अपने भाइयों के लिए क़दर
“निष्कपट भाइयों जैसी प्रीति से, . . . तन मन लगाकर एक दूसरे से तीव्रता से प्रेम रखो।”—१ पतरस १:२२, न्यू.व.
१. अनेक लोग किस बात से कायल हुए कि यहोवा के गवाह सच्ची मसीहियत के अनुसार चलते हैं?
प्रेम सच्ची मसीहियत का प्रमाण-चिन्ह है। अपने प्रेरितों के साथ खाए आख़री भोजन के दौरान, यीशु ने यह कहकर इस पर ज़ोर दिया: “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३४, ३५, न्यू.व.) कई लोग पहली बार कायल हुए कि यहोवा के गवाह सच्ची मसीहियत का पालन कर रहे हैं जब वे किंग्डम हॉल में किसी सभा में उपस्थित हुए या किसी बड़ी सभा में गए। उन्होंने प्रेम को अमल होते हुए देखा, और इस से वे जान गए कि वे मसीह के सच्चे चेलों के बीच थे।
२. प्रेरित पौलुस ने प्रेम, मसीहियत के विशिष्ट चिन्ह, के विषय क्या कहा?
२ हम सब खुश हैं कि असली मसीहियत का यह विशिष्ट चिन्ह आज यहोवा के लोगों में देखा जा सकता है। फिर भी, प्रारंभिक मसीहियों के जैसे, हम जानते हैं कि हमें अपने भाइयों के लिए क़दर दिखाने के और अधिक तरीक़े सतत ढूँढ़ने चाहिए। पौलुस ने थिस्सलुनीके की मण्डली को यह लिखा: “और प्रभु ऐसा करे, कि . . . तुम्हारा प्रेम भी आपस में . . . बढ़े, और उन्नति करता जाए।” (१ थिस्सलुनीकियों ३:१२) हम एक दूसरे के लिए अपने प्रेम में किस तरह बढ़ सकते हैं?
प्रेम और भाइयों जैसी प्रीति
३. एक पवित्र जीवन जीने के अतिरिक्त, मसीहियों के लिए क्या आवश्यक है, इस विषय प्रेरित पतरस ने क्या कहा?
३ एशिया माइनर के मसीही मण्डलियों से संबोधित एक आम पत्र में, प्रेरित पतरस ने लिखा: “सो जब कि तुम ने निष्कपट भाइयों जैसी प्रीति [फ़ि·ल·डेल·फिʹया] के निमित्त सत्य के मानने से अपने मनों [या, जीवनों] को पवित्र किया है, तो तन मन लगाकर एक दूसरे से तीव्रता से प्रेम [आ·गा·पेʹओ का एक रूप] रखो।” (१ पतरस १:२२, न्यू.व.) पतरस दिखाता है कि अपना जीवन पवित्र बनाना ही काफ़ी नहीं। सच्चाई, जिस में नयी आज्ञा भी सम्मिलित है, के प्रति हमारी आज्ञाकारिता का परिणाम निष्कपट भाइयों जैसी प्रीति और एक दूसरे के लिए तीव्र प्रेम होना चाहिए।
४. हमें कौनसे प्रश्न पूछने चाहिए, और इस संबंध में यीशु ने क्या कहा?
४ क्या प्रवृति ऐसी है कि हमारे भाइयों के लिए हमारा प्रेम और क़दर सिर्फ़ उन्हीं की ओर व्यक्त की जाती है, जिन्हें हम पसंद करते हैं? क्या हमारा झुकाव इन की कमियों की ओर आँखें बन्द करके उन के प्रति उदार होना है, जबकि दूसरों के दोषों और कमियों को हम जल्दी देखते हैं, जिनके प्रति हमें कोई स्वाभाविक लगाव महसूस नहीं होता? यीशु ने कहा: “क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम [आ·गा·पेʹओ का एक रूप] रखो, तो तुम्हारे लिए क्या फल होगा? क्या महसूल लेनेवाले भी ऐसा नहीं करते?”—मत्ती ५:४६.
५. एक बाइबल विद्वान् “प्रेम” का अर्थ रखनेवाले और “स्नेह” का अर्थ रखनेवाले यूनानी शब्दों के बीच कौनसा प्रभेद करता है?
