जैसे-जैसे दिन निकट आता है एक दूसरे को प्रोत्साहन दें
“एक दूसरे को प्रोत्साहन देते रहो, और जैसे-जैसे वह दिन निकट आते देखो, और भी अधिक यह किया करो।”—इब्रानियों १०:२५, न्यू.व.
१, २. कौनसा दिन निकट है, और यहोवा के लोगों की क्या अभिवृत्ति होनी चाहिए?
आज के समय में जो लाग यह बताने में हिस्सा ले रहे हैं कि ‘आओ और जीवन का जल लो,’ वह अपने आप को अलग नहीं करते हैं। जैसे-जैसे, यहोवा की विजय का महान दिवस निकट आता है, वे बाइबल की सलाह को लागू करते हैं: “प्रेम और भले कामों में उकसाने के लिए एक दूसरे की चिन्ता करें, और एक दूसरे के साथ इकठ्ठा होना न छोड़े, जैसे कितनों की रित है, लेकिन एक दूसरे को प्रोत्साहन देते रहे, और जैस-जैसे उस दिन को निकट आते देखें तो और भी अधिक यही किया करें।”—इब्रानियों १०:२४, २५, न्यू.व.
२ उस “दिन” को शास्त्रीय भविष्यवाणी में “यहोवा का दिन” कहा गया है। (२ पतरस ३:१०) चूँकि यहोवा परमेश्वर सबसे महान हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, कोई भी दिन उनके दिन से अधिक बढ़कर नहीं हो सकता। (प्रेरितों २:२०) उसका अर्थ है कि सारे विश्व के ऊपर परमेश्वर के प्रभुसत्ता को सिद्ध करना। अद्वितीय महत्व का वह दिन निकट आ रहा है।
३. प्रथम शताब्दी के मसीहीयों के लिए यहोवा का दिन कैसे निकट आ रहा था, और आज हमारे बारे में क्या?
३ हमारे सामान्य युग की प्रथम शताब्दी में प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को यह बताया था कि यहोवा का दिन आ रहा है। वे उस दिन के आने की प्रतीक्षा करने लगे, लेकिन उस समय वह दिन १,९०० वर्षों से अधिक समय बाद आना था। (२ थिस्सलुनीकियों २:१-३) इस तथ्य को जानते हुए भी, उन्हें प्रोत्साहन दिया जाना था क्योंकि वह दिन निश्चय ही आनेवाला था, और यदि मसीही उस विश्वास पर दृढ़ता से बने रहते तो वह उस आशीष प्राप्त दिन में प्रवेश कर सकते थे। (२ तीमुथियुस ४:८) उस समय, वह दिन निकट आते दिखाई दे रहा था। आज हमारे लिए वह दिन वास्तव में निकट आ चुका है। बाइबल भविष्यवाणीयों की सभी अद्भुत पूर्तियाँ इस आनन्दायक तथ्य को प्रमाणित करती हैं। बहुत जल्द ही, हमारे परमेश्वर, यहोवा का नाम सदा के लिए पवित्र ठहराया जाएगा।—लूका ११:२.
दैवी नाम से प्रोत्साहित
४. प्रकाशितवाक्य १९:६ के अनुसार, राजा कौन बनने जा रहा है, और कैसे उनका नाम पहचाना जा रहा है?
४ दैवी नाम, सम्पूर्ण मानव जाति के लिए रूचि का विषय होना चाहिए। टुडेज़ इंगलिश वर्शन कहता है: “परमेश्वर की स्तुति करो! क्योंकि प्रभु, हमारा सर्वशक्तितमान परमेश्वर, राजा है!” (प्रकाशितवाक्य १९:६) २०वीं शताब्दी के उस बाइबल अनुवाद के अनुसार, वह प्रभु है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। वह अनुवाद तथा अन्य अनेक आधुनिक अनुवादों में उस दैवी हस्ती का नाम नहीं दिया गया, जो राजा के जैसे में शासन आरम्भ कर रहा है। फिर भी वह दैवी नाम, “हल्लिलूय्याह!” अभिव्यक्ति (“याह की स्तुति करो” या यहोवा की स्तुति करो) में सम्मिलित है जो ‘रिवाइज़्ड स्टैन्डर्ड वर्शन, द न्यू इटंरनैश्नल वर्शन, मोफैट्स अनुवाद के प्रकाशितवाक्य १९:६ में पायी जाती है। हमारे सामान्य युग में अधिकतर, दैवी नाम को मूल रूप से बाइबल अनुवादों में से मिटा दिया गया है। फिर भी, जैसा कि हम देखेंगे कि वह नाम प्राचीन और आधुनिक, दोनों समयों में परमेश्वर के लोगों के लिए अत्याधिक प्रेरणा का स्रोत रहा है।
५, ६. (अ) मूसा जिस परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहा था, उनका नाम उसे क्यों जानना था? (ब) जब मूसा ने दैवी नाम पर बल दिया था तो इस्राएलियों पर क्या प्रभाव पड़ा होगा?
