी की ओर मुड़कर देखते हैं तो हम यह पाते हैं कि कैसे एक के बाद एक भविष्यवाणी की पूर्ति हुई है—सच्ची उपासना की पुन:स्थापना; अभिषिक्त शेष लोगों का उनके सहयोगियों के साथ आध्यात्मिक प्रमोदवन में छुटकारा; राज्य के सुसमाचार का पृथ्वी भर में प्रचार; बड़ी भीड़ का अस्तित्व में आना। (यशायाह २:२, ३; अध्याय ३५; जकर्याह ८:२३; मत्ती २४:१४; प्रकाशितवाक्य ७:९) यहोवा के बड़े नाम और विश्वमंडलीय सार्वभौमिकता को महान किया गया है, साथ ही साथ छोटे से छोटा हज़ार हुआ है और सबसे दुर्बल एक सामर्थी जाति बन गया, और यहोवा ने अपने ठीक समय पर यह शीघ्रता से किया है। (यशायाह ६०:२२; यहेज़केल ३८:२३) और प्रकाशितवाक्य के वृत्तान्त में प्रेरित यूहन्ना के दर्शन अपनी चरम सीमा पर पहुँच रहे हैं।
२०. यहोवा के गवाहों का दृढ़ विश्वास क्या है, और वे वास्तव में क्या सिद्ध हुए हैं?
२० इसलिए, अब पहले से कहीं अधिक, यहोवा के गवाह १९१४ से हो रही विश्व घटनाओं के विषय अपनी समझ की यथातथ्यता के बारे में पूरी तरह कायल हैं। ऐसा दृढ़ विश्वास होने के कारण, वे अपने आपको सर्वशक्तिमान परमेश्वर के हाथ में उपकरण सिद्ध हुए हैं। इन्हीं को इस महत्त्वपूर्ण घड़ी में ईश्वरीय समाचार सुनाने की आज्ञा दी गई है। (रोमियों १०:१५, १८) हाँ, अन्त के समय के विषय में यहोवा के वचन सत्य प्रमाणित हुए हैं। (यशायाह ५५:११) पारी से, इस से हमें यह काम में लगे रहने के लिए उस समय तक प्रेरित होना चाहिए जब तक कि हम मसीह के द्वारा परमेश्वर की सभी प्रतिज्ञाओं की पूर्ति देख नहीं लेते हैं।
हमारे विश्वासी बनने के समय से उद्धार अब और निकट है
२१. आध्यात्मिक रूप से जागृत रहने के लिए कौनसी सातवीं सहायता हमारे पास है?
२१ अंतत:, हमारे जागृत रहने के लिए सातवीं सहायता: यह ध्यान में रखें कि हमारा उद्धार अब उस समय की तुलना में और निकट आ गया है जब हम पहली बार विश्वासी बने थे। परन्तु इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात है कि यहोवा की विश्वमंडलीय सार्वभौमिकता की दोषमुक्ति और उसके नाम का पवित्र किया जाना भी अधिक निकट है। इस लिए, जागृत रहने की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक अत्यावश्यक है। प्रेरित पौलुस लिखते हैं: “समय को पहचान कर ऐसा ही करो, इसलिए कि अब तुम्हारे लिए नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुँची है, क्योंकि जिस समय हम ने विश्वास किया था, उस समय के विचार से अब हमारा उद्धार निकट है। रात बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है।”—रोमियों १३:११, १२.
२२. हमारे उद्धार की निकटता का हम पर कैसा प्रभाव पड़ना चाहिए?
२२ चूँकि हमारा उद्धार इतना अधिक निकट आ गया है, इस लिए हमें जागृत रहने की आवश्यकता है! हमें किसी व्यक्तिगत या सांसारिक रुचियों को, यहोवा अपने लोगों के लिए इन अन्तिम दिनों में जो कुछ कर रहे हैं उसके लिए, अपने मूल्यांकन को कम होने देना नहीं चाहिए। (दानिय्येल १२:३) हमें पहले से कहीं अधिक स्थिरता प्रदर्शित करने की आवश्यकता है, ताकि हम परमेश्वर के वचन में स्पष्ट रूप से दर्शाये मार्ग से भटक न जाएं। (मत्ती १३:२२) प्रमाण इस बात को स्पष्ट कर रहे हैं कि यह संसार अपने अन्तिम दिनों में है। शीघ्र ही इसे अपने अस्तित्व से हटा दिया जाएगा ताकि नए धार्मिक संसार के लिए जगह बन सके।—२ पतरस ३:१३.
२३. यहोवा किस रीति से हमारी सहायता करेंगे, और उसका कौनसा धन्य परिणाम होगा?
२३ तब, आइए हम हर क़ीमत पर जागृत रहें। समय की धारा में हम कहाँ हैं, इसके प्रति हम सचेत रहें। याद रखें कि यहोवा इस विषय में कभी भी सोएंगे नहीं। बल्कि, इन अन्तिम दिनों में जागृत रहने के लिए वे हमारी सहायता करते रहेंगे। रात बहुत बीत चुकी है। दिन निकलने पर है। इस लिए जागते रहो! शीघ्र ही, जब मसीही राज्य पृथ्वी के प्रति यहोवा के उद्देश्य को पूरा करेगा, तब हम अति सुन्दर दिन का अनुभव करेंगे!—प्रकाशितवाक्य २१:४, ५.
आपके उत्तर क्या हैं?
▫ जब यीशु ने कहा कि परमेश्वर के क्रोध का दिन लोगों पर “फन्दे की नाईं” आ पड़ेगी, तो इससे उसका अर्थ क्या था?
▫ हमें ध्यान भंग से क्यों संघर्ष करना चाहिए, और इसे हम कैसे कर सकते हैं?
▫ जागृत रहने के लिए कैसी प्रार्थना की आवश्यकता है?
▫ किस प्रकार की संगति महत्त्वपूर्ण है?
▫ अपनी आध्यात्मिक स्थिति का आत्म-निरीक्षण क्यों करना चाहिए?
▫ हमारे जागृत रहने में भविष्यवाणी क्या भूमिका अदा करती है?