५ अपनी किताब न्यू टेस्टामेन्ट वर्डस् में, प्राध्यापक विलियम बार्क्ले उन यूनानी शब्दों पर निम्नलिखित टीका करता है जिनका अनुवाद “प्रीति” और “प्रेम” किया गया है: “इन शब्दों में बहुत प्यारी हार्दिकता जुड़ी है [फि·लिʹया, यानी “प्रीति” और संबद्ध क्रिया फि·लिʹयो]। उनका मतलब है किसी को स्नेहिल नज़रों से देखना। प्रेम के लिए सर्वसामान्य न[ए] क[रार] के शब्द, संज्ञा आगापे और क्रिया आगापान हैं। . . . फिलिया एक प्यारा शब्द था, लेकिन वह निश्चित रूप से हार्दिकता और नज़दीकपन और स्नेह का अर्थ सूचित करनेवाला शब्द था। . . . आगापे का संबंध दिमाग़ से है: यह सिर्फ़ ऐसी भावना नहीं जो अपने दिलों में बिन-बुलाए उभर आती है; यह ऐसा सिद्धांत है जिसके अनुकूल हम जानबूझकर व्यवहार करते हैं। आगापे इच्छाशक्ति से अत्यधिक संबंध रखता है। यह एक विजय, एक जीत और सफलता है। किसी ने भी स्वाभाविक ढंग से अपने दुश्मनों से प्रेम नहीं किया। अपने दुश्मनों से प्रेम रखना अपनी सारी स्वाभाविक प्रवृत्तियों और भावनाओं पर विजय करना है। यह आगापे . . . वास्तव में अप्रीतिकर से प्रेम रखने की शक्ति है, उन लोगों को प्रेम करना जिन्हें हम पसंद नहीं करते।”
६. (अ) हमें अपने आप से कौनसे भेदक प्रश्न पूछने चाहिए? (ब) पतरस के अनुसार, हम उन लोगों तक ही, जिनकी ओर हम स्वाभाविक रूप से आकृष्ट हैं, अपना भाइयों जैसा स्नेह क्यों सीमित नहीं कर सकते?
६ इस बहाने से कि धर्मशास्त्र में हमें दूसरों से ज़्यादा अपने कुछेक भाइयों के लिए अधिक स्नेही भावनाएँ महसूस करने की अनुमति है, क्या हम अपनी भावनाओं को बुद्धिसंगत करने के लिए प्रवृत्त हैं? (यूहन्ना १९:२६; २०:२) क्या हम सोचते हैं कि हम कुछेकों के प्रति एक भावशून्य, सुविवेचित “प्रेम” इसलिए व्यक्त कर सकते हैं कि हमें ऐसा करना ही पड़ता है, जबकि हम उन के लिए स्नेही भाइयों जैसी प्रीति बचा रख सकते हैं जिनकी ओर हम आकर्षित हैं? अगर ऐसा है, तो हम ने पतरस के प्रबोधन की सारवस्तु ही नहीं समझी। हम ने सत्य के मानने से अपने मनों को पर्याप्त मात्रा में पवित्र नहीं किया, इसलिए कि पतरस कहता है: “अब जबकि सत्य को मानने से तुमने इस हद तक अपना मन पवित्र किया है कि तुम अपने भाई मसीहियों के प्रति सच्चा स्नेह महसूस करते हो, अपना तन मन लगाकर, जी-जान से एक दूसरे से प्रेम करो।”—१ पतरस १:२२, द न्यू इंग्लिश बाइबल।
“निष्कपट भाइयों जैसी प्रीति”
७, ८. जिस शब्द का अनुवाद “निष्कपट” किया गया है, उसका मूल क्या है, तो पतरस ने इस शब्द को क्यों इस्तेमाल किया?