५ हम याद करेंगे, जब अति महान परमेश्वर द्वारा मूसा को, मिस्र देश में बँधी इस्राएलियों के पास भेजा गया, तो उन लोगों के मन में यह प्रश्न अपने आप उठा कि मूसा को किसने भेजा था। मूसा ने पहले से ही यह जान लिया था कि दुःख उठा रहे यहूदी लोग, उस परमेश्वर का नाम जानना चाहेंगे, जिसका वह प्रतिनिधत्व कर रहा था। इस सम्बन्ध में निर्गमन ३:१५ में हम पढ़ते हैं: “फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, ‘तू इस्राएलियों से यह कहना, कि तुम्हारे पितरों का परमेश्वर, अर्थात इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख, सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।’”
६ जब इस सूचना को उनपर बल दिया गया, तो इस्राएलीयों बहुत ही प्रोत्साहित हुए होंगे। एक मात्र सच्चे परमेश्वर, यहोवा द्वारा उनका छुटकारा निश्चित था। और यह कितना प्रोत्साहन की बात हुई होगी कि उनके सामने परमेश्वर से परिचित होने की प्रत्याशा थी जब वह अपने व्यक्तिगत नाम का अर्थ प्रर्दशित करेगें—अपने आप को घमण्डपूर्वक अलग नहीं कर लेगें!—निर्गमन ३:१३; ४:२९-३१.
७. (अ) हम यह कैसे जानते हैं कि यीशु के शिष्य दैवी नाम से परिचित थे? (ब) दैवी नाम को कैसे पार्श्व में धकेल दिया गया?
७ प्रभु यीशु मसीह के चेले भी उस दैवी नाम, यहोवा, और वह किस बात का प्रतीक है, यह जानकर, बहुत प्रोत्साहित हुए थे। (यूहन्ना १७:६, २६) अपनी पार्थिव सेवकाई के दौरान, यीशु ने दैवी नाम को निश्चय ही अप्रधानता देकर पीछे नहीं हटाया, और उनका यह उद्देश्य नहीं था कि वह अपने नाम, यीशु, को श्रेष्ठता दें। सच्चे मसीही विश्वास में पूर्वकथित धर्मत्याग के बाद ही दैवी नाम को पार्श्व में ले जाया गया, जी हाँ, मसीहीयों के परंस्पर वार्तालाप से पूरी तरह से निकाल दिया गया। (प्रेरितों के काम २०:२९, ३०) जैसे ही परमेश्वर के पुत्र के नाम को अधिक महत्व दिया जाता है, जिससे पिता का नाम ढक जाए, वैसे ही तथाकथित मसीहीयों को पिता का उपासना, अवैयक्तिक होती हुई, पारिवारिक समीपता से रहित हुई और इसलिए प्रोत्साहन न करने वाली प्रतीत होगी।
८. यहोवा के गवाहों नाम धारण करने से परमेश्वर के लोगों पर क्या प्रभाव कायम रहा है?
८ इसलिए, यह अकथ्य आनन्द का कारण था जब वॉचटॉवर सोसाइटी से सम्बन्धित अन्तराष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थीयों ने १९३१ में यहोवा के गवाह, का नाम अपनाया। न केवल यह आनन्द देनेवाला था परन्तु बहुत ही प्रोत्साहक भी था। इस आधार पर, नवीन नाम प्राप्त किए हुए बाइबल विद्यार्थीयों एक दूसरे को प्रोत्साहन दे सकते थे।—यशायाह ४३:१२ से तुलना करें।
९. सच्चे मसीही उनके बारे में, कैसी भावना रखते हैं, जिनके वे गवाह है?