७ प्रेरित पतरस इस से भी आगे जाता है। वह कहता है कि हमारी भाइयों जैसी प्रीति निष्कपट होनी चाहिए। जिस शब्द का अनुवाद “निष्कपट” किया गया है, वह एक ऐसे यूनानी शब्द के नकारी रूप से उत्पन्न होता है जो रंगमंच के उन अभिनेताओं के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जो अपने चेहरे को मुखावरण से छिपाकर बोलते थे। इस से वे नाटक के दौरान कई अलग पात्रों का अभिनय कर पाते थे। तब उस शब्द ने पाखण्ड, छिपाव, या कपट का प्रतीकात्मक अर्थ ग्रहण किया।
८ मण्डली में कुछ भाई-बहनों के बारे में हम अपने मन की गहराई में कैसे महसूस करते हैं? क्या हम सभाओं में उनका स्वागत एक कृत्रिम मुस्कराहट देकर करते हैं, जल्द से कहीं और देखते हैं या चले जाते हैं? उस से बदतर, क्या हम उनका स्वागत करना ही टालते हैं? अगर ऐसा है, तो हमारा “सत्य को मानने” के बारे में क्या कहा जा सकता है जिस से हमारा मन अपने संगी मसीहियों के प्रति सच्चा स्नेह महसूस करने की हद तक पवित्र किया जाना चाहिए था? “निष्कपट” शब्द इस्तेमाल करके, पतरस कह रहा है कि हमारे भाइयों के लिए अपना प्रेम दिखावे के लिए धारण नहीं किया जाना चाहिए। इसे असली, आन्तरिक होना चाहिए।
‘तन मन लगाकर तीव्रता से’
९, १०. पतरस का क्या मतलब था जब उसने कहा कि हमें एक दूसरे से “तीव्रता से,” या “तानते हुए” प्रेम करना चाहिए?
९ पतरस कहता है: “तन मन लगाकर एक दूसरे से तीव्रता से [अक्षरशः, “तानते हुए”] प्रेम रखो।” उन लोगों के प्रति प्रेम दिखाना, जिन्हें हम स्वाभाविक ढंग से पसंद करते हैं और जो वही भाव हम से दिखाते हैं, दिल से कोई तनाव आवश्यक नहीं करता। लेकिन पतरस हमें एक दूसरे से “तानते हुए” प्रेम करने के लिए कहता है। जब यह मसीहियों के बीच व्यक्त किया जाता है, आ·गाʹपे प्रेम सिर्फ़ एक बौद्धिक, सुविवेचित प्रेम नहीं, जैसा कि हमें अपने दुश्मनों के लिए होना चाहिए। (मत्ती ५:४४) यह एक तीव्र प्रेम है और प्रयास आवश्यक करता है। यह हमारे मन को तानना सम्मिलित करता है, उसे इस तरह चौड़ा बनाकर कि वे ऐसे लोगों को लपेट सके जिन से हम सामान्य रूप से आकर्षित नहीं होते।
१० अपनी किताब लिंग्विस्टिक की टू द ग्रीक न्यू टेस्टामेन्ट में, फ्रिट्ज़ रीनेक्कर उस शब्द पर टीका करता है जिसका अनुवाद १ पतरस १:२२ में “तीव्रता से,” या “तानते हुए” किया गया है। वह लिखता है: “इसका मूलभूत विचार गांभीर्य, उत्साह से संबद्ध है (कोई काम लापरवाही से न करना . . . पर मानो घोर परिश्रम से) (हॉर्ट)।” अन्य बातों के अलावा, घोर परिश्रम का मतलब है “अधिकतम फैलाव तक तानना।” इसलिए तन मन लगाकर एक दूसरे से तीव्रता से प्रेम रखने का मतलब है अपने सभी मसीही भाईयों के लिए भाइयों जैसा स्नेहभाव विकसित करने की अपनी कोशिशों में आत्यंतिक रूप से प्रयास करना। क्या हमारे कोमल स्नेह में हमारे कुछेक भाई-बहनों के लिए जगह तंग है? अगर ऐसा है, तो हमें अपना हृदय खोलना चाहिए।
“अपना हृदय खोल दो”
११, १२. (अ) कुरिन्थ के मसीहियों को प्रेरित पौलुस ने क्या सलाह दी? (ब) इस संबंध में पौलुस ने एक बढ़िया आदर्श किस तरह पेश किया?
११ प्रत्यक्ष रूप से प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ की मण्डली में इसकी ज़रूरत महसूस की। उसने वहाँ के मसीहियों को लिखा: “हे कुरिन्थियों, हम ने खुलकर तुम से बातें की है, हमारा हृदय तुम्हारी ओर खुला है। तुम्हारे लिए हमारे मन में कुछ सकेती नहीं, पर तुम्हारे ही मनों में सकेती है। पर अपने लड़के-बाले जानकर तुम से कहता हूँ, कि तुम भी उसके बदले में अपना हृदय खोल दो।”—२ कुरिन्थियों ६:११-१३.
१२ हम अपने हृदय को अपने सभी भाई-बहनों को समाविष्ट करने के लिए किस तरह खोल सकते हैं? इस संबंध में पौलुस ने एक बढ़िया आदर्श पेश किया। प्रत्यक्ष रूप से उसने अपने भाइयों में सबसे अच्छी बातें ढूँढ़ीं, और उसने उन्हें उनके दोषों के लिए नहीं बल्कि उनके सद्गुणों के लिए याद किया। रोम में मसीहियों को लिखी उसकी चिट्ठी का आख़री अध्याय इसे चित्रित करता है। आइए, हम रोमियों अध्याय १६ की जाँच करें और देखें कि यह किस तरह पौलुस का अपने भाई-बहनों के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति प्रतिबिंबित करता है।
स्नेहशील क़दर
१३. पौलुस ने फीबे के लिए अपनी क़दर किस तरह व्यक्त की, और क्यों?
१३ सामान्य युग लगभग ५६ में, अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा के दौरान पौलुस ने कुरिन्थ से रोमियों को अपनी चिट्ठी लिखी। उसने प्रत्यक्ष रूप से वह हस्तलेख फीबे नाम की एक मसीही महिला के हाथ सौंपा, जो कि पास की किंख्रिया मण्डली की सदस्या थी, और जो रोम जा रही थी। (आयत १, २ पढ़ें।) ग़ौर करें कि वह रोम के भाइयों को उसकी सिफ़ारिश कितने स्नेह से करता है। किसी न किसी तरह, उसने पौलुस के साथ साथ, कई मसीहियों की रक्षा, शायद किंख्रिया के व्यस्त बन्दरगाह के मार्ग से उनकी यात्रा के दौरान, की थी। बाक़ी सभी मानवों की तरह, एक अपूर्ण पापी होने के नाते, बेशक फीबे में भी कमज़ोरियाँ थीं। लेकिन रोमी मण्डली को फीबे की कमियों के विरुद्ध चेतावनी देने के बजाय, पौलुस ने उन्हें आदेश दिया कि वे “जैसा कि पवित्र लोगों को चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण” करें। कैसी बढ़िया, सकारात्मक मनोवृत्ति!
१४. पौलुस ने प्रिसका और अक्विला के विषय कौनसी कृपालु बातें कहीं?
१४ आयत ३ से आयत १५ तक, पौलुस २० से ज़्यादा मसीहियों को अभिवादन भेजता है, जिनका ज़िक्र वह नाम से करता है, और कई अन्यों को भी जिनका ज़िक्र वह व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से करता है। (आयत ३, ४ पढ़ें) क्या आप को उस भाइयों जैसे स्नेह का बोध होता है जो पौलुस ने प्रिसका (या, प्रिस्किल्ला; प्रेरितों के काम १८:२ से तुलना करें) और अक्विला के लिए महसूस किया? इस दम्पत्ति ने पौलुस की ख़ातिर अपने आप को जोख़िम में डाला था। अब उसने इन सह-कर्मियों का कृतज्ञता से अभिवादन किया और अन्यजातीय मण्डलियों की तरफ़ से उन्हें आभार की एक अभिव्यक्ति भेजी। इस हार्दिक अभिवादन से अक्विला और प्रिस्किल्ला कितने उत्तेजित हुए होंगे!
१५. अन्द्रुनीकुस और यूनियास को नमस्कार करते समय पौलुस ने अपनी उदारता और विनम्रता किस तरह दिखायी?
१५ स्पष्ट रूप से मसीह की मृत्यु के साल दो साल के अन्दर पौलुस एक समर्पित मसीही बन गया। जिस समय तक उसने रोमियों को अपनी चिट्ठी लिखी, तब तक वह कई सालों से अन्यजातियों के लिए एक प्रमुख प्रेरित के तौर से मसीह द्वारा इस्तेमाल किया जा चुका था। (प्रेरितों के काम ९:१५; रोमियों १:१; ११:१३) फिर भी, उसकी उदारता और विनम्रता पर ग़ौर करें। (आयत ७ पढ़ें।) उसने अन्द्रुनीकुस और यूनियास को “प्रेरितों [भेजे हुओं] के नामी” होने के तौर से नमस्कार किया और क़बूल किया कि वे मसीह की सेवा उस से ज़्यादा समय से कर रहे थे। वहाँ नीच ईर्ष्या का कोई नामोनिशान नहीं!