९ परिणाम स्वरूप, आज सच्चे मसीही, जिसके वे पूर्वकथित गवाह है उस की पहचान करना उचित समझते हैं, जैसे उनके अगुआ यीशु मसीह ने की जब वह इस पृथ्वी पर थे। (प्रकाशितवाक्य १:१, २) जी हाँ, वे केवल यहोवा के नाम से उनकी पहचान करते हैं।—भजन संहिता ८३:१८.
आनन्द और पवित्र आत्मा से पूरित
१०-१२. (अ) यीशु के शिष्यों पर सक्रिय शक्ति का क्या प्रभाव होगा? (ब) यहोवा के, आनन्द-प्रोत्साहित गवाह, एक दूसरे से कैसा व्यवहार करना चाहते हैं?
१० यीशु मसीह ने अपने प्रेरितों को विदाई के समय यह शब्द कहे: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओं और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी हैं, मानना सिखाओ; और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ।”
११ ध्यान दें कि नए शिक्षा प्राप्त मसीहीयों को पवित्र आत्मा के नाम में बपतिस्मा लेना था। यह पवित्र आत्मा कोई व्यक्ति नहीं बल्कि यहोवा परमेश्वर कि सक्रिय शक्ति है, जिसे वह यीशु मसीह द्वारा प्रयोग में लाते हैं। पिन्तेकुस्त पर, यहोवा परमेश्वर ने यीशु मसीह द्वारा, अपनी सक्रिय शक्ति को यीशु मसीह के समर्पित शिष्यों पर उंडेला। (प्रेरितों के काम २:३३) वे इस पवित्र आत्मा से भर गए, और पवित्र आत्मा की एक अभिव्यक्तियों, या फलों, में आनन्द हैं। (गलतियों ५:२२, २३; इफिसियों ५:१८-२०) आनन्द एक उत्तेजक गुण है। शिष्यों को पवित्र आत्मा के आनन्द से भर जाना है। प्रेरित पौलुस द्वारा लिखित प्रार्थना अति उचित है: “परमेश्वर जो आशा का दाता है, तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।”—रोमियों १५:१३.
१२ आज, यहोवा के गवाह, जिनमें “बड़ी भीड़” भी शामिल है, इस आनन्द प्रोत्साही आत्मा से भर कर इस शत्रुता पूर्ण रीति व्यवस्था में एक दूसरे को प्रोत्साहन देने के लिए प्रभावित होंगे। इसी के अनुसार, प्रेरित पौलुस ने “आपस में एक दूसरे को प्रोत्साहन” के विषय में बताया।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १०; रोमियों १:१२, न्यू.व.; १४:१७.
प्रोत्साहन पाने के लिये हर एक कारण
१३. हमारे पास प्रोत्साहित होने, और एक दूसरे को प्रोत्साहन देने के क्या कारण हैं?
१३ इस रीति व्यवस्था में, जहाँ का शासक और ईश्वर भी, प्रत्येक धार्मिक विषय का विरोधी है, अपने को पाकर भी मसीही एक दूसरे को विश्वव्यापी मसीही कलीसिया, जिसमें परमेश्वर यहोवा की पवित्र आत्मा फैली हुई है, में एक दूसरे को प्रोत्साहित करना चाहेंगे। (इब्रानियों १०:२४, २५; प्रेरितों के काम २०:२८) हमारे पास प्रोत्साहित होने के लिए हर कारण हैं। जी हाँ, हम कितने एहसानमन्द हैं कि हमारे पास यहोवा और उनके पुत्र का तथा उनके द्वारा प्रयोग में लाने वाली सक्रिय शक्ति, अर्थात, पवित्र आत्मा का यथार्थ ज्ञान हैं! उनके द्वारा दी गयी आशा का हम कितनी कृतज्ञ हैं! इस तरह से हमारी उपासना, आनन्द से भरी हुई है। प्रेरित पौलुस ने जिन मसीहीयों को अपना पत्र सम्बोधित किया, कहा कि उन्होंने एक दूसरे को प्रोत्साहन देना चाहिए और अपने परम पवित्र विश्वास में एक दूसरे को बनाना चाहिए। उन्होंने ऐसा ‘और भी अधिक करना था जैसे-जैसे वह लाक्षिणक रूप से उस दिन को निकट आते हुए देखें।’ इसके अतिरिक्त, जब इस पृथ्वी की राजनीतिक शक्तियाँ, नाममात्र मसीहयता को अन्य सभी झूठे धर्मों सहित हटा देंगी, तब परिस्थिति एक दूसरे को और भी अधिक प्रोत्साहित करने कि माँग करेगी।
१४. एक दूसरे को प्रोत्साहन किन्होंने देना चाहिए, और कैसे?