१६. (अ) रोम में रहनेवाले अन्य मसीहियों के विषय पौलुस ने कौनसे स्नेही शब्दों में बात की? (ब) हमें यक़ीन क्यों हो सकता है कि ये अभिवादन “निष्कपट भाइयों जैसी प्रीति” के उदाहरण थे?
१६ इपैनितुस, अम्पलियातुस और इस्तखुस जैसे प्रारंभिक मसीहियों के बारे में हम या तो बहुत कम या कुछ भी नहीं जानते। (आयत ५, ८, ९ पढ़ें।) लेकिन जिस तरह पौलुस ने उन तीनों को नमस्कार किया, केवल उसी से हमें पक्का विश्वास हो सकता है कि वे विश्वसनीय आदमी थे। उन्होंने खुद को पौलुस की नज़रों में इतना प्रिय बनाया था कि उसने उन में के हर एक को “मेरे प्रिय” कहकर पुकारा। पौलुस के मन में अपिल्लेस और रूफुस के लिए कृपालु शब्द थे, और उनका ज़िक्र क्रमशः “मसीह में खरा” और “प्रभु में चुना हुआ,” इस तरह किया। (आयत १०, १३ पढ़ें।) इन दो मसीहियों की कैसी बढ़िया प्रशंसा! और पौलुस की स्पष्टवादिता जानते हुए, हमें यक़ीन हो सकता है कि वह तकल्लुफ़ मात्र न थी। (२ कुरिन्थियों १०:१८ से तुलना करें) एक और बात, पौलुस रूफुस की माँ को नमस्कार कहना नहीं भूला।
१७. पौलुस ने गहराई से अपने बहनों के लिए क़दर किस तरह दिखायी?
१७ उस से हम पौलुस के अपने बहनों के लिए क़दर के विषय पर आते हैं। रूफुस की माँ के अतिरिक्त, पौलसु ने कम से कम छः अन्य औरतों का ज़िक्र किया। हम ने पहले ही देखा है कि वह फीबे और प्रिसका के विषय किस कृपाभाव से बोला। लेकिन ग़ौर करें कि उसने कैसी स्नेहिल भाइयों जैसी प्रीति से मरियम, त्रूफैना, त्रूफोसा और पिरसिस को नमस्कार किया। (आयत ६, १२ पढ़ें।) हम महसूस कर सकते हैं कि पौलुस का दिल उन परिश्रमी बहनों तक फैला, जिन्होंने अपने भाइयों के लिए “बहुत परिश्रम किया” था। पौलुस की अपने भाई-बहनों के लिए, उनकी अपूर्णताओं के बावजूद, हार्दिक क़दर देखना कितना उत्तेजक है!
हमारे भाइयों के उद्देश्यों के विषय शक्की न होना
१८. हम पौलुस का अनुकरण करने की कोशिश क्यों कर सकते हैं, लेकिन शायद क्या आवश्यक होगा?
१८ क्यों न पौलुस का अनुकरण करके मण्डली में हर एक भाई और बहन के बारे में कुछ अच्छा कहने के लिए कोई बात ढूँढ़ने की कोशिश करें? कुछ लोगों के विषय, आपको बिल्कुल ही कोई कठिनाई न होगी। दूसरों के विषय, शायद आपको थोड़ा-बहुत ढूँढ़ना पड़ेगा। क्यों न उन्हें बेहतर जानने के उद्देश्य से उनके साथ कुछ समय बिताएँ? आप निश्चय ही उन में प्यारे गुणों का पता लगाएँगे, और, कौन जाने, शायद वे पहले से तुम्हारी ज़्यादा क़दर करें।
१९.