१४ जब कि, अपनी व्यक्तिगत कलीसियों में प्राचीन, झुण्ड को प्रोत्साहन देने में अगुवाई करते हैं, सभी मसीहीयों को एक दूसरे को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, जैसे कि इब्रानियों १०:२५ चेतावनी देती है। वास्तव में, यह एक मसीही माँग है। यदि आप एक कलीसिया के सदस्य हैं, तो क्या आप यह प्रोत्साहन देते हैं? आप सोचेंगे, ‘मैं कैसे दे सकता हूँ? मैं क्या कर सकता हूँ?’ सबसे पहले, आपके सभाओं में केवल उपस्थित होने से और मसीही प्रबन्ध को सहयोग देने से क्या और भाई बहन प्रोत्साहित नहीं होते, जैसा कि सम्भव है आप भी होते होंगे जब आप दूसरों को वफ़ादारी से कलीसिया की सभाओं में उपस्थित देखते हैं? आपकी वफ़ादार सहनशीलता के उदाहरण से वे भी प्रोत्साहित हो सकते। जीवन की समस्याओं और कठिनाईयों में भी अपने मसीही आचरण पर बने रहने, कभी न थकने से, आप एक प्रेरणादायक उदाहरण रखते हैं।
शैतान द्वारा निरुत्साहन को व्यर्थ करें
१५. शैतान को क्यों “बड़ा क्रोध” है, और किसके विरुद्ध में है?
१५ यहोवा के दिन के निकटता के बारे में, केवल हम ही नहीं जानते। शैतान इबलीस भी यह जानता है। प्रकाशितवाक्य १२:१२ हमें बताता हैं कि, अब पृथ्वी पर विपत्ति का समय है “क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” जैसे कि प्रकाशितवाक्य १२:१७ संकेत करती है, उसका बड़ा क्रोध उनपर निर्दशित है “जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं”। इसमें कोई संदेह नहीं—इबलीस हमें निरूत्साहित करना चाहता है! और वह ऐसा करने अच्छी तरह जातना है। वह हमारी निर्बलताएँ और समस्याएँ जानता है और वह उन्ही से लाभ उठाने कोशिश करता है।
१६. निरुत्साह को एक शस्त्र जैसे शैतान क्यों इस्तेमाल करता है?
१६ निरूत्साह को, एक शस्त्र के रूप में शैतान क्यों इस्तेमाल करता है? क्योंकि यह बहुधा लाभकारी सिद्ध होता है। एक व्यक्ति जिसने विरोध और उत्पीड़न को सहन किया हो, वह निरुत्साह का शिकार हो सकता है। शैतान, यहोवा परमेश्वर को ताना देना चाहता है और यह सिद्ध करना चाहता है कि वह लोगों को परमेश्वर की सेवा करने से अलग कर सकता है। (नीतिवचन २७:११, अय्यूब २:४, ५ से तुलना करें; प्रकाशितवाक्य १२:१०) यदि वह आपको निरूत्साहित कर सकता है, वह शायद आपको, आपकी परमेश्वरीय सेवकाई में सुस्त कर देगा; हो सकता है कि वह आपको रोक भी सके, कि आप राज्य का सुसमाचार, प्रचार करने में निश्क्रिय हो जाएँ।—२ कुरिन्थियों २: १०, ११; इफिसियों ६:११; १ पतरस ५:८.
१७. मूसा के दिनों में निरुत्साह के नकारात्मक प्रभाव कैसे प्रमाणित हुए थे?