१९ हमें अपने भाइयों के उद्देश्यों पर शक नहीं करना चाहिए। वे सभी यहोवा से प्रेम करते हैं; वरना वे उसे अपना जीवन समर्पित न करते। और वह क्या चीज़ है जो उन्हें संसार में लौट जाने और उसके आरामपसन्द तरीक़ें अपनाने से बचाती है? यह यहोवा, उसकी धार्मिकता, और मसीह के नीचे उसके राज्य के लिए उनका प्रेम है। (मत्ती ६:३३) लेकिन, अलग अलग रीति से, उन सभियों को विश्वसनीय रहने के लिए तीव्र संघर्ष करना पड़ रहा है। इसलिए यहोवा उन से प्रेम करता है। (नीतिवचन २७:११) वह उन्हें, उन के दोषों और कमियों के बावजूद, अपने सेवकों के हैसियत से स्वीकार करता है। चूँकि बात यूँ है, तो उन्हें अपने कोमल स्नेह में शामिल करना अस्वीकार करने के लिए हम कौन होते हैं?—रोमियों १२:९, १०; १४:४.
२०. (अ) रोमियों को लिखी पौलुस की चिट्ठी के अनुसार, हमें केवल किन लोगों के विषय शक्की होना चाहिए, और इस संबंध में हम किस के मार्गदर्शन के अनुसार चल सकते हैं? (ब) नहीं तो, हमें अपने सभी भाइयों का विचार किस तरह करना चाहिए?
२० पौलुस हमें सिर्फ़ उन्हीं के विषय शक्की होने के लिए चेतावनी देता है जो “फूट पड़ने, और ठोकर खाने के कारण होते हैं,” और उन के विषय जो “उस शिक्षा के विपरीत” कार्य करते हैं, “जो तुम ने पाई है।” पौलुस हमें ऐसे लोगों पर नज़र रखने और उनसे बचे रहने के लिए कहता है। (रोमियों १६:१७) मण्डली के प्राचीन इनकी मदद करने की कोशिश कर चुके होंगे। (यहूदा २२, २३) तो हम प्राचीनों पर निर्भर रह सकते हैं कि अगर कुछेकों से बचे रहने की आवश्यकता हो, वे हमें सूचित करेंगे। नहीं तो, हमें अपने सभी भाइयों को निष्कपट भाइयों जैसी प्रीति के योग्य मानना चाहिए, और हमें तन मन लगाकर उन्हें तीव्रता से प्रेम रखने के लिए सीखना चाहिए।
२१, २२. (अ) हमारे सामने क्या है? (ब) कौनसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, और इसलिए अब क्या करने का समय है? (क) अगले लेख में किस बात पर ग़ौर किया जाएगा?
२१ शैतान, उसकी दुष्टात्माएँ, और उसकी संपूर्ण सांसारिक रीति-व्यवस्था हमारे विरुद्ध है। हर-मगिदोन हमारे सामने है। यह मागोग के गोग के आक्रमण से शुरू होगा। (यहेजकेल, अध्याय ३८, ३९) उस समय, पहले कभी से कहीं ज़्यादा हमें अपने भाइयों की ज़रूरत होगी। हम शायद उन्हीं लोगों की मदद के लिए अपने आप को ज़रूरतमंद पाएँगे जिनकी हम विशेष रूप से क़दर नहीं करते। या इन्हीं लोगों को हमारी मदद की अत्यधिक आवश्यकता होगी। हमारा हृदय खोलने और हमारे सभी भाइयों के लिए अपनी क़दर बढ़ाने का समय अब है।
२२ अपने भाइयों के लिए क़दर तो, अवश्य, मण्डली के प्राचीनों के लिए उचित आदर समाविष्ट करती है। इस संबंध में, खुद प्राचीनों को न केवल सभी भाइयों के लिए पर अपने संगी प्राचीनों के लिए भी उचित क़दर दिखाकर, बढ़िया आदर्श बनने चाहिए। अगले लेख में विषय के इस पहलू पर ग़ौर किया जाएगा।
पुनर्विचार के लिए विषय
◻ सच्ची मसीहियत का विशिष्ट चिन्ह क्या है?
◻ दोनों प्रेम और भाइयों जैसा स्नेह आवश्यक क्यों हैं?
◻ हम “तीव्रता से” या “तानते हुए” एक दूसरे से प्रेम किस तरह कर सकते हैं?
◻ रोमियों अध्याय १६ में, पौलुस ने अपने भाई-बहनों के लिए क़दर किस तरह दिखायी?
◻ हमें अपने भाइयों के उद्देश्यों के विषय शक्की क्यों नहीं होना चाहिए?
[पेज 16 पर तसवीरें]
जिन लोगों की ओर आप स्वाभाविक रूप से आकृष्ट नहीं, उन में प्रीतिकर गुण ढूँढ़ निकालने की कोशिश करें