१७ प्राचीन मिस्र में इस्राएलियों के विषय में, निरूत्साह के नकारात्मक प्रभाव ध्यान दिए जा सकते हैं। मूसा की फ़िरौन से बातचीत के बाद, उस निरंकुश शासक ने उनके बोझ बढ़ा दिए, और अधिक अत्याचार उनपर किया। परमेश्वर ने मूसा से, इस्राएलियों को आश्वासन देने कहा कि वह निश्चय ही उन्हें छुटकारा दिलाएँगे। उन्हें अपने लोग बनाएँगे, उनके बच निकलने का प्रबन्ध करेंगे और उन्हे प्रतिज्ञा के देश में लाएँगे। मूसा ने इस्राएल के पुत्रों से इसके बारे में बात की। लेकिन निर्गमन ६:९ बताता है: “उन्होंने निरूत्साहित हो जाने से और दासत्व की क्रूरता के कारण मूसा की नहीं सुनी।” इस प्रतिक्रिया से मूसा भी, आज्ञानुसार फिरौन से बात करने में, निरुत्साहित हो गया, जब तक यहोवा ने उसे आश्वासन और प्रोत्साहन नहीं दिया।—निर्गमन ६:१०-१३, न्यू.व.
१८. शैतान द्वारा उत्पन्न किए गए निरुत्साह को परमेश्वर के लोगों ने व्यर्थ कर देने की बहुत अधिक आवश्यकता क्यों है?
१८ शैतान यह भली भाँति जानता है कि परमेश्वर के एक सेवक पर निरुत्साह का क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। जैसे कि नीतिवचन २४:१० कहता है: “क्या तू ने विपत्ति के दिन, उत्साह छोड़ दिया? तो तेरी शक्ति बहुत कम है।” (न्यू.व.) क्योंकि हम अन्त के समय के गहराई में जी रहे हैं, हम आत्मिक रूप से शक्तिशाली और मज़बूत होने की आवश्यकता है। यही बहुत बुरा है कि हमें रोक सकनेवाली हमारी असिद्धताओं, दुर्बलताओं और गलतीयों से हमें संघर्ष करना पड़ता है; परन्तु जब शैतान इन गलतीयों का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश करता है, तो हमें सहायता की ज़रूरत है।
मसीह के बलिदान पर दृढ़ता से भरोसा रखें
१९. निरुत्साह को व्यर्थ कर देने में, क्या हमारी मदद करेगी, और क्यों?
१९ इस सम्बन्ध में एक बहुत बड़ी सहायता यहोवा ने यीशु मसीह द्वारा सम्भव किया हुआ छुटाकरे का प्रबन्ध है। इस छुटकारे पर पूरी तरह से विश्वास करने से हम विजय पाने वाले हो सकते हैं। इस प्रबन्ध को बहुत कम महत्व देने से संकट उत्पन्न हो सकता है। जी हाँ, जब तक हम असिद्ध हैं, हम गलती या पाप करेंगे। लेकिन हम निरूत्साहित होकर छोड़ देने की आवश्यकता नहीं है, यह सोचकर कि कोई आशा नहीं है और इसके परिणामस्वरूप शैतान के फन्दे में गिर जाए। हम जानते हैं कि हमारे पास, पाप के लिए एक पूर्ण बलिदान है। छुटकारा, पापों को मिटा सकता है। यदि हम “बड़ी भीड़” में से है तो हमें पूरा विश्वास और भरोसा होना चाहिए कि हम अपने वस्त्र, मेम्ने के लहू में धोकर श्वेत बना सकते हैं।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४.
२०. प्रकाशितवाक्य १२:११ कैसे दर्शाती है कि बड़ा निरुत्साहक शैतान, पर काबू पाया जा सकता है?
२० प्रकाशितवाक्य १२:१० में शैतान का वर्णन ऐसे किया गया है “हमारे भाईयों पर दोष लगानेवाला, जो दिन रात हमारे परमेश्वर के सामने उन पर दोष लगाया करता है।” ऐसे दुष्ट, दोष लगानेवाले और ऐसे भयंकर निरुत्साहित करनेवाले पर हम कैसे विजय पा सकते हैं? उस अध्याय की ११ आयत हमें उत्तर देती है “वे मेम्ने के लोहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहाँ तक कि मृत्यु भी सह ली।” इसलिए यहोवा के लोगो को छुड़ौती के बलिदान, मेम्ने के लहू पर पूरा विश्वास रखना चाहिए। नियमित रुप से गवाही देने से, जितना सम्भव हो सके उन लोगो को परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाकर, जो उत्साह प्राप्त होता है उसे मज़बूती से थामें रहिए।
२१. हम कैसे अनजाने में शैतान के काम, अर्थात अपने भाइयों को निरुत्साहित करने में हिस्सा ले सकते हैं?
२१ कभी-कभी हम अनजाने से भी, अपने भाईयों को निरुत्साहित करने वाले शैतान के काम में भी हिस्सा ले सकते हैं। कैसे? बहुत अधिक आलोचनात्मक होने से बहुत अधिक माँग करने से, या फिर अत्यन्त धार्मिक प्रतीत होकर हम ऐसा कर सकते है। (सभोपदेशक ७:१६) हम सभी में कमीयाँ और कमज़ोरियाँ हैं। शैतान की तरह हम उनपर अनुचित काम न करें। इसके विपरीत, आइए हम अपने भाइयों और संघठित समूह के रूप में यहोवा के लोगों के बारे में प्रोत्साहन देनेवाली बातें कहें। हम एक दूसरे के हौसला बढ़ाना चाहते हैं और दूसरों को हताश करने से रुके।
दिन के निकट आते प्रोत्साहन देना
२२, २३. (अ) हमने क्यों, प्रोत्साहन का स्रोत होने के लिए केवल प्राचीनों पर नहीं छोड़ना चाहिए? (ब) मसीही कलीसिया के अध्यक्ष कैसे प्रोत्साहन पा सकते है?
२२ जैसे-जैसे दिन को नज़दीक आते देखें हमने यह दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि हमेशा एक दूसरे को उत्साही करते रहें। सान्त्वना के शब्दों और अपने वफ़ादार उदाहरण से दूसरों को प्रोत्साहन दीजिए। इस सम्बन्ध में यहोवा और प्रभु यीशु मसीह की नकल कीजिए। प्रोत्साहन का स्रोत होने केवल कलीसिया के प्राचीनों पर ही ना छोड़ दीजिए। अजी, प्राचीनों को खुद प्रोत्साहन चाहिए। झुण्ड के बाकी लोगों के समान ही उनकी भी कमज़ोरियाँ और दुर्बलताएँ हैं, इस सड़ा हुआ संसार में अपने परिवारों के लिए प्रबन्ध करने में उनको भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त उनके पास जैसे पौलस ने वर्णन किया, कलीसियों के लिए चिन्ता भी है। (२ कुरिन्थियों ११:२८, २९) उनका काम बहुत कठिन है—उन्हें प्रोत्साहन चाहिए।
२३ मसीही कलीसिया की देख रेख करनेवालों को अपने सहयोग के द्वारा आप बहुत अधिक प्रोत्साहन दे सकते हैं। ऐसा करने से आप इब्रानियों १३:१७ की सलाह पर चलते हैं: “अपने अगुओं की मानो; और उनके आधीन रहो, क्योंकि वे उनकी नाई तुम्हारे प्राणों के लिए जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”
२४. इस निरुत्साहित समय में, हमने क्या करते रहना चाहिए और क्यों?
२४ हम निरुत्साह के समय में जीवित हैं। जैसे यीशु ने पहले से बताया था, लोगों के हृदय, भय और पृथ्वी पर होनेवाली घटनाओं की अपेक्षा से, व्याकुल हैं। (लूका २१:२५, २६) हताश करने और उदास कर सकने वाली इतनी सारी समस्याओं में, “एक दूसरे को प्रोत्साहन देते रहो, और जैसे-जैसे वह दिन निकट आए और भी अधिक यही किया करो।” १ थिस्सलुनीकियों ५:११ में लिखित पौलुस की अच्छी सलाह का पालन किजिए: “एक दूसरे को शान्ति दो, और एक दूसरे की उन्नति के कारण बनो, निदान तुम ऐसा करते भी हो।”
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ मसीहीयों को क्यों पहले से अधिक एक दूसरे को प्रोत्साहन देते रहना है?
◻ यहोवा के लोगों के लिए दैवी नाम का ज्ञान कैसे प्रोत्साहन देते रहा है?
◻ व्यक्तिगत रूप से, हम किन तरीकों से एक दूसरे को प्रोत्साहन दे सकते है?
◻ भाइयों को निरुत्साहित करनेवाले शैतान के कार्य में भाग लेने में क्यों बचके रहना जरूरी है?
[पेज 17 पर तसवीरें]
अपनी मंडलीयों में झुण्ड को प्रोत्साहित करने में प्राचीन अगुवाई लेते है